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https://www.hslivenews.in/archives/22799
08/04/2024

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*एसओजी व थाना कोतवाली पुलिस की संयुक्त टीम द्वारा 56 किलो से अधिक गांजे के...

26/02/2024

एक मुस्लिम लेखिका ने हिन्दू समाज के लोगों के गालों पर कैसा करारा थप्पड़ मारा है, जरा देखिए

{1} आपकी विवाहित महिलाओं ने माथे पर पल्लू तो छोड़िये, साड़ी पहनना तक छोड़ दिया ... दुपट्टा भी गायब ? किसने रोका है उन्हें ? हमने तो तुम्हारा अधोपतन नहीं किया .. हम मुसलमान तो इसके जिम्मेदार नहीं हैं ?

{2} तिलक बिंदी तो आपकी पहचान हुआ करती थी न.. तुम लोग कोरा मस्तक और सूने कपाल को तो अशुभ, अमंगल और शोकाकुल होने का चिह्न मानते थे न । आपने घर से निकलने से पहले तिलक लगाना तो छोड़ा ही, आपकी महिलाओं ने भी आधुनिकता और फैशन के चक्कर में और फॉरवर्ड दिखने की होड़ में माथे पर बिंदी लगाना तक छोड़ दिया, यहाँ मुसलमान कहाँ दोषी हैं ?

{3} आप लोग विवाह, सगाई जैसे संस्कारों में पारंपरिक परिधान छोड़कर....लज्जाविहीन प्री-वेडिंग जैसी फूहड़ रस्में करने लगे और जन्मदिवस, वर्षगांठ जैसे अवसरों को ईसाई बर्थ-डे और एनिवर्सरी में बदल दिया, तो क्या यह हमारी त्रुटि है ?

{4} हमारे यहां बच्चा जब चलना सीखता है तो बाप की उंगलियां पकड़ कर इबादत / नमाज के लिए मस्जिद जाता है और जीवन भर इबादत /नमाज को अपना फर्ज़ समझता है, आप लोगों ने तो स्वयं ही मंदिरों में जाना 🛕 छोड़ दिया । जाते भी हैं तो केवल ५ - १० मिनट के लिए तब, जब भगवान से कुछ मांगना हो अथवा किसी संकट से छुटकारा पाना हो । अब यदि आपके बच्चे ये सब नहीं जानते - करते कि मंदिर में क्यों जाना है ? वहाँ जाकर क्या करना है ? और ईश्वर की उपासना उनका कर्तव्य है .... तो क्या ये सब हमारा दोष है ❓

{5} आपके बच्चे कान्वेंट ✝️ से पढ़ने के बाद पोयम सुनाते हैं तो आपका सर गर्व से ऊंचा होता है ! होना तो यह चाहिये कि वे बच्चे नवकार मंत्र या कोई श्लोक याद कर सुनाते तो आपको गर्व होता ! .. इसके उलट, जब आज वे नहीं सुना पाते तो न तो आपके मन में इस बात की कोई ग्लानि है, और न ही इस बात पर आपको कोई खेद है !
हमारे घरों में किसी बाप का सिर तब शर्म से झुक जाता है जब उसका बच्चा रिश्तेदारों के सामने कोई दुआ नहीं सुना पाता ! हमारे घरों में बच्चा बोलना सीखता है तो हम सिखाते हैं कि सलाम करना सीखो बड़ों से, आप लोगों ने प्रणाम और नमस्कार को हैलो हाय से बदल दिया, तो इसके दोषी क्या हम हैं ?

{6} हमारे मजहब का लड़का कॉन्वेंट से आकर भी उर्दू अरबी सीख लेता है और हमारी धार्मिक पुस्तक पढ़ने बैठ जाता है, और आपका बच्चा न हिन्दू पाठशाला में पढ़ता है और संस्कृत तो छोड़िये, शुद्ध हिंदी भी उसे ठीक से नहीं आती, क्या यह भी हमारी त्रुटि है ?

{7} आपके पास तो सब कुछ था - संस्कृति, इतिहास, परंपराएं !
आपने उन सब को तथाकथित आधुनिकता की अंधी दौड़ में त्याग दिया और हमने नहीं त्यागा बस इतना ही भेद है ! आप लोग ही तो पीछा छुड़ाएं बैठे हैं अपनी जड़ों से ! हमने अपनी जड़ें न तो कल छोड़ी थीं और न ही आज छोड़ने को राजी हैं !
{8} आप लोगों को तो स्वयं ही तिलक, शिखा आदि से और आपकी महिलाओं को भी माथे पर बिंदी, हाथ में चूड़ी और गले में मंगलसूत्र - इन्हें धारण करना अनावश्यक लगने लगा ?

{9} अपनी पहचान के संरक्षण हेतु जागृत रहने की भावना किसी भी सजीव समाज के लोगों के मन में स्वत:स्फूर्त होनी चाहिये, उसके लिये आपको अपने ही लोगों को कहना पड़ रहा है ।

{10} जरा विचार कीजिये कि यह कितनी बड़ी विडंबना है ! यह भी विचार कीजिये कि अपनी संस्कृति के लुप्त हो जाने का भय आता कहां से है और असुरक्षा की भावना का वास्तविक कारण क्या है? हम हैं क्या❓

{11} आपकी समस्या यह है कि आप अपने समाज को तो जागा हुआ देखना चाहते हैं, किंतु ऐसा चाहते समय आप स्वयं आगे बढ़कर उदाहरण प्रस्तुत करने वाला आचरण नहीं करते ।
जैसे बन गए हैं वैसे ही बने रहते हैं ... आप स्वयं अपनी जड़ों से जुड़े हुए हो, ऐसा दूसरों को आप में दिखता नहीं है और इसीलिये आपके अपने समाज में तो छोड़िये, आपके परिवार में भी कोई आपकी धार्मिक बाते सुनता नहीं । ठीक इसी प्रकार आपके समाज में अन्य सब लोग भी ऐसा ही आपके जैसा डबल स्टैंडर्ड वाला हाइपोक्रिटिकल व्यवहार ( शाब्दिक पाखंड ) करते हैं । इसीलिये आपके समाज में कोई भी किसी की नहीं सुनता, क्या यह हमारी त्रुटि है ?

{12} आपने अपनी दिनचर्या बदली । एक समय था जब आपकी वेशभूषा से कोई भी बता देता था कि ये मारवाड़ी / वैश्य परिवार से है । आप लोगों ने अपनी वेशभूषा छोड़ी, आपने अपना खान-पान बदला, लहसुन प्याज आलू खाना आपके लिए आम बात हो गई, शराब व मांसाहार भी आदतें हो गईं ?

कृपया इस बारे में जरा गहन चिंतन करें ।

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22/02/2024

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*घोर कलयुग:जल्लाद बेटे का खूनी खेल,बीमा का पैसा हड़़पने के लिए मां को उतार दिया...

17/02/2024

राम ! राम !! राम !!! राम !!!!



*विषय: प्रेम रस ।*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि देखो ! एक विनाशी है, एक अविनाशी है । दो तत्व हैं । यह संसार जितना देखने में आता है, यह सब विनाशी है । इसका तात्पर्य क्या है कि हमारी चीज नहीं है । हम परमात्मा के अंश हैं, और अविनाशी हैं ।
*ईश्वर अंश जीव अबिनाशी ।*
और ये (संसार) विनाशी है, ये प्रकृति का है और प्रकृति का कार्य है । और परिवर्तनशील है । महाप्रलय में भी इसमें क्रिया होती रहती है । जैसे हम सोते हैं, तो क्रिया होती रहती है । ऐसे महाप्रलय में भी क्रिया बंद नहीं होती । जैसे हम सोते हैं तो सोने में भी क्रिया होती है । जैसे जल्दी उठा दे तो कहते हैं कि मेरे को कच्ची नींद में उठा दिया । तो सोने में भी क्रिया होती है । ऐसे ही प्रलय, महाप्रलय में भी क्रिया होती रहती है ।
स्वयं
*ईश्वर अंश जीव अबिनाशी ।*
*चेतन अमल सहज सुख राशि ।।*
और समाधि भी कारण शरीर में है । आत्मा स्वाभाविक है, बदलता नहीं है । समाधि में भी दो अवस्था हैं । समाधि और व्युत्थान । परंतु स्वयं सत्तारूप होने से सत् रूप है । इसका (स्वयं का) शरीर से अलग अनुभव होगा तो भी पहले से ही अलग है । जैसे आप मकान में बैठे हो, तो मकान से अलग हो । ऐसे आप शरीर में बैठे हो, तो भी शरीर से अलग हो । शरीर विकारी है । आप नित्य, शरीर अनित्य है, विकारी है । आप निर्विकार हैं । आप निर्विकार हैं - तो आप परमात्मा के अंश हैं । परा प्रकृति चेतन है और अपरा प्रकृति जड़ है । हम परमात्मा के साथ अभेद रहते हैं, तो परमात्मा के साथ एक रहते हो । और परमात्मा के दास बनते हैं, तो दो हो जाते हैं । तो वह द्वैत, अद्वैत से भी सुंदर है । इस वास्ते परमात्मा से विमुख होते हैं, तो जड़ता होती है । और यहां परमात्मा को जान लेते हैं, तो फिर प्रेम होता है । पहले प्रेम होता है, उसमें अज्ञान रहता है और बोध होने के बाद प्रेम होता है, वह विशेष आनंददायक होता है । वह प्रेम बढ़ता रहता है । उस प्रेम में मस्ती रहती है । ज्ञान में अखंड आनंद रहता है और भक्ति में प्रेम बढ़ता है । यह जो प्रेम बढ़ता है, इसका नाम ही रास है, रासलीला है ।
सुख के जोड़े में दु:ख है । और रास होता है उसमें रस होता है । वह रस अलग होता है । परमात्मा की प्राप्ति होने पर जड़ का रस नहीं रहता है । परमात्मा मीठे लगते हैं । इस प्रकार दो मार्ग हैं - ज्ञान और प्रेम । ज्ञान में सूक्ष्म अहम रहता है । प्रेम में नहीं रहता । अभ्यांतर मल रहता है, वह प्रेम में नहीं रहता । एक प्रियता । वह प्रियता भगवान् को भी प्यारी लगती है । तो ऐसा प्रेम होता है, वह बढ़ता है । भगवान् प्यारे लगते हैं । प्यारे लगते ही रहते हैं । तो शांति होती है । वह अपने स्वरूप में स्थित है । इस वास्ते ज्ञान में अखंड रस है । प्रेम में अनंत रस होता है । संसार का संबंध रहेगा नहीं और परमात्मा का संबंध कभी मिटेगा नहीं । संसार के साथ में दु:ख होता है । प्रेम का संबंध है, वह अत्यंत विलक्षण है । प्रतिक्षण वर्धमान है । संसार का प्रेम दु:ख में परिणित होता है । भगवान् के वियोग में भी रोना होता है । पर उसमें भी प्रेम होता है । संसार के दु:ख में रोने में आंसू गर्म होते हैं । भगवान् के प्रेम के आंसू ठंडे होते हैं ।

परमात्मा की तरफ एक लालसा होती है, तो प्रेम बढ़ता है । इस वास्ते ज्ञान में अखंड रस है और प्रेम में अनंत रस होता है । जैसे कृष्ण पक्ष का चंद्रमा घटता रहता है । शुक्लपक्ष का चंद्रमा बढ़ता रहता है । ऐसे ही संसार का सुख घटता रहता है । और भगवान् का आनंद बढ़ता है । असीम आनंद, अचल आनंद, अनंत आनंद, पूर्ण आनंद । आनंद ही आनंद, आनंद ही आनंद । गोस्वामी जी महाराज ने सबके बाद विनय पत्रिका लिखी । बालक मां के पास संकोच नहीं करता और पिता से डरता है । बालक मां से कहता है कि पिताजी से कह देना । (ऐसे तुलसी दास जी कहते हैं - सीता मां से कि राम जी को बोलना) कि आपकी दासी का दास कहलाता है और आपके नाम से पेट भरता है । आप मेरी बात रामजी द्रवित हो तो कहना कि तुलसीदास है । फिर मैं आपके नाथ के गुण गाऊंगा । तो मां को भी घूस (रिश्वत) देते हैं । विदुरानी जी ने प्रेम में भगवान् को केले का छिलका दे दिया और गिरी फेंक दी । भगवान् को उसमें ही आनंद आने लग गया । तो विदुर जी ने कहा कि क्या कर रही है । फिर हाथ धोकर, केला धोकर, केले की गिरी दी । तो भगवान् बोले विदुर जी इसमें वह आनंद नहीं है ।

🧵   तिलक   🧵तत्सर्वं निष्फलं याति ललाटे तिलकं विना ॥ ब्रह्मवैवर्त पुराण तिलक बिना किए गए सर्व पुण्य कर्म निष्फल होते है।...
16/02/2024

🧵 तिलक 🧵

तत्सर्वं निष्फलं याति ललाटे तिलकं विना ॥

ब्रह्मवैवर्त पुराण तिलक बिना किए गए सर्व पुण्य कर्म निष्फल होते है।

ऊर्ध्वपुण्ड्रधरः कुर्यात्तस्य पुण्यमनन्तकम्।। पद्मपुराण उत्तरखण्ड 225.10 ऊर्ध्वपुण्ड्र धारण कर जो कुछ यज्ञ, दान, तपश्चर्या, जप, हवन आदि किया जाता है, उसका अनन्त पुण्य होता है ।।

गोपीचन्दनलिप्ताङ्गो यं यं पश्यति चक्षुषा। तं तं पूतं विजानीयात नात्र कार्या विचारणा।।

गोपीचन्दनोपनिषत् गोपी चन्दनसे युक्त व्यक्ति अपने नेत्रोंसे जिस जिसको देखता है। उन सभीको पवित्र जानना चाहिए, इसमें कोई सन्देह नहीं है।

और गलती से भी कभी तिलकधारी की निंदा न कीजिएगा, क्योंकि शिवजी ने तिलक धारी की निंदा करने वालो को देखने से ही पाप लगे उतने तुच्छ, नरकगामी और अंत में श्वान, गधा, सुवर व कीड़े मकोड़ों की योनि में जन्म लेने का विधान दिया है।

ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रतिदिन चंदन का तिलक लगाने मात्र से भी बहुत सारी ग्रह दशाएँ सुधरने लगती है। और शास्त्र कहते है कि यमराज ने अपने यमदूतों को भी आदेश दिया है कि जिनके शरीर पर बारह तिलक, मस्तक पर शिखा और गले में तुलसी माला हो उन्हें दूर से ही प्रणाम कर लो, उन्हें नरक की यातनाएँ कभी मत दो।

इसलिए हमेशा तिलक करके ही दिन की शुरुआत करें। तिलक के लिए भगवान को अर्पित चंदन, भस्म, कुमकुम या तुलसीकी मिट्टी उपयोग में लें।

यदि आप किसी परंपरा से हो तो उस परंपरा विशेष का तिलक कीजिए। यदि आप किसी विशेष देवता या भगवान की पूजा कर रहे हो तो उनकी पूजन विधि के अनुसार तिलक कीजिए।

आचार्य पंडित हरिशंकर त्रिपाठी शास्त्री

16/02/2024

॥ श्रीहरि: ॥

*प्रश्न - नाम-जपसे भाग्य (प्रारब्ध) पलट सकता है ?*

*उत्तर - हाँ, भगवन्नामके जपसे, कीर्तनसे प्रारब्ध बदल जाता है, नया प्रारब्ध बन जाता है; जो वस्तु न मिलनेवाली हो वह मिल जाती है; जो असम्भव है, वह सम्भव हो जाता है-ऐसा सन्तोंका, महापुरुषोंका अनुभव है। जिसने कर्मोंके फलका विधान किया है, उसको कोई पुकारे, उसका नाम ले तो नाम लेनेवालेका प्रारब्ध बदलनेमें आश्चर्य ही क्या है ?*

*ये जो लोग भीख माँगते फिरते हैं, जिनको पेटभर खानेको भी नहीं मिलता, वे अगर सच्चे हृदयसे नाम-जपमें लग जायँ तो उनके पास रोटियोंका, कपड़ोंका ढेर लग जायगा; उनको किसी चीजकी कमी नहीं रहेगी।*

*परन्तु नाम-जपको प्रारब्ध बदलनेमें, पापोंको काटनेमें नहीं लगाना चाहिये। जैसे अमूल्य रत्नके बदलेमें कोयला खरीदना बुद्धिमानी नहीं है, ऐसे ही अमूल्य भगवन्नामको तुच्छ कामोंमें लगाना बुद्धिमानी नहीं है।*

*प्रश्न- जिसके पाप बहुत हैं, वह भगवान् का नाम नहीं ले सकता; अतः वह क्या करे ?*

*उत्तर - बात सच्ची है। जिसके अधिक पाप होते हैं, वह भगवान्का नाम नहीं ले सकता।*

*वैष्णवे भगवद्भक्तौ प्रसादे हरिनाम्नि च।*
*अल्पपुण्यवतां श्रद्धा यथावन्नैव जायते॥*

*अर्थात् जिसका पुण्य थोड़ा होता है, उसकी भक्तोंमें, भक्तिमें, भगवत्प्रसादमें और भगवन्नाममें श्रद्धा नहीं होती।*

*जैसे पित्तका जोर होनेपर रोगीको मिश्री भी कड़वी लगती है। परन्तु यदि वह मिश्रीका सेवन करता रहे तो पित्त शान्त हो जाता है और मिश्री मीठी लगने लग जाती है।*

*ऐसे ही पाप अधिक होनेसे नाम अच्छा नहीं लगता; परन्तु नाम जप करना शुरू कर दे तो पाप नष्ट हो जायँगे और नाम अच्छा, मीठा लगने लग जायगा तथा नाम- जपका प्रत्यक्ष लाभ भी दीखने लग जायगा।*

नाम जप की महिमा गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे

16/02/2024

*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-माघ*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-सप्तमी(सुबह 08:54 तक)*
*नक्षत्र-भरणी(सुबह 08:47 तक)*
*वार-शुक्रवार*
*विक्रम संवत-2080*
*तदनुसार-16 फरवरी 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-सुबह 10:30 से 12:00 तक है।*
*सूर्य राशि-कुम्भ*
*चन्द्र राशि-मेष*
*अग्निवास-पाताल/पृथ्वी*
*दिशाशूल-पश्चिम*
*व्रत पर्व विवरण-रथ सप्तमी,नर्मदा जयन्ती,भीष्म अष्टमी,मासिक कार्तिगाई,ज्वालामुखी योग।*
*19 फरवरी सोमवार-छत्रपति शिवाजी महाराज जयन्ती।*
*20 फरवरी मंगलवार-जया एकादशी।*
*21 फरवरी बुधवार-प्रदोष व्रत।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय सियाराम !* 🌷
*गंगाजल दिव्य जल है ।* यह महान पवित्र है । *सब लोगों को रोजाना सुबह और शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिए ।*🌻

परम श्रद्धेय स्वामीजी *श्री रामसुखदास जी महाराज* हे नाथ ! हे मेरे नाथ !! मैं आपको भूलूँ नहीं !!! मेरे तो गिरधर-गोपाल *दूसरो न कोई*🙏
आचार्य पंडित हरिशंकर त्रिपाठी शास्त्री

16/02/2024
।।श्रीहरिः।।----------------------------------------भगवन्नाम----------------------------------------“ होहि राम को नाम जप...
15/02/2024

।।श्रीहरिः।।

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भगवन्नाम
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“ होहि राम को नाम जपु ”

अध्यात्मरामायणमें भगवान्‌ शंकर खुद रामजीसे कहते हैं‒‘भगवन्‌ ! मैं भवानीके सहित काशीमें रहता हूँ । ‘मुमूर्षुमाणस्य दिशामि मन्त्रं तव रामनाम’ आपका जो राम-नाम मन्त्र है उसका मैं दान देता हूँ मरनेवालेको कि ले लो भाई जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाय । एक सज्जन कहते थे, मैंने कई आदमियोंको देखा है । काशीमें मरनेवालेका कान ऊँचा हो जाता है ! मानो शंकर इस कानमें मन्त्र देते हैं । वह नाम अपने भी ले सकते हैं, कितनी मौजकी बात है ! कितना ऊँचा नाम है ! जो भगवान्‌ शंकरका इष्ट है, वह हम ले सकते हैं कलियुगी जीव ! कैसी कृपा हो गयी, अलौकिक कृपा हो रही है । थोड़ी-सी बात है । नाम लेने लग जाय, ‘राम राम राम’ । सन्तोंने कहा है, ‘मुक्ति मुण्डे में थारे’ तेरे मुँहमें मुक्ति पड़ी है । राम-राम लेकर निहाल हो जा तू । ऐसा सस्ता भगवान्‌का नाम । जपने लग जाओ, सीधी बात है । खुला भगवान्‌का नाम है । तिजोरियोंमें बन्द धनको तो आप हिम्मत करके खुला लेते हैं । पर चौड़े (खुले) पड़े इस धनको लेते ही नहीं ।

राम दड़ी चौड़े पड़ी, सब कोई खेलो आय ।
दावा नहीं सन्तदास जीते सो ले जाय ॥

जो चाहे सो ले जाय, कैसी बढ़िया बात ! कितनी उत्तम बात ! सबके लिये खुला है । किसीके लिये मनाही नहीं, ऐसा भगवान्‌का नाम तत्परतासे लिया जाय, उत्साहपूर्वक, प्रेमसे, अपने प्रभुका समझ करके ।

सन्तोंने कहा‒परलोकमें नाम लेनेवाले और नाम न लेनेवाले दोनों रोते हैं । क्यों ? नाम लेनेवाले रोते हैं कि इस बातका पता नहीं था कि नामकी इतनी महिमा निकलेगी । यह पता होता तो रात-दिन नाम लेते । नाम न लेनेवाले रोते हैं कि हमरा समय खाली चला गया । भाई, अब अपनेको पता लग गया । मरनेके बाद पश्चात्ताप करोगे तब क्या होगा ? अभी समय है । जबतक यह श्वासकी धोंकनी चलती है, आँखें टिमटिमाती हैं, जीते हैं‒यह मौका है; भगवान्‌का नाम ले लें । लोग हँसे तो परवाह नहीं ।

हस्ती की चाल चलो मन मेरा,
जगत कूकरी को भुसबा दे ।
तूं तो राम सिमर जग हंसवा दे ॥

लोग हँसते हैं तो अच्छी बात‒हँसो भाई, हँसकर खुश होते हैं । खुशीमें हँसी आती है, बड़े आनन्दकी बात है । हम भगवान्‌का नाम लेवें तो उनको हँसी आवे, बड़ी अच्छी, बड़े आनन्दकी, बड़ी खुशीकी बात है । अपने तो भगवान्‌के नाममें लग जाओ, बस । हँसी करो, तिरस्कार करो, दिल्लगी उड़ाओ, कोई बात नहीं है । सम्मान-मानमें तो नुकसान है । अपमान, निन्दा सहनेमें नुकसान नहीं है । इससे पापोंका ही नाश होता है । इधर आप नाम लो और वे हँसी-दिल्लगी उड़ावें तो डबल लाभ होगा ।

तेरे भावैं जो करो, भलौ बुरौ संसार ।
नारायण तू बैठिकै अपनौ भुवन बुहार ॥

दूसरे करते हैं कि नहीं करते हैं‒इस तरफ खयाल करनेकी जरूरत नहीं है । जैसे भूख लगती है तो यह पूछते नहीं कि तुमलोगोंने भोजन कर लिया है कि नहीं; क्योंकि मैं अब भोजन करना चाहता हूँ । जब प्यास लगती है तो यह नहीं पूछते कि तुमलोगोंने जल पिया है कि नहीं; क्योंकि मैं जल पीना चाहता हूँ । प्यास लग गयी तो पी लो भाई जल । ऐसे भगवान्‌के नामकी प्यास लगनी चाहिये भीतर । दूसरा लेता है कि नहीं लेता है । क्या करता है, क्या नहीं करता है । पर खुदको लाभ ले ही लेना चाहिये ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

💘 *सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें !* 💘💘 मैं न होता, तो क्या होता? 💘“अशोक वाटिका" में *जिस समय रावण क्रोध में भरकर, ...
14/02/2024

💘 *सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें !* 💘

💘 मैं न होता, तो क्या होता? 💘

“अशोक वाटिका" में *जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा*
तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सिर काट लेना चाहिये!

किन्तु, अगले ही क्षण, उन्होंने देखा
"मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !

यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?

बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, *मैं न होता तो क्या होता* ?
परन्तु ये क्या हुआ?

सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये,

*कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!*

आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!"

*तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है,

*एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा!*
जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े,
*तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की*

और जब "विभीषण" ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है!*

आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नहीं जायेगा, पर पूंछ में कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये*

तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी,

वरना लंका को जलाने के लिए मैं कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता, और कहां आग ढूंढता?

पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !*
इसलिये *सदैव याद रखें,* कि *संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान* है!
हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं!
इसीलिये *कभी भी ये भ्रम न पालें* कि...
*मैं न होता, तो क्या होता ?*

ना मैं श्रेष्ठ हूँ,
*ना ही मैं ख़ास हूँ,*

मैं तो बस छोटा सा,
*भगवान का दास हूँ॥*

🚩👏 *जय सिया राम

आचार्य पंडित हरिशंकर त्रिपाठी शास्त्री

श्रीपंचमी/ बसन्त पंचमी/ सरस्वती पूजा विशेष :----------------------------------------------------------       "माघे मासि ...
13/02/2024

श्रीपंचमी/ बसन्त पंचमी/ सरस्वती पूजा विशेष :
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"माघे मासि सिते पक्षे पंचमी या श्रीयः प्रिया। तस्या: पूर्वाह्न एवेह कार्या: सारस्वतोस्छ्व:।।" 'पण्डित सर्वस्व' ग्रन्थ से गृहीत इस श्लोक की मर्मार्थ है-- "माघ शुक्ल पंचमी तिथि के पूर्वान्ह में सरस्वती पूजोच्छव करणीय।।"

ज्योतिष के अनुसार उन्नति और पैदावार यानी ऐसे नया बदलाव का प्रतीक शुक्र ग्रह है। और कल्पना किया जाता है कि इस समय ज्ञान- विज्ञान के देवता बृहस्पति के घर में सायद संजीवन- विद्या- ज्ञाता शुक्रदेव भी विचरण करते हैं !!

जब ब्रह्मा जी के द्वारा ब्रह्मांड- सर्जना हुआ था-- उस अवसर में चांद्र- माघ- शुक्ल- पंचमी को वीणा- पुस्तक- शोभित- हस्ता, स्वेत- वसन- परिहिता, ज्ञान और आवाज की प्रतिकात्मिका महादेवी सरस्वती माता की शुभावतरण के कारण, इस दिवस को "बसंत पंचमी" त्योहार के रूप में मान्यता प्राप्त है।।

फिर पुराण के अनुसार भगवान शिव जी जब समाधि में काफी लंबे समय से मग्न थे, तो पार्वती माता ने उनको बाहर निकलने के लिए शुक्रदेव के प्रतीकमन्य कामदेव से कहा था। (कुछ विद्वान लोग मानते है कि, ध्यान और समाधि जैसे स्थितावस्था, शनिदेव का नैसर्गिक गुण के प्रतीक है !) माता की आज्ञा पालन कर कामदेव ने शिव जी को उस समाधि से बाहर निकल कर ज्ञान और वैभव की तरफ मोड़ने के लिए ही फूलों रूपी तीर से उनके ऊपर वार किया था। और सायद इसी कारण वशः स्मारक रूप में भी वही रंगीन दिन को फूलों से भरपूर नवकलिकाएं से सज्जित रुत्तुराज की प्रतीक "बसंत- पंचमी" उत्सव के नाम में मनाया जाता है।।

ज्ञानगुरु बृहष्पति का प्रतीक तथा प्रिय रंग है-- 'पीला'। सायद इसी वजह से "सरस्वती- जयंती" मनाने के दौरान भी धवलवस्त्र- परिहिता- पद्मासना- महास्वेता- सरस्वती माता को कंहा- कंहा खुसी में पीले वस्त्रों से सजाकर, उनके ऊपर पीले फूलों भी चढ़ाने की परंपरा है। इसके अलावा इस समय पंजाब तथा भारत के किसी- किसी हिस्सों में पकने लगी गेहूं तथा सरसों की फसल पीली रंगों में हंसते- खिलते है। इस पीली रंग की शुभ संकेत को नजर में रखते हुए श्रीपंचमी में वाग्देवी के ऊपर पीली फूलों चढ़ाना भी एक कारण हो सकता है।।

बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता की पूजा उनकी विशेष मंत्र "ॐ ऐंग सरस्वती नमः"-- का 108 बार अवश्य जाप करना चाहिए। माँ वाग्देवी सरस्वती बुद्धि, विद्या और आवाज की देवी हैं। मान्यता है कि जिस छात्र पर माँ की कृपा हो, उसकी बुद्धि बहुत ही तेज/ प्रखर होती है। इसलिए खासतौर पर बसंत पंचमी में यदि कोई छात्र माँ सरस्वती की आराधना करे, उनके मंत्र का जाप करें या कोई अन्य उपाय करें, तो माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।।

विद्यार्थियों के लिए कुछ टोटके :
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👌(1) अपनी किताबों/ लिखन सामग्री के साथ बसंत पंचमी के दिन मोर पंख रखना चाहिए। मान्यता है कि इससे पढ़ने में मन लगता है।।

👌(2) बच्चों की बुद्धि तेज करने के लिए इस बसंत पंचमी के दिन से ही औषधि रूपिणी ब्राह्मी, शंखपुष्पी जैसी मेधावटी को सेवन के लिए देना आरंभ करना चाहिए।।

👌(3) जिन बच्चों में हकलाने या बोलने में दिक्कत हो-- बांसुरी के छेद से शहद भरकर, उसे मोम से बंद कराकर, श्रद्धा और विश्वास के साथ उस बच्चों के हाथ से ही वाग्देवी को समर्पण कर, जमीन में गाड़ देना चाहिए। ऐसा करने से बच्चों का बोलने की दिक्कत क्रमशः दूर होने की विश्वास प्रचलित है।।

👌(4) बसंत पंचमी के दिन प्रातः उठकर, बच्चों को अपनी- अपनी हथेलियां देखनी चाहिए। क्योंकि कहते हैं- "कराग्रे लक्ष्मी बसते, कर मध्ये सरस्वती, कर मूले तू गोविदः प्रभाते कर दर्शनम्।" यानी हथेली में माँ सरस्वती का वास होती है, जिनकों देखना माँ सरस्वती के दर्शन करने के बराबर होती है।।

👌(5) बच्चों के अलावा भी जिन लोगों को बोलने में दिक्कत हो, उन्हें बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की सश्रद्ध पूजा करने के बाद, विद्वान पुरोधा जी की सहायता लेकर-- जीभ को तालु में लगाकर बीज मंत्र 'ऐं' का यथाविधि जाप करना चाहिए।।

माता के लिए पुष्पांजलि मंत्र :
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"या कुन्देन्दुतुषारहारधवला
या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा
या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः
सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्यापहा॥१।।

शुक्लां ब्रह्मविचार सार
परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां
जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं
पद्मासने संस्थिताम्‌।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं
बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२।।

।।आचार्य पंडित हरिशंकर त्रिपाठी शास्त्री :।।

https://www.hslivenews.in/archives/22700
25/01/2024

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राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।सह्स्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने “रामो विग्रहवान् धर्मस्साधुस्सत्यपराक्रमः।राजा सर्...
22/01/2024

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सह्स्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने
“रामो विग्रहवान् धर्मस्साधुस्सत्यपराक्रमः।
राजा सर्वस्य लोकस्य देवानां मघवानिव

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12/01/2024

https://youtu.be/FzpMSfOJZZ8?si=SvYP3UMFKrmfYtZP

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मछली पकड़ने का युवक की डूबने से मौतhttps://youtu.be/8edYElfks1g?si=40AWOBbatstk1Ha8*आवश्यकता है एच एस लाइव न्यूज़ के लिए-...
04/01/2024

मछली पकड़ने का युवक की डूबने से मौत

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आज पकौड़े के साथ ठंढक का आनन्द लिया गया
31/12/2023

आज पकौड़े के साथ ठंढक का आनन्द लिया गया

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27/12/2023

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*जिस हिन्दू घर के बच्चे  #तुलसी की जगह  #क्रिसमस_ट्री के दिवाने हो जाएं तब समझ लेना उस परिवार का भविष्य खतरे में है...**...
21/12/2023

*जिस हिन्दू घर के बच्चे #तुलसी की जगह #क्रिसमस_ट्री के दिवाने हो जाएं तब समझ लेना उस परिवार का भविष्य खतरे में है...*
*अपनी नई पीढ़ी को #सनातन_धर्म और #संस्कृति के बारे में खूब पढ़ाओ लिखाओ और समझाओ..*
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