08/12/2024
मजदूर की कही हुई बात -कथा
एक सेठ बस से उतरे उनके पास कुछ सामान था, आस-पास नजर दौड़ाई , तो उन्हें एक मजदूर दिखाई दिया ।
सेठ जी ने आवाज देकर उसे बुलाकर कहा "फला स्थान तक इस सामान को ले जाने के कितने पैसे लोगे?"
आपकी जो मर्ज़ी, जो देना हो, दे देना लेकिन मेरी शर्त है कि जब मैं सामान लेकर चलूं , तो रास्ते में मेरी सुनना या आप सुनाना ।
सेठ ने ठाट कर उसे भगा दिया और किसी अन्य मजदूर को देखने लगे, लेकिन आज वैसा ही हुआ जैसा राम वन गमन के समय गंगा के किनारे केवल केवट की ही नाव थी ।
मजबूरी में सेठ में सेठ ने उसी मजदूर को बुलाया । मजदूर दौड़कर आया और बोला- "मेरी शर्त आपको मंजूर है?"
सेठ ने स्वार्थ के कारण हां कर दी ।
सेठ का मकान लगभग 500 मीटर की दूरी पर था । मजदूर सामाना उठाकर सेठ जी के साथ चल दिया और बोला सेठ जी आप कुछ सुनाओगे या मैं कुछ सुनाऊं । सेठ ने कह दिया तूही सुना ।
मजदूर ने खुश होकर कहा - जो कुछ मैं कहूं उसे ध्यान से सुनना ,यह कहते हुए मजदूर पूरे रास्ते बोलता गया । और दोनों मकान तक पहुंच गये ।
मजदूर ने बरामदे में सामान रख दिया , सेठ ने जो पैसे दिए ले लिए और सेठ से बोला! सेठ जी आपने मेरी बात ध्यान से सुनी या नहीं ।
सेठ ने कहा, मैंने तेरी बात नहीं सुनी , मुझे तो अपना काम निकालना था ।
मजदूर बोला -"सेठ जी! आपने जीवन की बहुत बड़ी ग़लती कर दी ,कल ठीक सात बजे आपकी मौत होने वाली है "
सेठ को गुस्सा आया और बोले ,तेरी बकवास बहुत सुन ली, जा रहा है या तेरी पिटाई करूं;
मजदूर बोला ,मारो या छोड़ दो कल शाम को आपकी मौत होनी है, अब मेरी बात ध्यान से सुन लो अब से थोड़ा गंभीर हुए और बोले; सभी को मरना है अगर मेरी मौत कल शाम को होनी है तो होगी इसमें मैं क्या कर सकता हूं ।
मजदूर बोला ,तभी तो कह रहा हूं अभी भी मेरी बात ध्यान से सुन लो सेठ बोलो सुना ,ध्यान से सुनुगां । मरने के बाद आप ऊपर जाओगे तो आपसे पूछा जाएगा कि" हे मनुष्य पहले पाप का फल भोगेगा या पुण्य का"
क्योंकि मनुष्य अपने जीवन में पाप और पुण्य दोनों ही करता है। तो आप कह देना की मैं पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन पुणे का फल आंखों से देखना चाहता हूं। इतना कहकर मजदूर चला गया
दूसरे दिन ठीक 7:00 बजे सेठ जी की मौत हो गई ।सेठ ऊपर पहुंचा तो यमराज ने मजदूर द्वारा बताया गया, प्रश्न कर दिया "पहले पाप का फल भोगना चाहता है की पुण्य का"। सेठ ने कहा पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन जो भी जीवन में मैं पुण्य किया है उसका फल आंखों से देखना चाहता हूं ।
यमराज बोले-"हमारे यहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है यहां तो दोनों के फल भगत पाए जाते हैं"
सेठ ने कहा फिर मुझसे पूछा क्यों और पूछा है तो उसे पूरा करो, धरती पर तो अन्याय होते देखा है पर यहां भी अन्याय है यमराज ने सोचा, बात तो सही कह रहा है इससे पूछ कर बड़े बुरे फंसे, मेरे पास कोई ऐसी पावर नहीं जिससे इस जीव की इच्छा पूरी हो जाए, विवश होकर यमराज उसे सेठ को ब्रह्मा जी के पास ले गए और पूरी बात बता दी ,
ब्रह्मा जी ने अपनी पोथी निकाल कर सारे पन्ने पलट डालें, लेकिन उनको कानून की कोई ऐसी धारा या उप धारा नहीं मिली जिससे सेठ की इच्छा पूरी हो सके ब्रह्मा जी विवश होकर यमराज और सेठ के साथ भगवान श्री हरि के पास पहुंचे और समस्या बताइ।
भगवान ने यमराज और ब्रह्मा से कहा जाइए अपना-अपना काम देखिए दोनों चले गए ।
भगवान ने सेठ से कहा -"अब बोलो तुम क्या चाहते हो?" सेठ बोला "अजी प्रभु मैं तो शुरू से एक ही बात कह रहा हूं की पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन पुण्य का फल आंखों से देखना चाहता हूं"
भगवान बोले- धन्य है वह सद्गुरु (मजदूर) जो तेरे अंतिम समय में तेरा कल्याण कर गया अरे मूर्ख उसके बताएं उपाय के कारण ही तू मेरे सामने खड़ा है ।
अपनी आंखों से इससे और बड़ा पुण्य का फल क्या देखना चाहता है
मेरे दर्शन से ही तेरे सभी पाप भस्मीभूत हो गए ।
इसलिए बचपन से ही हमें सिखाया जाता है की गुरुजनों की बात ध्यान से सुनना चाहिए पता नहीं कौन सी बात जीवन में कब काम आ जाए ।।
।। श्री परमात्मने नमः।।