06/11/2020
पत्रकारिता में मैं एक अदना सा व्यक्ति हूं. लेकिन बहुत ही कम उम्र में मैंने ऐसे कई पत्रकारों को देखा है जिन्होंने पत्रकारिता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया. पूरे देश में आज अर्णव की बात हो रही है. अर्णव यदि सही मायनो में पत्रकारिता कर रहे होते तो आज उनके साथ देश का हर एक पत्रकार खड़ा रहता. यदि आप पत्रकारिता करते हैं तो केवल पत्रकारिता करें, यदि पत्रकारिता की आड़ में दलाली करने का शोक है तो साफ साफ बता दीजिये की अब पेशा बदल लिया गया है. लोगों को गुमराह न करें. अर्णव के लिए लोग आपस में भिड़ रहे हैं कह रहे है कि अर्णब के साथ गलत हुआ, शिवसेना सत्ता का दुरूपयोग कर रही है. उन लोगों से पूछिए जिस केस में महाराष्ट्र पुलिस ने अर्णब को गिरफ्तार किया है. ये केस किस सरकार के समय का है. ये केस फडणवीस सरकार के समय का है. दो-तीन साल पहले जब अर्णब ने अपना स्टूडियो बनवाया था स्टूडियो बनाने वाले अन्वय नाईक को 80 लाख रूपये नहीं दिए थे. इतने बड़े अमाउंट के कर्ज से हर कोई डिप्रेशन में आ सकता है. इसी डिप्रेशन के चलते अन्वय नाईक और कुमुद नाईक ने आत्म हत्या कर ली थी. महाराष्ट्र पुलिस चाहे आज राजनितिक दबाव में ही सही किसी भी रूप में ही सही लेकिन आज किसी को इन्साफ मिल रहा है. वैसे भी अर्णब पत्रकारिता कर ही नहीं रहे है वे केवल एक पार्टी विशेष के लिए काम कर रहे हैं. आप हाथरस केस की रिपोर्टिंग से अंदाजा लगा सकते हैं कि जो व्यक्ति सुशांत केस में महाराष्ट्र सरकार को चैलेंज दे रहा था वो हाथरस केस में मुँह में दही जमाये बैठा हुआ था. लोकेन्द्र उमरे