आरटीआइ की नियमावली 11 उत्तर प्रदेश में राज्य सूचना आयोग अभी तक बिना नियमावली के काम कर रहा था, अब उसे एक अनुशासन में बांधने का प्रयास किया जा रहा है। आयोग ने नियमावली बना कर सरकार के पास अनुमोदन के लिए भेजा तो सरकार ने सुझाव और व्यावहारिक दिक्कतों को गिनाते हुए उसे लौटाया है। अगर एक बार आरटीआइ एक्ट की धारा 4 (1बी) का पूरी तरह पालन कर दिया जाए तो शायद अधिकतर समस्याओं का समाधान निकल आएगा। यह धारा कह
ती है कि गोपनीय दस्तावेजों को छोड़ विभाग कार्य में पारदर्शिता लाने के लिए गतिविधियों, कार्यो, किये गए फैसलों को अपनी वेबसाइट में नियमित डालें। सभी सूचनाएं इंटरनेट पर मौजूद रहेंगी, आयोग और विभागों के पास भी सूचना मांगने वालों की लंबी लिस्ट कम हो जाएगी।
एक्ट यह भी कहता है कि कंप्यूटर निरक्षर व्यक्ति की पत्रवली भी बना कर रखी जाए। एक्ट लागू होते समय कहा गया था कि 120 दिन में इसका पालन हो जाएगा, उसके बाद उसे दैनिक तौर पर अपडेट किया जाता रहेगा। हकीकत में कुछ विभाग थोड़ी-बहुत जानकारी अपनी वेबसाइट पर डाल देते हैं, कुछ विभागों ने शुरू में जो जानकारी डाली थी, उसे अपडेट नहीं किया, कुछ ने तो वेबसाइट में कुछ डालने का कभी प्रयास ही नहीं किया।
आरटीआइ एक्ट लाने का मकसद विभागीय कार्यो में पारदर्शिता लाना था, जिससे जनता को पता चल जाए कि जो कार्य किया गया है, वह नियमों के अनुरूप किया गया है। किसी को यह शंका न रहे कि उसके साथ भेदभाव या पक्षपात किया गया। शुरू में इसका असर भी पड़ा। इसी के दम पर कई घोटालों का राजफाश भी हुआ। ज्यों-ज्यों वक्त बीतता गया विभाग भी इस धारदार कानून की काट निकालने लगे। पहले पायदान पर ही तीस दिन में सूचनाएं देने के बजाय उस पर कोई तकनीकी आपत्ति लगा कर कई महीनों तक मामले को लटकाने का रास्ता खोज लिया गया। उसके बाद आधी-अधूरी जानकारी मिली भी तो अपील में प्रकरण फिर से पड़ा रहा।
इस तरह जहां नब्बे दिन में राज्य सूचना आयोग में मामला पहुंचना था वहीं एक साल या उससे भी देर लग जाती है। सरकारी तंत्र में उपजी इन बहानेबाजियों को रोकने में नई नियमावली कारगर होती है तो बेहतर होगा, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ और वह भ्रष्ट तंत्र की मदद करने लगे तो उससे लोकतंत्र का बहुत बड़ा नुकसान होगा।