12/04/2024
*पूर्व सीनियर ब्यूरोक्रेटस ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में चुनाव से पहले समान अवसर की कमी पर चिंता जताई*
*नई दिल्ली.* ‘कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वावधान में 87 पूर्व सिविल सेवकों के एक समूह ने गुरुवार (11 अप्रैल) को *भारत के निर्वाचन आयोग* को पत्र लिखकर 2024 के लोकसभा चुनाव में ‘ *समान अवसर की कमी’* को लेकर चिंता जताई है.रिपोर्ट के मुताबिक, समूह ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के अन्य *नेताओं की गिरफ्तारी, कांग्रेस के खिलाफ आयकर विभाग की कार्रवाई,* टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा जैसे अन्य विपक्षी नेताओं के घरों और कार्यालयों पर *छापे और तलाशी* आदि का भी हवाला दिया है.
समूह ने कहा है कि वह इस बात से *‘बेहद चिंतित’* है कि *चुनाव आयोग* इस समय भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा *विपक्ष के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल को लेकर कार्रवाई नहीं कर रही है.* पत्र में *प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथित आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के खिलाफ कार्रवाई में आयोग की चुप्पी* का भी उल्लेख किया गया है.
*उनका पत्र इस प्रकार है:*
प्रिय *श्री राजीव कुमार/श्री ज्ञानेश कुमार/डॉ. एसएस संधू,*
हम पूर्व सिविल सेवकों का एक समूह हैं, जिन्होंने विभिन्न पदों पर केंद्र और राज्य सरकारों में सेवाएं दी हैं. *हमारा किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है* , लेकिन हम भारत के संविधान में निहित आदर्शों के प्रति दृढ़ता से प्रतिबद्ध हैं.
11 मार्च 2024 को चुनाव पर्यवेक्षकों के रूप में नामित अधिकारियों के साथ भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ने सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए *समान अवसर सुनिश्चित करने* और *चुनावों को डर और प्रलोभन से मुक्त रखने* के महत्व पर जोर दिया था. उनके इस कथन के ठीक दस दिन बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली आबकारी नीति मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के कठोर प्रावधानों के तहत गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें जमानत हासिल करना बेहद मुश्किल है.
हम आला पदों पर भ्रष्टाचार की जांच करने और दोषियों को दंडित करने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकार पर सवाल नहीं उठा रहे हैं. हम इस गिरफ्तारी के समय को लेकर चिंतित हैं. आबकारी नीति मामले की जांच तेरह महीने से अधिक समय से चल रही है और आम आदमी पार्टी के दो प्रमुख नेता महीनों से हिरासत में हैं. संजय सिंह को हाल ही में जमानत पर रिहा किया गया है, जबकि पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अभी भी जेल में हिरासत में हैं.
भले ही यह जांच एजेंसी का मामला हो कि केजरीवाल उनके सामने पेश होने के समन से बच रहे थे, लेकिन जरूरत पड़ने पर उनके आवास पर उनसे पूछताछ करने से उन्हें कोई नहीं रोक सका. एक वरिष्ठ विपक्षी राजनीतिक नेता की ऐसे समय में गिरफ्तारी जब लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी और आदर्श आचार संहिता लागू थी, इसमें हमें *‘जानबूझकर की गई कार्रवाई’ की बू आ रही है.*
जैसा कि आज कई कानूनी विशेषज्ञ यह कहते नहीं थकते कि कानून को अपना काम करना चाहिए. लेकिन अगर 4 जून 2024 को चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने के बाद यह कार्रवाई शुरू की गई होती, तो आसमान नहीं गिर जाता! कोई भी इस मामले में यह समझ सकता है किसी नागरिक के जीवन के अधिकार से संबंधित आपराधिक जांच में तत्काल गिरफ्तारी की गारंटी दी जा सकती है. लेकिन ये एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति के मामले में लागू नहीं होती, जिसके भागने का जोखिम शायद ही हो और जिसके मामले में इतने महीनों तक चली जांच के बाद, सबूतों के साथ छेड़छाड़ और गवाहों को प्रभावित करने की संभावना काफी कम हो.
सीएम केजरीवाल की गिरफ्तारी कोई अलग उदाहरण नहीं है. ये *आम चुनाव के ठीक पहले विपक्षी दलों और नेताओं के उत्पीड़न का एक और परेशान करने वाला पैटर्न लगता है,* जो एजेंसियों की मंशा पर सवाल उठाता है.
यह हैरान करने वाली बात है कि आयकर विभाग को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दलों के पुराने आकलन को फिर से क्यों खोलना पड़ा, वह भी आम चुनाव से ठीक पहले. इस वक्त लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार, तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा से संबंधित परिसरों की तलाशी लेना और अन्य विपक्षी उम्मीदवारों को नोटिस जारी करना फिर से स्पष्टीकरण की अवहेलना करता है.
जांच पूरी करने और आरोप पत्र दाखिल करने में केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के सुस्त रिकॉर्ड को देखते हुए इन मामलों को चुनिंदा तरीके से आगे बढ़ाने में अनुचित उत्साह इस संदेह को बढ़ाता है कि इसकी प्रेरणा केवल न्याय लागू करने की इच्छा से परे है.
इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद राजनीतिक पदाधिकारियों की गिरफ्तारी और राजनीतिक दलों का उत्पीड़न न केवल व्यक्तियों को अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने के भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत उनके *मौलिक अधिकार* के प्रयोग से वंचित करता है, बल्कि राजनीतिक दलों का ध्यान भी भटकाता है, जो अपने चुनाव अभियान के संचालन के प्राथमिक कार्य पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
पिछले महीने की घटनाओं के पैटर्न में ईसीआई द्वारा जनता के बढ़ते संदेह को दबाने के लिए कड़ी कार्रवाई की मांग की गई है, लेकिन ईसीआई चुप है जबकि *विपक्षी दलों को चुनाव प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने की स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए प्रतिशोध की राजनीति की जा रही है.*
यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह जारी न रहे, हमारा विचार है कि जिस तरह राज्यों में पूरी सरकारी मशीनरी ईसीआई के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के तहत काम करती है, उसी तरह केंद्र सरकार के स्तर पर मशीनरी की गतिविधियां, विशेष रूप से कानून प्रवर्तन एजेंसियां, भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी शक्तियों के प्रयोग के माध्यम से ईसीआई द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए. अन्यथा, यदि राज्य सरकार की कानून प्रवर्तन एजेंसियां केंद्रीय एजेंसियों के समान दृष्टिकोण अपनाती हैं, तो परिणामी अराजकता पूरी चुनावी प्रक्रिया को गड़बड़ा देगी.
हम इस मामले में तत्काल कार्रवाई करने में ईसीआई की विफलता से बहुत परेशान हैं. मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि प्रमुख विपक्षी दलों के सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल 21 मार्च 2024 को सीईसी और चुनाव आयुक्तों से मिला था. हालांकि, इस तरह की मनमानी कार्रवाइयों से सख्ती से निपटना तो दूर चुनाव आयोग ने इस संबंध में सावधानी को लेकर एक नोट भी जारी नहीं किया है.
हमारा समूह 2017 से चुनाव आयोग के साथ बातचीत कर रहा है और आपके पूर्ववर्तियों को कई पत्र भेजे हैं. पिछले पांच वर्षों में आयोग की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. हमने देखा है कि चुनाव आयोग चुनावी बॉन्ड विरोध में अपने पहले के रुख से पीछे हट गया है. आयोग ने ईवीएम की अखंडता और वोटों की रिकॉर्डिंग में सटीकता सुनिश्चित करने के लिए वीवीपैट का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की आवश्यकता के बारे में विचारशील जनता और राजनीतिक दलों के मन में संदेह को दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है, यह मामला अब विचाराधीन है. *न ही आयोग विशेष रूप से सत्ता में पार्टी द्वारा इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए आदर्श आचार संहिता को लागू करने में प्रभावी रहा है.*
हमारे समूह ने 2019 के लोकसभा चुनावों में ऐसे कई उदाहरण बताए थे, लेकिन हल्की-फुल्की कार्रवाई के अलावा ईसीआई बार-बार उल्लंघन करने वालों पर अपना आदेश लागू करने में विफल रहा. *मौजूदा चुनावों में भी प्रधानमंत्री जैसे व्यक्ति द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर ईसीआई द्वारा कार्रवाई नहीं की गई है,* भले ही इसे उसके संज्ञान में लाया गया हो.
भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत प्रदत्त विशाल शक्तियों के बावजूद चुनाव आयोग ने हाल के वर्षों में, विशेष रूप से *स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन* को प्रभावित करने वाले कार्यों से निपटने में एक अजीब शर्म दिखा रहा है. हम आयोग से आग्रह करते हैं कि वह पिछले सात दशकों में ईसीआई का नेतृत्व करने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा दी गई शानदार विरासत’ को बनाए रखे.
आपसे उम्मीद की जाती है कि आप दुनिया की सबसे बड़ी चुनावी प्रक्रिया की प्रतिष्ठा और पवित्रता बनाए रखने के लिए दृढ़ता और दृढ़ संकल्प के साथ कार्य करेंगे.
*सत्यमेव जयते:*
गौरतलब है कि इन हस्ताक्षरकर्ताओं में पूर्व आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और आईएफओएस अधिकारी शामिल हैं. इसमें प्रमुख नाम पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन, यूके में पूर्व उच्चायुक्त शिव शंकर मुखर्जी, पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक जूलियो रिबेरो, पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार विजयलता रेड्डी, पूर्व स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव, कश्मीर पर पूर्व ओएसडी, पीएमओ, एएस दुलत, दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह आदी के हैं.