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12/09/2024

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30/07/2024

उत्तराखण्ड राज्य सरकार द्वारा कृषि उद्यान, पशुपालन समेलित समूह "ग" की भर्ती परीक्षा का अंतिम रिजल्ट जारी न करने के संबंध में राष्ट्रीय कृषि छात्र संघ उत्तराखंड द्वारा आज विशाल धरना प्रदर्शन किया गया।

NASO - UttaraKhand राष्ट्रीय कृषि छात्र संघ National Agricultural Students Organization NASO Narendra Modi उत्तराखंड दर्पण Pushkar Singh Dhami Rajnath Singh Shivraj Singh Chouhan

राष्ट्रीय कृषि छात्र संघ National Agricultural Students Organization NASO
28/07/2024

राष्ट्रीय कृषि छात्र संघ National Agricultural Students Organization NASO

गेहूँ की खड़ी फसल में उल्लू (Owl) के माध्यम से चूहों का करें जैविक नियंत्रण (बिना रसायनों के) ?प्रोफेसर (डॉ ) एसके सिंहव...
14/04/2024

गेहूँ की खड़ी फसल में उल्लू (Owl) के माध्यम से चूहों का करें जैविक नियंत्रण (बिना रसायनों के) ?

प्रोफेसर (डॉ ) एसके सिंह
विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
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गेहूँ में चूहों के कारण होने वाला नुकसान कृषि व्यवस्था, भंडारण सुविधाओं और यहाँ तक कि परिवहन के दौरान भी एक बड़ी समस्या हो सकती है। चूहे और अन्य कृंतक गेहूँ की फसलों और संग्रहीत अनाज को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान पहुँचाते हैं। गेहूँ में चूहों से संबंधित नुकसान के विभिन्न पहलुओं, नुकसान के प्रकार, चूहों के संक्रमण को प्रबंधित करने के तरीके और विभिन्न प्रबंधन रणनीतियों की चुनौतियाँ और लाभ का विवरण निम्नवत है...

गेहूँ में चूहों के कारण होने वाले
नुकसान के प्रकार

प्रत्यक्ष उपभोग: चूहे बड़ी मात्रा में गेहूँ खाते हैं, जिससे वस्तु का प्रत्यक्ष नुकसान होता है। वे गेहूँ के दानों को सीधे खेतों से, कटाई के दौरान, परिवहन में या भंडारण के दौरान खा सकते हैं।

संदूषण: चूहे अपने मल, मूत्र और फर से गेहूँ को दूषित करते हैं। यह संदूषण गेहूँ को अस्वास्थ्यकर और मानव या पशु उपभोग के लिए अनुपयुक्त बना सकता है।

शारीरिक क्षति: चूहे खेतों में गेहूँ के पौधों को शारीरिक क्षति पहुँचाते हैं, तने और पुष्पक्रम को कुतरते हैं। भंडारण सुविधाओं में, चूहे पैकेजिंग और भंडारण संरचनाओं को नुकसान पहुँचाते हैं।

रोग संचरण: चूहे मनुष्यों और पशुओं दोनों को रोग ले जा सकते हैं और संचारित कर सकते हैं। गेहूं के खेतों या भंडारण क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति संभावित बीमारियों के प्रसार के कारण स्वास्थ्य जोखिम पैदा करती है।

आर्थिक प्रभाव: चूहों के कारण गेहूं के नुकसान से किसानों और भंडारण सुविधा संचालकों को महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान होता है। इसमें क्षतिग्रस्त या दूषित गेहूं को बदलने, संक्रमण का प्रबंधन करने और कथित गुणवत्ता संबंधी मुद्दों के कारण संभावित बाजार मूल्य में कमी से जुड़ी लागतें शामिल हैं।

चूहों के संक्रमण को कैसे करें प्रबंधित ?

जैविक नियंत्रण:उल्लू या अन्य शिकारी पक्षियों जैसे प्राकृतिक शिकारियों को पेश करना, कृषि क्षेत्रों में चूहों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करता है। इस क्रम में गेंहू में जब फरवरी माह में बालियां आ रही होती है उस अवस्था में जब आप खेत की मेंढ़ पर खड़े हो कर देखेंगे तो कही कही पर गेंहू की बालियां उठी हुई दिखाई देंगी यह इस बात का द्योतक है की इस खेत में चूहों का आक्रमण हो चुका है ।इन जगहों पर बांस की फट्टी के ऊपर पॉलीथिन पहना कर गाड़ देना चाहिए । ऐसा करने से रात में इस पर ऊल्लू बैठेंगे एवं चूहों का शिकार करेंगे साथ ही साथ रात को जब हवा चलेगी तो इन पॉलीथिन की पन्नियों से फर फर की तेज आवाज निकलेगी जिससे चूहे खेत से बाहर चले जाएंगे। इस प्रकार से बिना किसी अतरिक्त प्रयास के चूहों का प्राकृतिक नियंत्रण होगा। यह विधि चूहों के संक्रमण को प्रबंधित करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल दृष्टिकोण प्रदान करती है। धरती पर पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में उल्लू अहम भूमिका निभाता है। चूहे, छछूंदर और हानिकारक कीड़े मकोड़ों का शिकार करने के कारण इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी भी कहते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार मलेशिया में किसान फसल बचाने के लिए उल्लू पाल रहे हैं। हमारे देश में दीपावली पर तंत्रमंत्र और अंधविश्वास के चक्कर में कुछ लोग उल्लू को मार देते हैं। इसके संरक्षण के लिए ऐसे लोगों की सूचना वन विभाग और पुलिस को दें ।उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे दिन के मुकाबले रात में साफ दिखाई देता है। इसीलिए ये रात को ही शिकार करता है।
ये अपनी तेज सुनने की शक्ति के दम पर ही शिकार करता है। चूहे, छछूंदर, सांप और रात को उड़ने वाले कीट पतंगे खाता है। एक उल्लू एक साल में एक हजार के आसपास चूहे खा जाता है। दुनियाभर में उल्लू की करीब 200 प्रजातियां हैं। भारत में मुख्य दो प्रजाति मुआ और घुग्घू पाई जाती है। मुआ पानी के करीब और घुग्घू खंडहरों और पेड़ों पर रहते हैं। फसल की रक्षा के लिए पाले उल्लू कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से जैव विविधता को बचाने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। मलयेशिया के पाम उत्पादकों ने फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जंतुओं और कीटों से बचाने के लिए उल्लू को पालना शुरू किया है। उन्हें पाम पेड़ों का रक्षक मानकर उनके करीब निवास बनाकर दिया जाता है। भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक के तहत उल्लू संरक्षित है। ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है। इनके शिकार या तस्करी पर कम से कम तीन वर्ष सजा का प्रावधान है। अगर कोई उल्लू का शिकार कर रहा है तो उसके बारे में वन विभाग को सूचना दें।
उल्लू बुद्धिमान पक्षी होता है, ये इंसान के मुकाबले 10 गुना धीमी आवाज सुन सकता है। उल्लू अपने सिर को दोनों तरफ 135 डिग्री तक घुमा सकता है। बेहद शांत उल्लू के कान आकार में एक जैसे नहीं होते हैं।दुनिया का सबसे छोटा उल्लू 5-6 इंच और सबसे बड़ा 32 इंच का है। उल्लू अंटार्टिका के अलावा सब जगह पाए जाते हैं। पलकें नहीं होने के कारण इनकी आंखे हरदम खुली रहती हैं। उल्लू के पंख चौड़े और शरीर हल्का होता है, इस कारण उड़ते वक्त ये ज्यादा आवाज नहीं करते। उल्लू झुंड में नहीं रहते, ये अकेले रहना पसंद करते हैं।

बहिष्कार: चूहों को खेतों और भंडारण क्षेत्रों में प्रवेश करने से रोकना संक्रमण के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें बाड़ जैसे अवरोधों का उपयोग करना और भंडारण सुविधाओं में किसी भी अंतराल या प्रवेश बिंदु को सील करना शामिल होता है।

स्वच्छता: भंडारण क्षेत्रों को साफ और मलबे से मुक्त रखना चूहों के लिए इन क्षेत्रों का आकर्षण कम कर सकता है। नियमित सफाई और बिखरे हुए अनाज को हटाना आवश्यक है।

जाल लगाना: स्नैप ट्रैप जैसे यांत्रिक जाल, खेतों और भंडारण सुविधाओं से चूहों को पकड़ने और हटाने में प्रभावी हो सकते हैं।

कृंतकनाशक: चूहों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए कृंतकनाशक युक्त रासायनिक चारा का उपयोग किया जा सकता है। इन पदार्थों का सावधानीपूर्वक और दिशा-निर्देशों के अनुसार उपयोग करना महत्वपूर्ण है ताकि गैर-लक्ष्य प्रजातियों के आकस्मिक विषाक्तता और गेहूं के संदूषण से बचा जा सके।

विकर्षक: प्राकृतिक और सिंथेटिक विकर्षक का उपयोग चूहों को भंडारण क्षेत्रों या खेतों में प्रवेश करने से रोकने के लिए किया जा सकता है। पुदीना तेल जैसे आवश्यक तेल चूहों को दूर भगाने के लिए जाने जाते हैं।

निगरानी: खेतों और भंडारण क्षेत्रों में चूहों की आबादी की नियमित निगरानी संक्रमण को जल्दी पहचानने और त्वरित कार्रवाई करने में मदद कर सकती है। इसमें दृश्य निरीक्षण, ट्रैकिंग पाउडर का उपयोग या इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली शामिल हो सकती है।

प्रबंधन रणनीतियों की चुनौतियाँ और लाभ

चुनौतियाँ

कृंतक प्रतिरोध: चूहे समय के साथ कुछ कृंतकनाशकों के प्रति प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं, जिससे रासायनिक नियंत्रण विधियों की प्रभावशीलता कम हो जाती है।

सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: यदि ठीक से नियंत्रित न किया जाए तो कृंतकनाशकों का उपयोग मनुष्यों, पालतू जानवरों और वन्यजीवों के लिए जोखिम पैदा कर सकता है।

लागत: प्रभावी प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना महंगा हो सकता है, खासकर छोटे किसानों या भंडारण सुविधा संचालकों के लिए।

लाभ

फसल सुरक्षा: प्रभावी प्रबंधन रणनीतियाँ चूहों से होने वाले नुकसान और हानि से गेहूँ की फसलों को बचाने में मदद करती हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य: चूहों की आबादी को नियंत्रित करने से मनुष्यों और पशुओं में बीमारी फैलने का जोखिम कम होता है।

आर्थिक स्थिरता: चूहों के कारण होने वाले नुकसान को कम करने से बाजार के लिए उपलब्ध गेहूँ की गुणवत्ता और मात्रा को बनाए रखने में मदद मिलती है, जिससे किसानों के लिए कीमतें और आय स्थिर होती है।

सारांश

गेहूँ के खेतों और भंडारण सुविधाओं में चूहों के संक्रमण का प्रबंधन नुकसान को रोकने और फसल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। चूहों की आबादी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए बहिष्कार, स्वच्छता, जाल, कृंतकनाशक, जैविक नियंत्रण, विकर्षक और निगरानी के संयोजन का उपयोग किया जा सकता है। हालाँकि, इन विधियों को सुरक्षा, पर्यावरणीय प्रभाव और लागत-प्रभावशीलता के लिए सावधानी और विचार के साथ लागू किया जाना चाहिए।

13/03/2024
कटहल के छोटे फलोंको सड़ने से कैसे रोकें ?प्रोफेसर (डॉ ) एसके सिंहविभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोल...
13/03/2024

कटहल के छोटे फलों
को सड़ने से कैसे रोकें ?

प्रोफेसर (डॉ ) एसके सिंह
विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
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कटहल के छोटे फलों के सड़ने का एक प्रमुख कारण है राइजोपस स्टोलोनिफर नामक कवक ।यह रोग केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में पाया जाता है यथा कुक आइलैंड्स, फिजी, फ्रेंच पोलिनेशिया, नीयू, समोआ और सोलोमन आइलैंड्स ।
इस रोगकारक का मेहमान केवल कटहल ही नहीं बल्कि कई अन्य पौधे इसके मेज़बान हैं। यह कवक मिट्टी में, पौधे के मलबे पर, और कई फलों (आड़ू, स्ट्रॉबेरी) और सब्जियों की कटाई के बाद, परिवहन के दौरान और भंडारण में भी आम है। राइजोपस को शकरकंद, साइट्रस (मैंडरिन और कीनू) और बैंगन पर भी देखा जाता है।

लक्षण और जीवन चक्र

राइजोपस सड़ांध कटहल के फूलों और युवा फलों का एक आम रोग है। यह फल पर एक नरम, पानीदार, भूरे रंग के धब्बे का कारण बनता है जो जल्द ही भूरे-भूरे, बाद में काले मोल्ड से आच्छादित हो जाता है। फलों के लक्षण पेड़ पर और भंडारण के समय दिखाई देते हैं। कटहल पर, यह एक प्राथमिक रोगज़नक़ है, जो विकास के सभी चरणों में फलों को प्रभावित करता है, जबकि अधिकांश अन्य फलों और सब्जियों पर, राइजोपस कीड़ों और मौसम की घटनाओं के कारण होने वाले घावों या असामान्य वृद्धि के कारण होने वाली दरारों के माध्यम से संक्रमित होता है। फलों की तुड़ाई के समय तने के सिरे पर भी संक्रमण हो जाता है।खेत में, गर्म, बरसात के दिन बीमारी के लिए अनुकूल होते हैं, और भंडारण में उच्च तापमान और नमी इस रोग को बढ़ाने में सहायक होता है। इस रोग का प्रसार हवा में बड़ी संख्या में बीजाणुओं द्वारा होता है। उत्तरजीविता मोटी दीवार वाले बीजाणुओं के रूप में होती है । बीजाणु लंबे समय तक सूखे और ठंड का सामना कर सकते हैं। बिहार में इस रोग के फैलने के लिए काफी अनुकूल मौसम होने की वजह से कटहल के छोटे फलों का इस रोग की वजह से काफी नुकसान होता है।

कटहल मे राइजोपस फल सड़न रोग
का प्रबंधन कैसे करें?

पेड़ों की कटाई छँटाई इस तरह से करें की हवा पेड़ की छतरी( कैनोपी ) के माध्यम से स्वतंत्र रूप से आ एवम जा सके और बारिश के बाद फल जल्दी से जल्दी सूख जाए। पेड़ों और जमीन पर गिरे सभी उम्र के संक्रमित फलों को अविलम्ब हटा दें। फलों की कटाई सावधानी से करें, चोट लगने या घाव बनने से बचें। इसी तरह, फलों को भी सावधानी से एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले जाय । फलों को गर्म, कम हवादार, उच्च आर्द्रता वाले भवनों में रखने से बचें; हो सके तो फलों को 10°C से कम तापमान पर स्टोर करें। राइजोपस 4°C पर बीजाणु उत्पन्न नहीं करता है। याद रखें, एक खेप में एक फल कुछ ही दिनों में कई अन्य फलों के सड़ने का कारण बन सकता है। सुनिश्चित करें कि पैकिंग शेड और बक्से / डिब्बे साफ हो , किसी भी पौधे की सामग्री को हटा दें जिस पर राइजोपस बीजाणु पहले से लगे होने कि सम्भावना हो ।

कटहल मे राइजोपस फल सड़न रोग
का रासायनिक प्रबंधन

यदि कवकनाशी की आवश्यकता होती है, तो एक सुरक्षात्मक कवकनाशी, जैसे, मैनकोज़ेब, या एक प्रणालीगत फफूंद नाशक जैसे, थायोफ़ेनेट मिथाइल या एक ट्राईज़ोल, जैसे, प्रोपिकोनाज़ोल में से किसी भी फफूंदनाशक @2ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है। यदि एक प्रणालीगत कवकनाशी का उपयोग किया जाता है, तो इन्हें मैंकोज़ेब के स्प्रे के साथ वैकल्पिक करें। यदि उद्देश्य केवल फलों को भंडारण में सुरक्षित रखने की है, तो कटाई से 10 दिन पहले एक बार छिड़काव करें। कीटनाशक का उपयोग करते समय हमेशा सुरक्षात्मक कपड़े पहनें और उत्पाद लेबल पर दिए गए निर्देशों का पालन करें, जैसे कि खुराक, उपयोग का समय और कटाई-पूर्व अंतराल।

ARS के लिए अब न्यूनतम योग्यता परास्नातक है।Indian Council of Agricultural Research  राष्ट्रीय कृषि छात्र संघ National Ag...
13/03/2024

ARS के लिए अब न्यूनतम योग्यता परास्नातक है।

Indian Council of Agricultural Research
राष्ट्रीय कृषि छात्र संघ National Agricultural Students Organization NASO

जब आम के फूल खिले हो उस समय किसी भी कृषि रसायन खासकर कीटनाशक का प्रयोग न करें , नही तो मधुमक्खियों, मक्खियों, तितलियों औ...
11/03/2024

जब आम के फूल खिले हो उस समय किसी भी कृषि रसायन खासकर कीटनाशक का प्रयोग न करें , नही तो मधुमक्खियों, मक्खियों, तितलियों और ततैया बाग से दूर चले जायेंगे जिससे होगा भारी नुकसान

प्रोफेसर (डॉ ) एसके सिंह
विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
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आम के फूल छोटे, सुगंधित और सफेद से लेकर गुलाबी रंग के होते हैं। वे पत्तियों के उभरने से पहले युवा शाखाओं की युक्तियों पर गुच्छों में बढ़ते हैं। फूलों की पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं और आमतौर पर लगभग 5 मिमी व्यास की होती हैं। उनके पास एक मीठी, सुखद सुगंध होती है और परागण प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसी मीठी सुगंध के प्रति आकर्षित परागणकर्ता आम के बागों में आते हैं जो परागण जैसे अति महत्वपूर्ण कार्य को संपादित करते है, जो फल के विकास के लिए आवश्यक है। अपूर्ण परागण की अवस्था में फल झड़ जाते है। आम के फूल बसंत और गर्मी के महीनों में खिलते हैं, और फल कई महीनों बाद परिपक्व और पकते हैं।
मधुमक्खियों, मक्खियों, तितलियों और ततैया सहित कई प्रकार के परागणकों द्वारा आमों का परागण किया जाता है। मधुमक्खियों की कुछ प्रजातियाँ, जैसे आम मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा) और अकेली बढ़ई मधुमक्खी (ज़ाइलोकोपा प्रजाति), आम के फूलों के परागण में विशेष रूप से प्रभावी हैं। कुछ क्षेत्रों में, किसान अपने आम के पेड़ों को परागित करने के लिए मधुमक्खियों पर निर्भर रहते हैं। हालांकि, जंगली परागणकर्ता भी आम के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और परागणकर्ताओं के विविध समुदाय को बनाए रखने से इष्टतम परागण और फलों के उत्पादन को सुनिश्चित करने में मदद मिलती है। प्राकृतिक परागणकर्ताओं के अलावा, कुछ आम किसान मैनुअल परागण तकनीकों का भी उपयोग करते हैं, जैसे कि हाथ से परागण या फूलों की रिहाई और पराग हस्तांतरण को प्रोत्साहित करने के लिए कंपन उपकरणों का उपयोग। ये तकनीकें फलों के सेट को बढ़ाने और फलों की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकती हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां परागणकर्ताओं की आबादी सीमित है। लेकिन यह सब अभी अनुसंधान स्तर तक सीमित है।
जब फूल खिले हो उस समय किसी भी प्रकार का कोई भी कृषि रसायन खासकर कीटनाशक का प्रयोग नही करना चाहिए क्योंकि इससे फायदा तो कोई नही होगा बल्कि भारी नुकसान होगा ।आम के फूल के कोमल हिस्से इस रसायनों के प्रयोग से घायल हो सकते है एवम मेहमान परागण कर्ता कीट नाराज होकर बाग छोड़ कर चले जायेंगे। ये कीट हमारे मित्र है जिन्हे आम के फूल से निकली हुई एक मीठी सुगंध आमंत्रण देकर बुलाती है जिन्हे हमारी एक छोटी से बेवकूफी या यूं कहे ना जानकारी जब हम कीटनाशक का उपयोग करते है की वजह से ये हमारे बाग को छोड़कर चले जाते है जिसकी वजह से परागण जैसे महत्वपूर्ण कार्य को बीच में ही छूट जाते है।

PC: Dr. SK Singh Professor Plant Pathology, RPCAU,Pusa, Samastipur, Bihar

JOB ALERT 📢 : Advertisement for filling up the positions of following Consultants/ Senior Consultants Details here: http...
20/02/2024

JOB ALERT 📢 : Advertisement for filling up the positions of following Consultants/ Senior Consultants

Details here:https://ndma.gov.in/sites/default/files/PDF/Jobs/Consultans_Ndma_feb24.pdf

Shri Rakesh Ranjan, Special Secretary, DA&FW chaired a meeting to promote water chestnut in the Eastern part of the regi...
20/02/2024

Shri Rakesh Ranjan, Special Secretary, DA&FW chaired a meeting to promote water chestnut in the Eastern part of the region & to interact with stakeholders to give thrust to increase the area, production & value addition for water chestnut. The scientists of IIVR, Varanasi, ICAR-NRC for Makhana, Darbhanga, APEDA, State govt. officials & FPOs participated in the meeting & gave their valuable suggestions for an Action plan to be made to provide a boost to the sector.


आम लीची जैसे बड़े पेड़ों  को एक स्थान से दूसरे स्थान पर सफलतापूर्वक कैसे करें प्रत्यारोपित ?प्रोफेसर (डॉ ) एसके सिंहविभा...
20/02/2024

आम लीची जैसे बड़े पेड़ों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर सफलतापूर्वक कैसे करें प्रत्यारोपित ?

प्रोफेसर (डॉ ) एसके सिंह
विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
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आम एवं लीची जैसे पेड़ों को प्रत्यारोपित करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना, तैयारी और कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है ताकि एक नए स्थान पर उनका अस्तित्व और निरंतर विकास सुनिश्चित किया जा सके। चाहे आप भूदृश्य को बेहतर बनाने, क्षति को रोकने या किसी अन्य कारण से किसी पेड़ को हटा रहे हों, प्रक्रिया को समझना महत्वपूर्ण है। आइए जानते है आम एवं लीची के पेड़ों के प्रत्यारोपण की चरण-दर-चरण प्रक्रिया के बारे ....

आम या लीची के प्रत्यारोपित किए
जानेवाले पेड़ का अवलोकन

प्रत्यारोपण प्रक्रिया के क्रियान्वन से पहले, पेड़ को समझना आवश्यक है। आम एवं लीची के पेड़ उष्णकटिबंधीय पेड़ हैं जो अपने स्वादिष्ट फल और हरे-भरे पत्तों के लिए जाने जाते हैं। ये पेड़ 100 फीट तक ऊंचे हो सकते हैं और इनकी छतरियां चौड़ी फैली हुई होती हैं।ये अच्छी तरह से सूखा मिट्टी के साथ गर्म जलवायु में पनपते हैं और इष्टतम विकास के लिए पूर्ण सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है।

प्रत्यारोपण के लिए सही समय का चयन

पेड़ों की रोपाई करते समय महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह नए वातावरण में अनुकूलन और जीवित रहने की उनकी क्षमता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। आम एवं लीची के पेड़ों की रोपाई का सबसे अच्छा समय उनके निष्क्रिय मौसम के दौरान होता है, आमतौर पर नई वृद्धि शुरू होने से पहले सर्दियों के अंत में या शुरुआती वसंत में। इस अवधि के दौरान रोपाई करने से पेड़ पर तनाव कम हो जाता है और उसे गर्म मौसम की शुरुआत से पहले जड़ें जमाने में मदद मिलती है।

उपयुक्त स्थान का चयन करना

आम एवं लीची के पेड़ की रोपाई से पहले नये स्थान पर ध्यानपूर्वक विचार कर लें। सुनिश्चित करें कि साइट को पर्याप्त धूप मिले, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी हो, और पेड़ को उसके पूर्ण आकार तक बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिले। इसके अतिरिक्त, इमारतों, उपयोगिताओं और अन्य पेड़ों से निकटता जैसे कारकों पर विचार करें, क्योंकि ये समय के साथ पेड़ की वृद्धि और विकास को प्रभावित करते हैं।

प्रत्यारोपण के लिए पेड़ को तैयार करना

उचित तैयारी वृक्ष प्रत्यारोपण की सफलता के लिए अत्यावश्यक है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि मिट्टी पर्याप्त रूप से नम है, नियोजित प्रत्यारोपण तिथि से कुछ दिन पहले पेड़ को अच्छी तरह से पानी देना शुरू करें। प्रत्यारोपण प्रक्रिया के दौरान पेड़ पर तनाव कम करने के लिए किसी भी मृत या क्षतिग्रस्त शाखाओं की छंटाई करें। इसके अतिरिक्त, नई फीडर जड़ों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए रोपाई से कुछ महीने पहले जड़ों की छंटाई पर विचार करें।

पेड़ खोदना

पेड़ की जड़ के चारों ओर सावधानी से खुदाई करें, यह सुनिश्चित करते हुए कि आप यथासंभव जड़ प्रणाली को संरक्षित रखें। रूट बॉल का आकार पेड़ के आकार पर निर्भर करेगा, बड़े पेड़ों के लिए बड़ी रूट बॉल की आवश्यकता होती है। पेड़ के चारों ओर घूम रही या तने के करीब बढ़ रही किसी भी जड़ को काटने के लिए एक तेज कुदाल या फावड़े का उपयोग करें। एक बार जब रूट बॉल मुक्त हो जाए, तो ध्यान से पेड़ को जमीन से बाहर उठाएं, ध्यान रखें कि जड़ों को नुकसान न पहुंचे।

पेड़ का परिवहन

जड़ों पर तनाव कम करने के लिए जितनी जल्दी हो सके पेड़ को उसके नए स्थान पर ले जाएँ। यदि नया स्थान निकट है, तो आप बस पेड़ को ले जा सकते हैं या इसे ले जाने के लिए ठेले का उपयोग कर सकते हैं। लंबी दूरी के लिए, परिवहन के दौरान रूट बॉल को सुरक्षित रखने के लिए उसे बर्लेप में लपेटने पर विचार करें। परिवहन के दौरान जड़ों को सीधी धूप या अत्यधिक तापमान के संपर्क में आने से बचें।

पेड़ को उसके नये स्थान पर लगाना

एक बार जब आप नए स्थान पर पहुंच जाएं, तो पेड़ को उसके आवरण से हटाने से पहले रोपण छेद तैयार करें। रोपण छेद इतना चौड़ा होना चाहिए कि जड़ की गेंद उसमें समा सके और इतना गहरा होना चाहिए कि पेड़ उतनी ही गहराई पर बैठ सके जितना वह अपने पिछले स्थान पर था। पेड़ को रोपण गड्ढे में धीरे से रखें, यह सुनिश्चित करते हुए कि वह सीधा और सीधा हो। छेद को मिट्टी से भरें, हवा के किसी भी छिद्र को हटाने के लिए इसे धीरे से दबाएँ।

पानी देना और मल्चिंग करना

रोपण के बाद, मिट्टी को व्यवस्थित करने और जड़ों को नमी प्रदान करने के लिए पेड़ को अच्छी तरह से पानी दें। नमी बनाए रखने और खरपतवारों को दबाने में मदद के लिए पेड़ के आधार के चारों ओर गीली घास की एक परत लगाएँ। मिट्टी को लगातार नम रखें, लेकिन जलभराव न रखें, खासकर रोपाई के बाद पहले बढ़ते मौसम के दौरान।

प्रत्यारोपित पेड़ की देखभाल

प्रत्यारोपण के बाद हफ्तों और महीनों में प्रत्यारोपित पेड़ की बारीकी से निगरानी करें। तनाव के लक्षणों पर नज़र रखें, जैसे कि पत्तियों का मुरझाना या धीमी वृद्धि, और उत्पन्न होने वाली किसी भी समस्या के समाधान के लिए उचित कार्रवाई करें। पेड़ को नियमित रूप से पानी देना जारी रखें, विशेष रूप से शुष्क अवधि के दौरान, और जब तक पेड़ को अपने नए स्थान पर स्थापित होने का मौका न मिल जाए, तब तक खाद देने से बचें।

सारांश

आम जैसे पेड़ों की रोपाई के लिए सावधानीपूर्वक योजना, तैयारी और कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है ताकि एक नए स्थान पर उनके अस्तित्व और निरंतर विकास को सुनिश्चित किया जा सके। इस गाइड में बताए गए चरणों का पालन करके और पेड़ की ज़रूरतों पर पूरा ध्यान देकर, आप आम के पेड़ों का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण कर सकते हैं और आने वाले वर्षों तक उनकी सुंदरता और फल का आनंद ले सकते हैं।

रात का तापक्रम 10 डिग्री सेल्सियस के आस पास हो तो पपीता की नर्सरी पॉलीहाउस या लो कॉस्ट पॉली टॉनल में उगाएं प्रोफेसर (डॉ)...
20/02/2024

रात का तापक्रम 10 डिग्री सेल्सियस के आस पास हो तो पपीता की नर्सरी पॉलीहाउस या लो कॉस्ट पॉली टॉनल में उगाएं

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मार्च अप्रैल में पपीता लगाने के लिए उपयुक्त समय है ।इसके लिए आवश्यक है की पपीता के पौधे रोपाई के लिए तैयार हो ।उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में फरवरी के दूसरे हफ्ते तक मार्च अप्रैल में लगाए जाने वाले पपीता के पौधे नर्सरी में तैयार नहीं हो पाते है क्योंकि इस समय तक रात का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस के आस पास रहता है,इस कारण से पपीता के बीज अंकुरित नहीं हो पाते हैं। इसलिए अधिकांश किसान फरवरी के अंत या मार्च के पहले हफ्ते में पपीता के बीज की नर्सरी में बुवाई करते हैं। जिसकी वजह से पपीता की रोपाई में विलम्ब हो जाता है। पपीता की नर्सरी को यदि हम लो कॉस्ट पॉली टनल में फरवरी में ही उगा लेते तो पपीता की रोपाई मार्च में किया जा सकता है।

आइए जानते है लो कॉस्ट पॉली टनल क्या है ?

जो लाभ बड़े किसान पॉली हाउस से प्राप्त करते है,लगभग वही लाभ गरीब किसान लो कॉस्ट पॉली टनल से प्राप्त कर सकते है। इसे बनाने के लिए बांस की फट्टी या लोहे की छड़, जिसे आसानी से मोड़ा जा सकता है और इसके लिए 20 से 30 माइक्रोन मोटी और दो मीटर चौड़ी सफेद पारदर्शी पॉलीथीन शीट की जरूरत होती है। इसमें खेतों में पहले 1 मीटर चौड़ी, 15 सेंटीमीटर उंची एवं आवश्यकतानुसार लंबी लंबी क्यारियां बनाते हैं । इन क्यारियों में पपीता के बीज को 2 सेंटीमीटर की गहराई पर लाइनों में बोये जाते हैं। पपीता के बीजों की बुवाई प्रो ट्रे में भी किया जा सकता है। सामान्यतः एक हेक्टेयर खेत में लगने के लिए लगभग 250 ग्राम से लेकर 300 ग्राम बीज की जरूरत होती है। यदि आप पपीता की मशहूर किस्म रेड लेडी एफ 1 बीज की नर्सरी उगाते है तो केवल 60 से 70 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ेगी। रेड लेडी बीज का 10 ग्राम का पैकेट आता है ,जिसमे लगभग 600 के आस पास बीज होते है तथा इन बीजों को अच्छे से वैज्ञानिक तरीके से नर्सरी में उगाया जाय तो लगभग 90 प्रतिशत तक अंकुरण होता है । रेड लेडी पपीता को मुख्य खेत में 1.8 मीटर x 1.8 मीटर की दूरी पर लगाते है तो एक हेक्टेयर के लिए लगभग 3200 पौधे लगेंगे। रेड लेडी के सभी पौधों में फल लगते है क्योंकि ये पौधे उभय लिंगी (नर मादा फूल एक ही पेड़ पर लगाते है)होते है इसलिए एक जगह में केवल एक पौधे को लगाते है। पपीता की जिन प्रजातियों में नर एवं मादा फूल अलग अलग पौधों पर आते है ,उनको एक जगह पर तीन पौधे लगाए जाते है इस प्रकार से एक हेक्टेयर के लिए लगभग 9600 पपीता के पौधों की जरूरत पड़ती है।
नर्सरी के लिए सर्वप्रथम मिट्टी को भुरभुरा बना लेते है , इसके बाद प्रति वर्गमीटर के हिसाब से दो किग्रा कम्पोस्ट / वर्मी कम्पोस्ट , 25 ग्राम ट्राइकोडरमा एवं 75 ग्राम एनपीके नर्सरी बेड़ में मिलाते है। खाद या उर्वरक मिलने का कार्य यदि 10 दिन पहले कर लिया जाय तो बेहतर रहेगा। इसके बाद नर्सरी बेड को समतल कर लाइनों में बीजों की बुवाई करते हैं। इसके बाद लाइनों को मिट्टी और सड़ी खाद से ढक दें और हो सके तो अंकुरण तक पुआल और घास से ढक दें, उसके उपरान्त लोहे की छड़ों को 2-3 फीट ऊंचा उठा ले ,और घुमाकर दोनों तरफ से जमीन में धसा दिया जाता है।इसके बाद उपर से पारदर्शी पालथीन से ढक दिया जाता हैं।इस प्रकार से को कॉस्ट पॉली टनल तैयार हो जाता है। आवश्यकतानुसार फब्बारे से पौधों पर पानी का छिड़काव करना चाहिए। कभी कभी अंकुरण के पश्चात पपीता के पौधे जमीन की सतह से ही गल कर गिरने लगते है। इस रोग को डैंपिंग ऑफ (आद्र गलन )रोग कहते है । इस रोग से पौधो को बचाने के लिए आवश्यक है की रिडोमील एम गोल्ड नामक दवा की 2ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर फब्बारे से पौधों के ऊपर छिड़काव करने से रोग की उग्रता में भारी कमी आती है। इस तरह से पांच से छ सप्ताह के बाद पौधे मुख्य खेत में रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं। मार्च के महीने में जब भी अनुकूल वातावरण मिले नर्सरी में तैयार पौधो को मुख्य खेत में स्थानांतरित कर देने से किसान का समय बचता है तथा फसल अगेती तैयार हो जाती है , जिसे बेच कर किसान को अधिक लाभ मिलता है। लगभग 30 से 35 दिन में नर्सरी में पौधे तैयार हो जाते है । लो कॉस्ट टनल में पौधे तैयार करने के क्रम में रोग एवं कीट भी कम लगते है। बाहर की तुलना में पॉली टनल में 5 से 7 डिग्री सेल्सियस तापक्रम ज्यादा रहता,जिससे बीजों का अंकुरण आसानी से हो जाता है । इस तकनीक में गरीब किसान भी लगभग वह सभी लाभ प्राप्त करता है, जो बड़े किसान महंगे महंगे पॉली हाउस में प्राप्त करता है। इस तकनीक से किसान बड़े पैमाने पर सीडलिंग्स (Seedlings) तैयार करके उसे बेच कर कम समय में ही अधिक से अधिक लाभ कमा सकता है।
लो कॉस्ट पॉली टनल को किसान स्वयं बहुत आसानी से स्थानीय सामानों जैसे बांस की फट्टियो लोहे की सरिया ( छड़ो)से बना सकते है । इसे आप ऑन लाइन प्लेटफार्म यथा एमेजॉन, फ्लिक्कार्ट स्नैपडील से मंगा सकते है।

20/01/2024

इसमें विटामिन सी अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जो इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद कर सकता है।

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10/01/2024

अगर आप मोटापा और डायबिटीज के मरीज हैं तो इस फल को को रात में ना खाएं।

08/01/2024

इनमें से कौन सी फ़सल मिलेट्सके अंतर्गत आती है?

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08/01/2024

इस खरपतवार के रोकथाम के लिए फ्लूक्लोरेलीन 45 EC 2.20 लीटर दवा 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई से पहले छिड़काव करना चाहिए। या फिर मेट्रीब्यूजिन 70WP 500 ग्राम दवा 600-700 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के 20-25 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए।

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07/01/2024

यह रबी की फ़सलों के साथ उगता है। इसका शाक बनाकर खाया जाता है। इसमें अनेक प्रकार के लवण और क्षार पाए जाते हैं।

06/01/2024

इस खरपतवार को खत्म करने के लिए, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नाशी टू-फोर-डी दवा का छिड़काव किया जा सकता है।

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