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उत्तर प्रदेश के अमरोहा के लोकल टूर्नामेंट में तौसीफ अली नाम के एक तेज गेंदबाज का बोलबाला था। तौसीफ तेज गेंदबाजी का शौक औ...
05/11/2023

उत्तर प्रदेश के अमरोहा के लोकल टूर्नामेंट में तौसीफ अली नाम के एक तेज गेंदबाज का बोलबाला था। तौसीफ तेज गेंदबाजी का शौक और हुनर दोनो रखते थे। लोग बाग सलाह भी देते कि क्लब में जाओ, ट्रेनिंग करो डोमेस्टिक में जा सकते हो। पर तौसीफ अली किसान परिवार से थे, डोमेस्टिक या नेशनल के लायक तैयारी के लिए न पैसे थे, ना ही उम्र बची थी। एक समय आया जब तौसीफ अली ने स्वीकार कर लिया कि शायद ये खेती किसानी ही उनका मुकद्दर है, प्रोफेशनल क्रिकेट के लिए देर हो चुकी है। तौसीफ अली भारतीय टीम के फास्ट बॉलर का सपना दिल में दफन करके अपनी आम जिंदगी में लौट आए। शादी हुई, खेती किसानी से परिवार पाला। पांच बेटे हुए, और सबके अंदर क्रिकेट को लेकर दीवानगी। तौसीफ अली को मालूम था कि उनसे कहा कहा गलती हुई थी, क्या क्या नही हुआ जिसकी वजह से उन्हें अपने सपने मारने पड़े। वो अपने बच्चो के साथ ऐसा कुछ नही होने देना चाहते थे। पंद्रह साल तक अपने बेटे को गेंदबाज बनने के लिए खुद ट्रेन करते रहे, अपने तजरबे अपनी गलतियों का निचोड़ उन्होंने अपने बेटे की राह में रख दिए। बेटे को बस चलना था और वो हासिल करना था जिसे हासिल करने की जद्दोजहद का मौका भी उसके अब्बू को हासिल नही हुआ था।

पंद्रह साल की उम्र तक बेटे को ट्रेन करने के बाद तौसीफ अली अपनी सारी जमा पूंजी इकट्ठा करके अपने बेटे को लेकर मुरादाबाद की एक क्रिकेट एकेडमी में कोच बदरुद्दीन के पास लेकर गए। कोच के सामने बेटे ने गेंद फेंकना शुरू किया तो बदरुद्दीन ने तुरंत उसे अपना शागिर्द कुबूल कर लिया। वो लड़का इस कदर मेहनती था कि उसने एक दिन भी ट्रेनिंग का नागा नही किया,मुरादाबाद में ट्रेनिंग के दौरान अगर कोई मैच खत्म होता तो वो लड़का पुरानी इस्तेमाल हुई गेंद मांगने खड़ा हो जाता, वजह पूछी गई तो बताया कि इन पुरानी गेंदों से मैं रिवर्स स्विंग की प्रैक्टिस करूंगा। बदरुद्दीन को पूरा यकीन था कि इस लड़के को अंडर 19 के ट्रायल में तो सिलेक्टर उठा ही लेंगे। इसी उम्मीद के साथ शमी ने ट्रायल दिया, सोच बदरुद्दीन के मुताबिक सिलेक्टर के पक्षपातपूर्ण रवैए के कारण शमी को मौका नहीं दिया गया। बदरुद्दीन से कहा गया कि अगले साल आइए इसे लेकर, लड़के में जान है, कब तक दूर रखेंगे सिलेक्टर इसे इंडियन कैप से। बदरुद्दीन दूर दर्शी आदमी थे, बोले इस लड़के का एक साल और दाव पर नही लगाना है, उन्होंने लड़के के पिता तौसीफ अली से बात की और कहा कि इसे आप कलकत्ता भेजिए। वहा क्लब खेलेगा तो आज नही कल स्टेट टीम में आ ही जायेगा। तौसीफ अली के पास ये जुआ खेलने की सिर्फ एक वजह थी अपने बेटे की काबिलियत और जुनून पर उनका भरोसा।

कलकत्ता आकर उस लड़के ने एक क्लब ज्वाइन कर लिया,पर स्टेट और नेशनल टीम का रास्ता दूर भी था और मुश्किल भी। जुनून के भरोसे वो बंगाल तो पहुंच गया, पर जुनून न तो पेट भरता है न सर पर छत रखता है।पर दुनिया में ऐसे लोगो की कमी नही जो जुनून और काबिलियत ही ढूढते है लोगो में,ऐसे ही एक शख्स थे देवव्रत दास, जो की उस वक्त बंगाल क्रिकेट के असिस्टेंट सेकेट्री की हैसियत पर थे। वो उस लड़के की काबिलियत से इतने इंप्रेस हुए कि कलकत्ता में बेघर उस लड़के को अपने साथ रहने के लिए रख लिया। फिर उन्होंने बंगाल के एक चयनकर्ता बनर्जी को उस लड़के की प्रतिभा पर नजर रखने को कहा।बनर्जी ने लड़के को गेंद फेंकते देखा और उसे बंगाल की अंडर 22 की टीम में सिलेक्ट कर लिया। देवदत्त दास से जब उस लड़के पर ऐसी मेहरबानी की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि "इस लड़के को रूपया पैसा नही चाहिए,इसे बस एक चीज नजर आती है वो है पिच के आखिर में गड़े हुए तीन स्टंप। स्टंप से गेंद की टकराने की आवाज उस लड़के को इतनी पसंद है कि उसके ज्यादातर विकेट बोल्ड आउट ही है।"

वहा से निकलकर उस लड़के ने मोहन बागान क्लब ज्वाइन किया, वहा ईडन गार्डन के नेट्स में उसने सौरव गांगुली को गेंदबाजी की। सौरव के साथ भी वही हुआ, जो अब तक हर उस इंसान के साथ हो रहा था जो उस लड़के को गेंद फेंकते हुए देख रहा था। गांगुली इंप्रेस हुए और फिर उनकी रिकमेंडेशन पर शमी को बंगाल की 2010–11 की रणजी टीम में चुन लिया गया। कुछ साल की मेहनत और जद्दोजहद के बाद 6 जनवरी 2013 के दिन पाकिस्तान के खिलाफ इस लड़के को इंडियन टीम की डेब्यू कैप दी गई। जिसे पहनने के बाद आज तक वो लड़का उस टोपी नंबर 195 का रुतबा दिन ब दिन बढ़ाए जा रहा है। हजारों दर्शको के बीच में, वो लड़का पूरे दम के साथ जब दौड़ना शुरू करता था तो उसके अंदर एक ही लालच रहता, किसी तरह गेंद स्टंप को लगे और वो टक का साउंड आए जिसे सुनकर ही इतने साल वो सांस लेता रहा है। जिंदगी की तमाम उतार चढ़ाव, मुश्किलों परेशानियों के बावजूद आज भी, अमरोहा के तेज गेंदबाज तौसीफ अली का बेटा मोहम्मद शमी, जर्सी नंबर 11 पहन कर जब रनअप पर दौड़ना शुरू करता है, तो उसके पीछे पीछे उसके अब्बू का सपना, कोच बदरुद्दीन की लगन, देवदत्त दास की इंसानियत सब कुछ साथ साथ चलता है दौड़ता है।

11/03/2023
08/03/2023
06/03/2023

2009 में जिनकी मृत्यु हुई उनको 2017 में ललिया थाना में विवेचना के दौरान जिन्दा दिखाया गया...
पीड़ित नानबाबू ने अपने बयान में कि उनकी जमीन अवैध तरीके से भू माफियाओं ने अपने कब्जे में ले मैं दर-दर भटकता रहा लेकिन मुझे इंसाफ नहीं मिला और मैं एसएसपी पोस्ट के माध्यम से न्याय की गुहार लगा रहा हूं







21/02/2023
3 दिन के मुख्यमंत्रीहिंदी फिल्म नायक के 'अनिल कपूर की तरह' यूपी के तीन दिन का CM बनें थे ऐ नेता, जानें किन परिस्थितियों ...
05/02/2023

3 दिन के मुख्यमंत्री

हिंदी फिल्म नायक के 'अनिल कपूर की तरह' यूपी के तीन दिन का CM बनें थे ऐ नेता, जानें किन परिस्थितियों में मिली थी जिम्मेदारी
फिल्मी पर्दे पर आपने एक दिन का मुख्यमंत्री भी देखा होगा और उसके कारनामे देखकर लोगों को सिनेमा हॉल में तालियां व सीटी बजाते भी देखा होगा. अगर आपको लगता है कि हकीकत में ऐसा नहीं हुआ तो आप गलत हैं. भले ही एक दिन का सीएम न बना हो, लेकिन एक नेता हैं जो तीन दिन के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. चलिए जानते हैं कौन हैं वह तीन दिन के मुख्यमंत्री और किन परिस्थितियों में वह सीएम बने व हटाए गए.
UP ka 3 Din ka CM: आपने अनिल कपूर (Anil Kapoor) की फिल्म 'नायक' तो देखी ही होगी. इस फिल्म में मुख्यमंत्री का इंटरव्यू कर रहे न्यूज एंकर के प्रश्न से परेशान होकर मुख्यमंत्री एक दिन का सीएम बनने का प्रस्ताव देता है तो वह काफी सोच-विचार के बाद हां कर देता है. इसके बाद न्यूज एंकर से एक दिन का मुख्यमंत्री बना यह शख्स राजनीति को बदलकर रख देता है. खैर यह फिल्मी कहानी है. हम सब यह भी जानते हैं कि फिल्मी कहानी भी हमारे समाज का आईना ही होती हैं. भले ही एक दिन का सीएम और फिल्म जैसा करिश्मा आजतक नहीं हुआ हो, लेकिन उत्तर प्रदेश ने तीन दिन का मुख्यमंत्री जरूर देखा है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 से पहले उन तीन दिन के मुख्यमंत्री के बारे में भी जान लेते है
ये उन दिनों की बात है...
इस वाक्य से लग रहा होगा कि इस स्टोरी को लेकर कितना ड्रामा और सस्पेंस बनाया जा रहा है. असल में यह कहानी है ही ऐसे दौर की. कहानी उत्तर प्रदेश की 13वीं असेंबली की है. 1996 में विधानसभा चुनाव हुए तो भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 174 सीटें मिलीं, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) 110 सीटों के साथ दूसरे और बहुजन समाज पार्टी (BSP) 67 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही. कांग्रेस (Congress) को 33 सीटें मिलीं और 13 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे. अन्य पार्टियों को 27 सीटों पर जीत मिली. तब उत्तर प्रदेश में विधानसभा की कुल सीटों की संख्या आज की तरह 403 नहीं बल्की 425 थी और बहुमत का आंकड़ा 213 था. जाहिर है किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. पांच साल की विधानसभा में 5 मुख्यमंत्री बदले और एक बार राष्ट्रपति शासन भी लगाना पड़ा.

कौन-कौन बने मुख्यमंत्री
विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला और चुनाव के बाद भी पार्टियों में गठबंधन को लेकर सहमति नहीं बनी. इसलिए 13वीं विधानसभा की शुरुआत राष्ट्रपति शासन के साथ हुई. राज्य में करीब डेढ़ साल तक राष्ट्रपति शासन रहा. मार्च 1997 में मायावती (Mayawati) राज्य की मुख्यमंत्री बनीं और 184 दिन तक इस पद पर रहीं. सितंबर 1997 में कल्याण सिंह (Kalyan Singh) मुख्यमंत्री बने और नवंबर 1999 तक इस पद पर रहे. नवंबर 1999 में राम प्रकाश गुप्ता (Ram Prakash Gupta) को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया और वह करीब 1 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे. उनके बाद राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने अक्टूबर 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और मार्च 2002 तक मुख्यमंत्री रहे. चार मुख्यमंत्रियों की बात हो गई. प्रश्न यह है कि पांचवे मुख्यमंत्री कौन थे और किन परिस्थितियों में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया?

कौन थे 3 दिन के मुख्यमंत्री
तीन दिन तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता का नाम जगदंबिका पाल है. मौजूदा दौर में भाजपा नेता जगदंबिका पाल (Jagdambika Pal) उस समय अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस में थे. मायावती से लेकर राजनाथ सिंह तक सभी मुख्यमंत्री भाजपा और बसपा गठबंधन के तहत मुख्यमंत्री बने थे. इस गठबंधन को विधायक नरेश अग्रवाल के नेतृत्व में कांग्रेस से अलग होकर बनी पार्टी अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस का समर्थन हासिल था. फरवरी 1998 में नरेश अग्रवाल ने इस गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद राज्यपाल रोमेश भंडारी ने 21 फरवरी 1998 को कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी. उन्होंने कांग्रेस को सरकार बनाने का न्यौता दिया और जगदंबिका पाल राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. नरेश अग्रवाल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. राज्यपाल के आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच ने रोक लगा दी और कल्याण सिंह को वापस मुख्यमंत्री के रूप में बहाल कर दिया. इस दौरान जगदंबिका पाल 21 फरवरी से 23 फरवरी 1998 तक तीन दिन राज्य के मुख्यमंत्री रहे.
कौन हैं जगदंबिका पाल
जगदंबिका पाल

21 अक्टूबर 1950 को बस्ती जिले में जन्मे जगदंबिका पाल वर्तमान में भाजपा नेता हैं. कांग्रेस से अलग होकर वह नारायण दत्त तिवारी के साथ ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) में शामिल हुए. 1997 में उन्होंने नरेश अग्रवाल, राजीव शुक्ला व अन्य नेताओं के साथ मिलकर अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी बनाई. बाद में वह कांग्रेस में लौटे और उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर यूपी में सिद्धार्थनगर जिले की डुमरियागंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीते भी. 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. इसके बाद वह 2014 और 2019 में भी भाजपा के टिकट पर डुमरियागंज से लोकसभा चुनाव जीते

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27/01/2023

यहां पूरी होती है मनोकामना मंडप माता मंदिर गोंडा डेहराश मार्ग पर स्थित है यहां लोगों की मनोकामना पूर्ण होने पर श्रीमद्भागवत देवी भागवत और भंडारा करवाते हैं मंदिर में शुक्रवार और सोमवार को काफी भीड़ रहती हऐ

19/01/2023

एक 8वीं पास गरीब युवक ने दिखाई अपनी कलाकारी| गरीब हैं तो क्या हुआ हिम्मत देखो| SSP POST

हेलो दोस्तो आज की इस वीडियो मैं हम आपलोगों को एक 8वीं पास गरीब युवक से मिलवाने जा रहे हैं,जिसने अपने कलाकारी से अपना एक अलग पहचान बना लिया है

15/01/2023
15/01/2023

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता व पूर्व राज मंत्री स्वर्गीय विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह के जन्म दिवस पर गोंडा में नेहा सिंह राठौर ने गाया शराबी पति पर बहुत ही सुन्दर गाना

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आपने हाथी को देखा होगा..... ❗️हम लोगों ने देखा गांव में, छोटे-छोटे गांवों में, एक हाथी आ जाए तो गांव भर के वयोवृद्ध श्रद...
12/11/2022

आपने हाथी को देखा होगा..... ❗️

हम लोगों ने देखा गांव में, छोटे-छोटे गांवों में, एक हाथी आ जाए तो गांव भर के वयोवृद्ध श्रद्धालु हाथ जोड़ कर खड़े हो जाते हैं........ और छोटे-छोटे बच्चों से कहते हैं, प्रणाम करो ...... गणेश जी हैं।

जय हो गणेश जी महाराज की.....

ये गांव की भावना होती है।
इतने हाथ जोड़े जाते हैं हाथी के लिए,जितने शायद ही किसी अन्य जीव के लिए जोड़े जाते हों...

लेकिन एक विडंबना भी है।

वो ये कि जितने भौंकने वाले इसके पीछे पड़ते हैं, किसी के पीछे नहीं...

गांव भर के वयोवृद्ध श्रद्धालु आगे हाथ जोड़े खड़े होंगे..

तो गांव भर के कुत्ते भौंकते पीछे पड़े होंगे...
हमें आज तक ये बात समझ नहीं आयी कि कुत्तों को कठिनाई क्या है हाथी से❓

कोई बराबरी का मामला भी नहीं है...
कुत्ते हमारी भाषा समझते नहीं...
हमें उनकी बात समझ आती नहीं...
अगर वो हमारी बात समझते तो

हम उनसे पूछते जरूर..

अगर वो समझते तो एक ही उत्तर देते,हमें हाथी से कोई दिक्कत नहीं है...
हमें तो इसके आगे हाथ जोड़े जो खड़े हैं,वो सहन नहीं हो रहे...
जिसके आगे लोग हाथ जोड़े खड़े होंगे,
भोंकने वाले उसी के पीछे पड़े होंगे...

जिसकी स्तुति होगी उसी की निंदा होगी...
एक बात और कुत्तों की इतनी हिम्मत नहीं कि हाथी के आगे आकर के भौंकें...
ये आगे आ के भौंकते नहीं और पीछे भोंकना बंद करते नही

लेकिन हाथी की चाल में मस्ती बनी रहती है...

क्यों❓

क्योंकि वो भौंकने वालों की ओर मुड़ के देखता नहीं और हाथ जोड़ने वालों के पास ठहरता नहीं

जिसके जीवन में निंदा -- स्तुति समान हो गयी हो,
ऐसा ज्ञानवान व्यक्ति ही लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है...

बाकी आप समझदार हैं !

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25.12.1963 - 21. 09.2022

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इटियाथोक बेलवा शुक्ल निवासी दिव्यांग सुशील कुमार शुक्ला 4 महीना पहले इलाहाबाद बैंक इटियाथोक में खाता खुलवाए थे पर अभी तक उनको पासबुक नहीं मिला है बैंक कर्मी द्वारा बताया जा रहा है कि मशीन खराब है इस वजह से पासबुक नहीं मिल पाएगा सुशील कुमार शुक्ला को दिव्यांग पेंशन योजना में पेंशन के लिए आवेदन करना था जिसमें पासबुक खाता नंबर की जरूरत पड़ती है जिसके कारण उनको योजना का लाभ उठाने में कठिनाई हो रही है

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