The Better India - Hindi

The Better India - Hindi The Better India - Hindi reports positive and happy stories & unsung heroes
(27)

09/12/2024

अपनी और अपने जैसे हर आम इंसान की आवाज बनने के लिए आठवीं पास मोची ने एक ऐसा कदम उठाया कि आज वह हर महिने हजारों लोगों की परेशानी की आवाज बन रहे हैं ।


[ Mochi Patrakar From Bhopal, Suresh Nandmeher, Bal Ki Khal Magazine, Changemaker, Journalism, Cobbler Journalist, Madhya Pradesh ]

क्या आपने हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म पुष्पा 2 देखी और अगर फिल्म देखकर आप भी यह सोच रहे हैं कि कैसे अल्लू अर्जुन यानी फि...
09/12/2024

क्या आपने हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म पुष्पा 2 देखी और अगर फिल्म देखकर आप भी यह सोच रहे हैं कि कैसे अल्लू अर्जुन यानी फिल्म का हीरो लाल चंदन की तस्करी करके अमीर बन गया?
तो आपके सभी सवालों का जवाब और लाल चंदन लकड़ी से जुड़ीं हर जरूरी बात जानें –

1.अपने आप में अनोखा और बेशकीमती है यह दुर्लभ पेड़ जिसे "रक्त चंदन' के नाम से जाना जाता है। ये पेड़ सिर्फ आंध्र प्रदेश की शेषाचलम पहाड़ियों में ही उगते हैं।

2. इस पेड़ की लकड़ी चटक लाल रंग की होती है जिसमें कई औषधीय गुण तो होते ही हैं। साथ में यह लक्जरी फर्नीचर, संगीत वाद्ययंत्र और पारंपरिक चिकित्सा में भी खूब इस्तेमाल होता है।

3.चीन के आखिरी शाही राजवंश, किंग वंश के दौरान रक्त चंदन के फायदों और उपयोगों को उजागर किया गया। आज भी पूर्वी एशिया में सुंदरता और उपयोगिता के कारण इसकी डिमांड बहुत है।

4.दरअसल,यह बेशकीमती पेड़ बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है और इसे पूरी तरह से बढ़ने में 50-60 साल लगते हैं। शायद यही कारण है कि इसकी लकड़ी बेहद दुर्लभ और महंगी हो जाती है।

5.एक किलो रक्त चंदन की कीमत आज 90,000 से डेढ़ लाख तक होती है। इसी वजह से यह लकड़ी पूरे एशिया के अवैध व्यापारियों के बीच चर्चा में रहती है।

6.रक्त चंदन को CITES (कंसर्वेशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड इन एंडेंजर्ड स्पीशीज) के तहत लिस्टेड रखा गया है। इतना ही नहीं इसे भारतीय कानूनों के तहत संरक्षित भी किया जाता है।

7.इसके निर्यात पर सख्त रूप से प्रतिबंधित है ताकि इसके अत्यधिक उपयोग को रोका जा सके। बावजूद इसके तस्कर कभी इस लकड़ी को ग्रेनाइट की स्लैब्स के रूप में छिपा कर बाहर बेचते हैं, तो कभी टॉयलेटरीज़ के रूप में। लेकिन, DRI (डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस) जैसी एजेंसी इन तस्करी नेटवर्क पर कड़ी कार्रवाई कर रही है।

आज यह पेड़ सिर्फ एक लकड़ी नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, जिसे सुरक्षा और संरक्षण की विशेष जरूरत है।


[Facts, trivia, Pushpa2, red sandalwood ]

शिमला की बर्फबारी देखने का शौक है, लेकिन इन्टरनेट पर भीड़-भाड़ वाले नज़ारे देखकर प्लान नहीं बना रहे तो यह स्टोरी आपके लि...
09/12/2024

शिमला की बर्फबारी देखने का शौक है, लेकिन इन्टरनेट पर भीड़-भाड़ वाले नज़ारे देखकर प्लान नहीं बना रहे तो यह स्टोरी आपके लिए ही है।
Swipe करें और जानें कुछ ऐसी जगहों के नाम जहां जाकर आप शिमला के snowfall का मज़ा भी ले पाएंगे >>>



[Shimla | Himachal Pradesh | Snow Fall | Winter | Travel | Tourism ]

09/12/2024

कॉलेज के फाइनल इयर में हुए हादसे ने अभय को हमेशा के लिए Paralyzed कर दिया, वह व्हीलचेयर पर आ गए, पढ़ाई छूट गई, करियर पर ब्रेक लग गया, लेकिन अभय ने अपनी कहानी खुद लिखी अपने हौसले से।
इलाज के दौरान ही अभय को अपनी जिंदगी का प्यार मिला, जो आज उनकी हमसफर है, यही नहीं व्हीलचेयर पर रहकर उन्होंने सबसे ऊंचाई से Bungee Jumping की और सबको हैरान कर दिया।

[Wheelchair Bungee Jumping, Adventure Sports, First Indian Achievers]

क्या आप भारत की इस बहादुर बेटी के बारे में जानते हैं, जिन्होंने 1940s-50 के दौर में अपने हुनर और करतब से लोगों को हैरान ...
09/12/2024

क्या आप भारत की इस बहादुर बेटी के बारे में जानते हैं, जिन्होंने 1940s-50 के दौर में अपने हुनर और करतब से लोगों को हैरान कर दिया था!

1940s-50s के जिस दौर में महिलाओं का घर से निकलना भी बड़ी बात थी, तब अपनी शक्ति और योग कला के लिए वह कोलकाता में एक जाना-माना नाम थीं।

1930 में बंगाल के कुमिल्ला में जन्मीं रेबा रक्षित को बचपन से ही खेल, कसरत, दौड़, तैराकी और पेड़ों पर चढ़ने का काफ़ी शौक़ था।

कुमिल्ला से उनका परिवार कोलकाता शिफ्ट हो गया था, जहाँ उन्होंने परिवार की मर्ज़ी के खिलाफ जाकर National Sports and Strength Association में दाखिला लिया।

वह कोलकाता के कॉलेज ऑफ़ फिजिकल कल्चर में बिष्णु चरण घोष की शिष्या थीं और Therapeutic yoga में माहिर थीं।

रेबा अपने शरीर पर भारी से भारी वज़न सहने की अद्भुत शक्ति रखती थीं।

ज़ाहिर है कि यह आसान नहीं था। कपड़ों से लेकर पेशे तक, उनके हर निर्णय पर लोगों ने खूब विरोध जताया; लेकिन रेबा अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीना जानती थीं।

कोलकता की सर्कस कंपनियों के साथ काम करते हुए वह दिन में दो, कभी-कभी तीन शोज़ भी किया करती थीं।

सेने पर मोटरसाइकिल उठाने वाली इस लड़की को देखने के लिए लोगों का तांता लगा रहता था। सर्कस कंपनी रेबा का हुनर और करतब के दम पर खूब टिकट बेचती थी।

मोटरसाइकिल उठाने वाले करतब में महारत हासिल करने के बाद रेबा ने बड़ी हिम्मत कर हाथी के साथ स्टंट करना शुरू किया था।

अपने सीने पर लकड़ी के तख्ते रखकर वह उसपर से हाथियों के चलने का स्टंट दिखाती थीं। उनका साहस देखकर दर्शक हैरान रह जाते थे।

1960 के दौर में उन्होंने यह करतब आठ साल तक सर्कस में दिखाया और खूब नाम कमाया।

इसके बाद शोहरत से दूर होकर उन्होंने महिलाओं को योग और व्यायाम सिखाया। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया।

2010 में रेबा रक्षित का निधन हो गया। क्या आप भारत की इस बहादुर बेटी के बारे में जानते थे?



[Reba Raksh*t | Inspiring | Motivation | History | Indian History | Indian Women | Circus ]

Thar Desert की Lifeline ही नहीं, यह Indian Desert Golden Tree और State Tree of Rajasthan भी कहलाता है! इसे 1983 में राजस...
09/12/2024

Thar Desert की Lifeline ही नहीं, यह Indian Desert Golden Tree और State Tree of Rajasthan भी कहलाता है! इसे 1983 में राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था।

इस पेड़ की उम्र 5 हजार साल तक हो सकती है। इसकी लकड़ी मज़बूत होती है, जिसका इस्तेमाल ईंधन, फर्नीचर और यज्ञ पूजन में किया जाता है। इसकी जड़ से ही हल भी बनाया जाता है। राजस्थान में मशहूर सांगरी की सब्जी का फल भी इसी पेड़ से ही प्राप्त होता है।

ऐसा माना जाता है कि रेगिस्तान में अकाल के दौरान इस वृक्ष ने भोजन और ज़रूरी चीज़ें देकर पूरे गाँव के जीवन की रक्षा की थी।

क्या आप जानते हैं यह कौनसा पेड़ है? कमेंट करके ज़रूर बताइए।



[Sustainable Living, Save Trees, Rajasthan, Thar Dessert, Plant Trees]

पश्चिम बंगाल के रायगंज से जब मिंटू सरकार KBC में भाग लेने मुंबई आए, तो उनके अकाउंट में महज़ 300-400 रुपये बचे थे। साथ ही...
09/12/2024

पश्चिम बंगाल के रायगंज से जब मिंटू सरकार KBC में भाग लेने मुंबई आए, तो उनके अकाउंट में महज़ 300-400 रुपये बचे थे। साथ ही था दिल में जज़्बा और अपने ज्ञान पर विश्वास।

अपनी क्विक थिंकिंग और सूझबूझ से वह हॉट सीट पर पहुँचे और फिर वो कर दिखाया जो करोड़ों में शायद ही कोई एक कर पाएगा।

जीवन के मुश्किल हालातों और आर्थिक तंगी से लड़ते हुए उन्होंने शिक्षा पाई; वो भी किसी स्कूल या कॉलेज से नहीं, बल्कि पढ़ाई में अपनी रुचि और जिज्ञासा से! क्योंकि कॉलेज जाने का तो उन्हें मौक़ा ही नहीं मिला!

शिक्षा के लिए बेटे को प्रेरित करने वाले उनका पिता का इस साल जनवरी में निधन हो गया, और परिवार की जिम्मेदारियों ने मिंटू को चाय की दुकान पर बैठा दिया। सीमित आय के बावजूद, उन्होंने कभी हौसला नहीं खोया।

केवल 10वीं पास मिंटू रायगंज में चाय की दुकान चलाते हैं और महज 3,000 रुपये प्रति महीने की आय पर परिवार का पालन-पोषण करते हैं।

सरकारी राशन योजनाओं से गुजर-बसर करने वाले हिम्मती मिंटू कई सालों से KBC में आने की कोशिश कर रहे थे, जो आखिरकार इस साल सफल हुई।

मिंटू ने बड़ी समझदारी से शो में सवालों का सामना किया और एक के बाद एक सही जवाब देते हुए, अपने ज्ञान के दम पर 25 लाख रुपये जीत लिए।

उनकी कहानी ने न केवल दर्शकों को भावुक कर दिया, बल्कि देखने वाले हर एक शख़्स के मन को प्रेरणा से भर दिया। सबके दिल में बस यही बात थी कि इतनी मुश्किलों को हराकर, बिना सुविधाओं के अगर मिंटू यहाँ तक पहुँच सकते हैं; तो हम क्यों नहीं!!

"तुमसे इतनी पढ़ाई नहीं हो पाएगी।"उज्जवल ने BPSC की तैयारी के लिए जब अपनी प्राइवेट जॉब छोड़ी तो रिश्तेदारों ने उन्हें काफ...
09/12/2024

"तुमसे इतनी पढ़ाई नहीं हो पाएगी।"
उज्जवल ने BPSC की तैयारी के लिए जब अपनी प्राइवेट जॉब छोड़ी तो रिश्तेदारों ने उन्हें काफ़ी ताने दिए।

लेकिन पिछले महीने जब 69वीं BPSC परीक्षा का परिणाम जारी हुआ, तो बिहार के सीतामढ़ी के नानपुर के रहने वाले उज्ज्वल कुमार उपकार ने टॉप करके उन सभी लोगों को गलत साबित कर दिया, जिन्होंने उनपर भरोसा नहीं किया था।

हाजीपुर के प्रखंड कार्यालय के पीछे किराए के मकान में 4 महीने से रह रहे उज्जवल एक सरकारी स्कूल से पढ़े हैं। उनके पिता एक शिक्षक हैं और माँ आंगनवाड़ी में काम करती हैं।

माता-पिता ने काफ़ी संघर्षों के साथ बेटे को इंजिनीरिंग कराई। उसके बाद जब उन्होंने बिहार लोक सेवा आयोग परीक्षा की तैयारी शुरू की तो उनके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह कोचिंग कर सकें।

सेल्फ स्टडी करके वह पहले कल्याण पदाधिकारी के पद पर तैनात हुए और फिर, 4 महीने बाद ही वह BPSC क्रैक कर DSP बन गए।

वह 10 साल में हिंदी मीडियम से पढ़ने वाले पहले BPSC टॉपर हैं! तीसरी बार में उज्ज्वल ने यह उपलब्धि हासिल कर महत्वाकांक्षी युवाओं के लिए एक उदाहरण पेश कर दिया है।



[Inspiring | Motivation | BPSC Topper | Never Giv Up | DSP | Monday Motivation ]

"मैंने जब चपरासी की नौकरी ज्वाइन की तो लोग मुझे ताने मारते थे, लेकिन मैं इससे विचलित नहीं हुआ और अपनी तैयारी जारी रखी। म...
09/12/2024

"मैंने जब चपरासी की नौकरी ज्वाइन की तो लोग मुझे ताने मारते थे, लेकिन मैं इससे विचलित नहीं हुआ और अपनी तैयारी जारी रखी। मई मानता हूँ कि कोई भी नौकरी बड़ी या छोटी नहीं होती, क्योंकि हर पद की गरिमा होती है। चाहे वह चपरासी हो या डिप्टी कलेक्टर, हर नौकरी में ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ काम करना होता है।"
-- असिस्टेंट कमिश्नर शैलेन्द्र बांधे

29 साल के शैलेंद्र छत्तीसगढ़ शासन में चपरासी
की नौकरी करते थे, लेकिन साल 2023 में 73rd रैंक के साथ CGPSC Exam क्रैक कर वह उसी ऑफिस में असिस्टेंट कमिश्नर बन गए!

दरअसल, शैलेन्द्र ने रायपुर NIT से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की थी। वैसे तो वह अफ़सर बनना चाहते थे लेकिन
CGPSC-2023 की प्रारंभिक परीक्षा पास कर उन्होंने अपने किसान पिता की आर्थिक मदद करने के लिए चपरासी की नौकरी स्वीकार कर ली।
पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अधिकारी बनने के लक्ष्य से नौकरी के साथ-साथ CGPSC परीक्षा की तैयारी करते रहे। उन्हें चार बार असफलता मिली, लेकिन वह इससे निराश नहीं हुए और कोशिश करते रहे। अपने पांचवें प्रयास में शैलेंद्र ने आखिरकार मुकाम हासिल कर लिया और उसी ऑफिस में अफ़सर बन गए जहाँ वह प्यून का काम करते थे!

"मैं अपने बेटे की कड़ी मेहनत और लगन को सलाम करता हूँ। वह पाँच सालों तक बिना रुके तैयारी करता रहा। मुझे उम्मीद है कि मेरा बेटा उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा बनेगा जो सरकारी नौकरी पाने की तैयारी कर रहे हैं, और देश सेवा के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
- संतराम बांधे, शैलेंद्र बांधे के पिता



[Inspiring | Monday Motivation | Success Story | CGPSC | Never Give Up ]

बिहार के सत्येंद्र दुबे की कहानी अन्याय और अनैतिकता के सामने आवाज उठाने की हिम्मत देती है।1.IIT ग्रेजुएशन सतेंद्र दुबे क...
09/12/2024

बिहार के सत्येंद्र दुबे की कहानी अन्याय और अनैतिकता के सामने आवाज उठाने की हिम्मत देती है।

1.IIT ग्रेजुएशन सतेंद्र दुबे का सफर सिर्फ पैसे कमाने की होड़ बल्कि देश के प्रति जिम्मेदारी की भावना से शुरू हुआ था, यही कारण था कि उन्होंने IES की नौकरी को चुना।

2.2003 में, सतेंद्र ने बिहार में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के गोल्डन क्वाड्रिलैटरल प्रोजेक्ट में परियोजना निदेशक के रूप में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाली।

3. इसी दौरान उन्होंने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया। घटिया सामग्री, बढ़ी हुई लागत और अनियमितताएँ इस परियोजना को नुकसान पहुँचा रही थीं जिससे लोगों की जान को जोखिम था, यह सब देखकर वह चुप नहीं रह सके।

4.उन्होंने उच्च अधिकारियों को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर किया और जांच और कार्रवाई की माँग की। हालांकि, इस साहसी कदम की उन्हें भारी कदम चुकानी पड़ी।

5.27 नवंबर 2003 को सतेंद्र दुबे की कार पर हमला किया गया और उन्हें बिहार के गया में गोली मारकर हत्या कर दी गई। और इस तरह देश ने उस व्यक्ति को खो दिया जिसने सच बोलने की हिम्मत दिखाई थी।

6.इस निर्भय और साहसी कदम को उन्होंने अपने शब्दों कुछ यूं बंया किया था- "मैं अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ। अगर इसके लिए मुझे सजा मिलती है, तो मैं उसे सहने के लिए तैयार हूँ।"

7.हालाँकि, सतेंद्र ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाकर अपनी जान खो दी, लेकिन उनकी बहादुरी ने एक आंदोलन की शुरुआत की। उनके परिवार, साथियों और देशभर के नागरिकों ने न्याय और सार्वजनिक परियोजनाओं में पारदर्शिता की माँग की।

8.2006 में, सरकार ने whistleblower protection की आवश्यकता को समझा और इस तरह सतेंद्र के बलिदान ने प्रशासन में मजबूत कानून और बेहतर निगरानी के लिए नए रास्ते बनाएं।

सत्येंद्र की आवाज को भले ही हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया हो, लेकिन उनकी अटूट हिम्मत कइयों के लिए प्रेरणा बनी और बदलाव का राष्ट्रव्यापी आंदोलन भी।

सत्येंद्र दुबे जैसे निडर अधिकारी के साहस और बलिदान को द बेटर इंडिया का शत-शत नमन!!



[International Anti Cortuption Day | Inspiring | Honesty | Real Heroes | Motivation | Anti Corruption ]

“मैं वृन्दावन की बेटी हूँ और आज यहीं पर सैंकड़ों माताओं की सेवा कर रही हूँ।”पेशे से एक कॉलेज प्रोफेसर, 60 साल की लक्ष्मी...
08/12/2024

“मैं वृन्दावन की बेटी हूँ और आज यहीं पर सैंकड़ों माताओं की सेवा कर रही हूँ।”

पेशे से एक कॉलेज प्रोफेसर, 60 साल की लक्ष्मी गौतम का एक मिशन सड़क पर रहने वाली कई बेसहारा महिलाओं के लिए जीवन यापन का सहारा बन चुका है। लक्ष्मी का फ़ोन हमेशा बजता रहता है, क्योंकि उन्हें दिन भर में बुज़ुर्गों को रेस्क्यू करने के लिए सैंकड़ों कॉल्स आती हैं।

वह वृन्दावन की सड़कों से बीमार और अकेले रह रहीं वृद्ध महिलाओं को रेस्क्यू कर उन्हें घर, पेट भरने के लिए भोजन, दवाई और अच्छी ज़िंदगी जीने का ज़रिया प्रदान करने का नेक काम रही हैं। अपनी संस्था,‘कनक धारा’ के माध्यम से वह उन लोगों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार भी करती हैं जिनके आगे-पीछे कोई नहीं और वह सड़क पर पड़े-पड़े ही प्राण त्याग देते हैं।

और इसी वजह से शहर के लोग उन्हें ‘एंजल ऑफ़ वृन्दावन’ के नाम से भी जानते हैं।

विधवा हो जाने के बाद जिन महिलाओं के परिवार वाले भी उन्हें लाचार छोड़ देते हैं, और वे मोक्ष प्राप्ति की इच्छा में वृन्दावन की सड़कों पर रहतीं, भीख मांगती हैं; उनके जीवन का सहारा ही नहीं, बल्कि लक्ष्मी गौतम मृत्यु के बाद उनका सम्मान भी बनती हैं।

अब तक वह ऐसी 1000 से ज़्यादा विधवाओं का विधि-विधान से अंतिम संस्कार कर चुकी हैं। इस काम में उनके समर्पण के कारण उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

इतना पढ़े-लिखे होने के बावजूद अपनी आरामदायक ज़िंदगी को छोड़, इस उम्र में भी दूसरों के लिए समर्पित होना तो कोई इनसे सीखे!



[Inspiring | Motivation | Humanity | Kindness | Women Empowerment ]

08/12/2024

एक इंसान की सोच और एक खास कदम की बदौलत 80 सिंगल सीनियर सिटिज़न को जीवन के ढलते पड़ाव में मिला एक जीवन साथी का साथ।
कैसे आया पुणे माधव दामले को यह ख्याल और क्या काम कर रहे हैं वो जानिए इस वीडियो में।

[ Happy Seniors Club in Pune, Madhav Damle, Senior Citizen, Second Inning, Senior Citizen]

सर्दियाँ धीरे-धीरे दस्तक दे रही है! इस मौसम में, भारत के हर कोने में एक ख़ास व्यंजन तैयार किया जाता है, जो मानो सर्दियों...
08/12/2024

सर्दियाँ धीरे-धीरे दस्तक दे रही है! इस मौसम में, भारत के हर कोने में एक ख़ास व्यंजन तैयार किया जाता है, जो मानो सर्दियों के लिए खासतौर पर रिज़र्व रखी गयी हो, जैसे कहीं तिलकुट, कहीं पीठा, तो कहीं गजक। आपके किचन में सर्दियों के लिए क्या तैयार किया जाता है? हमें कमेंट कर, जरूर बताएं! यदि हमसे किसी व्यंजन का नाम छूट गया हो, तो वह भी बताएं।

गुजरात में स्थित इन हवेलियों में भारतीय इतिहास की झलक दिखाई देती है। ये हवेलियां ब्रिटिश काल के दौरान बनाई गई थीं और इनम...
08/12/2024

गुजरात में स्थित इन हवेलियों में भारतीय इतिहास की झलक दिखाई देती है। ये हवेलियां ब्रिटिश काल के दौरान बनाई गई थीं और इनमें से कुछ 100 साल से भी ज़्यादा पुरानी हैं।

इन खूबसूरत हवेलियों को बनाने के लिए यूरोपियन विक्टोरियन आर्किटेक्चर का इस्तेमाल हुआ है।

क्या आप जानते हैं ये गुजरात में कहाँ पर स्थित हैं? हमें कमेंट बॉक्स में बताएं।

गरीब का दर्द वही समझ सकता है जो इससे गुज़रा हो! शायद इसीलिये दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल थान सिंह, सारा दिन ड्यूटी कर...
08/12/2024

गरीब का दर्द वही समझ सकता है जो इससे गुज़रा हो! शायद इसीलिये दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल थान सिंह, सारा दिन ड्यूटी करने के बाद समाज की ड्यूटी भी निभाते हैं। बचपन में पैसों के अभाव से जूझकर यहाँ तक पहुंचे थान सिंह, आज ज़रूरतमंद बच्चों के लिए 'थान सिंह की पाठशाला' चला रहे हैं।

"लाल किला के पास मेरी एक छोटी-सी पाठशाला चल रही है, जिसमें आस-पास के मजदूरों के बच्चे फ्री में पढ़ने आ सकते हैं। ये वही बच्चे हैं जो पहले सड़कों पर घूमा करते थे, भीख माँगते, कचरा बिनते थे। मैंने सोचा कि क्यों ना इनके लिए एक पाठशाला खोली जाए। ताकि ये बच्चे क्राइम से दूर रहें।

2015 में 4 बच्चों के साथ मैंने यह पाठशाला शुरू की थी; आज मेरे पास 80 से ऊपर बच्चे हैं। अगर ये बच्चे जीवन में कुछ अच्छा करते हैं तो इससे बड़ी कामयाबी मेरे लिए और क्या होगी।"
- थान सिंह

थान सिंह का बचपन भी बेहद गरीबी में बीता था। उनका परिवार लोगों के कपड़े इस्त्री करके अपना गुज़ारा करता था। थान सिंह ने खूब मेहनत कर अपनी पढ़ाई पूरी की और आज वह दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल के पद पर हैं।

अपनी इस पाठशाला में वह बच्चों को किताबें, कॉपी और बाकी ज़रूरी चीज़ें भी देते हैं। साथ ही दूर से आने वाले बच्चों के लिए उन्होंने एक ई-रिक्शा का भी इंतज़ाम किया हुआ है।

यहां बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के बाद, वह उनका दाखिला किसी बड़े स्कूल में करा देते हैं। उनका मानना है कि शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है और कोई भी बाधा शिक्षा के आड़े नहीं आनी चाहिए। जो बच्चे गरीबी के कारण प्राथमिक शिक्षा से वंचित हैं, 'थान सिंह की पाठशाला' उनके लिए एक उम्मीद की किरण से कम नहीं है।

गुजरात के डीसा में ‘सुदामा वृद्धाश्रम’ चला रहीं, 31 साल की आशा राजपुरोहित ने यहाँ रहनेवाले 22 बुजुर्गों की सेवा के लिए अ...
08/12/2024

गुजरात के डीसा में ‘सुदामा वृद्धाश्रम’ चला रहीं, 31 साल की आशा राजपुरोहित ने यहाँ रहनेवाले 22 बुजुर्गों की सेवा के लिए अपने खुद के परिवार, यहाँ तक कि बेटे को भी खुद से दूर कर दिया, ताकि वह अपना पूरा जीवन ओल्ड एज होम में रह रहे बुज़ुर्गों की सेवा में लगा सकें। आज वह यहां इन बुजुर्गों का परिवार बनकर रहती हैं।

आशा बताती हैं, “मैं पांच साल से यहां रह रही हूँ और मुझे यहां इतना मज़ा आता है कि कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी माँ ने मुझे इसी काम के लिए जन्म दिया है।”
दरअसल, इस ओल्ड एज होम की शुरुआत 14 साल पहले उनके पिता कांतिलाल राजपुरोहित ने की थी। उन्होंने आस-पास के बेसहारा और दिव्यांग बुजुर्गों की सेवा के लिए इस आश्रम की शुरुआत की थी।

करीबन 10 साल अपने दम पर आश्रम चलाने के बाद उनका निधन हो गया। अपने आखिरी समय में उन्होंने इस आश्रम को चलाने की जिम्मेदारी अपनी बेटी, आशा को सौंपी थी।आशा बेन ने पिता के वचन के लिए अपने गृहस्थ जीवन को छोड़ने का फैसला किया। यहां तक कि उन्होंने अपने बेटे को भी खुद से दूर उसके पिता के पास रख दिया है। ताकि पूरी निष्ठा से इन पिता के शुरू किए गए ओल्ड एज होम में रह रहे बुजुर्गों की सेवा कर सकें।

उन्होंने बताया कि पहले इस आश्रम में 10 से 14 बुजु़र्ग रहते थे, लेकिन फ़िलहाल यहां 22 लोग रहते हैं। आज आशा यह आश्रम लोगों की मदद से चला रही हैं। इतने सालों से उनके आश्रम की पहचान आस-पास के कई गावों में हो चुकी है, इसलिए कई लोग यहां अपने खास मौकों को सेलिब्रेट करने भी आते हैं।

फंड की कमी के कारण आशा बेन, ओल्ड एज होम का पूरा काम खुद ही करती हैं। फिर चाहे वह यहां सफाई करनी हो, खाना बनाना हो या फिर यहां रहनेवाले बुजुर्गों को समय-समय पर दवाई और खाना खिलाना। आशा इन सभी की सेवा के लिए सुबह से शाम तक हाजिर रहती हैं।

आज के दौर में अनजान लोगों का अपनों से बढ़कर ध्यान रखने वाली आशा बेन की मदद करके आप भी इस नेक काम में भागीदार बन सकते हैं। उन तक अपनी मदद पहुंचाने के लिए आप 8780707508 पर सम्पर्क करें।



[Bharat Ki Beti | Inspiring | Motivation | Never Give Up | Old Age Home | Senior Citizen ]

"अपनी बेटियों को मजबूत बने रहना और कभी अपमान बर्दाश्त न करना सिखाएं। उन्हें दयालु और दूसरों से सहानभूति रखने के लिए प्रो...
07/12/2024

"अपनी बेटियों को मजबूत बने रहना और कभी अपमान बर्दाश्त न करना सिखाएं। उन्हें दयालु और दूसरों से सहानभूति रखने के लिए प्रोत्साहित करें, साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए सशक्त बनाएं।
यह बहुत जरूरी है!"

साभार-

07/12/2024

"अगर आपको अपने पैशन पर भरोसा है तो असंभव भी संभव बन सकता है।"-रिनचेन भूटिया
कोलकाता के मोमो किंग का सफर जानकर आपको भी सपने पूरे करने की प्रेरणा मिलेगी।

| (Instagram )

Address

Ahmedabad

Opening Hours

Monday 9am - 6pm
Tuesday 9am - 6pm
Wednesday 9am - 6pm
Thursday 9am - 6pm
Friday 9am - 6pm
Saturday 9am - 6pm
Sunday 9am - 6pm

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when The Better India - Hindi posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to The Better India - Hindi:

Share


Other Media/News Companies in Ahmedabad

Show All