तू ही

तू ही जब तू है तो मैं नहीं जब मै हूँ तू नाहि।
तू ही निरंकार-धननिरन्कारजी।

तू ही निरंकार  #महाकुम्भ_2025 कुम्भ मेला क्षेत्र सेक्टर -16, तुलसी मार्ग पश्चिमी पर  #संत_निरंकारी_मिशन द्वारा मेले में ...
16/01/2025

तू ही निरंकार
#महाकुम्भ_2025 कुम्भ मेला क्षेत्र सेक्टर -16, तुलसी मार्ग पश्चिमी पर #संत_निरंकारी_मिशन द्वारा मेले में आये श्रद्धालुओं को समर्पित निःशुल्क डिस्पेंसरी का संचालन किया जा रहा है, साथ ही साथ प्रतिदिन सुबह 10.00 बजे से 11.30 बजे तक, दोपहर 12.30 बजे से 02.00 बजे तक एवं शाम 3.30 बजे से 05.00 बजे तक आध्यात्मिक जागृति हेतु सत्संग का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें कुम्भ मेले में आये श्रद्धालु भक्तजन इसका भरपुर लाभ उठा रहे हैं।

धननिरंकारजी 🙏

तू ही निरंकार           संस्कार क्या है?एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये औ...
16/01/2025

तू ही निरंकार
संस्कार क्या है?
एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थीI कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था।

बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा: मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया, इस पर घोड़ी बोली: *"बेटा जब में गर्भवती थी, तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।

यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: *"मां मैं इसका बदला लूंगा।"

मां ने कहा "राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है, यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाये", पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली।

एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया।युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।

इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: "मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था,पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया....इस पर घोडी हंस कर बोली: बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं,तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।"

"तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती,क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।"

यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है,वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं,माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं,उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं।

हमारे कर्म ही 'संस्‍कार' बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं! यदि हम कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा,वह मीठा व स्वादिष्ट होगा!
🙏 धननिरंकारजी 🙏

16/01/2025

तू ही निरंकार
धन निरंकार जी🙏🏻

पुणे रेलवे स्टेशन से, मेट्रो से महाराष्ट्र संत समागम जाने के लिए

15/01/2025

महाकुम्भ 2025 में सन्त-निरंकारी मिशन की सेवा जारी।
तू ही निरंकार -धननिरंकारजी 🙏

15/01/2025

महाकुंभ प्रयागराज में संत निरंकारी मिशन की विचारधारा का प्रचार प्रसार करते हुए, केंद्रीय प्रचारक महात्मा।

महाकुम्भ प्रयागराज में सन्त-निरंकारी मिशन कैम्प में पहुंचने हेतु सुगम मार्ग का स्थानीय नक्शा देखें और कुम्भ में शामिल हो...
15/01/2025

महाकुम्भ प्रयागराज में सन्त-निरंकारी मिशन कैम्प में पहुंचने हेतु सुगम मार्ग का स्थानीय नक्शा देखें और कुम्भ में शामिल होने जा रहे महापुरुषों को अवश्य ही उपलब्ध करायें।
तू ही निरंकार -धननिरंकारजी 🙏

13/01/2025

तू ही निरंकार

भक्ति क्या है...?
भक्ति हाथ पैरों से नहीं होती,वरना विकलांग कभी नहीं कर पाते।
ना ही भक्ति आंखों से होती है वरना सूरदास जी कभी नहीं कर पाते।
ना ही भक्ति बोलने सुनने से होती है वरना गूंगे बोले कभी नहीं कर पाते।
ना ही भक्ति धन और ताकत से होती है वरना गरीब और कमजोर कभी नहीं कर पाते।
भक्ति केवल भाव से होती है, भक्ति केवल एहसास है,विश्वास है, भक्ति हृदय से हो कर विचारों में आती है और आत्मा से जुड़ जाती है।
भक्ति भाव का सच्चा सागर है।
धननिरंकारजी 🙏

🙏तू ही निरंकार🙏महात्मा राम और महात्मा श्याम प्रेमी सत्संगी थे। जब तक सुबह उनको सतगुरु के दर्शन न होते, वे काम को हाथ न ल...
13/01/2025

🙏तू ही निरंकार🙏

महात्मा राम और महात्मा श्याम प्रेमी सत्संगी थे। जब तक सुबह उनको सतगुरु के दर्शन न होते, वे काम को हाथ न लगाते। जो प्रेमी हो, सतगुरु भी उनकी देखभाल करता है, कभी-कभी आज़माइश भी करता है। उन्होंने अपने खेतों में मक्का बोया हुआ था, उस दिन कुँए से खेतों को पानी देने की उनकी बारी थी। राम ने कहा, श्याम! आज सतगुरु जी के दर्शन नही हुए। श्याम ने जवाब दिया, मुझे भी नही हुए, लेकिन अगर आज पानी न दिया तो मक्का सुख जायेगा। राम बोला, सुख जायेगा तो सतगुरु का सुख जायेगा और दोनों फिर भजन ध्यान पर बैठ गये। एक घन्टे के बाद महाराज गुरुजी के दर्शन हो गये, तब उठकर रहट चलायी और पानी दिया, मक्का पहले से भी ढाई गुणा हुआ। सतगुरु हमेशा शिष्य के अंग-संग होते हैं और हर बात में मदद करते हैं।
🙏धन निरंकार जी 🙏

धन निरंकार जी 🙏🏻❤️🌿 प्रार्थना दिवस सत्संग समारोहसतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज- इनके असीम अनुकंपा से महाराष्ट्र का वार्ष...
13/01/2025

धन निरंकार जी 🙏🏻❤️🌿

प्रार्थना दिवस सत्संग समारोह

सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज- इनके असीम अनुकंपा से महाराष्ट्र का वार्षिक निरंकारी संत समागम दिनांक 24, 25, 26 एवं 27 जनवरी 2025 को पुणे में संपन्न होने जा रहा है l

संत समागम निर्विघ्न रूप से संपन्न हो तथा आने वाले संतों, महापुरुषों की यथा-उचित सेवा व आदर-सत्कार हो सके, इस अरदास के साथ प्रार्थना दिवस सत्संग कार्यक्रम का आयोजन आनेवाले रविवार, 19 जनवरी 2025 को समागम ग्राउंड मुख्य पंडाल में किया गया है l

स्थान : मिलिटरी डेअरी फार्म ग्राउंड, पिंपरी पॉवर हाऊस के बाजू में, पुणे 411017

समय : सुबह 10:00 से दोपहर 02:00 बजे तक

लोकेशन : https://maps.app.goo.gl/Sw3rSzXCVRokBmFJ8?g_st=iw

➡️ कृपया सभी झोनल इन्चार्ज, संयोजक तथा मुखी-प्रबंधक महात्मा ये सूचना अपने अपने संगतों तक पहुँचाए जी 🙏🏻

आपका दास,
शंभूनाथ तिवारी,

13/01/2025
गुरुवचनामृततू ही निरंकार पुस्तक गुरुदेव हरदेव भाग 2            जिनके मन में प्रभु का निवास रहता है, प्रभु की याद रहती है...
13/01/2025

गुरुवचनामृत

तू ही निरंकार
पुस्तक गुरुदेव हरदेव भाग 2

जिनके मन में प्रभु का निवास रहता है, प्रभु की याद रहती है, वहाँ भूत-प्रेत आत्मायें नज़दीक नहीं फटकतीं। ये दुष्ट आत्मायें उन्हीं पर धावा बोलती हैं, जो इस परमशक्ति की होंद (अस्तित्व) को भूल जाते हैं। देवी-देवता उन्हीं को कहा जाता है, जो हमारे दुखों का निवारण करते हैं और हमें तन, मन, धन के सुखों से भरपूर करते हैं। ये देवी-देवता भी प्रभु से ही शक्तियाँ प्राप्त करते हैं।*
*जो ब्रह्मज्ञानी महापुरुष होते हैं, वे मानते हैं कि 'दद्दा-दाता एक है, सबको देवनहार'। इसलिये वे एक की पूजा-अर्चना के सिवाय किसी और शक्ति के सामने न तो नतमस्तक होते हैं, न पूजा-अर्चना करते हैं और न ही दुनियावी पदार्थों के लिये उनके सामने गिड़गिड़ाते हैं। एक दातार-प्रभु की ओट रखने वालों पर दुनिया की कोई भी वासना हावी नहीं हो पाती। वे जीवन-मुक्त होकर इस लोक में बड़े निश्चिन्त भाव से अपने जीवन की यात्रा को तय करते हैं। माया का कोई-सा भी रूप उन्हें भरमा नहीं सकता और न ही मन को एक प्रभु-परमात्मा की आस्था से विचलित कर सकता है।
सद्गुरु बाबा हरदेव जी महाराज
धन निरंकार जी संतो 🙏🌷🙏

तू ही निरंकार महापुरुष का आत्मकथ्यलस्सी का गिलासलस्सी का ऑर्डर देकर हम सब आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई मे लगे ही थे ...
13/01/2025

तू ही निरंकार
महापुरुष का आत्मकथ्य
लस्सी का गिलास

लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई मे लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की माताजी कुछ पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गईं।

उनकी कमर झुकी हुई थी चेहरे की झुर्रियों मे भूख तैर रही थी आंखें भीतर को धंसी हुई किन्तु सजल थीं।

उनको देखकर मन मे ना जाने क्या आया कि मैने जेब से सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया दादी लस्सी पियोगे।

मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 2-4-5 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 30 रुपए की एक है
इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उन दादी के मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी
दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए।

मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा ये किस के लिए अम्मा जी, इनको मिला के पिला दो बेटे।

भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी
एका एक आंखें छलछला आईं और भर भराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा
उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गईं अब मुझे वास्तविकता मे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार ,अपने ही दोस्तों और अन्य कई ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए ना कह सका डर था कि कहीं कोई टोक ना दे कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर मे बैठ जाने पर आपत्ति ना हो
लेकिन वो कुर्सी जिस पर मैं बैठा था मुझे काट रही थी लस्सी से भरा ग्लास हम लोगों के हाथों मे आते ही मैं अपना लस्सी का ग्लास पकड़कर दादी के पास मे ही जमीन पर बैठ गया,क्योंकि ये करने के लिए मैं स्वतंत्र था इससे किसी को आपत्ति नही हो सकती थी हां मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल के लिए घूरा।

लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बिठाया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा ऊपर बैठ जाइए साहब।

अब सबके हाथों मे लस्सी के ग्लास और होठों पर मुस्कुराहट थी बस एक वो दादी ही थीं जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसूं होंठों पर मलाई के कुछ अंश और सैकड़ों दुआएं थी।

सीख: ना जाने क्यों जब कभी हमें 10-20-50 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उस पर खर्च करने होते हैं तो वो हमें बहुत ज्यादा लगते हैं। लेकिन सोचिए कभी कि क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं ? क्या उन रुपयों को खर्च कर दुआएं नही खरीदी जा सकती हैं सोचो ओर अच्छा लगे तो किसी भी गरीब ओर भूखे इंसान की मदद ज़रूर करें
सदगुरु सब को सम्मति दे।
धननिरंकारजी महापुरुषों जी🙏

13/01/2025

महात्मा बहन द्वारा प्रस्तुत भावपूर्ण भजन

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