Harry Negi

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29/11/2025

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I JUST NEED TO GO CAMPING."
"There's no wi-fi in the mountains, but you'll find no better connection."

Cheers to 365 days of togetherness.""Wishing you a lifetime of love, laughter, and togetherness.Happy 1st wedding annive...
22/11/2025

Cheers to 365 days of togetherness."

"Wishing you a lifetime of love, laughter, and togetherness.

Happy 1st wedding anniversary!"

https://youtu.be/W8W0JJnupBUशिमला स्थित तारा देवी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इसका ऐतिहासिक संबंध बंगाल के रा...
17/11/2025

https://youtu.be/W8W0JJnupBU

शिमला स्थित तारा देवी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इसका ऐतिहासिक संबंध बंगाल के राजवंश और हिमाचल की प्राचीन 'क्योंथल' (Keonthal) रियासत से भी है।

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (History & Origin)
तारा देवी मंदिर का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना माना जाता है। यह मंदिर मूल रूप से सेन वंश (Sen Dynasty) के राजाओं द्वारा बनवाया गया था।
* बंगाल से संबंध: ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, क्योंथल (जिसकी राजधानी जुन्गा थी) के शासक 'सेन' वंश के थे। यह वंश अपनी जड़ें बंगाल के प्रसिद्ध सेन राजवंश से जोड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि जब यह राजवंश हिमाचल आया, तो वे अपनी कुलदेवी 'माँ तारा' की एक छोटी स्वर्ण प्रतिमा अपने साथ लाए थे।
* क्योंथल रियासत की कुलदेवी: माँ तारा, जुन्गा (क्योंथल) के राजपरिवार की कुलदेवी हैं। यह मंदिर जुन्गा रियासत के राजाओं की आस्था का मुख्य केंद्र रहा है।
2. स्थापना की कथा (Legends of Establishment)
मंदिर के निर्माण से जुड़ी दो प्रमुख घटनाएँ और राजाओं के नाम इतिहास में दर्ज हैं:
* राजा भूपेंद्र सेन और प्रथम मंदिर: कहा जाता है कि लगभग 250 साल पहले, क्योंथल के राजा भूपेंद्र सेन जब इस घने जंगल (जुब्बड़ के जंगल) में शिकार के लिए आए, तो उन्हें माँ तारा, हनुमान जी और भैरव जी के दर्शन का आभास हुआ। स्वप्न में देवी ने उन्हें वहां एक मंदिर बनवाने का निर्देश दिया ताकि आम जन भी उनके दर्शन कर सकें। राजा ने तुरंत अपनी 50 बीघा जमीन दान की और वहां एक लकड़ी का मंदिर बनवाया।
* राजा बलबीर सेन और वर्तमान स्थान: बाद की पीढ़ियों में, राजा बलबीर सेन को पुनः देवी का स्वप्न आया। इस बार देवी ने इच्छा व्यक्त की कि उनका मंदिर जंगल से हटाकर पर्वत की सबसे ऊंची चोटी (जिसे अब 'ताराव पर्वत' कहा जाता है) पर स्थापित किया जाए, ताकि वे वहां से सब पर अपनी दृष्टि रख सकें।
राजा बलबीर सेन ने सन् 1825 के आसपास वर्तमान स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया और 'अष्टधातु' की एक भव्य मूर्ति विधि-विधान से स्थापित की। कहा जाता है कि इस मूर्ति को 'शंकर' नामक हाथी पर रखकर जुन्गा से लाया गया था।
3. वास्तुकला और जीर्णोद्धार (Architecture & Restoration)
यह मंदिर पहाड़ी वास्तुकला (Pahari Architecture) का एक उत्कृष्ट नमूना है।
* काष्ठ कुणी शैली (Kath Kuni Style): हाल ही में (लगभग 2018 में) इस मंदिर का व्यापक जीर्णोद्धार किया गया, जिसमें करीब 6 करोड़ रुपये खर्च हुए। मंदिर को उसके मूल प्राचीन स्वरूप में लौटाने के लिए लोहे और सीमेंट का प्रयोग न के बराबर किया गया है। इसमें पत्थर और लकड़ी की चिनाई की पुरानी तकनीक (काष्ठ कुणी शैली से प्रेरित) का उपयोग हुआ है।
* नक्काशी: मंदिर के लकड़ी के खंभों और दरवाजों पर रोहड़ू और किन्नौर के कारीगरों द्वारा की गई बेहद बारीक नक्काशी (Wood Carving) देखने योग्य है। इसमें देवी-देवताओं के लघु चित्र उकेरे गए हैं।
* मूर्ति: गर्भगृह में माँ तारा की अष्टधातु (आठ धातुओं का मिश्रण) की प्राचीन मूर्ति स्थापित है। इसके अलावा वहां माँ काली और माँ सरस्वती की भी मूर्तियां हैं।
4. भौगोलिक और धार्मिक महत्व
* स्थान: यह मंदिर शिमला से लगभग 11-15 किलोमीटर दूर शोघी (Shoghi) के पास 'ताराव पर्वत' पर समुद्र तल से लगभग 1851 मीटर (7200 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।
* नवरात्र मेला: यहाँ शारदीय नवरात्रों की अष्टमी पर एक विशाल मेला लगता है। इस दिन क्योंथल का राजपरिवार भी अपनी कुलदेवी की पूजा के लिए आता है।
* मान्यता: ऐसी मान्यता है कि यह 'सिद्धि पीठ' है और यहाँ सच्चे मन से मांगी गई मन्नत जरूर पूरी होती है।
संक्षेप में
तारा देवी मंदिर, बंगाल की शक्ति पूजा और हिमाचल की पहाड़ी संस्कृति का एक अनूठा संगम है। यह न केवल राजाओं की भक्ति का प्रतीक है, बल्कि वास्तुकला की दृष्टि से भी एक धरोहर है।
यदि आप शिमला यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो मैं आपको मंदिर तक पहुँचने के रास्तों (ट्रेकिंग या सड़क मार्ग) की जानकारी भी दे सकता हूँ।

शिमला स्थित तारा देवी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इसका ऐतिहासिक संबंध बंगाल के राजवंश और हिमाचल की प्रा.....

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प्रतापनगर के ऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट गांव में पर्यटन और एडीबी टीम का भव्य स्वागत, गांव में विकसित होंगी आधुनिक पर्यटन सुविधाएं
टिहरी जनपद के प्रतापनगर के धारकोट गांव का पर्यटन विभाग और एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) की टीम ने क्षेत्रीय भ्रमण किया। गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने पारंपरिक पहाड़ी टोपी, फूलमालाओं, ढोल-नगाड़ों और स्थानीय आतिथ्य सत्कार के साथ टीम का गर्मजोशी से स्वागत किया। टीम के सदस्यों को दाल की पकोड़ी और रोटाना जैसे पारंपरिक व्यंजन भी परोसे गए, जिन्हें देखकर एडीबी टीम के चेहरे खिल उठे। टीम ने ग्रामीणों का आभार व्यक्त किया।

उन्होंने बताया कि विलेज इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के तहत यहां कई महत्वपूर्ण कार्य प्रस्तावित हैं, जिनमें

गांव में आकर्षक लाइटिंग सिस्टम

हर घर को एक समान रंग से रंग-रोगन

रास्तों पर अंडरग्राउंड नालियां
पार्किंग व्यवस्था

सरकारी भवनों पर रंग-रोगन और मरम्मत

पब्लिक सुविधाओं को डेवलप करना

श्री आशीष कठैत जी ने कहा कि परियोजना की डीपीआर लगभग तैयार है और अनुमोदन की प्रक्रिया चल रही है। उम्मीद है कि अगले वित्तीय वर्ष में इन कार्यों की शुरुआत कर दी जाएगी।

जिसमें ग्राम सभा के युवा प्रधान योगेंद्र सिंह नेगी व मेरे द्वारा ग्राम सभा में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पैराग्लाइडिंग मार्केट सेगांव के जंगल की जैव-विविधता को जोड़ने के लिए 1 किलोमीटर की रोपवे ropeway ट्रॉली कभी सुझाव दिया गया
साथी साथ ग्राम सभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जीवित रहे उस परिपेक्ष में ऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट के ऐतिहासिक महत्वसे जुड़े देवी देवताओं आंदोलनकारीयों वह अन्य महापुरुष पुरुष जिन्होंने ग्राम सभा के विकास में अहम योगदान दिया है उनके लिए पंचायत भवन के अंदर उनके इतिहास के शिलालेख लगाया जाए और ग्राम सभा में रंगारोहण के साथ हमारी संस्कृति और उत्तराखंड के पहाड़ों से जुड़ी पेंटिंग को गांव के रास्ते के हर दीवार पर दर्शाया जाए ऐसे सुझाव हमारी ओर से रखे गए

09/11/2025

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस कि आप सभी को ढेर सारी बधाइयां 🇮🇳🏞️🗻🏔️🌊
https://youtu.be/4uO8E-1IK2Q

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