Harry Negi

Harry Negi do not become a big personality
but becoming a honest man

01/12/2023

Sandeep Saklani ki shadi

परम मित्र संदीप सकलानी को वैवाहिक जीवन की ढेर सारी शुभकामनाएं
27/11/2023

परम मित्र संदीप सकलानी को वैवाहिक जीवन की ढेर सारी शुभकामनाएं

09/11/2023
डॉल्फिन इंस्टिट्यूट के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के हेड द्वारा ग्राम सभा धारकोट को शोध एवं मूल्यांकन के लिए चुना गया
02/11/2023

डॉल्फिन इंस्टिट्यूट के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के हेड द्वारा ग्राम सभा धारकोट को शोध एवं मूल्यांकन के लिए चुना गया

Spread the loveऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट की जैव विविधता ऐतिहासिक महत्व व संस्कृति से जुड़े तथ्यों को अब जाने लगे हैं देश-वि....

01/11/2023
ऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट की जैव विविधता, ऐतिहासिक महत्व व संस्कृति से जुड़े तथ्यों को अब जानने लगे हैं देश-विदेश में रह...
31/10/2023

ऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट की जैव विविधता, ऐतिहासिक महत्व व संस्कृति से जुड़े तथ्यों को अब जानने लगे हैं देश-विदेश में रहने वाले शोधकर्ता

टिहरी गढ़वाल 31 अक्टूबर। ऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट की जैव विविधता ऐतिहासिक महत्व व संस्कृति से जुड़े तथ्यों को अब द.....

ऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट की जैव विविधता ,ऐतिहासिक महत्व व संस्कृति से जुड़े तथ्यों को अब जाने लगे हैं देश-विदेश में रहन...
31/10/2023

ऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट की जैव विविधता ,ऐतिहासिक महत्व व संस्कृति से जुड़े तथ्यों को अब जाने लगे हैं देश-विदेश में रहने वाले शोधकर्ता
डॉल्फिन इंस्टिट्यूट के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के हेड द्वारा ग्राम सभा धारकोट को शोध एवं मूल्यांकन के लिए चुना गया
शोधकर्ताओं में कई विद्यार्थी सिक्किम नागालैंड उड़ीसा कर्नाटक हिमाचल उत्तराखंड से आए थे जिस्म की तीन दिन का जैव विविधता पर शोध एवं मूल्यांकन का कार्यक्रम चलाया गया जिसमें धारकोट की ऐतिहासिक महत्व खेती व पाथल से बने घरों के अस्तित्व व सांस्कृतिक रहन-सहन पर मेरे द्वारा विस्तृत रूप से समझाया गया और जैव विविधता से जुड़े पहलू को धारकोट के जैव विविधता से भरपूर जंगल के बारे में श्री योगेंद्र सिंह नेगी गुड्डू भाई द्वारा विस्तृत जानकारी दी गई, साथी डॉल्फिन इंस्टीट्यूट से आए डॉक्टर विश्वास श्री सी एस रावत श्री ऋषभ विश्वास द्वारा बच्चों को इस बारे में साइंटिफिक तौर पर रुकता जानकारी का शोध और मूल्यांकन पर महत्व पर बढ़ावा दिया गया । साथी धारकोट की जैव को वैश्विक पटल पर किस तरह रखा जाए व मेदूगी जैसी जगह को sustainable tourism birds watching और हाई एडवेंचर साइट की तहत किस रूप से डेवलप किया जाए जिससे यहां रहने वाले लोगों को रोजगार मुहैया हो सके उसकी संभावनाओं को ढूंढा गया
कार्यक्रम के तहत पहले दिन ऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट का भ्रमण करवाया गया गांव में बने पठाली के घर व पुराने सभी ऐतिहासिक धरोहरों से रूबरू कराया गया व खेतों में होने वाले अनाज के महत्व के बारे मेंसमझाया गया
दूसरे दिन प्राकृतिक संपदा से भरपूर गांव के जंगल में भ्रमण करवाया गया जंगल में मौजूद पशु पक्षियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गईवह जंगल में हाईटेक मोशन कैप्चर करने वाले कैमरे लगाए गए जिसके जरिए जिस्म की जंगल में मौजूद दुर्लभ प्रजातियों कोरात के अंधेरे में भी कैप्चर किया जा सके ।और शाम को प्रकृति से जुड़ी ऑस्कर जीतने वाली डॉक्युमेंट्री the elephant whisperers दिखाई गई
तीसरे धार्मिक महत्व से जुड़ी मंदिर एवं उनके महत्व को श्री विजयपाल सिंह नेगी ( बिज्जा भाई ) द्वारा परुडी गांव में स्थित बूढ़ा केदार के मंदिर के दर्शन करवाइए ।

आप में से भी कोई पर्यटक कोई शोध करता या फिर कोई प्रकृति प्रेमी अगर ऐतिहासिक ग्राम सभा धारकोट आना चाहता है तो हम सभी आपका तहे दिल से स्वागत करते हैं

Give yourself permission to immediately walk away from anything that gives you bad vibes. There is no need to explain or...
28/10/2023

Give yourself permission to immediately walk away from anything that gives you bad vibes. There is no need to explain or make sense of it. Just trust what you feel.

        PC Leev Rock
25/10/2023



PC Leev Rock

Wish you happy married life ❤️ bunty bhai
19/10/2023

Wish you happy married life ❤️ bunty bhai

इस तरह का मैसेज वाइब्रेशन के साथ अगर आपके फोन पर आ रहा हो तो घबराएं नहींयह मैसेज भारत सरकार द्वारा प्राकृतिक आपदा के समय...
18/10/2023

इस तरह का मैसेज वाइब्रेशन के साथ अगर आपके फोन पर आ रहा हो तो घबराएं नहीं
यह मैसेज भारत सरकार द्वारा प्राकृतिक आपदा के समय आपको सचेत करने के लिए भविष्य में किया जाएगा
ताकि समय रहते आप भूकंप बाढ़ भूस्खलन आदि अन्य आपदाओं से सचेत रह सके

17/10/2023
https://youtu.be/mYR6tqdRVnk?si=clIu9hKbFc4pEd0k *Happy Teachers day*  *Must watch the video on education system*
05/09/2023

https://youtu.be/mYR6tqdRVnk?si=clIu9hKbFc4pEd0k

*Happy Teachers day*

*Must watch the video on education system*

शिक्षक समाज का रचयिता होता है।Abdul Kalam said ....that three persons can bring changes in society. MOTH...

आवश्यक सूचना स्यांसू झूला पुल 02 महीने तक के लिए बंद रहेगा
03/09/2023

आवश्यक सूचना स्यांसू झूला पुल 02 महीने तक के लिए बंद रहेगा

30/08/2023

Wish you happy RAKASH_BANDHAN
Behnoo
Even though in this Rakhi we are all far away
But The relationship is stronger than distance

संपूर्ण भारत के लिए गर्व का पल
23/08/2023

संपूर्ण भारत के लिए गर्व का पल

23/08/2023

एडमिशन हेतु इच्छुक छात्र-छात्राएं समर्थ पोर्टल https://ukadmission.samarth.ac.in/ से ऑनलाइन आवेदन करें

22/08/2023

Garhwali Saraswati Vandana
नमो भगवती माँ सरस्वती वंदना

18/08/2023

सोमेश्वर महादेव मंदिर सांकरी गाँव उत्तरकाशी
https://youtu.be/H2eLpjRgsgM

18/08/2023

बेहतरीन प्रस्तुति

16/08/2023

Independence day program

शहीद श्रीमती हंसा धनाई राजकीय महाविद्यालय अगरोड़ा धारमण्डल टिहरी गढ़वाल

15/08/2023

शहीद श्रीमती हंसा धनाई राजकीय महाविद्यालय अगरोड़ा धारमण्डल टिहरी गढ़वाल मे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया स्वतंत्रता दिवस

https://youtu.be/jCKoEBdsC4s

ें_स्वतंत्रता

#स्वतंत्रता_दिवस

ऐतिहासिक ग्रामसभा धारकोटे के मेरे बड़े भाई जी व मेरे मित्र अजीत नेगी के ताऊ जी श्री अरविंद सिंह नेगी जी आज (देश सेवा ) स...
01/08/2023

ऐतिहासिक ग्रामसभा धारकोटे के मेरे बड़े भाई जी व मेरे मित्र अजीत नेगी के ताऊ जी श्री अरविंद सिंह नेगी जी आज (देश सेवा ) सीआरपीएफ से 41वर्ष की सेवा के उपरांत सेवानिवृत्ति पर बहुत-बहुत बधाई 🌹💐🌹

24/07/2023

https://youtu.be/_Nai6anh9RQ

*उत्तराखंड के पहाड़ों में तिमला, तिमिल, तिमल, तिमलु* आदि नामों से पहचाने जाने वाले इस फल को अंजीर भी कहते हैं. यह फल उत्तराखंड के पहाड़ों में काफी मात्रा में पाया जाता है. तिमला एक औषधीय फल है. इस फल में पोटेशियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन ए और बी आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं.
कच्चे तिमल की सब्जी और अचार बनाया जाता है. यह पहाड़ों में अप्रैल से जून में आसानी से आपको मिल जाएगा.
तिमल का पेड़ प्रदेश के खास पेड़ों में से एक है. तिमिल के फल हल्के लाल और पीले हो जाने पर इसका स्वाद काफी अच्छा होता है. इसका रायता और सब्जी पहाड़ में लोकप्रिय है. साथ ही यह आपकी पाचन क्रिया को भी फिट रखता है और कई औषधीय गुण भी इस फल में होते हैं.
यह जंगली फल सिर्फ 3 महीने मिलता है पहाड़ में, कई बीमारियों के लिए 'रामबाण',
800 से 2200 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाने वाला यह पेड़ जंगली है. इसकी पत्तियां 20 से 25 सेमी तक चौड़ी होती हैं. इस पेड़ की पत्तियों को गाय भैंसों के चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके पत्तों को खाकर दुधारू जानवरों का दूध भी बढ़ जाता है.
*विश्व का सबसे मीठा फल*
‘ *इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज रिव्यू एंड रिसर्च’ ने तिमला फल की पोषक तत्वों के बारे में विस्तार से बताया है.* इस रिपोर्ट में सेब और आम के संवर्धित फलों की तुलना में तिमला में वसा, प्रोटीन, फाइबर और खनिजों का उच्च मूल्य शामिल हैं. तिमला में 83 फीसदी चीनी होने की वजह से इसे विश्व का सबसे मीठा फल माना जाता है. उन्होंने आगे कहा कि डायबिटीज के रोगियों को दूसरे फलों की तुलना में तिमला का सेवन खासतौर से लाभकारी होता है. यह पोटैशियम का अच्छा स्रोत है, जो ब्लड प्रेशर और शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है. तिमला फल में विभिन्न पोषक तत्वों के साथ जीवाणुनाशक गुण युक्त फिनोलिक तत्व भी मौजूद होते हैं. इसमें प्रचुर मात्रा में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट शरीर में टॉक्सिक फ्री रेडिकल्स को खत्म कर देता है.

*इस पेड़ की धार्मिक मान्यताएं भी काफी ज्यादा हैं.* पहाड़ों में इस पेड़ को पीपल के पेड़ जितना पवित्र माना गया है. इसकी पत्तियों को जोड़कर पत्तल बनाई जाती हैं. श्राद्ध के दौरान इन्हीं पत्तल में पितरों को भोग लगाया जाता है. भले ही आज मालू के पत्ते या फिर प्लास्टिक, थर्माकोल के डिस्पोजल का इस्तेमाल किया जाता हो लेकिन कभी एक समय था, जब केवल तिमला की ही पत्तल बनाकर इस्तेमाल की जाती थीं. आज भी ब्राह्मण पूजा आदि में इन पत्तों का इस्तेमाल करते हैं. इसकी पत्तियों से लेकर सभी हिस्सा इस्तेमाल में लाया जाता है. इसके साथ ही जैव विविधता को लेकर भी यह एक खास पेड़ है.

Harry Negi

https://youtu.be/_Nai6anh9RQ*उत्तराखंड के पहाड़ों में तिमला, तिमिल, तिमल, तिमलु* आदि नामों से पहचाने जाने वाले इस फल को अ...
23/07/2023

https://youtu.be/_Nai6anh9RQ

*उत्तराखंड के पहाड़ों में तिमला, तिमिल, तिमल, तिमलु* आदि नामों से पहचाने जाने वाले इस फल को अंजीर भी कहते हैं. यह फल उत्तराखंड के पहाड़ों में काफी मात्रा में पाया जाता है. तिमला एक औषधीय फल है. इस फल में पोटेशियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन ए और बी आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं.
कच्चे तिमल की सब्जी और अचार बनाया जाता है. यह पहाड़ों में अप्रैल से जून में आसानी से आपको मिल जाएगा.
तिमल का पेड़ प्रदेश के खास पेड़ों में से एक है. तिमिल के फल हल्के लाल और पीले हो जाने पर इसका स्वाद काफी अच्छा होता है. इसका रायता और सब्जी पहाड़ में लोकप्रिय है. साथ ही यह आपकी पाचन क्रिया को भी फिट रखता है और कई औषधीय गुण भी इस फल में होते हैं.
यह जंगली फल सिर्फ 3 महीने मिलता है पहाड़ में, कई बीमारियों के लिए 'रामबाण',
800 से 2200 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाने वाला यह पेड़ जंगली है. इसकी पत्तियां 20 से 25 सेमी तक चौड़ी होती हैं. इस पेड़ की पत्तियों को गाय भैंसों के चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके पत्तों को खाकर दुधारू जानवरों का दूध भी बढ़ जाता है.
*विश्व का सबसे मीठा फल*
‘ *इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज रिव्यू एंड रिसर्च’ ने तिमला फल की पोषक तत्वों के बारे में विस्तार से बताया है.* इस रिपोर्ट में सेब और आम के संवर्धित फलों की तुलना में तिमला में वसा, प्रोटीन, फाइबर और खनिजों का उच्च मूल्य शामिल हैं. तिमला में 83 फीसदी चीनी होने की वजह से इसे विश्व का सबसे मीठा फल माना जाता है. उन्होंने आगे कहा कि डायबिटीज के रोगियों को दूसरे फलों की तुलना में तिमला का सेवन खासतौर से लाभकारी होता है. यह पोटैशियम का अच्छा स्रोत है, जो ब्लड प्रेशर और शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है. तिमला फल में विभिन्न पोषक तत्वों के साथ जीवाणुनाशक गुण युक्त फिनोलिक तत्व भी मौजूद होते हैं. इसमें प्रचुर मात्रा में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट शरीर में टॉक्सिक फ्री रेडिकल्स को खत्म कर देता है.

*इस पेड़ की धार्मिक मान्यताएं भी काफी ज्यादा हैं.* पहाड़ों में इस पेड़ को पीपल के पेड़ जितना पवित्र माना गया है. इसकी पत्तियों को जोड़कर पत्तल बनाई जाती हैं. श्राद्ध के दौरान इन्हीं पत्तल में पितरों को भोग लगाया जाता है. भले ही आज मालू के पत्ते या फिर प्लास्टिक, थर्माकोल के डिस्पोजल का इस्तेमाल किया जाता हो लेकिन कभी एक समय था, जब केवल तिमला की ही पत्तल बनाकर इस्तेमाल की जाती थीं. आज भी ब्राह्मण पूजा आदि में इन पत्तों का इस्तेमाल करते हैं. इसकी पत्तियों से लेकर सभी हिस्सा इस्तेमाल में लाया जाता है. इसके साथ ही जैव विविधता को लेकर भी यह एक खास पेड़ है.

उत्तराखंड के पहाड़ों में #तिमला, #तिमिल, #तिमल, #तिमलु आदि नामों से पहचाने जाने वाले इस फल को अंजीर भी कहते हैं. यह फल उत.....

12/07/2023

क्या कभी खाया आपने असली उत्तराखंडी आटा
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
#फाफरा , #फाफर को ही आम बोलचाल में #कुट्टू कहा जाता है। यह उत्तराखण्ड में पारम्परिक रूप से उगायी जाने वाली फसल है। #उत्तराखंड के #उत्तरकाशी जिले में दूरस्थ गांव #ओस्ला विजिट में हमें इसकी भरपूर खेती नजर आई
यह Polygonaceae परिवार का पौधा है एवं इसकी शुरुआती अवस्था में हरी पत्तियों को सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है जो कि आयरन से भरपूर होती है तथा इसके बीज को आटा बनाकर व स्थानीय बाजार में स्थानीय विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत नमक व चावल के बदले बेचा जाता है जिसमें नमक छः गुना व चावल तीन गुना तक मिलता है। प्रदेश में ओगल की खेती निम्न ऊँचाई से उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में की जाती है, निम्न तथा मध्य ऊँचाई वाले क्षेत्रों में केवल सब्जी उपयोग हेतु इसको उगाया जाता है तथा बीजों को नकदी व अन्य सामग्री के बदले बेचा जाता है। जबकि उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ओगल की ही अन्य प्रजाति जिसको फाफर के नाम से जाना जाता है, को अधिक मात्रा में उगाया जाता है। इसको बड़े व्यापारी घर से ही खरीद कर बड़े बाजारो तक ले जाते हैं।
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
जहां तक विश्व में ओगल उत्पादन की बात की जाय तो रूस सर्वाधिक ओगल उत्पादक देश है जिसमें लगभग 6.5 मिलियन एकड़ में इसकी खेती की जाती है जबकि फ्रांस में 0.9 मिलियन एकड़ में की जाती है। 1970 के दशक तक सोवियत संघ में 4.5 मिलियन एकड़ भूमि पर इसकी खेती की जाती थी। वर्ष 2000 के पश्चात् चीन ओगल उत्पादन में अग्रणी स्थान पर आ गया है। जापान भी चीन से ओगल आयात से उपभोग करता है। वर्तमान में रूस तथा चीन 6.7 लाख टन प्रति वर्ष ओगल के साथ अग्रणी देशो में शुमार है। यद्यपि रूस तथा चीन ओगल उत्पादन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, साथ ही जापान, कोरिया, इटली, यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी न्यूट्रास्यूटिकल उद्योग में विभिन्न खाद्य उत्पादों के निर्माण में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
जहाँ तक ओगल/फाफर उत्पादन करने की बात की जाय तो यह दोनों बड़ी आसानी से बिना किसी भारी भरकम तकनीकी के कम उपजाऊ व पथरीली भूमि पर उत्पादन देने की क्षमता रखती है। स्थानीय काश्तकार इन्हीं गुणों के कारण ओगल को दूरस्थ खेतों, जहां पर खाद पानी कम होने
पर भी उत्पादन लिया जा सके, में उगाते हैं तथा सब्जी व अनाज दोनों रूपों में प्रयोग करते हैं। वर्तमान में कुटटू का आटा तो पौष्टिकता की वजह से अधिक प्रचलन में है। इसकी चौड़ी पत्तियां होने की वजह से कवर क्रॉप के रूप में भी प्रयोग किया जाता है जो कि मिट्टी से वास्पोत्सर्जन रोकने में सहायक होती है तथा खेत में नमी बनाये रखती है।
यदि इसकी वैज्ञानिक विश्लेषण की बात की जाय तो इसका बीज ग्लूटीन फ्री होता है जिसकी वजह से सुपाच्य तथा पौष्टिकता से भरपूर अन्य कई खाद्य उत्पादों को बनाने में मुख्य अवयव के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसी वजह से कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय उद्योगों की ओर से इसकी अधिक मांग रहती है। इसकी पत्तियों में आयरन प्रचुर मात्रा में (3.2 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम) होने की वजह से एनीमिया निवारण के लिये बहुत लाभदायक होता है। इसकी पत्तियों के पाउडर बनाकर आटे में मिलाने से फिनोलिक तथा फाईवर का पूरक के रूप में कार्य करती हैं तथा वजन कम करने व रक्त में निम्न प्लाजमा स्तर को बनाये रखने में सहायक होती हैं। इसके अतिरिक्त कुटटू का आटा लीवर में कोलेस्ट्रोल कम करने में भी सहायक होता है। इसमें dehi roinositol (DCI) myoinositol (MI) भी होता है जो शरीर में इन्सुलिन के विकल्प की तरह कार्य करता है तथा ग्लूकोज स्तर को निम्न बनाने में सहायक होता है। ओगल में रूटीन (favonol glycoside) एंटीआक्सीडेंट भी बेहतर मात्रा में पाया जाता है जिसकी लगभग 85 से 90 प्रतिशत एंटीऑक्सीडेंट एक्टिविटी पायी जाती है जबकि फाफर में रूटीन तथा क्वारक्टीन की मात्रा ओगल से 100 गुना अधिक पायी जाती है जो कि एक बेहतर एंटीऑक्सीडेंट के साथ-साथ ग्लूकोज स्तर को भी नियंत्रित करने में सहायक होता है। शायद इन्ही पोष्टिक गुणों के कारण इसकी अंकुरित अनाज अंतरराष्ट्रीय बाजार में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
इसमें पॉलिफिनोल की प्रचुर मात्रा होने की बेहतर एंटीऑक्सीडेंट के साथ-साथ पोषक गुणवत्ता युक्त हाइड्रोजिलेट्स उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह पोष्टिक उत्पादों के साथ-साथ औद्योगिक रूप से एल्कोहल, औषधि एवं पशुचारा के रूप में भी उपयोग किया जाता है। जहां तक इसकी पोष्टिक गुणवत्ता का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाय तो यह उच्च गुणवत्ता युक्त ग्लूटीन फ्री पोषक
आहार के साथ-साथ संतुलित अमीनो अम्ल भी प्रदान करता है तथा विटामिन एवं मिनरल्स से भरपूर होता है। ओगल में प्रोटीन 12 ग्राम, वसा 7.4 ग्राम, कार्बोहाईड्रेट 72.9 ग्राम, कैल्शियम 114 मि0ग्रा0, लौह 13.2 मि0ग्रा0, फास्फोरस 282 मि0ग्रा, जिंक 25 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते हैं, जबकि फाफर में वसा 3.11 ग्राम, प्रोटीन 14.34 ग्राम, कार्बोहाईड्रेट 71.80 ग्राम, रिड्यूसिंग शुगर 8.38 ग्राम, पोटेशियम 3132.91 पी0पी0एम0, फास्फोरस 1541 पी0पी0एम0, मैग्निशयम 1230 पी0पी0एम0, कैल्शियम 505.48 पी0पी0एम0, सोडियम 314.62 पी0पी0एम0, मैग्नीज 10.19 पी0पी0एम0 तथा लौह 15.92 पी0पी0एम0 तक पाये जाते हैं।
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में इतनी पोष्टिक एवं औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण फसल जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अधिक मांग है, को प्रदेश में व्यवसायिक रूप से उत्पादित कर जीवका उपार्जन का साधन बनाया जा सकता है।

Harry Negi की वॉल से

11/07/2023

क्या कभी खाया आपने असली उत्तराखंडी आटा
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
#फाफरा , #फाफर को ही आम बोलचाल में #कुट्टू कहा जाता है। यह उत्तराखण्ड में पारम्परिक रूप से उगायी जाने वाली फसल है। #उत्तराखंड के #उत्तरकाशी जिले में दूरस्थ गांव #ओस्ला विजिट में हमें इसकी भरपूर खेती नजर आई
यह Polygonaceae परिवार का पौधा है एवं इसकी शुरुआती अवस्था में हरी पत्तियों को सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है जो कि आयरन से भरपूर होती है तथा इसके बीज को आटा बनाकर व स्थानीय बाजार में स्थानीय विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत नमक व चावल के बदले बेचा जाता है जिसमें नमक छः गुना व चावल तीन गुना तक मिलता है। प्रदेश में ओगल की खेती निम्न ऊँचाई से उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में की जाती है, निम्न तथा मध्य ऊँचाई वाले क्षेत्रों में केवल सब्जी उपयोग हेतु इसको उगाया जाता है तथा बीजों को नकदी व अन्य सामग्री के बदले बेचा जाता है। जबकि उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ओगल की ही अन्य प्रजाति जिसको फाफर के नाम से जाना जाता है, को अधिक मात्रा में उगाया जाता है। इसको बड़े व्यापारी घर से ही खरीद कर बड़े बाजारो तक ले जाते हैं।
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
जहां तक विश्व में ओगल उत्पादन की बात की जाय तो रूस सर्वाधिक ओगल उत्पादक देश है जिसमें लगभग 6.5 मिलियन एकड़ में इसकी खेती की जाती है जबकि फ्रांस में 0.9 मिलियन एकड़ में की जाती है। 1970 के दशक तक सोवियत संघ में 4.5 मिलियन एकड़ भूमि पर इसकी खेती की जाती थी। वर्ष 2000 के पश्चात् चीन ओगल उत्पादन में अग्रणी स्थान पर आ गया है। जापान भी चीन से ओगल आयात से उपभोग करता है। वर्तमान में रूस तथा चीन 6.7 लाख टन प्रति वर्ष ओगल के साथ अग्रणी देशो में शुमार है। यद्यपि रूस तथा चीन ओगल उत्पादन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, साथ ही जापान, कोरिया, इटली, यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी न्यूट्रास्यूटिकल उद्योग में विभिन्न खाद्य उत्पादों के निर्माण में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
जहाँ तक ओगल/फाफर उत्पादन करने की बात की जाय तो यह दोनों बड़ी आसानी से बिना किसी भारी भरकम तकनीकी के कम उपजाऊ व पथरीली भूमि पर उत्पादन देने की क्षमता रखती है। स्थानीय काश्तकार इन्हीं गुणों के कारण ओगल को दूरस्थ खेतों, जहां पर खाद पानी कम होने
पर भी उत्पादन लिया जा सके, में उगाते हैं तथा सब्जी व अनाज दोनों रूपों में प्रयोग करते हैं। वर्तमान में कुटटू का आटा तो पौष्टिकता की वजह से अधिक प्रचलन में है। इसकी चौड़ी पत्तियां होने की वजह से कवर क्रॉप के रूप में भी प्रयोग किया जाता है जो कि मिट्टी से वास्पोत्सर्जन रोकने में सहायक होती है तथा खेत में नमी बनाये रखती है।
यदि इसकी वैज्ञानिक विश्लेषण की बात की जाय तो इसका बीज ग्लूटीन फ्री होता है जिसकी वजह से सुपाच्य तथा पौष्टिकता से भरपूर अन्य कई खाद्य उत्पादों को बनाने में मुख्य अवयव के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसी वजह से कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय उद्योगों की ओर से इसकी अधिक मांग रहती है। इसकी पत्तियों में आयरन प्रचुर मात्रा में (3.2 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम) होने की वजह से एनीमिया निवारण के लिये बहुत लाभदायक होता है। इसकी पत्तियों के पाउडर बनाकर आटे में मिलाने से फिनोलिक तथा फाईवर का पूरक के रूप में कार्य करती हैं तथा वजन कम करने व रक्त में निम्न प्लाजमा स्तर को बनाये रखने में सहायक होती हैं। इसके अतिरिक्त कुटटू का आटा लीवर में कोलेस्ट्रोल कम करने में भी सहायक होता है। इसमें dehi roinositol (DCI) myoinositol (MI) भी होता है जो शरीर में इन्सुलिन के विकल्प की तरह कार्य करता है तथा ग्लूकोज स्तर को निम्न बनाने में सहायक होता है। ओगल में रूटीन (favonol glycoside) एंटीआक्सीडेंट भी बेहतर मात्रा में पाया जाता है जिसकी लगभग 85 से 90 प्रतिशत एंटीऑक्सीडेंट एक्टिविटी पायी जाती है जबकि फाफर में रूटीन तथा क्वारक्टीन की मात्रा ओगल से 100 गुना अधिक पायी जाती है जो कि एक बेहतर एंटीऑक्सीडेंट के साथ-साथ ग्लूकोज स्तर को भी नियंत्रित करने में सहायक होता है। शायद इन्ही पोष्टिक गुणों के कारण इसकी अंकुरित अनाज अंतरराष्ट्रीय बाजार में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
इसमें पॉलिफिनोल की प्रचुर मात्रा होने की बेहतर एंटीऑक्सीडेंट के साथ-साथ पोषक गुणवत्ता युक्त हाइड्रोजिलेट्स उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह पोष्टिक उत्पादों के साथ-साथ औद्योगिक रूप से एल्कोहल, औषधि एवं पशुचारा के रूप में भी उपयोग किया जाता है। जहां तक इसकी पोष्टिक गुणवत्ता का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाय तो यह उच्च गुणवत्ता युक्त ग्लूटीन फ्री पोषक
आहार के साथ-साथ संतुलित अमीनो अम्ल भी प्रदान करता है तथा विटामिन एवं मिनरल्स से भरपूर होता है। ओगल में प्रोटीन 12 ग्राम, वसा 7.4 ग्राम, कार्बोहाईड्रेट 72.9 ग्राम, कैल्शियम 114 मि0ग्रा0, लौह 13.2 मि0ग्रा0, फास्फोरस 282 मि0ग्रा, जिंक 25 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते हैं, जबकि फाफर में वसा 3.11 ग्राम, प्रोटीन 14.34 ग्राम, कार्बोहाईड्रेट 71.80 ग्राम, रिड्यूसिंग शुगर 8.38 ग्राम, पोटेशियम 3132.91 पी0पी0एम0, फास्फोरस 1541 पी0पी0एम0, मैग्निशयम 1230 पी0पी0एम0, कैल्शियम 505.48 पी0पी0एम0, सोडियम 314.62 पी0पी0एम0, मैग्नीज 10.19 पी0पी0एम0 तथा लौह 15.92 पी0पी0एम0 तक पाये जाते हैं।
https://youtu.be/27PAL1hrkO8
उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में इतनी पोष्टिक एवं औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण फसल जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अधिक मांग है, को प्रदेश में व्यवसायिक रूप से उत्पादित कर जीवका उपार्जन का साधन बनाया जा सकता है।

https://youtu.be/27PAL1hrkO8 *क्या कभी खाया आपने असली उत्तराखंडी आटा* #फाफरा ,  #फाफर को ही आम बोलचाल में  #कुट्टू कहा ज...
11/07/2023

https://youtu.be/27PAL1hrkO8

*क्या कभी खाया आपने असली उत्तराखंडी आटा*

#फाफरा , #फाफर को ही आम बोलचाल में #कुट्टू कहा जाता है। यह उत्तराखण्ड में पारम्परिक रूप से उगायी जाने वाली फसल है। #उत्तराखंड के #उत्तरकाशी जिले में दूरस्थ गांव #ओस्ला विजिट में हमें इसकी भरपूर खेती नजर आई
यह Polygonaceae परिवार का पौधा है एवं इसकी शुरुआती अवस्था में हरी पत्तियों को सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है जो कि आयरन से भरपूर होती है तथा इसके बीज को आटा बनाकर व स्थानीय बाजार में स्थानीय विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत नमक व चावल के बदले बेचा जाता है जिसमें नमक छः गुना व चावल तीन गुना तक मिलता है। प्रदेश में ओगल की खेती निम्न ऊँचाई से उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में की जाती है, निम्न तथा मध्य ऊँचाई वाले क्षेत्रों में केवल सब्जी उपयोग हेतु इसको उगाया जाता है तथा बीजों को नकदी व अन्य सामग्री के बदले बेचा जाता है। जबकि उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ओगल की ही अन्य प्रजाति जिसको फाफर के नाम से जाना जाता है, को अधिक मात्रा में उगाया जाता है। इसको बड़े व्यापारी घर से ही खरीद कर बड़े बाजारो तक ले जाते हैं।

जहां तक विश्व में ओगल उत्पादन की बात की जाय तो रूस सर्वाधिक ओगल उत्पादक देश है जिसमें लगभग 6.5 मिलियन एकड़ में इसकी खेती की जाती है जबकि फ्रांस में 0.9 मिलियन एकड़ में की जाती है। 1970 के दशक तक सोवियत संघ में 4.5 मिलियन एकड़ भूमि पर इसकी खेती की जाती थी। वर्ष 2000 के पश्चात् चीन ओगल उत्पादन में अग्रणी स्थान पर आ गया है। जापान भी चीन से ओगल आयात से उपभोग करता है। वर्तमान में रूस तथा चीन 6.7 लाख टन प्रति वर्ष ओगल के साथ अग्रणी देशो में शुमार है। यद्यपि रूस तथा चीन ओगल उत्पादन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, साथ ही जापान, कोरिया, इटली, यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी न्यूट्रास्यूटिकल उद्योग में विभिन्न खाद्य उत्पादों के निर्माण में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

जहाँ तक ओगल/फाफर उत्पादन करने की बात की जाय तो यह दोनों बड़ी आसानी से बिना किसी भारी भरकम तकनीकी के कम उपजाऊ व पथरीली भूमि पर उत्पादन देने की क्षमता रखती है। स्थानीय काश्तकार इन्हीं गुणों के कारण ओगल को दूरस्थ खेतों, जहां पर खाद पानी कम होने
पर भी उत्पादन लिया जा सके, में उगाते हैं तथा सब्जी व अनाज दोनों रूपों में प्रयोग करते हैं। वर्तमान में कुटटू का आटा तो पौष्टिकता की वजह से अधिक प्रचलन में है। इसकी चौड़ी पत्तियां होने की वजह से कवर क्रॉप के रूप में भी प्रयोग किया जाता है जो कि मिट्टी से वास्पोत्सर्जन रोकने में सहायक होती है तथा खेत में नमी बनाये रखती है।
यदि इसकी वैज्ञानिक विश्लेषण की बात की जाय तो इसका बीज ग्लूटीन फ्री होता है जिसकी वजह से सुपाच्य तथा पौष्टिकता से भरपूर अन्य कई खाद्य उत्पादों को बनाने में मुख्य अवयव के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसी वजह से कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय उद्योगों की ओर से इसकी अधिक मांग रहती है। इसकी पत्तियों में आयरन प्रचुर मात्रा में (3.2 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम) होने की वजह से एनीमिया निवारण के लिये बहुत लाभदायक होता है। इसकी पत्तियों के पाउडर बनाकर आटे में मिलाने से फिनोलिक तथा फाईवर का पूरक के रूप में कार्य करती हैं तथा वजन कम करने व रक्त में निम्न प्लाजमा स्तर को बनाये रखने में सहायक होती हैं। इसके अतिरिक्त कुटटू का आटा लीवर में कोलेस्ट्रोल कम करने में भी सहायक होता है। इसमें dehi roinositol (DCI) myoinositol (MI) भी होता है जो शरीर में इन्सुलिन के विकल्प की तरह कार्य करता है तथा ग्लूकोज स्तर को निम्न बनाने में सहायक होता है। ओगल में रूटीन (favonol glycoside) एंटीआक्सीडेंट भी बेहतर मात्रा में पाया जाता है जिसकी लगभग 85 से 90 प्रतिशत एंटीऑक्सीडेंट एक्टिविटी पायी जाती है जबकि फाफर में रूटीन तथा क्वारक्टीन की मात्रा ओगल से 100 गुना अधिक पायी जाती है जो कि एक बेहतर एंटीऑक्सीडेंट के साथ-साथ ग्लूकोज स्तर को भी नियंत्रित करने में सहायक होता है। शायद इन्ही पोष्टिक गुणों के कारण इसकी अंकुरित अनाज अंतरराष्ट्रीय बाजार में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

इसमें पॉलिफिनोल की प्रचुर मात्रा होने की बेहतर एंटीऑक्सीडेंट के साथ-साथ पोषक गुणवत्ता युक्त हाइड्रोजिलेट्स उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह पोष्टिक उत्पादों के साथ-साथ औद्योगिक रूप से एल्कोहल, औषधि एवं पशुचारा के रूप में भी उपयोग किया जाता है। जहां तक इसकी पोष्टिक गुणवत्ता का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाय तो यह उच्च गुणवत्ता युक्त ग्लूटीन फ्री पोषक
आहार के साथ-साथ संतुलित अमीनो अम्ल भी प्रदान करता है तथा विटामिन एवं मिनरल्स से भरपूर होता है। ओगल में प्रोटीन 12 ग्राम, वसा 7.4 ग्राम, कार्बोहाईड्रेट 72.9 ग्राम, कैल्शियम 114 मि0ग्रा0, लौह 13.2 मि0ग्रा0, फास्फोरस 282 मि0ग्रा, जिंक 25 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते हैं, जबकि फाफर में वसा 3.11 ग्राम, प्रोटीन 14.34 ग्राम, कार्बोहाईड्रेट 71.80 ग्राम, रिड्यूसिंग शुगर 8.38 ग्राम, पोटेशियम 3132.91 पी0पी0एम0, फास्फोरस 1541 पी0पी0एम0, मैग्निशयम 1230 पी0पी0एम0, कैल्शियम 505.48 पी0पी0एम0, सोडियम 314.62 पी0पी0एम0, मैग्नीज 10.19 पी0पी0एम0 तथा लौह 15.92 पी0पी0एम0 तक पाये जाते हैं।

उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में इतनी पोष्टिक एवं औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण फसल जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अधिक मांग है, को प्रदेश में व्यवसायिक रूप से उत्पादित कर जीवका उपार्जन का साधन बनाया जा सकता है।

#फाफरा , #फाफर को ही आम बोलचाल में #कुट्टू कहा जाता है। यह उत्तराखण्ड में पारम्परिक रूप से उगायी जाने वाली फसल है। #उत.....

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