01/11/2024
⛰️☘️ गिरिराज भगवान जी की जय ☘️⛰️
🙏🏻🌺🌷 जय श्री राधे कृष्ण 🌷🌺🙏🏻
साथियों आइए जानते है श्री अन्नकूट महापर्व की शुभ तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व, महात्म्य और कथा।🙏🏼⛰️🌷🙏🏻
💓 आप सभी स्नेहीजनों को अन्नकूट महापर्व की हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं।
आप सभी का जीवन मंगलमय हो।🌹❤️☘️
🌷 गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।🙏🏼
भावार्थ: गोवर्धन पर्वत की समस्त भूमि और गोकुल वासियों के सभी कष्टों को हरने वाले, श्रीहरि के अवतार भगवान कृष्ण ने जिसे अपनी भुजा से छत्र के समान धारण किया है ऐसे प्रभु और पर्वत को मेरा लाखों बार प्रणाम है।
⛰️ गोवर्धन पूजा का त्यौहार हर साल दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है जो श्रीकृष्ण एवं गिरिराज जी को समर्पित होता है। गोवर्धन को सनातन धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है जो मुख्य रूप से दिवाली के अगले दिन की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण और गिरिराज महाराज गोवर्धन पर्वत के प्रति श्रद्धा एवं आस्था प्रकट करने के लिए गोवर्धन का पर्व मनाया जाता है। दीपावली के दूसरे दिन मध्य और उतर भारत में गोवर्धन पूजा करने का विधान है जिसे अन्नकूट भी कहते हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में गोवर्धन को पड़वा कहते हैं, साथ ही कुछ स्थानों पर इसे द्यूतक्रीड़ा दिवस भी कहा जाता हैं।
गोवर्धन का पर्व प्रकृति और मानव के सीधे संबंध को दर्शाता है और यह दिन दिवाली के उत्सव का चौथा दिवस होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा या अन्न कूट को प्रतिवर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, गोवर्धन का त्यौहार सामान्यरूप से अक्टूबर या नवंबर में आता है।
गोवर्धन पूजा 2024 तिथि एवं मुहूर्त ।
*वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 1 नवंबर 2024 को शाम 06 बजकर 16 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन अगले दिन 2 नवंबर को रात 08 बजकर 21 मिनट पर होगा।
ऐसे में उदयातिथि के आधार पर गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा।
2 नवंबर 2024 को गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: काल 6 बजे से लेकर 8 बजे तक है। इसके बाद दोपहर में 03:23 मिनट से लेकर 05:35 मिनट के बीच भी पूजा की जा सकती है।*
इस दिन लोग अपने घरों में गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति बनाते हैं, जिसकी विधिपूर्वक पूजा शाम के समय की जाती है। साथ ही भगवान को कढ़ी और अन्नकूट चावल का भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पूजा विधि!
गोवर्धन पूजा के साथ अनेक धार्मिक अनुष्ठान और परम्पराएं जुडी हुई है। इस दिन भगवान कृष्ण और गिरिराज पर्वत का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गोवर्धन पूजा को ऎसे करें :
गोवर्धन पर सर्वप्रथम प्रातः काल जल्दी उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत होने के बाद शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं।
गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाने के बाद पर्वत के पास ग्वाल-बाल और पेड़ पौधों की आकृति बनाएं,मध्य में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें।
इसके बाद गोवर्धन पर्वत की षोडशोपचार विधि से पूजा करें। अब पूजा के दौरान गोवर्धन पर धूप, दीप, जल, फल, नैवेद्य आदि अर्पित करें, साथ ही गोवर्धन पूजा के उपरांत अन्नकूट का भोग लगाएं।
इसके बाद गोवर्धन पूजा की व्रत कथा सुनें और भोग को प्रसाद के रूप में वितरित करें। गोवर्धन पूजन के बाद गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं करें।
गोवर्धन पूजा का माहात्म्य!
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट महोत्सव को करने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्यता की प्राप्ति होती है। इस पर्व से दरिद्रता का भी नाश होता है और व्यक्ति को सुखी और समृद्ध जीवन की प्राप्ति होती है। गोवर्धन के पर्व से जुड़ीं ऐसी मान्यता है अगर इस दिन कोई व्यक्ति दुखी रहता है तो वह वर्षभर दुखी ही रहेगा इसलिए हर साल गोवर्धन को बहुत ही आनंदपूर्वक मनाया जाता है। गोवर्धन पूजन से घर-परिवार में धन, संतान और गौ रस में वृद्धि होती है।
गोवर्धन के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा का भी विधान है। इस अवसर पर सभी कारखानों और उद्योगों में मशीनों की पूजा की जाती है। इस त्यौहार पर विशेष रूप से गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान करवाकर धूप-चंदन एवं पुष्प माला पहनाकर उनका पूजन करने का रिवाज है और गौमाता को मिठाई खिलाकर उनकी आरती की जाती हैं।
गोवर्धन का महत्व!
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा हिन्दू संप्रदाय का लोकप्रिय एवं प्रमुख त्यौहार है। गोवर्धन का शाब्दिक रूप से तात्पर्य है, ’गो’ का अर्थ है गाय और ’वर्धन’ का अर्थ है पोषण। गोवर्धन पूजा के दिन नई फसल के अनाज और सब्जियों को मिलाकर अन्न कूट का भोग तैयार करके भगवान श्रीकृष्ण को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। घरों के आँगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और गाय, बछड़ो आदि की आकृति बनाकर पूजा की जाती है।
धार्मिक दृष्टि से गोवर्धन का त्यौहार अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है ओर इस पर्व को देशभर में लोग अनेक मान्यताओं एवं परम्पराओं के साथ मनाते है। गुजरात में गोवर्धन नए साल के आरम्भ के रूप में चिन्हित है, वहीँ इस दिन को महाराष्ट्र में 'बाली पड़वा' या 'बाली प्रतिपदा' के रूप में मनाया जाता है।
इसी प्रकार उत्तर भारत में विशेषतः मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल, बरसाना आदि स्थानों पर गोवर्धन की भव्यता और अलग ही रौनक देखने को मिलती है। यह वही स्थान है जहां स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त गोकुलवासियों को गोवर्धन पूजा के लिए प्रेरित किया था तथा देवराज इंद्र के अहंकार का नाश किया था।
पौराणिक कथा के अनुसार,भगवान कृष्ण ने ही सर्वप्रथम गोवर्धन पूजा का आरंभ किया था।
इंद्रदेव के क्रोध से ब्रज के समस्त नर-नारियों और पशु-पक्षियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था। यही वजह है कि गोवर्धन पूजा में भगवान गिरिराज के साथ श्रीकृष्ण के पूजन का भी विधान है। गोवर्धन पर्वत की पूजा द्वारा मानव प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
गोवर्धन पूजा से जुड़ीं कथा!
विष्णु पुराण में गोवर्धन से सम्बंधित एक कथा का वर्णन मिलता है। स्वर्ग के राजा इंद्र को अपनी शक्तियों पर अहंकार हो गया था और इसी अभिमान को तोड़ने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारा एक लीला रचाई गई थी। शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथा इस प्रकार है:
एक बार सभी गोकुलवासी तरह-तरह के व्यंजन बना रहे थे, साथ ही ख़ुशी से गीत गा रहे थे। यह सब दृश्य देखकर भगवान कृष्ण ने मैया यशोदा से पूछा कि, आप सभी किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? श्रीकृष्ण के सवाल पर मैया यशोदा ने कहा कि, हम देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे हैं। इस जवाब पर श्रीकृष्ण ने फिर पूछा कि हम इंद्र देव की पूजा क्यों करते हैं। इस पर मैया यशोदा ने उत्तर दिया, इंद्र देव की कृपा से अच्छी बारिश होती है जिससे अन्न की पैदावार भी अच्छी होती है, हमारी गायों को चारा मिलता है।
मैया यशोदा की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा कि, यदि ऐसा ही है तो हमें गोवर्धन पर्वत का पूजन करना चाहिए, क्योंकि हमारी गाय वहीं चरती है, वहां स्थित पेड़-पौधों की वजह से बारिश होती है। श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी गोकुलवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करना आरम्भ कर दिया।
यह दृश्य देखकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और इस अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। भयंकर तूफान और प्रलयकारी वर्षा देखकर सभी गोकुलवासी भयभीत हो गए। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीला दिखाई और गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अंगुली पर उठा लिया और समस्त गोकुलवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। यह देखकर देव इंद्र ने बारिश को ओर तेज कर दिया लेकिन निरंतर 7 दिन की मूसलाधार बारिश के बावजूद भी गोकुलवासियों को कोई क्षति नहीं पहुंची।
इसके बाद देव इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ कि उनसे मुकाबला करने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता है। देवराज इंद्र को जब इस बात का ज्ञान हुआ कि वह साक्षात भगवान श्रीकृष्ण से मुकाबला कर रहे थे, इसके पश्चात इंद्र देव ने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना की और स्वयं श्री कृष्ण का पूजन कर उन्हें भोग लगाया। द्वापर युग में घटित हुई इस घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा को करने की शुरुआत हुई।
🌹💓☘️ श्री गिरिराज धारण की जय ☘️💓🙏🏻