भूमंडलीकरण के भौतिक युग में जहाँ तमाम परंपरा और वर्जनाएं टूट रही हैं वही समाज अपनी आत्मा भी खोता जा रहा है! गांव का शहरीकरण और इंसानों का मशीनीकरण तेज़ी से और सामानांतर चल रहा है ऐसे में स्वार्थ का बोलबाला समाज में हर प्रकार की समस्या खड़ा कर रहा है, जहाँ एक ओर समाज ने जातिवाद, रंग भेद और सती प्रथा जैसी समस्याओं से पीछा छुडा कर आगे बढ़ा है वहीँ साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता और मानव तस्करी जैसी नयी समस्
याएं खड़ी हो गयी हैं, असमान विकास की नीति ने गांवों से स्वास्थ्य, सड़क पानी रोजगार भोजन ज़मीन जैसे अधिकार भी छीन लिए हैं और इसके तमाम अधिकारों पर शहरों ने कब्ज़ा जमा रखा है ऐसे में किसान अपनी खेती से हाथ धो रहे हैं वहीँ कारीगर समाज दूसरों की मजदूरी करने को मजबूर हो गया है, गांव से शहर की ओर पलायन तेज़ी से बढ़ा है चाहे वो शिक्षा के नाम पर हो या रोजगार के मगर गांव की प्रतिभाएं शहरों की ओर बढ़ रही हैं, पीछे छूट गए बुढे बुज़ुर्ग या स्वेच्छा से गांव में रहने वाला युवा समाज का सबसे उपेक्षित वर्ग बनता जा रहा है! विकास और विनाश की ये सामानांतर धारा ने कई प्रकार के अपराधों और अनैतिक राजनीति को जनम दिया है, पिछले वर्ष दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार ने भी स्पष्ट किया है की जो युवा रोजगार की ललक में शहर की ओर गए थे वो भी मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे हैं और ऐसे घिनौने अपराधों को अंजाम दे रहे हैं! तो दूसरी ओर गांव से शहर की ओर गया युवक एड्स टीबी तथा अनेको अज्ञात बिमारियों के साथ गांव वापस आरहे हैं,
तकनीकों और भुमंडलीकृत समय में पलायन का ये दौर वास्तव में तकनीक और सरकारी योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह है! जहाँ सरकारें बड़ी बड़ी योजनाओ का दावा करती हैं वही धरातल पर कुछ भी नज़र नहीं दिख पा रहा है आखिर वो कौन से कारक है, जो पलायन करने को मजबूर कर रहे हैं और वो कौन से कारण है की तकनिकी दौर में भी गांव को आदिकाल में रहना पड़ रहा है! और अगर ये विकास धारा है तो वो कौन से कारक है जो गांव से गयी श्रम शक्ति की चिकित्सा का भी इंतज़ाम नहीं कर पा रहा है और उसे चूसकर वापस गांव में फेक देता है!
इस पत्रिका शुरू करने का प्रथम और अंतिम उद्देश्य तकनिकी और भुमंडलीकृत विश्व को स्थानीय भाषा और कलेवर में पेश करने का है ताकि भविष्य में स्थानीय स्तर पर सहास्तित्व और सहभागी प्रयास हो सके! हम इस पत्रिका के ज़रिये आप तक सरकारी योजनाएं उनको प्राप्त करने के तरीके, अधिकारीयों के साक्षात्कार, सामुदायिक नेतृत्व के गुर और सामाजिक कार्यकर्ताओं के विचार पहुचायेंगे, हम उन नायको को आपके समक्ष लायेंगे जिन्होंने कम संसाधनों और भरपूर आत्मविश्वास के साथ सामाजिक बदलाव और स्थानीय आर्थिकी में अपना बहुमूल्य योगदान देने में सफल हुए हैं!
ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब पाने और सामूहिक मंथन करने के उद्देश्य से मैं आपको ग्रामीण पहल का प्रवेशांक समर्पित कर रहा हूँ! आशा है हम एक सामूहिक प्रयास करेंगे