Joshimath vikas ke name pe beth Chad gaya kay ham uttrakhandi log vikas ke name pe Bali ke bhet Chad rahe hai
महाभारत के युद्ध से पूर्व और युद्ध समाप्त होने के बाद भी पांडवों ने गढ़वाल में लंबा समय
व्यतीत किया। यहीं लाखामंडल में दुर्योधन ने पांडवों को उनकी माता कुंती समेत जिंदा
जलाने के लिए लाक्षागृह का निर्माण कराया था। महाभारत के युद्ध के बाद कुल हत्या, गोत्र
के
हत्या व ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान नारायण ने पांडवों को शिव की
शरण में केदारभूमि जाने की सलाह दी थी। यही कारण है कि आज भी उत्तराखंड में
सर्दियों में पाण्डव नृत्य का आयोजन होता है। जो लगभग 1 माह से अधिक चलता है। और
आखिर पाण्डव नृत्य के आयोजन के आखिरी में वो घड़ी आ जाती है जब पांडव अपने
बाणों को गाँववालों को सौंपकर स्वर्गारोहिणी की यात्रा पर निकल पड़ते हैं यही क्षण वह
भावुक क्षण होते हैं जब प्रत्येक गांव वालों की आंखों में आंसू होते हैं, धन्य है उत्तराखंड के
लोग और यहां की संस्कृति और लोककला
Dekha laparwahi ka natija
#pahad_boy bachapan ki kuch yaad aaya