Mukesh Motivational Dose

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06/01/2025
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12/06/2024






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कर्मो का फल एक बार शंकर जी पार्वती जी भ्रमण पर निकले। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक तालाब में कई बच्चे तैर रहे थे, लेकि...
19/04/2024

कर्मो का फल
एक बार शंकर जी पार्वती जी भ्रमण पर निकले। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक तालाब में कई बच्चे तैर रहे थे, लेकिन एक बच्चा उदास मुद्रा में बैठा था।

पार्वती जी ने शंकर जी से पूछा, यह बच्चा उदास क्यों है? शंकर जी ने कहा, बच्चे को ध्यान से देखो।

पार्वती जी ने देखा, बच्चे के दोनों हाथ नही थे, जिस कारण वो तैर नही पा रहा था।
पार्वती जी ने शंकर जी से कहा कि आप शक्ति से इस बच्चे को हाथ दे दो ताकि वो भी तैर सके।

शंकर जी ने कहा, हम किसी के कर्म में हस्तक्षेप नही कर सकते हैं क्योंकि हर आत्मा अपने कर्मो के फल द्वारा ही अपना काम अदा करती है।

पार्वती जी ने बार-बार विनती की। आखिकार शंकर जी ने उसे हाथ दे दिए। वह बच्चा भी पानी में तैरने लगा।

एक सप्ताह बाद शंकर जी पार्वती जी फिर वहाँ से गुज़रे। इस बार मामला उल्टा था, सिर्फ वही बच्चा तैर रहा था और बाकी सब बच्चे बाहर थे।

पार्वती जी ने पूछा यह क्या है ? शंकर जी ने कहा, ध्यान से देखो।

देखा तो वह बच्चा दूसरे बच्चों को पानी में डुबो रहा था इसलिए सब बच्चे भाग रहे थे।
शंकर जी ने जवाब दिया- हर व्यक्ति अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। भगवान किसी के कर्मो के फेर में नही पड़ते हैं।

उसने पिछले जन्मो में हाथों द्वारा यही कार्य किया था इसलिए उसके हाथ नहीं थे।

हाथ देने से पुनः वह दूसरों की हानि करने लगा है।

प्रकृति नियम के अनुसार चलती है, किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं।

आत्माएँ जब ऊपर से नीचे आती हैं तब सब अच्छी ही होती हैं,

कर्मों के अनुसार कोई अपाहिज है तो कोई भिखारी, तो कोई गरीब तो कोई अमीर लेकिन सब परिवर्तनशील हैं।

अगर महलों में रहकर या पैसे के नशे में आज कोई बुरा काम करता है तो कल उसका भुगतान तो उसको करना ही पड़ेगा।

एक बहुत बड़ा सरोवर था।उसके तट पर मोर रहता था, और वहीं पास एक मोरनी भी रहती थी।एक दिन मोर ने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि- "ह...
18/04/2024

एक बहुत बड़ा सरोवर था।
उसके तट पर मोर रहता था, और वहीं पास एक मोरनी भी रहती थी।
एक दिन मोर ने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि- "हम तुम विवाह कर लें, तो कैसा अच्छा रहे?"
मोरनी ने पूछा- "तुम्हारे मित्र कितने है ?"

मोर ने कहा उसका कोई मित्र नहीं है।

तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर दिया।

मोर सोचने लगा सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है।

उसने एक सिंह से, एक कछुए से, और सिंह के लिए शिकार का पता लगाने वाली टिटहरी से, दोस्ती कर लीं।

जब उसने यह समाचार मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत विवाह के लिए तैयार हो गई।

पेड़ पर घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिए, और भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते थे।

एक दिन शिकारी आए। दिन भर कहीं शिकार न मिला तो वे उसी पेड़ की छाया में ठहर गए और सोचने लगे,

पेड़ पर चढ़कर अंडे- बच्चों से भूख बुझाई जाए।

मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई, मोर मित्रों के पास सहायता के लिए दौड़ा।

बस फिर क्या था,

टिटहरी ने जोर- जोर से चिल्लाना शुरू किया।

सिंह समझ गया, कोई शिकार है।

वह उसी पेड़ के नीचे चला, जहाँ शिकारी बैठे थे।

इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया।

सिंह से डरकर भागते हुए शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची।

जैसे ही हाथ बढ़ाया कछुआ पानी में खिसक गया।

शिकारियों के पैर दलदल में फँस गए।

इतने में सिंह आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने लगा दिया।

मोरनी ने कहा- "मैंने विवाह से पूर्व मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात काम की निकली न,

यदि मित्र न होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।”

मित्रता सभी रिश्तों में अनोखा और आदर्श रिश्ता होता है।

और मित्र किसी भी व्यक्ति की अनमोल पूँजी होते है।

चमेली मेला देखने चल रही हैं??हां रितु ,, थोड़ा बाजरा और कूट लूँ.... फिर बापू को खबरकर चलती हूँ... थोड़ी देर रूक जा...क्या...
01/11/2023

चमेली मेला देखने चल रही हैं??
हां रितु ,, थोड़ा बाजरा और कूट लूँ.... फिर बापू को खबरकर चलती हूँ... थोड़ी देर रूक जा...
क्या चमेली,, तू पूरे दिन घर के कामों में ही खटकती रहती हैं... और मैं तो एक ग्लास पानी भी खुद से नहीं लेती ... रितु बोली..
देख रितु ,, सबकी किस्मत एक जैसी नहीं होती ... तू ठहरी प्रधान चाचा की छोरी ... और मैं एक ऐसे किसान की बेटी हूँ जो कहने को किसान हैं पर खुद के नाम की एक हाथ भर की जमीन नहीं हैं उसके पास .... चमेली बाजरा कूटते हुए बोली...
तुझे बड़ा दुख होता होगा ना कि कैसे गरीब परिवार में जन्म हो गया मेरा... रितु चमेली का मजाक बनाते हुए बोली..
अरे नहीं री ,,, मुझे तो अपनी किस्मत पर नाज हैं... दो छोटे छोटे प्यारे भाई ,, दो बड़ी जीजी ,, माँ बापू , दो बखत की रोटी सबकुछ तो हैं ... बापू इतनी तंगी में भी हम सबको पढ़ा रहे हैं... यहीं बहुत हैं.. रही बात ठाठ बांट की वो मैं दिलाऊंगी माँ बापू को... आत्मविश्वास के साथ चमेली बोली...
ठीक हैं देख लिए तेरे ठाठ बांट,, इस जन्म में तो ऐसा होता दिखता नहीं.. अभी तेरा बाजरा कूट गया हो तो मेला चल ,, बहुत अबेर हो जायेगी...
ठीक हैं चल ,, हाथ धोकर आयीं ... दोनों सहेली एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले मेला देखने चली गयी...
इंटर कर प्रधान चाचा की बेटी रितु इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए कोटा चली गयी... बस हर महीने पैसों की फरमाइश करती रहती.. कभी कोई बहाना,, कभी कोई...
इधर चमेली माँ बापू का काम में सहयोग करते हुए पटवारी की तैयारी करती रही... ईश्वर की कृपा से चमेली का चयन पटवारी के लिए हो गया .. उसके घर में पूरे गांव में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी...पूरे इतिहास में गांव से पहली लड़की सरकारी नौकरी में जो लगी थी.. प्रधान जी की बेटी रितु कोटा से वापस आ गयी हैं... दो साल ड्रोप भी किया पर जब एक बार बाहर की एशो आराम की ज़िन्दगी की हवा लग जाए तो पेपर निकालना नाकों चने चबवाने जैसा काम हो जाता हैं...
अपनी सहेली को खुद की गाड़ी में आता देख रितु कहती हैं... ए री ,, तूने तो सच में अपनी किस्मत बदल दी... ठाठ बांट कर दिये ताऊ ताई के ...
बस बस ,,,चमेली बोली - अगर ठान लो कि कुछ करना हैं तो कितने भी तूफान आ जायें ,, उसे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता ... तू भी मेहनत कर ... आज नहीं तो कल तू भी मेरी जगह आ सकती हैं...
रितु मुस्कुरा भर दी ... अपनी सहेली के गले लग गयी ...
मीनाक्षी सिंह

" बस कीजिए बुआजी...अब एक शब्द भी और नहीं ...।" आलोक अपनी देवकी बुआ पर चिल्लाया और अपने कमरे में चला गया।        कितना खु...
30/10/2023

" बस कीजिए बुआजी...अब एक शब्द भी और नहीं ...।" आलोक अपनी देवकी बुआ पर चिल्लाया और अपने कमरे में चला गया।
कितना खुश था आलोक अपने छोटे-से परिवार के साथ।उसकी पत्नी आरती स्कूल में एक अध्यापिका होने साथ-साथ एक अच्छी माँ और ससुर का ख्याल रखने वाली अच्छी बहू भी थी।देवकी बुआ को भी वह कभी खाली हाथ नहीं जाने देती थी।लेकिन बुआजी आरती से इस बात से चिढ़ी रहती थीं कि आलोक ने उनके देवर की बेटी का रिश्ता ठुकराकर आरती को पसंद कर लिया था।इसलिए आरती की खुशी उनसे देखी नहीं जाती थी।जब आती तो उसके खिलाफ़ कभी अपने भाई के कान भरती तो कभी आलोक के।
एक दिन आरती को स्कूल से आने में देरी हो गई।बुआजी वहीं बैठी हुई थी, बस अनाप-शनाप बकने लग गईं।इधर -उधर के उदाहरण देकर आलोक को कहने लगीं कि स्कूल के बहाने कहीं गुलछर्रे उड़ा रही होगी।आलोक भी तो आखिर एक पुरुष ही था...।जब आरती आई तो उसकी बात सुने बिना ही उसे बहुत भला-बुरा कहा,अपशब्द कहे जो आरती को चुभ गयें और....।
अगले दिन 'जानकी तलैया' से उसकी लाश मिली तब तो आलोक उसकी लाश से लिपट-लिपटकर रोने लगा।खुद को कोसने लगा कि इतना समझदार होकर भी वह कान का कच्चा कैसे हो गया? क्यों वह बुआजी की बातों में आ गया.. क्यों उसने आरती की बात नहीं सुनी...।बेटे आरव को देखता तो उसकी रुलाई फूट पड़ती।
कुछ महीनों के बाद पिता के बहुत कहने पर उसने पूजा से ब्याह कर लिया।बुआजी अब पूजा की भी शिकायत करने से बाज नहीं आती थीं।
आज जब पूजा आरव को लेकर स्कूल से नहीं लौटी तो बुआजी ने अपना ब्रह्मास्त्र चला दिया," आलोक. ...मैंने खुद अपनी आँखों से तेरी पत्नी को एक गैर मर्द के साथ स्कूटर पर बैठे देखा था...।" तब आलोक उनपर चिल्ला उठा।उनकी बातों में आकर वह पहले ही एक गलती कर चुका था..अब नहीं..।तभी फ़ोन की घंटी बजी।
" मिस्टर आलोक...,मैं स्कूल का प्रिसिंपल बोल रहा हूँ।स्कूल का एक बच्चा सीढ़ियों से गिर गया था।आपकी पत्नी ने आरव को यहीं छोड़कर उस बच्चे को लेकर हाॅस्पीटल चलीं गईं और उसकी मरहम-पट्टी कराईं थीं।आपकी वाइफ़ बहुत नेकदिल इंसान हैं।थैंक्यू सो मच!" आलोक को अपनी पत्नी पर गर्व हुआ।उसने मुस्कुराते हुए अपने पिता की तरफ़ देखा जैसे कह रहा हो ' सब ठीक है।'
तभी आरव का बैग-बाॅटल लिये हाँफ़ते हुए पूजा आई," सुनिये ना...आज स्कूल में..।" तपाक-से आरव बोल पड़ा, " पापा... ,माइ माॅम इज़ बेस्ट.!
" हाँ...मेरी बहू दी बेस्ट है।" ससुर के मुँह से सुनकर पूजा कुछ समझ नहीं पाई, उसने आलोक को देखा जो उसे ही निहार रहा था जैसे कह रहा हो- 'हमें सब पता है'
देवकी बुआ ने वहाँ से खिसक जाना ही उचित समझा।बोली," अच्छा आलोक...मैं चल..।"
" हाँ-हाँ बुआजी ...जाइये...,अब यहाँ कान का कच्चा कोई भी नहीं है।" फिर तो सभी हा-हा करके हँसने लगे।
विभा गुप्ता
# कान का कच्चा होना स्वरचित

"मम्मी जी के लिए यह साड़ी कैसी रहेगी?..आप जरा देखकर बताइए।"मॉल से कपड़े खरीदती रागिनी ने अपनी सास के लिए एक साड़ी पसंद क...
30/10/2023

"मम्मी जी के लिए यह साड़ी कैसी रहेगी?..आप जरा देखकर बताइए।"
मॉल से कपड़े खरीदती रागिनी ने अपनी सास के लिए एक साड़ी पसंद कर अपने पति राजीव की ओर बढ़ा दिया।
"मांँ को हल्के रंग की साड़ी पसंद आती है!.उन्हें गाढ़ा रंग पसंद नहीं।"
यह कहते हुए राजीव ने रागिनी को अपनी तरफ से सलाह दी।
पूरे परिवार के लिए कपड़ों की खरीददारी करती रागिनी उस साड़ी को गौर से देखने लगी..
"इस साड़ी का फैब्रिक बहुत अच्छा है!.मम्मी जी को यह साड़ी जरूर पसंद आएगी।"
यह कहते हुए अपने हाथ में उठाई उस साड़ी पर हल्के हाथ फेरती रागिनी मुस्कुराई..
"ठीक है!.ले लो।"
राजीव ने भी सहमति जता दी लेकिन साड़ी पर लगे टैग पर उस साड़ी की कीमत देख राजीव चौंक गया..
"इतनी महंगी साड़ी मांँ के लिए!"
"महंगी कहांँ है!.मात्र पांच हजार की ही तो है और वैसे भी इस मॉल में डिस्काउंट बहुत रहता है,.आप चिंता ना करें श्रीमान।"
राजीव के चेहरे के भाव देख रागिनी मुस्कुराई लेकिन फिर भी राजीव को उस साड़ी की कीमत बहुत ज्यादा लग रही थी।
लेकिन रागिनी ने वह साड़ी कार्ट में रख ली और घर के अन्य सदस्यों के लिए भी कपड़े पसंद करने लगी।
असल में रागिनी एक संयुक्त परिवार की सबसे छोटी बहू थी और अभी-अभी उसकी नई जॉब लगी थी इसलिए वह अपनी पहली तनख्वाह से अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए अपनी खुशी से कपड़े खरीद कर उन्हें उपहार स्वरूप देना चाहती थी।
अपनी पत्नी की इच्छा में राजीव ने भी खुशी-खुशी सहमति जताई थी लेकिन अभी-अभी रागिनी द्वारा खरीदे जा रहे साड़ी की कीमत देख उसका मन विचलित हो रहा था।
परिवार के सदस्यों के लिए इतनी मार्केटिंग खुद कभी न करने वाले राजीव को रागनी द्वारा खरीदे जा रहे कपड़ों की कीमत बहुत ज्यादा लग रही थी।
इधर रागिनी ने अपनी समझ से सबके लिए खरीदारी कर ली थी और वह दोनों घर वापस लौट आए।
घर पहुंच कर रागिनी उन कपड़ों को एक-एक कर घर के सभी सदस्यों को देने के लिए अलग कर रही थी तब राजीव बोल उठा..
"रागिनी!. इन कपड़ों से टैग अलग कर दो,.इन कपड़ों की कीमत सभी को बताने की क्या जरूरत?"
अपने पति की बात सुनकर रागिनी मुस्कुराई,..
"अभी नहीं!"
राजीव हैरान हुआ क्योंकि रागिनी हमेशा से बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी उसे दिखावा करना बिल्कुल पसंद नहीं था लेकिन आज उसका रवैया देख राजीव को कुछ अटपटा लगा।
लेकिन वह रागिनी के साथ कलह करना नहीं चाहता था लेकिन फिर भी अनुरोध कर बैठा..
"टैग में क्या रखा है रागिनी!.प्लीज इसे हटा दो ना!"
"नहीं राजीव!.आप टेंशन क्यों लेते हो।"
यह कहते हुए रागिनी उन कपड़ों के सारे पैकेट उठा अपने कमरे से बाहर निकल गई।
राजीव चुपचाप अपने कमरे में ही बैठा रहा वह मन ही मन सोच रहा था कि,..
किसी और के कपड़ों से ना सही लेकिन रागिनी को कम से कम पिताजी के बुशर्ट से टैग हटा देना चाहिए था।
इसी उधेड़बुन में पड़ा राजीव अपने कमरे से बाहर नहीं गया लेकिन थोड़ी देर में ही रागिनी को ढूंढती राजीव की मांँ यानी रागिनी की सास रत्ना जी उसके कमरे में आ पहुंची..
"क्या ढूंढ रही हो मांँ?"
अपनी मांँ के हाथ में टैग लगा वह बुशर्ट देख राजीव पूछ बैठा जिसे रागिनी मॉल से उसके पिताजी के लिए लाईं थी।
"बेटा!.यह बुशर्ट बदलना होगा।"
"क्यों माँ?.ऐसा भी क्या हो गया?"
अपनी मांँ की बात सुनकर राजीव चौंक गया कि हो ना हो रागिनी के दिखावे के चक्कर में कुछ गड़बड़ जरूर हुआ होगा!. तभी पिताजी ने मांँ के हाथों वह बुशर्ट वापस भिजवा दिया है।
बेटे के चेहरे के अचानक बदले भाव देख रत्ना जी ने उसे आश्वस्त किया..
"बेटा!. तुम इतना क्यों परेशान हो रहे हो?.यह बुशर्ट तुम्हारे पिताजी को बहुत पसंद है लेकिन आजकल तुम्हारे पिताजी लार्ज साइज नहीं पहनते,.एक्सेल पहनने लगे हैं!. थोड़े मोटे जो हो गए हैं।"
अपनी मांँ की बात सुनकर राजीव हंस पड़ा तभी रागिनी भी कमरे में आ पहुंची..
"मम्मी जी!.आप चिंता ना करें मैं कल यह बुशर्ट बदलकर एक्सेल साइज में ले आऊंगी।"
"बेटा!. इसे वापस करने में कोई दिक्कत तो नहीं होगी ना?" रत्ना जी ने चिंता जताई।
"बिल्कुल नहीं मम्मी जी!..इसीलिए तो मैंने किसी के भी कपड़ों से टैग नहीं हटाया था!..मुझे रंग और फैब्रिक पसंद करना तो आता है लेकिन साइज में मुझसे अक्सर गलतियांँ हो जाती है।"
रागिनी के चेहरे पर मुस्कान थी और अपनी बहू की समझदारी देख रत्ना जी भी मुस्कुरा उठी।
अब तक अपनी पत्नी की समझदारी पर शक कर रहा राजीव भी रागिनी की समझदारी का लोहा मान मुस्कुराए बिना न रह सका।
पुष्पा कुमारी पुष्प
पुणे (महाराष्ट्र)

"साहब रिक्शा चाहिए क्या?" पत्नी का हाथ थामें टहलते हुए पार्क के गेट से बाहर निकल ही रहा था कि वहीं खड़े रिक्शाचालक ने उस...
29/10/2023

"साहब रिक्शा चाहिए क्या?"
पत्नी का हाथ थामें टहलते हुए पार्क के गेट से बाहर निकल ही रहा था कि वहीं खड़े रिक्शाचालक ने उससे पूछ लिया।
"भई रिक्शा तो मैं ले लेता! लेकिन मुझे चलाना नहीं आता।"
वह पत्नी की ओर देख उस हमउम्र रिक्शा चालक से मजाक कर गया। उसकी बात सुन रिक्शा चालक को भी हंसी आई।
"नहीं साहब! मेरा मतलब था कि आपको कहीं जाना हो तो मैं छोड़ दूं।"
"जाना तो है लेकिन वापस छोड़ना यही होगा।" उसकी पहेली जैसी बातों को पत्नी समझ पाती उससे पहले ही सड़क के उस पार पार्किंग एरिया में गाड़ी संग इंतजार करते ड्राइवर को एक हाथ हिला थोड़ा और इंतजार करने का इशारा कर वह पत्नी का हाथ थामें रिक्शे की पिछली सीट पर जा बैठा।"
बताइए साहब! कहां जाना है?" रिक्शा चालक ने रिक्शा आगे बढ़ा दिया।
"स्टेशन वाले हनुमान जी के दर्शन करवा दो!" उसके इतना कहते ही रिक्शा थोड़ा आगे बढ़ स्टेशन जाने वाली मुख्य सड़क की ओर मुड़ गया।
पत्नी संग मुश्किल से रिक्शे की सीट में खुद को एडजस्ट करने की कोशिश करते हुए उसने रिक्शा चालक से यूंही बातचीत की शुरुआत कर दी।
"दिन भर में कितना कमा लेते हो इस रिक्शे से?"
"दिन भर में पेट भरने लायक कमाना भी अब मुश्किल होता है साहब! और अगर किसी दिन रिक्शे की मरम्मत करवानी पड़ी तो भूखे पेट सोने की नौबत आ जाती है।"
"लेकिन अब तो ई-रिक्शा खूब चल रहा है! उसे चलाने में मेहनत भी कम है और कमाई ज्यादा, वह क्यों नहीं ले लेते?"
"कीमत भी तो ज्यादा है ना साहब! पेट काटकर मैंने भी कुछ पैसे जोड़े हैं लेकिन ई-रिक्शा अभी सपना है।"
"तुम्हारे लायक एक काम है जिससे तुम्हारे इसी रिक्शे से ई-रिक्शा वाला सपना सच होने में थोड़ी मदद हो जाएगी! करोगे?"
"करेंगे साहब! क्यों नहीं करेंगे?"
"तनख्वाह भी मिलेगी!"
"तनख्वाह!" किराए की जगह तनख्वाह सुन रिक्शाचालक को आश्चर्य हुआ।
"हां रुपए रोज नहीं मिलेंगे और ना ही तनख्वाह में रविवार या छुट्टी के कटेंगे!"
"लेकिन साहब करना क्या होगा?"
"तुम्हें रोज सुबह दस बजे अपने रिक्शे से मुझे मेरे घर से मेरे दफ्तर पहुंचाना होगा।" पति द्वारा उस रिक्शा चालक को मौखिक नियुक्ति पत्र मिलता देख उसकी पत्नी अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पाई बीच में ही बोल पड़ी।
"लेकिन ड्राइवर का क्या?"
"मोहतरमा! उसकी तनख्वाह भी दी जाएगी क्योंकि गाड़ी और ड्राइवर हम आप के हवाले कर रहे हैं।"
"क्यों?"
"ताकि आप फिर से सुबह-सुबह गोल्फ कोर्स जाना शुरू कर सके और हम दोनों पहले की तरह रिक्शे की सीट में आराम से फिट हो सके।"
पचपन वर्ष की उम्र में भी पूरी तरह चुस्त वह अपनी पत्नी को भी सेहत के प्रति सजग होने का संकेत दे गया और कई वर्ष पहले पीछे छूट चुके अपने पसंदीदा खेल का नाम सुन उसकी पत्नी के चेहरे पर भी एक ताजी मुस्कान छा गई।
पति-पत्नी के आपसी गुफ्तगू को अल्पविराम मिला देख रिक्शा चालक ने उसके संग अपने अधूरे समझौते पर उसकी पक्की मोहर लगवाना जरूरी समझा
"साहब! अपना घर दिखा दीजिए और दफ्तर बता दीजिए।"
"यह सामने चौराहे के बगल में जो पहला बंगला देख रहे हो ना! वही मेरा घर है और यहाँ से रोज मुझे मेरे दफ्तर यानी यहां के हाईकोर्ट पहुंचाना है।" उसने स्टेशन से पहले मोड वाले चौराहे के बगल में लाइन से खड़े बंगलों में से एक बंगले की ओर इशारा किया।
बंगले को एक नजर गौर से देख रिक्शा चालक ने चौराहे से रिक्शा स्टेशन वाले हनुमान मंदिर की ओर मोड़ लिया।
"हाईकोर्ट में आप क्या करते हैं साहब?" उसकी जमीन से जुड़ी सादगी देख रिक्शा चालक जिज्ञासावश उससे पूछ बैठा।
"बस! वकीलों और गवाहों को सुनता रहता हूं!"
"समझ गया साहब! मेहनत के बदले तनख्वाह का फैसला करने के बावजूद आपने किसी के साथ अन्याय नहीं होने दिया। जरूर आप जज होंगे। है ना साहब?" वह मुस्कुराता चुप रहा किंतु पत्नी उसकी ओर देख बोल पड़ी
"अदालत से बाहर भी आप अपनी आदत से बाज नहीं आते!"
----- पुष्पा कुमारी "पुष्प

ये महाराष्ट्र कैडर के IPS मनोज शर्मा हैं.  2005 बैच के IPS मनोज की कहानी बेहद संघर्षशील है.  ये मध्यप्रदेश के मुरैना जिल...
28/10/2023

ये महाराष्ट्र कैडर के IPS मनोज शर्मा हैं. 2005 बैच के IPS मनोज की कहानी बेहद संघर्षशील है. ये मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के रहने वाले हैं. पढ़ाई के दौरान ही ये नौवीं, दसवीं और 11वीं में थर्ड डिवीजन में पास हुए थे. फिर ये 12वीं में फेल हो गए. 12वीं में फेल होने के बाद रोजी रोटी के लिए टेंपो चलाते थे. कुछ दिन बाद ये अपने घर से ग्वालियर गए. यहां पैसे और खर्च न होने के कारण मैं मंदिर के भिखारियों के पास सोते. फिर ऐसा वक्त भी आया जब इनके पास खाने तक को नहीं होता था. लेकिन यहां लाइब्रेरियन कम चपरासी का काम मिल गया. जब कवियों या विद्वानों की सभाएं होती थीं तो उनके लिए बिस्तर बिछाना और पानी पिलाने का काम करते थे.

किसी तरह संघर्ष करके दिल्ली तक आ गए. यहां आकर भी पैसे की जरूरत थी तो बड़े घरों में कुत्ते टहलाने का काम मिल गया. वहां 400 रुपये प्रति कुत्ता खर्च मिल जाता था. इन्हें श्रद्धा नामक लड़की से प्यार था. उससे शादी करने के लिए इन्होंने कुछ बड़ा करने की ठाना. इसके बाद इन्होंने तैयारी शुरू की और चौथे अटेम्प्ट में IPS बन गए. अब इन पर फ़िल्म आ रही है.

एक समय की बात है. एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था. एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को ए...
06/09/2023

एक समय की बात है. एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था. एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार स्वरूप प्रदान किया.।
राजा वह पत्थर देख बहुत प्रसन्न हुआ. उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया.।
महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर देते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं. सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुँचा देना. इसके लिए तुम्हें ५० स्वर्ण मुद्रायें दी जायेंगी.”।
५० स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार ख़ुश हो गया और महामंत्री के जाने के उपरांत प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल लिए. अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा. किंतु पत्थर जस का तस रहा. मूर्तिकार ने हथौड़े के कई वार पत्थर पर किये. किंतु पत्थर नहीं टूटा.।
पचास बार प्रयास करने के उपरांत मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, किंतु यह सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पूर्व ही उसने हाथ खींच लिया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो अब क्या टूटेगा.।
वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है. इसलिए इससे भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं बन सकती.
महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था. इसलिए उसने भगवान विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गाँव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया. पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया.
पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया. इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और ५० स्वर्ण मुद्राओं का हक़दार बनता.
सीख – मित्रों, हम भी अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं. कई बार किसी कार्य को करने के पूर्व या किसी समस्या के सामने आने पर उसका निराकरण करने के पूर्व ही हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हम प्रयास किये बिना ही हार मान लेते हैं।
#अज्ञात

अमेरिका मे जब एक कैदी को फॉसी की सजा सुनाई गई तो वहॉ के कुछ बैज्ञानिकों ने सोचा कि क्यों न इस कैदी पर कुछ प्रयोग किया जा...
05/10/2022

अमेरिका मे जब एक कैदी को फॉसी की सजा सुनाई गई तो वहॉ के कुछ बैज्ञानिकों ने सोचा कि क्यों न इस कैदी पर कुछ प्रयोग किया जाय ! तब कैदी को बताया गया कि हम तुम्हें फॉसी देकर नहीं परन्तु जहरीला कोबरा सॉप डसाकर मारेगें !
और उसके सामने बड़ा सा जहरीला सॉप ले आने के बाद कैदी की ऑखे बंद करके कुर्सी से बॉधा गया और उसको सॉप नहीं बल्कि दो सेफ्टी पिन्स चुभाई गई !
और क्या हुआ कैदी की कुछ सेकेन्ड मे ही मौत हो गई, पोस्टमार्डम के बाद पाया गया कि कैदी के शरीर मे सॉप के जहर के समान ही जहर है ।
अब ये जहर कहॉ से आया जिसने उस कैदी की जान ले ली ......वो जहर उसके खुद शरीर ने ही सदमे मे उत्पन्न किया था । हमारे हर संकल्प से पाजिटीव एवं निगेटीव एनर्जी उत्पन्न होती है और वो हमारे शरीर मे उस अनुसार hormones उत्पन्न करती है ।
75% वीमारियों का मूल कारण नकारात्मक सोंच से उत्पन्न ऊर्जा ही है ।
आज इंसान ही अपनी गलत सोंच से भस्मासुर बन खुद का विनाश कर रहा है ......
अपनी सोंच सदैव सकारात्मक रखें और खुश रहें
25 साल की उम्र तक हमें परवाह नहीँ होती कि "लोग क्या सोचेंगे ? ? "
50 साल की उम्र तक इसी डर में जीते हैं कि " लोग क्या सोचेंगे ! ! "
50 साल के बाद पता चलता है कि
" हमारे बारे में कोई सोच ही नहीँ रहा था ...!! "

इस कहानी को पढ़ने के बाद आंखो से आँसू आ जाए तो बह जाने देना साहिल समझ गया था पापा को वृद्धाश्रम में रखने की वजह से सब मुझ...
16/04/2022

इस कहानी को पढ़ने के बाद आंखो से आँसू आ जाए तो बह जाने देना
साहिल समझ गया था पापा को वृद्धाश्रम में रखने की वजह से सब मुझसे नाराज हैं। आज अपनी पत्नी को पहली बार डांटा था।
उसने बोला तुम्हारी वजह से मैं अपने पापा को वृद्ध आश्रम में भर्ती कर दिया मैं भूल गया था कि जिस बाप ने अपनी पूरी जिंदगी हमारे नाम कर दी। हमेशा अपने पलकों की छांव में बसाकर रखा उस बाप के लिए हमने क्या किया पलकों की छांव देना तो दूर हम उनके लिए एक छत भी नहीं दे सके। पूरी कहानी फोटो पर टच कर पढ़िये

साहिल बंगलोर की कंपनी में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था छोटा सा परिवार था पत्नी, एक बेटा,एक बेटी  और उसके पापा, मां बचपन म...

“अरे बुढ़िया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“ जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धो...
03/04/2022

“अरे बुढ़िया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“
जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़े व्यक्ति ने हंसते हुए कहा
“नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं“ बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा।
उस बुजुर्ग औरत का नाम था जगरानी देवी और इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमें आखिरी बेटा कुछ दिन पहले ही आजादी के लिए बलिदान हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से चंदू कहती थी और दुनिया उसे आजाद ... जी हाँ ! चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है।
हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करते हुए उनके गाँव पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद के बलिदान के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी। आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी।
अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माता उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं। लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें। कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं थी।
शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949 ) तक जारी रही।
चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था। अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दासमाहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की।
मार्च 1951 में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था।
देश के लिए बलिदान देने वाले क्रांतिकारियों के परिवारों की ऐसी ही गाथा है।

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