03/09/2024
1. एक बात साफ़ कर दूँ. मेरे लिए आइडेंटिटी बहुत अहम है. मैं अगर उर्दू बोल रहा हूँ तो सिर्फ इसलिए नहीं कि मादरी ज़बान है और मैं इसे अंग्रेजी पर फ़ौक़ियत देता हूँ. बात ये है कि जब मायनॉरिटी होते हैं तब आप को अपनी आइडेंटिटी बचाना होती है, ये मुश्किल होता है एक वास्ट मेजोरिटी के बीच.
2. आप मेजॉरिटी के दरम्यान रहते हैं तो अनकांशस लेवल पर 'वक़्त' और 'यक़ीन' की जगह टाइम, फेथ या कुछ और बोलने लगते हैं. मुझे हिंदी बहुत पसंद है, संस्कृत भी सीखी है और बहुत अच्छी लगती है, लेकिन अपनी ज़बान नहीं छोड़ सकता. .
3. कई क़ौमों ने मायनॉरिटी में रहते हुए, सैकड़ों साल अपनी ज़बान और लिपि की हिफाज़त की और कुछ क़ौमें नहीं कर पाईं. जिन लोगों को उर्दू कमज़ोर होती नज़र आ रही है वह बहुत शॉर्ट साइटेड हैं और अपने आस पास के बीस पच्चीस या सौ लोगों को देख कर ही तय कर लेते हैं.
4. इन फैक्ट, सोशल मीडिया पर जो पैरलेल डिस्कोर्स मुस्लिम्स ने अब खड़ा किया है, वह इस लिए ही मुमकिन हुआ कि हममिज़ाज लोग यहाँ बात करते हैं और उस से निचोड़ निकलता है.
5. मज़हबी बहसें भी लोग करते हैं लेकिन लगातार लोग 'इवॉल्व' evolve हो रहे हैं, वह समझ रहे हैं कि कोई बात जनरलाइज नहीं की जा सकती और क्या हमारे आस पास हो रहा है. पांच साल पहले के मुक़ाबले ज़बान दोबारा मक़बूल और इस्तेमाल हो रही है.
6. लगातार फेसबुक पर मुस्लिम नौजवानों ने देवनागरी में ही सही, उर्दू अलफ़ाज़ का इस्तेमाल गैर शऊरी तौर पर बढ़ा दिया है. ये इसलिए हुआ क्यूंकि आप स्ट्रीट पर दस में एक या दो हैं, मगर यहां आप फ्रेंड लिस्ट में आपके अपने लोग पचास से अस्सी फीसद हैं. यही वजह है कि व्हाट्सएप ग्रुप्स में भी उर्दू बढ़ी है और स्क्रिप्ट का इस्तेमाल भी अच्छा ख़ासा होने लगा है.
7. उर्दू एक आला तरक़्क़ीयाफ्ता ज़बान है जो कुछ लोगों के बोलने या न बोलने से कमज़ोर नहीं हो जाएगी. मगर अपनी कल्चरल हेरिटेज को ज़िंदा रखना हमारा काम है. हम बोलेंगे, लिखेंगे, इस्तेमाल करेंगे तो वह अलफ़ाज़ राएज रहेंगे वरना धीरे धीरे लोग उनके अंग्रेजी या दूसरी ज़बान के मुतबादिल अलफ़ाज़ इस्तेमाल करने लगते हैं.
8. हमारा बहुत बड़ा लिटरेचर और असासा, विरासत और तहज़ीब, इल्म और मज़हबी मटीरियल उर्दू में है. तो ख़ज़ाने को गंवाइए मत. दूसरी भाषाएं सीखिए, बोलिये, मगर अपनी ज़बान को खो मत दीजिये. ये नाक़ाबिल ए तलाफ़ी नुकसान होता है. जिन क़ौमों ने ये भुगता है वह ही जानती हैं. इसलिए ज़बान का मेयार तो हम क़ायम रखेंगे.
9. ये याद रखिए कि कोई तुर्की को रोमन स्क्रिप्ट में लिखेगा, तो भी वह तुर्की है, अपने बच्चों को बताइये कि वह जो ज़बान बोलते हैं, वह उर्दू है, अपने हिस्से का बुनियादी काम करें, उर्दू का अखबार, रिसाले, किताबें खरीदें और प्रोपेगंडे से असर अंदाज न हों, उर्दू बहुत तेजी से बढ़ रही है, दुनिया की टाॅप टेन भाषाओं में है, और यह पचास करोड़ की तादाद की तरफ बढ़ रही है.
10. होशियार लोग हमेशा लड़ते नहीं, वह दूसरे तरीके भी अपनाते हैं, आपका सूबा ही किसी सूबे में मिला कर करोड़ों लोगों की आइडेंटिटी ही एक झटके में बदल दी, बरार और खानदेश जैसे सूबे खत्म हुए और करोड़ों लोगों की आइडेंटिटी बदल गई, और वह समझ भी न पाए कि ये कितनी आसानी से हो गया, किसी भाषा को दूसरी भाषा की शैली मात्र कह कर, उसका वजूद ही गायब करने का काम सोच लिया...
[By Shams Ur Rehman Alavi]
1. مجھے ایک بات واضح کرنا ہے۔ میرے لیے شناخت بہت اہم ہے۔ اگر میں اردو بول رہا ہوں تو یہ صرف اس لیے نہیں کہ یہ مادری زبان ہے اور میں اسے انگریزی پر ترجیح دیتا ہوں۔ بات یہ ہے کہ جب آپ اقلیت ہیں تو آپ کو اپنی شناخت کی حفاظت کرنی ہے، یہ ایک بڑی اکثریت کے بیچ میں مشکل ہے۔
2. اگر آپ اکثریت میں رہتے ہیں تو لاشعوری سطح پر آپ 'وقت' اور 'یقین' کے بجائے سمئے، فیتھ یا کچھ اور کہنا شروع کر دیتے ہیں۔ مجھے ہندی آتی ہے، سنسکرت بھی سیکھی ہے اور پسند ہے، لیکن میں اپنی زبان نہیں چھوڑ سکتا۔ ،
3. بہت سی قوموں نے اقلیت میں ہونے کے باوجود سینکڑوں سالوں تک اپنی زبان اور رسم الخط کی حفاظت کی اور کچھ کمیونٹیز نہیں کر سکیں۔ جن لوگوں کو لگتا ہے کہ اردو کمزور ہوتی جا رہی ہے وہ بہت کم نظر ہوتے ہیں اور اپنے اردگرد کے پچیس یا سو لوگوں کو دیکھ کر فیصلہ کرتے ہیں۔
4. درحقیقت مسلمانوں نے جو متوازی ڈسکشن کی دنیا اب لوگ یہاں بات کرتے ہیں اور اس سے بہت سی باتیں نکلتی ہیں
5. مسلم نوجوانوں نے فیس بک پر اردو الفاظ کے استعمال کو بڑھا دیا ہے، یہاں تک کہ دیوناگری میں بھی۔ ایسا اس لیے ہوا کہ آپ سڑک پر دس میں سے ایک یا دو ہیں، لیکن یہاں آپ کے اپنے لوگ آپ کی فرینڈ لسٹ میں پچاس سے اسی فیصد ہیں۔ یہی وجہ ہے کہ واٹس ایپ گروپس میں اردو کے استعمال میں اضافہ ہوا ہے اور رسم الخط کا استعمال بھی بڑھنے لگا ہے۔
6. اردو ایک انتہائی ترقی پسند زبان ہے جو کچھ لوگوں کے بولنے یا نہ بولنے کی وجہ سے کمزور نہیں ہو گی۔ لیکن اپنے ثقافتی ورثے کو زندہ رکھنا ہمارا کام ہے۔ اگر ہم ان الفاظ کو بولیں، لکھیں یا استعمال کریں تو وہ رائج رہیں گے ورنہ آہستہ آہستہ لوگ ان کے متبادل، انگریزی یا دوسری زبان کے الفاظ استعمال کرنے لگتے ہیں۔
7. ہمارا ادب، ورثہ اور ثقافت، علم اور مذہبی مواد اردو میں ہے۔ خزانہ مت چھوڑیں. دوسری زبانیں سیکھیں، بولیں، لیکن اپنی زبان نہ کھو دیں۔ یہ ناقابل تلافی نقصان ہوگا۔
9. ترکی کو رومن رسم الخط میں لکھنے والے بھی اسے ترکی کہتے ہیں۔
10. ذہین لوگ ہمیشہ لڑتے نہیں، دوسرے طریقے بھی اپناتے ہیں، آپ کے صوبے کو کسی دوسرے صوبے کے ساتھ ملا کر کروڑوں لوگوں کی شناخت ایک ہی جھٹکے میں بدل دی گئی، برار اور خاندیش جیسے صوبے تحلیل ہو گئے ،کروڑوں لوگوں کی شناخت ختم کر دی گئی۔ سب بدل گیا اور انسان سمجھ بھی نہیں پایا کہ یہ کتنی آسانی سے ہوا، ایک زبان کو محض دوسری زبان کی 'شیلی' کہہ کر، اس کے وجود کو مٹانے کا پلان بنایا جاتا ہے۔
شمس الر حمٰن علوی
1. एक बात साफ़ कर दूँ. मेरे लिए आइडेंटिटी बहुत अहम है. मैं अगर उर्दू बोल रहा हूँ तो सिर्फ इसलिए नहीं कि मादरी ज़बान है और मैं इसे अंग्रेजी पर फ़ौक़ियत देता हूँ. बात ये है कि जब मायनॉरिटी होते हैं तब आप को अपनी आइडेंटिटी बचाना होती है, ये मुश्किल होता है एक वास्ट मेजोरिटी के बीच.
2. आप मेजॉरिटी के दरम्यान रहते हैं तो अनकांशस लेवल पर 'वक़्त' और 'यक़ीन' की जगह टाइम, फेथ या कुछ और बोलने लगते हैं. मुझे हिंदी बहुत पसंद है, संस्कृत भी सीखी है और बहुत अच्छी लगती है, लेकिन अपनी ज़बान नहीं छोड़ सकता. .
3. कई क़ौमों ने मायनॉरिटी में रहते हुए, सैकड़ों साल अपनी ज़बान और लिपि की हिफाज़त की और कुछ क़ौमें नहीं कर पाईं. जिन लोगों को उर्दू कमज़ोर होती नज़र आ रही है वह बहुत शॉर्ट साइटेड हैं और अपने आस पास के बीस पच्चीस या सौ लोगों को देख कर ही तय कर लेते हैं.
4. इन फैक्ट, सोशल मीडिया पर जो पैरलेल डिस्कोर्स मुस्लिम्स ने अब खड़ा किया है, वह इस लिए ही मुमकिन हुआ कि हममिज़ाज लोग यहाँ बात करते हैं और उस से निचोड़ निकलता है.
5. मज़हबी बहसें भी लोग करते हैं लेकिन लगातार लोग 'इवॉल्व' evolve हो रहे हैं, वह समझ रहे हैं कि कोई बात जनरलाइज नहीं की जा सकती और क्या हमारे आस पास हो रहा है. पांच साल पहले के मुक़ाबले ज़बान दोबारा मक़बूल और इस्तेमाल हो रही है.
6. लगातार फेसबुक पर मुस्लिम नौजवानों ने देवनागरी में ही सही, उर्दू अलफ़ाज़ का इस्तेमाल गैर शऊरी तौर पर बढ़ा दिया है. ये इसलिए हुआ क्यूंकि आप स्ट्रीट पर दस में एक या दो हैं, मगर यहां आप फ्रेंड लिस्ट में आपके अपने लोग पचास से अस्सी फीसद हैं. यही वजह है कि व्हाट्सएप ग्रुप्स में भी उर्दू बढ़ी है और स्क्रिप्ट का इस्तेमाल भी अच्छा ख़ासा होने लगा है.
7. उर्दू एक आला तरक़्क़ीयाफ्ता ज़बान है जो कुछ लोगों के बोलने या न बोलने से कमज़ोर नहीं हो जाएगी. मगर अपनी कल्चरल हेरिटेज को ज़िंदा रखना हमारा काम है. हम बोलेंगे, लिखेंगे, इस्तेमाल करेंगे तो वह अलफ़ाज़ राएज रहेंगे वरना धीरे धीरे लोग उनके अंग्रेजी या दूसरी ज़बान के मुतबादिल अलफ़ाज़ इस्तेमाल करने लगते हैं.
8. जैसे किसी ने आपसे कहा 'आपका क्या कहना है क्या स्थितियां ठीक है', तो 80 से 90 परसेंट लोग जवाब में वही लफ्ज़ इस्तेमाल करते हैं. जबकि आप यूं भी कह सकते हैं 'मेरे हिसाब से तो हालात पहले के मुक़ाबले मज़ीद बेहतर या खराब हुए हैं'. उर्दू हमारा नाता जोड़ती है अरबी से, उर्दू जानने वाला फ़ारसी जैसी ज़बान भी आसानी से सीख सकता है, हर नयी ज़बान जो आप सीखते हैं, वह शख्सियत को बेहतर करती है. इसमें कोई घाटे का सौदा है ही नहीं.
9. हमारा बहुत बड़ा लिटरेचर और असासा, विरासत और तहज़ीब, इल्म और मज़हबी मटीरियल उर्दू में है. तो ख़ज़ाने को गंवाइए मत. दूसरी भाषाएं सीखिए, बोलिये, मगर अपनी ज़बान को खो मत दीजिये. ये नाक़ाबिल ए तलाफ़ी नुकसान होता है. जिन क़ौमों ने ये भुगता है वह ही जानती हैं. इसलिए ज़बान का मेयार तो हम क़ायम रखेंगे.
10. ये याद रखिए कि कोई तुर्की को रोमन स्क्रिप्ट में लिखेगा, तो भी वह तुर्की है, अपने बच्चों को बताइये कि वह जो ज़बान बोलते हैं, वह उर्दू है, अपने हिस्से का बुनियादी काम करें, उर्दू का अखबार, रिसाले, किताबें खरीदें और प्रोपेगंडे से असर अंदाज न हों, उर्दू बहुत तेजी से बढ़ रही है, दुनिया की टाॅप टेन भाषाओं में है, और यह पचास करोड़ की तादाद की तरफ बढ़ रही है. शातिर लोग जब लड़ नहीं पाते, तब वह दूसरे तरीके अपनाते हैं, आपका सूबा ही किसी सूबे में मिला कर करोड़ों लोगों की आइडेंटिटी ही एक झटके में बदल दी, कह बरार और खानदेश जैसे सूबे खत्म हुए और करोड़ों लोगों की आइडेंटिटी बदल गई, और वह समझ भी न पाए कि ये कितनी आसानी से हो गया, किसी भाषा को दूसरी भाषा की शैली मात्र कह कर, उसका वजूद ही गायब करने का काम सोच लिया...
[By Shams Ur Rehman Alavi]