तू ही

तू ही जब तू है तो मैं नहीं जब मै हूँ तू नाहि।
तू ही निरंकार-धननिरन्कारजी।

21/12/2024

तू ही निरंकार
एक साधक (कार्यकर्ता) का कर्तव्य बिना रुके बढते रहना है । जब साधक को सत्य पथ मिल जाता है , तो फ़िर उसकी गति थमनी नहीं चाहिए।

सत्य पथ के साधक को घडी की भांति गतिशील रहना चाहिए । जिस प्रकार घडी की सुईयां दिन - रात चलती रहती हैं , साधक को भी निरंतर चलते रहना चाहिए।

जिस दिन घडी रुक गई , उसे बदल दिया जाएगा या उसका स्थान नई घडी ले लेगी । इसी तरह यदि सत्य पथ पर चलने वाला साधक(कार्यकर्ता) गतिशील नहीं रहता , रुक जाता है - तो उसकी सेवा का स्थान भी कोई अन्य ले लेता है। " धननिरंकारजी"🙏

*तू ही निरंकार*कोई आवेदन नहीं किया था, किसी की सिफारिश नहीं थी,फिर भी यह स्वस्थ शरीर प्राप्त हुआ।सिर से लेकर पैर के *अंग...
20/12/2024

*तू ही निरंकार*

कोई आवेदन नहीं किया था,
किसी की सिफारिश नहीं थी,
फिर भी यह स्वस्थ शरीर प्राप्त हुआ।

सिर से लेकर पैर के *अंगूठे तक* हर क्षण *रक्त* प्रवाह हो रहा है....
*जीभ पर* नियमित लार का अभिषेक कर रहा है...

न जाने कौनसा *यंत्र* लगाया है कि निरंतर *हृदय* धड़कता है...

*पूरे शरीर हर अंग मे बिना रुकावट संदेशवाहन करने वाली प्रणाली
कैसे चल रही है
कुछ समझ नहीं आता।

*हड्डियों और मांस में* बहने वाला *रक्त* कौन सा अद्वितीय *आर्किटेक्चर* है,
इसका किसी को अंदाजा भी नहीं है।

*हजार-हजार मेगापिक्सल वाले दो-दो कैमरे*के रूप मे आँखे संसार के दृश्य कैद कर रही है।

*दस-दस हजार* टेस्ट करने वाली *जीभ* नाम की टेस्टर कितने प्रकार के स्वाद का परीक्षण कर रही है।

सेंकड़ो *संवेदनाओं* का अनुभव कराने वाली *त्वचा* नाम की *सेंसर प्रणाली* का विज्ञान जाना ही नहीं जा सकता।

अलग-अलग *फ्रीक्वेंसी की* आवाज पैदा करने वाली *स्वर प्रणाली* शरीर मे कंठ के रूप मे है।

उन फ्रीक्वेंसी का *कोडिंग-डीकोडिंग* करने वाले *कान* नाम का यंत्र इस शरीर की विशेषता है।

*पचहत्तर प्रतिशत पानी से भरा शरीर लाखों रोमकूप होने के बावजूद कहीं भी लीक नहीं होता...*

बिना किसी सहारे मैं सीधा खड़ा रह सकता हूँ..

गाड़ी के *टायर*चलने पर घिसते हैं, पर पैर के *तलवे* जीवन भर चलने के बाद आज तक नहीं घिसे
*अद्भुत* ऐसी रचना है।

हे भगवान तू इसका संचालक है तू हीं निर्माता।
*स्मृति, शक्ति, शांति ये सब भगवान तू देता है।* तू ही अंदर बैठ कर *शरीर* चला रहा है।
*अद्भुत* है यह सब, अविश्वसनीय।

ऐसे *शरीर रूपी* मशीन में हमेशा तू ही है,
इसका अनुभव कराने वाला *आत्मा* भगवान तू है।

यह तेरा खेल मात्र है। मै तेरे खेल का निश्छल, *निस्वार्थ आनंद* का हिस्सा रहूँ!...ऐसी *सद्बुद्धि* मुझे दे!

तू ही यह सब संभालता है इसका *अनुभव* मुझे हमेशा रहे! रोज पल-पल कृतज्ञता से तेरा ऋणी होने का स्मरण, चिंतन हो, यही परम पिता परमात्मा के चरणों में प्रार्थना है।🙏
धननिरंकारजी 🙏

18/12/2024

एक बहुत ही बेहतरीन,प्यारा सा निर्गुण भजन परवान करें महापुरुषों जी व दास पर अपना आशीर्वाद बनाए रखें।🙏
तू ही निरंकार -धननिरंकारजी महापुरुषों जी।🙏

18/12/2024

तू ही निरंकार -धननिरंकारजी महापुरुषों जी।🙏
जो गुर आँखे ओह कुझ करना सेव कामना सिखी ऐ।
जो कुझ देवे ओह कुझ खा के शुकर मनाणा सिखी ऐ।
जो गुरु का आदेश नहीं मानता और गुरु की आज्ञा से बाहर होकर कर्म करता है, उसे गुरसिख कहलाने का हक नहीं, गुरसिखों की निशानी कोई ऊंचें - ऊंचें बोल बोलना, धडल्लेदार भाषण देना या सुरीले गीत गाना नहीं बल्कि गुरु के आदेश का हर हाल में पालन करना है।
"बाबा गुरबचन सिंह जी"

*🌷 गुरमत के अनुभव*🌷      गुरमुख का चरित्र व आचरणपृष्ठ क्रमांक : ६८-६९सब कुछ करते हुए भी अकर्ता बनना गुरसिखी की सीढ़ी चढ़...
18/12/2024

*🌷 गुरमत के अनुभव*🌷

गुरमुख का चरित्र व आचरण

पृष्ठ क्रमांक : ६८-६९

सब कुछ करते हुए भी अकर्ता बनना गुरसिखी की सीढ़ी चढ़ना है। जितनी कोई वस्तु सूक्ष्म है, उतनी ही शक्तिशाली है जैसे कि एटम बम। जितना गुरसिख अपने आपको अकर्ता मानता है, अपने अभिमान को मिटाता है उतना ही निरंकार उसके अंदर अदभुत शक्ति पैदा कर देता है, उसके वचन भी सत्य होने शुरू हो जाते हैं और लोगों का उस पर विश्वास भी बढ़ता चला जाता है।
राज-वासदेव सिंह जी

🙏🏻 धन निरंकार जी🙏🏻

18/12/2024

आशीर्वाद राज पिता का।
परवान करें महापुरुषों जी।
तू ही निरंकार -धननिरंकारजी 🙏

तू ही निरंकार मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे-कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलजार होता है।दाना जब सड़ता है ज़मीन...
17/12/2024

तू ही निरंकार
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे-
कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलजार होता है।
दाना जब सड़ता है ज़मीन के अंदर तभी अंकुरित होता है।
मनुष्य जब स्वयं के अस्तित्व- वजूद को खत्म कर देता है।
अहंकार शून्य हो जाता है तब निरंकार को पाता है।
🙏🏼धन निरंकार जी 🙏🏼

गुरुवचनामृतपुस्तक गुरुदेव हरदेव भाग 2            जिनके मन में प्रभु का निवास रहता है, प्रभु की याद रहती है, वहाँ भूत-प्र...
17/12/2024

गुरुवचनामृत

पुस्तक गुरुदेव हरदेव भाग 2

जिनके मन में प्रभु का निवास रहता है, प्रभु की याद रहती है, वहाँ भूत-प्रेत आत्मायें नज़दीक नहीं फटकतीं। ये दुष्ट आत्मायें उन्हीं पर धावा बोलती हैं, जो इस परमशक्ति की होंद (अस्तित्व) को भूल जाते हैं। देवी-देवता उन्हीं को कहा जाता है, जो हमारे दुखों का निवारण करते हैं और हमें तन, मन, धन के सुखों से भरपूर करते हैं। ये देवी-देवता भी प्रभु से ही शक्तियाँ प्राप्त करते हैं।
जो ब्रह्मज्ञानी महापुरुष होते हैं, वे मानते हैं कि 'दद्दा-दाता एक है, सबको देवनहार'। इसलिये वे एक की पूजा-अर्चना के सिवाय किसी और शक्ति के सामने न तो नतमस्तक होते हैं, न पूजा-अर्चना करते हैं और न ही दुनियावी पदार्थों के लिये उनके सामने गिड़गिड़ाते हैं। एक दातार-प्रभु की ओट रखने वालों पर दुनिया की कोई भी वासना हावी नहीं हो पाती। वे जीवन-मुक्त होकर इस लोक में बड़े निश्चिन्त भाव से अपने जीवन की यात्रा को तय करते हैं। माया का कोई-सा भी रूप उन्हें भरमा नहीं सकता और न ही मन को एक प्रभु-परमात्मा की आस्था से विचलित कर सकता है।
सद्गुरु बाबा हरदेव जी महाराज
धन निरंकार जी- महापुरुषों जी 🙏

17/12/2024

तू ही निरंकार।🙏
समझ न सकता खेल कोई भी, सतगुर दीनदयाल की|
इनके एक इशारे से, पतझड़ में फूल खिल जाते हैं|
छोड़ कर मन की सब चतुराई, जो गुरमत को अपनाया है।
इनकी दया मेहर से उसके, बिगड़े काम बन जाते हैं|
हर दिल को ही प्यार चाहिए, हर दिल प्यार का प्यासा है|
प्यार बिना नीरस है जीवन, आनंद नहीं मिल पाता है|
इतना प्यार दिया है सतगुर, इसे बांटते जायें|
सतगुर का फरमान यही है, हम प्यार का जहाँ बसायें|
सभी सन्त- महात्मा के पावन चरणों में दास का
कोटि कोटि धन निरंकार जी।🙏

तू ही निरंकार                        प्यासएक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब गाड़ी रुकी तो एक लड़का पानी बेचता हुआ निकला...
17/12/2024

तू ही निरंकार
प्यास
एक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब गाड़ी रुकी तो एक लड़का पानी बेचता हुआ निकला।
ट्रेन में बैठे एक सेठ ने उसे आवाज दी,ऐ लड़के इधर आ।

लड़का दौड़कर आया।

उसने पानी का गिलास भरकर सेठ
की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा,
कितने पैसे में?

लड़के ने कहा - पच्चीस पैसे।

सेठ ने उससे कहा कि पंदह पैसे में देगा क्या?

यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान
दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ आगे बढ़ गया।

उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे,
जिन्होंने यह नजारा देखा था कि लड़का मुस्करा कर मौन रहा।

जरूर कोई रहस्य उसके मन में होगा।

महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के के
पीछे- पीछे गए।

बोले : ऐ लड़के ठहर जरा, यह तो बता तू हंसा क्यों?

वह लड़का बोला,

महाराज, मुझे हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास तो लगी ही नहीं थी।
वे तो केवल पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे।

महात्मा ने पूछा -

लड़के, तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठजी को प्यास लगी ही नहीं थी।

लड़के ने जवाब दिया -

महाराज, जिसे वाकई प्यास लगी हो वह कभी रेट नहीं पूछता।

वह तो गिलास लेकर पहले पानी पीता है।
फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं?

पहले कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास लगी ही नहीं है।

वास्तव में जिन्हें ईश्वर और जीवन में
कुछ पाने की तमन्ना होती है,
वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते।

पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती,
वे ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं।
वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते.

अगर भगवान नहीं है तो उसका ज़िक्र क्यो??

और अगर भगवान है तो फिर फिक्र क्यों ???
:
" मंज़िलों से गुमराह भी ,कर देते हैं कुछ लोग ।।

हर किसी से रास्ता पूछना अच्छा नहीं होता..

अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया ...

तो बेशक कहना...

जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी

और जो भी पाया वो रब/गुरु की मेहरबानी थी!

खुबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच मैं
ज्यादा मैं मांगता नहीं और वो कम देता नही....
जन्म अपने हाथ में नहीं ;
मरना अपने हाथ में नहीं ;
पर जीवन को अपने तरीके से जीना अपने हाथ में होता है ;
मस्ती करो मुस्कुराते रहो ;
सबके दिलों में जगह बनाते रहो ।I
जीवन का 'आरंभ' अपने रोने से होता हैं
और
जीवन का 'अंत' दूसरों के रोने से,
इस "आरंभ और अंत" के बीच का समय भरपूर हास्य भरा हो.
बस यही सच्चा जीवन है!
🙏 धननिरंकारजी 🙏🏻

तू ही निरंकार “हर चीज का हल होता है,आज नहीं तो कल होता है..”एक बार एक राजा की सेवा से प्रसन्न होकर एक साधू नें उसे एक ता...
16/12/2024

तू ही निरंकार

“हर चीज का हल होता है,आज नहीं तो कल होता है..”

एक बार एक राजा की सेवा से प्रसन्न होकर एक साधू नें उसे एक ताबीज दिया और कहा की राजन इसे अपने गले मे डाल लो और जिंदगी में कभी ऐसी परिस्थिति आये की जब तुम्हे लगे की बस अब तो सब ख़तम होने वाला है,परेशानी के भंवर मे अपने को फंसा पाओ,कोई प्रकाश की किरण नजर ना आ रही हो,हर तरफ निराशा और हताशा हो तब तुम इस ताबीज को खोल कर इसमें रखे कागज़ को पढ़ना,उससे पहले नहीं!

राजा ने वह ताबीज अपने गले मे पहन लिया !एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार करने घने जंगल मे गया! एक शेर का पीछा करते करते राजा अपने सैनिकों से अलग हो गया और दुश्मन राजा की सीमा मे प्रवेश कर गया,घना जंगल और सांझ का समय,तभी कुछ दुश्मन सैनिकों के घोड़ों की टापों की आवाज राजा को आई और उसने भी अपने घोड़े को एड लगाई,राजा आगे आगे दुश्मन सैनिक पीछे पीछे! बहुत दूर तक भागने पर भी राजा उन सैनिकों से पीछा नहीं छुडा पाया ! भूख प्यास से बेहाल राजा को तभी घने पेड़ों के बीच मे एक गुफा सी दिखी,उसने तुरंत स्वयं और घोड़े को उस गुफा की आड़ मे छुपा लिया ! और सांस रोक कर बैठ गया,दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज धीरे धीरे पास आने लगी ! दुश्मनों से घिरे हुए अकेले राजा को अपना अंत नजर आने लगा,उसे लगा की बस कुछ ही क्षणों में दुश्मन उसे पकड़ कर मौत के घाट उतार देंगे ! वो जिंदगी से निराश हो ही गया था,की उसका हाथ अपने ताबीज पर गया और उसे साधू की बात याद आ गई !उसने तुरंत ताबीज को खोल कर कागज को बाहर निकाला और पढ़ा ! उस पर्ची पर लिखा था —“यह भी कट जाएगा “

राजा को अचानक ही जैसे घोर अन्धकार मे एक ज्योति की किरण दिखी,डूबते को जैसे कोई सहारा मिला ! उसे अचानक अपनी आत्मा मे एक अकथनीय शान्ति का अनुभव हुआ ! उसे लगा की सचमुच यह भयावह समय भी कट ही जाएगा,फिर मे क्यों चिंतित होऊं ! अपने प्रभु और अपने पर विश्वास रख उसने स्वयं से कहा की हाँ,यह भी कट जाएगा !

और हुआ भी यही,दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज पास आते आते दूर जाने लगी,कुछ समय बाद वहां शांति छा गई ! राजा रात मे गुफा से निकला और किसी तरह अपने राज्य मे वापस आ गया !

दोस्तों,यह सिर्फ किसी राजा की कहानी नहीं है यह हम सब की कहानी है ! हम सभी परिस्थिति,काम,तनाव के दवाव में इतने जकड जाते हैं की हमे कुछ सूझता नहीं है,हमारा डर हम पर हावी होने लगता है,कोई रास्ता,समाधान दूर दूर तक नजर नहीं आता,लगने लगता है की बस,अब सब ख़तम,है ना?

जब ऐसा हो तो 2 मिनट शांति से बेठिये,थोड़ी गहरी गहरी साँसे लीजिये ! अपने आराध्य को याद कीजिये और स्वयं से जोर से कहिये –यह भी कट जाएगा ! आप देखिएगा एकदम से जादू सा महसूस होगा,और आप उस परिस्थिति से उबरने की शक्ति अपने अन्दर महसूस करेंगे!
🙏🏼 धननिरंकारजी 🙏🏿

तू ही निरंकार जन्म और मरण का चक्रनिरंकार से साकार और साकार से निरंकार हो जाते हैं। सभी जीव जंतु प्राणी, सारी सृष्टिजिससे...
16/12/2024

तू ही निरंकार
जन्म और मरण का चक्र
निरंकार से साकार और साकार से निरंकार हो जाते हैं। सभी जीव जंतु प्राणी, सारी सृष्टि
जिससे दृश्यमान जगत व्याप्त है। जिसके कारण अनंत ब्रह्मांड में हलचल है। जो कर्ता होकर भी अकर्ता है।
इसी निरंकार से सभी पैदा, प्रकट होते हैं, जन्म लेते हैं। सभी की उत्पत्ति होती है। और पुनः सभी इसी निरंकार में चले जाते हैं।
जो सतगुरु की कृपा से इसको जानते हैं। वो निरंकार में विलीन हो जाते हैं और जो नहीं जानते भटकते रहते हैं।
गुरु की कृपाएं होती हैं।गुरु की शरणागति होती है। तो यह परमात्मा सर्व व्यापक की प्राप्तियां गुरु ज्ञान से जुड़ा हुआ है ।और ज्ञान से जुड़कर के इस पार ब्रह्म को जान गया है ।वही इस परमपिता परमात्मा में गुरु के ज्ञान से अंत समय में विलीन होता है गुरु की आनंद कृपायें होती है। परमात्मा की कृपा होती है। यह मनुष्य तन हमें प्राप्त होता है ।अगर परमात्मा की कृपा नहीं होती है ।तो यह गुरु भी हमें नहीं मिलते हैं। आवागमन में हम चलते रहते हैं नित नए जन्म प्राप्त होते रहते हैं कई जन्म याद नही रहते याद जब आता है। जब हम मनुष्य तन में वापस परमात्मा की कृपा से आते हैं। और हमें गुरु की अनंत कृपा होती है। गुरु की कृपा से ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान से हम परमात्मा से जुड़ जाते हैं। सुमिरन के द्वारा हम रमे को राम को जान जाते हैं ।और अपने निज स्वरूप की हमें पहचान हो जाती है। यह सभी तथ्य और हमें परमात्मा की दया होती है। तो यह प्राप्त होते हैं। बिना इसकी दया मेहर की कुछ भी मिलना असंभव होता है दुर्लभ शणो में उत्पन्न मनुष्य शरीर और गुरु की कृपा मिल जाना परमात्मा की कृपा मिल जाना यह सब हमारे आवागमन को टालने के लिए यह क्षण हमें वापस प्राप्त होते हैं। और साकार से निराकार में चलते रहते है ।

धन निरंकार जी।🙏

16/12/2024

°

परब्रह्म-असीम सत्ता

चार युग, काल (समय) की सनातन अवधारणा अनुसार काल एक ही रेखा या दिशा में भूत से वर्तमान तथा वर्तमान से भविष्य की ओर नहीं, बल्कि भूत से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य तक की एक निश्चित अवधि करता है। वृत्त के समान अपनी उस मूल अवस्था में पहुँच कर पुनः नया चक्र बनता है। इसलिए काल को काल चक्र कहा गया है। इस प्रकार एक के बाद एक ये काल चक्र चलते रहते हैं। ये अनादि तथा अनंत हैं। इस काल के प्रभाव से रहित होने के लिए असीम से जुड़ना है। यह तो सत्य है कि परमात्मा से पूर्णता प्राप्त होती है। साथ ही ब्रह्म के रहस्य से अवगत कराने वाले और इस दिशा में प्रेरित करने वाले का महत्व भी सबसे अधिक है और वह है गुरु या सतगुरु।
मोक्ष का अर्थ है आत्मा का जन्म-मरण या आवागमन के चक्र से निकलकर ब्रह्म में लीन हो जाना। यही आत्मा की अंतिम परिणति है और मनुष्य जीवन का परम उद्देश्य भी। आत्मा को ब्रह्म का ही एक बिछुड़ा (विलग) हुआ अंश रूप माना गया है। अनेक योनियों के शुभ तथा सद्कार्यों से मनुष्य देह में आने के बाद आत्मा का अंतिम लक्ष्य ब्रह्म में लीन हो जाना है। इसके लिए व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति के अनुसार सत्गुरु का शिष्यत्व प्राप्त कर सकता है। उस गुरु के बताये मार्ग पर चलकर व्यक्ति संसार की नाना वस्तुओं तथा संबंध संबंधियों से विरक्त होकर एकाग्र-मन से ब्रह्म का ध्यान कर या उसकी भक्ति में स्वयं को पूर्णतया समर्पित कर उसे पा सकता है। मुक्ति को अमरत्व भी कहा गया है। मुक्ति होने पर आत्मा ब्रह्म में जा मिलती है और ब्रह्म स्वयं अजर तथा अमर है।
सतगुरु द्वारा प्रेरित जीव ही नाम-स्मरण का अधिकारी बनता है। गुरु ही नाम की सत्ता से जीव का परिचय करवाता है। गुरु ही सत्ता से भटके हुए जीव का यथार्थ एवं अपेक्षित मार्ग दर्शन करता है। इससे जीवात्मा अपने वास्तविक घर को पहचान कर जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा जाती है। सत्गुरु के बिना मुक्ति संभव नहीं। शरीर के स्वर्ण मंदिर में रहने वाली जीवात्मा को सत्य के प्रति आकर्षण एवं विशुद्धता के प्रति सौहार्द बनाए रखने की अपेक्षा है। सत्गुरु की कृपा का यही पुण्य प्रताप है। केवल तभी जीवात्मा अपने विशाल स्रोत को पहचान सकती है। गुरु कृपा से आत्मा मोक्ष की संपत्ति ग्रहण करने में समर्थ होती है। तभी तो संत जनसाधारण को सचेत करते हुए कहते हैं कि - हे जीव अभी समय है गुरु की शरण में पहुँच, क्योंकि गुरु की शरण से संतों का संसर्ग प्राप्त होता है, जिससे जीव की मुक्ति संभव है। परब्रह्म सर्वोच्च सत्ता है। यही परम तत्व है। संतों के अनुसार इस उच्चतम सत्ता को प्राप्त करके जीव उच्च पद पर आसीन होता है। यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे बूंद सागर के संसर्ग में स्वयं सागर बन जाती है तथा उच्च पद अधिष्ठित होती है।
सभी कहते हैं कि संसार क्षण भंगुर है, जिसके परिणामस्वरूप 'शून्य' का उद्घोष हुआ है। मेरी समझ के अनुसार इसी से संसार में शून्दवाद का अस्तित्व प्रकट हुआ है। शून्यवाद के बाद ही विशालता है। भला समस्त सृष्टि का स्वामी कण-कण में विराजमान, ब्रह्मांड को चलाने वाला शून्य कैसे हो सकता है? व्यावहारिकता में भी शून्य की स्थिति अच्छी नहीं। इससे जितना बचा जा सके उतना अच्छा। पूर्ण सतगुरु इस स्थिति का आभास भी नहीं होने देता। नौ शक्तियों के रूप में समस्त माया को समाप्त कर यह तुरन्त शून्य की स्थिति से निकालकर 'एक' के साथ जोड़ देता है। यह विशालता ही विस्तार से असीम की स्थिति है।
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संसार क्षण भंगुर है, जिसके परिणामस्वरूप 'शून्य' का उद्घोष हुआ है। इसी से संसार में शून्यवाद का अस्तित्व प्रकट हुआ है। शून्यवाद के बाद ही विशालता है। व्यावहारिकता में शून्य की स्थिति से आगे बढना आवश्यक है।
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स्मारिका 2024
पुष्ठ क्रमांक : 20
विस्तार-असीम की ओर

तू ही निरंकार -धननिरंकारजी महापुरुषों जी।🙏

तू ही निरंकार शाश्वत आनन्द..... ब्रह्मानूभूति पश्चात....                        आनन्द की अनुभूति का अर्थ है, मन-मस्तिष्क...
15/12/2024

तू ही निरंकार

शाश्वत आनन्द..... ब्रह्मानूभूति पश्चात....

आनन्द की अनुभूति का अर्थ है, मन-मस्तिष्क में ताजगी होना, हृदय में उल्लास का अलंकरण होना, शरीर में जोश, उत्साह, और ऊर्जा का होना. आंतरिक जागृति से ये संभव है. आनंद की अनुभूति से जीवन प्रफुल्लित और पुलकित हो जाता है. आनंद क्षणिक अथवा नश्वर नहीं शाश्वत होता है .आनंद की अनुभूति के कुछ संकेत ये हैं: संतुष्टि की आह, खुशी की चीख, उत्साहित विस्मय या चिल्लाहट, हंसी.

आनंद के कुछ पर्यायवाची शब्द ये हैं:-

प्रमोद, हर्ष, आमोद, प्रसन्नता, उल्लास, ख़ुशी.
आनंद दो तरह का होता है:- विषयानंद, परमानंद.
विषयों से मिलने वाले आनंद को विषयानंद कहते हैं जो संसार के चिंतन से मिलता है ।और ईश्वर की भक्ति से मिलने वाले आनंद को परमानंद कहते हैं।

तू ही निरंकार-धन निरंकार जी।🙏

14/12/2024

तू ही निरंकार -धननिरंकारजी महापुरुषों जी।🙏

माताजी ने बताया कि---संसार मे अच्छे बनेंगे तो मुश्किल , बुरे बनेंगे तो मुश्किल,, सिर्फ गुरु के बन जाएंगे तो हर बात से बच...
13/12/2024

माताजी ने बताया कि---
संसार मे अच्छे बनेंगे तो मुश्किल , बुरे बनेंगे तो मुश्किल,, सिर्फ गुरु के बन जाएंगे तो हर बात से बच जाएंगें।
गुरु का स्नेह सबसे अलग होता नि:श्वार्थ।
निष्काम फल अपने आप मे एक फल होता , फल के ऊपर फल नहीं उगते।
ना खुद कुछ बनना है ना ही किसी को कुछ बनाना है, बस अपने स्वरूप का ध्यान करना और कराना है।
प्रभु की शरण मे आ जाना है फिर प्रभु जाने , गुरु जाने, गुरु का काम- अपनी मन बुद्धि नहीं चलानी है।
कल की मत सोचो , ना बीते कल , ना आने वाले कल की चिंता, कल काल का नाम, अपने आज में जीना है।
क्यों बाहर के साथी ढूंढ रहे , निरन्कार-दातार को बना लो साथी, प्रभु को अपना साथी बना लेना है।
प्रभु अंग संग है ही है।
दुनियां वालों से क्या मांगते हो, वो खुद ही मांगते रहते है।
शुक्राने सतगुरु जी के।
तू ही निरंकार -धननिरंकारजी महापुरुषों जी।🙏

12/12/2024

यादें संजोयें और वार्षिक सन्त समागम के तीसरे दिन की सतगुरु वाणी परवान करें महापुरुषों जी, धननिरंकारजी 🙏

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Sultanpur

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09839464476

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