21/04/2019
आचार्य देवेंद्र देव कृत शीघ्र प्रकाश्य महाकाव्य 'अग्नि-ऋचा' पर महाकवि नीरज जी के गौरवेय आशीर्वचन ः
'कविता प्राणों की संजीवनी है तो साँसों का सुमधुर संगीत भी। यह मन की तरुणाई है तो तन की अरुणाई भी। इसके रूप अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन गुण-तत्त्व का प्रभावकारी घनत्व एक-जैसा है।सृष्टि के आदि से लेकर आधुनिक काल तक हुए सामाजिक परिवर्तनों में कविता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
हिन्दी में कविता-साहित्य के, मुक्तक और प्रबन्ध काव्य, ये दो रूप मिलते हैं। गीत, गजल, मुक्तक और छन्द, मुक्तक काव्य की श्रेणी में आते हैं परन्तु जिसमें किसी विषय या व्यक्तित्व विशेष पर प्रबन्ध-काव्यात्मक शैली में विचार व्यक्त किये जाते हैं, वह प्रबन्धकाव्य कहलाता जो अंगोपांगों के आधार पर खण्डकाव्य या महाकाव्य की संज्ञा पाता है।
मुक्तक काव्यों की, विशेषकर गीत,गजल की अपनी एक प्रकृति, संस्कृति और उसका एक पृथक प्रभाव, अलग सौन्दर्य होता है।यह अपने में 'गागर में सागर' हो सकता है किन्तु इसे सागर की मान्यता नहीं प्राप्त होती।सागर, सागर ही होता है जिसका हिमालय-जैसा अपना एक अलग ही वर्चस्वी अस्तित्व होता है, जिसकी अपनी अलग ही भूमिका, गुरुता और गम्भीरता होती है।गीत यदि मन्दिर की प्रणम्य प्रतिमा हैं तो महाकाव्य ऐसी प्रतिमाओं के पूर्वरूप प्रस्तरों को चिरकाल से सहेजने वाला गिरिराज हिमालय।गीत जीवन को दिशा देते हैं तो महाकाव्य साहित्य का इतिहास रचते हैं।तीर्थ यात्राएँ ऐसे ही सागरों की, पर्वतों की होती हैं यद्यपि वहाँ की आरतियाँ गीतों से ही होती है।
मुझे प्रसन्नता है कि महाकाव्यों की लम्बी श्रृंखला रचने वाले प्रियवर आचार्य देवेन्द्र देव ने 'मिसाइल मैन' के नाम से विख्यात देश के एक अच्छे इन्सान, महान व्यक्तित्व के धनी, वैज्ञानिक, विचारक, दार्शनिक और कवि पूर्व राष्ट्रपति,डाॅ ए पी जे अब्दुल कलाम पर भी एक महाकाव्य 'अग्नि-ऋचा' की रचना की है।वीर रस के प्रख्यात कवि, पूज्यवर पंकज जी के शिष्य देवेन्द्र देव से सामान्य परिचय तो मेरा चालीस वर्षों से अधिक समय पूर्व से, तब से था जब मैं उनके द्वारा संयोजित कवि-सम्मेलनों में पूरनपुर जाया करता था।उनकी शब्द-साधना यहाँ तक पहुँचेगी, इसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी।उनकी यह प्रगति देखकर जितनी मुझे खुशी है, उससे अधिक प्रसन्नता उनके रचित महाकाव्य 'अग्नि-ऋचा' की अन्तर्वस्तु, उसका वैभव अर्थात् भाव-पक्ष (भाव,भाषा,शैली) और कलापक्ष (शिल्प,रस, छन्द, अलंकार, बिम्ब) की समृद्धि देखकर हुई। ऐसे महाकाव्य युग की धरोहर हैं जो भावी पीढी को नयी प्रेरणा,नयी ऊर्जा और नया गौरव प्रदान करेंगे।
उन्होंने कलाम जी के जीवन की कुछ विशिष्ट घटनाओं के ब्याज कुछ मौलिक उद्भावनाएं की हैं जिनसे कृति का सौन्दर्य और महत्व,दोनों बढ गये हैं। विस्तारभय से उनका उल्लेख करना आवश्यक होते हूए भी, उचित नहीं लगता।फिर भी इतना कह सकता हूँ कि स्वामी विवेकानन्द जैसा आदर्श मानने योग्य डाॅ कलाम के जीवन को समझने वाले और उससे पाथेय ग्रहण करने वाले जिज्ञासु युवाओं को 'अग्नि-ऋचा' पढनी चाहिए, पढनी ही होगी।
मेरा हार्दिक साधुवाद,आशीर्वाद 'देवेन्द्र' से 'आचार्य देवेन्द्र देव' बने प्रियवर देव को उनकी अब तक की साधना के लिए और अनेकानेक शुभ कामनाएँ उनकी सशक्त भावी सृजन-सामर्थ्य के लिए।
-गोपाल दास 'नीरज'
कुलपति,
मंगलायतन विश्ववाद्यालय एवं
पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ।