29/01/2024
✍🏻जैसे-जैसे जश्न का दिन नज़दीक आता जा रहा था, मुझे समझ आने लगा कि 6 दिसंबर 1992 क्यों और कैसे हुआ होगा? मैंने बाईस जनवरी को आस्था की ताकत देखी, विश्वास का जोश देखा और देखी एक व्यक्ति और उसके आन्दोलन के प्रति अंधभक्ति।
मगर नए भारत में यह सब बदल गया है। अब आपको नख से शिख तक अपनी आस्था पहननी पड़ती है, अब आस्था आपकी बोली में झलकनी चाहिए, आपके चाल में दिखनी चाहिए। जब आप सरयू के किनारे से लाइव टीवी शो करें, तब आपको अपनी आस्था में सराबोर दिखना चाहिए ताकि किसी दर्शक को तनिक भी संदेह न रह जाए कि आपकी आस्था क्या है। आप जब दूसरों का अभिवादन करें तो उसमें आपकी आस्था झलकनी चाहिए। आपकी कमीज़ के रंग से आपकी आस्था दिखनी चाहिए। मगर 22 जनवरी को आडम्बर भी था। बहुत ज्यादा था। और पूरा कार्यक्रम भगवान से ज्यादा एक व्यक्ति पर केन्द्रित था।
🤓पढ़िए श्रुति व्यास का लेख @ link in bio