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29/08/2018

नोटबंदी के समय उल्लू बने लोग हाज़िर हों, 99.3 पैसा बैंक में आ गया है

कल्पना कीजिए, आज रात आठ बजे प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर आते हैं और नोटबंदी के बारे में रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट पढ़ने लगते हैं। फिर थोड़ा रूक कर वे 8 नवंबर 2016 का अपना भाषण चलाते हैं, फिर से सुनिए मैंने क्या क्या कहा, उसके बाद रिपोर्ट पढ़ते हैं। आप देखेंगे कि प्रधानमंत्री का गला सूखने लगता है। वे खांसने लगते हैं और लाइव टेलिकास्ट रोक दिया जाता है। वैसे कभी उनसे पूछिएगा कि आप अपने उस ऐतिहासिक कदम के बारे में क्यों नहीं बात करते हैं?

भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट आई है। नोटबंदी के बाद 99.3 प्रतिशत 500 और 1000 के नोट वापस आ गए हैं। नोटबंदी के वक्त 15.41 लाख करोड़ सर्कुलेशन में था। 15.31 लाख करोड़ वापस आ गया है। रिज़र्व बैंक ने कहा है कि वापस आए नोटों की सत्यता की जांच का काम समाप्त हो चुका है।

तो व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के ज़रिए जो भूत पैदा किया गया कि नकली नोटों का जाल बिछ गया है। 1000 के नोट पाकिस्तान से आ रहे हैं। काला धन मार्केट में घूम रहा है। फिर हंगामा हुआ कि लोग अपना काला धन जन धन खाते में जमा कर रहे हैं। लाइन में जो ग़रीब लगा है, वो अपने पांच सौ हज़ार के लिए नहीं लगा है बल्कि वह काला धन रखने वाले अमीर लोगों का एजेंट है। तब तुरंत बयान आया कि इन खातों की जांच होगी और सब पकड़ा जाएगा। एक नया हिसाब इसका नहीं है। न तो चौराहे पर न ही दो राहे पर।

व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी से यह भी भूत पैदा गया कि जो ब्लैक मनी होगा वो बैंक में नहीं आएगा। उतना पैसा नष्ट हो जाएगा। इसतरह जिसके पास काला धन है वो नष्ट हो जाएगा। सारे दावे बोगस निकले हैं। जिनके पास पैसा था, उनके पास आज भी है। अगर काला धन ख़त्म हो गया होता तो राजनीति में ही उसका असर दिखता। नेताओं के पास रैली के पैसे नहीं होते। वैसे बीजेपी ने चुनावी ख़र्चे को सीमित किए जाने की राय का विरोध किया है।

नोटबंदी के कारण लोगों के काम छिन गए। नौकरियां गईं। इन सब को चुनावी जीत के पर्दे से ढंक दिया गया । उस समय एक और बोगस तर्क दिया जाता था कि नोटबंदी के दूरगामी परिणाम होते हैं। दो साल होने को है, उन दूरगामी परिणामों का कोई लक्षण नहीं दिख रहा है। वैसे यह भी नहीं बताया गया कि दूरगामी परिणाम क्या क्या होंगे।

तो आप क्या बने....ज़ोर से बोलिए..उल्लू बने। क्या अच्छा नहीं होता कि जिन जिन लोगों ने व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी की बातों से सपना देखा था, वो सभी बाहर आएं और कहें कि हां हम उल्लू बने। हम उल्लू थे, उल्लू रहेंगे।

वैसे उल्लू बने बैंक वाले। उन्हें लगा कि देश सेवा की कोई घड़ी आ गई है। जब उन पर अचानक नोटों के अंबार गिनने का काम थोप दिया गया तो कई कैशियरों से हिसाब जोड़ने में ग़लती हुई। 20-30 हज़ार सैलरी पाने वाले बहुत से कैशियरों ने अपनी जेब से 5000 से लेकर 3-3 लाख तक जुर्माना भरा।

ऐसे लोगों पर कई बार पोस्ट लिख चुका हूं। वो लोग भी चाहें तो बाहर आ सकते हैं कि कह सकते हैं कि हां हम उल्लू बने।

आपको पता ही होगा कि आज रुपया ऐतिहासिक गिरावट पर है। एक डॉलर आज 70 रुपये 52 पैसे का हो गया।

24/08/2018

सनातन परंपरा में अर्थी जलाने के बाद, मृतक की राख को मिट्टी के घडे़ में पानी लेकर उसे वहीं नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। उसके बाद घडे़ को वहीं फोड़ दिया जाता है। प्रवाहित करने वाला सिर मुडा़ कर शोक भाव व्यक्त करता है।यदि ऐसा न किया जाए तो मृतक प्रेत हो जाता है।
लेकिन BJP को इन सब से क्या लेना देना है .
( ी_का_अस्थि_कलश)

18/08/2018

**Kerala Relief **
Hey everyone, I just sent my first lot of goods for Kerala Relief, if you would like to donate a small bit, please step up. Looking forward to even the smallest donation to help us get medical + food supplies sent out.

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Regards AP FOUNDATION TRUST

16/08/2018
18/05/2018

: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद लगभग साढ़े चार माह के बाद गुरुवार को पटना आ गये हैं. काफी प्रशासनिक जद्दोजहद के बाद झारखंड सरकार ने उन्हें तीन दिनों का पैरोल दिया है. लालू प्रसाद फिर 14 मई को लौट जाएंगे. पैरोल के आदेश पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. उस पर सियासत भी तेज हो गई है. लेकिन इन सबसे हटकर कई अंग्रेजी अखबारों के एडिटर रह चुके एजे फिलिप ने लालू प्रसाद के नाम से लंबा पत्र लिखा है. उस पत्र में उन्होंने लालू प्रसाद को लेकर अपने ‘मन की बात’ लिखी है. यह पत्र अंग्रेजी में लिखा हुआ है और इसकी हिंदी कॉपी काफी वायरल हो रही है. लालू प्रसाद के नाम से जारी इस पत्र को उनके बेटे तेजस्वी यादव ने रिट्वीट किया है. आप भी उस अंग्रेजी पत्र के हिंदी अनुवाद को पढ़ें…
प्रिय लालू प्रसाद यादव जी,
मैं भारी मन से आपको यह चिट्ठी लिख रहा हूं. मुझे यह तक नहीं मालूम कि यह चिट्ठी रांची जेल में, जहां आप अभी बंद हैं, आपको मिल भी पायेगी या नहीं. मेरी बड़ी इच्छा है कि यह चिट्ठी आपको मिले और आप इसे पढ़ें.
हम सिर्फ दो बार ही मिले हैं. पहली दफ़ा जब बिहार के दौरे पर आये हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय देवीलाल का साक्षात्कार करने मैं अहले सुबह छह बजे पटना के राजकीय अतिथिगृह पहुंचा था. वह 1980 के दशक का वक़्त था. शायद उस वरिष्ठ नेता के प्रति सम्मान की वजह से पूरे साक्षात्कार के दौरान आपने मेरे पीछे खड़ा रहना मुनासिब समझा था. आपको जरूर मुझसे खीझ हुई होगी, क्योंकि उस दिन हरियाणा वो ताक़तवर नेता पूरे रौ में था और मेरे सवालों का जवाब देते हुए आनंद महसूस कर रहा था. एक या दो बार आपने मुझे साक्षात्कार ख़त्म करके जाने का इशारा भी किया था, ताकि आपलोग आपस में राजनीतिक विमर्श कर पाएं.

दूसरा मौका था, जब सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर आपकी पत्नी राबड़ी देवी को आवंटित आवास पर मैंने एक पूरा दोपहर बिताया था. उस दिन आप चारा घोटाला मामले में एक अदालत में हाजिरी के बाद लौटे ही थे. उस साक्षात्कार के बाद मैंने “लालू के इलाके में दो दिन” शीर्षक से एक लेख लिखा था. इस लेख को प्रो. केसी यादव, जिन्होंने चारा घोटाले के खोखलेपन को उजागर किया था, द्वारा लिखे गये किताब में भी शामिल किया गया था.
मैंने इंडियन एक्सप्रेस में भी “श्रीमान बिश्वास के लिए एक घर” शीर्षक से एक मुख्य लेख लिखा था, जिसमें मैंने आपके खिलाफ जांच जारी रखने के लिए सीबीआई अधिकारी को साल दर साल सेवा विस्तार दिये जाने की मंशा पर सवाल उठाया था. मुझे याद है कि आपने उस लेख का हिंदी में अनुवाद कराया था और उसकी लाखों प्रतियां राज्य के कोने–कोने में, विशेषकर गरीब रैली के दौरान वितरित कराई थी. यहां तक कि हिंदुस्तान टाइम्स के पटना संस्करण ने मेरे लेख के लाखों लोगों तक पहुंचने को लेकर एक ख़बर बॉक्स में छापा था.

उस लेख का शीर्षक नोबेल पुरस्कार विजेता वी एस नायपॉल के लिखे एक उपन्यास के शीर्षक पर आधारित था. उस लेख के छपने के बाद विश्वास के कोलकाता स्थित आवास को उत्तर–पूर्व के कुछ आतंकवादियों द्वारा छिपने के ठिकाने के तौर पर इस्तेमाल करने की ख़बरें आयी थीं. संक्षेप में, खोजबीन में माहिर यह अधिकारी, जिसे आपके पीछे लगाया था. अपने घर को अपराधियों के एक गिरोह की शरणस्थली बनने से नहीं बचा सका. न ही किसी दिवंगत व्यक्ति पर तोहमत मढ़ने की हमारी परंपरा नहीं है. ए के बिश्वास की आत्मा को शांति मिले!
हमारे यहां एक दूसरी परंपरा भी है जिसके तहत प्रत्येक राजनेता पर भ्रष्टचार का आरोप जड़ दिया जाता है, आयकर के ब्यौरे में अपनी आमदनी छुपाने में नहीं सकुचाया जाता या संपत्ति की खरीद–बिक्री के समय उसका मूल्य कम दर्शाने में संकोच नहीं किया जाता या फिर अपने बच्चों की शादी में दहेज़ लेते–देते नहीं हिचकिचाया जाता.

मैंने चारा घोटाले की राजनीति का अध्ययन किया है. कहानी यूं है कि कुछ भ्रष्ट सरकारी अधिकारी भ्रष्ट ठेकेदारों से साठगांठ करके फर्जी बिल के जरिए जिला कोषागार से पैसे निकाल रहे थे. ये सब जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्री रहते हुए शुरू हुआ था और आपके मुख्यमंत्री बनने के समय यह चलन जारी था. आपके मुख्यमंत्रित्व काल में एक नौकरशाह ने इस चलन को पकड़ा. दरअसल, इस जालसाजी और रैकेट का पर्दाफाश करने का श्रेय आपको मिलना चाहिए था. लेकिन विडम्बना देखिए कि इस रैकेट के सरगना होने का आरोप मढ़कर आपको ही जेल में डाल दिया गया.
मुझे वे दिन याद हैं, जब आप बिहार की राजनीति के बेताज बादशाह थे. आप आम जनता के चेहते थे और यहां तक कि राष्ट्रीय राजनीति को भी नियंत्रित कर रहे थे. एक ऐसा मुख्यमंत्री जिसकी एक अपील पर लाखों लोग उसके राजनीतिक कार्यों के लिए कोई भी रकम जुटाने को तैयार हों, वो भला एक छोटे से जिले में जानवरों के चारा के आपूर्तिकर्ताओं से सांठगांठ करने जैसी ओछी हरकत क्यों करेगा? इस किस्म की सोच ही हास्यास्पद है.
रघुवर सरकार ने लालू के मुंह पर लगाया ‘टेप’ मीडिया की आजादी पर किया हमला, उठने लगे सवाल
मैं जगन्नाथ मिश्र को जानता हूं, लेकिन मैं यह मानने को हरगिज तैयार नहीं कि उन्होंने चारा आपूर्तिकर्ताओं को कोषागार से लाखों रुपए निकालने के लिए बढ़ावा दिया होगा. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी राज्य, मान लीजिए कि मणिपुर के विकास कार्यों के लिए केंद्र द्वारा आवंटित राशि में राजनेता–नौकरशाह–ठेकेदार लॉबी द्वारा किये गये घपले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाये! या फिर ताज़ा उदहारण लीजिए. हीरा व्यापारी नीरव मोदी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करके देश छोड़कर भाग गया. भागने के कुछ दिनों पहले, वह दावोस गया और प्रधानमंत्री मोदी के साथ लिये गये एक सामूहिक तस्वीर में जगह पा गया. नीरव मोदी की धोखाधड़ी के समय अरुण जेटली देश के वित्तमंत्री थे. जेटली का कहना है कि धोखाधड़ी यूपीए के शासनकाल में शुरू हुई थी.
सीबीआई ने भाजपा के नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली या कांग्रेस के पी. चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? और फिर, किंगफ़िशर एयरलाइन्स के कर्मचारियों के भविष्य निधि में घपला करने और कई भारतीय बैंकों के हजारों करोड़ रुपए डकारने के बाद दर्जनों सूटकेसों के साथ विजय माल्या देश से भाग गया. वो भी राज्यसभा का सदस्य रहते हुए! सत्ता में बैठे लोगों से सांठगांठ के बिना क्या वो देश से भाग सकता था? संबंधित मंत्रियों के खिलाफ इस मामले में कोई कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की गयी?
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नहीं श्रीमान, आप एक अलग तरह के राजनेता हैं. मैंने गौर किया है कि सभी राजनीतिक दल, चाहे वो कांग्रेस हो या सीपीआई या सीपीएम या सपा या फिर बसपा हो, ने संघ परिवार के साथ गठजोड़ किया है, लेकिन आप इससे अछूते रहे. मुझे याद है कि जब आपने साहस दिखाते हुए एक खतरनाक मिशन में लगे एलके आडवाणी को बिहार में घुसते ही गिरफ्तार कर लिया था. उनकी रथयात्रा हिंदू–मुस्लिम एकता के लिए खतरा बन रही थी. और उनको गिरफ्तार करके आपने निर्दोष लोगों का खून नाहक बहने से बचा लिया था.
आपको अंदाजा नहीं था कि आप एक ऐसे हाथी को घायल कर रहे हैं, जो अपने चोट पहुंचाने वाले को कभी नहीं भूलता. उन्होंने चारा घोटाले को आपको निपटाने का सबसे मुफ़ीद अस्त्र माना. किसी भी समझदार आदमी को आपके खिलाफ लगाया गया आरोप अजूबा लगेगा, क्योंकि लूट के माल में हिस्सेदारी के लिए किसी मुख्यमंत्री का एक अदने से चोर से हाथ मिलाने की बात कुछ जंचती नहीं. पूरी सरकारी मशीनरी को आपको घेरने में लगा दिया गया. और इसके लिए उन्होंने क्या नहीं किया?
उन्होंने चारा घोटाला को कई मुकदमों में बांट दिया. आपके खिलाफ इस किस्म के कई मुकदमों को दायर हुए 25 से 30 साल हो गये हैं. सभी मामलों के फैसले अभी नहीं आये हैं. ऐसा एक खास मकसद से किया जा रहा है. भारत में, कई सजाओं के एक साथ चलने का प्रावधान है. लेकिन आपके मामले में आपको प्रत्येक सजा को एक के बाद एक पूरा करना है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि आप अपने अंतिम समय तक जेल में बंद रहें.

हाल में, एक तस्वीर देखकर मैं चौंक गया जिसमें एम्स में इलाज कराने के लिए दिल्ली जाने के दौरान ट्रेन में आपको धकेल कर बिठाया जा रहा था. क्या आपको हवाई मार्ग से भेजा जाना संभव नहीं था? मेरे एक मित्र हैं जो मुझे आपके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते रहते हैं. उनकी वजह से मैं यह जान पाया कि आपके गुर्दे ठीक से काम नहीं कर रहे. आपको उच्च रक्तचाप और मधुमेह की शिकायत है. मुझे यह भी मालूम है कि आपके दिल की तीन बार सर्जरी हो चुकी है.
आप ही वो शख्स थे जिसने भारतीय रेल को मुनाफे में ला दिया और गरीबों के लिए रेलगाड़ियां चलवायीं. आपने लाखों करोड़ों रुपए फिजूल में खर्च करके पटना और दिल्ली के बीच बुलेट ट्रेन चलवाने के बारे में नहीं सोचा. इन्हीं वजहों से आपको हारवर्ड के छात्रों को यह समझाने के लिए बुलाया गया था कि आखिर कैसे आपने मरणासन्न स्थिति में पहुंची भारतीय रेल को मुनाफ़ा कमाने वाले एक संस्थान में तब्दील किया.

अब आप 70 वर्ष के हो चुके हैं. आपने कभी जमानत नहीं तोड़ी. कभी अदालत की सुनवाई से गैरहाजिर नहीं रहे. किसी भी अदालती आदेश का कभी उल्लंघन नहीं किया, लेकिन फिर भी आपको जमानत नहीं दी जाती. कानून के किस किताब में यह लिखा है कि एक ‘सजायाफ्ता’ कैदी का इलाज सिर्फ किसी सरकारी अस्पताल में ही हो सकता है? आपने केरल के आर. बालकृष्ण पिल्लई के बारे में शायद सुना होगा. उन्हें भी भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया था और जेल भेजा गया था. बीमार पड़ने पर उन्हें तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और एक वातानुकूलित कमरे में रखा गया था. उनकी कैद की अवधि एक साल की थी, लेकिन उन्होंने जेल भीतर कितने दिन बिताये? महज कुछ हफ्ते. मुझे यह अंतर करने के लिए माफ़ कीजिए कि वे एक क्षत्रिय थे और आप एक यादव.
मुझे उस मित्र को उद्धृत करने की इजाज़त दीजिए जिसने गुस्से से ज्यादा निराशा में भरकर लिखा था: “हमें इस पूरे मामले को आभिजात्य पुलिस, बार और न्यायपालिका के जातिगत, वर्ग और समुदाय आधारित पूर्वाग्रह के हिसाब से देखना चाहिए. चारा घोटाले में जिन आईएएस अफसरों को दोषी करार दिया गया और जिन्हें लगभग पूरा जीवन जेल में बिताना पड़ा, वे सब निचली जातियों से ताल्लुक रखते थे. वित्त आयुक्त फूल सिंह कुर्मी (सब्जी उगाने वाली जाति) थे. बेक जूलियस अनुसूचित जनजाति से आते थे और के. अरुमुगम एवं महेश प्रसाद अनुसूचित जाति से संबंध रखते थे. तत्कालीन मुख्य सचिव विजय शंकर दुबे बेदाग पाये गये. चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त सजल चक्रवर्ती दोषी पाये गये, लेकिन उन्हें जमानत मिली और वे झारखंड के मुख्य सचिव के ओहदे तक पहुंच गये.
इस मामले में सह अभियुक्त और बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, जिनके काल में यह घोटाला शुरू हुआ, के साथ उनके सजातीय और सह अभियुक्त आईएएस अफसर आर. एस. दुबे एवं कई पाठकों और मिश्राओं को उन्हीं मामलों में बरी कर दिया गया, जिसमें लालू को दोषी करार देकर जेल भेज दिया गया. रिकार्ड को संतुलित दर्शाने के गरज से एक हालिया फैसले में जगन्नाथ मिश्र को दोषी करार दिया गया है.

शिकार बने आईएएस अफसरों में अरुमुगम से एक बार मिलने का अवसर मुझे मिला. पटना में उनका दफ़्तर मेरे कार्यालय के निकट था. मैं उन्हें हमारे चर्च के एक समारोह में आमंत्रित करने के लिए उनके पास गया था. तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि जल्द ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जायेगा! मेरे समुदाय की एक महिला, जिन्हें मैं जानता हूं, अदालत जाकर यह आदेश ले आयीं कि किसी भी सजायाफ्ता को सत्ता में नहीं रहने दिया जायेगा और उसे हटा दिया जायेगा. हर किसी ने उस महिला की तारीफ़ की, क्योंकि उक्त आदेश का पहला शिकार आप थे.
मैंने एक कॉलम में उक्त आदेश की आलोचनात्मक समीक्षा की थी और यह पाया कि उस याचिका को दाखिल करने का आधार ही गलत था. कोई भी संवेदनशील राज्य आपको जमानत दे देता, ताकि आपके परिजन आपका सही तरीके से इलाज करा पाएं. अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर इलाज के लिए अमेरिका जा सकते हैं, तो आपके परिवार को भी इलाज के लिए आपको वहां ले जाने से रोकने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए. लेकिन आपकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए सीबीआई के वकील ने अदालत में क्या कहा? उन्होंने तर्क दिया कि आप एनडीए सरकार के धुर विरोधी हैं और आप सरकार के खिलाफ जनमत उभार सकते हैं आदि. क्या ये सब जमानत याचिका ठुकराने का आधार हो सकते हैं? फिर भी, आपको जमानत नहीं दी गयी. अब जरा इस बारे में सोचिए कि एक केन्द्रीय मंत्री अपने आधिकारिक मशीनरी का उपयोग भगोड़ा क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी को ब्रिटेन से बाहर जाने में मदद के लिए करता है.
मैं वाकई बहुत दुखी हुआ जब मैंने 25 अप्रैल को आपके बेटे तेजस्वी यादव का ट्वीट पढ़ा: ‘एक लंबे अरसे के बाद दिल्ली स्थित एम्स में अपने पिता मिला. उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हूं. ज्यादा सुधार के कोई लक्षण नहीं दिखे. इस उम्र में उन्हें लगातार देखभाल और उनके महत्वपूर्ण संकेतकों की निरंतर निगरानी की जरूरत है.’ फिर भी, केंद्र ने आपको रांची वापस भेज दिया, क्योंकि आपके स्वास्थ्य में कथित रूप से सुधार है. ऐसा लगता है कि वे आपको जेल बाहर नहीं आने देना चाहते. उन्हें डर है कि अगर आप बाहर आये तो बिहार सरकार के गिर जाने का खतरा है. बर्फ़ की जिस पतली सतह पर नीतीश कुमार फिसल रहे हैं, उसका खुलासा उस समय हो गया जब भाजपा–जद (यू) गठबंधन को हालिया उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा.
यह सही है कि आप चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन 2019 के आम चुनावों के प्रचार में आपकी मौन उपस्थिति भी भाजपा को भारी पड़ सकती है. यही वजह है कि आपको सलाखों के पीछे रखा जा रहा है. वे आपके बेटे–बेटियों के खिलाफ उनके जन्म से पहले हुए अपराधों के लिए भी मुकदमा करने में समर्थ हैं. और इस मामले में उनका अपना रिकार्ड कैसा है? भाजपा अध्यक्ष के खिलाफ एक मुक़दमे में, गवाहों की तो छोड़िए, मामले की सुनवाई करने वाले जज की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गयी!
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री ने अपने और अपने पार्टी के लोगों के खिलाफ दायर मुक़दमे वापस ले लिये. इन मामलों में हत्या से लेकर लूटपाट और उपद्रव तक के आरोप थे. विडम्बना देखिए कि ये सभी मुक़दमे ‘वापस लिए जाने लायक’ थे, जबकि आपके खिलाफ दर्ज 32 मामले कहीं ज्यादा पवित्र थे, आपको विवेक का कैदी बुलाने का मेरा विचार मौलिक नहीं है. इस पदबंध का इस्तेमाल हमने डॉ विनायक सेन, सोनी सोरी और इरोम शर्मीला के लिए किया है. यह आप पर भी सही उतरता है, क्योंकि आप सिर्फ इसलिए जेल में बंद हैं कि आप अकेले शख्स हैं, जिसने सत्ता के हुक्मरानों से समझौता नहीं किया और जिससे संघ परिवार खौफ खाता है.
मैं सिर्फ यही उम्मीद कर सकता हूं कि इस चिट्ठी के पहुंचने तक आपका स्वास्थ्य बेहतर हो जाये. आपको अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने वाले देखभाल और पोते – पोतियों के साथ की जरूरत है, ताकि आप खुश रह सकें. मुझे उम्मीद है कि आपकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति सत्ता में बैठे लोगों को आपको जमानत देने के लिए प्रेरित करेगी. ऐसे बहुत लोग हैं जो आपको भ्रष्ट मानते हैं, लेकिन उन्हें आपकी अहमियत का पता आपके जाने के बाद चलेगा. मुझे उम्मीद है कि ऐसा न होगा और आप सार्वजनिक जीवन में लौटेंगे. फिलहाल, मेरा यह रुदन जंगल में रोने जैसा दिखाई दे सकता है. मेरे कुछ मित्र मुझ से आपके दोष सिद्धी के बारे में सवाल कर सकते हैं, लेकिन मैं उनसे सिर्फ यही कह सकता हूं कि ईसा मसीह को भी दोषी करार दिया गया था.
शुभकामनाओं एवं प्रार्थना सहित
आपका
Shree group times
Chief editor
Proff. Abhinav anand yadav

18/05/2018

: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद लगभग साढ़े चार माह के बाद गुरुवार को पटना आ गये हैं. काफी प्रशासनिक जद्दोजहद के बाद झारखंड सरकार ने उन्हें तीन दिनों का पैरोल दिया है. लालू प्रसाद फिर 14 मई को लौट जाएंगे. पैरोल के आदेश पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. उस पर सियासत भी तेज हो गई है. लेकिन इन सबसे हटकर कई अंग्रेजी अखबारों के एडिटर रह चुके एजे फिलिप ने लालू प्रसाद के नाम से लंबा पत्र लिखा है. उस पत्र में उन्होंने लालू प्रसाद को लेकर अपने ‘मन की बात’ लिखी है. यह पत्र अंग्रेजी में लिखा हुआ है और इसकी हिंदी कॉपी काफी वायरल हो रही है. लालू प्रसाद के नाम से जारी इस पत्र को उनके बेटे तेजस्वी यादव ने रिट्वीट किया है. आप भी उस अंग्रेजी पत्र के हिंदी अनुवाद को पढ़ें…
प्रिय लालू प्रसाद यादव जी,
मैं भारी मन से आपको यह चिट्ठी लिख रहा हूं. मुझे यह तक नहीं मालूम कि यह चिट्ठी रांची जेल में, जहां आप अभी बंद हैं, आपको मिल भी पायेगी या नहीं. मेरी बड़ी इच्छा है कि यह चिट्ठी आपको मिले और आप इसे पढ़ें.
हम सिर्फ दो बार ही मिले हैं. पहली दफ़ा जब बिहार के दौरे पर आये हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय देवीलाल का साक्षात्कार करने मैं अहले सुबह छह बजे पटना के राजकीय अतिथिगृह पहुंचा था. वह 1980 के दशक का वक़्त था. शायद उस वरिष्ठ नेता के प्रति सम्मान की वजह से पूरे साक्षात्कार के दौरान आपने मेरे पीछे खड़ा रहना मुनासिब समझा था. आपको जरूर मुझसे खीझ हुई होगी, क्योंकि उस दिन हरियाणा वो ताक़तवर नेता पूरे रौ में था और मेरे सवालों का जवाब देते हुए आनंद महसूस कर रहा था. एक या दो बार आपने मुझे साक्षात्कार ख़त्म करके जाने का इशारा भी किया था, ताकि आपलोग आपस में राजनीतिक विमर्श कर पाएं.

दूसरा मौका था, जब सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर आपकी पत्नी राबड़ी देवी को आवंटित आवास पर मैंने एक पूरा दोपहर बिताया था. उस दिन आप चारा घोटाला मामले में एक अदालत में हाजिरी के बाद लौटे ही थे. उस साक्षात्कार के बाद मैंने “लालू के इलाके में दो दिन” शीर्षक से एक लेख लिखा था. इस लेख को प्रो. केसी यादव, जिन्होंने चारा घोटाले के खोखलेपन को उजागर किया था, द्वारा लिखे गये किताब में भी शामिल किया गया था.
मैंने इंडियन एक्सप्रेस में भी “श्रीमान बिश्वास के लिए एक घर” शीर्षक से एक मुख्य लेख लिखा था, जिसमें मैंने आपके खिलाफ जांच जारी रखने के लिए सीबीआई अधिकारी को साल दर साल सेवा विस्तार दिये जाने की मंशा पर सवाल उठाया था. मुझे याद है कि आपने उस लेख का हिंदी में अनुवाद कराया था और उसकी लाखों प्रतियां राज्य के कोने–कोने में, विशेषकर गरीब रैली के दौरान वितरित कराई थी. यहां तक कि हिंदुस्तान टाइम्स के पटना संस्करण ने मेरे लेख के लाखों लोगों तक पहुंचने को लेकर एक ख़बर बॉक्स में छापा था.

उस लेख का शीर्षक नोबेल पुरस्कार विजेता वी एस नायपॉल के लिखे एक उपन्यास के शीर्षक पर आधारित था. उस लेख के छपने के बाद विश्वास के कोलकाता स्थित आवास को उत्तर–पूर्व के कुछ आतंकवादियों द्वारा छिपने के ठिकाने के तौर पर इस्तेमाल करने की ख़बरें आयी थीं. संक्षेप में, खोजबीन में माहिर यह अधिकारी, जिसे आपके पीछे लगाया था. अपने घर को अपराधियों के एक गिरोह की शरणस्थली बनने से नहीं बचा सका. न ही किसी दिवंगत व्यक्ति पर तोहमत मढ़ने की हमारी परंपरा नहीं है. ए के बिश्वास की आत्मा को शांति मिले!
हमारे यहां एक दूसरी परंपरा भी है जिसके तहत प्रत्येक राजनेता पर भ्रष्टचार का आरोप जड़ दिया जाता है, आयकर के ब्यौरे में अपनी आमदनी छुपाने में नहीं सकुचाया जाता या संपत्ति की खरीद–बिक्री के समय उसका मूल्य कम दर्शाने में संकोच नहीं किया जाता या फिर अपने बच्चों की शादी में दहेज़ लेते–देते नहीं हिचकिचाया जाता.

मैंने चारा घोटाले की राजनीति का अध्ययन किया है. कहानी यूं है कि कुछ भ्रष्ट सरकारी अधिकारी भ्रष्ट ठेकेदारों से साठगांठ करके फर्जी बिल के जरिए जिला कोषागार से पैसे निकाल रहे थे. ये सब जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्री रहते हुए शुरू हुआ था और आपके मुख्यमंत्री बनने के समय यह चलन जारी था. आपके मुख्यमंत्रित्व काल में एक नौकरशाह ने इस चलन को पकड़ा. दरअसल, इस जालसाजी और रैकेट का पर्दाफाश करने का श्रेय आपको मिलना चाहिए था. लेकिन विडम्बना देखिए कि इस रैकेट के सरगना होने का आरोप मढ़कर आपको ही जेल में डाल दिया गया.
मुझे वे दिन याद हैं, जब आप बिहार की राजनीति के बेताज बादशाह थे. आप आम जनता के चेहते थे और यहां तक कि राष्ट्रीय राजनीति को भी नियंत्रित कर रहे थे. एक ऐसा मुख्यमंत्री जिसकी एक अपील पर लाखों लोग उसके राजनीतिक कार्यों के लिए कोई भी रकम जुटाने को तैयार हों, वो भला एक छोटे से जिले में जानवरों के चारा के आपूर्तिकर्ताओं से सांठगांठ करने जैसी ओछी हरकत क्यों करेगा? इस किस्म की सोच ही हास्यास्पद है.
रघुवर सरकार ने लालू के मुंह पर लगाया ‘टेप’ मीडिया की आजादी पर किया हमला, उठने लगे सवाल
मैं जगन्नाथ मिश्र को जानता हूं, लेकिन मैं यह मानने को हरगिज तैयार नहीं कि उन्होंने चारा आपूर्तिकर्ताओं को कोषागार से लाखों रुपए निकालने के लिए बढ़ावा दिया होगा. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी राज्य, मान लीजिए कि मणिपुर के विकास कार्यों के लिए केंद्र द्वारा आवंटित राशि में राजनेता–नौकरशाह–ठेकेदार लॉबी द्वारा किये गये घपले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाये! या फिर ताज़ा उदहारण लीजिए. हीरा व्यापारी नीरव मोदी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करके देश छोड़कर भाग गया. भागने के कुछ दिनों पहले, वह दावोस गया और प्रधानमंत्री मोदी के साथ लिये गये एक सामूहिक तस्वीर में जगह पा गया. नीरव मोदी की धोखाधड़ी के समय अरुण जेटली देश के वित्तमंत्री थे. जेटली का कहना है कि धोखाधड़ी यूपीए के शासनकाल में शुरू हुई थी.
सीबीआई ने भाजपा के नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली या कांग्रेस के पी. चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? और फिर, किंगफ़िशर एयरलाइन्स के कर्मचारियों के भविष्य निधि में घपला करने और कई भारतीय बैंकों के हजारों करोड़ रुपए डकारने के बाद दर्जनों सूटकेसों के साथ विजय माल्या देश से भाग गया. वो भी राज्यसभा का सदस्य रहते हुए! सत्ता में बैठे लोगों से सांठगांठ के बिना क्या वो देश से भाग सकता था? संबंधित मंत्रियों के खिलाफ इस मामले में कोई कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की गयी?
पिता लालू का पैर छू तेज-तेजस्वी ने लिया आशीर्वाद, घर पर बच्चे कह उठे- नाना जी जिंदाबाद
नहीं श्रीमान, आप एक अलग तरह के राजनेता हैं. मैंने गौर किया है कि सभी राजनीतिक दल, चाहे वो कांग्रेस हो या सीपीआई या सीपीएम या सपा या फिर बसपा हो, ने संघ परिवार के साथ गठजोड़ किया है, लेकिन आप इससे अछूते रहे. मुझे याद है कि जब आपने साहस दिखाते हुए एक खतरनाक मिशन में लगे एलके आडवाणी को बिहार में घुसते ही गिरफ्तार कर लिया था. उनकी रथयात्रा हिंदू–मुस्लिम एकता के लिए खतरा बन रही थी. और उनको गिरफ्तार करके आपने निर्दोष लोगों का खून नाहक बहने से बचा लिया था.
आपको अंदाजा नहीं था कि आप एक ऐसे हाथी को घायल कर रहे हैं, जो अपने चोट पहुंचाने वाले को कभी नहीं भूलता. उन्होंने चारा घोटाले को आपको निपटाने का सबसे मुफ़ीद अस्त्र माना. किसी भी समझदार आदमी को आपके खिलाफ लगाया गया आरोप अजूबा लगेगा, क्योंकि लूट के माल में हिस्सेदारी के लिए किसी मुख्यमंत्री का एक अदने से चोर से हाथ मिलाने की बात कुछ जंचती नहीं. पूरी सरकारी मशीनरी को आपको घेरने में लगा दिया गया. और इसके लिए उन्होंने क्या नहीं किया?
उन्होंने चारा घोटाला को कई मुकदमों में बांट दिया. आपके खिलाफ इस किस्म के कई मुकदमों को दायर हुए 25 से 30 साल हो गये हैं. सभी मामलों के फैसले अभी नहीं आये हैं. ऐसा एक खास मकसद से किया जा रहा है. भारत में, कई सजाओं के एक साथ चलने का प्रावधान है. लेकिन आपके मामले में आपको प्रत्येक सजा को एक के बाद एक पूरा करना है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि आप अपने अंतिम समय तक जेल में बंद रहें.

हाल में, एक तस्वीर देखकर मैं चौंक गया जिसमें एम्स में इलाज कराने के लिए दिल्ली जाने के दौरान ट्रेन में आपको धकेल कर बिठाया जा रहा था. क्या आपको हवाई मार्ग से भेजा जाना संभव नहीं था? मेरे एक मित्र हैं जो मुझे आपके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते रहते हैं. उनकी वजह से मैं यह जान पाया कि आपके गुर्दे ठीक से काम नहीं कर रहे. आपको उच्च रक्तचाप और मधुमेह की शिकायत है. मुझे यह भी मालूम है कि आपके दिल की तीन बार सर्जरी हो चुकी है.
आप ही वो शख्स थे जिसने भारतीय रेल को मुनाफे में ला दिया और गरीबों के लिए रेलगाड़ियां चलवायीं. आपने लाखों करोड़ों रुपए फिजूल में खर्च करके पटना और दिल्ली के बीच बुलेट ट्रेन चलवाने के बारे में नहीं सोचा. इन्हीं वजहों से आपको हारवर्ड के छात्रों को यह समझाने के लिए बुलाया गया था कि आखिर कैसे आपने मरणासन्न स्थिति में पहुंची भारतीय रेल को मुनाफ़ा कमाने वाले एक संस्थान में तब्दील किया.

अब आप 70 वर्ष के हो चुके हैं. आपने कभी जमानत नहीं तोड़ी. कभी अदालत की सुनवाई से गैरहाजिर नहीं रहे. किसी भी अदालती आदेश का कभी उल्लंघन नहीं किया, लेकिन फिर भी आपको जमानत नहीं दी जाती. कानून के किस किताब में यह लिखा है कि एक ‘सजायाफ्ता’ कैदी का इलाज सिर्फ किसी सरकारी अस्पताल में ही हो सकता है? आपने केरल के आर. बालकृष्ण पिल्लई के बारे में शायद सुना होगा. उन्हें भी भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया था और जेल भेजा गया था. बीमार पड़ने पर उन्हें तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और एक वातानुकूलित कमरे में रखा गया था. उनकी कैद की अवधि एक साल की थी, लेकिन उन्होंने जेल भीतर कितने दिन बिताये? महज कुछ हफ्ते. मुझे यह अंतर करने के लिए माफ़ कीजिए कि वे एक क्षत्रिय थे और आप एक यादव.
मुझे उस मित्र को उद्धृत करने की इजाज़त दीजिए जिसने गुस्से से ज्यादा निराशा में भरकर लिखा था: “हमें इस पूरे मामले को आभिजात्य पुलिस, बार और न्यायपालिका के जातिगत, वर्ग और समुदाय आधारित पूर्वाग्रह के हिसाब से देखना चाहिए. चारा घोटाले में जिन आईएएस अफसरों को दोषी करार दिया गया और जिन्हें लगभग पूरा जीवन जेल में बिताना पड़ा, वे सब निचली जातियों से ताल्लुक रखते थे. वित्त आयुक्त फूल सिंह कुर्मी (सब्जी उगाने वाली जाति) थे. बेक जूलियस अनुसूचित जनजाति से आते थे और के. अरुमुगम एवं महेश प्रसाद अनुसूचित जाति से संबंध रखते थे. तत्कालीन मुख्य सचिव विजय शंकर दुबे बेदाग पाये गये. चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त सजल चक्रवर्ती दोषी पाये गये, लेकिन उन्हें जमानत मिली और वे झारखंड के मुख्य सचिव के ओहदे तक पहुंच गये.
इस मामले में सह अभियुक्त और बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, जिनके काल में यह घोटाला शुरू हुआ, के साथ उनके सजातीय और सह अभियुक्त आईएएस अफसर आर. एस. दुबे एवं कई पाठकों और मिश्राओं को उन्हीं मामलों में बरी कर दिया गया, जिसमें लालू को दोषी करार देकर जेल भेज दिया गया. रिकार्ड को संतुलित दर्शाने के गरज से एक हालिया फैसले में जगन्नाथ मिश्र को दोषी करार दिया गया है.

शिकार बने आईएएस अफसरों में अरुमुगम से एक बार मिलने का अवसर मुझे मिला. पटना में उनका दफ़्तर मेरे कार्यालय के निकट था. मैं उन्हें हमारे चर्च के एक समारोह में आमंत्रित करने के लिए उनके पास गया था. तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि जल्द ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जायेगा! मेरे समुदाय की एक महिला, जिन्हें मैं जानता हूं, अदालत जाकर यह आदेश ले आयीं कि किसी भी सजायाफ्ता को सत्ता में नहीं रहने दिया जायेगा और उसे हटा दिया जायेगा. हर किसी ने उस महिला की तारीफ़ की, क्योंकि उक्त आदेश का पहला शिकार आप थे.
मैंने एक कॉलम में उक्त आदेश की आलोचनात्मक समीक्षा की थी और यह पाया कि उस याचिका को दाखिल करने का आधार ही गलत था. कोई भी संवेदनशील राज्य आपको जमानत दे देता, ताकि आपके परिजन आपका सही तरीके से इलाज करा पाएं. अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर इलाज के लिए अमेरिका जा सकते हैं, तो आपके परिवार को भी इलाज के लिए आपको वहां ले जाने से रोकने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए. लेकिन आपकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए सीबीआई के वकील ने अदालत में क्या कहा? उन्होंने तर्क दिया कि आप एनडीए सरकार के धुर विरोधी हैं और आप सरकार के खिलाफ जनमत उभार सकते हैं आदि. क्या ये सब जमानत याचिका ठुकराने का आधार हो सकते हैं? फिर भी, आपको जमानत नहीं दी गयी. अब जरा इस बारे में सोचिए कि एक केन्द्रीय मंत्री अपने आधिकारिक मशीनरी का उपयोग भगोड़ा क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी को ब्रिटेन से बाहर जाने में मदद के लिए करता है.
मैं वाकई बहुत दुखी हुआ जब मैंने 25 अप्रैल को आपके बेटे तेजस्वी यादव का ट्वीट पढ़ा: ‘एक लंबे अरसे के बाद दिल्ली स्थित एम्स में अपने पिता मिला. उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हूं. ज्यादा सुधार के कोई लक्षण नहीं दिखे. इस उम्र में उन्हें लगातार देखभाल और उनके महत्वपूर्ण संकेतकों की निरंतर निगरानी की जरूरत है.’ फिर भी, केंद्र ने आपको रांची वापस भेज दिया, क्योंकि आपके स्वास्थ्य में कथित रूप से सुधार है. ऐसा लगता है कि वे आपको जेल बाहर नहीं आने देना चाहते. उन्हें डर है कि अगर आप बाहर आये तो बिहार सरकार के गिर जाने का खतरा है. बर्फ़ की जिस पतली सतह पर नीतीश कुमार फिसल रहे हैं, उसका खुलासा उस समय हो गया जब भाजपा–जद (यू) गठबंधन को हालिया उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा.
यह सही है कि आप चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन 2019 के आम चुनावों के प्रचार में आपकी मौन उपस्थिति भी भाजपा को भारी पड़ सकती है. यही वजह है कि आपको सलाखों के पीछे रखा जा रहा है. वे आपके बेटे–बेटियों के खिलाफ उनके जन्म से पहले हुए अपराधों के लिए भी मुकदमा करने में समर्थ हैं. और इस मामले में उनका अपना रिकार्ड कैसा है? भाजपा अध्यक्ष के खिलाफ एक मुक़दमे में, गवाहों की तो छोड़िए, मामले की सुनवाई करने वाले जज की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गयी!
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री ने अपने और अपने पार्टी के लोगों के खिलाफ दायर मुक़दमे वापस ले लिये. इन मामलों में हत्या से लेकर लूटपाट और उपद्रव तक के आरोप थे. विडम्बना देखिए कि ये सभी मुक़दमे ‘वापस लिए जाने लायक’ थे, जबकि आपके खिलाफ दर्ज 32 मामले कहीं ज्यादा पवित्र थे, आपको विवेक का कैदी बुलाने का मेरा विचार मौलिक नहीं है. इस पदबंध का इस्तेमाल हमने डॉ विनायक सेन, सोनी सोरी और इरोम शर्मीला के लिए किया है. यह आप पर भी सही उतरता है, क्योंकि आप सिर्फ इसलिए जेल में बंद हैं कि आप अकेले शख्स हैं, जिसने सत्ता के हुक्मरानों से समझौता नहीं किया और जिससे संघ परिवार खौफ खाता है.
मैं सिर्फ यही उम्मीद कर सकता हूं कि इस चिट्ठी के पहुंचने तक आपका स्वास्थ्य बेहतर हो जाये. आपको अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने वाले देखभाल और पोते – पोतियों के साथ की जरूरत है, ताकि आप खुश रह सकें. मुझे उम्मीद है कि आपकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति सत्ता में बैठे लोगों को आपको जमानत देने के लिए प्रेरित करेगी. ऐसे बहुत लोग हैं जो आपको भ्रष्ट मानते हैं, लेकिन उन्हें आपकी अहमियत का पता आपके जाने के बाद चलेगा. मुझे उम्मीद है कि ऐसा न होगा और आप सार्वजनिक जीवन में लौटेंगे. फिलहाल, मेरा यह रुदन जंगल में रोने जैसा दिखाई दे सकता है. मेरे कुछ मित्र मुझ से आपके दोष सिद्धी के बारे में सवाल कर सकते हैं, लेकिन मैं उनसे सिर्फ यही कह सकता हूं कि ईसा मसीह को भी दोषी करार दिया गया था.
शुभकामनाओं एवं प्रार्थना सहि

पक

18/05/2018

सुप्रीमो लालू प्रसाद लगभग साढ़े चार माह के बाद गुरुवार को पटना आ गये हैं. काफी प्रशासनिक जद्दोजहद के बाद झारखंड सरकार ने उन्हें तीन दिनों का पैरोल दिया है. लालू प्रसाद फिर 14 मई को लौट जाएंगे. पैरोल के आदेश पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. उस पर सियासत भी तेज हो गई है. लेकिन इन सबसे हटकर कई अंग्रेजी अखबारों के एडिटर रह चुके एजे फिलिप ने लालू प्रसाद के नाम से लंबा पत्र लिखा है. उस पत्र में उन्होंने लालू प्रसाद को लेकर अपने ‘मन की बात’ लिखी है. यह पत्र अंग्रेजी में लिखा हुआ है और इसकी हिंदी कॉपी काफी वायरल हो रही है. लालू प्रसाद के नाम से जारी इस पत्र को उनके बेटे तेजस्वी यादव ने रिट्वीट किया है. आप भी उस अंग्रेजी पत्र के हिंदी अनुवाद को पढ़ें…
प्रिय लालू प्रसाद यादव जी,
मैं भारी मन से आपको यह चिट्ठी लिख रहा हूं. मुझे यह तक नहीं मालूम कि यह चिट्ठी रांची जेल में, जहां आप अभी बंद हैं, आपको मिल भी पायेगी या नहीं. मेरी बड़ी इच्छा है कि यह चिट्ठी आपको मिले और आप इसे पढ़ें.
हम सिर्फ दो बार ही मिले हैं. पहली दफ़ा जब बिहार के दौरे पर आये हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय देवीलाल का साक्षात्कार करने मैं अहले सुबह छह बजे पटना के राजकीय अतिथिगृह पहुंचा था. वह 1980 के दशक का वक़्त था. शायद उस वरिष्ठ नेता के प्रति सम्मान की वजह से पूरे साक्षात्कार के दौरान आपने मेरे पीछे खड़ा रहना मुनासिब समझा था. आपको जरूर मुझसे खीझ हुई होगी, क्योंकि उस दिन हरियाणा वो ताक़तवर नेता पूरे रौ में था और मेरे सवालों का जवाब देते हुए आनंद महसूस कर रहा था. एक या दो बार आपने मुझे साक्षात्कार ख़त्म करके जाने का इशारा भी किया था, ताकि आपलोग आपस में राजनीतिक विमर्श कर पाएं.

दूसरा मौका था, जब सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर आपकी पत्नी राबड़ी देवी को आवंटित आवास पर मैंने एक पूरा दोपहर बिताया था. उस दिन आप चारा घोटाला मामले में एक अदालत में हाजिरी के बाद लौटे ही थे. उस साक्षात्कार के बाद मैंने “लालू के इलाके में दो दिन” शीर्षक से एक लेख लिखा था. इस लेख को प्रो. केसी यादव, जिन्होंने चारा घोटाले के खोखलेपन को उजागर किया था, द्वारा लिखे गये किताब में भी शामिल किया गया था.
मैंने इंडियन एक्सप्रेस में भी “श्रीमान बिश्वास के लिए एक घर” शीर्षक से एक मुख्य लेख लिखा था, जिसमें मैंने आपके खिलाफ जांच जारी रखने के लिए सीबीआई अधिकारी को साल दर साल सेवा विस्तार दिये जाने की मंशा पर सवाल उठाया था. मुझे याद है कि आपने उस लेख का हिंदी में अनुवाद कराया था और उसकी लाखों प्रतियां राज्य के कोने–कोने में, विशेषकर गरीब रैली के दौरान वितरित कराई थी. यहां तक कि हिंदुस्तान टाइम्स के पटना संस्करण ने मेरे लेख के लाखों लोगों तक पहुंचने को लेकर एक ख़बर बॉक्स में छापा था.

उस लेख का शीर्षक नोबेल पुरस्कार विजेता वी एस नायपॉल के लिखे एक उपन्यास के शीर्षक पर आधारित था. उस लेख के छपने के बाद विश्वास के कोलकाता स्थित आवास को उत्तर–पूर्व के कुछ आतंकवादियों द्वारा छिपने के ठिकाने के तौर पर इस्तेमाल करने की ख़बरें आयी थीं. संक्षेप में, खोजबीन में माहिर यह अधिकारी, जिसे आपके पीछे लगाया था. अपने घर को अपराधियों के एक गिरोह की शरणस्थली बनने से नहीं बचा सका. न ही किसी दिवंगत व्यक्ति पर तोहमत मढ़ने की हमारी परंपरा नहीं है. ए के बिश्वास की आत्मा को शांति मिले!
हमारे यहां एक दूसरी परंपरा भी है जिसके तहत प्रत्येक राजनेता पर भ्रष्टचार का आरोप जड़ दिया जाता है, आयकर के ब्यौरे में अपनी आमदनी छुपाने में नहीं सकुचाया जाता या संपत्ति की खरीद–बिक्री के समय उसका मूल्य कम दर्शाने में संकोच नहीं किया जाता या फिर अपने बच्चों की शादी में दहेज़ लेते–देते नहीं हिचकिचाया जाता.

मैंने चारा घोटाले की राजनीति का अध्ययन किया है. कहानी यूं है कि कुछ भ्रष्ट सरकारी अधिकारी भ्रष्ट ठेकेदारों से साठगांठ करके फर्जी बिल के जरिए जिला कोषागार से पैसे निकाल रहे थे. ये सब जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्री रहते हुए शुरू हुआ था और आपके मुख्यमंत्री बनने के समय यह चलन जारी था. आपके मुख्यमंत्रित्व काल में एक नौकरशाह ने इस चलन को पकड़ा. दरअसल, इस जालसाजी और रैकेट का पर्दाफाश करने का श्रेय आपको मिलना चाहिए था. लेकिन विडम्बना देखिए कि इस रैकेट के सरगना होने का आरोप मढ़कर आपको ही जेल में डाल दिया गया.
मुझे वे दिन याद हैं, जब आप बिहार की राजनीति के बेताज बादशाह थे. आप आम जनता के चेहते थे और यहां तक कि राष्ट्रीय राजनीति को भी नियंत्रित कर रहे थे. एक ऐसा मुख्यमंत्री जिसकी एक अपील पर लाखों लोग उसके राजनीतिक कार्यों के लिए कोई भी रकम जुटाने को तैयार हों, वो भला एक छोटे से जिले में जानवरों के चारा के आपूर्तिकर्ताओं से सांठगांठ करने जैसी ओछी हरकत क्यों करेगा? इस किस्म की सोच ही हास्यास्पद है.
रघुवर सरकार ने लालू के मुंह पर लगाया ‘टेप’ मीडिया की आजादी पर किया हमला, उठने लगे सवाल
मैं जगन्नाथ मिश्र को जानता हूं, लेकिन मैं यह मानने को हरगिज तैयार नहीं कि उन्होंने चारा आपूर्तिकर्ताओं को कोषागार से लाखों रुपए निकालने के लिए बढ़ावा दिया होगा. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी राज्य, मान लीजिए कि मणिपुर के विकास कार्यों के लिए केंद्र द्वारा आवंटित राशि में राजनेता–नौकरशाह–ठेकेदार लॉबी द्वारा किये गये घपले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाये! या फिर ताज़ा उदहारण लीजिए. हीरा व्यापारी नीरव मोदी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करके देश छोड़कर भाग गया. भागने के कुछ दिनों पहले, वह दावोस गया और प्रधानमंत्री मोदी के साथ लिये गये एक सामूहिक तस्वीर में जगह पा गया. नीरव मोदी की धोखाधड़ी के समय अरुण जेटली देश के वित्तमंत्री थे. जेटली का कहना है कि धोखाधड़ी यूपीए के शासनकाल में शुरू हुई थी.
सीबीआई ने भाजपा के नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली या कांग्रेस के पी. चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? और फिर, किंगफ़िशर एयरलाइन्स के कर्मचारियों के भविष्य निधि में घपला करने और कई भारतीय बैंकों के हजारों करोड़ रुपए डकारने के बाद दर्जनों सूटकेसों के साथ विजय माल्या देश से भाग गया. वो भी राज्यसभा का सदस्य रहते हुए! सत्ता में बैठे लोगों से सांठगांठ के बिना क्या वो देश से भाग सकता था? संबंधित मंत्रियों के खिलाफ इस मामले में कोई कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की गयी?
पिता लालू का पैर छू तेज-तेजस्वी ने लिया आशीर्वाद, घर पर बच्चे कह उठे- नाना जी जिंदाबाद
नहीं श्रीमान, आप एक अलग तरह के राजनेता हैं. मैंने गौर किया है कि सभी राजनीतिक दल, चाहे वो कांग्रेस हो या सीपीआई या सीपीएम या सपा या फिर बसपा हो, ने संघ परिवार के साथ गठजोड़ किया है, लेकिन आप इससे अछूते रहे. मुझे याद है कि जब आपने साहस दिखाते हुए एक खतरनाक मिशन में लगे एलके आडवाणी को बिहार में घुसते ही गिरफ्तार कर लिया था. उनकी रथयात्रा हिंदू–मुस्लिम एकता के लिए खतरा बन रही थी. और उनको गिरफ्तार करके आपने निर्दोष लोगों का खून नाहक बहने से बचा लिया था.
आपको अंदाजा नहीं था कि आप एक ऐसे हाथी को घायल कर रहे हैं, जो अपने चोट पहुंचाने वाले को कभी नहीं भूलता. उन्होंने चारा घोटाले को आपको निपटाने का सबसे मुफ़ीद अस्त्र माना. किसी भी समझदार आदमी को आपके खिलाफ लगाया गया आरोप अजूबा लगेगा, क्योंकि लूट के माल में हिस्सेदारी के लिए किसी मुख्यमंत्री का एक अदने से चोर से हाथ मिलाने की बात कुछ जंचती नहीं. पूरी सरकारी मशीनरी को आपको घेरने में लगा दिया गया. और इसके लिए उन्होंने क्या नहीं किया?
उन्होंने चारा घोटाला को कई मुकदमों में बांट दिया. आपके खिलाफ इस किस्म के कई मुकदमों को दायर हुए 25 से 30 साल हो गये हैं. सभी मामलों के फैसले अभी नहीं आये हैं. ऐसा एक खास मकसद से किया जा रहा है. भारत में, कई सजाओं के एक साथ चलने का प्रावधान है. लेकिन आपके मामले में आपको प्रत्येक सजा को एक के बाद एक पूरा करना है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि आप अपने अंतिम समय तक जेल में बंद रहें.

हाल में, एक तस्वीर देखकर मैं चौंक गया जिसमें एम्स में इलाज कराने के लिए दिल्ली जाने के दौरान ट्रेन में आपको धकेल कर बिठाया जा रहा था. क्या आपको हवाई मार्ग से भेजा जाना संभव नहीं था? मेरे एक मित्र हैं जो मुझे आपके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते रहते हैं. उनकी वजह से मैं यह जान पाया कि आपके गुर्दे ठीक से काम नहीं कर रहे. आपको उच्च रक्तचाप और मधुमेह की शिकायत है. मुझे यह भी मालूम है कि आपके दिल की तीन बार सर्जरी हो चुकी है.
आप ही वो शख्स थे जिसने भारतीय रेल को मुनाफे में ला दिया और गरीबों के लिए रेलगाड़ियां चलवायीं. आपने लाखों करोड़ों रुपए फिजूल में खर्च करके पटना और दिल्ली के बीच बुलेट ट्रेन चलवाने के बारे में नहीं सोचा. इन्हीं वजहों से आपको हारवर्ड के छात्रों को यह समझाने के लिए बुलाया गया था कि आखिर कैसे आपने मरणासन्न स्थिति में पहुंची भारतीय रेल को मुनाफ़ा कमाने वाले एक संस्थान में तब्दील किया.

अब आप 70 वर्ष के हो चुके हैं. आपने कभी जमानत नहीं तोड़ी. कभी अदालत की सुनवाई से गैरहाजिर नहीं रहे. किसी भी अदालती आदेश का कभी उल्लंघन नहीं किया, लेकिन फिर भी आपको जमानत नहीं दी जाती. कानून के किस किताब में यह लिखा है कि एक ‘सजायाफ्ता’ कैदी का इलाज सिर्फ किसी सरकारी अस्पताल में ही हो सकता है? आपने केरल के आर. बालकृष्ण पिल्लई के बारे में शायद सुना होगा. उन्हें भी भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया था और जेल भेजा गया था. बीमार पड़ने पर उन्हें तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और एक वातानुकूलित कमरे में रखा गया था. उनकी कैद की अवधि एक साल की थी, लेकिन उन्होंने जेल भीतर कितने दिन बिताये? महज कुछ हफ्ते. मुझे यह अंतर करने के लिए माफ़ कीजिए कि वे एक क्षत्रिय थे और आप एक यादव.
मुझे उस मित्र को उद्धृत करने की इजाज़त दीजिए जिसने गुस्से से ज्यादा निराशा में भरकर लिखा था: “हमें इस पूरे मामले को आभिजात्य पुलिस, बार और न्यायपालिका के जातिगत, वर्ग और समुदाय आधारित पूर्वाग्रह के हिसाब से देखना चाहिए. चारा घोटाले में जिन आईएएस अफसरों को दोषी करार दिया गया और जिन्हें लगभग पूरा जीवन जेल में बिताना पड़ा, वे सब निचली जातियों से ताल्लुक रखते थे. वित्त आयुक्त फूल सिंह कुर्मी (सब्जी उगाने वाली जाति) थे. बेक जूलियस अनुसूचित जनजाति से आते थे और के. अरुमुगम एवं महेश प्रसाद अनुसूचित जाति से संबंध रखते थे. तत्कालीन मुख्य सचिव विजय शंकर दुबे बेदाग पाये गये. चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त सजल चक्रवर्ती दोषी पाये गये, लेकिन उन्हें जमानत मिली और वे झारखंड के मुख्य सचिव के ओहदे तक पहुंच गये.
इस मामले में सह अभियुक्त और बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, जिनके काल में यह घोटाला शुरू हुआ, के साथ उनके सजातीय और सह अभियुक्त आईएएस अफसर आर. एस. दुबे एवं कई पाठकों और मिश्राओं को उन्हीं मामलों में बरी कर दिया गया, जिसमें लालू को दोषी करार देकर जेल भेज दिया गया. रिकार्ड को संतुलित दर्शाने के गरज से एक हालिया फैसले में जगन्नाथ मिश्र को दोषी करार दिया गया है.

शिकार बने आईएएस अफसरों में अरुमुगम से एक बार मिलने का अवसर मुझे मिला. पटना में उनका दफ़्तर मेरे कार्यालय के निकट था. मैं उन्हें हमारे चर्च के एक समारोह में आमंत्रित करने के लिए उनके पास गया था. तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि जल्द ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जायेगा! मेरे समुदाय की एक महिला, जिन्हें मैं जानता हूं, अदालत जाकर यह आदेश ले आयीं कि किसी भी सजायाफ्ता को सत्ता में नहीं रहने दिया जायेगा और उसे हटा दिया जायेगा. हर किसी ने उस महिला की तारीफ़ की, क्योंकि उक्त आदेश का पहला शिकार आप थे.
मैंने एक कॉलम में उक्त आदेश की आलोचनात्मक समीक्षा की थी और यह पाया कि उस याचिका को दाखिल करने का आधार ही गलत था. कोई भी संवेदनशील राज्य आपको जमानत दे देता, ताकि आपके परिजन आपका सही तरीके से इलाज करा पाएं. अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर इलाज के लिए अमेरिका जा सकते हैं, तो आपके परिवार को भी इलाज के लिए आपको वहां ले जाने से रोकने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए. लेकिन आपकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए सीबीआई के वकील ने अदालत में क्या कहा? उन्होंने तर्क दिया कि आप एनडीए सरकार के धुर विरोधी हैं और आप सरकार के खिलाफ जनमत उभार सकते हैं आदि. क्या ये सब जमानत याचिका ठुकराने का आधार हो सकते हैं? फिर भी, आपको जमानत नहीं दी गयी. अब जरा इस बारे में सोचिए कि एक केन्द्रीय मंत्री अपने आधिकारिक मशीनरी का उपयोग भगोड़ा क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी को ब्रिटेन से बाहर जाने में मदद के लिए करता है.
मैं वाकई बहुत दुखी हुआ जब मैंने 25 अप्रैल को आपके बेटे तेजस्वी यादव का ट्वीट पढ़ा: ‘एक लंबे अरसे के बाद दिल्ली स्थित एम्स में अपने पिता मिला. उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हूं. ज्यादा सुधार के कोई लक्षण नहीं दिखे. इस उम्र में उन्हें लगातार देखभाल और उनके महत्वपूर्ण संकेतकों की निरंतर निगरानी की जरूरत है.’ फिर भी, केंद्र ने आपको रांची वापस भेज दिया, क्योंकि आपके स्वास्थ्य में कथित रूप से सुधार है. ऐसा लगता है कि वे आपको जेल बाहर नहीं आने देना चाहते. उन्हें डर है कि अगर आप बाहर आये तो बिहार सरकार के गिर जाने का खतरा है. बर्फ़ की जिस पतली सतह पर नीतीश कुमार फिसल रहे हैं, उसका खुलासा उस समय हो गया जब भाजपा–जद (यू) गठबंधन को हालिया उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा.
यह सही है कि आप चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन 2019 के आम चुनावों के प्रचार में आपकी मौन उपस्थिति भी भाजपा को भारी पड़ सकती है. यही वजह है कि आपको सलाखों के पीछे रखा जा रहा है. वे आपके बेटे–बेटियों के खिलाफ उनके जन्म से पहले हुए अपराधों के लिए भी मुकदमा करने में समर्थ हैं. और इस मामले में उनका अपना रिकार्ड कैसा है? भाजपा अध्यक्ष के खिलाफ एक मुक़दमे में, गवाहों की तो छोड़िए, मामले की सुनवाई करने वाले जज की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गयी!
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री ने अपने और अपने पार्टी के लोगों के खिलाफ दायर मुक़दमे वापस ले लिये. इन मामलों में हत्या से लेकर लूटपाट और उपद्रव तक के आरोप थे. विडम्बना देखिए कि ये सभी मुक़दमे ‘वापस लिए जाने लायक’ थे, जबकि आपके खिलाफ दर्ज 32 मामले कहीं ज्यादा पवित्र थे, आपको विवेक का कैदी बुलाने का मेरा विचार मौलिक नहीं है. इस पदबंध का इस्तेमाल हमने डॉ विनायक सेन, सोनी सोरी और इरोम शर्मीला के लिए किया है. यह आप पर भी सही उतरता है, क्योंकि आप सिर्फ इसलिए जेल में बंद हैं कि आप अकेले शख्स हैं, जिसने सत्ता के हुक्मरानों से समझौता नहीं किया और जिससे संघ परिवार खौफ खाता है.
मैं सिर्फ यही उम्मीद कर सकता हूं कि इस चिट्ठी के पहुंचने तक आपका स्वास्थ्य बेहतर हो जाये. आपको अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने वाले देखभाल और पोते – पोतियों के साथ की जरूरत है, ताकि आप खुश रह सकें. मुझे उम्मीद है कि आपकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति सत्ता में बैठे लोगों को आपको जमानत देने के लिए प्रेरित करेगी. ऐसे बहुत लोग हैं जो आपको भ्रष्ट मानते हैं, लेकिन उन्हें आपकी अहमियत का पता आपके जाने के बाद चलेगा. मुझे उम्मीद है कि ऐसा न होगा और आप सार्वजनिक जीवन में लौटेंगे. फिलहाल, मेरा यह रुदन जंगल में रोने जैसा दिखाई दे सकता है. मेरे कुछ मित्र मुझ से आपके दोष सिद्धी के बारे में सवाल कर सकते हैं, लेकिन मैं उनसे सिर्फ यही कह सकता हूं कि ईसा मसीह को भी दोषी करार दिया गया था.
शुभकामनाओं एवं प्रार्थना सहित
आपका
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