17/04/2022
#मैं_क्षमा_माँँगता_हूँ.
प्रिय मित्र, मुझे जन्मदिन पर आप सभी ने भरपूर स्नेह, सम्मान और शुभकामनाएँ दीं.
मैं अपने प्रति आपके कोमल भावनात्मक लगाव के लिये अन्तर्मन से कृतज्ञ हूँ.
बदले में मैंने आप सभी से Personality Cultivation Center व्यक्तित्व विकास केन्द्र के कक्षा नौ से बारह तक की निःशुल्क शिक्षा-सेवा और उच्चशिक्षा ग्रहण कर रहे कुछ विद्यार्थियों की मदद के लिये सविनय मदद माँगी.
इस अवसर पर कुल चार लोगों से ₹12,500/- की मदद प्राप्त हुई. मैं उन्हें हार्दिक धन्यवाद दे रहा हूँ. यह राशि आईआईटी में ऐडमिशन के लिये ख़र्च की जायेगी.
कुछ मित्रों ने आश्वासन दिया. कुछ ने लाइक किया. कुछ चुप रहे.
मेरा निवेदन है कि यदि आप इस ज्ञान-यज्ञ में अपनी आहुति देने की हालत या मानसिकता में नहीं हैं, तो कृपया दुःखी मत हों, मेरे प्यारे दोस्त !
जीवन में आपने कभी किसी की मदद की और धोखा खाया. आप सचेत हुए. आपके हिस्से का सच हृदयविदारक है. कटु है. परन्तु सच है.
आपके पाले में गेंद आयी, आपने ईमान से खेला. सामने वाले की चालाकी के लिये आप ज़िम्मेदार नहीं हो सकते.
मैंने तो ख़ुद को डीक्लास किया. परिवार नहीं बसाया. नौकरी-रोज़गार नहीं किया. सम्पत्ति नहीं बटोरी.
मैंने केवल शोषित-पीड़ित मानवता की विनम्रता से सेवा की. इसके लिये जीवन भर केवल सबसे भीख माँगी. हाँ, कभी अपना ईमान नहीं बेचा. जब ज़रूरत पड़ी, तो सेवा के लिये तरह-तरह की मज़दूरी भी की.
अब मेरा शरीर साथ नहीं दे पा रहा. अब मैं मज़दूरी करने लायक भी नहीं बचा. मुट्ठीभर लोगों की मदद से ही कुछ बच्चों की सेवा करता जा रहा हूँ.
इस हालत में भी कुछ लोग मेरा लगातार साथ दे रहे हैं. कुछ लोग कभी-कभार मदद करते रहते हैं. कुछ लोगों ने अपनी मदद बढ़ाई है. कुछ लोगों ने अपनी मदद घटाई है. कुछ लोग दुआएँ दे रहे हैं. कुछ लोग चुप हैं. कुछ लोग स्पष्ट इनकार करते रहे हैं. कुछ लोग पीछे भी हटते रहे हैं. कुछ लोग पीछे हटने के बाद दुबारा मदद शुरू किये हैं.
मैं ऐसे सभी लोगों का ऋणी हूँ. मैं ऐसे सभी लोगों के प्रति हार्दिक धन्यवाद व्यक्त कर रहा हूँ.
मैं आपको बार-बार परेशान करने के लिये विनम्रता से क्षमा-याचना कर रहा हूँ.
परन्तु हम जानते हैं कि प्रतीकात्मक स्तर पर भी सृजनात्मक जन-दिशा का परिवर्तनकामी मॉडल बिना जन-सहयोग और जन-समर्थन के यथास्थिति की हिमशिला की जड़ता को तोड़ने के लिये नहीं खड़ा किया जा सकता है.
इतिहास साक्षी है कि बार-बार जगह-जगह हमारी धरती पर अगणित लोगों ने अपने-अपने दौर में लोगों के सहयोग से ही इतिहास बनाया है.
सभी को मालूम है कि वर्तमान धन-तन्त्र सड़ चुका है. यह पूरी तरह जनविरोधी हो चुका है. अब यह किसी भी तरह मानवता की सेवा करने में अक्षम है. यह केवल शोषण और उत्पीड़न ही कर सकता है.
आज सम्पूर्ण मानव-जाति एक बार फिर नये सिरे से वर्तमान पूँजीवादी साम्राज्यवादी समाज-व्यवस्था के विकल्प की तलाश में है.
हम इस परिवर्तनकामी धारा के छोटे-से हिस्से मात्र हैं. हमें अपनी सीमाओं के बारे में तनिक भी भ्रम नहीं है.
फिर भी हमें मुसल्सल यकीन है कि इतिहास ने बार-बार करवट ली है और असमर्थ लग रहे अगणित लोगों के उमड़ने वाले जन-ज्वार में पुरानी सड़ी-गली दुनिया डूबती रही है और नया ज़माना आता रहा है.
हम एक बार फिर इतिहास बनाने के लिये बज़िद हैं. हमारा रास्ता मुश्किलों भरा है. मगर आने वाला कल हर बार की तरह ही इस बार भी हमारा ही होगा.
"हमें पता है कि मुश्किल है रास्ता अपना,
हमारी ज़िद को तोड़ना भी तो आसान नहीं."
इसलिये एक बार फिर सविनय अनुरोध कर रहा हूँ कि कृपया हमारी न्यूनतम नियमित मदद कीजिए. आपकी छोटी-सी मदद से किसी ज़रूरतमन्द मेधावी बच्चे का कल बदल सकता है.
पहले इस केन्द्र में आने वाले सभी बच्चों से कुछ भी नहीं लिया जाता था. परन्तु अब जब लॉकडाउन-2 के बाद ग़रीबी की जगह कंगाली आ गयी है, तो उनसे भी उनकी स्थिति और इच्छा के अनुरूप अधिकतम 500/- या उससे कम मदद का अनुरोध किया जा रहा है.
अधिकतर बच्चे अभी भी कुछ भी नहीं देने की स्थिति में हैं. पिछले तीन महीने से 4-4 और 3 हज़ार रुपये कुछ बच्चों ने दिया. पहले दो महीनों में वह पैसा शिक्षकों के बीच उनके 5000/- के मानदेय के साथ बाँट दिया गया.
इस बार शिक्षक साथियों ने आपस में यह फैसला किया कि जो भी मदद बच्चे देते हैं, उसे उच्च-शिक्षा के साथियों को दे दिया जायेगा.
कल ही एक बच्चे को बहुत सुन्दर लिखने पर लिखने में लगा समय लिखने के लिये सलाह देने पर उसने बताया कि उसके पास घड़ी नहीं है और अपनी घड़ी देने की पेशकश पर बताया कि उसकी मँड़ई में घड़ी टाँगने की जगह भी नहीं है. ऐसे बच्चे अपने लिये किताबें और मोबाइल कैसे जुटा सकते हैं ?
ढेर सारा प्यार - आपका गिरिजेश 17.4.22.