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Maha Media Magazine Maha Media - National Social Monthly Magazine

‘‘महामीडिया’’ राष्ट्रीय सामाजिक मासिक पत्रिका भारतवर्ष में प्रकाशित होने वाले लाखों समाचार पत्रों-पत्रिकाओं की भीड़ में केवल एक नये सदस्य के रूप में सम्मिलित नहीं हो रही है । अपने नामानुरुप यह एक ‘‘महा’’ पत्रिका का स्थान अतिशीघ्र लेगी । प्रारम्भ में केवल हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित ‘‘महामीडिया’’ भविष्य में अन्य भारतीय भाषाओं में भी प्रकाशित करने की योजना है । ‘‘महामीडिया मानव जीवन के जन्म

से मृत्यु पर्यन्त समस्त पक्षों और पहलुओं के समाचार, शोध् व अनुसंधन, सामाजिक समस्याओं एवं उनके भारतीय परम्परागत व आध्ुनिक विज्ञान से पोषित समाधन आदि विषयों का प्रकाशन करेगी । समाज के सभी वर्ग चाहे वे विद्यार्थी, कर्मचारी, व्यवसायी, किसान, स्वरोजगारी, महिलायें, मजदूर, नौकरीपेशा, शिक्षक, चिकित्सक, अभियन्ता कोई भी हों या पिफर एक मत वाले व्यक्तियों या व्यवसायियों के कोई संगठन हों, सभी के लिये ‘‘महामीडिया’’ के प्रत्येक अंक एक संदर्भ ग्रंथ की तरह उपयोगी होंगे । वैश्विक परिदृश्य तीव्रता से परिवर्तित हो रहा है । भारतीय जीवन शैली को विश्व भर में घटित हो रही लगभग समस्त घटनायें प्रभावित करती हैं । उतरती चढ़ती अर्थव्यवस्था, राजनीतिक उथल-पुथल, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भयावह परिणाम कारक युद्ध राष्ट्रों के मध्य शीतयुद्ध कारक कूटनीतिक आदान प्रदान, उच्च पदों पर आसीन प्रबंधक व राजनीतिज्ञों का भ्रष्टाचार और चरित्राहीनता, नई-नई शिक्षा पद्धतियों और विषयों के उदय के बावजूद भी शिक्षा का गिरता स्तर आदि घटनायें पवित्रा जनमानस को झकझोरती हैं, दुख व कष्ट पहुंचाती हैं । कहने को तो भारत की राजनीतिक व्यवस्था विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्रा है, किन्तु शायद लोकतन्त्रा का हनन, दुरुपयोग, लोकतंत्रा के उद्देश्यों और सिद्धंान्तों के विरुद्ध कार्य करने और खेल खेलने वाला भी सबसे बड़ा राष्ट्र भारत ही है ।
यहां हर विषय पर बातें तो बहुत लम्बी चौड़ी होती हैं, केन्द्र व अनेक राज्य सरकारें जनता की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ रूपये केवल दिखावे और सैर सपाटे के लिये आयोजित अनुपयोगी संगोष्ठियों, समीक्षाओं, समितियों, सभाओं, कार्यशालाओं पर प्रतिवर्ष खर्च कर देती हैं । परिणाम वही होता है, जैसा है वही ठीक है । भारतीय स्वतंत्राता के छ: दशकों के स्वराज में भी हम भारत को ‘‘प्रतिभारत भारत ’’् नहीं बना पाये, क्यों ? विदेशों से शिक्षा प्राप्त कर विदेशी मानसिकता के जन-प्रतिनिध् िकेवल राष्ट्रीय राजधानी और कुछ प्रान्तों की राजधनियों की भव्य शाही व्यवस्था और स्वागतों का स्वाद ही चखते रह गये। सामान्य जन और उनका जीवन, गांवों और गरीबों का दुख, उनकी अशिक्षा, उनकी समस्या जहाजों और हेलिकाप्टरों की ऊंचाई से अनदेखी रह गई । जन सामान्य की आवाज उठाने वाले अपराध्ी और देशद्रोही माने जाने लगे और देशहित को अनदेखा करने वाले अहितकारी, भ्रष्ट तरीकों से कमाये ध्न के उपयोग और उपभोग से प्रचार प्रसार साध्नों का दुरुपयोग कर राष्ट्रभक्त का सम्मान प्राप्त करने लगे। स्वराज तो भारत को मिला, स्वतंत्राता तो घोषित हुई पर इन शब्दों की गहनता तो छोड़ें, शाब्दिक अर्थ तक का लाभ जनमानस को नहीं मिला । ‘‘स्व’’ यानि आत्मा, आत्मचेतना, स्व के तंत्रा का लाभ जनमानस को नहीं मिला । ‘‘स्व’’ का राज्य, आत्मा का राज्य इसकी चर्चा कहीं नहीं हुई । यदि स्वतंत्रा भारत की प्रथम सरकार भारतीयता को पकड़ कर चली होती तो भारत सच्चे अर्थों में आज ‘‘प्रतिभारत स्वतंत्रा स्वराजमय जगद्गुरु’’ भारत होता । आज हमें पड़ोसी राष्ट्र, मित्रा राष्ट्र, दूर बैठे राष्ट्र छोटी-छोटी बातों पर आंखें न दिखाते । केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारों ने आध्ुनिक ज्ञान विज्ञान के तो हर विषय का आयात कर लिया किन्तु भारतीय ज्ञान-विज्ञान, वेद-विज्ञान, शाश्वत नित्य अपौरूषेय ज्ञान की शिक्षा-दीक्षा पर न विचार ही किया, न उसका संरक्षण किया, न संवधर््न किया और न ही भारतीय प्रशासन व्यवस्था के किसी भी विभाग में इस बहुमूल्य ज्ञान का कोई उपयोग किया । परिणाम स्पष्ट है । केवल आध्ुनिक, अपरीक्षित, बिना पुख्ता सिद्धांतों के द्वारा जिस तरह का प्रशासन अन्य देशों में होता है और उस प्रशासन के जिस तरह के गंभीर परिणाम निकलते हैं, वैसी ही व्यवस्था और उसके परिणाम भारत वर्ष में भी दिखाई देने लगे हैं । प्रशासन का लगभग हर क्षेत्रा में असफल होना, आम नागरिकों में बढ़ती निराशा, दु:ख, आक्रोश, आन्दोलनों की बढ़ती संख्या, विद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षा के स्तर में गिरावट, महंगाई का लगातार बढ़ना, बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ता अपराध, प्रमुख पदों पर आसीन व्यवसाय, मीडिया, प्रशासन, न्याय व्यवस्था और राजनीतिज्ञों की भ्रष्टाचारी प्रवृत्ति और कारगुजारियों का हर दिन नया खुलासा, व्यक्तिगत और राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह, आखिर हमारे भारत की किस स्थिति को दर्शा रहा है? ‘‘मेरा भारत महान’’, ‘‘स्वर्णिम भारत’’ और ‘‘अतुल्य भारत’’ इन विज्ञापनों से क्या भारत सचमुच महान, स्वर्णिम और अतुल्य हो जायेगा? शायद इन विज्ञापनों को लिखने वालों को यह ज्ञान नहीं है कि भारत वर्ष तो अनादि काल से इस तरह की विशेषताओं से भरा पड़ा है । आवश्यकता भारत के इन गुणों को संरक्षित और संवधर््ित करने की है । भारतीय शाश्वत ज्ञान, विज्ञान, सि(ांत और प्रयोगों को न केवल भारतीयों में वरन् सम्पूर्ण विश्व के कोने-कोने में विस्तार करने की आवश्यकता है । वर्तमान और भविष्य की सारी मानवता को भारत ज्ञान शक्ति, क्रिया शक्ति, स्थायी शांति, समस्त सुख, अभय, अजेयता, भूतल पर स्वर्ग का आनन्द, धर्म, अर्थ, कामनाओं की पूर्ति और जीवन के परम लक्ष्य - मोक्ष का उपहार प्रदान कर सकता है । महामीडिया द्वारा आगामी अंकों में जीवनोपयोगी समाचारों, लेखों, समस्यों, समाधनों का निरन्तर प्रकाशन होता रहेगा। समस्त पाठकों से अनुरोध् है कि वे अध्कि से अध्कि पारिवारिक सदस्यों, मित्रों, सम्बंध्यिों, संस्थाओं को महामीडिया के विषय में सूचित करें और अपने जीवन के ऊर्ध्वगामी विकास के लिए महामीडिया पढ़ते रहने को प्रोत्साहित करें । महामीडिया की ओर से भारत वर्ष के सभी विद्वानों, विचारकों, बु(िजीवियों और छोटे-छोटे शहरों, नगरों, पंचायतों, गांवों के स्थानीय लेखकों, सम्पादकों का आवाहन है कि वे अपने-अपने क्षेत्रा के समाचारों से, अपने-अपने विषय के लेखों से, विचारों से महामिडिया को अवगत करायें और महामीडिया के पावन मानव कल्याणकारी संकल्प को पूर्ण करने हेतु अपनी शुभकामनायें प्रेषित करें ।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग्भवेत्

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