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Whilt we watch - Ravish kumar  Movie
14/06/2024

Whilt we watch - Ravish kumar Movie

क्या मै ईमानदार हुं 👉 कमेंट करो             #
14/06/2024

क्या मै ईमानदार हुं 👉 कमेंट करो
#

रविश कुमार सबसे ईमानदार पत्रकार   Super hero Ravish kumar    👉👉
11/06/2024

रविश कुमार सबसे ईमानदार पत्रकार
Super hero Ravish kumar
👉👉

अपने भविष्य को चुने                    #2024
16/05/2024

अपने भविष्य को चुने
#2024

मोदी जी 75 साल के हो रहे है  😂😂                            #75
14/05/2024

मोदी जी 75 साल के हो रहे है 😂😂

#75

वंदे मातरम ♥️
23/04/2024

वंदे मातरम ♥️

राहुल गांधी की गारंटी                     #2024
07/04/2024

राहुल गांधी की गारंटी


#2024

Reels and story  Promotion Available
28/03/2024

Reels and story Promotion Available

चंदा दो, धंधा लो
23/03/2024

चंदा दो, धंधा लो

मोदी की शक्ति v/s राहुल की शक्ति
19/03/2024

मोदी की शक्ति v/s राहुल की शक्ति

20/02/2024

bhut achi story cover krta hai ye bhai
good brother ☺️😄☺️😄☺️

Celebrating my 1st year on Facebook. Thank you for your continuing support. I could never have made it without you. 🙏🤗🎉
17/01/2024

Celebrating my 1st year on Facebook. Thank you for your continuing support. I could never have made it without you. 🙏🤗🎉

26/12/2023

अस्सी लाख सब्स्क्राइबर होने की बधाई आप सबकी है! जॉइन कर हमारा सहयोग करें।

22/12/2023

बजरंग पुनिया ने अपना पद्म श्री पुरस्कार प्रधानमंत्री को वापस कर दिया है। साक्षी मलिक ने कुश्ती छोड़ने की बात कही है। विपक्ष संसद से निलंबित है। जनता चुप है। जनता की इस चुप्पी को कैसे समझा जाए? मीडिया चुप है इसलिए चुप है या जनता की चुप्पी का कोई और कारण है। आज के वीडियो में हमने इस सारे सवालों पर बात की है। आपसे गुज़ारिश है कि वीडियो पूरा देखा करें।

कूछ पुरानी यादें official
18/09/2023

कूछ पुरानी यादें official

जिस वक्त मैं ट्यूलिप देखने के अपने सपने को पूरा कर रहा था, उसी वक्त माँ इस दुनिया से जाने की तैयारी कर रही थी। शीरीन के ...
08/05/2023

जिस वक्त मैं ट्यूलिप देखने के अपने सपने को पूरा कर रहा था, उसी वक्त माँ इस दुनिया से जाने की तैयारी कर रही थी। शीरीन के साथ फ़्रेम में दर्ज होते वक्त भी उसी का ख़्याल आ रहा था। शीरीन एक शानदार सहयात्री हैं। ट्यूलिप की तरह। ये बेल्जियम और नीदरलैंड की सीमा से सटे खेत का नज़ारा है। मेरीबॉन्ड। नीलेश सिंह की खोज थी कि कम समय और कम दूरी में आप इसी खेत को देखकर ट्यूलिप का सपना पूरा कर लें। उन्हीं की कार से लौट रहा था, मोबाइल फ़ोन पर मिस्ड कॉल देखकर समझ गया। ये माँ के जाने की दस्तक है। जिन फूलों की ख़ुश्बू अपने भीतर खींच कर भर रहा था, अगले पल साँस उखड़ने के जैसा लगने लगा। ज़िंदगी ऐसी ही है। एक ख़्वाब पूरे करती है। एक ख़्वाब छीन लेती है।

माँ सोचा था ब्रसल्स को अपने लिए नहीं, अपने दर्शकों के लिए देखूंगा। यहां आते ही सब कुछ कैमरे के पीछे से देखने लगा। ज़हन म...
02/05/2023

माँ

सोचा था ब्रसल्स को अपने लिए नहीं, अपने दर्शकों के लिए देखूंगा। यहां आते ही सब कुछ कैमरे के पीछे से देखने लगा। ज़हन में मां बनी रही कि वेंटिलेटर पर नहीं होती तो वही ज़्यादा खुश रहती, भले ही ब्रसल्स बोलना उसके लिए भारी हो जाता। इस सूचना को लेकर अपने साथ जीना पहाड़ ढोने के समान लग रहा है। यहां की इमारतों से न तो इतिहास का रिश्ता बना पा रहा हूं, न वर्तमान का। देख रहा हूं मगर कुछ नहीं दिख रहा है। चल रहा हूं लेकिन पता नहीं कितनी दूर चल गया और लौट कर आ गया। इस वक्त लिख रहा हूं ताकि खुद के साथ रह सकूं। मेरे लिए जीना लिखना है और लिखते-लिखते उसकी हंसी बार-बार लौट कर आ रही है। उसके लिए यहां की तस्वीर कितनी ख़ास होती, मगर अब उसी के कारण सब कुछ उजाड़ लग रहा है।
दिन के वक्त यहां पांव रखने की जगह नहीं होती है। सुबह-सुबह इसके खाली अहाते को देखना उस रिक्तता में प्रवेश करने जैसा था, जिसे कोई मेरे जीवन में बना गया था। पंद्रहवीं सदी की इस इमारत के चौकोरपन में उसकी ममता का गोलपन खोज रहा था। ख़बरें कितनी जल्दी दूरी तय कर लेती हैं। बिना तार और इंटरनेट के उसकी पूरी दुनिया मुझमें सिमट आई। मैं इस इमारत को अपनी शून्यता से देख रहा था। कुछ लोग इस इमारत से जीवन भर का रिश्ता जोड़ने के लिए तरह-तरह की भंगिमा में तस्वीरें ले रहे थे। कैमरे और किरदार अदल-बदल हो रहे थे। हल्की ठंड से भरी हवा में वेंटिलेटर की आवाज़ सुनाई दे रही थी। इन इमारतों की दीवारों पर लग रहा था कि कोई आक्सीजन चढ़ा रहा है। किसी मूर्ति का ब्लड प्रेशर कम हो गया है। अचानक कोई दौड़ा आ रहा है और सब थाम ले रहा है। एक पल में यह इमारत ध्वस्त होती है मगर दूसरे पल में कोई बचा लेता है। फेफड़े के बिना इंसान कब तक सांस ले सकता है। बहुत सारी दवाइयां फेफड़े को साफ कर सकती हैं मगर दूसरा फेफड़ा नहीं बना सकती हैं। मैं किसी का कैमरा थाम लेता हूं, वह किसी और देश का मालूम होता है। मैं भी तो किसी और देश का हूं।

ब्रसल्स से कभी नाता नहीं रहा। अपने जीवन में जिन देशों को जाना, उनमें बेल्जियम कभी था ही नहीं और जिस घर से मेरा जीवन भर का नाता रहा है, वहां आज मां नहीं है। लग रहा है कि ग्रैंड पैलेस की इस इमारत के एक हिस्से से निकल पारस के डॉ प्रकाश दौड़े जा रहे हैं। उनकी टीम एक पांव पर खड़ी हो गई है। एम्स के डॉ अजीत अपने अस्पताल के चौड़े गलियारे में भागे आ रहे हैं। इन दोनों डॉक्टरों और उनकी टीम ने कोशिश में कोई कमी नहीं की। इनकी कोशिश से ही उम्मीद का आधार चौड़ा होता जा रहा था। डॉ अजय का खांटीपन हौसला दे रहा था कि एकदम घर जाएंगी। आप सभी ने मुझे उस अपरा

ब्रसेल्स, बेल्जियम ।
01/05/2023

ब्रसेल्स, बेल्जियम ।

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