Indian Intellect :News & Views, Analysis & Data

Indian Intellect :News & Views, Analysis & Data Indian Intellect. News and Views. Insight and Information. Past & present. Perspective of national and international events, to keep you aware and informed.
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Not just news, what's behind news and an analysis of latest news regarding Indian Muslims.

अगर एक पार्टी के हुकूमत में होने से आपको लगता है कि आप ताक़तवर हो जाते हैं, सीना चौड़ा कर निकल सकते हैं, तो आप उसे क्यों छ...
13/09/2024

अगर एक पार्टी के हुकूमत में होने से आपको लगता है कि आप ताक़तवर हो जाते हैं, सीना चौड़ा कर निकल सकते हैं, तो आप उसे क्यों छोड़ेंगे

किस पार्टी के ऐसे साइड wing हैं जिनसे जुड़ कर लोग खुद को ताकतवर समझ सकते हैं? साथ ही ये बात कि 'वोह' लोग दबा दिए गए हैं.

इकॉनमी या नौकरियां तो मुद्दा कभी नहीं रहा, हर किसी को नौकरी नहीं मिलती और लोग सर्वाइव कर ही जाते हैं. वैसे ऑप्शन क्या है?

बाक़ी सब 'एंटी-नेशनल', 'देशद्रोही' 'विरोधी' और 'सेक्युलर' हैं. तो क्या उनको वोट दें? दिमाग ऐसे ही काम करता है, जब धर्म और कल्चर ऊपर होने की बात हो तो वैसे भी, अच्छा लगता है.

कम अज़ कम ताक़त से तो जी लें जितने दिन जीना है वरना फिर वही 'सेक्यूलरिज़्म' और 'तुष्टिकरण'. डिस्कोर्स या नेरेटिव ऐसे नहीं बन जाता कि फ्लैट नहीं बिक रहे या कारें, रूपया नीचे जाने पर मज़ाक़ या अफ़सोस, मीम शेयर करना...

और ये मान लें लोग को वोट देंगे! बड़ी मेहनत कर ये पूरी मशीनरी, डिस्कोर्स, पैरलेल इंफॉर्मेशन सिस्टम खड़ा किया गया है, लड़ना है तो इतनी ही मेहनत और सोच की जरूरत है,

If a political party's rule makes you feel stronger, that you are now 'powerful' when you step out of house, move in streets with chest swollen, you must keep it in power, eternally.

Who would willingly shun power or choose to get weak? Economy. People struggle, survive anyway. And, is there any option?

At least, live with feel of power, revival of religion & culture, than getting outnumbered by 'them'.

It has taken enormous effort, creation of parallel information system, dedicated cadre & constantly evolving strategies that has brought them here.

Others can't win by sharing memes over failing economy, sale of cars down. Parties need to work hard, on ground, strategise.

کون ہے جو کمزور ہونا چاہیگا؟ اگر ایک پارٹی کے حکومت میں ہونے سے آپکو لگتا ہے کہ آپ طاقتور ہو جاتے ہیں

سینہ چوڑا کر نکل سکتے ہیں، آپ کیوں اپنی طاقت کم کرینگے۔ ساتھ ہی 'وہ ' یعنی مسلم دبا دیئے..

13/09/2024

Relief to Arvind Kejriwal in the CBI case, as Supreme Court grants him bail.

The Chief Minister of Delhi was in jail for nearly 6 months. Other leaders of Aam Aadmi Party (AAP) had been granted bail & too had got bail in the Enforcement Directorate (ED) case, earlier.

अगर सरकारी नौकरियां कम हुई हैं और प्रायवेट सेक्टर भी एक्सप्लायट कर रहा है तो बहुत लोग सेल्फ एंपलायमेंट की तरफ आए. इनके क...
12/09/2024

अगर सरकारी नौकरियां कम हुई हैं और प्रायवेट सेक्टर भी एक्सप्लायट कर रहा है तो बहुत लोग सेल्फ एंपलायमेंट की तरफ आए. इनके काम और जज़्बे की तारीफ होना चाहिए. मेहनत, ईमानदारी से पैसा कमाना, घर चलाना, बड़ी बात है

If jobs are few in govt and private sector also exploits, a large section opened its own business. That's self-employment & anyone working to earn living by honest means should be praised.

جو لوگ چاٹ یا پکوڑے بیچ کر ایمان داری سے گھر چلاتے ہیں، ان کی قدر کی جایے اور محنت کر رزق کمانے، گھر چلانے والے ہر شخص کو سلام۔

09/09/2024

किसी भी डाटा को कई तरह से दिखाया और इन्टरप्रेट किया जा सकता है. कुल आबादी के हिसाब से चीन और हिंदुस्तान की आबादी इतनी ज़्यादा है कि कोई भी पॉज़िटिव और नेगेटिव ट्रेंड हो, ये मुल्क टॉप पर आएंगे.

मगर एवरेज या हज़ार या मिलियन पर स्टेटिस्टिक्स निकाल कर कम्पेरिज़न किया जाए तो बिलकुल, मामला अलग हो जाता है, नन्हा सा कोई मुल्क या योरप केआयरलैंड, आइसलैंड टॉप पर आ जाते हैं. इसी तरह अगर उसी डाटा को परसेंट इंक्रीज के हिसाब से लिया जाए तो लिस्ट के मुल्क बिलकुल अलग हो जाएंगे क्यूंकि जो पीछे थे, उनका थोड़ा सा बढ़ना भी, परसेंट वाइज़ ज़्यादा हो जाता है. तो ये बात समझिये कि कोई मीडिया ग्रुप ये सब नहीं बताता, वह सिर्फ लोकल कंसीड्रेशन के हिसाब से आपको वह डाटा दिखाते हैं जिससे लोकल मेजॉरिटी खुश हो. मीडिया जिसके हाथ में है, वह कुछ भी आपके दिमाग में इंसर्ट कर सकता है क्यूंकि डाटा को इन्टरप्रेट कर छापने और लोगों तक पहुँचाने की ताक़त उनके हाथ में है.

1. Any set of data can be interpreted or misrepresented to show completely different situations, one list based on total numbers can show 20-25 countries at the top, while other interpretation based on average--per 100 persons or per 10,000 populace will show a totally different set of countries.

2. Then, on basis of percent increase, list will get again get transformed, & so on. Whoever has power to analyze, interpret & publish can make any region forward or backward, depending on whims.

3. That's the power of media and those who control the media. Nothing is wrong, all five interpretations are different as per parameters, though data is same.

4. Interestingly, out of 200 plus countries, you can make as many sets that each country will figure in a list, and residents will 'satisfied'.

5. As a person 'consuming' news and information, you won't be shown all aspects, just one side, as per local considerations & media tilt or region.

[Shams Ur Rehman Alavi]

-کسی بھی ڈاٹا کو کئ طرح سے دکھایا جا سکتا ہے، یہ میڈیا کے ہاتھ میں ہے

Over 1,70,000 deaths in road mishaps on an average in a year. This makes accidents the biggest killer in India. Though c...
08/09/2024

Over 1,70,000 deaths in road mishaps on an average in a year. This makes accidents the biggest killer in India. Though certain other issues get too much attention, this is not taken as seriously.

Over 1,70,000 deaths in road mishaps on an average in a year. This makes accidents the biggest killer in India. Though c...
08/09/2024

Over 1,70,000 deaths in road mishaps on an average in a year. This makes accidents the biggest killer in India. Though certain other issues get too much attention, this is not taken as seriously.

Over 1,70,000 deaths in road mishaps on an average in a year. This makes accidents the biggest killer in India. Though certain other issues get too much attention, this is not taken as seriously.

07/09/2024

जो लोग शिकायत करते हैं कि इतिहास के एक हिस्से को पढ़ाया गया मगर प्राचीन....

Those who complain that more focus was on one era of history and ancient was neglected..

جو لوگ شکایت کرتے ہیں کہ مغل دور پر فوکس رہا مگر ہندو راجاؤں کی تاریخ نہیں پڑھائ جاتی۔۔

Certain people claim that they were taught a particular period of history but ancient era was ignored and focus was more on medieval era of Indian history. Let's take a look at this claim about history taught in text books in India.

https://www.facebook.com/reel/440043741828938/?app=fbl

बहुसंख्यकों को अपने समाज के पिछड़ेपन, गरीबी पर ध्यान देना चाहिए. जब यह हाल है कि सुनील और उसकी बीवी अपने चार दिन के बच्च...
07/09/2024

बहुसंख्यकों को अपने समाज के पिछड़ेपन, गरीबी पर ध्यान देना चाहिए. जब यह हाल है कि सुनील और उसकी बीवी अपने चार दिन के बच्चे को बेच देने का सोदा करें, मगर मीडिया इधर ध्यान भी न देकर, सैकड़ों किसान जो खुदकुशी कर रहे हैं या लड़कियां गर्भ में मारी जा रही है, तब आंखेःब॔द किए,अपने समाज की फिक्र न कर, दूसरे धर्म और उनके समाज को कमजोर समझ कर खुद को खुश कर लेते हैं.

एक तरफ ये हाल है कि ग़रीबी की वजह से पैदाइश के सिर्फ चार दिन बाद ही, अपने बच्चे को एक मुंबई के दम्पति को बेचने को तैयार हो जाते हैं, और वह भी ऐसे कि शुरू में सिर्फ दस हज़ार ले कर और बाक़ी बाद में मिलने के वादे पर, उधर अफ़सोस ये है कि देश में लोग इस पर ध्यान देने के बजाय धर्म और दूसरे मुद्दों जिनसे जनता का कोई फायदा नहीं, भड़काते हैं. मीडिया का कग़्य तो बस यही रह गया है

Due to poverty, poor parents had agreed to sell their newborn baby to a childless couple for Rs 1.10 lakh. In fact, baby was handed after receiving Rs 10,000 & rest of the money was to be paid later. Police got wind & saved the kid.

ایک طرف غربت کی وجہ سے سنیل اور اسکی بیوی اپنے چار دن کے بچے کو فروخت کرنے کو تیار ہو جاتے ہیں اور دوسری طرف ان حالات پر فکر کے بجائے، لوگ مذہبی مسائل اور بلا وجہ کے مسائل پر ہنگامہ کرتے ہیں۔

https://www.newsbits.in/newly-born-kid-was-sold-for-rs-110-lakh-police-arrest-six-for-child-trafficking

Read full story at https://newsbits.in/newly-born-kid-was-sold-for-rs-110-lakh-police-arrest-six-for-child-trafficking

एक तरफ ये हाल है कि ग़रीबी की वजह से पैदाइश के सिर्फ चार दिन बाद ही, सुनील और उसकी पत्नी अपने बच्चे को एक मुंबई के दम्पति...
06/09/2024

एक तरफ ये हाल है कि ग़रीबी की वजह से पैदाइश के सिर्फ चार दिन बाद ही, सुनील और उसकी पत्नी अपने बच्चे को एक मुंबई के दम्पति को बेचने को तैयार हो जाते हैं, और वह भी ऐसे कि शुरू में सिर्फ दस हज़ार ले कर और बाक़ी बाद में मिलने के वादे पर, उधर अफ़सोस ये है कि देश में लोग इस पर ध्यान देने के बजाय धर्म और दूसरे मुद्दों जिनसे जनता का कोई फायदा नहीं, उन पर भड़काते हैं.

Due to poverty, poor parents had agreed to sell their newborn baby to a childless couple for Rs 1.10 lakh. In fact, baby was handed after receiving Rs 10,000 & rest of the money was to be paid later. Police got wind & saved the kid.

ایک طرف غربت کی وجہ سے سنیل اور اسکی بیوی اپنے چار دن کے بچے کو فروخت کرنے کو تیار ہو جاتے ہیں اور دوسری طرف ان حالات پر فکر کے بجائے، لوگ مذہبی مسائل اور بلا وجہ کے مسائل پر ہنگامہ کرتے ہیں۔

https://www.newsbits.in/newly-born-kid-was-sold-for-rs-110-lakh-police-arrest-six-for-child-trafficking

Read full story at https://newsbits.in/newly-born-kid-was-sold-for-rs-110-lakh-police-arrest-six-for-child-trafficking

यह अंकुर तो राक्षस निकला, लड़की ने उसके लिए घर, समाज, धर्म छोड़ा, इसने फिर भी कत्ल कर दियाAnkur acted like devil. Girl l...
05/09/2024

यह अंकुर तो राक्षस निकला, लड़की ने उसके लिए घर, समाज, धर्म छोड़ा, इसने फिर भी कत्ल कर दिया

Ankur acted like devil. Girl left home, religion for him, but he killed her.

انکور نے لڑکی کو قتل کر دیا جب کہ وہ اسکی خاطرگھر اعت مذہب چھوڑ آئ تھی۔

Certain guys were socialite, moneyed & had got positions in media due to links. Aligned with rich, elite, politicians. F...
04/09/2024

Certain guys were socialite, moneyed & had got positions in media due to links. Aligned with rich, elite, politicians. Fans of ex-royals, tried to show off proximity & clout by posing with a 'maharaj' or visiting a leader's kothi.

Mum on torture, framing, accepting all cop versions and press releases on encounters till 2 bizmen [own class] got shot & then realised that 'system' needed overhaul, the angry editorial appeared.

Any interest in talking to people on street?

If you are rich, its not your fault, but you must be able to see own privilege, understand it, & as editor, you should know how to talk to a common man, without needing interpretors.

India is not just about Airlines & 5 Star hotels. Real issues, What? What agriculture, what railways, education, public health, treatment costs, what about poverty, unemployment, environment, climate crisis.

Now, exposed but fail to learn [old habits die hard], no one to clap, so they give platform to each other, and focus remains on 'old glory days', access to leaders in past, Airport, Taj & Oberoi or once in a while attempting...

लाखों इसराईली सड़क पर, अपनी ही सरकार के खिलाफ, जंग रोकने का मुतालबा, येरूशलम में..Half-a-million people on streets in Is...
04/09/2024

लाखों इसराईली सड़क पर, अपनी ही सरकार के खिलाफ, जंग रोकने का मुतालबा, येरूशलम में..

Half-a-million people on streets in Israel in a massive protest in Jerusalem.They demand end of war.

لاکھوں اسرایئل کے باشندے سڑکوں پر، فلسطین کے خلاف جنگ روکنے کا مطالبہ کرتے ہوئے۔

इसका मतलब जाति जणगणना को सपोर्ट है? So,   will take place!اسکا مطلب ذات کی مردم شماری ہوگی، حمایت ہے!
04/09/2024

इसका मतलब जाति जणगणना को सपोर्ट है?

So, will take place!

اسکا مطلب ذات کی مردم شماری ہوگی، حمایت ہے!

Top politicians, rich business barons, tycoons who default and escape country, MPs, MLAs facing charges, never targeted ...
03/09/2024

Top politicians, rich business barons, tycoons who default and escape country, MPs, MLAs facing charges, never targeted or made to suffer.

Even if they are or their kin, are accused or convicted in heinous crime, their bungalow or kothi never demolished.

Razing the house of a offender or suspect, sometimes on mere claim and before trial, has become a controversial practice in several states, lately.

[Shams Ur Rehman Alavi]

[प्लांटेड खबर को डिटेक्ट करना सीखिए] 1. Times of India mein planted news ka namoona. Agar koi CM ya Dy CM ya leader hai ...
03/09/2024

[प्लांटेड खबर को डिटेक्ट करना सीखिए] 1. Times of India mein planted news ka namoona. Agar koi CM ya Dy CM ya leader hai to uska Hedgewar ki moorti par jaana zaroori hai?

2. Kya Mahatma Gandhi ya fotmer PMs ke level ke leader hain. Waise Gandhi ji ki samaadhi ya moorti par kitne state minister jaate hain ya nahi, kya haaziri lagti hai. Kab ginti hoti hai

3. Aisa koi rule nahi. Magar khabar bana di gayi. Isse leader par pressure bana, awaam mein message gaya ki ye zaroori hai, falaa.n ka stature badhaaya gaya ki is ilaaqe mein is jagah jaana zaroori hai, aur BJP core voter ko message diya gaya ki ye NCP waale hain, alliance mein hain magar alag hain, majboori mein saath hain, jab majority aa jaayegi tab NCP se aaye logon ki zaroorat nahi rahegi aur phir importance nahi diya jaayega, isliye inko govt mein dekh kar dukhi na hon.

4. Dar asal, standard English paper ke liye ye khabar hai hi nahi. Organiser ya Panchjanya ke liye ho sakti hai, magar article ya opinion. In fact, ye allowed hi nahi hai ki is tarah agenda ko report bana kar news ki shakl nein pesh kiya jaaye. Magar ye hua.

5. Kya aap ye chalaakiyaan detect kar paate hain. Aap media ko kitna samajhte hain aur media kaise society par asar andaaz hota hai, ye uska namoona hai.

1. एक बात साफ़ कर दूँ. मेरे लिए आइडेंटिटी बहुत अहम है. मैं अगर उर्दू बोल रहा हूँ तो सिर्फ इसलिए नहीं कि मादरी ज़बान है और ...
03/09/2024

1. एक बात साफ़ कर दूँ. मेरे लिए आइडेंटिटी बहुत अहम है. मैं अगर उर्दू बोल रहा हूँ तो सिर्फ इसलिए नहीं कि मादरी ज़बान है और मैं इसे अंग्रेजी पर फ़ौक़ियत देता हूँ. बात ये है कि जब मायनॉरिटी होते हैं तब आप को अपनी आइडेंटिटी बचाना होती है, ये मुश्किल होता है एक वास्ट मेजोरिटी के बीच.

2. आप मेजॉरिटी के दरम्यान रहते हैं तो अनकांशस लेवल पर 'वक़्त' और 'यक़ीन' की जगह टाइम, फेथ या कुछ और बोलने लगते हैं. मुझे हिंदी बहुत पसंद है, संस्कृत भी सीखी है और बहुत अच्छी लगती है, लेकिन अपनी ज़बान नहीं छोड़ सकता. .

3. कई क़ौमों ने मायनॉरिटी में रहते हुए, सैकड़ों साल अपनी ज़बान और लिपि की हिफाज़त की और कुछ क़ौमें नहीं कर पाईं. जिन लोगों को उर्दू कमज़ोर होती नज़र आ रही है वह बहुत शॉर्ट साइटेड हैं और अपने आस पास के बीस पच्चीस या सौ लोगों को देख कर ही तय कर लेते हैं.

4. इन फैक्ट, सोशल मीडिया पर जो पैरलेल डिस्कोर्स मुस्लिम्स ने अब खड़ा किया है, वह इस लिए ही मुमकिन हुआ कि हममिज़ाज लोग यहाँ बात करते हैं और उस से निचोड़ निकलता है.

5. मज़हबी बहसें भी लोग करते हैं लेकिन लगातार लोग 'इवॉल्व' evolve हो रहे हैं, वह समझ रहे हैं कि कोई बात जनरलाइज नहीं की जा सकती और क्या हमारे आस पास हो रहा है. पांच साल पहले के मुक़ाबले ज़बान दोबारा मक़बूल और इस्तेमाल हो रही है.

6. लगातार फेसबुक पर मुस्लिम नौजवानों ने देवनागरी में ही सही, उर्दू अलफ़ाज़ का इस्तेमाल गैर शऊरी तौर पर बढ़ा दिया है. ये इसलिए हुआ क्यूंकि आप स्ट्रीट पर दस में एक या दो हैं, मगर यहां आप फ्रेंड लिस्ट में आपके अपने लोग पचास से अस्सी फीसद हैं. यही वजह है कि व्हाट्सएप ग्रुप्स में भी उर्दू बढ़ी है और स्क्रिप्ट का इस्तेमाल भी अच्छा ख़ासा होने लगा है.

7. उर्दू एक आला तरक़्क़ीयाफ्ता ज़बान है जो कुछ लोगों के बोलने या न बोलने से कमज़ोर नहीं हो जाएगी. मगर अपनी कल्चरल हेरिटेज को ज़िंदा रखना हमारा काम है. हम बोलेंगे, लिखेंगे, इस्तेमाल करेंगे तो वह अलफ़ाज़ राएज रहेंगे वरना धीरे धीरे लोग उनके अंग्रेजी या दूसरी ज़बान के मुतबादिल अलफ़ाज़ इस्तेमाल करने लगते हैं.

8. हमारा बहुत बड़ा लिटरेचर और असासा, विरासत और तहज़ीब, इल्म और मज़हबी मटीरियल उर्दू में है. तो ख़ज़ाने को गंवाइए मत. दूसरी भाषाएं सीखिए, बोलिये, मगर अपनी ज़बान को खो मत दीजिये. ये नाक़ाबिल ए तलाफ़ी नुकसान होता है. जिन क़ौमों ने ये भुगता है वह ही जानती हैं. इसलिए ज़बान का मेयार तो हम क़ायम रखेंगे.

9. ये याद रखिए कि कोई तुर्की को रोमन स्क्रिप्ट में लिखेगा, तो भी वह तुर्की है, अपने बच्चों को बताइये कि वह जो ज़बान बोलते हैं, वह उर्दू है, अपने हिस्से का बुनियादी काम करें, उर्दू का अखबार, रिसाले, किताबें खरीदें और प्रोपेगंडे से असर अंदाज न हों, उर्दू बहुत तेजी से बढ़ रही है, दुनिया की टाॅप टेन भाषाओं में है, और यह पचास करोड़ की तादाद की तरफ बढ़ रही है.

10. होशियार लोग हमेशा लड़ते नहीं, वह दूसरे तरीके भी अपनाते हैं, आपका सूबा ही किसी सूबे में मिला कर करोड़ों लोगों की आइडेंटिटी ही एक झटके में बदल दी, बरार और खानदेश जैसे सूबे खत्म हुए और करोड़ों लोगों की आइडेंटिटी बदल गई, और वह समझ भी न पाए कि ये कितनी आसानी से हो गया, किसी भाषा को दूसरी भाषा की शैली मात्र कह कर, उसका वजूद ही गायब करने का काम सोच लिया...

[By Shams Ur Rehman Alavi]

1. مجھے ایک بات واضح کرنا ہے۔ میرے لیے شناخت بہت اہم ہے۔ اگر میں اردو بول رہا ہوں تو یہ صرف اس لیے نہیں کہ یہ مادری زبان ہے اور میں اسے انگریزی پر ترجیح دیتا ہوں۔ بات یہ ہے کہ جب آپ اقلیت ہیں تو آپ کو اپنی شناخت کی حفاظت کرنی ہے، یہ ایک بڑی اکثریت کے بیچ میں مشکل ہے۔

2. اگر آپ اکثریت میں رہتے ہیں تو لاشعوری سطح پر آپ 'وقت' اور 'یقین' کے بجائے سمئے، فیتھ یا کچھ اور کہنا شروع کر دیتے ہیں۔ مجھے ہندی آتی ہے، سنسکرت بھی سیکھی ہے اور پسند ہے، لیکن میں اپنی زبان نہیں چھوڑ سکتا۔ ،

3. بہت سی قوموں نے اقلیت میں ہونے کے باوجود سینکڑوں سالوں تک اپنی زبان اور رسم الخط کی حفاظت کی اور کچھ کمیونٹیز نہیں کر سکیں۔ جن لوگوں کو لگتا ہے کہ اردو کمزور ہوتی جا رہی ہے وہ بہت کم نظر ہوتے ہیں اور اپنے اردگرد کے پچیس یا سو لوگوں کو دیکھ کر فیصلہ کرتے ہیں۔

4. درحقیقت مسلمانوں نے جو متوازی ڈسکشن کی دنیا اب لوگ یہاں بات کرتے ہیں اور اس سے بہت سی باتیں نکلتی ہیں

5. مسلم نوجوانوں نے فیس بک پر اردو الفاظ کے استعمال کو بڑھا دیا ہے، یہاں تک کہ دیوناگری میں بھی۔ ایسا اس لیے ہوا کہ آپ سڑک پر دس میں سے ایک یا دو ہیں، لیکن یہاں آپ کے اپنے لوگ آپ کی فرینڈ لسٹ میں پچاس سے اسی فیصد ہیں۔ یہی وجہ ہے کہ واٹس ایپ گروپس میں اردو کے استعمال میں اضافہ ہوا ہے اور رسم الخط کا استعمال بھی بڑھنے لگا ہے۔

6. اردو ایک انتہائی ترقی پسند زبان ہے جو کچھ لوگوں کے بولنے یا نہ بولنے کی وجہ سے کمزور نہیں ہو گی۔ لیکن اپنے ثقافتی ورثے کو زندہ رکھنا ہمارا کام ہے۔ اگر ہم ان الفاظ کو بولیں، لکھیں یا استعمال کریں تو وہ رائج رہیں گے ورنہ آہستہ آہستہ لوگ ان کے متبادل، انگریزی یا دوسری زبان کے الفاظ استعمال کرنے لگتے ہیں۔

7. ہمارا ادب، ورثہ اور ثقافت، علم اور مذہبی مواد اردو میں ہے۔ خزانہ مت چھوڑیں. دوسری زبانیں سیکھیں، بولیں، لیکن اپنی زبان نہ کھو دیں۔ یہ ناقابل تلافی نقصان ہوگا۔

9. ترکی کو رومن رسم الخط میں لکھنے والے بھی اسے ترکی کہتے ہیں۔

10. ذہین لوگ ہمیشہ لڑتے نہیں، دوسرے طریقے بھی اپناتے ہیں، آپ کے صوبے کو کسی دوسرے صوبے کے ساتھ ملا کر کروڑوں لوگوں کی شناخت ایک ہی جھٹکے میں بدل دی گئی، برار اور خاندیش جیسے صوبے تحلیل ہو گئے ،کروڑوں لوگوں کی شناخت ختم کر دی گئی۔ سب بدل گیا اور انسان سمجھ بھی نہیں پایا کہ یہ کتنی آسانی سے ہوا، ایک زبان کو محض دوسری زبان کی 'شیلی' کہہ کر، اس کے وجود کو مٹانے کا پلان بنایا جاتا ہے۔

شمس الر حمٰن علوی



1. एक बात साफ़ कर दूँ. मेरे लिए आइडेंटिटी बहुत अहम है. मैं अगर उर्दू बोल रहा हूँ तो सिर्फ इसलिए नहीं कि मादरी ज़बान है और मैं इसे अंग्रेजी पर फ़ौक़ियत देता हूँ. बात ये है कि जब मायनॉरिटी होते हैं तब आप को अपनी आइडेंटिटी बचाना होती है, ये मुश्किल होता है एक वास्ट मेजोरिटी के बीच.

2. आप मेजॉरिटी के दरम्यान रहते हैं तो अनकांशस लेवल पर 'वक़्त' और 'यक़ीन' की जगह टाइम, फेथ या कुछ और बोलने लगते हैं. मुझे हिंदी बहुत पसंद है, संस्कृत भी सीखी है और बहुत अच्छी लगती है, लेकिन अपनी ज़बान नहीं छोड़ सकता. .

3. कई क़ौमों ने मायनॉरिटी में रहते हुए, सैकड़ों साल अपनी ज़बान और लिपि की हिफाज़त की और कुछ क़ौमें नहीं कर पाईं. जिन लोगों को उर्दू कमज़ोर होती नज़र आ रही है वह बहुत शॉर्ट साइटेड हैं और अपने आस पास के बीस पच्चीस या सौ लोगों को देख कर ही तय कर लेते हैं.

4. इन फैक्ट, सोशल मीडिया पर जो पैरलेल डिस्कोर्स मुस्लिम्स ने अब खड़ा किया है, वह इस लिए ही मुमकिन हुआ कि हममिज़ाज लोग यहाँ बात करते हैं और उस से निचोड़ निकलता है.

5. मज़हबी बहसें भी लोग करते हैं लेकिन लगातार लोग 'इवॉल्व' evolve हो रहे हैं, वह समझ रहे हैं कि कोई बात जनरलाइज नहीं की जा सकती और क्या हमारे आस पास हो रहा है. पांच साल पहले के मुक़ाबले ज़बान दोबारा मक़बूल और इस्तेमाल हो रही है.

6. लगातार फेसबुक पर मुस्लिम नौजवानों ने देवनागरी में ही सही, उर्दू अलफ़ाज़ का इस्तेमाल गैर शऊरी तौर पर बढ़ा दिया है. ये इसलिए हुआ क्यूंकि आप स्ट्रीट पर दस में एक या दो हैं, मगर यहां आप फ्रेंड लिस्ट में आपके अपने लोग पचास से अस्सी फीसद हैं. यही वजह है कि व्हाट्सएप ग्रुप्स में भी उर्दू बढ़ी है और स्क्रिप्ट का इस्तेमाल भी अच्छा ख़ासा होने लगा है.

7. उर्दू एक आला तरक़्क़ीयाफ्ता ज़बान है जो कुछ लोगों के बोलने या न बोलने से कमज़ोर नहीं हो जाएगी. मगर अपनी कल्चरल हेरिटेज को ज़िंदा रखना हमारा काम है. हम बोलेंगे, लिखेंगे, इस्तेमाल करेंगे तो वह अलफ़ाज़ राएज रहेंगे वरना धीरे धीरे लोग उनके अंग्रेजी या दूसरी ज़बान के मुतबादिल अलफ़ाज़ इस्तेमाल करने लगते हैं.

8. जैसे किसी ने आपसे कहा 'आपका क्या कहना है क्या स्थितियां ठीक है', तो 80 से 90 परसेंट लोग जवाब में वही लफ्ज़ इस्तेमाल करते हैं. जबकि आप यूं भी कह सकते हैं 'मेरे हिसाब से तो हालात पहले के मुक़ाबले मज़ीद बेहतर या खराब हुए हैं'. उर्दू हमारा नाता जोड़ती है अरबी से, उर्दू जानने वाला फ़ारसी जैसी ज़बान भी आसानी से सीख सकता है, हर नयी ज़बान जो आप सीखते हैं, वह शख्सियत को बेहतर करती है. इसमें कोई घाटे का सौदा है ही नहीं.

9. हमारा बहुत बड़ा लिटरेचर और असासा, विरासत और तहज़ीब, इल्म और मज़हबी मटीरियल उर्दू में है. तो ख़ज़ाने को गंवाइए मत. दूसरी भाषाएं सीखिए, बोलिये, मगर अपनी ज़बान को खो मत दीजिये. ये नाक़ाबिल ए तलाफ़ी नुकसान होता है. जिन क़ौमों ने ये भुगता है वह ही जानती हैं. इसलिए ज़बान का मेयार तो हम क़ायम रखेंगे.

10. ये याद रखिए कि कोई तुर्की को रोमन स्क्रिप्ट में लिखेगा, तो भी वह तुर्की है, अपने बच्चों को बताइये कि वह जो ज़बान बोलते हैं, वह उर्दू है, अपने हिस्से का बुनियादी काम करें, उर्दू का अखबार, रिसाले, किताबें खरीदें और प्रोपेगंडे से असर अंदाज न हों, उर्दू बहुत तेजी से बढ़ रही है, दुनिया की टाॅप टेन भाषाओं में है, और यह पचास करोड़ की तादाद की तरफ बढ़ रही है. शातिर लोग जब लड़ नहीं पाते, तब वह दूसरे तरीके अपनाते हैं, आपका सूबा ही किसी सूबे में मिला कर करोड़ों लोगों की आइडेंटिटी ही एक झटके में बदल दी, कह बरार और खानदेश जैसे सूबे खत्म हुए और करोड़ों लोगों की आइडेंटिटी बदल गई, और वह समझ भी न पाए कि ये कितनी आसानी से हो गया, किसी भाषा को दूसरी भाषा की शैली मात्र कह कर, उसका वजूद ही गायब करने का काम सोच लिया...

[By Shams Ur Rehman Alavi]

Bulldozer is selectively used. Top politicians, rich, business barons, tycoons who escape country, MPs, MLAs never face ...
02/09/2024

Bulldozer is selectively used. Top politicians, rich, business barons, tycoons who escape country, MPs, MLAs never face it, even if they get charged.

Supreme Court gets tough, questions the legality of using bulldozer for demolition of houses.
Razing the house of a crime suspect or convict, has become a controversial practice in several states, lately. It has ultimately reached the Apex court.

किसी काम को छोटा न समझें, जो मेहनत करता है, अपने घर को चलाता है, वही ईमानदार और असली देशभक्त है. वह अपना बिज़नेस करता है,...
01/09/2024

किसी काम को छोटा न समझें, जो मेहनत करता है, अपने घर को चलाता है, वही ईमानदार और असली देशभक्त है. वह अपना बिज़नेस करता है, आपको जब हाइवे पर ज़रुरत पड़ती है, वही काम आता है.

इसलिए किसी को उसकी पोस्ट, दूकान, काम या दौलत से न आंकें, ये एक शर्मनाक बात है कि लोग पंक्चरवाला लफ्ज़ को इस तरह इस्तेमाल करते हैं जैसे ये कोई मामूली काम हो. डिग्निटी ऑफ़ लेबर का कांस्पेट समझें, वह जो लोन ले कर करोड़ों रुपये ठग कर बैंकों से भाग जाते हैं, वह सिर्फ सूट पहन लेते हैं, तो आप उनकी इज़्ज़त करते हैं क्यूंकि ये गुलामी वाले ज़हन हैं. इनको और हर पंचर की दुकान वाले को दिल से सलाम

#पंक्चर #पंचर #पंचरवाला #पंक्चरवाला

1. राइटविंग वेबसाइट्स को अगर किसी क्राइम में धर्म और आइडियॉलजी के हिसाब से कोई नाम मिल जाए तो उस मामले को न सिर्फ बेहद ब...
31/08/2024

1. राइटविंग वेबसाइट्स को अगर किसी क्राइम में धर्म और आइडियॉलजी के हिसाब से कोई नाम मिल जाए तो उस मामले को न सिर्फ बेहद बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं बल्कि हेडलाइन में पूरा नाम लिख देते हैं, जबकि कोई आरोपी इनकी आइडियॉलजी या दूसरे समुदाय से हो, क्राइम करे, तो अक्सर खबर गायब या नॉर्मल अंदाज़ की न्यूज़, नाम तो खैर आधा भी हेडलाइन में नहीं होता और उस क्राइम को दबाया जाता है.

2. ये साइट्स न सिर्फ झूट और प्रोपेगेंडा के लिए बदनाम हैं बल्कि ये साइट्स पूरे सोशल मीडिया पर और व्हाट्सएप ग्रुप्स में लोगों को ब्रेनवॉश करती हैं, ये इम्प्रेशन देती हैं कि फलां लोग ज़्यादा क्राइम करते हैं.

3. ऐसी कुछ वेबसाइट्स हैं जो सिर्फ दावे की बुनियाद पर किसी को बेहद हार्डकोर क्रिमिनल बना देती हैं और अक्सर किसी और नाम या कनेक्शन के हिसाब से आरोपी को बचाने का काम भी करती हैं.

4. इसलिए जब ऐसी हरकत देखें तो क्रोम या जो भी ब्राउज़र है, उसमें खबर के आस पास देखें, अगर तीन डॉट नज़र आ रहे हों तो क्लिक करें और 'रिपोर्ट' करें, और ये मेंशन करें कि ये साइट 'रिलायबल नहीं है', बल्कि इसका कंटेंट नफरत का होता है

5. ये लिख दें कि इनका काम स्टैण्डर्ड जर्नल्ज़िम नहीं, कम्यूनिटीज़ को लड़ाना और समाज को मिसइंफॉर्म करना, गलत इन्फो देना है. इसका असर बिलकुल होता है, अगर लोग ज़रा सीरियसली ये काम करें. इस तरह ही, ऐसी कई साइट्स के एडवर्टीजमेंट भी बंद हुए और उनकी पेज रैंक भी कम हुई, इसलिए, ये बुनियादी काम ज़रूर करें.

एहसास ए कमतरी कहिये या साइकॉलजी कहिये, किसी काम की कोई वैल्यू नहीं है जब तक कोई तिवारी जी या पांडेय जी न करें, बल्कि वह ...
31/08/2024

एहसास ए कमतरी कहिये या साइकॉलजी कहिये, किसी काम की कोई वैल्यू नहीं है जब तक कोई तिवारी जी या पांडेय जी न करें, बल्कि वह सिर्फ कह दें तब माना जाएगा कि सही किया है.

टॉप लेवल के अख़बार पढ़ते हैं, अंग्रेजी अदब की महारत है, उर्दू, अरबी से वाक़िफ़ हैं, और फिर वही रट, 'कि कोई कुछ नहीं कर रहा'. अब आपको नहीं पता तो दुनिया में कुछ नहीं हो रहा ऐसा तो नहीं है. मीडिया का वह कॉकस जिसमें वह डिसाइड करते थे कि क्या छापना है और क्या नही छापना कैसे टूटा?

कितने लोगों ने अपनी ज़िंदगी का क़ीमती वक़्त खपाया, गुमनामी में काम किये जिससे आज फायदा हो रहा है. लेकिन साहब, वह तो अपनी कम्युनिटी के हैं, वह कैसे अच्छे हो सकते हैं या कुछ कर सकते हैं.

अगर किया है तो किसी तिवारी जी से सीख कर किया होगा. अब ये तिवारी जी कौन है, अरे वही जिन्होंने उर्दू अख़बार में लिखा था एक कॉलम, और फिर 'दारुल उलूम' बुलाया गया था, हर कोई दीवाना हो गया था कि हाथ चूम ले, सबसे ऊँची कुर्सी दी गयी थी?

और वह नौजवान जो मूवमेंट्स में लड़े, आज भी झेल रहे हैं, वह लोग जिन्होंने पोर्टल, मीडिया हाउज़ बनाये, जिन्होंने हेट ट्रैकिंग की, जिन्होंने स्पॉट पर जा कर हिम्मत दिखाई, फैक्ट फाइंडिंग टीमें ले कर गए, जिन्होंने केस झेले, जिन्होंने सख्तियां बर्दाश्त कीं, जिन्होंने इदारे खड़े किये, ईमानदारी से क्राउड फंडिंग की, वह सब?

'हें हें, उनका पता नहीं, हम नहीं जानते हैं, लेकिन तिवारी जी के साथ फोटो खिचवाई है, फेसबुक पर डाली है'. अरे भाई, तिवारी जी ने बहुत किया है? एक्टिविज़्म किया है, या पत्रकार हैं, या समाजसेवी हैं, हैं क्या? ऐसे कोई भारत रत्न नहीं. 'पता नहीं, सियासत होगी आपस की, तिवारी जी की इस बार तक़रीर होगी और हमदर्द ए मिल्लत, नासेह उल मुल्क, बहर उल उक़्क़ाल का खिताब देंगे हम'. अपनी कम्युनिटी में कहाँ कोई विज़न है, सब छोटे मोटे काम किये हैं बस.

NOTE 1" किसी से इख्तिलाफ जाएज़ है, किसी से मिज़ाज नहीं मिलता जाएज़ है, मगर अगर उसने काम किया है तो एतराफ़ करना होगा आपको, नहीं करते तो नाइंसाफी है ये.

NOTE 2: न किसी का अदब करना बुरा है, न इज़हार करना, लेकिन उतना एहतराम जो मुनासिब हो, खुद को बेवक़अत कर लेना और किसी सलाहियत को नहीं मानना जब तक 'उनका' validation न हो, मतलब वहां से ओके न हो, ये ज़ेहनी गुलामी और इस बीमारी का इलाज कर लेना चाहिए. वह नस्ल जो...

If people ask the painter or the glow sign board maker to get a board painted in Urdu too, along with English or regiona...
30/08/2024

If people ask the painter or the glow sign board maker to get a board painted in Urdu too, along with English or regional language, then, the person will hire a man or teach the art to next generation, also, as he gets order, work and demand for Urdu script.

Besides, one must not erase or shun own identity. If you don't insist your name on even name plate or visiting card, invitations & similar things, then...
...next generation will have difficulty to find painters or stone engravers, and grave yards or mosques too will have names written in other scripts and your next generation's command over Arabic and Urdu will wraken.

Hence, ensure that you buy a paper or magazine, an occasional book and use in your daily life, home. Make sure that your kids know that what they talk is 'Urdu' and it is their language, mother tongue.

29/08/2024

जिन्हें काम करना होता है, वह जुट कर, बग़ैर, शिकायत के काम करते हैं, इसलिए अगर मुमकिन हो तो पाजिटिव काम करें, अपने सर्कल, घर या इलाके को देख कर ये न समझें कि दुनिया इतनी सी है, बहुत सूबे, अनगिनत शहर, क़स्बे हैं, कोई आदमी ये गुमान न रखे कि वह सब जानता है, करोड़ों लोग हैं जो अदब, ज़बान, कल्चर के लिए ख़ुद को वक़्फ़ किए हुए हैं

जो चंद मनहूस ग़ार मैं बैठे हैं, कभी रोशनी की किरन नहीं देख सकते, तो कम अज़ कम मजीद नेगेटिविटी और 'ये चीज़ खत्म हो रही है', 'वह ज़बान मर रही है', की तकरार न करें, वरना ऐसी बकवास करने वालों में ज़यादातर के जनाज़े 40 साल पहले उठ गए, अब आपको दुनिया की टाॅप टेन लैंग्वैजेज़

"A.G. Noorani was one of the most prominent intellectuals in Independent India, known for his keen eye for facts and rig...
29/08/2024

"A.G. Noorani was one of the most prominent intellectuals in Independent India, known for his keen eye for facts and rigorous research.

He wrote extensively on issues such as communalism and the Constitution, with his work frequently cited in courtrooms. Unlike many of his contemporaries... he never sought awards or lobbied for government positions. He was, indeed, an intellectual who could not be bought."

--Mr Asad Ashraf sb

Mohammad Ali was one of the most passionate leaders in freedom movement.In England, he had announced--'I want to go back...
10/12/2023

Mohammad Ali was one of the most passionate leaders in freedom movement.

In England, he had announced--'I want to go back to my country with the substance of freedom in my hand, if you do not give us freedom in India you will have to give me land for a grave here...'.

He died in London & was buried in Jerusalem. His brother Shaukat Ali was also leading freedom fighter.

The Ali brothers and, especially, the influential Abdul Bari Firangi Mahali, were close to Gandhi during Khilafate movement.

It brought Hindus and Muslims together. This harmony irked the British and attempts were made to create rift.

Gopal Krishna Gokhle, Tilak, Hasrat Mohani, Lala Lajpat Rai, were already established and well-known leaders but after Mahatma Gandhi's arrival from South Africa, Abdul Bari Firangi Mahali and Ali brothers travelled with him across India and took him to masses. Gandhi had a room in Firangi Mahal seminary in Lucknow, where he stayed during his visits.

Mohammad Ali made contribution in social and literary sphere. He brought out journals and was president of Congress too.

In poetry, 'Jauhar' was his pen name. On his anniversary, recalling the freedom fighter who had courage and fierce fighting spirit.

His speeches, his articles, his passion and above all the magnetic personality drew masses towards him.

[Shams Ur Rehman Alavi]


Identity is important in current situation. Caste identity, regional identity or religious identity.People genuinely der...
09/12/2023

Identity is important in current situation. Caste identity, regional identity or religious identity.

People genuinely derive strength from it. Feel powerful, making a statement.

Doesn't mean you are weak & expression of identity is to boost own morale.

Goes to mitochondria, cellular level, the contentment that I am asserting myself and declaring it in the midst of society.

Nothing matches the feel. It's a joy that the person understands because he needs that particular vitamin.

Though, its not an act of rebellion when you get it stamped on car, bike. But it shows that you feel the need to do it, for confidence and ego.

In 1980s, stickers like 'Garva se kaho...' and 'Fakhr se kaho...' had become common among Hindus and Muslims. Currently, situation is slightly different. But a serious analysis can irritate people. It's prudent to end the tweet, here.

[Shams Ur Rehman Alavi]

https://twitter.com/indscribe/status/1733508078237082106?t=7imKTba9XPZ5Y3SfFO4E_w&s=19

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