अनहद पत्रिका

अनहद पत्रिका अनहद हिंदी की एक साहित्यिक व सांस्कृत?
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मित्र भरत प्रसाद की कलम सेकवि, सम्पादक Santosh Chaturvedi की प्रतिष्ठित पत्रिका-अनहद का गांधी विशेषांक। ठीक से याद करूं ...
29/11/2022

मित्र भरत प्रसाद की कलम से

कवि, सम्पादक Santosh Chaturvedi की प्रतिष्ठित पत्रिका-अनहद का गांधी विशेषांक। ठीक से याद करूं तो पिछले कुछ वर्षों में गांधी पर दर्जन भर विशेषांक। हाल ही में मधुमती और नया ज्ञानोदय पत्रिका का भी गांधी केन्द्रित विशेषांक। "सृजन सरोकार" का भी नवीनतम अंक, इसी महामानव पर। निश्चय ही गांधी भारतीय जमीन से उठी एक ऐसी वैश्विक शख्सियत हैं, जिसके कद का लोहा पूरी दुनिया मानती है।भारत की मुक्ति के नायक तो हैं ही गांधी, परन्तु चिंतन और व्यक्तित्व को एकाकार करने वाला साधक गांधी की तरह विरला ही मिलेगा।


संतोष चतुर्वेदी अपने चिर परिचित अंदाज़ में सघन मेहनत और मौन दृढ़ता के साथ यह अंक समयार्पित किए हैं। यह बृहद अंक अपनी दृष्टिगत गुणवत्ता के कारण लंबे समय तक याद किया जाएगा।

राधाबल्लभ त्रिपाठी, नंदकिशोर आचार्य, नीलकान्त, कनक तिवारी , कात्यायनी (प्रसिद्ध कवयित्री), बसंत त्रिपाठी, जगदीश्वर चतुर्वेदी, प्रदीप सक्सेना, तुषार गांधी, हेरम्ब चतुर्वेदी (इतिहासकार), सेवाराम त्रिपाठी (आलोचक), सुधीर चन्द्र, जवरीमल्ल पारख, विनोद शाही, प्रेमपाल शर्मा, महेश पुनेठा (कवि, सम्पादक), हितेंद्र पटेल, पंकज मोहन, प्रेमकुमार मणि, मधुरेश, अरुण माहेश्वरी, कमलेश भट्ट कमल और रामजी तिवारी (कवि) सहित दो दर्जन से ज्यादा रचनाकारों ने गांधी के विभिन्न आयामों पर अपने विचार, विश्लेषण पेश किए हैं।

यह अंक सही मायने में वार्षिकेय है, जिसे ढंग से पढ़ने में यकीनन एक वर्ष लग जाएंगे। इसके ठीक पहले अनहद का मुक्तिबोध अंक आ चुका है, जो कि प्रतिष्ठित प्रकाशक के द्वारा पुस्तकाकार होने को तैयार है। उम्मीद है, आगामी पुस्तक मेला में हमें उपलब्ध भी हो।


निरंतर 12 वर्षों से साहित्यिक मानदंड को ऊंचा रखते हुए जिस रौनक के साथ "अनहद" नाद कर रही है, वह समकालीन साहित्यिक पत्रकारिता में किसी जरूरी घटना से कम नहीं। नि:संकोच "अनहद" आज शीर्षस्थ पत्रिकाओं की पांत में शुमार किए जाने की हैसियत हासिल कर चुकी है।


【 भरत प्रसाद : 28 नवंबर, 2022】

प्रोफेसर राजेंद्र कुमार के हाथों में अनहद का गांधी अंक।
26/11/2022

प्रोफेसर राजेंद्र कुमार के हाथों में अनहद का गांधी अंक।

05/11/2022

" उस ध्येय की सिद्धि के लिए आपको मेरी संपूर्ण वफादारी हासिल होंगी, जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान भारत के किसी अन्य पुरुष ने नहीं किया है"__ सरदार पटेल, 3 अगस्त 1947।

01/03/2022

Live Discussion. In both Brazil and India, countless working class people who are compelled to live in slums are facing eviction from their homes. Against this background, we will discuss the housing issues in Brazil and India.

The live event will be moderated by Atul Kumar from the Cinema of Resistance.

The Panelists are:
1) Benedito Roberto Barbosa, (Central de Movimentos Populares, União Nacional por Moradia Popular)

2) Hugo Fanton, (International Research Group on. Authoritarianism and Counter Strategies)

3) Bilal Khan, Activist, Ghar Bachao Ghar Banao Andolan

4) Jameela Begum, Activist, Ghar Bachao Ghar Banao Andolan

Fb Live on 1 March- 07.30 pm IST/ 11.AM Brasilia Time
Languages: Hindi, English, Portuguese

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04/11/2021

#शुभदीपावली
अनहद पत्रिका की ओर से सभी पाठकों को दीपावली की ढेरों शुभकामानाएं.

अनहद-पुस्तिका - समकालीन सृजन का समवेत स्वरवर्ष 11, अनहद पुस्तिका : 1, दिसम्बर, 2021 #गाँधी जी और  #मार्क्सवाददुष्प्रचार ...
03/11/2021

अनहद-पुस्तिका - समकालीन सृजन का समवेत स्वर
वर्ष 11, अनहद पुस्तिका : 1, दिसम्बर, 2021

#गाँधी जी और #मार्क्सवाद
दुष्प्रचार के दौर में गाँधी जी को गंभीरतापूर्वक जानने समझने के लिए यह हमारा प्रयास है। आप सभी इस प्रयास से जुड़ें, पत्रिका खरीदें और पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया साझा करें.

यह पुस्तिका व्यक्तिगत खर्च से प्रकाशित की गई है। अठहत्तर पृष्ठों वाली इस पुस्तिका का मूल्य ₹ 80.00 है। यह धनराशि आप सहयोग राशि के रूप में अनहद के खाते में जमा कर सकते हैं।

बैंक डिटेल्स
ACCOUNT NAME : ANAHAD
ACCOUNT No. : 40980001000643
Bank Name :Punjab National Bank
ALOPI BAGH, ALLAHABAD,
UPIFS CODE : PUNB0409800
(0 Means Zero)

#पत्रिका #अनहद #हिंदी #हिंदीभाषी


02/11/2021

--- #गांधी जी और #मार्क्सवाद---
गाँधी जी से शिक्षा ली जा सकती है कि जितने ही अधिक लोगों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के साथ हमारे आदर्श मेल खाएँगे, उतना ही अधिक हमारी शिक्षा फलीभूत होगी। जाहिर है कि गाँधी जी भी इसीलिए महान थे कि जिन आदर्शों और नैतिक मूल्य-मान्यताओं को वे मृत्युपर्यन्त मानते रहे, वे करोड़ों भारतीयों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं से मेल खाती थीं। उनकी शिक्षा पूरे राष्ट्र के लिए विद्रोह का आह्वान बनी। यह शिक्षा खासतौर पर देहातों की गरीब जनता - गाँधी जी के शब्दों में- ‘दरिद्र नारायण’ - के लिए विद्रोह का आह्वान थी।

#पत्रिका #अनहद #हिंदी #हिंदीभाषी


अनहद पुस्तिका 1 'गाँधी जी और मार्क्सवाद' शीर्षक से प्रकाशित है जिसमें तीन दस्तावेजी आलेख प्रकाशित किए जा रहे हैं। इसका स...
02/11/2021

अनहद पुस्तिका 1 'गाँधी जी और मार्क्सवाद' शीर्षक से प्रकाशित है जिसमें तीन दस्तावेजी आलेख प्रकाशित किए जा रहे हैं। इसका संयोजन प्रदीप सक्सेना ने अपनी एक भूमिका के साथ किया है। इन तीनों आलेखों में अलग अलग उन पहलुओं पर बात की गई है, जिसे ले कर जनता में ही नहीं, बुद्धिजीवियों में भी बहुत सी भ्रान्तियाँ रही हैं। ये आलेख तार्किक ढंग से न केवल अपना पक्ष रखते हैं बल्कि उन भ्रान्तियों का निवारण भी करते हैं। उस दौर में जब कि किसी आधारहीन उद्धरण के जरिए स्थापित तथ्यों को खारिज करने का प्रचलन चल पड़ा है, प्रदीप जी ने अपने इस प्रस्तुतिकरण में 'मूल्यांकन की विश्वसनीय वैज्ञानिक पद्धति' को ही आधार बनाया है।

दस्तावेज-दो के अन्तर्गत रामविलास शर्मा का आलेख 'गाँधी जी और भाषा समस्या' प्रकाशित है। रामविलास जी का यह आलेख 'भारत की भाषा समस्या' के प्रथम संस्करण 1965 से साभार लिया गया है। वस्तुतः गाँधी जी की भाषा समस्या के प्रति एक अत्यन्त सुसंगत एवं आधुनिक सोच थी और उनका मानना था कि यदि स्वराज करोड़ो भूखे लोगों, करोड़ो निरक्षर लोगों, निरक्षर स्त्रियों, सताए हुए अछूतों के लिए है तो भारत की संपर्क भाषा अंग्रेजी नहीं बल्कि केवल हिंदी ही हो सकती है। गाँधी जी किस तरह प्रगति के पक्ष में खड़े हैं, यह दिखाने के साथ ही यह आलेख मार्क्सवादी यान्त्रिक समझदारी पर भी प्रकाश डालता है।

पुस्तिका का तीसरा एवं अन्तिम आलेख एस. एम. वाकार का है जिसका शीर्षक है 'गाँधी जी का वर्गसार'। यह आलेख स्टॉलिन काल में दार्शनिक स्तर तक गांधीवाद की सीमाओं को उजागर करने के लिए तैयार कराया गया था। यह दुर्लभ दस्तावेज आज भी प्रासंगिक एवं उपयोगी है। एस. एम. वाकार का यह आलेख 1950 ईस्वी में 'जनवादी' में प्रकाशित किया गया था जो कोमिनफार्म के मुखपत्र की हिंदी प्रस्तुति थी।

कुल मिलाकर 'अनहद पुस्तिका - एक' आपको अच्छी एवं पठनीय लगे, इसका प्रयास हमने किया है। दुष्प्रचार के दौर में गाँधी जी को गंभीरतापूर्वक जानने समझने के लिए यह हमारा प्रयास है।

#अनहद #पत्रिका #गाँधी #मार्क्सवाद

 #गाँधी जी और  #मार्क्सवाददुष्प्रचार के दौर में गाँधी जी को गंभीरतापूर्वक जानने समझने के लिए यह हमारा प्रयास है। आप सभी ...
01/11/2021

#गाँधी जी और #मार्क्सवाद
दुष्प्रचार के दौर में गाँधी जी को गंभीरतापूर्वक जानने समझने के लिए यह हमारा प्रयास है। आप सभी इस प्रयास से जुड़ें, पत्रिका खरीदें और पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया साझा करें.

यह पुस्तिका व्यक्तिगत खर्च से प्रकाशित की गई है। अठहत्तर पृष्ठों वाली इस पुस्तिका का मूल्य ₹ 80.00 है। यह धनराशि आप सहयोग राशि के रूप में अनहद के खाते में जमा कर सकते हैं।

बैंक डिटेल्स
ACCOUNT NAME : ANAHAD
ACCOUNT No. : 40980001000643
Bank Name :Punjab National Bank
ALOPI BAGH, ALLAHABAD,
UPIFS CODE : PUNB0409800
(0 Means Zero)

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य श्री जयशंकर गुप्त अनहद पुस्तिका-1 के साथ।
31/10/2021

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य श्री जयशंकर गुप्त अनहद पुस्तिका-1 के साथ।

 #अनहद का वार्षिक अंक 2021 सभी पाठकों के लिए उपलब्ध है.  पत्रिका का केंद्र विषय 'गाँधी और मार्क्सवाद है. जल्द ही मोबाइल ...
23/10/2021

#अनहद का वार्षिक अंक 2021 सभी पाठकों के लिए उपलब्ध है.
पत्रिका का केंद्र विषय 'गाँधी और मार्क्सवाद है.
जल्द ही मोबाइल व लैपटॉप पर पढ़ने वाले पाठकों के लिए #अनहद पत्रिका Amazon Kindle पर भी उपलब्ध होगी.

अनहद की मुद्रित प्रति प्राप्त करने के लिए सम्पर्क करें
ईमेल : [email protected]
व्हाट्सएप : 8887570655

#पत्रिका #गाँधी #मार्क्सवाद #हिंदी #हिंदीभाषी #साहित्य #राजनीति

18/10/2021

इलाहाबाद में 'अनहद पुस्तिका एक' अब उपलब्ध है।

वाणी प्रकाशन, सिविल लाइंस (काफी हॉउस के पास)

सबद (आनन्द भवन के सामने)

'अनहद पुस्तिका : एक' के साथ हरीश चंद्र पाण्डे।
17/10/2021

'अनहद पुस्तिका : एक' के साथ हरीश चंद्र पाण्डे।

अनहद का गाँधी अंक प्रकाशन की प्रक्रिया में है। इस बार हम 'अनहद पुस्तिका :एक' का भी प्रकाशन कर रहे हैं। इसे हमारे वरिष्ठ ...
16/10/2021

अनहद का गाँधी अंक प्रकाशन की प्रक्रिया में है। इस बार हम 'अनहद पुस्तिका :एक' का भी प्रकाशन कर रहे हैं। इसे हमारे वरिष्ठ साथी प्रोफेसर Pradeep Saxena ने संयोजित किया है। 'गाँधी और मार्क्सवाद' शीर्षक से प्रकाशित हो रही इस पुस्तिका में तीन दुर्लभ आलेख प्रदीप जी की टिप्पणी के साथ प्रकाशित किए जा रहे हैं। अनहद के सुधी पाठकों और शुभेच्छुओं के फोन हमारे पास बराबर आते रहते हैं। बस एकाध महीने का इंतज़ार और। वैसे 'अनहद पुस्तिका : एक' का प्रकाशन अगले सप्ताह तक हो जाने की उम्मीद है।

आशा ही नहीं विश्वास है कि आपका नेह अनहद को मिलता रहेगा।

इस बार अनहद आपको नए तेवर और कलेवर में दिखाई पड़ेगी।

एक अरसे बाद संकल्प के आशीष त्रिवेदी का इलाहाबाद आना हुआ। इसी क्रम में वे अनहद आवास भी पधारे। इस अवसर की एक तस्वीर।
27/08/2021

एक अरसे बाद संकल्प के आशीष त्रिवेदी का इलाहाबाद आना हुआ। इसी क्रम में वे अनहद आवास भी पधारे। इस अवसर की एक तस्वीर।

रिटायरमेंट के बाद कुछ मौज मस्ती के कारण और कुछ बाहर की यात्रा के कारण बीपी इतनी बढ़ गई कि हास्पिटलाइज होना पड़ा। आठ दिन ...
25/12/2020

रिटायरमेंट के बाद कुछ मौज मस्ती के कारण और कुछ बाहर की यात्रा के कारण बीपी इतनी बढ़ गई कि हास्पिटलाइज होना पड़ा। आठ दिन हास्पिटल में रहने के बाद आज़ आर्ट्स फैकेल्टी के प्रांगण में बैठे बैठे इलाहाबाद के कवि संपादक संतोष चतुर्वेदी की पत्रिका 'अनहद' लगभग पढ़ गया। संतोष चतुर्वेदी बहुत मिहनत से पत्रिका निकालते हैं। पठनीय सामग्री से भरपूर इस पत्रिका को आप भी पढ़ सकते हैं।
मेरे छोटे बेटे अनुनय ने चुपके से यह तस्वीर उतार ली।
संतोष चतुर्वेदी और अनुनय सिंह दोनों को साधुवाद!

गोपेश्वर सिंह सर की वाल से साभार।

12/08/2020

अनहद-9 का रूप रंग कुछ इस प्रकार का है।

अनहद
समकालीन सृजन का समवेत नाद
वर्ष - 10, अंक - 9 : जून 2020

इस अंक में

अपनी बात

द्विशताब्दी वर्ष

महेन्द्र सिंह पूनिया : ईश्वरचन्द्र विद्यासागर - एक विस्मृत महापुरुष

स्मृति 1 : कृष्णा सोबती

नमिता सिंह : मित्रो मरजानी - एक पुनर्पाठ
बलराज पाण्डेय : 'बादलों के घेरे में' कृष्णा सोबती
ओम निश्चल : कृष्णा सोबती की स्त्रियाँ चैतन्य बोध की इकाईयां हैं
प्रियम अंकित : घने अंधेरे में रोशनी की हल्की सी लकीर

स्मृति 2 : नामवर सिंह

अरुण माहेश्वरी : आलोचना के किसी सर्वकालिक ढांचे की तलाश में
जगदीश्वर चतुर्वेदी : नामवर सिंह और उत्तर आधुनिक भारतीय यथार्थ
राम निहाल गुंजन : नामवर सिंह - साहित्य चिन्तन और दृष्टि
मदन कश्यप : आलोचना की नई भाषा
वैभव सिंह : हिंदी आलोचना मार्क्सवाद और नामवर सिंह
पंकज पराशर : तरु गिरा जो झुक गया था गहन छायाएँ लिए
नील कमल : बड़ी मुश्किल से होता है अदब में नामवर पैदा नील कमल

स्मृति 3 : कुँवर नारायण

प्रज्ञा : अनुपस्थित का उपस्थित हो जाना
पंकज कुमार बोस : विवेचना गोष्ठी में नचिकेता प्रसंग
अरुणाभ सौरभ : मृत्योह स मृत्युं गच्छति च इह नानैव पश्यति

स्मृति 4 : केदार नाथ सिंह

अमरेन्द्र कुमार शर्मा : नमक, रोटी, दूब, धूप, धरती के कवि केदारनाथ सिंह
आशीष मिश्र : केदारनाथ सिंह की काव्य भाषा

स्मृति 5 : दूध नाथ सिंह

मधुरेश : दूधनाथ सिंह - भटकाव और स्थानात्मक आवारागर्दी का तिलिस्म
अली अहमद फातमी : आखिरी कलाम को आखिरी सलाम
स्वप्निल श्रीवास्तव : लेखक की अमरता
चंचल चौहान :दूधनाथ सिंह - कुछ यादें, कुछ रचनाएँ
जयनंदन : औरत की खरीद फरोख्त के निर्मम और नंगा बाज़ार का बेपर्द इज़हार है कहानी धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे
पल्लव : प्रत्यागमन की कहानियां
विनोद तिवारी : आखिरी कलाम - दुःस्वप्न से दुःस्वप्न तक की यात्रा का संतप्त आख्यान
सूरज पालीवाल : समय होगा, हम एक अचानक बीत जाएँगे
सरयू प्रसाद मिश्र : महादेवी की साहित्य साधना
जीवन सिंह : मुक्तिबोध - खुद से जिरह करने वाला अनोखे किस्म का कवि दूधनाथ सिंह
सुल्तान अहमद : निराला आत्महन्ता आस्था - दूधनाथ सिंह के नाम चन्द छोटे छोटे ख़त
बसन्त त्रिपाठी : छायावाद और दूधनाथ सिंह
उमाशंकर सिंह परमार : दूधनाथ सिंह - कुलीन लोक से मुठभेड़ करता कवि
सन्ध्या सिंह : दूधनाथ सिंह से बातचीत

स्मृति 6 : विष्णु खरे

हरीश चन्द्र पाण्डे : कविता का दुर्धर्ष स्वर हरीश चन्द्र पांडे
ज्योतिष जोशी : हिन्दी की एक बड़ी आश्वस्ति का न होना
कृष्ण मोहन : उन्हें मालूम है ये चीजें कैसे होती हैं?
विशाल श्रीवास्तव : एक असम्भव शिल्प से मूर्त होता प्रतिसंसार- विष्णु खरे की कविता

स्मृति 7 : गिरीश कर्नाड

दिनेश श्रीनेत : गिरीश कारनाड के चार आधुनिक परिवेश के नाटक : पुराख्यानों से परे आधुनिक जीवन की जटिलता की पड़ताल

स्मृति 8 : सव्यसाची भट्टाचार्य

सदन झा : एक इतिहासकार का आकलन कैसे हो?

स्मृति 9 : सुरेश सेन निशान्त

बलभद्र : सुरेश सेन निशान्त के काव्य वृत्त का व्यास
मुरारी शर्मा : सुरेश सेन निशान्त - जिन्दगी के हर रूप में कविता को ढूंढता कवि

शिक्षा

गोपाल प्रधान : शिक्षा और मार्क्सवाद

कसौटी

रवीन्द्र त्रिपाठी : आधुनिकता का लोककवि वीरेन डंगवाल
बी. एल. भादानी : मध्यकालीन बादशाह अकबर आधुनिक सोच का सेक्युलर पुरोधा
देवेन्द्र आर्य : कश्मीर की आबोहवा से मोहब्बत और कश्मीरियों से नफरत- कश्मीरनामा
रामजी तिवारी : कच्छ के रण में

अनहद का नवाँ अंक। 'स्मृति अंक' के रूप में प्रकाशित हो चुका है। लेखकों और ग्राहकों को उनकी प्रतियाँ शीघ्र ही रवाना की जाए...
29/07/2020

अनहद का नवाँ अंक। 'स्मृति अंक' के रूप में प्रकाशित हो चुका है। लेखकों और ग्राहकों को उनकी प्रतियाँ शीघ्र ही रवाना की जाएंगी।

अनहद के नए अंक का अनौपचारिक विमोचन।वरिष्ठ कवि अष्टभुजा शुक्ल और कुँवर रवीन्द्र के साथ कुछ खुशनुमा पल।
02/12/2018

अनहद के नए अंक का अनौपचारिक विमोचन।
वरिष्ठ कवि अष्टभुजा शुक्ल और कुँवर रवीन्द्र के साथ कुछ खुशनुमा पल।

अनहद की डॉक अब मित्रों को मिलने लगी है।डॉक मिलने की सूचना जरूर दीजिए।हम अनहद का हर अंक रजिस्टर्ड डॉक से  ही भेजते हैं।
24/11/2018

अनहद की डॉक अब मित्रों को मिलने लगी है।
डॉक मिलने की सूचना जरूर दीजिए।
हम अनहद का हर अंक रजिस्टर्ड डॉक से ही भेजते हैं।

नीलकांत जी अनहद के नए अंक के साथ।फ़ोटो : अवनीश यादव
23/11/2018

नीलकांत जी अनहद के नए अंक के साथ।
फ़ोटो : अवनीश यादव

22/11/2018

इलाहाबाद में वाणी प्रकाशन के केन्द्र पर अनहद पाठकों के लिए उपलब्ध है।

इतिहासकार हेरम्ब चतुर्वेदी के हाथों में अनहद का नया अंक।
18/11/2018

इतिहासकार हेरम्ब चतुर्वेदी के हाथों में अनहद का नया अंक।

12/11/2018

लखनऊ के पाठकों के लिए जरूरी सूचना।

अनहद का आठवाँ अंक 'जनचेतना' पर उपलब्ध है।

आज के अमर उजाला (इलाहाबाद) के पृष्ठ 8 पर अनहद के नए अंक की चर्चा।शुक्रिया अमर उजाला।
12/11/2018

आज के अमर उजाला (इलाहाबाद) के पृष्ठ 8 पर अनहद के नए अंक की चर्चा।

शुक्रिया अमर उजाला।

आज के हिन्दुस्तान (इलाहाबाद) समाचार पत्र में (पृष्ठ 6 पर) अनहद के नए अंक की चर्चा।शुक्रिया हिन्दुस्तान।
12/11/2018

आज के हिन्दुस्तान (इलाहाबाद) समाचार पत्र में (पृष्ठ 6 पर) अनहद के नए अंक की चर्चा।

शुक्रिया हिन्दुस्तान।

मित्रों, अनहद के आठवें अंक के लिए रु 150/ अनहद के बैंक खाते में जमा कर हमें मोबाइल नम्बर 9450614857 पर एस एम एस या व्हाट...
09/11/2018

मित्रों, अनहद के आठवें अंक के लिए रु 150/ अनहद के बैंक खाते में जमा कर हमें मोबाइल नम्बर 9450614857 पर एस एम एस या व्हाट्सएप के माध्यम से सूचित करें।

अनहद का आठवाँ अंक।
09/11/2018

अनहद का आठवाँ अंक।

12/07/2018

अनहद के प्रवेशांक में छपी अपनी कविता पढ़ते हुए वीरेन डंगवाल।
साभार : संजय जोशी

20/04/2018

पुस्तक वार्ता के हालिया अंक में अशोक नाथ त्रिपाठी ने पत्रिकाओं की चर्चा करते हुए 'अनहद' के मुक्तिबोध अंक पर एक टिप्पणी किया है। अशोक जी को आभार व्यक्त करते हुए हम उनकी टिप्पणी यहाँ पर ज्यों की त्यों दे रहे हैं।

'अनहद' के अंक सात को एक संयुक्त अंक के रूप में भी देखा जा सकता है। यह अंक हिन्दी के बड़े कवि मुक्तिबोध के जन्मशती के अवसर पर प्रकाशित किया गया है। जिस विमर्श को लोग लफ़्फ़ाजी कहते हैं वे यह नहीं समझ पाते कि आज के सभ्यता की भव्य इमारत उसी पर टिकी है। सतही तौर पर सन्तोष जी ठीक भी हो सकते हैं लेकिन इसका निर्णय इतना आसान नहीं है। मुक्तिबोध के पुत्र रमेश मुक्तिबोध के माध्यम से दस कविताएँ भी दी गयी हैं। 'मन के भाव' कविता को रमेश मुक्तिबोध व्यंग्यात्मक रचना मानते हैं।

मन के भाव तब
ज्यों सघन-तरु-कोटर-तिमिर
में वन्य पंखों की निकल आहट
कि जब बाहर गया है
दूर उड़ता
खग की तब उसके परों के
साथ जुड़ता
चला जाता किसी का स्पंदन
लौट कर खग रोज के पथ
सांझ आता चूर हो कर, किन्तु
जो मन उन परों के साथ जुड़ता जा गिरा
है किसी स्वर्णिम लोक
वह तो लौट कर ही नहीं आया
सिर्फ़ कोटर छटपटाती रही काया।

देखा जाए तो रमेश मुक्तिबोध की दृष्टि में जो कविता महज़ व्यंग्य है उसमें भी मुक्तिबोध को जानने समझने के कई सूत्र हैं।

मुक्तिबोध की रचनाशीलता पर प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना से अजीत प्रियदर्शी की बातचीत दी गयी है। जिसमें नरेश सक्सेना ने मुक्तिबोध से जुड़े कई पहलुओं को उद्घाटित करने का प्रयास किया है। एक सवाल के उत्तर में मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता 'ब्रह्म राक्षस' के बारे में सक्सेना कहते हैं कि पुराण में ब्रह्म राक्षस वह चरित्र है जिसने अपना कर्तव्य पालन नहीं किया है और वह प्रेत योनि में चला गया। इसी बातचीत के दौरान वह यह स्थापना देते हैं कि मुक्तिबोध आज भी प्रासंगिक हैं।

इसी अंक में मुक्तिबोध की रचनाधर्मिता को ले कर दो साक्षात्कार काफी महत्वपूर्ण हैं। प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता लाल बहादुर वर्मा ने मुक्तिबोध को देखते हुए अपने आलेख का शीर्षक दिया है 'इतिहास और साहित्य बजरिए मुक्तिबोध' जिसमें वह यह बताना चाहते हैं कि 'इतिहास और साहित्य दोनों पुनर्रचना करते हैं। अन्तर सिर्फ़ इतना होता है कि इतिहास दिमाग से और साहित्य दिल से रचा जाता है।' इस आलेख में कई ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर मुक्तिबोध को देखा जा सकता है।

भारतीय चिंतन परम्परा के मर्मज्ञ वागीश शुक्ल ने 'भक्ति पर बेमन से बात' शीर्षक से अपना विचार व्यक्त किया है। वागीश जी मानते हैं कि मुक्तिबोध ने निर्गुण भक्ति को जनोन्मुखता और सगुण भक्ति को वर्णाश्रम समर्थन आदि से जोड़ा है। नन्द किशोर आचार्य ने मुक्तिबोध के दार्शनिक पक्ष पर अपने विचार व्यक्त करते हुए आलेख का शीर्षक दिया है - 'मुक्तिबोध की दार्शनिकता'। जिसमें आचार्य जी यह मानते हैं कि मुक्तिबोध के लिए दर्शन का प्रयोजन समाज में जीवन पैदा करना है और उसे सत्पथ दिखाना है। अपनी स्थापनाओं में आचार्य जी यह कहना चाहते हैं कि मुक्तिबोध के यहाँ चिंतन और विश्व दृष्टि के साथ वैज्ञानिकता का आग्रह तो है लेकिन वह स्वयं किसी दार्शनिक प्रक्रिया में नहीं पड़ते। मुक्तिबोध की जन्मशती में संयोजित यह अंक मुक्तिबोध को कई आयामों से देखने के लिए प्रेरित करता है।

सम्पर्क :
अनहद -7, मार्च 2017
सम्पादक : सन्तोष चतुर्वेदी
67/ 58, न्यू मम्फोर्डगंज
इलाहाबाद 211002
उत्तर प्रदेश

Address

67/58, New MumfordGanj
Allahabad
211002

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