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जो लोग पुलिस को लेकर हमेशा नेगेटिव ख़बरें फैलाते हैं वह यह ख़बर ज़रूर पढ़ें।लखनऊ के मोहनलालगंज में एक गर्भवती महिला को ए...
07/11/2024

जो लोग पुलिस को लेकर हमेशा नेगेटिव ख़बरें फैलाते हैं वह यह ख़बर ज़रूर पढ़ें।

लखनऊ के मोहनलालगंज में एक गर्भवती महिला को एम्बुलेंस लेकर जा रही थी, रास्ते में साइड न देने को लेकर बाइक सवारों ने एम्बुलेंस के ड्राईवर को बहुत पीटा,

उधर गर्भवती महिला की तकलीफ़ बढ़ती जा रही थी, ड्राइवर ने किसी तरह भागकर पुलिस को फोन किया और मौके पर दारोगा आशुतोष दीक्षित पहुंचे,

महिला की हालत बिगड़ती देख वह स्वयं एम्बुलेंस चलाकर ले गए। अस्पताल में पहुंचकर महिला ने बच्चे को जन्म दिया,

डॉक्टर्स का कहना था कि यदि थोड़ी देर और हो जाती तो बच्चे की जान बचना मुश्किल थी,

दारोगा आशुतोष दीक्षित ने अपने कर्तव्य और सूझबूझ से एक मां और बेटे की जान बचाई।

सैल्यूट सर 🫡

गोधन के बहाने“बड़का भैया मर जास, उधिया जास ! हमार सब भाई मर जा स... कवनो भाई भतीजा के जरुरत नईखे, सब जाना मर-उधिया जास |”...
03/11/2024

गोधन के बहाने
“बड़का भैया मर जास, उधिया जास ! हमार सब भाई मर जा स... कवनो भाई भतीजा के जरुरत नईखे, सब जाना मर-उधिया जास |”

भोरहिं भोरे विभा फुआ ओसरा में बईठ के सरापत रही | मय खानदान के मरे आ बिपत करे के सराप उनका मुन्हे सुने के भेंटाईल | हमरा कुछो बुझाईल ना, कि इ काहे खिसिआयिल बाड़ी...

“का हो फुआ, भोरहिं से काहे पितपितायिल बाडू, का भईल ?”

“आगलगवना तुन्हू मर –उधिया जो, बिपत पड़ो तोरा पर..”.

हमरा बुझाईल ना... त आजी से पूछनी कि फुआ के कवन ब्रह्म धईले बा ? उ बतइली कि आज गोधन ह, आज सभे के सरापे के बिध ह |

इ कईसन बिध ए भाई ! जवना में गरिआवे के छुट होखे | हमनी किहाँ होली में गाली-गलौज त परब के सोहाग-भाग मान के पचा लेला लोग | बाकी इ कईसन परब जवना में मय खानदान के नाश करे के सराप... !!!

नौ-दस बजे ले फेर गोधन कुटायिल | हमनी के लायिकायीं में गोधन फाने के बड़ी शौख रहे | गिनती इयाद नईखे की केतना बेर फाने के रहे बाकी हमनी के सभ लईका कम्पटीशन में फानत रहब जा | ओहिजा ईगो नया चीज देखे के भेंटाये- सब औरत लोगन आपन जीभ में रेंगनी के कांट गडावे आ कहे-
जवना जिभिया से गारी दिहनी , ओह जिभिया में कांट गड़ो |
फेर हमनी के बजरी आ बूंट निगले के मिले | इ हमरा खेल बुझात रहे बाकिर जब समझदारी भईल आ पढ़े लिखे लगनी त हमार चाचाजी के लिखल ईगो किताब पढ़े के मिलल – योग और आप (लेखक –डा० रविन्द्र कुमार पाठक, गया बिहार) | एह किताब में उन्हा के इ गोधन के चर्चा कईले बानी, जवना के एहिजा हम दे रहल बानी |
हमनी के इंहा के सभे परब में कुछ ना कुछ वैज्ञानिक बात छुपल रहेला | पहिले समाज में औरतन के स्थिति ठीक ना रहे | पुरुषप्रधान समाज में चारदीवारी के भीतर औरतन में क्रोध, कुंठा, अवसाद , मानसिक विकार पनप जात रहे | इ विकार अईसन हवें की इनका के निकालल न जाई त शरीर में रोग-व्याधि लईहें | पहिले के गुनी लोग एकर काट में एह गोधन कूटे के परब बना देल लोग | एह दिन औरतन के मय मानसिक विकार आ क्रोध सराप के निकालल जाई आ फेर गोधन कुटाई | अब गोधन के भी हाल विचित्र- औरतन के प्रचंड क्रोध के रूप एहिजो देखीं |

गोबर से चौखुट बक्सा में यम-यमिन बनावल जाला | यम मृत्यु के देवता हवें त सबसे ज्यादे क्रोध उनके पे | उनका आ उनका मेहरारू के गोबर से एक दूसरा से उल्टा लेटा के बनावल जाई | हिन्दू धरम में मर्द मेहरारू के एक साथे एह तरह रहे के मनाही बा | बाकी एहिजा मामिला त क्रोध के बा त सभे धरम उलट पलट दियाई | झाँवा इंटा सबसे बरियार मानल जाला, उहे बीच में रखाई | आ फेर सब औरत सब मिलके मूसल आ लाठी से उ इंटा के मार मार के फोड़ दिहें , यम–यमिन के दुर्गत हो जाई | अब जवन पर क्रोध निकाले के रहे ओकर नेस्तनाबुत हो गईल त क्रोध शांते नु हो जाई | अब बाकी का बा !?? त पछतावा बा !!!

रेंगनी के कांट से अपना के प्रताड़ित करे के आ कहे के -जवना जिभिया से गारी दिहनी , ओह जिभिया में कांट गड़ो |

पछतावा के बाद सब औरत लोग आपन भाई-भतिज के आशीर्वाद दिही आ बज्जरी खियाई की इनका लोग के देह बज्जर बनो |

“कवन भइया चलले अहेरिया, कवन बहिनी देली आसीस
जिअसु हो मोरा भइया, जीअ भइया लाख बरिस”

त इ गोधन के तनिको अबर-दुबर परब मत समझीं, यम के भी मिटा देवे अईसन क्रोध साधना के परब ह |

#साभार

03/11/2024

अन्नकूट के अवसर पर बाबा विश्वनाथ जी के दरबार में लगा छप्पन भोग...जिसमे सभी प्रकार के मिठाई, नमकीन, मेवा...
#बनारस परंपरा और संस्कृति को आज भी संजोए हुए है...बोलो हर हर महादेव

आज दिनांक 02-11-2024 को श्री काशी विश्वनाथ धाम में अन्नकूट पर्व के अवसर पर भव्य आयोजन किया गया। यह पर्व हर साल कार्तिक म...
02/11/2024

आज दिनांक 02-11-2024 को श्री काशी विश्वनाथ धाम में अन्नकूट पर्व के अवसर पर भव्य आयोजन किया गया। यह पर्व हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है और इसे विशेष रूप से भगवान कृष्ण द्वारा की गई गोवर्धन पूजा की स्मृति के रूप में मनाया जाता है। अन्नकूट का अर्थ प्रचुर खाद्यान्न है। यह पर्व श्रद्धालुओं द्वारा समृद्धि एवं अन्न सुरक्षा हेतु सात्विक भक्ति और समर्पण द्वारा की जाने वाली प्रार्थना का प्रतीक है।
इस वर्ष अन्नकूट पर्व के अवसर पर श्री काशी विश्वनाथ महादेव का 14 क्विंटल मिष्ठान से श्रृंगार किया गया है। इस श्रृंगार में विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ शामिल हैं।
अन्नकूट पर्व उत्सव पर भगवान शंकर, गौरी माता, गणेश जी की पंचबदन रजत चल प्रतिमा की भव्य आरती मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री विश्व भूषण द्वारा श्री विश्वेश्वर प्रांगण स्थित भगवान सत्यनारायण विग्रह के बगल विद्वान आचार्यगण एवं शास्त्रीगण के पौरोहित्य में संपन्न की गई। तत्पश्चात भव्य डमरू वादन के साथ पीएसी बैंड बाजे की तुमुल ध्वनि नाद के मध्य पंचबदन चल प्रतिमा की शोभायात्रा भगवान सत्यनारायण मंदिर से गर्भगृह तक संपन्न कर भगवान विश्वनाथ की मध्याह्न भोग आरती विधि विधान पूर्वक संपन्न की गई।
मध्यान्ह भोग आरती में विशिष्ट भोग श्री विश्वेश्वर महादेव को अर्पित किया गया।
भोग लगने के उपरांत प्रसाद श्रद्धालुओं के मध्य वितरित किया गया। श्री काशी विश्वनाथ धाम में भोग आरती के पश्चात प्रसाद वितरण अन्नकूट पर्व का एक महत्वपूर्ण अंग है।
अन्नकूट पर्व केवल एक पारंपरिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह सनातन एकता, सनातन बंधुत्व भाव और दान के महत्व को भी रेखांकित करता है। इस दिन, भक्तगण एकत्र होकर न केवल श्री काशी विश्वनाथ जी की आराधना करते हैं, बल्कि एक-दूसरे के साथ मिलकर पर्वोल्लास का आदान-प्रदान भी करते हैं। यह पर्व सनातन धर्मियों में परस्पर एकजुटता और स्नेह द्वारा सनातन समाज में समृद्धि बढ़ाने का भी संदेश देता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और प्रेम के साथ सभी सनातनधर्मी एक वृहद सनातन परिवार के सदस्य हैं।

02/11/2024

कुछ वर्षों में, हिंदू धर्म के विभिन्न श्रद्धा के केंद्रों को समाज के छटे हुए शातिर, रिल्स बना पैसा कमाने का धंधा बना लिया है। बाक़ी धर्मों में इनको बढ़िया जवाब मिल जाता है।

ऐसे में, काशी के मंदिरों घाटों पारम्परिक लीलाओं और लक्खी मेलाओं में संकट जैसी स्थिति है UP Police MYogiAdityanath

वाराणसी। शिव की नगरी काशी में अन्नकूट की तैयारियां अब अंतिम दौर में हैं। कहीं लड्डुओं के मंदिर बनेंगे तो कहीं छप्पन भोग ...
28/10/2024

वाराणसी। शिव की नगरी काशी में अन्नकूट की तैयारियां अब अंतिम दौर में हैं। कहीं लड्डुओं के मंदिर बनेंगे तो कहीं छप्पन भोग की झांकी सजेगी। मंदिरों में छप्पन भोग तो तैयार हो रही हैं, घरों में भोग की थाली तैयार होगी।श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, मां अन्नपूर्णा, मां विशालाक्षी, बड़ा गणेश सहित धर्मसंघ परिसर स्थित मणिमंदिर में भव्य रूप में अन्नकूट की झांकी सजाई जाएगी।
धर्मसंघ स्थित मणिमंदिर में होने वाला अन्नकूट महोत्सव इस बार बेहद खास होगा। मंदिर में 101 क्विंटल का छप्पन भोग सजाया जाएगा। वहीं, पांच हजार घरों से तैयार रसोई भी महालक्ष्मी को अर्पित की जाएगी। धर्मसंघ के महामंत्री पं. जगजीतन पांडेय ने बताया कि घरों की रसोई में तैयार भोग से मंदिर में अन्नकूट की झांकी सजाई जाती है। इस बार घर की रसोई के लिए डिजिटल फॉर्म भरवाए जा रहे हैं।
अन्नपूर्णा मंदिर में इस बार 511 क्विंटल का अन्नकूट सजाया जाएगा। मां विशालाक्षी देवी के महंत राधेश्याम दुबे ने बताया कि माता के दर्शन के लिए दो नवंबर को सुबह पांच बजे मंदिर के पट खुल जाएंगे। मां विशालाक्षी की झांकी विभिन्न प्रकार के लड्डू से सजाया जाएगा। बड़ा गणेश मंदिर में भी दो नवंबर को अन्नकूट की झांकी सजेगी। इसके अलावा शहर के अन्य छोटे-बड़े मंदिरों में भी अन्नकूट की झांकी सजाई जाएगी।

राजघाट पुल, बनारस 🥰💚🙏
22/10/2024

राजघाट पुल, बनारस 🥰💚🙏

U P COLLEGE........    आईये !                          अपने यादो को ताज़ा करे.....
22/10/2024

U P COLLEGE........ आईये !
अपने यादो को ताज़ा करे.....

काशी में बनेगा नया रेल रोड ब्रिज।नया पुल 4 रेलवे लाइनों और 6 लेन हाइवे के साथ ₹2,642 करोड़ की लागत से बनेगा, जिससे प्रति...
17/10/2024

काशी में बनेगा नया रेल रोड ब्रिज।
नया पुल 4 रेलवे लाइनों और 6 लेन हाइवे के साथ ₹2,642 करोड़ की लागत से बनेगा, जिससे प्रति वर्ष लगभग 8 करोड़ लीटर डीजल की बचत होगी (लगभग ₹638 करोड़). यह देश का सबसे ज्यादा ट्रैफिक कैरी करने वाला ब्रिज होगा ।
#बनारस_अद्भुत_और_दिव्य #गंगाब्रिज
#काशी #वाराणसी #बनारस

14/10/2024

भगवान राम का हुआ भाइयों से मिलन सजल हुए नयन । रामनगर चौक में जयकारे से गूंजी धुन हजारों की संख्या में देखने पहुंचे श्रद्धालु ।

13/10/2024

धर्मो जयति नाधर्मः सत्यं जयति नानृतम्।

#रामनगर_दशहारा_विजयादशमी

नवरात्रि सप्तम दिन दर्शन - माँ कालरात्रि देवी🙏🙏 नवरात्र के सातवें दिन (सप्तमी) को माता कालरात्रि की पूजा होती है। भक्तों...
09/10/2024

नवरात्रि सप्तम दिन दर्शन - माँ कालरात्रि देवी🙏🙏

नवरात्र के सातवें दिन (सप्तमी) को माता कालरात्रि की पूजा होती है। भक्तों में आस्था है कि उनके दर्शन-पूजन से अकाल मृत्यु नहीं होती है। साथ ही भक्तों की सारी कामनाएँ पूरी हो जाती है। माँ कालरात्रि भक्तों को सुख देने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं। माँ कालरात्रि का रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हैं। गले की माला बिजली की तरह चमकती है। इनके तीन नेत्र हैं। इनके श्वास से अग्नि की ज्वालाएँ निकलती हैं। माँ का वाहन गर्दभ है। इनका मंदिरD 8/3 कालिका गली बाबा विश्वनाथ जी के पास में स्थित है।
जय माँ कालरात्रि दुर्गा माता 🙏🙏🙏

हर-हर महादेव🙌🙏
#साभार

यूं तो इसे शक्कर पारे कहते हैं चूंकि ये गुड़ से बने हैं तो आप गुड़ पारे भी कह सकते हैं, मेरी मामी सूप पर आटे को रगड़ कर ...
08/10/2024

यूं तो इसे शक्कर पारे कहते हैं चूंकि ये गुड़ से बने हैं तो आप गुड़ पारे भी कह सकते हैं, मेरी मामी सूप पर आटे को रगड़ कर शेप देती थी फिर चाशनी में डुबोती थी, सूप पर बनाने की वजह से उसे सूप पारे कहते हैं।
बचपन से इसे बुनिया ही कहते सुना है और बड़े शौक से खाया है। गूगल इसे बेसन की मीठी सेंव बता रहा है क्योंकि इसका आकार सेंव की तरह है और बेसन से बनी हुई है।
ठीक इसी तरह से आदरणीय जी ने लिखा बुनिया के बारे में है लेकिन उनकी लिखी बुनिया दूसरी तरह की है तो आईए जानते हैं कि आदरणीय की बुनिया कैसी होती है.........

बुनिया!

बड़ी सी कड़ाही के शीरे में डूबी बुनिया फूली हुई किशमिश सी लगती जिसकी सुगंध मिठाई की दुकान के पचास मीटर के आस पास फैली हुई होती थी। बियाह, बरीक्षा, तिलक हो या प्रीतिभोज, हर जगह दोने परसी गई बूनी के पीले ललछौंह भीगे दाने रिश्तों की मधुरता को और अधिक गाढ़ा करते थे।

निमंत्रण में भोजन के दो हिस्से हुआ करते थे, पहला हिस्सा कचौड़ी सब्जी होता था तो दूसरा बुनिया के साथ पूड़ी। पूड़ी बुनिया खाने के जोड़ लगा करते थे। तब की पूड़ी आज के फुल्के जैसी नही बल्कि खूब मुलायम, पतली और बड़ी हुआ करती थी, उसमें गरम-गरम रसेदार बूनी लपेट कर खाने का आनंद वही जान सकता है जिसने खाया हो।

दिल्ली में बुनिया खाने को तरस गया, यहां पर बुनिया को बूंदी कहते हैं, प्रसाद के रूप में आपको यह खाने को मिल सकता है, लेकिन उसके दाने कड़े और हल्के खट्टे होते हैं। जब आप बूंदी खायेंगे तो दांतों के बीच दबते ही कंकड़ जैसा आभास होता है। यहां प्रसाद ज्यादातर भगवान के भोग वाले भाव से नही बनाया जाता बल्कि मंगलवार शनिवार को एक एक्स्ट्रा प्रोडक्ट बतौर तैयार किया जाता है। लोग भी गजब हैं, बाजार से ऐसी चीज को उठाकर लाते हैं और उसे भगवान को भोग लगाते हैं, खुद शायद ही खाएं।

खैर, बुनिया और बूंदी में अंतर गांव और शहर का अंतर है। गांव आपको ताजी बुनिया खिलाता है, इलाइची, बेसन और चीनी से बनाई गई यह मिठाई तभी खाने का आनंद देती है जब यह शुद्ध बनी हो, गर्म हो, रस में डूबी हो और पत्तल वाले दोने में परसी गई हो। रिलैक्स होकर एक एक दाने को देखते हुए, महक को आस पास महसूस करते हुए स्वाद लेकर खाइए, जीवन के तनाव पिघल जाएंगे। भगवान भी शायद इसी रूप में भोग स्वीकार करते हैं। शहर पैक्ड और रसविहीन बूंदी की सप्लाई करता है, आपके घर बैठे बैठे बूंदी आपको मिल जाती है, ठंडी और कड़ी बूंदी खाने को भले ही खा लो पर उससे स्वाद ग्रंथियों की प्यास अतृप्त ही रहनी है।

बचपन में न्योते और मिठाई की दुकान से इतर पंद्रह अगस्त को भी बुनिया खाने को मिलती थी। पंद्रह अगस्त की बुनिया खाने की इतनी जल्दी होती थी कि कागज या दोने की बजाय हाथ पर ही ले लिए जाते थे, हाथ और जीभ दोनों बुनिया से सन जाते थे, रही सही कसर शर्ट से मुंह पोंछने में पूरी हो जाती थी।

बचपन में खाई बुनिया से आज भी जीवन मधुर है।

नवरात्रि छठवे दिन दर्शन- माँ कात्यानी देवी🙏🙏🙏भगवती दुर्गा के छठें रूप का नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन के घर पुत्री ...
08/10/2024

नवरात्रि छठवे दिन दर्शन- माँ कात्यानी देवी🙏🙏🙏

भगवती दुर्गा के छठें रूप का नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्मलेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समानचमकीला, और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प तथा नीचे वाले हाथ में तलवार है। इनका वाहन सिंह है। दुर्गा पूजा के छठवें दिन इनके इसी स्वरुप की उपासना की जाती है।माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्यों को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फ़लों की प्राप्ति हो जाती है।
इनका मंदिर बनारस मैं संकठा जी के पास ओर ललिता घाट के पास है ।।
जय माँ कात्यानी, हर-हर महादेव 🙌🙏🚩

हर हर महादेव 🙏🙌
#साभार

07/10/2024

श्रीकाशी विश्वनाथ धाम पहुंचे सीएम योगी MYogiAdityanath Narendra Modi Saurabh Srivastava shrivishwanatha

नवरात्रि पंचम दिन दर्शन- माँ स्कंदमाता ( बागेश्वरी देवी)🙏🙏नवरात्र के पांचवे दिन आदि- शक्ति माँ दुर्गा के पांचवे रूप स्कं...
07/10/2024

नवरात्रि पंचम दिन दर्शन- माँ स्कंदमाता ( बागेश्वरी देवी)🙏🙏
नवरात्र के पांचवे दिन आदि- शक्ति माँ दुर्गा के पांचवे रूप स्कंदमाताकी पूजा अर्चना की जाती हैं। इनका एक नाम बागेश्वरी माता भी है। स्कंदमाताका कोमल मन ममता से भरा होता हैं इसलिए जो भी साधक सच्चे एवं साफ़ मन से इस देवी की उपासना करता हैं, ममतामयी देवी माँ उसके सभी कष्टों को हर लेती हैं। कहा जाता हैं कि जो भक्त संतान सुख की प्राप्ति चाहता हैं उसे स्कंदमाताकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। उनके लिए यह पूजा काफी फलदायी साबित होती हैं। इसके लिए नवरात्र की पांचवी तिथि को एक लालवस्त्र में सुहाग का समान, लाल फूल, फल और चावल बांधकर माँ की गोद में रखना चाहिए।स्कंदमाताकी इस तरह से पूजा करने से साधक की सूनी गोद भर जाती हैं। इस पूजा से गले एवं वाणी में भी माँ का प्रभाव देखने को मिलता हैं। जिस व्यक्ति के गले में किसी प्रकार की समस्या हो वो माँ की पूजा में रखें जल में पांच लौंग मिलाकर स्कंदमाताका आह्वान कर इस जल को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें। इससे गले संबंधी सभी समस्याएँ दूर हो जाती हैं।
माँ बागेस्वरी स्कंदमाता का मंदिर वाराणसी के जैतपुरा मे स्थित है।।
जय माँ बागेश्वरी देवी
जय माँ स्कंदमाता 🙏🙏
हर हर महादेव🙌🙏

नवरात्र: - चौथी कुष्मांडा देवीनवरात्र के चौथे दिन माँ कुष्मांडा के रूप के दर्शन का विधान है। वाराणसी में माँ कुष्मांड दु...
06/10/2024

नवरात्र: - चौथी कुष्मांडा देवी
नवरात्र के चौथे दिन माँ कुष्मांडा के रूप के दर्शन का विधान है। वाराणसी में माँ कुष्मांड दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर में विराजमान हैं। यहाँ माँ दुर्गा रूपी कुष्मांड का अति प्राचीन भव्य मंदिर है। इसके अलावा काशी में ज्ञानवापी परिक्षेत्र में स्‍थित मां श्रृंगार गौरी के दर्शन की मान्‍यता भी इस दिन हैं। मां श्रृंगार गौरी, देवी दुर्गा का गौरा रूप मानी गयी हैं।
दुर्गाकुंड में रात से ही जुटने लगते हैं श्रद्धालु
दुर्गाकुंड मंदिर में रात से ही मां कुष्मांड के दर्शन के लिए भक्‍तों की अपार भीड़ उमड़ पड़ती है। चूंकि यह मंदिर वाराणसी में होते हुए भी जगत प्रसिद्ध है इसलिय अन्‍य दिनों में भी यहां अधिक संख्‍या में श्रद्धालुगण मां के दर्शन के लिए आते हैं। बनारस के इस अतिप्राचीन मंदिर में श्रद्धालुगण अपनी अपनी मनौतियां भी मां के सामने हाथ फैलाकर मांगते हैं, जिसे परमकल्‍याणी मां जरूर पूरा करती हैं, ऐसी लोगों की आस्‍था है।
कौन हैं मां कुष्‍मांडा
मान्यता हैं की वह देवी जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है वह कूष्माण्डा हैं। देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय अंधकार का साम्राज्य था। देवी कुष्मांडा जिनका मुखमंडल सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुईं। मान्‍यताओं के अनुसार उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयीं और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्माण्‍ड का जन्म हुआ। अत: यह देवी कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुई।
कहां रहती हैं मां
माँ कुष्मांडा का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं। इस दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है, अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है। कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है। इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।
18वीं शताब्‍दी में बना है नया मंदिर
वाराणसी का प्रसिद्ध दुर्गाकुंड मंदिर में विराजमान मां कुष्‍मांडा स्‍वयं प्रगट हुई हैं ऐसी मान्‍यता है। अनादिकाल से यहां पूजा-अर्चना होती आयी है। वहीं मौजूदा मंदिर का भवन 18वीं शताब्‍दी में बंगाल की महारानी द्वारा बनवाया गया था। इसके ठीक बगल में एक बड़ा कुंड है जिसके बारे में कहा जाता है कि ये भीतर ही भीतर मां गंगा से जुड़ा हुआ है। देवी भागवत पुराण के 23वें अध्‍याय में इस मंदिर का उल्‍लेख मिलता है।
एक अन्‍य कहावत के अनुसार
किसी काल में काशी नरेश अपनी पुत्री शशिकला का स्‍वयंवर आयोजित कराते हैं। मगर बाद में उन्‍हें पता चलता है कि उनकी पुत्री शशिकला एक वनवासी राजकुमार से प्रेम करती है। इसपर काशी नरेश गुप्‍त रूप से अपनी पुत्री का विवाह वनवासी राजकुमार के संग करा देते हैं। वहीं जब इस बात की जानकारी स्‍वयंवर में पहुंचे एक राजा को होती है तो वह काशी पर आक्रमण कर देता है। इसी बीच वनवासी राजकुमार जिसका नाम सुदर्शन था उसने मां दुर्गा का आह्वान किया जो यहीं प्रगट हुई और युद्ध में काशी नरेश की ओर से लड़ीं। बाद में काशीनरेश ने मां दुर्गा से सदा सदा के लिये यहीं विराजमान होने का अनुरोध किया जिसे दुर्गा मां ने स्‍वीकार कर लिया। तब से यहां मां दुर्गा का मंदिर मौजूद है।,

#साभार

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