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22/08/2024

Partition 1947...
22/08/2024

Partition 1947...

17/06/2024
करीब 130 वर्ष पूर्व माणक चौक (उदयपुर - मेवाड़) का दृश्य........
17/06/2024

करीब 130 वर्ष पूर्व माणक चौक (उदयपुर - मेवाड़) का दृश्य........

17/06/2024

मेवात की बेटी मुस्कान ने बनाया नेशनल रिकॉर्ड
एथेलिटिक्स राष्ट्रीय लेवल टूर्नामेंट मैं हासिल किया प्रथम स्थान।। बहुत बहुत बधाई।।

जब बाबर काबुल में था, तो कहा जाता है कि राणा सांगा का उससे यह समझौता हुआ कि वह इब्राहीम लोदी पर आगरा की ओर से, और बाबर उ...
13/06/2024

जब बाबर काबुल में था, तो कहा जाता है कि राणा सांगा का उससे यह समझौता हुआ कि वह इब्राहीम लोदी पर आगरा की ओर से, और बाबर उत्तर की ओर से आक्रमण करे.

जब आक्रमणकारी ने दिल्ली और आगरा को अधिकृत कर लिया, तब बाबर ने राणा पर अविश्वास का आरोप लगाया.

उधर सांगा ने बाबर पर आरोप लगाया कि उसने कालपी, धौलपुर और बयाना पर अधिकार कर लिया जबकि समझौते की शर्तोँ के अनुसार ये स्थान सांगा को ही मिलने चाहिए थे.

सांगा ने सभी राजपूत राजाओं को बाबर के विरुद्ध इकठ्ठा कर लिया और सन 1528 में खानवा के मैदान में बाबर और सांगा के बीच युद्ध हुआ.

उस समय मेवात के राजा हसन खान मेवाती थे. हसन खान मेवाती की वीरता सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध थी.

बाबर ने राजा हसन खान मेवाती को पत्र लिखा और उस पत्र में लिखा- "बाबर भी कलमा-गो है और हसन खान मेवाती भी कलमा-गो है. इस प्रकार एक कलमा-गो दूसरे कलमा-गो का भाई है, इसलिए राजा हसन खान मेवाती को चाहिए की बाबर का साथ दे."

राजा हसन खान मेवाती ने बाबर को खत लिखा और उस खत में लिखा-

"बेशक़ हसन खान मेवाती कलमा-गो है और बाबर भी कलमा-गो है, मग़र मेरे लिए मेरा मुल्क (भारत) पहले है और यही मेरा ईमान है, इसलिए हसन खान मेवाती राणा सांगा के साथ मिलकर बाबर के विरुद्ध युद्ध करेगा".

सन 1528 में राजा हसन खान मेवाती 12000 हज़ार मेव घोड़ सवारों के साथ खानवा की मैदान में राणा सांगा के साथ लड़ते-लड़ते शहीद हो गये.

मुल्क़ का नाम लेकर भारतवर्ष में शहीद होने वाले वह पहले व्यक्ति थे.

आज इतिहास की पन्नों में राजा हसन खान मेवाती को भुला दिया गया है!😢

बाबर टोपियां नहीं सिलता था। वह प्रिंस था दर्ज़ी नहीं। मैलाना मैकियावली के मुताबिक़ उसका काम सत्ता पाना, उसे बचाना और फिर...
12/06/2024

बाबर टोपियां नहीं सिलता था। वह प्रिंस था दर्ज़ी नहीं। मैलाना मैकियावली के मुताबिक़ उसका काम सत्ता पाना, उसे बचाना और फिर साम्राज्य में तब्दील करना था। यूं भी उसके ज़माने में एक आने की दो दर्जन टोपियां मिल जाती थीं। टोपी सिलने में समय बरबाद करने की बजाय बाबर अपना वक़्त युद्ध नीति, कूटनीति, और विदेश नीति बनाने में ख़र्च करता था। अगर बाबर ने अपना समय बारूद, शतुरनाल, गजनाल, या ज़ंबूराक के विकास के बदले टोपियां सिलने, या क़ुरान की नक़ल लिखने में ख़र्च किया होता तो हुमायूं को फरग़ना में मुर्ग़ियां बेचनी पड़ जातीं और लाल क़िला बनाने की जगह शाहजहां समरक़ंद में तरबूज़ के ठेले लगाता... टोपी सिलना इज़ एन अटर वेस्टेज ऑफ मिलिट्री टैलेंट एंड एन एडमिनिस्ट्रेटिव स्किल ब्रो। यह ख़ुश होने की बात नहीं है। भाटों के क़िस्सों पर मत बहला कीजिए। इन क़िस्सों में जीने वालों से न एंपायर बनते हैं और न बचते हैं। :)

- Zaigham Murtza

Maharani Gayatri Devi of Jaipur, also known as Princess Ayesha of Cooch Behar, photographed by Derek Adkins in 1951.
11/06/2024

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11/06/2024
A Tailor in Rawalpindi - 1915
11/06/2024

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1960s: Beautiful PIA Air Hostess in Paris
10/06/2024

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शाहजहाँ, वही शहंशाह जिसने अपनी बेपनाह मोहब्बत की निशानी के तौर पर ताजमहल बनवाया था, 22 जनवरी, 1666 को आगरा के किले की सर...
09/06/2024

शाहजहाँ, वही शहंशाह जिसने अपनी बेपनाह मोहब्बत की निशानी के तौर पर ताजमहल बनवाया था, 22 जनवरी, 1666 को आगरा के किले की सर्द दीवारों के बीच दुनिया से रुखसत हो गया. उसके आखिरी साल गहरे ग़म में गुज़रे, जो उसके शानदार राज के बिलकुल उल्टे थे. अपने ही बेटे औरंगज़ेब द्वारा क़ैद कर लिया गया, शाहजहाँ ने अपने आखिरी दिन अपनी खोई हुई प्यारी मुमताज महल की याद में बने शानदार मक़बरे को निहारते हुए बिताए. ये मक़बरा बीते हुए खुशनुमा दिनों का एक निरंतर स्मरण था. 74 साल की उम्र में उसकी मौत अकेलेपन से भरी हुई थी, हालाँकि उसकी वफ़ादार बेटी जहाँआरा उसके पास थी. आखिर बादशाह के आखिरी ख्याल क्या रहे होंगे, इनका अंदाजा ही लगाया जा सकता है - खोए हुए प्यार की तड़प, धूमिल विरासत और उस शानो-शौकत के बारे में जो कभी उन्हें घेरे हुए थी.
#इतिहास_की_एक_झलक



कभी ये भी एक प्रमुख सवारी हुआ करती थी। अब वो दौर कहाँ
08/06/2024

कभी ये भी एक प्रमुख सवारी हुआ करती थी। अब वो दौर कहाँ

An Umar-Khel Pashtun of Darunta (in Nangarhar province, Afghanistan), 1879.From London Illustrated News.
08/06/2024

An Umar-Khel Pashtun of Darunta (in Nangarhar province, Afghanistan), 1879.

From London Illustrated News.

Afridi Soldiers, 1899. Illustration for Chatterbox magazine.
07/06/2024

Afridi Soldiers, 1899.

Illustration for Chatterbox magazine.

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