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31/10/2023

3 बहनो की लालची भाभी _ Kahaniya in Hindi _ Stories _ Hindi Stories _ Mazedar Kahani _ Funny _ Comedy(360P).mp4

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25/01/2023

Veerapan Studios presents the Full Video of “ REEL INSTA PE BANUNGI ". Along with singing the song, Nandani Singh, Sanu Doi while the video is directed by ...

02/11/2022

Nenital

27/10/2022
20/10/2022

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20/10/2022

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19/10/2022

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मेरी जिंदगी में यह टाइम कब आएगा मैं किसी को इस तरीके से देखो उसके लिए व्रत रखा हूं अगर मेरे लिए कोई ऐसा है तो कमेंट करें
16/10/2022

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अपने फोन को ऊपर मुझे मिला कर देखें मेरी फोटो मिलेगी और अगर अच्छी लगे तो अपने सभी दोस्तों को यह दिखाएं यह कैसे दिखाएंगे आ...
15/10/2022

अपने फोन को ऊपर मुझे मिला कर देखें मेरी फोटो मिलेगी और अगर अच्छी लगे तो अपने सभी दोस्तों को यह दिखाएं यह कैसे दिखाएंगे आप सब जानते हैं

11/10/2022

चौरासी मंदिर भरमौर {Chaurasi Temple Bharmour}

भगवान शिव की कथा- लोककथाओं के अनुसार, एक समय था जब भरमौर को ब्रह्मपुरा के नाम से जाना जाता था और देवी ब्राह्मणी देवी का निवास स्थान के तौर पर जाना जाता था। किंवदंती के अनुसार, एक बार देवी किसी काम के चलते यहां से चली गई तभी भगवान शिव, आदियोगी ने अन्य 84 योगियों की टुकड़ी के साथ मणिमहेश कैलाश की ओर जा रहे थे। अपनी यात्रा के दौरान उनकी नजर इस स्थान पर पड़ी तो उन लोगों ने थोड़ा आराम करने का फैसला किया।

जब देवी वापस आईं, तो उन्होंने अपनी इच्छा के विरूद्ध अपने निवास स्थान पर इन संतों को देखकर काफी उग्र हो गई और गुस्से में सभी योगियों और सिद्धों को यह स्थान छोड़ने के लिए कहा। हालांकि भगवान शिव ने उनसे एक रात के लिए रहने के लिए देवी से अनुरोध किया और आश्वासन दिया कि वे सभी अगली सुबह चले जाएंगे। लेकिन किसी अज्ञात कारण से, भगवान शिव अगले दिन कैलाश के लिए अकेले ही जाना पड़ा उनके इस असमर्थ होने के चलते खुद को 84 शिवलिंगों में बदल दिया।

राजा साहिल वर्मन की कथा- ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 1,400 साल पहले भरमौर के राजा साहिल वर्मन ने करवाया था। उन्होंने 84 योगियों और सिद्धों का सम्मान करते हुए इस मंदिर का निर्माण किया था, जो विशेष रूप से कुरुक्षेत्र से आए थे और मणिमहेश झील व मणिमहेश कैलाश पर्वत दर्शन के लिए जा रहे थे। रास्ते में वे भरमौर में रूके और वहां साधना की। कहा जाता है कि इन आध्यात्मिक योगियों ने राजा को दस पुत्रों और एक पुत्री का वरदान दिया था, क्योंकि राजा के पास कोई वारिस नहीं था। वरदान के फलस्वरूप राजा को जल्द ही 10 पुत्रों और एक पुत्री जिसका नाम चंपावती पड़ा। चंबा शहर उनकी पुत्री चंपावती के नाम पर रखा गया है

भरमौर स्थित चैरासी मंदिर इस मंदिर की मान्यता है की यह एक मात्र मौत के देवता का अकेला मंदिर है। इस मंदिर में माना जाता है इंसान अगर जिंदा रहते हुए नही आया तो उसे मौत के बाद उसके आत्मा को यहां आना पड़ता है। यहां आने के बाद उसके पाप और पुन्य दोनों का फैसला कर के उसे स्वर्ग और नर्क में भेजा जाता है।

इस मंदिर में आने वाली आत्मा को धर्मराज के पास जाने से पहले एक और देवता के पास जाना पड़ता है जिन्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना जाता है।इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है।चंबा जिला के जनजातीय भरमौर स्थित चौरासी मंदिर समूह में संसार के इकलौते धर्मराज महाराज या मौत के देवता का मंदिर है। चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में इस मंदिर की सीढिय़ों का जीर्णोद्धार किया था।मान्यता है कि धर्मराज महाराज के इस मंदिर में मरने के बाद हर किसी को जाना ही पड़ता है चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक।

चित्रगुप्त जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है तब धर्मराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़ कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मों का पूरा लेखा-जोखा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को धर्मराज की कचहरी कहा जाता है। गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वार का उल्लेख किया गया है।

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि सदियों पूर्व चौरासी मंदिर समूह का यह मंदिर झाडिय़ों से घिरा था और दिन के समय भी यहां कोई व्यक्ति आने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। मंदिर के ठीक सामने चित्रगुप्त की कचहरी है और यहां पर आत्मा के उल्टे पांव भी दर्शाए गए हैं। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां पर अढ़ाई पौढ़ी भी है। मान्यता है कि अप्राकृतिक मौत होने पर यहां पर प‍िंड दान कि आत्मा को अपना फैसला सुनाते हैं। मान्यता है इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नरक में ले जाते हैं। गरूड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वारों का उल्लेख किया गया है।

भरमौर में लक्षना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश में गुप्त युग के बाद का हिंदू मंदिर है जो दुर्गा को उनके महिषासुर-मर्दिनी रूप में समर्पित है । यह 7वीं शताब्दी के उत्तरार्ध का है, और भारत के सबसे पुराने जीवित लकड़ी के मंदिरों में से एक है,मंदिर भरमौर की पूर्व राजधानी की सबसे पुरानी जीवित संरचना है, जिसे ऐतिहासिक ग्रंथों में भरमौर, बरमावर, ब्रह्मौर या ब्रह्मपुरा भी कहा जाता है।

सदियों से इसकी छत और दीवारों की मरम्मत की गई है और यह एक झोपड़ी की तरह दिखता है, लेकिन हिमाचल हिंदू समुदाय ने इसके जटिल नक्काशीदार लकड़ी के प्रवेश द्वार, आंतरिक और छत को संरक्षित किया है जो गुप्त गुप्त शैली और युग की उच्च कला को दर्शाता है। . इसके गर्भगृह में पीतल धातु की देवी की मूर्ति के नीचे डिजाइन और एक गुप्त लिपि शिलालेख इसकी प्राचीनता की पुष्टि करता है।लकड़ी की नक्काशी में शैववाद और वैष्णववाद के रूपांकनों और विषयों को शामिल किया गया है।

09/10/2022

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राधा अष्टमी कैलाश मणिमहेश 2022
भरमौर के एक छोर पर बसे इस गांव में समय के साथ काफी बदलाव आया है लेकिन गांव में बने लकड़ी तथा स्लेटयुक्त मकान आज भी अपनी प्राचीनता को उजागर करते हैं।
इस गांव को शिवजी के चेलों का गांव क्यों कहा जाता है, इसी के जवाब के लिए जब गांव का दौरा कर वहां के लोगों के साथ बातचीत की तो पता चला कि भरमौर अर्थात ब्रह्मपुर की स्थापना के दौरान ही संचुई गांव में कुछ लोगों का कुटुम्ब रहता था। एक दिन भगवान भोलेनाथ ने एक गद्दी का रूप धारण कर गांव में एक घर में आटा और नमक मांगा।

कहा जाता है कि भोलेनाथ जिस घर में आटा और नमक मांगने गए वास्तव में उस घर में नमक और आटा नहीं था। घर के अंदर से निकली एक बूढ़ी औरत ने गद्दी के भेष में आए भोले शंकर से कहा कि बाबा हमारे पास आटा और नमक नहीं है और आप किसी दूसरे घर से आटा-नमक मांग लो। यह सुनकर भोलेनाथ ने कहा माई क्यों झूठ बोल रही हो? आपकी रसोई में रखे लकड़ी के संदूक में आटा और बोरी में नमक रखा तो है। गद्दी बाबा की बात सुनकर जब बूढ़ी औरत घर के अंदर गई तो वास्तव में लकड़ी का संदूक आटे से भरा पड़ा था। बूढ़ी औरत ने एकदम झोले में आटा और नामक डाल कर गद्दी को दे दिया। गद्दी ने बूढ़ी औरत से कहा कि वह भेड़-बकरियां लेकर हडसर की ओर जा रहा है। अगर तुम अपने बेटे को हडसर तक उसके साथ भेज दो तो वह इसे इसकी एवज में एक भेड़ दे देगा। यह बात सुनकर बूढ़ी औरत ने अपने बेटे त्रिलोचन को जो शादीशुदा था, गद्दी के साथ भेज दिया।

हडसर पहुंचने पर भोले नाथ ने त्रिलोचन से कहा कि बेटा मेरी कुछ भेड़ें धनछो की ओर चढ़ गई हैं अगर तुम धनछो तक उसके साथ चल पड़ते हो तो मैं तुम्हें एक और भेड़ दे दूंगा। गद्दी के रूप में भोलेनाथ की इस बात पर त्रिलोचन राजी हो गया और वह उनके साथ चल पड़ा। ऐसा करते-करते दोनों भेड़ों के काफिले के साथ मणिमहेश की डल झील के पास पहुंच गए और वहां पर देखते ही देखते भोलनाथ झील में कूद गए। गद्दी को झील में कूदते देख त्रिलोचन भी झील में कूद पड़े। झील के अंदर त्रिलोचन एक मकानरूपी जगह पर पहुंच गए और भोले नाथ ने उससे पूछा कि तुम क्या काम जानते हो।

त्रिलोचन ने कहा कि वह दर्जी का काम बखूबी जानता है, इस पर उन्होंने उसे वहां पर कुछ चोले सिलने के लिए दिए। करीब 5-6 महीने तक त्रिलोचन भगवान भोलेनाथ के साथ उस झील में रहे। अंतत: भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने दर्शन दिए और कहा कि आज से आप त्रिलोचन महादेव कहलाओगे और आपके कुल के लोग मेरे चेले।

उन्होंने वरदान दिया कि आपके कुल या गांव का कोई भी व्यक्ति मेरी झील में डूबेगा नहीं और उनके मुख से निकली हर बात सच होगी। इसके बाद भोलेनाथ ने त्रिलोचन से कहा कि वह उसे तत्काल उसके घर पहुंचा देंगे, लेकिन इस बात का जिक्र कभी भी किसी के साथ मत करना। यहां तक अपनी पत्नी या मां के साथ भी नहीं। अगर तुमने यह बात किसी को बताई तो तुम इस मृत्युलोक में नहीं रह पाओगे।

इसी दौरान भोलेनाथ ने उसे कुछ चोले भी साथ ले जाने को कहा। भोले नाथ ने उसे आंख बंद करने के लिए कहा और आंख खुलने पर उसने खुद को भरमाणी माता के मंदिर के पास एक खुले खेत में पाया। इसके बाद त्रिलोचन बांसुरी बजाते हुए घर की ओर लौटने लगे। वहीं, 5-6 महीने तक बेटे के घर न लौटने पर परिवार वालों ने उसे मृत समझ लिया था लेकिन इतने दिनों के बाद बांसुरी की आवाज सुनकर मां ने अपनी बहू से कहा कि कोई व्यक्ति उसके बेटे की तरह बांसुरी बजा रहा है। गांव के ही किसी व्यक्ति ने घर में यह सूचना दे दी कि त्रिलोचन जिंदा है और घर लौट आया है। बेटे को घर आते देख मां फूली नहीं समाई और पत्नी की आंखों में खुशी के आंसू निकल पड़े। इसके बाद त्रिलोचन अपने परिवार के साथ रहने लगे।

कहा जाता है कि भोले नाथ ने उसे जो सिले हुए गद्दी चोले दिए थे वे सोने-चांदी के बन गए थे। एक दिन उनकी पत्नी इस जिद्द पर अड़ गई कि इतने दिनों तक यह कहां रहे, इसके बारे में बताएं और यह सोना-चांदी कहां से आया? पत्नी के बार-बार जिद्द करने पर त्रिलोचन ने कहा कि अगर वह उसे सच्चाई बता देगा तो वह इस संसार में नहीं रह पाएंगे। इसके बावजूद पत्नी नहीं मानी और अंतत: त्रिलोचन ने कहा कि वह ज्येष्ठ रविवार को सच्चाई बता देंगे। ज्येष्ठ रविवार को उन्होंने जैसे ही पत्नी को सच्चाई बयां कि तो उनके घर की छट फट गई और त्रिलोचन उससे निकल कर सीधे ग्रीमां गांव में गिरे। जहां उन्होंने एक घर में जाकर पानी मांगा लेकिन वहां उन्हें पानी देने से मना कर दिया गया। कुछ देर बाद त्रिलोचन गांव लाहल में पहुंच गए और एक घर में जाकर फिर पानी मांगा। यहां एक बूढ़ी औरत ने उसे दही का लोटा दिया, दही पीने के बाद भी प्यास न बुझने पर बूढ़ी औरत ने अपनी बहू को नीचे दरिया से पानी लाने भेज दिया। कुछ देर बाद बहू के हाथ से पानी पीकर त्रिलोचन की प्यास शांत हुई। इस दौरान त्रिलोचन ने महिला का सात दाने माह यानी उड़द के लाने को कहा। त्रिलोचन ने मंत्र मारकर वे दाने इर्द-गिर्द फैंके और वहां पर सात झरने फूट पड़े।

लोगों द्वारा इस स्थान पर हर साल देसी घी की दाल और चपातियों का लंगर लगाया जाता है। इसके बाद खड़ामुख पहुंचकर त्रिलोचन रावी नदी में कूद गए और बहते हुए दुनाली के पास दो पत्थरों के बीच फंस गए। उस रात नजदीक के एक गांव में एक व्यक्ति को स्वप्न में आकर त्रिलोचन ने कहा कि मैं दो चट्टानों के बीच फंसा हूं मुझे वहां से निकाल लाओ। अगले दिन जब वह व्यक्ति उस स्थान पर पहुंचा तो उसे पत्थररूपी बन गए त्रिलोचन नजर नहीं आए। उसी रात उसे पुन: स्वप्न आया और त्रिलोचन ने उसे पत्थरनुमा होने की बात बताई। अगली सुबह उस व्यक्ति ने त्रिलोचन को वहां से निकाला और अपने घर की ओर ले जाने लगा, लेकिन जैसे ही उसने नदी के किनारे त्रिलोचन की शिला रखी तो त्रिलोचन वहीं पर स्थापित हो गए। इसके बाद लोगों ने श्रद्धा से नदी की बगल में त्रिलोचन महादेव का मंदिर भी बनवाया।

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