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05/12/2024
🌹पीपल_वृक्ष_से_शनि_भी_डरते_हैं🌹श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का...
05/12/2024

🌹पीपल_वृक्ष_से_शनि_भी_डरते_हैं🌹

श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयं चिता में बैठकर सती हो गयी.... इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया...!

किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक कि जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।

एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे.... नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा____
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ....।
तब नारद ने ध्यान धर देखा.... नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया___ कि हे बालक !
तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो.... तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पाई थी...।
नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की आयु में ही हो गयी थी।

बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था.... ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी...।
बालक- मेरे ऊपर आई विपत्ति का कारण क्या था....?
नारद- शनिदेव की महादशा...।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया....।

नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया।
ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।

ब्रह्मा जी से वरदान मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।
शनि देव सशरीर जलने लगे... ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया... सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए...! सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे...।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयं पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही.... किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए....।

ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वरदान मांगने की बात कही____ तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-

1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा.... जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।

2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है.... अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा...।

ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया... तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया.... जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे...।
अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए...।
सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।
आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की, जो आज भी ज्ञान का अकूत भंडार है...!

ॐ शं शनिश्चराय नमः 🙏🙏🙏

1100 रुपये किलो खाने वाला घी मिलता है और वहीं पुजा करने वाला घी 270 से 400 रुपये बिकता है... कभी सोचकर देखिये की क्या का...
28/11/2024

1100 रुपये किलो खाने वाला घी मिलता है और वहीं पुजा करने वाला घी 270 से 400 रुपये बिकता है... कभी सोचकर देखिये की क्या कारण है की पुजा करने वाला घी इतना सस्ता मिलता है... और उसपर सिधा लिखा होता है की खाने के लिये नहीं है या कोई भी खाद्य पदार्थ ना बनाये पैकेट पर पढ़ना... क्यो ऐसा लिखा होता है आखिर उसमें ऐसा क्या है की खा नहीं सकते और सिर्फ पुजा कर सकते हैं...🙏🤨

❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏
31/10/2024

❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏

सुखांत (अंतिम संस्कार केंद्र)जरा सोचिए, हमारा समाज कहाँ जा रहा है ?एक विशेष प्रदर्शनी जो भारत के मानवीय मूल्यों को शर्मस...
23/10/2024

सुखांत (अंतिम संस्कार केंद्र)
जरा सोचिए, हमारा समाज कहाँ जा रहा है ?

एक विशेष प्रदर्शनी जो भारत के मानवीय मूल्यों को शर्मसार होता दिखा रही है। यह कंपनी जो अंतिम संस्कार क्रिया करवाएगी। कम्पनी की सदस्यता फीस हैं 37500/- रुपए। जिसमें अर्थी, पंडित, नाई, कांधा देने वाले, साथ में चलने वाले, राम नाम सत्य बोलने वाले सब लोग कम्पनी के ही होंगे। और तो और अस्थियां विसर्जन भी कम्पनी ही करवाएगी।

इसे देश का New start up भी समझ सकते हैं, जो अभी 50 लाख प्रॉफिट तो कमा चुकी है परंतु आने वाले समय में उसका कारोबार 2000 करोड़ होने की संभावना है। क्योंकि कंपनी को पता है की हिन्दुस्तान में रिश्ते निभाने का समय किसी के पास नहीं हैं। ना बेटे के पास, न बेटी के पास, न भाई के पास और न ही किसी अन्य रिश्तेदारों के पास।😢😢☹️

जय हो, नकली मिठाई, दवाई, खोया, पनीर ही काफी नहीं था।🙁
23/10/2024

जय हो, नकली मिठाई, दवाई, खोया, पनीर ही काफी नहीं था।🙁

Moonset at dawn over Hotel Regenta PlaceChakkarShimlaOctober 18, 2024.👌👌👌❤️❤️
18/10/2024

Moonset at dawn over Hotel Regenta Place
Chakkar
Shimla

October 18, 2024.👌👌👌❤️❤️

Maharshi Valmiki Jayanti 2024: भगवान वाल्मीकि जी का पवित्र प्रगट दिवस हर वर्ष शरद पूर्णिमा को पूरे विश्व में बड़े हर्षोल...
17/10/2024

Maharshi Valmiki Jayanti 2024: भगवान वाल्मीकि जी का पवित्र प्रगट दिवस हर वर्ष शरद पूर्णिमा को पूरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वैसे उत्तर भारत में शरद पूर्णिमा को एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसकी एक वजह भी है कि इस दिन चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है। इसी मान्यता के कारण घर की छत पर खीर रखी जाती है, चंद्रमा की किरणों से इसे ऊर्जा मिलती है और सुबह खाई जाती है। शरद पूर्णिमा को ‘कोजागरी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।

इस दिन पूरे विश्व में भगवान वाल्मीकि जी का प्रगट-दिवस बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जैसे सूर्य की रोशनी से पूरा विश्व जाग्रत होता है, ठीक उसी प्रकार भगवान वाल्मीकि के ‘ज्ञानामृत’ से पूरा ब्रह्मांड जाग्रत होकर तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करता है। भगवान ने अपने ज्ञानामृत को सूत्रों में बांधकर, जिसे हम ‘अनुष्टूप छंद’ के नाम से जानते हैं, सूत्रबंध ढंग से सुंदर कहानियों, आख्यानों, दृष्टांतों के द्वारा कठोर से आसान उदाहरणों द्वारा समझाया है। उनको केवल पढ़ने, सुनने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

संस्कृत भाषा का जन्म भगवान वाल्मीकि जी के मुख से निकले शब्दों से हुआ था। संस्कृत के व्यंजनों का पहला अक्षर ‘क’ का होना कोई संयोग नहीं, बल्कि क्रौन्च से ही भगवान वाल्मीकि ने करुणा भाव से लौकिक भाषा का निर्माण किया था। बात उस समय की है, जब एक दिन प्रभु वाल्मीकि अपने शिष्य ऋषि भारद्वाज के साथ तमसा नदी पर स्नान कर वापस आश्रम की ओर आ रहे थे, तब उन्होंने नदी के तट के पास एक निषाद को देखा, जिसने अपने तीर से क्रौन्च और क्रौन्ची जोड़े में से क्रौन्च (नर) को मार डाला। यह दृश्य देख कर उनके मुख से जो शब्द निकले वे इस प्रकार हैं

मा निषाद प्रतिष्ठाम् त्वमागम: शाश्वती क्षमा:। यतक्रौन्च मिथुनाद एकम् अवधी काममोहितम्।

इस श्लोक से ही संस्कृत भाषा का जन्म हुआ। आश्रम आकर प्रभु वाल्मीकि जी चैन से नहीं बैठे। उन्होंने देखा कि जीव कैसे अपने स्वार्थ के लिए एक-दूसरे जीव की हत्या कर देता है, जबकि प्रकृति ने एक-सी प्राणवायु सब जीवों को दी है। भगवान ने जीव को एक सूत्र में बांधने के लिए सिद्धांत बनाए और जीव को उसका पालन करने का उपदेश दिया। तभी से जीव इस संसार से मुक्ति अथवा मोक्ष की प्राप्ति कर रहा है।

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17/10/2024

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11/10/2024

आज दुर्गा अष्टमी के दिन बोला गया
जय माता दी
7 पीढ़ियों तक पाप और कष्ट दूर करता है
जय माता दी 🙏

इस दिवाली पर लाखों करोड़ो की कंपनी को अमीर बनाने से अच्छा है कुछ चीजें इनसे खरीदे...ताकि इनके भी बच्चे दीवाली बना सके.......
07/10/2024

इस दिवाली पर लाखों करोड़ो की कंपनी को अमीर बनाने से अच्छा है कुछ चीजें इनसे खरीदे...ताकि इनके भी बच्चे दीवाली बना सके....❤️

 #माता_दुर्गा के आठ ही हाथ क्यों होते हैं? जानिए माता के अष्ट भुजाओं का रहस्य माता दुर्गा के आठ ही हाथ क्यों होते हैं? ज...
07/10/2024

#माता_दुर्गा के आठ ही हाथ क्यों होते हैं? जानिए माता के अष्ट भुजाओं का रहस्य माता दुर्गा के आठ ही हाथ क्यों होते हैं? जानिए माता के अष्ट भुजाओं का रहस्य
नवरात्रि में माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में माता दुर्गा को अष्टभुजाधारी कहा गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं माता दुर्गा के आठ हाथ ही क्यों हैं? आइए जानते हैं शास्त्र इसके बारे में क्या कहते हैं?: हिन्दू धर्म में माता दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मंदिरों या पूजा पंडालों में माता की आठ हाथों वाली प्रतिमा ही दिखाई देती है। आठ भुजाओं के कारण ही माता को अष्ट भुजाधारी भी कहा जाता है। चलिए जानते हैं माता की आठ भुजाएं किस का प्रतीक है और माता अष्टभुजाधारी ही क्यों हैं ?

आठ हाथ ही क्यों?
शास्त्रों के अनुसार माता की 8 भुजाएं आठ दिशाओं का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि सभी आठ दिशाओं से माता दुर्गा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। गीता में भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि प्रकृति ही मेरा शरीर है जिसके आठ अंग होते हैं। प्रकृति को अष्टधा कहा गया है। सृष्टि सृजन के समय जब प्रकृति की नारी रूप में कल्पना की गई तो उसे पांच गुण और तीन तत्व दिए गए। यही पांच गुण और तीन तत्व आठ हाथ बन गए। ऐसी मान्यता है कि अष्टधा प्रकृति ही हम सब की माता हैं। हम सब इन से ही उत्पन्न हुए हैं। उमा अर्थात उत्पन्न करने वाली माता का एक रूप देवी दुर्गा हैं। इसलिए माता दुर्गा के आठ ही हाथ हैं।

चलिए अब जानते हैं माता के आठ हाथों में मौजूद अस्त्र-शस्त्र का क्या महत्त्व है।

त्रिशूल
माता के हाथ में मौजूद त्रिशूल प्रकृति के तीन गुणों अर्थात सत्व, रजस और तमस गुणों के प्रतीक हैं। त्रिशूल सृजन, संरक्षण और विनाश का प्रतिनिधित्व करता है। माता के हाथ में त्रिशूल यह दर्शाता है कि इन सभी पहलुओं पर माता दुर्गा का नियंत्रण है।

सुदर्शन चक्र
मां दुर्गा के हाथ में स्थित सुदर्शन चक्र ब्रह्मांड की शाश्वत प्रकृति और धार्मिकता की शक्ति का प्रतीक है। सुदर्शन चक्र यह दर्शाता है कि पूरी सृष्टि उनके अधीन है और वही इस सृष्टि का संचालन भी कर रही हैं।

कमल का फूल
माता के हाथ में स्थित कमल का फूल ज्ञान और मुक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। जैसे कमल गंदे पानी में भी खिलता है फिर भी यह पवित्रता और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है।

तलवार
माता के हाथो में मौजूद तलवार ज्ञान और बुद्धि की तीव्रता का प्रतीक है। यह अज्ञानता और बुराई के विनाश का भी प्रतिनिधित्व करता है।

धनुष और बाण
माता के हाथ में स्थित धनुष और बाण ऊर्जा का प्रतीक हैं। एक हाथ में धनुष और बाण पकड़कर माता ऊर्जा पर अपना नियंत्रण दर्शाती हैं।

वज्र
मां दुर्गा के हाथ में स्थित वज्र, दृढ़ संकल्प का प्रतिनिधित्व करता है। जिस प्रकार वज्र किसी भी चीज को अपने प्रहार से नष्ट कर सकता है, उसी प्रकार माता दुर्गा का संकल्प अटूट है।

शंख
शंख, सृष्टि की ध्वनि और ब्रह्मांड की मूल ध्वनि यानि ‘ओम’ का प्रतीक है। यह पवित्रता और शुभता का भी प्रतिनिधित्व करता है।

गदा
गदा को ताकत और बुराई को नष्ट करने की शक्ति का प्रतीक माना गया है।

ढाल
माता के हाथ में स्थित ढाल, सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करता है। माता दुर्गा अपने भक्तों को हानि से बचाने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं।

अभय मुद्रा
अभय मुद्रा से माता अपने भक्तों को सुरक्षा और निर्भयता का आश्वासन देती हैं।

Jai Maa Vaishno 🙏🌺
05/10/2024

Jai Maa Vaishno 🙏🌺

05/10/2024

पत्नी को खुश ऐसे रखें...
अपना मुंह बंद और पर्स का मुंह खुला रखें😥🤔

शिमला, हिमाचल प्रदेश के पास का परिदृश्य-1860
21/09/2024

शिमला, हिमाचल प्रदेश के पास का परिदृश्य-1860

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏❤️❤️❤️
20/09/2024

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