22/01/2024
भगवान राम भारत के प्राण तत्व हैं और उनका चरित्र भारतीय संस्कृति की आत्मा है - डॉ अभिषेक कुमार उपाध्याय
जम्मू- आज श्री अयोध्या धाम में श्रीराम जी के विषय में बताते हुए श्री श्री 1008 श्री मौनी बाबा चैरिटेबल ट्रस्ट न्यास के मुख्य न्यासी डॉ अभिषेक कुमार उपाध्याय ने बताया कि आज अयोध्या त्रेता युग में प्रवेश कर रही है। अवध पूरी आवत जानी। भई सकल सोभा के खानी।। गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज की यह उपमा आज श्री अयोध्या धाम के धरातल पर दृष्टिगोचर हो रही है।आज भगवान श्रीराम अपने अपने नव्य, भव्य एवं मन्दिर में विराजमान हो गये। अनादि काल से ही सनातन धर्म और संस्कृति की ध्वजा के संरक्षक चक्रवर्ती सम्राटों के द्वारा सेवित रही पावन पुरी अयोध्या एक बार पुनः अपने गौरवशाली इतिहास को प्राप्त हो रही है। वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी सम्पन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है-
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या ।
तस्यां हिरण्मय कोश स्वर्गो ज्योतिषावृतः ॥
वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना महान तपस्वी राजा मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन अर्थात् लगभग 144 कि.मी लम्बाई और तीन योजन यानी लगभग 36 कि.मी. चौड़ाई में बसी थी। शताब्दी तक धनधान्य से परिपूर्ण यह नगरी सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रही। स्कन्दपुराण के अनुसार सरयू के तट पर दिव्य शोभा से युक्त दूसरी अमरावती अर्थात देवताओं के राजा इंद्र का नगर के समान अयोध्या नगरी की दिव्यता है।
हमारे सनातन सद्ग्रन्थों के अनुसार धरती पर सृष्टि का प्रारंभ और प्रलय के बीच की अवधि में चार युग होते हैं। सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग। काल को गणना के अनुसार इन चारों युगों को मिलाकर एक कल्प होता है। प्रत्येक कल्प के त्रेता युग में भगवान श्री राम का धरती पर आगमन होता है। आम मान्यता यह है की धरती पर प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए भगवान श्री राम के रूप में विष्णु भगवान का पूर्णावतार होता है। परंतु कवि कुल चूड़ामणि पूज्य संत तुलसीदास जी की मानें तो हम जिस कल्प में जी रहे हैं, उसके त्रेता युग में पूरे ब्रह्मांड के नियंता ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया, जिन्हें हम ब्रह्म राम कहते हैं। यही रामजी धरती के सबसे बड़े देव अर्थात महादेव के इष्ट देव भी हैं। सनातन जहां चहक उठे, सत्य जहां मणि की तरह चमके। जो किसी युद्ध में न हारे वही अयोध्या धाम है। मर्यादा जहां गौरवान्वित हो और संस्कार जिसकी थाती हो वही तो अयोध्या है।
बाबा तुलसीदास जी कहते है कि रामजी, अवधपुरी को अपने साकेत धाम से भी अधिक प्रिय बताते हैं-
जद्यपि सब बैकुट बखाना।
बेद पुरान बिदित जगु जाना ॥
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ।
यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ ॥
अर्थात संत तुलसीदास जी के राम जी क्षीरसागर वाले विष्णु भगवान नहीं हैं।
इस कल्प में जब रामजी का आगमन इक्ष्वाकु वंश में हुआ तब इस कुल की 66वीं पीढ़ी के चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ अवधपुरी के राजा थे। उनसे पहले हरिश्चन्द्र, सगर, पृथु, दिलीप, भगीरथ और रघु जैसे दर्जनों महान, धर्मात्मा और पराक्रमी राजाओं
ने अपने सत्कर्मों से इस कुल को पवित्र किया था। अपने धर्माचरण और पराक्रम से यश अर्जित करने वाले महात्मा रघु के नाम पर ही इस वंश का नाम रघुवंश पड़ा। रामायण में गुरु वशिष्ठ जी ने राम जी के कुल का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है।
यहां यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि हमारे भगवान श्रीराम का जन्म नहीं हुआ था। वह अपनी माता के कक्ष में प्रकट हुए थे और माता के कहने पर
उन्होंने शिशु लीला से इस धरती पर अपनी नर लीला का प्रारंभ किया था। भगवान का शरीर निज इच्छा से निर्मित था। सामान्य मानव की तरह
हाड़ - मांस का नहीं था। भगवान को देवता अथवा मनुष्य समझने वाले नासमझ लोग हैं। हमारे भगवान माँ के उदर से जन्म नहीं लेते हैं और
इसलिए ही हम कहते हैं कि उदर से जन्म लेने वाले लोग भगवान नहीं हो सकते हैं। मां के पेट से जन्म लेने वाले भगवान के पार्षद तो हो सकते हैं लेकिन भगवान नहीं। हमारे भगवान का सबकुछ दिव्य था और उन्होंने केवल मानवता के कल्याण के लिए ही इस
धरती पर अवतार लिया था। एक मानव के रूप में उन्होंने मानवीय सम्बन्धों को जीने का जो उदाहरण प्रस्तुत किया, उन्हीं को हम धर्म की मर्यादा कहते हैं। मानवीय मर्यादाओं को सहेजने के कारण ही भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये।
हमारे भीतर जो कुछ भी है, वह राम है। जो शाश्वत है, वह राम है। सब-कुछ लुट जाने के बाद जो बचा रह जाता है, वही तो राम है। घोर निराशा के बीच जो उठ खड़ा होता है, वह भी राम ही है। भगवान राम भारत के प्राण तत्व हैं, उनका चरित्र भारतीय संस्कृति की आत्मा है। बिना राम के चरित्र के भारत निष्प्राण है। भारतीय जनमानस के रोम रोम में राम बसे हुए हैं। संसार सागर से पार उतरने का प्रमुख साधन राम नाम ही है। "श्री राम" नाम का अर्थ "राम" नाम एक सार्वभौमिक ऊर्जा है जो सबको एक सुखद और जीवंत ऊर्जा प्रदान करती है। दुनिया भर के आस्थावान लोग भगवान श्रीराम जी को एक राजा, पति, मित्र, पिता, भाई और प्रभु के रूप में भगवान श्री राम और उनके आदर्शों और सिद्धांतों का सम्मान करते हैं और सहज तथा सुखी जीवन पाने के लिए उनका पालन करने का प्रयास करते हैं। अक्षर 'रा' प्रकाश या अग्नि का प्रतीक है। यही कारण है कि कई प्राचीन संस्कृतियों में सूर्य को 'रा' कहा जाता था। यह न केवल ऊर्जा का प्रकाश है, बल्कि ज्ञान और आत्मज्ञान का भी प्रकाश है। अक्षर 'म' 'मन' (मानस) का प्रतीक है। इसमें स्व (आत्मा) और 'मनुष्य' भी शामिल है। इस प्रकार से मन, मष्तिष्क अथवा मानव को प्रकाशित करने का सबसे सुलभ साधन है रामनाम। प्रातः स्मरणीय संत तुलसीदास जी इसे कलियुग में भवसागर से पार जाने का एकमात्र साधन बताते हैं वे बड़े ही सहज भाव से कहते हैं-
कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।
नाम जप में किसी विधिविधान, देश, काल, अवस्था को कोई बाधा नहीं है। इसीलिए सदैव राम नाम का जप करें।
हमारी सनातन परंपरा में तो मृत्यु होने उपरान्त रामनाम सत्य ऐसे उद्घोष के साथ अर्थी लेकर जाते है। सुशासन के लिए रामराज्य ये अभिव्यक्तियां पग-पग पर राम जी को हमारे साथ खड़ा करती हैं। राम भी इतने सरल हैं कि हर जगह खड़े हो जाते हैं। हर भारतीय उन पर अपना अधिकार मानता है। जिसका कोई नहीं उसके लिए राम हैं- निर्बल के बल, राम। असंख्य बार देखी सुनी पढ़ी जा चुकी रामकथा का आकर्षण कभी नहीं खोता। जो शाश्वत है, वह राम हैं। सब-कुछ लुट जाने के बाद जो बचा रह जाता है, वहीं तो राम है। घोर निराशा के बीच जो उठ खड़ा होता है, यह भी राम ही है। राम अनंत हैं और उनकी गाथा भी एवं उनकी कथा भी अनंत है। राम इस देश का गौरवशाली इतिहास ही नहीं हैं बल्कि एक संस्कृति और मर्यादा के सर्वोच्च मानदंड के जीवंत प्रतीक हैं, एक जीता जागता आदर्श हैं। इस राष्ट्र की हजारों वर्ष की सनातन परंपरा के लोकनायक और मूलपुरुष हैं। भारतवर्ष का हर व्यक्ति, चाहे पुरुष हो, महिला हो, किसी प्रांत या भाषा का हो उसे राम से, रामकथा से जो लगाव है, उसको जितनी जानकारी है, जितनी श्रद्धा है, वह अनुकरणीय है, जो और किसी में भी नहीं दिखती है। भगवान राम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं, वे राष्ट्र की आत्मा है। आज से विश्वभर के श्रद्धालु भक्त जन भगवान के श्रीचरण में दर्शन के लिए आ सकेंगे।