Motihari Bapudham
मोतिहारी
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Motihari town is known all over as the site from where Mahatma Gandhi started his Satyagraha against the British rule in India. On 1 December 1977, the Champaran district was divided into two districts, which resulted in Motihari becoming the headquarters of East Champaran district. Meanwhile, the municipality of Motihari was established in 1879 AD. Though no evid
ent data is available, one of the oldest structures in Motihari appears to be the Briksha Sthan Math, a temple of the guardian deity of Motihari that dates back to 1805 AD. At the time of British rule in India, the town flourished and it became one of the vital centers in North Bihar. Motihari is around 165 km from Patna, the capital of Bihar, 50 km from Bettiah, and 82 km from Muzaffarpur. Birgunj, the second largest city of Nepal, is 55 km away.
मोतीहारी बिहार राज्य के पूर्वी चंपारण जिले का मुख्यालय है। बिहार की राजधानी पटना से 170 किमी. दूर पूर्वी चम्पारण बिल्कुल नेपाल की सीमा पर बसा है। इसे मोतिहारी के नाम से भी लोग जानते है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस जिले को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। किसी समय में चम्पारण, राजा जनक के साम्राज्य का अभिन्न भाग था। स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी ने तो अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत यही से की थी। पर्यटन की दृष्टि यहां सीताकुंड, अरेराज, केसरिया, चंडी स्थान जैसे जगह घूमने लायक है।
अनुक्रम
1 भूगोल
2 प्रमुख स्थल
2.1 सीताकुंड
2.2 अरेराज
2.3 लौरिया
2.4 केसरिया
2.5 गांधी स्मारक स्तम्भ
2.6 मेहसी
3 अंग्रेजी लेखक जार्ज ऑरवेल की जन्म स्थली
4 आवागमन
5 संदर्भ
6 बाहरी कड़ियाँ
मोतीहारी बिहार राज्य के पूर्वी चंपारण जिले का मुख्यालय है। बिहार की राजधानी पटना से 170 किमी. दूर पूर्वी चम्पारण बिल्कुल नेपाल की सीमा पर बसा है। इसे मोतिहारी के नाम से भी लोग जानते है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस जिले को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। किसी समय में चम्पारण, राजा जनक के साम्राज्य का अभिन्न भाग था। स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी ने तो अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत यही से की थी। पर्यटन की दृष्टि यहां सीताकुंड, अरेराज, केसरिया, चंडी स्थान जैसे जगह घूमने लायक है।
भूगोल:मोतीहारी की स्थिति 26°39′N 84°55′E / 26.65, 84.92[1] पर है। यहां की औसत ऊंचाई है 62 मीटर (203 फीट)।
घूमने लायक प्रमुख स्थल:
सीताकुंड: मोतिहारी से 16 किमी दूर पीपरा रेलवे स्टेशन के पास यह कुंड स्थित है। माना जाता है कि भगवान राम की पत्नी सीता ने त्रेतायुग में इस कुंड में स्नान किया था। इसलिए इसे सीताकुंड के नाम से जाना जाता है। इसके किनारे मंदिर भी बने हूए है और यही पर रामनवमी के दिन एक विशाल मेला लगता है। हजारों की संख्या में इस दिन लोग भगवान राम और सीता की पूजा अर्चना करने यहां आते है।
अरेराज:शहर से 28 किमी. दूर दक्षिण-पश्चिम में अरेराज स्थित है। यहीं पर भगवान शिव का प्रसिद्व मंदिर सोमेश्वर शिव मंदिर है। श्रावणी मेला (जुलाई-अगस्त) के समय केवल मोतिहारी के आसपास से ही नहीं वरन नेपाल से भी हजारों की संख्या में भक्तगण भगवान शिव पर जल चढ़ाने यहां आते है।
लौरिया:यहा गांव अरेराज अनुमंडल से 2 किमी दूर बेतिया-अरेराज रोड पर स्िथत है। सम्राट अशोक ने 249 ईसापूर्व में यहां पर एक स्तम्भ का निर्माण कराया था। इस स्तम्भ पर सम्राट अशोक ने धर्म लेख खुदवाया था। माना जाता है कि 36 फीट ऊंचे व 41.8 इंच आधार वाले इस स्तम्भ का वजन 40 टन है। सम्राट अशोक ने इस स्तम्भ के अग्र भाग पर सिंह की मूर्ति लगवाई थी लेकिन बाद में पुरातत्व विभाग द्वारा सिंह की मूर्ति को कलकत्ता के म्यूजियम में भेज दिया गया।
केसरिया स्तूप:मुजफ्फरपुर से 72 किमी. तथा चकिया से 22 किमी. दक्षिण-पश्चिम में यह स्थल स्थित है। भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा 1998 ईसवी में खुदाई के दौरान यहां पर बौद्व स्तूप मिला था। माना जाता है कि यह स्तूप विश्व का सबसे बड़ा बौद्व स्तूप है। पुरातत्व विभाग के एक रिपोर्ट के मुताबिक जब भारत में बौद्व धर्म का प्रसार हुआ था तब केसरिया स्तूप की लंबाई 150 फीट थी तथा बोरोबोदूर स्तूप (जावा) की लंबाई 138 फीट थी। वर्तमान में केसरिया बौद्व स्तूप की लंबाई 104 फीट तथा बोरोबोदूर स्तूप की लंबाई 103 फीट है। वही विश्व धरोहर सूची में शामिल साँची स्तूप की ऊँचाई 77.50 फीट है। पुरातत्व विभाग के आकलन के अनुसार इस स्तूप का निर्माण लिच्छवी वंश के राजा द्वारा बुद्व के निर्वाण प्राप्त होने से पहले किया गया था। कहा जाता है कि चौथी शताब्दी में चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने भी इस जगह का भ्रमण किया था।
गांधी स्मारक: अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत गांधीजी ने चम्पारण से ही शुरु की थी। अंग्रेज जमींदारों द्वारा जबरन नील की खेती कराने का सर्वप्रथम विरोध महात्मा गांधी के नेतृत्व में यहां के स्थानीय लोगों द्वारा किया गया था। इस कारण्ा से गांधीजी पर घारा 144 (सीआरपीसी) का उल्लंघन करने का मुकदमा यहां के स्थानीय कोर्ट में दर्ज हुआ था। जिस जगह पर उन्हें न्यायालय में पेश किया गया था वही पर उनकी याद में 48 फीट लंबे उनकी प्रतिमा का निर्माण किया गया। इसका डिजाइन शांति निकेतन के प्रसिद्व मूर्तिकार नंदलाल बोस ने तैयार की थी। इस प्रतिमा का उदघाटन 18 अप्रैल 1978 को विधाधर कवि द्वारा किया गया था।
मेहसी:शहर से 48 किमी. पूरब में यह जगह मुजफ्फरपुर-मोतिहारी मार्ग पर स्थित है। यह अपने शिल्प-बटन उघोग के लिए पूरे भारत में ही नहीं वरन् विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हो चुका है। इस उघोग की शुरुआत करने का श्रेय यहां के स्थानीय निवासी भुवन लाल को जाता है। सर्वप्रथम 1905 ईसवी में उसने सिकहरना नदी से प्राप्त शंख-सिप से बटन बनाने का प्रयास किया था। लेकिन बेहतर तरीके से तैयार न होने के कारण यह नहीं बिक पाया। 1908 ईसवी में जापान से 1000 रुपए में मशीन मंगाकर तिरहुत मून बटन फैक्ट्री की स्थापना की गई और फिर बडे पैमाने पर इस उघोग का परिचालन शुरु किया गया। धीरे-धीरे बटन निर्माण की प्रक्रिया ने एक उघोग का रुप अपना लिया और उस समय लगभग 160 बटन फैक्ट्री मेहसी प्रखंड के 13 पंचायतों चल रहा था। लेकिन वर्तमान में यह उधोग सरकार से सहयोग नहीं मिल पाने के कारण बेहतर स्िथति में नहीं है
इसके अलावा पर्यटक चंडीस्थान (गोविन्दगंज), हुसैनी, रक्सौल जैसे जगह की भी सैर कर सकते है।
एनिमल फार्म और नाइंटीन एटीफोर जैसी कृतियों के रचयिता जार्ज़ ऑरवेल का जन्म सन 1903 में मोतिहारी में हुआ था । उनके पिता रिचर्ड वॉल्मेस्ले ब्लेयर बिहार में अफीम की खेती से संबंधित विभाग में उच्च अधिकारी थे । जब ऑरवेल महज एक वर्ष के थे, तभी अपनी मॉ और बहन के साथ वापस इंग्लैण्ड चले गए थे ।
अंग्रेजी लेखक जार्ज ऑरवेल की जन्म स्थली:मोतिहारी शहर से ऑरवेल के जीवन से जुडे तारों के बारे में हाल तक लोगबाग अनभिज्ञ थे । वर्ष 2003 में ऑरवेल के जीवन में इस शहर की भूमिका तब जगजाहिर हुई जब देशी-विदेशी पत्रकारों का एक जत्था जार्ज ऑरवेल की जन्मशताब्दी के अवसर पर यहॉ पहुंचा । स्थानीय प्रशासन अब यहॉ जार्ज ऑरवेल के जीवन पर एक संग्रहालय के निर्माण की योजना बना रहा है ।
History
In 1866 Champaran was made into a district with Motihari as its headquarters. On 1 December 1977 the Champaran district was divided into two and Motihari became the headquarters of East Champaran district. The municipality of Motihari was established in 1879. Though no authentic data is available, one of the oldest structures in Motihari appears to be the Briksha Sthan Math, a temple of the guardian deity of Motihari, dating back to 1805. During the British era the town flourished and it became one of the important centers in North Bihar. Geography
Motihari is around 165 km from Patna, the capital of Bihar, 50 km from Bettiah, and 80 km from Muzaffarpur. Birgunj, the second largest city of Nepal, is 55 km away. Demographics
As of 2001 India census[1], Motihari has a population of 101,506 with 54% males, 46% females, and 15% of the population is under 6 years of age. Motihari has an average literacy rate of 69%, higher than the Indian national average of 59.5%
Cultural heritage
The languages of Motihari are Bhojpuri and Hindi. Bhojpuri is one of the oldest languages of India.