26/09/2023
*बेटी की विदाई... एक मार्मिक प्रसंग...!!
*दुल्हन ने विदाई के वक़्त शादी को किया नामंजूर
*(कहानी आपको सोचने पर विवश करेगी।)**
*शादी के बाद विदाई का समय था,**
*नेहा अपनी माँ से मिलने के बाद अपने पिता से लिपट कर रो रही थीं।**
*वहाँ मौजूद सब लोगों की आंखें नम थीं।**
*नेहा ने घूँघट निकाला हुआ था,**
*वह अपनी छोटी बहन के साथ सजाई गयी गाड़ी के नज़दीक आ गयी थी।**
*दूल्हा अविनाश अपने खास मित्र विकास के साथ बातें कर रहा था।**
*विकास -'यार अविनाश...**
*सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल अमृतबाग चलकर बढ़िया खाना खाएंगे...**
*यहाँ तेरी ससुराल में खाने का मज़ा नहीं आया।**
*तभी पास में खड़ा अविनाश का छोटा भाई राकेश बोला**
*हा यार..पनीर कुछ ठीक नहीं था...**
*और रस मलाई में रस ही नहीं था।**
*और वह ही ही ही कर जोर जोर से हंसने लगा।**
*अविनाश भी पीछे नही रहा**
*अरे हम लोग अमृतबाग चलेंगे, जो खाना है खा लेना...**
*मुझे भी यहाँ खाने में मज़ा नहीं आया..रोटियां भी गर्म नहीं थी...।**
*अपने पति के मुँह से यह शब्द सुनते ही नेहा जो घूँघट में गाड़ी में बैठने ही जा रही थी,**
*वापस मुड़ी, गाड़ी की फाटक को जोर से बन्द किया...**
*घूँघट हटा कर अपने पापा के पास पहुंची...।**
*अपने पापा का हाथ अपने हाथ में लिया..**
*"मैं ससुराल नहीं जा रही पिताजी..."**
*मुझे यह शादी मंजूर नहीं।**
*यह शब्द उसने इतनी जोर से कहे कि सब लोग हक्के बक्के रह गए...**
*सब नज़दीक आ गए।**
*नेहा के ससुराल वालों पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा...**
*मामला क्या था यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था।**
*तभी नेहा के ससुर राधेश्यामजी ने आगे बढ़कर नेहा से पूछा --**
*"लेकिन बात क्या है बहू ?"**
*शादी हो गयी है...**
*विदाई का समय है अचानक क्या हुआ कि तुम शादी को नामंजूर कर रही हो ?**
*अविनाश की तो मानो दुनिया लूटने जा रही थी...**
*"वह भी नेहा के पास आ गया"**
*अविनाश के दोस्त भी।**
*सब लोग जानना चाहते थे कि आखिर एन वक़्त पर क्या हुआ कि दुल्हन ससुराल जाने से मना कर रही है।**
*नेहा ने अपने पिता दयाशंकरजी का हाथ पकड़ रखा था...**
*नेहा ने अपने ससुर से कहा**
**"बाबूजी मेरे माता पिता ने अपने सपनों को मारकर हम बहनों को पढ़ाया लिखाया व काबिल बनाया है।"**
*आप जानते है एक बाप केलिए बेटी क्या मायने रखती है ??**
*आप व आपका बेटा नहीं जान सकते क्योंकि आपके कोई बेटी नहीं है।**
*नेहा रोती हुई बोले जा रही थी-**
*आप जानते है मेरी शादी के लिए व शादी में बारातियों की आवाभगत में कोई कमी न रह जाये...इसलिए मेरे पिताजी पिछले एक साल से रात को 2-3 बजे तक जागकर मेरी माँ के साथ योजना बनाते थे...**
*खाने में क्या बनेगा...**
*रसोइया कौन होगा...**
*पिछले एक साल में मेरी माँ ने नई साड़ी नही खरीदी क्योकि मेरी शादी में कमी न रह जाये...**
*दुनिया को दिखाने केलिए अपनी बहन की साड़ी पहन कर मेरी माँ खड़ी है...**
*मेरे पिता की इस डेढ़ सौ रुपये की नई शर्ट के पीछे बनियान में सौ छेद है....**
*"मेरे माता पिता ने कितने सपनों को मारा होगा..."**
*न अच्छा खाया न अच्छा पीया...**
*बस एक ही ख्वाहिश थी कि मेरी शादी में कोई कमी न रह जाये...**
*आपके पुत्र को रोटी ठंडी लगी!!!**
*उनके दोस्तों को पनीर में गड़बड़ लगी व मेरे देवर को रस मलाई में रस नहीं मिला...**
*इनका खिलखिलाकर हँसना मेरे पिता के अभिमान को ठेस पहुंचाने के समान है...।**
*नेहा हांफ रही थी...।**
*नेहा के पिता ने रोते हुए कहा**
*लेकिन बेटी इतनी छोटी सी बात..।**
*नेहा ने उनकी बात बीच मे काटी**
*यह छोटी सी बात नहीं है पिताजी...**
*मेरे पति को मेरे पिता की इज्जत नहीं...**
*रोटी क्या आपने बनाई !**
*रस मलाई ... पनीर यह सब केटर्स का काम है...**
*आपने दिल खोलकर व हैसियत से बढ़कर खर्च किया है,**
*कुछ कमी रही तो वह केटर्स की तरफ से...**
*आप तो अपने दिल का टुकड़ा अपनी गुड़िया रानी को विदा कर रहे है ???**
*आप कितनी रात रोयेंगे क्या मुझे पता नहीं...**
*माँ कभी मेरे बिना घर से बाहर नही निकली...**
*कल से वह बाज़ार अकेली जाएगी...**
*जा पाएगी ?**
*जो लोग पत्नी या बहू लेने आये हैं वह खाने में कमियां निकाल रहे हैं...**
*मुझमे कोई कमी आपने नहीं रखी,**
*यह बात इनकी समझ में नही आई ??**
*दयाशंकर जी ने नेहा के सर पर हाथ फिराया**
*अरे पगली... बात का बतंगड़ बना रही है...**
*मुझे तुझ पर गर्व है कि तू मेरी बेटी है लेकिन बेटा इन्हें माफ कर दे....**
*तुझे मेरी कसम, शांत हो जा।**
*तभी अविनाश ने आकर दयाशंकर जी के हाथ पकड़ लिए**
*"मुझे माफ़ कर दीजिए बाबूजी..."**
*मुझसे गलती हो गयी...**
*मैं ...मैं उसका गला बैठ गया था..**
*रो पड़ा था वह।**
*तभी राधेश्यामजी ने आगे बढ़कर नेहा के सर पर हाथ रखा**
*मैं तो बहू लेने आया था लेकिन ईश्वर बहुत कृपालु है**
*उसने मुझे बेटी दे दी...**
*व बेटी की अहमियत भी समझा दी...**
*मुझे ईश्वर ने बेटी नहीं दी शायद इसलिए कि तेरे जैसी बेटी मेरी नसीब में थी...**
*अब बेटी इन नालायकों को माफ कर दें...**
*मैं हाथ जोड़ता हूँ तेरे सामने...**
*"मेरी बेटी नेहा मुझे लौटा दे।"**
*और दयाशंकर जी ने सचमुच हाथ जोड़ दिए थे व नेहा के सामने सर झुका दिया।**
*नेहा ने अपने ससुर के हाथ पकड़ लिए...'बाबूजी।**
*राधेश्यामजी ने कहा**
*"बाबूजी नहीं..पिताजी।"**
*नेहा भी भावुक होकर राधेश्याम जी से लिपट गयी थी।**
*दयाशंकर जी ऐसी बेटी पाकर गौरव की अनुभूति कर रहे थे।**
*नेहा अब राजी खुशी अपने ससुराल रवाना हो गयी थीं...**
*पीछे छोड़ गयी थी आंसुओं से भीगी अपने माँ पिताजी की आंखें,**
*अपने पिता का वह आँगन जिस पर कल तक वह चहकती थी..**
*आज से इस आँगन की चिड़िया उड़ गई थी किसी दूर प्रदेश में..**
*और किसी पेड़ पर अपना घरौंदा बनाएगी।**
*यह कहानी लिखते वक्त मैं उस मूर्ख व्यक्ति के बारे में सोच रहा था जिसने बेटी को सर्वप्रथम "पराया धन" की संज्ञा दी होगी।**
*बेटी माँ बाप का अभिमान व अनमोल धन होता है**
*"पराया धन नहीं।"**
*कभी हम शादी में जाये तो ध्यान रखें कि पनीर की सब्ज़ी बनाने में एक पिता ने कितना कुछ खोया होगा व कितना खोएगा...**
*अपना आँगन उजाड़ कर दूसरे के आंगन को महकाना कोई छोटी बात नहीं।**
*खाने में कमियाँ न निकाले... ।**
*बेटी की शादी में बनने वाले पनीर, रोटी या रसमलाई पकने में उतना समय लगता है जितनी लड़की की उम्र होती है।**
*यह भोजन सिर्फ भोजन नहीं,**
*पिता के अरमान व जीवन का सपना होता है।**
*बेटी की शादी में बनने वाले पकवानों में स्वाद कई सपनों के कुचलने के बाद आता है व उन्हें पकने में सालों लगते है**
*बेटी की शादी में खाने की कद्र करें।**