15/12/2023
एक फिल्म देखकर आप जान गए कि मर्द क्या है? एक फिल्म से साबित हो गया कि मर्द सोचता कैसे है? एक फिल्म क्या रिलीज हुई, हर आदमी अपनी अपनी फिल्म रिलीज कर रहा अपने वाल से और बता रहा है कि मर्द को ऐसा नही होना चाहिए वैसा होना चाहिए। अल्फा बीटा गामा की जो कैटेगरी ट्रेंड में चल रही है उसे देखकर आप घबरा रहे है, कि बाकी के लड़के इससे सीखकर कही इसी को कॉपी न करने लगे। आपको पता है, मेजोरिटी ऐसे लड़को की है जो बस रणबीर जैसी बाइक लेना चाहते है, और जिस वक्त उनके दिल दिमाग में रणवीर को बाइक पर चलते हुए ये ख्वाहिश पनपती है, वो उसी पल उस ख्वाहिश को मार देते है क्युकी उन्हे पता है कि उनकी औकात क्या है। मेजोरिटी ऐसे लड़को की है जो जिस झुंड में बैठे, बैठने से पहले उसे उस झुंड में अपनी औकात पता चल जाती है। मर्द के अंदर ढेर सारे मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट है, जिसे ठीक करने के लिए साल में दस फिल्मे रिलीज की जाती है, बीस फिल्मे इसलिए रिलीज की जाती है जो हमे ये बताती है कि हमे अपनी मूंछों पर ताव देने के बजाय उसे गूंथ कर चोटी बना लेनी चाहिए, ताकि लैंगिक समानता के आंदोलन को बल मिल सके। अपना देश तो फिर भी कुछ गनीमत वाले स्टेज में है, पर वर्ल्ड सिनेमा में साल दर साल यही कोशिश की जाती रही है कि मर्द के लिए औरत की इज्जत करने का पहला स्टेज है औरत बन जाना, औरत की तरह दिखना। दीवारों कर पुते हुए इश्तिहारो से तो हम परेशान थे ही, पर धीरे धीरे फिल्मे भी हमे ये बताने लगी कि मर्द की मेजोरिटी वाला हिस्सा औरतों को खुश करने के काबिल ही नही है। और ये बात ऐसी नही है कि हमको नही पता थी, हमारी जिंदगी का एक हिस्सा तो इसी कोशिश में फना हो रहा है कि हमारी जिंदगी की कोई एक औरत हमसे खुश हो जाए, मुतमईन हो जाए, ये बिस्तर वाली बात ने हमारी हेडेक और बढ़ा दी। एक एक्स्ट्रा दबाव रहता है कि रबड़ के बेजान खिलौनों से बेहतर कैसे किया जाए।
इंस्टा या कोई सोशल मीडिया उठाओ एक पूरा सिलेबस पड़ा हुआ है हमारे लिए, कि हमे रिलेशनशिप में ये करना चाहिए, वो करना चाहिए। फिर कुछ दिन बाद सिलेबस चेंज हो जाता है, नया सिलेबस आता है, हम उसे भी रटकर फालो करने की कोशिश करते है, फिर भी कही न कही गलती हो जाती है।हर वक्त तलवार लटकती रहती है सर पर, कब कौन सी तख्ती हमारे गले में डाल दी जाए। हम रिलेशनशिप में एक एक नंबर के लिए एडिया घिसते रहते है कि चलो पास हो जायेंगे, फिर एक दिन पता चलता है कि साला माइनस मार्किंग हो रही थी। दस सही को एक गलत खा गया, फेल हो गए हम लोग।तमाम इवेंट्स होते है, तमाम ट्रेंड आते है, जो हमे ये बताते थे कि किस तरह हमे अपनी कुदरती बनावट पर अफसोस करना चाहिए, शर्मिंदा होना चाहिए। कुछ को अफसोस हुआ, कुछ शर्मिंदा भी हुए मर्द होने पर। हम लोगो को अफसोस नही है, हमे कोई शर्मिंदगी नही है न कभी होगी। किसी औरत के ब्लाउज पर हाथ नही डालना है, ये समझने के लिए हमे चोली पहनने की जरूरत नही है। एनिमल फिल्म का किरदार हमारे लिए बस एक किरदार है, कुछ बुरा है उसमे कुछ अच्छा है, कुछ कल्पना का सबसे निचला स्तर है।आपको क्या लगता है हम अंधे है? हमे नही मालूम कि वो जो कर रहा है वो हम नही कर पायेंगे? ऐसा नही है मालिक, हमे पता है नही कर सकते, हम कोशिश भी नही करेंगे जो हमारी औकात से बाहर हो। हमे हमारी औकात सर के बाल से लेकर पांव के अंगूठे तक आप लोग बता चुके हो।
हम थक चुके है, सच में थक चुके है। हमारे पूर्वजों ने जो किया हम उसे नही सही कर सकते, हम नही बन सकते है सफेद कागज, जिसपर कोई दाग न हो, जिससे कोई गलतियां ना हो। हमसे गलतियां होंगी, एक गली के दस लड़के नजर झुकाकर चलने वाले है, एक सीटी बजा रहा है उसके लिए हम दस लोग शर्मिंदा नही होने वाले है। हमको मत कंफ्यूज करो कि एक दिन आप बोलो की हम सारे मर्द कुत्ते है,और दूसरे दिन बताओ कि हम वफादार नही है। सुअर बोल दो हमे, क्लियर रहेगा। पर ऐसे कभी कुछ कभी कुछ का खेल मत खेलिए। एक फिल्म आई है, गालियां दीजिए डायरेक्टर को, गालियां दीजिए बनाने वाले को, मैं तो कहता हूं देखने वाले को भी दीजिए, पर ये हम हमारी आइडेंटिटी हर बार कैसे बीच में आ जाती है।
द्रौपदी के केश खींचने वाले हम ही थे, द्रौपदी के वस्त्र खींचने वाले भी हम थे, उस घटना पर ठहाके लगाने वाले भी हम ही थे, और उस घटना के दौरान हथेली में नाखून धंसाए मुठ्ठी भींचकर भी हम ही लोग बैठे थे। सौ हाथियों का बल होने पर भी दुशासन को रोक न पाने वाले मजबूर और बेबस मर्द भी हम ही है, और दुसाशन की छाती फाड़कर उसके रक्त से, द्रौपदी के केश धोने वाले भी हम लोग ही है। हम लोग मजबूत है, मजबूर है, कायर है, बहादुर है। सारे गुण अवगुण हमारे अंदर ही है, कौन कब बाहर आएगा हम नही डिसाइड कर पाते, चाह कर भी, कोई नही कर सकता, परिस्थिति फैसले करती है। बीवी को पीटने वाले भी हम है, बीवी से पिटने वाले भी हम है। बीयर बार में पैसे उड़ाने वाले भी हम है, और किसी गाढ़ी नाली में खुले मुंह घुस कर घर का खर्च छानने वाले भी हम ही है। हम ही वो लोग है जिसके रहते एक लड़की रात में अकेले सफर नही कर पाती है और हम ही वो लोग है जिसके होते हुए किसी रात में किसी लड़की के साथ कोई गलत नही कर सकता। हम फरिश्ता नही है, तो हम शैतान भी नही है। हम अगर कमजोर नही है तो हम इतने मजबूत भी नही है कि कोई हमारे साथ गलत न करे। हम इंसान है, जो सही भी हो सकता है, गलत भी हो सकता है। हम सफेद चादर नही है, हम मजदूर के कंधे पर रखा हुआ वो गमछा है जिसमे महीने भर की धूल और पसीना मिला हुआ है,दारू के छींटे भी है उस पर। हम मैले कुचैले लोग है, हमे धोइये,रगड़िए, साफ कीजिए, पर ब्लीच तो मत करिए कि हमारा रंग उड़ जाए, हमारे चीथड़े उड़ जाए। दस प्रोग्रेसिव फिल्मे हमे सुधार नही पाई तो एक प्रोब्लोमेटिक फिल्म बिगाड़ भी नही सकती।
GMA News