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1883 में दाग़ दहलवी जब पटना आए तो गर्मी बहुत थी। तंग आ कर ये शेर उन्होंने लिखा:क्या क़यामत थी शहर की गर्मीकाश गंगा में ड...
17/03/2023

1883 में दाग़ दहलवी जब पटना आए तो गर्मी बहुत थी। तंग आ कर ये शेर उन्होंने लिखा:

क्या क़यामत थी शहर की गर्मी
काश गंगा में डूबती गर्मी

फिर बारिश के इंतेज़ार में ये शेर लिखा:

कोई छींटा पड़े तो दाग़ कलकत्ता चले जाएं
अज़ीमाबाद में हम मुंतज़िर सावन के बैठे हैं।

1883 में दाग़ दहलवी जब पटना आए तो गर्मी बहुत थी। तंग आ कर ये शेर उन्होंने लिखा:क्या क़यामत थी शहर की गर्मीकाश गंगा में ड...

बग़ावत के जुर्म में अंग्रेज़ हुकूमत ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को बंगाल से निष्काषित कर दिया था तब 1916 से 1919 तक वो रां...
04/10/2022

बग़ावत के जुर्म में अंग्रेज़ हुकूमत ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को बंगाल से निष्काषित कर दिया था तब 1916 से 1919 तक वो रांची में नज़रबंद रहे, इस दौरान उन्हें रांची की जामा मस्जिद में जुमा की नमाज़ की इजाज़त दी गई।

जब वो मस्जिद पहुँचे तो लोगों ने उन्हें पहचान लिया, और ने उनसे ही जुमा का ख़ुतबा देने को कहा।

उन्होंने अपने ख़ुत्बों में अरबी की जगह उर्दू में का इस्तेमाल शुरू किया। और ख़ुतबे में कहा के जंग ए आज़ादी में हिस्सा लेना मुसलमानों का दीनी फ़रीज़ा है, और हिंदू मुस्लिम इत्तिहाद पर ज़ोर दिया। उनके ख़ुत्बों के प्रभाव से रांची के मुसलमानों ने आज़ादी की लड़ाई में पुरे जोशो जज़्बे के साथ भाग लेना शुरू कर दिया।

इसके असर से रांची के हिन्दुओं ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से कहा के वो भी उनका ख़िताब सुनेंगे, चूँकि अंग्रेज़ सरकार ने मौलाना आज़ाद के सार्वजनिक भाषण पर पाबंदी लगा रखी थी इसलिए मस्जिद में ही एक कमरा बनाया गया जहाँ शहर के हिन्दू जुमा का ख़ुतबा सुनने के लिए आने लगे।

शायद ये भारतीय इतिहास की पहली घटना रही होगी जब हिन्दू भी जुमा का ख़ुतबा सुनने मस्जिद में आते रहे हों। उन्ही दिनों 1919 में जब दिल्ली के मशहूर हिन्दू धर्मगुरु स्वामी श्रद्धानंद ने जामा मस्जिद में आ कर ख़िताब किया तो मुसलमानों में से कुछ लोगों ने ऐतराज़ किया। तब मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने एक किताब लिखी “जामीउस शवाहिद” (कलेक्शन ऑफ़ प्रूफ़) और फिर ये साबित किया के इस्लाम में गैरमुस्लिमों के मस्जिद में आने पर कोई पाबन्दी नहीं है।

हिन्दू मुस्लिम के बीच की दूरियों को ख़त्म करने की उनकी कोशिशें भारतीय इतिहास का अभिन्न हिस्सा है। अपने पुराने कारनामों के बारे में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कहते हैं -

“ ये अम्र वाक़ेया है के “अलहिलाल” ने तीन साल के अंदर मुसलमानान ए हिन्द की मज़हबी और सियासी हालत में बिलकुल एक नई हरकत पैदा कर दी।

पहले वो अपने हिन्दू भाइयों की पॉलिटिकल सरगर्मीयों से न सिर्फ़ अलग थे बल्कि उसकी मुख़ालफ़त के लिए ब्युरोक्रेसी के हाथ में एक हथियार की तरह काम देते थे। गवर्नमेंट की तफ़रका अंदाज़ पालिसी ने उन्हें इस फ़रेब में मुबतला कर रखा था के मुल्क में हिन्दूओं की तादाद बहुत ज़्यादा है, अगर हिंदुस्तान आज़ाद हो गया तो हिंदुओं की गवर्नमेंट क़ायम हो जायेगी, मगर “अलहिलाल” ने मुसलमानों को तादाद की जगह ईमान पर ऐतमाद करने की तलक़ीन की और बेखौफ़ होकर हिंदुओं के साथ मिल जाने की दावत दी उसी से वो तब्दीलियां रु-नुमा हुईं जिसका नतीजा आज मुत्तहिदा तहरीके ख़िलाफ़त और स्वराज है।

ब्यूरोक्रेसी एक ऐसी तहरीक को ज़्यादा अरसा तक बर्दाश्त नहीं कर सकती थी इसलिए पहले “अलहिलाल” की ज़मानत ज़ब्त की गयी फिर जब “अलबिलाग” के नाम से दोबारा जारी किया गया तो 1916 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ने मुझे चार साल के लिए नज़र बंद कर दिया।”

नज़रबंदी के दौरान ही मौलाना आज़ाद ने 15 अगस्त 1917 को राँची में अंजुमन इस्लामिया की स्थापना की और उस के कुछ दिनों बाद रांची में शिक्षा का दीप जलाने के लिए मदरसा इस्लामिया की बुनियाद डाली। और इस संस्थान को खड़ा करने में राँची के मुसलमान के साथ हिंदुओं का भी एक बड़ा योगदान था।

बग़ावत के जुर्म में अंग्रेज़ हुकूमत ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को बंगाल से निष्काषित कर दिया था तब 1916 से 1919 तक वो रांच....

02/08/2022
1920 में असहयोग और ख़िलाफ़त आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। और देश की आज़ादी की ख़ातिर वकालत को हमेशा के लिए छोड़ दिय...
07/04/2022

1920 में असहयोग और ख़िलाफ़त आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। और देश की आज़ादी की ख़ातिर वकालत को हमेशा के लिए छोड़ दिया, और आंदोलन में कूद पड़े। और 1921 में मौलाना मज़हरूल हक़ के साथ मिल कर बिहार विद्यापीठ की स्थापना में सहयोग दिया। जहां मज़हररुल हक़ बिहार विद्यापीठ के चांसलर बने; वहीं ब्रजकिशोर प्रसाद ने वाइस चांसलर का पद सम्भाला। इसके साथ वो काशी विश्वविद्यालय और पटना यूनिवर्सिटी के सिनेट के सदस्य भी रहे। https://www.heritagetimes.in/brajkishore-prasad-siwan-1877-1946/

ब्रजकिशोर प्रसाद का जन्म 14 जनवरी 1877 को सारण के श्रीनगर गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ

यूँ तो हम सभी लोग जानते हैं की मई 1857 में मेरठ से अंग्रेज़ों के विरुद्ध जंग का एलान हुआ। पर उसकी तय्यारी पहले से शुरू ह...
07/02/2022

यूँ तो हम सभी लोग जानते हैं की मई 1857 में मेरठ से अंग्रेज़ों के विरुद्ध जंग का एलान हुआ। पर उसकी तय्यारी पहले से शुरू हो चुकी थी। उसी संदर्भ में एक ख़त बाबू कुंवर सिंह ने कैथी भाषा में अपने साथी जहानाबाद के क़ाज़ी दौलतपुर निवासी क़ाज़ी ज़ुल्फ़ीक़ार अली को अगस्त 1856 को लिखा है, जिसमें साफ़ तौर पर मेरठ और वहाँ के हालात का ज़िक्र किया जा रहा। यानी क्रांति की शुरुआत से पहले ही उसकी चर्चा हो रही थी।

वैसे 1845 में भी बाबू कुंवर सिंह का नाम पटना में हुवे एक असफ़ल विद्रोह में कुछ मुस्लिम ज़मींदारों के साथ आ चुका था।

https://youtu.be/lMycfzp_k_Q

Kunwar Singh was a leader during the Indian Rebellion of 1857. He belonged to a family of the Ujjainiya clan of the Parmar Rajputs of Jagdispur, currently a ...

29/01/2022

On 30 January, 1948, Mahatma Gandhi was killed by Nathuram Godse in Delhi. His assassination just after the deadly Hindu-Muslim riots in the subcontinent sen...

18/01/2022

मौलाना शाह मुहम्मद उस्मानी का जन्म 1915 में बिहार के गया ज़िला के सिमला में जिस समय हुआ, वो ख़िलाफ़त

क्या किसी तवायफ़ की मौत शहर के लोगों को मर्माहत कर सकती है ? आज यह सोचते हुए विस्मय होता है। लेकिन यह सच है।1902 में इला...
14/01/2022

क्या किसी तवायफ़ की मौत शहर के लोगों को मर्माहत कर सकती है ? आज यह सोचते हुए विस्मय होता है। लेकिन यह सच है।1902 में इलाहाबाद से पटना आ बसी अल्लाजिलाई की मौत से शहर के रसिक और कलाप्रेमी बहुत मर्माहत हुए थे।

अल्लाजिलाई का बहुत कम उम्र में ही निधन हो गया था। वह 17 वर्ष की उम्र में इलाहाबाद से पटना आई। 20 की होते-होते वह पटना पर छा गई थी और 24 वर्ष की उम्र में उसका निधन हो गया। वह हुस्न और मौसिकी दोनों की मलिका थी। वह ठुमरी और दादरा की बेहतरीन अदाकारा थी।

https://www.heritagetimes.in/allah-jillai-bai-of-azimabad/

बिहार के पटना के पास मौजूद सबलपुर के इस क़ब्र के बारे में वहाँ के लोग भी बहुत कम जानते

1912 से पहले बिहार बंगाल का हिस्सा था, इस कारण बिहार के निवासी न सिर्फ़ अंग्रेज़ से परेशान थे, बल्कि बंगाली भी उन्हें आग...
30/12/2021

1912 से पहले बिहार बंगाल का हिस्सा था, इस कारण बिहार के निवासी न सिर्फ़ अंग्रेज़ से परेशान थे, बल्कि बंगाली भी उन्हें आगे बढ़ने नही देते थे। बिहार के इलाक़े में कोई भी सरकारी मेडिकल कॉलेज और एंजिनीरिंग कॉलेज नही, कोई भी बिहारी कौंसिल का मेम्बर नही था, हाई कोर्ट में जज नही था। तब बिहार के लोगों ने इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी शुरू की और और इसमें जिस शख़्स का पहला नाम आता है, वो हैं जस्टिस सैयद मुहम्मद शरफ़ुद्दीन, जो किसी बड़े पद पर पहुँचने वाले पहले बिहारी थे।

https://heritagetimes.in/justice-syed-sharfuddin-1856-1921/

1912 से पहले बिहार बंगाल का हिस्सा था, इस कारण बिहार के निवासी न सिर्फ़ अंग्रेज़ से परेशान थे,

हिन्दी के निर्माण में बिहार बन्धु प्रेस का योगदान   https://hindi.heritagetimes.in/hindi-ke-nirman-me-bihar-bandhu-press...
08/11/2021

हिन्दी के निर्माण में बिहार बन्धु प्रेस का योगदान

https://hindi.heritagetimes.in/hindi-ke-nirman-me-bihar-bandhu-press-ka-yogdan/

Dr Raju Ranjan Prasad सन् 1846 ईस्वी के पूर्व बिहार में कहीं भी मुद्रणालय की नींव नहीं पड़ी थी। बैप्टिस्ट

पटना यूनिवर्सिटी से पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद डॉक्टर शकील उर रहमान कश्मीर यूनिवर्सिटी में उर्दू के प्रोफ़ेसर बने, और कुछ...
21/10/2021

पटना यूनिवर्सिटी से पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद डॉक्टर शकील उर रहमान कश्मीर यूनिवर्सिटी में उर्दू के प्रोफ़ेसर बने, और कुछ दिन बाद तरक़्क़ी पा कर उर्दू डिपार्टमेंट के Hod बने। उसके बाद आपको बिहार यूनिवर्सिटी का VC बना कर 1978 में मुज़फ़्फ़रपुर भेजा गया, 1980 में इस पद से इस्तीफ़ा दे कर कश्मीर यूनिवर्सिटी के VC का पद संभला। 1987 तक इस पद में रहने के बाद मिथिला यूनिवर्सिटी के VC का पद इसी साल दिसंबर में पाया, और दरभंगा पहुँचे। इसी यूनिवर्सिटी में बिहार के उस समय के शिक्षा मंत्री डॉक्टर नागेंद्र झा प्रोफ़ेसर थे, जिनकी बिहार की सियासत में तूती बोलती थी, से उनके पंगा ले लिया। डॉक्टर शकील उर रहमान ने VC की हैसयत से शिक्षा मंत्री डॉक्टर नागेंद्र झा से प्रोफ़ेसर की कुर्सी छीन ली के वो तो कॉलेज में पढ़ाने जाते ही नही हैं, वहीं बिहार के शिक्षा मंत्री ने भी अपना पूरा ज़ोर लगा कर मिथिला यूनिवर्सिटी के VC को वापस कश्मीर जाने पर मजबूर कर दिया। 1988 तक ही डॉक्टर शकील उर रहमान इस यूनिवर्सिटी के VC रहे। इस तरह मामला काफ़ी हाई प्रोफ़ाइल हो गया। मामला इतना बढ़ गया के डॉक्टर शकील उर रहमान ने 1989 में जनता पार्टी के टिकट से दरभंगा लोक सभा हल्क़े से कांग्रेस के डॉक्टर नागेंद्र झा के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ लिया, और 356894 वोट ला कर जीत भी गए, डॉक्टर नागेंद्र झा को 278437 वोट मिला। इसके बाद डॉक्टर शकील उर रहमान 21 November 1990 से 20 February 1991 तक चंद्रशेखर की सरकार में भारत में Union Minister for Health and Family Welfare रहे। दरभंगा से लोकसभा का चुनाव जीतने वाले वो पहले मुसलमान थे। इस चुनाव में डॉक्टर शकील उर रहमान को यूनिवर्सिटी के छात्रों और उनके घर वालों का भरपूर सहयोग मिला, या कहिए उन्होंने ही चंदा कर चुनाव लड़वाया और जीताया।

https://heritagetimes.in/from-reforming-mithila-university-to-defeating-nagendra-jha-dr-shakeelur-rehman-led-fight-against-corruption-and-became-first-muslim-mp-from-darbhanga/

Being a literary critic, educational administrator and a politician- is a combination unique of its kind and rarely seen

18/10/2021
दंगो में अपना सब कुछ लुटा चुका एक मुसलमान जब 11 साल बाद पहुँचा अपने गाँवhttps://youtu.be/4NsJQt5j9Uw
15/10/2021

दंगो में अपना सब कुछ लुटा चुका एक मुसलमान जब 11 साल बाद पहुँचा अपने गाँव

https://youtu.be/4NsJQt5j9Uw

Script : Md Umar Ashraf 's Studio Voice : Farhan Ali Naqvi

29/09/2021

इन दिनों पटना के गांधी मैदान के उत्तर ए.एन. सिन्हा इंस्टिट्यूट चर्चे में है, क्यूँकि अब तक बहुत

01/09/2021

In July, 1937, ‘United Press’ reported that Sri Krishna Sinha, Prime Minister of Bihar Province, had decided to revoke the

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