30/10/2024
दिसंबर 2019 में नस्लवादी क़ानून के ख़िलाफ हो रहे आंदोलन में हिंसा हुई, हिंसा वाले रोज़ 23 मुसलमान मारे गए, और अगले एक सप्ताह में यह संख्या 30 के क़रीब पहुंच गई। इसी हिंसा में बिजनौर में UPSC की तैयारी कर रहा छात्र भी मारा गया, उस परिवार में अभी भी एक आईपीएस भी है। उस हिंसा के बाद पुलिस आरएएफ ने मुज़फ्फरनगर के खालापार, केवलपुरी, सरवट में मुसलमानों के जो बेहतरीन मकान नज़र आए उनमें घुसकर उत्पात मचाया, उन घरों में एक चम्मच तक सही सलामत नहीं छोड़ी। आलीशान घरों में खड़े वाहनों को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया। पंखा, फ्रीज, वाॅश बेसिन, डाईनिंग टेबल, फ्रीज़ हत्ता के घर में जो भी सामान था वो सब तोड़ डाला। यह कुंठा थी, यह मुसलमानों के खिलाफ नफ़रत की इंतेहा थी। मैंने तबाही कि वो मंज़र देखा है। पिछले सात साल में मुसलमानों के ख़िलाफ वह सबसे बड़ी हिंसा थी, और निसंदेह वह BJP सरकार प्रायोजित हिंसा थी। तभी तो भाजपा के बंगाल अध्यक्ष ने कहा था कि जहां हमारी सरकार है वहां हमने सीएए के ख़िलाफ प्रदर्शन करने वालों को कुत्ते की तरह मारा। पैग़ंबर साहब पर अमर्यादित टिप्पणी के विरोध में प्रदर्शन करने वालों के मकानों पर भाजपा सरकार की मुसलमानों के ख़िलाफ अपनाई गई सामूहिक दंड सहिंता के तहत बुलडोज़र चलाया गया। सैंकड़ों मुसलमानों पर मुकदमे लादकर जेलों में डाल दिया गया। मुसलमानों के घरों पर बुलडोज़र चल रहा होता था, और लोग तालियां बजाकर मुसलमानों के उजड़ने पर खुशियां मना रहे होते। सहारनपुर के एक हवालात में मुसलमानों को जानवरों की तरह पीटा जाता तो भाजपा विधायक ने उसे रिटर्न गिफ्ट करार दिया। किसने कहा इस सरकार में लिंचिंग नहीं हुई? अलीगढ़ में फरीद को लिंच करके मार दिया, और मरणोपरांत उस पर और उसके घर वालों पर डकैती का मुकदमा दर्ज कर दिया गया। फरीद के हत्यारोपितों को बचाने के लिए अलीगढ़ की पूरी भाजपा सड़क पर उतर आई। शामली के थाना भवन में फिरोज़ क़ुरैशी को पीटा गया, जिसके बाद ईलाज के दौरान उसकी जान चली गई, पुलिस ने मौत की वजह नशा बताया, मुझ समेते चार लोगों पर उस घटना को लिंचिंग बताने के 'अपराध' में मुकदमा लाद दिया। आज तक उस घटना के आरोपी गिरफ्तार नहीं हुए हैं, हद तो यह हुई कि भाजपा नेता और पूर्व मंत्री सुरेश राणा आरोपितों के घर जाकर उन्हें आश्वस्त करके आते हैं। बरेली के एक गांव में मकान की छत पर रखी टंकी से पानी गिर रहा था, नीचे "धार्मिक यात्रा" निकल रही थी, मकान चूंकि मुसलमान का था, तो उन पर थूकने का आरोप मढ दिया गया। और फिर बाकी का काम बुलडोज़र ने कर दिया।
अभी बहराइच के वीडियो सबके सामने हैं, कोई है तो बता सके कि वीडियो में दिख रहे दंगाईयों पर क्या कार्रावाई हुई है? बहराइच में चिन्हित करके मुसलमानों के 50 से ज्यादा मकान दुकान जलाए गए, लूटे गए हैं, कितने दंगाई जेल गए? जिनका नुकसान हुआ उन्हें मुआवज़ा तक नहीं दिया गया। कानून व्यवस्था सुधारने के नाम पर 2017 से 2023 के बीच 183 अभियुक्तों को एनकाउंटर में मारा गया। इन 183 में 61 मुस्लिम हैं। जिसे मौक़ा मिला उसी ने मुसलमानों को प्रताड़ित कराया मरवाया। बस फर्क इतना है कि दूसरी सरकारों में यह काम दंगाई किया करते थे। लेकिन भाजपा की सरकार में यही काम 'क़ानून' से कराया जा रहा है। पिछली सरकारों में मुसलमानों के मकानों को दंगाईयों ने जलाया, इस सरकार में मुसलमानों के मकानों पर बुलडोज़र चलाया। बात बराबर है। पिछली सरकार में मुसलमानों की जान दंगाईयों ने ली, इस सरकार में यह ज़िम्मा पुलिस को सौंप दिया गया। मकान गिरा दो, बुलडोज़र चला दो, मिट्टी में मिला दो। ये महज़ डाॅयलाॅग नहीं हैं बल्कि एक संप्रदाय के ख़िलाफ उद्घोष है कि, वह सरकार उस संप्रदाय को देश का नागरिक ही नहीं मानती। सरकार का मुखिया मस्जिदों से माइक उतर जाने पर शेखी बघारते हुए अज़ान की आवाज़ को चिल्लाहट बताकर संदेश देना चाहता है कि वो 'दूसरे संप्रदाय' का कितना सम्मान कर रहे हैं! सोचिएगा! जम्मू कश्मीर का मुस्लिम मुख्यमंत्री, पंजाब का सिख मुख्यमंत्री, मेघालय, मिजोरम, और नागालैंड राज्यों के ईसाई मुख्यमंत्री अगर मंदिर के भजन, आरती की घंटियों को चिल्लाहट कहें तो क्या उसे भी ऐसे ही सामान्य बयान माना जाएगा? जैसा यूपी के मुख्यमंत्री के बयान को माना गया है! मौजूदा सत्ताधारियों से मुसलमानों के गिले शिकवे शिकायतों प्रताड़नाओं की यह लिस्ट बहुत लंबी है। फिलहाल बस एक शेर याद आ रहा है कि-
सब हमारी खैरख्वाही के अलमबरदार थे,
सबके दामन पर हमारे खून के छींटे मिले!
वसीम अकरम त्यागी ✍️✍️✍️