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कर्जपूरे तीन महीने के बाद गेट पर खड़े बेटे को देख कर वसुधा चौंक सी गयीं।बेटे की उपेक्षा से नाराज दरवाजा खोल कर बिना कुछ ...
10/12/2024

कर्ज
पूरे तीन महीने के बाद गेट पर खड़े बेटे को देख कर वसुधा चौंक सी गयीं।बेटे की उपेक्षा से नाराज दरवाजा खोल कर बिना कुछ बोले वह सोफे पर जा बैठी। बेटा भी माँ के सामने आ कर चुपचाप बैठ गया।
कुछ देर तक वहां सन्नाटा पसरा रहा, न वसुधा पहल करना चाहती थी ,न विशाल ।फिर वसुधा ने ही मौन को भंग कर विशाल से उसके बच्चों का हाल चाल पूछा ।
" सब ठीक हैं " विशाल ने संक्षिप्त सा जवाब दिया और फिर से कुछ पल के लिये वहां मौन पसर गया।
वसुधा ने ही दोबारा चुप्पी तोड़ी -" बेटा क्या मांँ की कभी याद नहीं आती ! पापा के जाने के बाद तेरी माँ कैसी है, क्या ये जानने का भी मन नहीं होता "।
" नहीं! ऐसा नहीं है,.. माँ वो...बेटे ने नजरें चुराते हुए संक्षिप्त सा जवाब दिया।
" तो फिर आज कैसे रास्ता भूल गया, क्या ये देखने आया है कि बुढ़िया अभी मरी या नहीं " आहत माँ के शब्दों में इस बार दर्द और कड़वाहट झलक रही थी।
" कहा ना! इसलिए नहीं आया हूं "विशाल ने तैश में आते हुए कहा।
" तो फिर..'
" मांँ वो मेरे कुछ पैसे निकल रहे हैं आप पर,बस उन्हीं के लिये ... उसने अपने वाक्य को अधूरा ही छोड़ दिया ।
" परन्तु बेटा हमने तो कभी तुम से कोई पैसे नहीं लिये, न मैंने, न तेरे पापा ने, फिर..."
" वो क्या है ना माँ ! पापा के अन्तिम संस्कार के वक्त मैं आप से मांँग न सका था, तब सामान लाने में मेरे पांच हजार रुपये खर्च हो गये थे,अब तो पापा की पेंशन भी आने लगी होगी ..."। विशाल ने निर्लज्जता से जवाब दिया।
सुन कर मां का मुंह खुला का खुला ही रह गया। " ओह! ऐसा? तो बेटा हमारा भी कुछ कर्जा है तुम्हारे ऊपर!"
" मेरे ऊपर ? माँ मुझे आपने दिया ही क्या है जिसे मैं उतारूं"।
" तुम भूल गये बेटा !,तुम नौ माह मेरी कोख में रहे, डेढ़ वर्ष मेरा दूध पिया, तुम्हारे बीमार पड़ने पर मैं रात रात भर जागी। तुम्हें कोई कमी न हो, तुम्हारी जरूरतों को पूरा करने के लिये तुम्हारे पापा पूरी सर्दियाँ एक फटे कोट में निकाल देते थे। क्या पहले हमारे इस कर्ज को चुका पाओगे।"
इतना कह कर आँखों की कोरों में ढुलकआये पानी को साड़ी के पल्लू में समेटती हुई अलमारी खोलने चली गई , वापस लौटने पर उसकी दोनों मुट्ठियां बन्द थीं " ले बेटा ये तेरा उधार! एक मुट्ठी से रुपए निकालकर दे दिए और ये मेरे अन्तिम संस्कार के लिए हैं क्यों कि तब मैं न रहुंगी। वसुधा ने दूसरी मुठ्ठी भी खोल दी। ये सुन कर विशाल की सोई हुई आत्मा बिलख उठी और वह रोते हुए मां के क़दमों में गिर गया।
सुनीता त्यागी

यह शैव्या राजा सत्य हरिश्चन्द्र जी की पत्नी नहीं अपितु हमारी इस छोटी सी कहानी की नायिका है। अपने धर्म राज की धर्मपत्नी। ...
09/12/2024

यह शैव्या राजा सत्य हरिश्चन्द्र जी की पत्नी नहीं अपितु हमारी इस छोटी सी कहानी की नायिका है। अपने धर्म राज की धर्मपत्नी। मां बाप ने धर्मराज के पल्ले बांध दिया जिसे शैव्या और धर्म राज दोनों निभाये जा रहे थे।

हमारी शैव्या कोई ऐसी वैसी नारी नहीं बल्कि पूरी सातवीं जमात तक पढ़ी हुई है । गांव के स्कूल में। जहां लड़कियों का पढ़ना आवश्यक नहीं समझा जाता था।शैव्या के दादा-दादी , पिता ने भी उसकी पढ़ाई का कड़ा विरोध किया"क्या करेंगी छोरी पढ़-लिखकर।"

मगर उसकी मां बहुत दबंग थी।उसे बहुत चाव था कि उसकी बिटिया पढ़-लिखकर मास्टरनी बनें।दर‌असल अनपढ़,गंवार शैव्या की मां मास्टरनी को ही बहुत बड़ी शख्सियत समझती थी। जिस औरत के लिए रेल,मोटर बहुत बड़ी चीज हो,शहर कभी ग‌ई न हो उसके लिए तो स्कूल मास्टरनी से बढ़कर कोई पद न था।

शैव्या अपनी मां की इकलौती संतान थी। होने को तो क‌ई बच्चे हुए किंतु देखरेख का अभाव, कुपोषण, दवा-दारू के अभाव में सभी कालकवलित हो ग‌ए।शैव्या के मां का हृदय हाहाकार कर उठा।पता नहीं क्यों उसे लगता कि"शैव्या को पढ़ना चाहिए , बहुत पढ़ना चाहिए।"

शैव्या का पिता अव्वल दर्जे का आलसी और निखट्टू था। पहले मां बाप की मेहनत के बदौलत के बदौलत पेट भरता था फिर बीबी की कमाई पर। आगे वह शैव्या से भी यही उम्मीद लगाए बैठा था,"बेटा न सही बेटी बेटी होकर ही काम काज करें ताकि उसका जीवन बिना कुछ किए बिना ही चलता रहे......"
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नेंगहोली का त्यौहार और  इनकी टोली का आगमन...!ये आय हाय करती घर में बुजुर्गों सी पहुँच कर आशिर्वाद देने लगती..!इस बार तो ...
09/12/2024

नेंग
होली का त्यौहार और इनकी टोली का आगमन...!ये आय हाय करती घर में बुजुर्गों सी पहुँच कर आशिर्वाद देने लगती..!
इस बार तो नई दुल्हन थी घर में... तो बिना अच्छा नेग लिए ये टलने वाली नहीं थीं...!"री कहाँ हो जी रजिया की अम्मा...!" "आ गयीं नामुरादों की बस्ती...!" अम्मा बड़बड़ाई..."न न हम नामुराद जरूर होती है पर सबकी झोली मुरादों से भर देती हैं...!"पान का बीड़ा मुँह में भरते हुए कमला बाई ने कहा ..!
ऊपर की छत से नई दुल्हन ने झांका ज्यों ही कमलाबाई की नजर ऊपर गयी ....वो गाल पर हाथ धरते हुए बोली ..!" री देखो ऊपर चाँद निकल आया है दिन में इनके यहां..! और ये रजिया की अम्मा इसे हमसे छुपाए बैठी है...!
"इन निपोरियो को कित्ता भी बोलें कि खिड़की में ताक झांक न करें पर सुनेंगी नहीं ....!"अम्मा नीचे से बड़बड़ाई...!
नववधू शबीना खूबसूरत और जहीन लड़की थी ...अपनी बड़ी सास को यूँ इनके लिए बड़बड़ाना उसे बड़ा नागवार गुजरा...!नई नई थी इसलिए कहा कुछ नहीं...!पर चुपचाप खिड़की से हट गई और अपनी सास से कहा" अम्मी इन्हें यूँ ही खाली हाथ रुखसत न करें ...इनकी दुआएं कभी भी खाली नहीं जाती...!" अम्मी मुस्कुराई " दुल्हन तुम भी मानती हो इन बातों को...!"जी अम्मी!" "ह्म्म्म अम्मी ने कहा"हमारे मायके में इन्हें बहुत इज्जत दी जाती है...!इन्हें इनके घर वाले तक नहीं रखते हैं ...! अल्लाह के बन्दे न तो कहीं नौकरी कर सकते हैं न और कोई काम ...भला हो नए जमाने का आजकल इनके लिए भी वो क्या कहते हैं रिज्रभेसन का...!"नई बहू खिलखिला कर हंसी और बोली..."अम्मी रिजर्वेशन..! "हां वही मुई ये जुबान हमसे न बोली जाती... अम्मी मुस्कुराई .. इनको अब जाकर इज्जत मिल रही है वो भी कहीं कहीं...!"
हां अम्मी ...मेरे तरफ से ये नेंग उन बी तक पहुंचा दो न...!
छोटी अम्मा ने देखा वो एक कागज का टुकड़ा था... उसमें कुछ नंबर लिखा हुआ था..."ये क्या दुल्हन कागज पर क्या लिखा है ??आश्चर्य से पूछा उन्होंने...!दुल्हन जो स्वयं एक NGO चलाती थी किन्नरों के उत्थान और उनके लिए अनेक ऐसे कार्य के प्रशिक्षण की व्यवस्था और सरकारी योजनाओं की जानकारी का पूरा विवरण बताया जाता था ...!शबीना ने कहा " ये मेरा फोन नंबर है।"अम्मी अभी भी हालात नहीं बदले हैं, ये घर- घर जाकर इस प्रकार नेंग न मांगे ...इन लोग भी पढ़ लिख जाएं ... समाज में इन्हें भी सम्मान मिले यही हमारी संस्था का उद्देश्य है। इनमें से कोई एक भी किन्नर जिस दिन अपने पैरों में खड़ी हो जाएं वो दिन मेरे लिए भी खुदा की सबसे बड़ी नेमत होगी...!"अचानक शबीना पलटी तो उसने देखा नीचे की पूरी टोली स्तब्ध होकर उसकी बातों को सुन रही है..! कमला बाई के नेत्रों से झर- झर आँसू गिर रहे थे ..
"बानो चलो री हमारा नेंग तो मिल गया...!
देवश्री गोयल जगदलपुर

प्रिया, कई सालों के बाद आज अपने गांव लौट कर आई थी, वो वहां के ज़मीदार की बेटी थी, शक्ल से तो खूबसूरत थी ही, और अब शहर मे...
09/12/2024

प्रिया, कई सालों के बाद आज अपने गांव लौट कर आई थी, वो वहां के ज़मीदार की बेटी थी, शक्ल से तो खूबसूरत थी ही, और अब शहर में पढ़ कर समझदार भी हो गई थी.. वो इस गांव की अकेली लड़की थी जो शहर पढ़ने गई थी.. और कुछ दिनों की छुट्टी में वो वापस पुरानी यादें ताजा करने वापस आई थी.. कई सालों से बाहर रहने के कारण उसको गांव बहुत बदला बदला सा लग रहा था.. पर वो नदी का किनारा और वहां लगा आम का पेड़ अब भी वैसे ही थे.. जहां वो बचपन में अपने दोस्त के साथ खेला करती थी.. पर अब उस नदी पर जाने की मनाही लग चुकी थी गांव में.. क्योंकि गांव वालों का मानना था की उस पेड़ पर भूत रहता है.. मगर अभी तक ये बात प्रिया को पता नहीं थी..

घर पहुंच कर, Fresh हो कर, सबसे बातें करके, खाना खा कर अब सोने का वक्त भी हो गया था.. पर कई सालों से शहर में AC की हवा में सोने की आदत हो चुकी थी तो गांव में पंखे की हवा में उसको नींद नही आ रही थी..

इसलिए प्रिया खिड़की में जा कर बैठ गई, और वहां से गांव को देखने लगी.. फिर भी मन नही लगा तो वो घर की छत पर जा कर ताज़ी ठंडी हवा का मजा लेने लगी,
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बादामी आँखें,रौनक और रूमी एक जान दो शरीर थे, मतलब होनहार और कॉलेज की शान थे।हर इवेंट उनके बिना अधूरा होता,और उनकी जीत भी...
09/12/2024

बादामी आँखें,
रौनक और रूमी एक जान दो शरीर थे, मतलब होनहार और कॉलेज की शान थे।हर इवेंट उनके बिना अधूरा होता,और उनकी जीत भी पक्की रहती।स्वाभाविक है कुछ को बुरा भी लगता ही रहा होगा।
तो विरोधस्वरूप रूमी को कॉलेज आते- जाते कुछ छात्रों की फब्तियाँ और सीटियाँ सुननी पड़ती थीं।
एक दिन ऐसे ही शोहदे नीरज ने रूमी को राह चलते छू लिया,फिर क्या था सड़क पर ही पर्स और चप्पल से उसकी ख़ूब आवभगत की रूमी ने।भीड़ में इस कदर पिटने की सोचा भी न होगा नीरज ने ।शर्मिंदगी के साथ बदले की भावना भी प्रबल हो गई मन में।
एक दिन लेक्चर के बाद रूमी और रौनक हाथ में हाथ दिए बात करते चले जा रहे थे।
वो जीवनसाथी के रूप में एक- दूसरे को पसन्द भी करने लगे थे।रौनक में जीवनसाथी के सारे गुण रूमी को नज़र आ रहे थे।रौनक ने जल्द शादी करने की बात भी कही।वह अक्सर कहता, " पहले करूँगा मैं इक नौकरी ,फिर घर आएगी तू सोणी छोकरी"।और दोनों खिलखिला कर हँसने लगते।
तभी आगे मोड़ पर नीरज तेज़ी से आता दिखा, उसने हाथ में पकड़ी बोतल से रूमी पर कुछ छिड़का और भाग गया।जब जलन से रूमी चिल्लाने लगी तो तेज़ाब फेंकने का अहसास हुआ। ख़ुद पर पड़े तेज़ाब के छीटों की चिंता न कर रौनक रूमी को गोद में उठा कर अस्पताल की ओर बेतहाशा भागा।
इस भयानक दौर से निकलने में और सर्जरी में 2-3साल लग गए।चेहरे का गौर वर्ण साँवला हो चुका था और जगह -जगह से सिकुड़ गई थी चमड़ी। बची रहीं तो उसकी वो दो बादामी आँखें ।रूमी ने चाहा भी कि रौनक उससे दूर हो जाये ,पर उसने साथ न छोड़ा।हाँ,इसी बीच उसकी नौकरी लग गई थी।
एक दिन रौनक माँ को लेकर रूमी के घर गया।रौनक ने पहले ही माँ को अपनी पसन्द बता दी थी,उनको भी बच्चे की ख़ुशी में अपनी खुशी नज़र आई सो,हाँ कह दिया।
रूमी के माता -पिता भी मान गए ।सुहागरात में रूमी का हाथ अपने हाथ में लेकर रौनक में मुस्कुराते हुए पूछा," तो मैडम ,मिसेज रौनक बन कर आप ख़ुश हैं न आप ?"
सिर का आँचल ठीक करते हुए रूमी ने लजा कर अपनी आँखें झुका लीं।
*सत्यवती मौर्य

दीवाली की सफाई हो रही थी। एक पुराने ट्रंक से कुछ चीजें बाहर निकली। उन चीज़ों में एक पुरानी HMT की चाभी वाली कलाई घड़ी थी। ...
09/12/2024

दीवाली की सफाई हो रही थी। एक पुराने ट्रंक से कुछ चीजें बाहर निकली। उन चीज़ों में एक पुरानी HMT की चाभी वाली कलाई घड़ी थी। मैं बड़े अनुराग से उस घड़ी को इस तरह कपड़े से पोछने लगा जैसे उसे पोछ नहीं – सहला रहा होऊ।

इतवार का दिन था। दुकान की साप्ताहिक छुट्टी थी और बेटी भी चूँकि घर में ही थी इसलियें कुछ खुद के इरादे से कुछ पत्नी के दिशानिर्देशों के अंतर्गत मैं और बेटी सफाई के नाम पर कबाड़ समझें जाने वाली चीजें टटोल रहें थे।

दीवाली में अभी समय था। त्योहार करीब हो तो साप्ताहिक छुट्टी के दिन भी दुकान खोलना पड़ता है। फिर तो दुकान पर पत्नी की भी सहायता लेनी पड़ती है।

ससुराल से खबर आयी थी कि ससुरजी की तबियत खराब चल रही है। वे अपने सभी बच्चों से मिलना चाहतें है अतः पत्नी पुत्र के साथ मायके गयी हुई थी।

पत्नी बेशक मायके में थी पर सुबह-सुबह बेटी को हुक्म दे दी थी कि अगर पापा दुकान पर नहीं जाते है तो मोटा- मोटी घर की सफाई चालू कर दो। ज़्यो-ज़्यो दीवाली करीब आती जायेगी सबकी मशरूफियत बढ़ती जायेगी।

हाई कमान का आदेश !

हुक्मउदूली की हिम्मत किसमें थी ?
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पनाह _new storyप्रीति सक्सेना _महामारी में सुहाग को खो बैठी... कम्मो अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को सीने से लगाए भूखे मरने ...
09/12/2024

पनाह _new story
प्रीति सक्सेना _
महामारी में सुहाग को खो बैठी... कम्मो अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को सीने से लगाए भूखे मरने की स्थिति में आ गई ,न कोई रिश्तेदार ना कोई संगी साथी जो उसे किसी तरह का सहारा दे सके ...दिमाग ने काम करना बंद कर दिया कुछ सोच समझ नहीं पा रही, करूं तो क्या करूं? जाऊं तो कहां जाऊं?!!
सामने देखा एक गाड़ी भरकर कहीं जा रही है बस छोटे-छोटे दोनों बच्चों को छाती से लगाए बस के ऊपर जाकर बैठ गई !पहाड़ पर बसे एक शहर में बस रुकी ,तो भीड़ के साथ उतर गई ,असहाय सी इधर-उधर देख रही थी सोचने समझने की शक्ति खत्म हो चुकी थी , भूख से बिलबिलाते बच्चों को देख किसी भले मानस ने डबल रोटी का पैकेट पकड़ा दिया ,उस समय पेट तो भर गया पर आगे का क्या? रैन बसेरा में ठौर मिली रातभर वही पड़ी रही, उसके जैसी कई बेसहारा औरतें और बुजुर्ग थीं!!
कहां काम मांगे... नई जगह नए लोग... अचानक देखा .....पहाड़ी औरतें लकड़ी के गट्ठे सिर पर लादे बेचने निकली हैं ,उन्हीं के साथ वो भी कुछ औरतें के साथ हो ली ..एक बूढ़ी अम्मा को अपने बच्चे सुपुर्द कर निकल पड़ी अपनी जीविका की तलाश में !!
यह पहाड़ हर तरह से सुरक्षा करते हैं हमारे देश की यह सभी बातें सुनी तो थी पर आज उसके जीवन को और उसकी संतान को बचाने में भी यही पहाड़ साथ दे गए!!
लकड़ी के गट्ठर को बेच मिले पैसे देख एक अनोखी शक्ति समा गई तन में.... विश्वास हो चला.... बच्चों को जिंदा रख पाऊंगी, पाल ही लूंगी मैं.... निकल पड़ी कमर कस कर दोगुनी ताकत से.....
" अभी तो काम बाकी है
अभी भी जान बाकी है
सुबह की क्या फिकर मुझको
अभी तो शाम बाकी है!!"
प्रीति सक्सेना
इंदौर

देविका जल्दी-जल्दी नए साल के अवसर पर पिकनिक पर जाने के लिए तैयारी कर रही थी। कई सालों से कहने के बाद पंकज इस साल पिकनिक ...
09/12/2024

देविका जल्दी-जल्दी नए साल के अवसर पर पिकनिक पर जाने के लिए तैयारी कर रही थी। कई सालों से कहने के बाद पंकज इस साल पिकनिक पर जाने को तैयार हुआ था। उसके फैक्ट्री के ही एक अन्य सहयोगी मित्र भी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पिकनिक स्पॉट पर आ रहे थे। वो लोग लोकल थे जबकि देविका को लगभग 50 किलोमीटर दूर जाना था।

सुबह से उठकर उसने नमकीन पूरी, भुजिया और हलवा बना लिया था। छोटे गोलू के लिए एक्स्ट्रा टोपी और स्वेटर हैंडबैग में रख लिया।

बहुत उत्साहित थी देविका। पिकनिक के बाद उसे राजधानी भी घूमना था। 8बजे दोनों पति-पत्नी बस से पिकनिक स्थल पर पहुँचे तो देखा पंकज के दोस्त और पत्नी तबतक पहुंच चुके थे। दोनों परिवार साथ- साथ घूमने लगे। पहले उन्होंने पार्क देखा। देविका खूब तस्वीरें खिंचवा रही थी। फिर उन्होंने डैम भी देखा। दोपहर होने पर साथ में लाए चादर बिछाकर उन्होंने लंच किया। पंकज के दोस्त की पत्नी वेज बिरयानी और थर्मस में चाय लायी थी।

हंसी-मजाक करते हुए उनलोगों ने बड़े प्रेम से खाना खाया। सालभर के गोलू के साथ पंकज के दोस्त की 5 वर्षीय बेटी खूब खेल रही थी। फिर उसके वो लोग ऑटो कर मेन रोड गए। वहाँ पर उन्होंने घुम-घुमकर खरीददारी की। चाट व गोलगप्पे खाये। घूमते- घामते 8 बजनेवाले थे तो देविका ने वापस चलने की जल्दी मचाई। बस स्टैंड तक पंकज के मित्र उन्हें छोड़ने आये। सभी बसें काफी भरी हुई जा रही थीं। बस वाले पैसेंजर लेने को तैयार पर सीट देने को नहीं। आधे घण्टे से वो लोग खड़े थे। तभी एक टैक्सी वाले सामने से आया और पूछा -"कहां जाना है आपलोगों को?"
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बोनसाई  !"हल्दी की रस्म में पीला लंहगा ही पहनना तुम""मुझे लहंगा नहीं साड़ी पसंद है""मुझे तो लहंगा ही पसंद है, वही पहनोगी...
09/12/2024

बोनसाई !
"हल्दी की रस्म में पीला लंहगा ही पहनना तुम"
"मुझे लहंगा नहीं साड़ी पसंद है"
"मुझे तो लहंगा ही पसंद है, वही पहनोगी तुम।मैंने ऑर्डर भी कर दिया ये देखो।"
"क्या? " तान्या चौंक गई,ये प्रभास की आवाज इतनी अलग क्यूं लग रही है?
"प्रभास !शादी हम दोनों की है तुम अकेले सब कैसे तय कर सकते हो?"
"क्या हुआ, मैंने तय किया तो ,आखिर तुम आओगी भी तो मेरे ही घर में ।"
सोच में पड़ गई तान्या...कितनी बातें,कितनी जिद,प्रभास हमेशा अपनी बात मनवा ही लेता और उसके प्यार में पागल तान्या सब मान भी जाती है ।
आज "मेरे घर "वाली बात ने आहत कर दिया उसे।
माना कि यही रीत है,पर बोलने का भी कोई तरीका होता है ना।
कभी बालों को लेकर,कभी लिपस्टिक के रंग के लिए,कभी कपड़ों के लिए ... ओह उसने पहले ध्यान क्यों नहीं दिया।
"यदि चाहो तो तुम मेरे घर आ जाओ,मुझे कोई प्राब्लम नहीं होगी,मतलब तो साथ रहने से है ना।"
" बिल्कुल नहीं,दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा,
लोग क्या कहेंगे।"
" लोगों की इतनी परवाह ,कभी सोचा मुझपर क्या गुजरेगी?"
" अरे यार!इसमें इमोशनल होने वाली क्या बात है?यही होता आया है ,यही होने दो,फालतू बातें मत सोचो।और हां आज शाम को पार्टी में कुछ वेस्टर्न पहनना,अच्छी लगती हो उसमें।"
"तुम क्या पहनोगे?"
"तुम टेंशन मत लो,जो मन करेगा,पहन लूंगा।"
तान्या एकटक बोनसाई देख रही है जिसे प्रभास ने तीन सालों की मेहनत से तैयार किया है।उसका पूरा बगीचा इन्हीं से भरा है,तान्या को पसंद नहीं किसी पेड़ को इस कदर तोड़ मरोड़ कर काटा जाना।
"मैं पार्टी में नहीं आऊंगी"
"क्यों ,अब क्या हुआ"?
"मन नहीं है मेरा...और शादी के लिए भी दोबारा सोचूंगी।"
"पर हुआ क्या?"
बस,यही ख्याल आया, मैं बोनसाई नहीं...और बनना भी नहीं चाहती...!
मौलिक/वर्षा गर्ग

जब संत ने देखा कि मोहित रात भी मंदिर में ही गुजार देता है अपनी धर्मपत्नी को छोड़कर, घर-गृहस्थी त्यागकर तो उन्होंने उसे ब...
09/12/2024

जब संत ने देखा कि मोहित रात भी मंदिर में ही गुजार देता है अपनी धर्मपत्नी को छोड़कर, घर-गृहस्थी त्यागकर तो उन्होंने उसे बुलाया अपने पास। उससे पूछा कि वह उदास-उदास सा क्यों रहता है, क्या कष्ट है, किन्तु वह मौन रहा। कुछ पल के बाद उन्होंने पूछा कि क्या उसकी पत्नी उसे पसंद नहीं है।

क्षण-भर बाद ही सिर हिलाकर उसने उनकी बातों से सहमति जताई, तब उन्होंने फिर मृदुल आवाज में प्रश्न किया कि उसकी पत्नी में क्या कमी है, वह अंधी है, लंगड़ी है या व्यवहार-कुशल नहीं है, आखिर क्या खराबी है, शिष्टाचार नहीं जानती है, मृदुभाषी नहीं है।

"नहीं बाबा!.. वह सब कुछ ठीक है, उसमें इस तरह की कोई कमी नहीं है।"

मोहित की नई-नई शादी हुई थी। उसके अनुसार उसकी पत्नी आकर्षक नहीं थी, वह सांवली थी, दुबली-पतली थी। उसका चेहरा भी उसे पसंद नहीं था। वह चिंतित रहने लगा। शायद रिश्तेदारों के दबाव में यह शादी संपन्न हो गई थी। उस वक्त फोटो में सभी को ठीक ही लग रही थी।
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छिपा प्यार   दिन भर तितली सी मचलती रहती थी शगु। हमेशा अपनी मनमानी करती। बेपरवाह सी। माँ-बाप की इकलौती संतान थी, इस बात क...
09/12/2024

छिपा प्यार
दिन भर तितली सी मचलती रहती थी शगु। हमेशा अपनी मनमानी करती। बेपरवाह सी। माँ-बाप की इकलौती संतान थी, इस बात का भरपूर फायदा उठाया था उसने। आज भी उठा रही थी तभी तो अपनी पसंद के लड़के विश्वास से शादी कर रही थी।
वो तो कोर्ट मैरिज करना चाहती थी, बडी़ मुश्किल से राजी हुई थी सनातनी शादी के लिए। आखिर माँ-बाप के भी कुछ अरमान थे इस शादी को लेकर।
फेरे शुरू हो चुके थे, दिलीप ने शगु के नजदीक हल्की हिचकियाँ महसूस की, कोई और लड़की होती तो दिलीप को लगता कि लड़की को मायके से बिछुड़ने का दर्द है इसे पर शगु..... ये तो बिंदास है। पर ये क्या हर फेरे के साथ हिचकियों की आवाज़ तेज होती जा रही थी। सातवें फेरे तक तेज हिचकियों के साथ रोना भी शुरू हो चुका था। सब हैरान थे शगु के इस व्यवहार से सिवाय सिमरन के।
कल रात अचानक फोन आया था शगु का। कह रही थी "सब कुछ मनपसंद से हो रहा है फिर भी कुछ अजीब है.... मन खुश नहीं हो पा रहा है.... पता नहीं क्यों मन उदास है। और जब सिमरन ने कहा था कि ये मायका छूटने की उदासी है तो कैसे बात को हवा में उड़ा दिया था। तब कैसे सिमरन ने कहा था", देखना बच्चू अभी तो तू दहाड़े मार कर भी रोएगी। कवियत्री का ह्रदय है मेरा..... तेरे जैसी बिंदास को जानती हूँ तुम्हें जैसौं खुद ही अपनी भावनाओं का पता नहीं चलता और अचानक ही भावनाएं तुम जैसी पर हावी हो जाती हैं। देखलेना कल....... ।"पूरी बात सुनने से पहले ही फोन कट गया था।
विदाई के समय खूब रोई थी शगु माँ-बाप के गले लगकर। इतने बरसों का छिपा प्यार आज आँसुओं के रुप में छलक रहा था।
रेखा राणा करनाल

" अरे , सुनती हो ...." कमल जी ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई ।आवाज सुनते ही गैस बंद करके फटाफट अंकिता जी कमल जी के सामने खड़...
09/12/2024

" अरे , सुनती हो ...." कमल जी ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई ।

आवाज सुनते ही गैस बंद करके फटाफट अंकिता जी कमल जी के सामने खड़ी थीं ," हां जी बोलिए, कुछ चाहिए था आपको ??"
"अरे नहीं , सब कुछ तो बिना बोले ही ला देती हो। मैं तो कह रहा था कुछ देर मेरे पास भी बैठ जाओ ।"
" हां हां , बैठूंगी, बस आपके लिए छेना फाड़ दूं । चाय के साथ थोड़ा खा लेना ।"
" भाग्यवान, कितना खिलाओगी मुझे । घिसे हुए कपड़े को कितना भी सील लो , वो ज्यादा नहीं चलने वाला ।" कहकर कमल जी खिखिया कर हंस दिए ।
"आप चुप करिये , खुद तो स्वस्थ होने की कोशिश करते नहीं हैं ऊपर से मैं कुछ करती हूं तो मेरा भी मजाक बनाते रहते हैं । आप घिस गए हैं तो मैं कौन सा अभी अभी फैक्ट्री से निकलकर आई हूं ।" स्नेह में लिपटे हुए शब्दों के साथ ही अंकिता जी कमल जी को डांट रही थी।
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*****मुन्ना का प्यार****         ये क्या बोल रहे हो, बेटा?तुम अमेरिका चले जाओगे तो हम इस उम्र में कैसे जी पायेंगे?यहाँ अ...
09/12/2024

*****मुन्ना का प्यार****
ये क्या बोल रहे हो, बेटा?तुम अमेरिका चले जाओगे तो हम इस उम्र में कैसे जी पायेंगे?यहाँ अपने देश में क्या कमी है, मुझे और तेरी मां दोनों को खूब पेंशन मिलती है, तुम भी कमा ही रहे हो, एक बंगला और एक फ्लैट हमारे पास है, बेटा वो सब हम तुम्हारे नाम कर देते हैं, वैसे भी सब कुछ तुम्हारा ही तो है, इस 83वर्ष की उम्र में हम तुझसे दूर नही रहना चाहते।बेटा हमसे दूर मत जाना।
83वर्ष का जगदीश यह सब गुहार अपने एकलौते बेटे से कर रहा था।बेटा अमेरिका में जॉब मिल जाने के कारण वहाँ जाना चाहता था और जगदीश भविष्य में अपने और अपनी पत्नी के एकाकी जीवन के लिये चिन्तित था।ऐसा नही था कि बेटा बेरोजगार था, वो बैंक में जॉब कर रहा था, खुद जगदीश तथा उसकी पत्नी केंद्रीय जॉब से निवृत हुए थे,दोनो को ही अच्छी खासी पेंशन मिलती थी।पत्नी बिमार रहने लगी थी,और सपोर्ट से ही थोड़ा बहुत चल पाती थी।
बेटे के अमेरिका जाने के ऐलान के बाद जगदीश की पत्नी तो मानो पत्थर की हो गयी, उसने बेटे को रुक जाने के बारे मे एक शब्द भी नही बोला।वो जगदीश की पत्नी थी, जगदीश उसके चेहरे से ही उसके सदमे को महसूस कर बेटे से रुकने का आग्रह कर रहा था।पर बेटे पर विदेश जाने का ग्लैमर हावी था, वो अपने पिता को समझाने का प्रयास कर रहा था कि उसकी अनुपस्थिति में भी उन्हें कोई तकलीफ नही होगी, घर की सफाई आदि को मेड आयेगी ही,खाना न बनाना पड़े इसलिये वो टिफीन व्यवस्था करके जायेगा, बिमारी की हालत में वो उसके मित्र को बस फोन कर देंगे तो इलाज आदि की व्यवस्था वो कर देगा।
अवाक जगदीश अपने बेटे का मुहँ देखता रह गया।कितना स्याना हो गया है हमारा मुन्ना, विदेश जा रहा है, पर हमारा सब इंतजाम करके।उसे कैसे समझाया जाता कि टिफिन के खाने में और बेटे बहु द्वारा परोसे खाने मे अपनेपन के अहसास की कमी होती है।खुद की जिम्मेदारी को दोस्त पर डाल कर हमें निश्चिंत कर रहा था,हमारा स्याना बेटा।
अपने आत्मसम्मान को ताक पर रख जगदीश ने एक बार फिर कहा कि मुन्ना विदेश जाने का चांस तो हमे भी मिला था पर तेरी बोर्ड की परीक्षा के कारण हम तो गये नही।मुन्ना अब तक अपनी सहनशक्ति खो चुका था, बोला पापा आपने बेवकूफ़ी की तो क्या आप चाहते हैं कि मैं भी बेवकूफ़ी करूँ?मुन्ना का यह रूप देख और उसका उत्तर सुनकर जगदीश सन्न रह गया।उसने कातर नजरो से अपनी अपंग पत्नि की तरफ देखा तो वो तो बस यूं ही पत्थर बनी छत की ओर देख रही थी, पर आँखों के कोर में आंसू की बूंदे वो जगदीश से कैसे छुपाती।
जगदीश एकदम खामोश हो गया,जिस आत्मसम्मान को वो जीवनभर ढोता आया था, उस बोझ को उसी के बेटे ने एक झटके में उतार दिया था।कुछ भी ना बोलकर जगदीश ने अपने बेटे को अमेरिका जाने में पूरी सहायता की।
आखिर वो चला ही गया,बूढ़े माता पिता को अकेले जीने के लिये या फिर मरने के लिये छोड़कर।किसी प्रकार जीवन की गाड़ी दोनो ने खींचनी प्रारम्भ की ही थी कि एक दिन सुबह सुबह जगदीश की पत्नी उठी ही नहीं, जगदीश आवाज देता रहा पर अनन्त यात्रा पर गया यात्री किसकी सुनता है?
जगदीश मुन्ना को उसकी माँ की मौत का समाचार नही देना चाहता था, पर उसके मित्रों ने सूचना भेज ही दी।मुन्ना का फोन आया, पापा माँ चली गयी और मैं उनके अंतिम दर्शन भी नही कर सका।आप अपने को संभालना, मैं अभी तो नहीं आ पाउँगा पर जैसे ही अवकाश मिलेगा तब मिलने आऊँगा।
कितने प्यार से मुन्ना अपने पापा को सांत्वना दे रहा था, अब वो कोई बच्चा थोड़े ही है, अमेरिका में सर्विस कर रहा है, बड़ा हो गया है ना।वो तो छुट्टियां नही मिल रही इसलिये नही आ पा रहा नही तो आता जरूर अपनी माँ का अन्तिम संस्कार भी करता,बहुत प्यार भरा पड़ा है उसके मन में।
जगदीश ने बेटे से कहा बेटा चिंता मत करो, बेकार फोन किया अरे मुन्ना वो मेरी पत्नी थी और मैं हूँ ना,सब कर लूंगा।
पत्नि को गये दो माह बीत गये थे,पूरा बंगला खाने को दौड़ता था।बेटे द्वारा उसके सम्मान को जो चकनाचूर किया था उसका दंश उसे और विचलित कर देता।इतनी उम्र होने पर भी भगवान भी अपने पास नही बुला रहा।उसका मन अब मुन्ना से भी बात करने को नही करता।
आत्मसम्मान को चोट और अकेलेपन ने जगदीश को तोड़कर रख दिया।एकदिन उसने कुछ निर्णय लिया और अपना बंगला तथा फ्लैट एक ट्रस्ट को दान कर दिया और खुद एक वृद्धाश्रम में रहने को चला गया।
यहाँ रहते जगदीश को दो वर्ष हो गये हैं।कभी कभी उसका फोन आता है या मैं उसे फोन वार्ता कर लेता हूँ, मनोभावो को पढ़ने को मैं हमेशा विडियो कॉल करता हूँ, जिससे जगदीश को देख तो सकूँ।85 वर्ष की उम्र में वो अपनी उम्र के सखाओं के बीच खुश है।एक बात और बताऊँ इन दो वर्षों में उसने कभी भी अपने बेटे का जिक्र अपनी बातों में नही किया।
एक दिन मैंने ही फोन पर मुन्ना के बारे में पूछ लिया तो जगदीश बोला अरे मुन्ना अपने पापा को बहुत प्यार करता है, अपनी माँ से भी करता था, बस मेरी मौत की खबर उसे मत देना नही तो उसे भारत न आ पाने का बहुत दुःख होगा?
जगदीश के दर्द को मै समझ रहा था, वृद्धाश्रम में जगदीश खुश था कह रहा था पेन्शन आती है, वृद्धाश्रम को दे देता हूं।पूरे आत्मसम्मान के साथ रहता हूँ, वो मेरा खूब ध्यान रखते हैं।फिर सहसा उसकी आंखों में आँसू आ जाते हैं और धीरे से कहता है मुन्ना ने हमे इतना प्यार क्यूँ दिया भला?
बालेश्वर गुप्ता
पुणे(महाराष्ट्र)

मैं जब संसार में आया तब मैंने देखा मेरे पापा एक बहुत बड़े इंजीनियर थे, और मेरी माँ सद्गृहणी मित्भाषी और ममतामयी थीं। मैं...
09/12/2024

मैं जब संसार में आया तब मैंने देखा मेरे पापा एक बहुत बड़े इंजीनियर थे, और मेरी माँ सद्गृहणी मित्भाषी और ममतामयी थीं। मैं अपने पापा को हमेशा अपने काम में व्यस्त देखता था और साथ में अपनी माँ को घर गृहस्थी के काम में हमेशा लगा देखता था।

मुझे समझ नहीं आता था कि मेरे पापा इतना पैसा कमा कर क्या करेंगे? क्योंकि उनको सिर्फ एक ही धुन थी अधिक से अधिक पैसा कैसे कमाया जाए?घर पर ही वो बहुत कम दिखाई देते थे ,हमेशा बाहर टूर पर ही रहते थे पता नहीं कहाँ कहाँ और कितने उन्होंने काम ले रखे थे खैर मैं अपनी मां की छत्रछाया में पलता,बड़ा होता रहा।

धीरे धीरे मैंने जाना मेरी माँ और पापा के बीच में वार्तालाप भी बहुत कम होता था जब भी पापा घर में रहते हमेशा कंप्यूटर, लैपटॉप में ही उलझे रहते थे पर एक बात जरूर थी वह घर में आते समय और जाते समय मुझे जरूर लाड़ लड़ाते थे।धीरे धीरे मैं पाँच साल का हो गया अब मेरी पढ़ाई के बारे में पापा ने ध्यान देना शुरू किया। हमेशा माँ से कहते थे मेरा बेटा बहुत बड़ा इंजीनियर बनेगा और विदेश जाएगा,देखना पूरे परिवार में इससे अधिक कमाने वाला कोई नहीं होगा

मेरी माँ जब भी सुनती बेचारी चुप ही रह जाती थी क्योंकि वह जानती थी उसकी बात का कोई मोल नहीं है। पापा हमेशा अपने मन की करते थे और माँ की बात कभी नहीं मानतेे थे।मेरी पढ़ाई शुरू हो चुकी थी और मैं जिस स्कूल जाता था वहाँ इंग्लिश मीडियम के साथ ही स्कूल की अन्य गतिविधियाँ भी थीं पर मैं किसी में बिल्कुल भाग नहीं ले पाता था क्योंकि सिर्फ पढ़ाई और पढ़ाई,इसी में सारा दिन निकल जाता था। स्कूल से आकर घंटे भर बाद ही ट्यूटर आ जाते थे जो मुझे इंग्लिश साइंस दो-दो घंटे पढ़ाते थे।
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जिन्दगी न मिलेगी दुबारा÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷नीरज बेहद परेशान था। उसकी मम्मी ने उसकी शादी के लिए एक लड़की को पसंद कर लिया थ...
09/12/2024

जिन्दगी न मिलेगी दुबारा
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नीरज बेहद परेशान था। उसकी मम्मी ने उसकी शादी के लिए एक लड़की को पसंद कर लिया था। आज वे लोग उससे मिलने आ रहे थे ।अगर सब कुछ सही रहा तो वे लोग उन दोनों की मंगनी की रस्म भी पूरी कर देंगे ।नीरज को माँ द्वारा पसंद की हुई लड़की में जरा भी दिलचस्पी न थी। आजकल उसकी दोस्ती फेसबुक के माध्यम से नेहा नाम की लड़की से हो गई थी ।वह उसके फेसबुक पर पोस्ट की गई तस्वीरों और उसके दिलचस्प कॉमेंट पर फिदा था ।फेसबुक के मैसेंजर से दोनों में काफी बातचीत होती थी ।वह उसे प्यार करने लगा था ।उसने बहुत बार उससे अपने प्यार का इजहार भी किया था। लेकिन वह हर बार हंसकर बातों को हवा में उड़ा देती थी।वह बोलती," फेसबुक पर मैं जैसी दिखती हूँ, हो सकता है असल जिंदगी में मैं वैसी ना होऊँ।"
नीरज ने उसे अपनी शादी की बात भी बताई थी। वह बोला," मम्मी ने मेरे लिए जिस लड़की को पसंद किया है। मैं उससे मिलना भी नहीं चाहता।"
" तुम्हें उससे जरूर मिलना चाहिए। कभी-कभी जो दिखता है, वह वास्तव में वैसा नहीं होता। हो सकता है वह लड़की बहुत अच्छी हो। बाहरी सौंदर्य ही सब कुछ नहीं होता। यह भी हो सकता है ,यह रिश्ता तुम्हारे लिए खुशियों का सौगात लेकर आए । देखो जिंदगी न मिलेगी दोबारा।"
' जिंदगी न मिलेगी दोबारा' नेहा का पसंदीदा तकिया कलाम था ।वह अक्सर इसे बोलती थी। लेकिन उसके बिना नीरज को अपनी जिंदगी बेमतलब लगती। वह तो इस रिश्ते से बिल्कुल इंकार कर देगा ।उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था ।निश्चित समय पर लड़की वाले आ गए नीरज को अपनी होने वाली दुल्हन की तरफ देखने की भी इच्छा ना थी। वह रिश्ते से इनकार करने के लिए तैयार बैठा था ।कुछ देर में दोनों को आपस में बातचीत करने के लिए एक कमरे में एकांत में छोड़ दिया गया। नीरज ने इस मौके को हाथ से जाने देना नहीं चाहा। वह बिना लड़की की तरफ देखे ही बोल पड़ा," माफ करना मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता। मैं किसी और लड़की से प्यार करता हूँ।"
" अरे जनाब! एक बार मेरी तरफ देखिए भी ।हो सकता है मैं आपको पसंद आ जाऊँ।"... वह लड़की जोर से हंस पड़ी..." यह जिंदगी ना मिलेगी दोबारा।"
नीरज ने चौंक कर उस उसकी तरफ देखा, चेहरा कुछ पहचाना सा लगा।
रंजना वर्मा उन्मुक्त
स्वरचित

शिवानी आज़ बहुत दिनों बाद अपने ससुराल अकेले ही आई थी,,वो खामोश बैठी घर के चारों ओर देख रही थी,, इतने में लेखपाल आये, और ...
09/12/2024

शिवानी आज़ बहुत दिनों बाद अपने ससुराल अकेले ही आई थी,,वो खामोश बैठी घर के चारों ओर देख रही थी,, इतने में लेखपाल आये, और बोले, बहुत बहुत बधाई हो आप को,,आप के नाम ये पूरी प्रापर्टी हो गई है,अब आप ही पूरी जायदाद की अकेली ही मालकिन हैं,, और पेपर उसके हाथ में थमा दिया, लेखपाल तो चले गए,पर शिवानी वक्त के इस करिश्में पर हतप्रभ रह गई,, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, वो रोते रोते बोली, प्रभु, मैंने तो कभी ऐसा नहीं चाहा था,बस जरा सी सासूमां को सद्बुद्धि दे देते तो मेरा भी जीवन सुखमय हो जाता।

मैं भी सुकून से जी लेती। शिवानी के सामने विगत वर्षों की एक एक यादें फिल्म की रील की तरह उभर कर आने लगी।। एक दिन ससुराल में फुर्सत होकर अपनी छोटी सी बच्ची को लेकर बैठी ही थी कि सासु मां जिनको वो अम्मा जी कहती थी, आकर बोली,,दुलहिन, तुमको कितना तनख़ा मिलता है। शिवानी ने कहा,, अम्मा जी, ज्यादा नहीं,बस दो हजार रुपए। कहते हुए उसने बिटिया को सुला दिया, और अपने कमरे में जाने लगी। इतने में ना जाने उन्हें क्या हुआ, एकदम से शिवानी का हाथ खींचते हुए बाहर की तरफ ढकेलने लगी,अरे,तू हमें अपने पैसे का घमंड दिखाती है,दो दो बेटियां पैदा कर दी, एक बेटा तो पैदा कर नहीं सकी और हमें पैसों का रूतबा दिखाती है। चल निकल मेरे घर से।
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शीर्षक ...  ' टारगेट 'आज निशु का मन बहुत ही खुश था क्योंकि रात मम्मी से बात की तो उन्होंने बताया कि कल पापा आएंगे उससे म...
09/12/2024

शीर्षक ... ' टारगेट '
आज निशु का मन बहुत ही खुश था क्योंकि रात मम्मी से बात की तो उन्होंने बताया कि कल पापा आएंगे उससे मिलने साथ में उसकी पसंद की गुजिया और चावल व गुड के अंदर्से भी लाएंगे जिनके नाम से ही उसके मूंह में पानी आ जाता है ।
"आज बड़ी खुश हो क्या बात ?"पंकज ने पत्नी को छेड़ते हुए कहा ।
"कुछ नहीं वो आज न पापा आ रहे हैं ...और पता है आपने दादी और मम्मी ने मेरे लिए मेरी पसंद की मिठाई अंदर्से भी बनाकर भेजे हैं ।"निशु ने खुशी से चहकते हुए कहा ।
"अरे यार तुम भी न आज भी बस वही देहाती चीजें ही पसंद करती हो खाने में ...मेरे साथ चलती रेस्टोरेंट देखती तुमको कितनी स्पेशल डिशेस खिलता कि अंगुली चाटती रह जाती ।"कहता हुआ पंकज अपनी मम्मी के पास जाकर बैठ गया ।
"देहाती चीजें !"निशु मन ही मन बुदबुदाई उसे बहुत बुरा लगा ।
जबसे शादी हुई घरेलू काम में निपुण पढ़ाई में अब्बल निशु ने कभी किसी काम को लेकर किसी को कुछ भी कहने का मौका नहीं दिया लेकिन जब भी ससुराल वालों का उसको दुखी करने का मन करता बस गांव व शहर की बातें होने लगती ।
"गांव के से होते हैं शहर के ऐसे होते हैं ...गांव वालों की सोच छोटी होती है शहर वाले ज्यादा काबिल होते हैं वगैरह वगैरह।"
निशु अभी भी बुत सी बनी वहीं खड़ी रही ।
"सुनिए !"उसने अपने पति पंकज को आवाज लगाई ।
"हां क्या है ...और भी कुछ आ रहा है तुम्हारे गांव से ?"उसने मजाक उड़ाने के उद्देश्य से कहा ।
"मैं आपके घर में रहती हूं शादी हुई तो आपको अच्छी तरह से पता था कि मेरा लालन पालन गांव में हुआ है तब तो आपने कभी मना नहीं किया ..और हां यह मेरा घमंड भी नहीं मेरा विश्वास है कि मैं किसी भी चीज में आपसे उन्नीस नहीं हूं फिर अपनी इगो को शांत करने के लिए आप सब गांव और शहर का आलाप अलापने लगते हैं ...हैं न !"निशु ने कड़क शब्दों में विश्वास के साथ मुस्कराते हुए कहा तो सुनकर पंकज के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं ।
"तुमसे बस बहस करवा लो ।"कहता हुआ पंकज पैर पटकते हुए कमरे से जाने लगे ।
"जिसे आप गांव और गंवार कहकर उपहास का पात्र बनाते हो वह तुम्हारी वीविर है और हां याद रखना गांव से मेरी जड़ें जुड़ी हुई हैं जिनके बिना मैं कुछ नहीं मेरे संस्कार मेरा व्यवहार सब कुछ ।"निशु का स्वर कठोर होता जा रहा था जिसको सुनकर पंकज सिर झुकाए खड़ा रहा ।
"मैं आप लोगों की बातों का जवाब लौटकर नहीं देती यह मेरा गंवारपना है कहो तो यहीं से सुधार करूं ?"
पत्नी के तेवर देखकर पंकज के तेवर ढीले हो गए ।
उसने वहां से जाना ही बेहतर समझा ।
"मैं भी आपके शहर में कमियां गिना सकती हूं लेकिन मेरी सोच कुंठित नहीं है क्योंकि मैं अच्छे से जानती हूं मेरे संस्कारों को ।"कहती हुई निशु अपने काम में जुट गई पूरे मनोयोग से आज उसको बहुत हल्का महसूस हो रहा था और पंकज पत्नी के इस रौद्र रूप से भयभीत था ।
राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
(मौलिक व अप्रकाशित लघुकथा )

"मां ये कार्ड किसके यहां से आया है" टेबल पर पड़े इन्विटेशन कार्ड को हाथ में लेते हुए तनु बोली."बेटा,मेरी वो सहेली है ना!...
09/12/2024

"मां ये कार्ड किसके यहां से आया है" टेबल पर पड़े इन्विटेशन कार्ड को हाथ में लेते हुए तनु बोली.

"बेटा,मेरी वो सहेली है ना!! कुसुम उसकी रिटायरमेंट पार्टी है,उसी का कार्ड है परिवार सहित बुलाया है."

"ओह कुसुम आंटी की रिटायरमेंट है.. मां ये वही हैं ना जो आपके साथ दफ़्तर में काम करती थी??"

"हां ये उम्र में मुझसे थोड़ी बड़ी थी,लेकिन हम दोनों एक ही पोस्ट पर काम करते थे वही दोस्ती हुई थी...."

उमा जी को बीच में टोकते हुए उनकी सास बोली," आज तेरी मां भी रिटायर होती अगर इसने नौकरी ना छोड़ी होती,इसने अपना आराम देखा और नौकरी छोड़ दी"

मां की बात सुन आलोक जी भी बोले," सही कहा मां!!! उस समय अगर उमा ने नौकरी ना छोड़ी होती तो आज जीवन कुछ और ही होता,शायद बच्चें और अच्छे स्कूलों कॉलेजों में जा पाते, बड़ा घर होता,घर में पैसे की भी कोई कमी नहीं होती,अब एक कमाने वाला और 4 बैठकर खाने वाले हो तो इस महंगाई में कैसे काम चलेगा."

पिता को बोलते देख मुकुल भी बोला,"मां क्यों छोड़ दी थी आपने नौकरी??काश!! आपने उस वक्त ये गलत फैंसला ना लिया होता तो आज मेरा और तनु का भविष्य बहुत ही अच्छा होता,आज आप भी रिटायर होते और हम सब पार्टी करते,कितना गर्व महसूस होता हमें"
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