Madhya Pradesh Media Monitor

Madhya Pradesh Media Monitor We keep watch on media, mostly, in MP and even outside. Media is flooded with lots of misinformation

SERIOUS ISSUE.
09/02/2024

SERIOUS ISSUE.

Discrimination towards girl child is a major social issue. The man had stealthily taken away the baby girl and thrown her in bushes.

After grilling, he told that his first child was a daughter & as second kid born was also daughter, he took the step. Rohit lives in Indore.

Computer operator by profession, he earlier tried to mislead & said that dogs often take away kids.

अखबार की हैडलाइन का प्रभाव जनता पर बहुत अधिक होता है। जो बात या आंकड़ें कह दिए जाते हैं वह मीडिया के बड़े बड़े अखबार प्र...
28/01/2024

अखबार की हैडलाइन का प्रभाव जनता पर बहुत अधिक होता है। जो बात या आंकड़ें कह दिए जाते हैं वह मीडिया के बड़े बड़े अखबार प्रकाशित कर देते हैं। मध्य प्रदेश में वर्ष 2004 के बाद जबसे भाजपा सरकार सत्ता में रही है तब से लेकर अब तक कई इंवेस्टर्स समिट हुईं हैं।

समिट होने से पहले रोज़गार देने के आंकड़ों वाली खबरे बहुत प्रकाशित की जाती हैं। लेकिन समिट होने के बाद कोई नहीं पूछता क्य़ा तय लक्ष्य को हासिल किया गया या सिर्फ पेपर में हवाबाज़ी की गई। अखबार को करोड़ों रुपए के विज्ञापन मिलते हैं जिसे हज़म करने के बाद सरकार से रोज़गार कितने लोगों को मिला या नहीं इसपर कोई सवाल नहीं करता।

जबकि विधानसभा में आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने 6 जून, 2020 से 9 जून 2023 के बीच 2,715 घोषणाएं की। (37 महीने)

वर्षवार घोषणाएँ

- जून 2020 से दिसंबर 2020 - 489
- 2021 - 878
- 2022 - 753
- 2023 से 9 जून तक - 592

एक माह में 73 घोषणाएं।

उनमें से कितनी घोषणाएं पुरी हुई, इसकी कोई जानकारी नहीं है।

*देश में दंगा भड़काने की साजिश नाकाम शुक्रिया एसटीएफ* 💐 *देश* की एक विशेषता ये भी है की मज़हब की बुनियाद पर नफ़रत फैलाने की...
05/01/2024

*देश में दंगा भड़काने की साजिश नाकाम शुक्रिया एसटीएफ*
💐 *देश* की एक विशेषता ये भी है की मज़हब की बुनियाद पर नफ़रत फैलाने की नाकाम कोशिश तो की जा सकती है,लेकिन कामयाब नही की जा सकती !
⬛ देश की कानून व्यवस्था और सविधान देश की आत्मा है और इस तरह की घिनौनी हरकतें केवल वही करते है जो देश की आत्मा को झंझोडना चाहते है !
देश की एकता सम्प्रुभता को तोड़ना चाहते है !
🔥आख़िर इस तरह किसी एक मज़हब और उस के अनुयायीयो को बदनाम करने वाले कौन है ?
🔥किस की ज़हरीली मानसिकता की उपज है ओमप्रकाश मिश्रा व ताहर सिंह ?
🔥कौन सा देसी व विदेशी संघठन है जिस की हाथों की कठपुतिल्या बन रहे है इन जैसे युवा ?
⬛मुल्क तब बनता है जब एक स्थान पर विभन्न समाज,सम्प्रदाय,जाति,समहू के लोग विभन्न संस्कृतियों पोषकों (कपड़ो ) में एक साथ रहते है ! वरना तो जंगल में सभी जानवर नंगे घुमाते है !
⬛इस तरह के भटकते लोगों और संघठनो को इस बात पर गौर करना चाहिए की *वे इंसानी समाज में रहना चाहते है या जानवरों के झुंड में !*
✍️आबिद मोहम्मद खान
कशाना टाइम्स भोपाल

02/08/2023

Indscribe's blog. News and Views about Indian Muslims. Posts on social, political issues, current affairs and Urdu poetry. Lucknow, Bhopal, Hyderabad

पाठकों के साथ ये धोखा हैदेश के सबसे बड़े अखबार समूह Dainik Bhaskar देश का सबसे विश्वसनीय अखबार होने का दावा करता है। जयप...
01/08/2023

पाठकों के साथ ये धोखा है

देश के सबसे बड़े अखबार समूह Dainik Bhaskar देश का सबसे विश्वसनीय अखबार होने का दावा करता है। जयपुर – मुंबई एक्सप्रेस में हुए 'तालिबानी' कांड में आरोपी पुलिस वाले ने हत्या करने के बाद सियासी भाषण दिया। जो कहा वो अंग्रेजी के बहुत से अखबार ने जस का तस प्रकाशित किया है। लेकिन देश का सबसे विश्वसनीय अखबार अपने आका का नाम प्रकाशित करने में डर गया। भास्कर ने पूरी खबर को अंडरप्ले तो किया है साथ ही हत्या करने के बाद आरोपी ने जो कहा वो नाम नही प्रकाशित ने।

इससे पता चलता है इन अखबारों में किस तरह से सेलेक्टिव रिपोर्टिंग और डेस्क वर्क किया जाता है। हत्या करने वाले अगर किसी और मजहब से होते तो ये अखबार आतंक, तालिबानी, और जासूसी जैसे लफ्जों से भर जाता। लेकिन इस केस में रिपोर्टिंग देखिए किस तरह से आका का नाम नही प्रकाशित किया गया। ये होता है हिंदी पट्टी को मैनेज करना। भास्कर का असर बड़ी आबादी पर है।

नाम तो लिखो, तस्वीर छापो, देखें कौन दरिंदा हैदेखिए हेडलाइंस, किस तरह से सारा फोकस सिर्फ मृतक पर है, आरोपी की तस्वीर तक न...
26/02/2023

नाम तो लिखो, तस्वीर छापो, देखें कौन दरिंदा है

देखिए हेडलाइंस, किस तरह से सारा फोकस सिर्फ मृतक पर है, आरोपी की तस्वीर तक नहीं छापी गई है, वरना हेडलाइंस में आरोपी की बड़ी तस्वीर और उसके साथ भारी-भरकम शब्दावली और वह दरिंदा या वहशी लिखा जाता है, इस मामले में तो सब कुछ दिया गया वैसे आरोपी का नाम आशुतोष श्रीवास्तव है

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील ने दैनिक भास्कर अखबार को नोटिस भेजा है और अखबार मालिक को यह कहा है कि अखबार ने भ्रामक अपुष्...
01/02/2023

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील ने दैनिक भास्कर अखबार को नोटिस भेजा है और अखबार मालिक को यह कहा है कि अखबार ने भ्रामक अपुष्ट और इस तरह की खबर छापी, जो उनकी छवि को बिगाड़ती है, 24 घंटे के अंदर लिखित अपॉलिजी यानी माफी मांगे वरना लाइबल सूट के लिए तैयार रहें, 5 करोड़ के डैमेज....

जो अखबार सबसे ज्यादा बिकता हो वह इंसान के स्वास्थ्य यानी हेल्थ को नुकसान पहुंचाने वाली चीज का एड पहले पेज पर छापता है, औ...
26/01/2023

जो अखबार सबसे ज्यादा बिकता हो वह इंसान के स्वास्थ्य यानी हेल्थ को नुकसान पहुंचाने वाली चीज का एड पहले पेज पर छापता है, और जो भाषा इस्तेमाल की गई है, नाम देखिए, 'शुद्धता', वैसे जागरण का कमाल ही यह रहा है कि कई बार खबर में जो होता है उसकी उल्टी हैडलाइन होती है सिर्फ आखिर में '!' या '?' लगाकर बचने का तरीका निकाला जाता है, ताकि अगर कोई कहे आपकी खबर गलत है, ऐसा नहीं हुआ, तो कहेंगे कि हमने विस्मय बोधक चिन्ह या सवालिया निशान लगा दिया था, इसका मतलब है 'कि क्या ऐसा है?', पाठक बूझ ले, यही जागरण का कमाल है

Highest circulated paper carries health hazard 'Gutka' ad on front page, words like 'shuddhta' used. So what'll people do. Spit?

Misinfo, twisting news with false claim & clever use of '!' Or '?' in headline to lie is worse than Gutka intake.

देखिए साहब अग्निबाण की पत्रकारिता, इनकी हेड लाइन में यह सिर्फ 'गुस्सा' है. उपद्रव, गुंडागर्दी या हमला नहीं? वह शब्द गायब...
05/01/2023

देखिए साहब अग्निबाण की पत्रकारिता, इनकी हेड लाइन में यह सिर्फ 'गुस्सा' है. उपद्रव, गुंडागर्दी या हमला नहीं?

वह शब्द गायब हैं, कोई निंदा नहीं है इन संगठनों के लिए, और कोई उपद्रव फैलाए तो 'शर्मनाक' और 'हिंसक' जैसे शब्द आ जाएंगे, विशेष टिप्पणी लिख दी जाएगी.

और कितना मासूम अखबार है अशांति फैलाने वालों की खबर को जहां पर लॉ ऑर्डर का इशू हो उसको इस तरह पेश किया जाए?

इनका बस चले तो शायद यही लिखें कि गुस्से से कांप कर अपने आप तोड़ फोड़ हो गई.

'तोड़ फोड़' लिख दिया यही बहुत बड़ी बात है. वैसे कोई दूसरा शांतिपूर्ण प्रदर्शन होता है तो भी खबर लिख दी जाएगी 'क्या अनुमति ली गई थी प्रशासन की', 'कैसे हुए लोग जमा', स्टैंडर्ड पत्रकारिता के सेम रखना चाहिये, दोहरा चरित्र और रवय्या गलत है

सोशल मीडिया की एक ख़ास बात है, इस पर आप सवाल उठा सकते हैं, ख़ास तौर पर ट्विटर पर. आज जब पत्रकार ही पत्रकार से बात करता है,...
26/12/2022

सोशल मीडिया की एक ख़ास बात है, इस पर आप सवाल उठा सकते हैं, ख़ास तौर पर ट्विटर पर. आज जब पत्रकार ही पत्रकार से बात करता है, तो इससे भविष्य की बेहतर संभावनाएं नज़र आने की कुछ उम्मीद बंधती है.

सवाल, जवाब होते हैं, दसियों हज़ार लोग देखते हैं, ये सही तरीक़ा है और इसी तरह संवाद ज़रूरी है. प्रेस या मीडिया चौथा खम्बा है, खुल कर लिखना और कहना चाहिए.

भास्कर पढ़ना अपनी जगह, उस के इवेंट में जा कर भी क्या आईक्यू गिरने लगता है? धार या धारा नगरी है भोज की नगरी, इनको भी सस्ता...
20/12/2022

भास्कर पढ़ना अपनी जगह, उस के इवेंट में जा कर भी क्या आईक्यू गिरने लगता है? धार या धारा नगरी है भोज की नगरी, इनको भी सस्ता व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का इतिहास मिल गया कहीं से?

मनोज जी, भोजशाला का इतिहास ये जानते भी न होंगे, राजा भोज की राजधानी और धार का महत्त्व,? अखबारों का तो खैर आजकल काम ही हो गया है, इन्फॉर्म न करके मिसइन्फॉर्म या डिसइंफॉर्म करना. हमेशा कोई अच्छी किताब खरीदें और उससे इतिहास पढ़ें, जिससे उपहास न हो और समाज में बेइज़्ज़त न होना पड़े.

भोपाल के फेमस बटुओं को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए ये पहल अच्छी है। दैनिक भास्कर के पत्रकार yogendra जी के ये रिप...
21/10/2022

भोपाल के फेमस बटुओं को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए ये पहल अच्छी है। दैनिक भास्कर के पत्रकार yogendra जी के ये रिपोर्ट पढ़ी जाए।

मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार नशा मुक्ति अभियान चला रही है। लेकिन शहर में रात को शराब की दुकानों पर नकेल नहीं कसी जाती है...
16/10/2022

मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार नशा मुक्ति अभियान चला रही है। लेकिन शहर में रात को शराब की दुकानों पर नकेल नहीं कसी जाती है। क्राइम की खबर लिखने में बहुत बारीकियों का ध्यान रखना होता है। पत्रकार को ये मालूम होना चाहिए कि 'मटन-चिकन' की दुकान रात को नहीं खुलती बल्कि स्टेशन के पास स्थित बहुत सारे रेस्टोरेंट खुले होते हैं। जिनमें मासाहारी भोजन की व्यवस्था रहती है।

लेकिन खबर को ऐसे लिखा गया है कि जैसे रात को मटन-चिकन की दुकाने खुली होती हैं। क्या रात को मटन चिकन खाना मना है? शहर में हर तरह के लोग रहते हैं जो अगल अगल तरह का भोजन पसंद करते हैं। जिस होटा का नाम लेकर खबर लिखी गई है वहां रात को शराबी ही ज्यादा आते हैं। तो पुलिस प्रशासन को शराब की दुकाने बंद करवाना चाहिए और कानून व्यवस्था को बेहतन करना चाहिए। जिससे अगर किसी को रात में भूख लगे और वह बाहर कुछ खाना चाहे तो बेखौफ होकर भोजन कर सके। लेकिन नाकाम पुलिस और नाकारा पत्रकार एक नॉन वेज होटल को टारगेट कर रहे हैं।

2 जुलाई 2017 को मध्यप्रदेश में छह करोड़ से ज्यादा पौधे रोपकर इतिहास रचा गया था। 5 जून को हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता...
05/06/2022

2 जुलाई 2017 को मध्यप्रदेश में छह करोड़ से ज्यादा पौधे रोपकर इतिहास रचा गया था। 5 जून को हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। लेकिन किसी मीडिया हाउस में आजतक ये सवाल मुख्यमंत्री से नहीं पूछा कि पांच साल में 6 करोड़ में से कितने पौधे पेड़ की शक्ल ले पाए हैं। करोड़ों रूपए खर्च कर इस इवेंट का दुनियाभर में प्रचार प्रसार किया गया था।

इस पोस्ट में दो तस्वीरें हैं। एक आज की है और एक पांच साल पहले की है। सीएम हर साल पौध रोपण तो कर देते हैं लेकिन उसकी देखभाल कौन करता है ये किसी को नहीं पता। न इस मसले पर कोई सवाल करने की हिम्मत करता है। मध्य प्रदेश के मीडिया से लगता है खोजी पत्रकारिता भी खत्म हो चुकी है। बस दिखावे के लिए पौधरोपण हो जाता है और अखबारों में तस्वीर प्रकाशित हो जाती है।

खबर लिखने का तरीक़ा देखिये, ऐसा महसूस ही नहीं होगा कि कुछ गलत हुआ या अवैध काम हुआ. किसी और ने किया होता तो दबंग या गुंडाग...
10/04/2022

खबर लिखने का तरीक़ा देखिये, ऐसा महसूस ही नहीं होगा कि कुछ गलत हुआ या अवैध काम हुआ. किसी और ने किया होता तो दबंग या गुंडागर्दी जैसे शब्द का इस्तेमाल तो होता मगर पढ़ कर न नाराज़गी पैदा होगी, ये खबर नहीं एक सूचना जैसी हो गयी है क्यूंकि लिखने वाले का दिल उसके साथ है जिसने क़ानून तोड़ा, वरना मामूली घटना में आरोपी या क़ानून के खिलाफ खड़े आदमी को अख़बार ऐसा पेश करता है कि शहर की जनता को गुस्सा आ जाये. मगर संगठनों से निष्ठा, जुड़ाव की वजह से इस तरह क़लम चलाया जाता है.

वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र चंदेल ने बिल्कुल सही इन्टर्वेंशन की है. गौशाला में गौवंश की मौत की खबर लिखने पर भाजपा नेता द्वार...
31/01/2022

वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र चंदेल ने बिल्कुल सही इन्टर्वेंशन की है. गौशाला में गौवंश की मौत की खबर लिखने पर भाजपा नेता द्वारा इस तरह की भाषा का इस्तेमाल अगर पत्रकारों के खिलाफ होगा तो ये बेहद निंदनीय है. पॉलिटिकल पार्टीज़ आपस में निशाना साधें मगर पत्रकारों पर इस तरह की टिप्पणियों से बचें, पत्रकार समझते हैं की इसका मक़सद प्रेशर क्रिएट करना और लेखन को रोकना है.

ये अफ़सोस की बात है मगर जनता को नौकरी चाहिए भी? मध्य प्रदेश में युवाओं ने कितने मूवमेंट किये हैं, कितने ग्रुप्स है संगठन ...
30/01/2022

ये अफ़सोस की बात है मगर जनता को नौकरी चाहिए भी? मध्य प्रदेश में युवाओं ने कितने मूवमेंट किये हैं, कितने ग्रुप्स है संगठन हैं जो इस पर बात करते हैं, बिहार के इशू के बाद मजबूरी में मीडिया को हेडलाइन बनाना पड़ी वरना, बेरोज़गारी वगैरा अब मुद्दा कहाँ है?

सबसे आसान डेस्क स्टोरी यही होती है, हर स्टेट में, क्राइम रिपोर्टर लिखना पसंद भी करते हैं, पुलिस कितनी भी बढ़ जाये, छः और ...
28/01/2022

सबसे आसान डेस्क स्टोरी यही होती है, हर स्टेट में, क्राइम रिपोर्टर लिखना पसंद भी करते हैं, पुलिस कितनी भी बढ़ जाये, छः और आठ कॉलम में लिखा जायेगा कि स्ट्रेंथ अभी भी बहुत कम है, कम्पेयर करने के लिए तो दो दर्जन से ज़्यादा स्टेट्स हैं, जबकि हर जगह के हालात अलग हैं.

क्या और कोई डिपार्टमेंट नहीं होते सरकार में और उनमें ज़रुरत नहीं होती? जितने जोश के साथ और जिस तरह बार बार ये लिखा जाता है, गौर कीजियेगा. पुलिस की तादाद लगातार बढ़ाने और उसके पावर्स बढ़वाने में क्यूँ इतना ज़बरदस्त इंट्रेस्ट रिपोर्टर्स को होता है. समझते हैं ना!

इशू पर बात करना है तो इफेक्टिव पोलिसिंग की बात क्यूँ नहीं करते, स्टाफ है मगर इन्वेस्टिगेशन की क्वालिटी इतनी खराब क्यूँ, हमेशा एक्सटॉर्शन और कस्टडी में टॉर्चर की शिकायतें क्यूँ, रिफॉर्म्स और सुधार नज़र क्यूँ नहीं आते, फ़ोर्स में आने का मतलब सेक्योरिटी और इन्वेस्टिगेशन है या कि वसूली और रोक टोक, बैरियर लगा कर पूछताछ और चालान? सही मुद्दों पर तो लिखो कभी.

मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की अहम टिप्पणी। यह पत्रकारिता है या दंगे भड़काने की सुनियोजित योजना.....ब्रह्मल...
23/01/2022

मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की अहम टिप्पणी।

यह पत्रकारिता है या दंगे भड़काने की सुनियोजित योजना.....

ब्रह्मलीन राजेन्द्र माथुर जी, प्रभाष जोशी जी, मदनमोहन जोशी जी एवं राहुल बारपुते जी, आप जहां भी हैं वहां मेरा प्रणाम पहुंचे।

आज आपके द्वारा संपादित समाचार पत्र की यह हालत देखकर ह्रदय अत्यंत क्षोभ से भर गया। आप लोगों द्वारा गढ़े नईदुनिया समाचार पत्र समूह ने देश में हिंदी पत्रकारिता को एक समय दिशा दी थी। यह मध्यप्रदेश की पहचान था।

हम जैसे ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोगों में भाषा, लोकतंत्र और पत्रकारिता के संस्कार इसलिए विकसित हो पाए क्योंकि तब नईदुनिया हमारे घरों में एक स्थायी सदस्य के रूप में देखा जाता था। आज का यह संस्करण देख कर दुख हुआ।

आज जिस बयान को हेड-लाइन के रूप में छापा गया है वह बयान, एक आईपीएस अधिकारी जो पंजाब के डीजीपी रहे हैं, उनके हवाले से बताया जा रहा है। इस गैर-जिम्मेदाराना बयान की क्या सच्चाई है यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन यदि यह सही है तो यह भी निंदनीय है। कानूनी-कार्यवाही होनी चाहिए।

एक पाठक और पत्रकार के नाते कह सकता हूं कि नईदुनिया जैसी महान संस्था, जो केवल अखबार नहीं हिंदी पत्रकारिता का पूरा स्कूल था, उसका यह सबसे रसातल वाला काल है। राजनीतिक दलों के क्षुद्र स्वार्थों के चलते इतनी गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग सचमुच में अत्यंत गंभीर विषय है।

सांप्रदायिक विषयों पर जिस तरह से गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ रिपोर्टिंग की परंपरा आप लोगों (महान संपादकों ने) विकसित की थी अब उन सब सिद्धांतों की धज्जियां इस समूह के अखबारों में रोज उड़ाई जाती हैं।

नईदुनिया समाचार पत्र समूह से जुड़े रहे सभी मूर्धन्य पत्रकार इस तरह की पत्रकारिता के बारे में क्या सोचते हैं, मुझे नहीं पता। लेकिन एक पाठक के नाते बस मैं यही कह सकता हूं: हे ईश्वर इन्हें सद्बुद्धि दे, यह नहीं जानते कि यह हमारे महान देश की सर्वधर्म समभाव और सनातन संस्कृति के साथ क्या कर रहे हैं।

नोट: नवदुनिया ही नईदुनिया है। 90 के दशक में अखबार बंटवारे के बाद भोपाल के आसपास नवदुनिया के रूप में छपने लगा था। कालांतर में नई दुनिया के मालिक छजलानी जी ने इसे दैनिक जागरण को बेच दिया अब इस समूह की पत्रकारिता को कानपुर का दैनिक जागरण नियंत्रित करता है।

चीनी मोबाइल्स का मार्किट शेयर देखिये और भारतीय ब्रांड्स कहाँ चली गयीं, ये देखिये.
17/01/2022

चीनी मोबाइल्स का मार्किट शेयर देखिये और भारतीय ब्रांड्स कहाँ चली गयीं, ये देखिये.

Q. क्या दैनिक भास्कर ने महिलाओं के खिलाफ किये गए इतने घृणित अपराध, बुल्ली बाई ऑनलाइन हैरेसमेंट केस, जिस ने पूरे देश ही न...
05/01/2022

Q. क्या दैनिक भास्कर ने महिलाओं के खिलाफ किये गए इतने घृणित अपराध, बुल्ली बाई ऑनलाइन हैरेसमेंट केस, जिस ने पूरे देश ही नहीं वर्ल्ड मीडिया में हलचल पैदा की, कुछ क़ायदे से लिखा है? आर्टिकल, न्यूज़ या एडिटोरियल. कहाँ लिखा है और कितना? आरोपियों, अपराधियों या गिरफ्तारियों के बारे में? अगर इस अख़बार को पढ़ते हों या देखा हो तो ज़रा बताइयेगा. बाक़ी बड़े हिंदी अखबारों ने भी इस पर कोई ध्यान दिया? इतनी बड़ी न्यूज़ जो सायबर सेक्योरिटी और हमारी नयी जनरेशन के भविष्य और कई अहम ऐस्पेक्ट्स से रिलेटेड है, उस पर किसने क़ायदे की न्यूज़ फ्रंट पेज पर छापी है?

A. बमुश्किल 110-120 शब्दों की खबर पेज नंबर 11 पर, सिंगल कॉलम में, यहां निचले हिस्से में है, कितनी डिटेल होगी 120 वर्ड्स में आप अंदाजा लगा सकते हैं. ये इतनी अहम खबर इसलिए भी है कि न सिर्फ फोटो लगा कर ऑक्शन करने की बात हुई बल्की ये जिस सुल्ली डील्स फर्स्ट के बाद हुआ है, तो ये सिर्फ ऑनलाइन नहीं है, पहले केस में एक संदिग्ध जो 'लिबरल डोगे' के नाम से था,

उसने खुद रियल लाइफ में एक मुस्लिम महिला के साथ रेप की बात का दावा किया था, ये लोग न सिर्फ क्रिमिनल बल्कि डी-ह्यूमनाइज़ करने वाले ऐसे मेसेज लिखते हैं, जो इतने वीभत्स होते हैं की हम में से कोई भी शेयर न कर सके, ये रेप पीड़ित मासूम बच्चियों तक को इंटरनेट पर मीम्स बना कर टारगेट करते हैं. ये 'ट्रेड्स या ट्राडस' कहलाते हैं, इनकी कॉन्सपिरेसी का ये आलम है कि क्राइम करते वक़्त किसी और की आइडेंटिटी से करते हैं, ताकि उन ग्रुप्स में सस्पिशन पैदा हो जाये. ये किस तरह के न्यूज़रूम हैं जो इन ख़बरों को छुपाते या गायब करते हैं.

गिटहब और इस तरह के प्लैटफॉर्म्स का इस्तेमाल, ये सारे ऐंगल, ये इतनी बड़ी खबर है, किस तरह नौजवान रेडिकलाइज़ हो कर ये हरकतें कर रहे हैं, अपनी मां की उम्र से बड़ी औरतों के फोटो ले कर उनके साथ ये हरकतें कर रहे हैं, इनमें नजीब की माँ शामिल हैं, इस सब पर खबर अगर छपी भी सिंगल कॉलम तो कोई ज़िक्र नहीं?

यह खबर इतनी अहम इसलिए है कि हर पैरंट को यह जानना चाहिए कि उसके घर में नौजवान या युवा क्या कर रहे हैं कहीं वह इस तरह हेट फैलाने में या जिन चीजों को वह लाइट या सॉफ्ट बायगटरी bigotry के तौर पर डिस्कस करते हैं उसका रिफ्लेक्शन सोशल मीडिया में समुदायों से नफरत के तौर पर तो नहीं है नजर आने लगता है क्योंकि यह बहुत बड़े जोर में हैं और हर पैरंट को इस बारे में पता होना चाहिए ताकि वह घर में रोक-टोक कर सकें समझा सकें

क्या वजह है. न्यूज़रूम में ऐसा क्या हो जाता है जो खबर को छुपाना या दबाना या अंदर के पेज पर ले जाना, तय किया जाता है? कैसे लोग इन न्यूज़रूम्स में हैं जो इस तरह की खबर जो हर हिंदुस्तानी, हर पैरेंट को बेचैन करती है, जिस पर हम सब परेशान हैं रिफ्लेक्ट करना चाहिए, जिस पर इंटरनेशनल मीडिया में बात हो रही है, हर शख्स डिसकस कर रहा है मगर ये इग्नोर करते हैं या छुपा कर छापते हैं, कैसा जर्नलिस्म है

The fiscal situation is not good. So, will liquor policy be framed in accordance?
03/01/2022

The fiscal situation is not good. So, will liquor policy be framed in accordance?

हरिद्वार में जो धर्म संसद के नाम पर हुआ है, तीन दिन तक, वह धर्म है? जिस तरह की धमकियाँ दी गयीं, जो भाषा इस्तेमाल की गयी ...
23/12/2021

हरिद्वार में जो धर्म संसद के नाम पर हुआ है, तीन दिन तक, वह धर्म है? जिस तरह की धमकियाँ दी गयीं, जो भाषा इस्तेमाल की गयी उसका एक फीसद भी कोई और करता तो यूएपीए लग जाता मगर यति नरसिंहानंद, प्रबोधानंद और दूसरों ने जो कुछ कहा, वह देश, समाज और धर्म के साथ तो बिलकुल नहीं हो सकता. पूरे विश्व में रिपोर्टिंग हुई, और अपने यहाँ रोज़ एक कॉलम लिखने वाले पत्रकार और हर बात पर देशद्रोही का टैग देने वाले, चुप, दम साधे बैठे हैं, दरअसल एक लम्बे अरसे की मेहनत से उन लोगों को पत्रकार बनाया गया जो खुद 'परिवार' के ही हिस्से और उसकी भुजाओं से जुड़े हैं, बाक़ी दिल से साथ हैं, वरना ये सब अख़बारों और चैनलों की पहली खबर होती, जिसे गायब कर दिया गया. कमेंट में नीचे लिंक हैं, देखिये. स्पीच सुनिए.

'क़त्ल नहीं हुआ', 'हत्या नहीं हुई', बस आदमी 'मर गया'. पूरी रिपोर्ट पढ़िए और समझिये कितनी मेहनत की गयी है कि रिपोर्टिंग ह...
15/12/2021

'क़त्ल नहीं हुआ', 'हत्या नहीं हुई', बस आदमी 'मर गया'. पूरी रिपोर्ट पढ़िए और समझिये कितनी मेहनत की गयी है कि रिपोर्टिंग हो जाए मगर आरोपी को क़त्ल का या मर्डर का आरोपी न लिखा जाए, जो हुआ उस को हत्या न कहा जाए, बस एक मौत हो गयी और केस दर्ज हुआ, मगर किस धारा में ये भी नहीं बताना.

वरना, ऐसे मर्डर के बाद, आरोपियों के लिंक छान कर और उनकी संस्थाओं के बारे में छपता है, कितनी ऐसी घटनाएं उन्होंने पहले की हैं, अधिकारियों के कोट वगैरा, मगर कुछ नहीं, आपने शातिर लफ्ज़ सुना है!

अखबार क्या लिखते हैं इसका असर अगले दिन सुबह सब पर होता है, पब्लिक माइंड, पुलिस, इन्वेस्टिगेशन, सिस्टम्स, कोर्ट, इसलिए ऐसे अंदाज़ में करते हैं. वैसे भी जान लीजिये कि अख़बार की रिपोर्टिंग किसी भी शख्स की ऐसी इमेज बना सकती है कि वह आपके राज्य में न हो मगर आप उसके खिलाफ हो जाएं और कार्रवाई की मांग करें, इतना दिल में डर बैठ जाये और दूसरा जो दशकों से क्राइम कर रहा हो, उसके लिए पॉज़िटिव माहौल बना दें कि आप उसे अपना ही मान लें. तो ये बहुत बड़ा सिस्टम है, न्यूज़रूम्स में जो लोग हैं, वह जिस लेवल पर फ्रॉड करते हैं, वह समझना आम पब्लिक के लिए आसान नहीं, कई बार आप को पता ही नहीं चलता मगर इशू को इस तरह समझाया जाता है कि आप अपना ही नुकसान कर लें और खुश होते रहें

11/12/2021

[By Vishwa Deepak] "आईआईएमसी के दिनों की बात है. कोई कार्यक्रम था. बेरोजगार तो था ही उम्र भी कम ही थी. 'राष्ट्रवादी बेवकूफ' दीपक चौरसिया अपने चमचों समेत आया था. ज्ञान दे रहा था कि सांप, बिच्छू, बंदर, शेर, ज्योतिष, नाग-नागिन ख़बर की शक्ल में इसलिए चलाया जाते हैं क्यूंकि दर्शक यही देखना पसंद करते हैं. टीवी पत्रकारिता का ग्रामर समझा रहा था....

बहरहाल, मैंने कुछ पूछा (सवाल याद नहीं) जो उसे नागवार गुजरा. बोला : नाम क्या है तुम्हारा? मैंने कहा: तुम्हारा नाम दीपक है, मेरा विश्व दीपक. इसके बाद कुछ अंट शंट बोला और बगल झांकने लगा.

दरअसल, चौरसिया टी वी मीडिया की गंभीर बीमारी का एक छोटा सा नमूना मात्र है. बीमारी इतनी ख़तरनाक है कि अगर इसका इलाज़ नहीं किया गया तो आने वाले कुछ दशकों में यह बीमारी देश का विभाजन करवा देगी.

फिर से दोहरा रहा हूं-- दीपक चौरसिया जिस महा गंभीर बीमारी का एक संकेत मात्र है अगर उसका समय रहते इलाज़ नहीं किया गया तो या तो नॉर्थ ईस्ट या साउथ अलग होने की राह पर चला जाएगा. सब मिसाईल, रफाएल धरे रह जाएंगे.

रही बात शराब पीकर एंकरिंग करने की तो वो वह यह आज से नहीं कर रहा. जब इंडिया न्यूज़ में था, तब भी करता था. आलम यह था कि ग्लास लेकर स्टूडियो में बैठता था. आईआईएमसी के ही दो लड़के बेचारे नौकरी, प्रमोशन के चक्कर में उसकी सेवा किया करते थे.

जिस भी चैनल में डील करता है, अपने कुनबे को भी साथ ले जाता है. इसका कुनबा, एक राज्य संभालता है और यह दिल्ली. चौरसिया के सारे समकालीन जो टीवी मीडिया में उसके बॉस रहे या उसके बराबर रहे सब जानते हैं. कास्टिंग काउच, बार्टर सिस्टम का ज़िक्र करना यहां विषयांतर होगा.

क्या यह मुमकिन है कि इंडिया न्यूज़ का मालिक कार्तिकेय शर्मा यह सब ना जानता हो ? न्यूज़ नेशन के अतुल कुलश्रेष्ठ, संजय कुलश्रेष्ठ इसके बारे में ना जानते हो -- हो ही नहीं सकता.

फिर भी यह लफंग किस्म का आदमी लाखों करोड़ों का पैकेज लेता रहा, समाज में साम्प्रदायिकता का ज़हर घोलता रहा और किसी को आज तक कोई आपत्ति नहीं हुई ?

मुझे तो हैरानी चौरसिया पर कम, इस समाज और सिस्टम पर ज्यादा होती है. हम मरे हुए लोगों का एक झुंड हैं. हमारा समाज अफीम खाकर सोया है. इसने तो सिर्फ शराब पी कर एंकरिंग की है. अगर ऐसा नहीं होता तो इस जैसे एंकर, एंकरानियों को सिर्फ बाहर ही नहीं फेंका जाता बल्कि उन्हें सज़ा भी होती.

चेहरे पर सफेदी पोतकर हर दिन समाज में हिंदू मुस्लिम, सांप्रदायिकता, जाति का काला रंग पोतने वाली यह जमात हिंदुस्तान के लिए बेहद खतरनाक है. तस्वीर उस वक्त की है जब चौरसिया एंड तिहाड़ी चौधरी एंटी सीएए-एनआरसी प्रदर्शन को एक साथ कवर करने गए थे....."

1. हिंदी भाषी सूबों जैसे मध्य प्रदेश में नए और युवा पत्रकारों के लिए सीखने के मौके बहुत कम हैं, बड़े अखबार और वरिष्ठ कहल...
08/12/2021

1. हिंदी भाषी सूबों जैसे मध्य प्रदेश में नए और युवा पत्रकारों के लिए सीखने के मौके बहुत कम हैं, बड़े अखबार और वरिष्ठ कहलाने वाले पत्रकार एक विचारधारा और पार्टी के सिवा कुछ देखना और लिखना नहीं चाहते, इसके नतीजे में अखबारों पर जनता का भरोसा खत्म होता जा रहा है, गंजबासौदा में मिशनरी स्कूल पर हुए हमले और पत्थरबाजी के बाद अखबारों को याद नहीं आया कि अभी कुछ अरसे पहले ही मुख्यमंत्री ने कहा था कि पत्थरबाजी का मकसद भय और आतंक फैलाना होता है और पत्थरबाजों पर चाहे वह कोई भी हों, बेहद सख्त कार्रवाई की जाएगी वसूली भी होगी मगर आप को यह मुनासिब नहीं लगा कि इन सवालात को उठाएं और सरकार से पूछें कि यह कार्यवाही कब होगी और क्या यह संगठन कानून से ऊपर हैं?

2. कहाँ तो पत्थरबाजी पर नए क़ानून के लाने की बात थी, और अब जब बजरंग दल पत्थर बाज़ी कर रहा है तो चुप्पी? वापस पत्रकारिता पर लौटते हैं, कि जिनको लोग वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं या समझते थे, उनको शहर में 2 स्क्वायर किलोमीटर के एरिया के बाहर कोई नहीं जानता, प्रदेश या देश की तो बात ही छोड़ दीजिए, इतनी दयनीय स्थिति हो चुकी है कि भारत में जब पत्रकारिता की बात होती है तो मध्यप्रदेश के हिंदी पत्रकारों का नाम तक नहीं आता जबकि करोड़ों पाठक मौजूद हैं, सबसे बड़ी दिक्कत सिर्फ यह है कि इन्होंने आगे आने वालों की भी राह रोक दी है खुद डेस्क और रिपोर्टिंग पर पत्रकारिता का 'रेस्ट इन पीस' लिख चुके हैं और नई जनरेशन के लिए कुछ नहीं छोड़ा है, और जगह अलग ब्लॉक किए बैठे हैं. इनको न सवाल उठाने हैं, न कुछ पूछना या याद दिलाना है. ये क़सम खा चुके हैं कि पत्रकारिता का क्रिया कर्म करके ही मानेंगे.

1. मध्य प्रदेश के गंज बासौदा में स्कूल को इस तरह टारगेट किया जाता है, अख़बार और चैनल इन हमलावरों के संगठनों का नाम तक हेड...
07/12/2021

1. मध्य प्रदेश के गंज बासौदा में स्कूल को इस तरह टारगेट किया जाता है, अख़बार और चैनल इन हमलावरों के संगठनों का नाम तक हेडलाइनों में नहीं लिखते. आरोपियों के नाम जानने और उनके लिंक से भी दिलचस्पी नहीं, कब तक इन संगठनों को आप बचाते रहेंगे और अगर सिर्फ 'हुड़दंगी' कह कर मामले को दबाते रहेंगे, इस देश में लॉ एंड और्डर का कोई मतलब नहीं रह जायेगा. ये 'भीड़' या 'लोग' नहीं हैं, ये सिर्फ हंगामा नहीं, बल्कि हमला है, माहौल खराब करना है, दहशत फैलाना है.

2. नाम लीजिये और बताइये कि ये कैसे संगठन हैं, इनकी क्या विचारधारा है, ये इस देश की इमेज पूरी दुनिया में खराब करने पर तुले हैं. एक आदमी चुटकुला नहीं सुनाता और गिरफ्तार हो जाता है कि वह सुना सकता था, मगर जो लोग हमले करते हैं, उन पर सख्त धाराएं नहीं लगतीं, हद तो ये है रिपोर्ट्स में उन संगठनों के नाम तक नहीं लिखे जाते. पत्रकारों के क्या क़सम खाई है कि देश में ऐसे संगठनों को क्लीन चिट देने, बचाने और उनकी इमेज को क्लीन करने की? क्यूँ इनके कारनामे दबाते हैं, छुपाते हैं? ऐसा क्या रिश्ता है? यूं, दिन रात विशेष टिप्पणियां लिखने वाले, पत्रकार सब मुंह बंद किये और क़लम की सियाही सुखाये नज़र आते हैं. मध्य प्रदेश में कैसी पत्रकारिता होती है, ये आप समझ सकते हैं. वरिष्ठ पत्रकार विचार करें और अगली पीढ़ियों को बचा लें.

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