07/05/2022
कश्यप समाज के सतंभ और विश्व के महानतम धनुर्धर एकलव्य जी की जयंती की हार्दिक शुभ कामनाये.
"आधुनिक तीर-अंदाजी के जनक थे महान धनुर्धर एकलव्य"
एकलव्य, महाभारत का ऐसा पात्र जिसने अपनी दृढ़ शक्ति से स्वयं को ना केवल श्रेष्ट धनुर्धर बनाया, बल्कि अपने माने हुए गुरु, जिसने उसे शिक्षा देने से भी इनकार कर दिया था, के कहने मात्र पर अपना अंगूठा उसे गुरु-दक्षिणा में अर्पित कर दिया था, को स्मरण करके कश्यप निषाद समुदाय हमेशा गर्व की अनुभूति करता है।
लेकिन कितने स्वजाति मित्र जानते है कि महान धनुर्धर एकलव्य द्वारा अंगूठा कट जाने पर उनके द्वारा तर्जनी और मध्यमा ऊँगली से तीर चलानेे की कला से आधुनिक तीर-अंदाजी के तरीके का जन्म हुआ था । निसंदेह एकलव्य द्वारा प्रचलित तीर-अंदाजी के यह तरीका बेहतरीन था, जिस कारण वर्तमान तीर-अंदाजी में एकलव्य वाला तरीका अपनाया गया, ना कि अर्जुन जैसे तीर चलाने का।
विश्व का एकमात्र एकलव्य मंदिर, हरियाणा के गुडगाँव ज़िले के खंडवा गांव में स्तिथ है । पौराणिक काल में ये स्थान खंडवा वन के नाम से प्रसिद्ध था और उनके पिता हिरण्यधनु निषाद के राज्य का हिस्सा था । खंडसा गांव के सरकारी स्कूल के पीछे बने एकलव्य मंदिर गुरु-शिष्य परम्परा के लिए विख्यात है, जहाँ प्रतिवर्ष एकलव्य-वंशज 2-3 दिन पूजा करने आते है । मंदिर प्रांगण की लगभग दो एकड़ भूमि को स्कूल के खेल परिसर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है ।
महान धनुर्धर एकलव्य द्वारा पर द्रोण को गुरु मानकर जिस स्थान पर उनकी मूर्ति स्तापित कर आत्म-ज्ञान अभ्यास से विद्या प्राप्त करी थी वो स्थान गौतम बुद्धनगर जनपद के ग्रेटर नॉएडा से 20 किलोमीटर दूर गाँव दनकौर के नाम से जाना जाता है । इसी मंदिर के नजदीक एक अन्य गाँव है जिसका नाम है मुँहफाड़, कहते है इसी स्थान पर एकलव्य ने भौंक रहे कुत्ते का मुह अपने तीरो से बंद किया था, जिसके बाद ये स्थान मुहफाड़ के नाम से प्रसिद्ध हो गया । इसी घटना के बाद द्रोण को एकलव्य की धनुर्विद्या का पता चला था और उसने एकलव्य से उसका अंगूठा माँगा था ।
द्रोण मंदिर में एकलव्य द्वारा बनाई पत्थर की मूर्ति रखी हुए बताई जाती है और इसी मंदिर के समीप एकलव्य पार्क भी बना हुआ है । एकलव्य ने मूर्ती की स्थापना करके गुरु द्रोण को साक्षात् मानकर यहाँ धनुर विद्या सीखी थी, इसलिए इसका नाम एकलव्य सिटी होना चाहिए था । इस मंदिर में हर वर्ष सर्दियो में भादो मास का मेला लगता है जिसमे महान धनुर्धर एकलव्य की विशेष पूजा होती है, लेकिन कश्यप-निषाद समाज के पूज्य का महाभारतकालीन ये महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहे है ।
कश्यप समुदाय के गौरव 'एकलव्य' की इन ऐतिहासिक विरासतों/मंदिरो को भव्य रूप और प्रचारित किये जाने की आवश्यकता है ताकि हमारे स्वजाति महापुरषो के संघर्ष से हमारी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिले और वो गर्व से कहे कि हम एकलव्य के वंशज है ।