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उत्तराखंड में झंगोरे की गुडाई शुरू ______________________________________उत्तराखण्ड में झंगोरा की खेती बहुतायत मात्रा मे...
31/05/2024

उत्तराखंड में झंगोरे की गुडाई शुरू
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उत्तराखण्ड में झंगोरा की खेती बहुतायत मात्रा में असिंचित भू भाग में की जाती है। यह पोएसी परिवार का पौधा है। उत्तराखण्ड में झंगोरा को अनाज तथा पशुचारे दोनों के लिये उपयोग किया जाता है। झंगोरा की महत्ता इसी बात से लगाई जा सकती है कि इसको बिलियन डालर ग्रास का नाम भी दिया गया है। यह सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु चीन, नेपाल, जापान, पाकिस्तान तथा अफ्रीका में भी उगाया जाता है। जहां तक उत्तराखण्ड में झंगोरे की खेती की बात की जाए तो यह असिंचित भूमि, जहां पर सिंचाई का साधन न हो तथा बिना किसी भारी भरकम तकनीकी के कम लागत से आसानी से ऊगाई जाने वाली फसल है। कभी-कभी असिंचित धान/चैती धान के खेतों के चारों ओर भी बार्डर crop तथा Buffer zone के लिये भी उगाई जाती है। यह सभी Millets में सबसे तेज उगने वाली फसल है चूंकि झंगोरे में विपरीत वातावरण में भी में उत्पादन देने की क्षमता होती है, इसलिये हमारे पूर्वजों ने यहां की भौगोलिक परिस्थितियों, जलवायु, भूमि के प्रकार के हिसाब से इस महत्वपूर्ण फसल का चयन किया था। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इससे अनाज के साथ पशुचारा भी उपलब्ध हो जाता है, जिसे स्थानीय कास्तकार लंबे समय तक सुरक्षित रखकर, बर्फ के मौसम में या जब पशुचारे की कमी हो इसे उपयोग करते है। इसके पशुचारे को अगर कास्तकारों का Contingency fodder plan कहा जाए तो बेहतर हेगा।

विश्वभर में झंगोरा की 32 प्रजातियां पाई जाती है, जिसमें अधिकतम प्रजाति जंगली है केवल E. utilis तथा E. frumentacea ही मुख्यता उगाई जाती है। E. utitis जापान, कोरीया तथा चीन में जबकि E. frumentacea भारत तथा सेंट्रल अफ्रीका में उगाई जाती है। वैसे तो झंगोरे की उत्पति को सही-सही बता पाना बेहद मुश्किल है लेकिन कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर झंगोरे की उत्पत्ति भारत तथा अफ्रीकी देशों में क्रमवत विकास के साथ-साथ पाई गई है। Dogget 1989 के अध्ययन के अनुसार झंगोरा की उत्पत्ति इसकी जंगली प्रजाति E. crus-galli से लगभग 400 साल पूर्व मानी जाती है। कुछ Archeological वैज्ञानिकों के अनुसार जापान में Yayoi काल में झंगोरे का उत्पादन (Domestication) का वर्णन मिलता है।

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30/05/2024

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उत्तराखंड के खाली होते गांव और बंजर खेत, सरकारों की ओर आशा भरी नजर से टकटकी लगाए बैठी पहाड़ की जनता_____________________...
30/05/2024

उत्तराखंड के खाली होते गांव और बंजर खेत, सरकारों की ओर आशा भरी नजर से टकटकी लगाए बैठी पहाड़ की जनता
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पहाड़ की जनता हर पांच साल में सरकारों की ओर आशा भरी नजर से टकटकी लगाए बैठी है। लेकिन, सत्ता में आने और जाने वाले सियासी क्षत्रपों और सरकारी मुलाजिमों को पहाड़ के इन ज्वलंत मुद्दों के समाधान की कहां फिक्र है। पहाड़ी जनपदों में खेती से किसान बड़ी संख्या में विमुख हो रहे हैं। टिहरी, पौड़ी जनपद में खाली होते गांव और बंजर खेत इसकी तस्दीक करा रहे हैं। खेती से विमुख होने का सबसे बड़ा कारण जंगली जानवरों के द्वारा फसलों को पहुंचा जा नुकसान है। जंगली सूअर, बंदर, सेही, लंगूर और भालू पहाड़ की छोटे किसानों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। जिसके कारण बीते वर्षों में आर्थिक रूप से सक्षम सैकड़ों परिवार पहाड़ के गांव छोड़कर शहरों की ओर बढ़े है। गांव में इस पलायन से बंजर हुए खेत और खंडहर हुए घर जंगली जानवरों का डेरा बन रहे हैं। जो गांव में निवासरत आर्थिक रूप से अक्षम ग्रामीणों के लिए संकट बन चुके हैं।
इसके अलावा पहाड़ों के गांवों में अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को घोर कमी है। संचार की बदहाल सेवा, सरकारी तंत्र की बाबू व्यवस्था से भी ग्रामीण परेशान हैं। गांव में विधवा और बुजुर्गों को समय पर पेंशन नहीं मिल पाती है। जबकि उनका गुजारा पेंशन पर ही निर्भर है। गांव के स्कूलों में 50 किलोमीटर से अधिक दूरी से सफर कर पढ़ाने को आने वाले शिक्षकों के रवैये से भी ग्रामीण परेशान हैं। लंबा सफर करने के बाद स्कूलों में ऐसे शिक्षक पूरी क्षमता के साथ नहीं पढ़ा पाते हैं। गांव बचाओ आंदोलन के सदस्य द्वारिका प्रसाद सेमवाल कहते हैं कि वर्तमान में गांवों निवास करने वालों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्गों की संख्या सबसे अधिक है। अधिकांश पुरुष वर्ग रोजगार के लिए शहरी क्षेत्रों में हैं।
इसलिए सरकार को महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के सोचने की जरूरत है। बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल, गांव में महिलाओं के अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं हों। राशन समय पर मिले, पेंशन समय पर मिल जाए। विद्युत आपूर्ति सुचारू रहे ग्रामीणों की इतनी ही अपेक्षाएं हैं।उत्तरकाशी सिरौर गांव की महिला कार्यकत्र्ता मंजू रावत कहती है कि सरकारी कार्यालयों में जब गांव के ग्रामीण किसी तरह पहुंचते हैं तो बाबू कई चक्कर कटवाते हैं।
जिस काम ने एक दिन में होना है, उसे होने में कई दिन लग जाते हैं। ये हाल समाज कल्याण, कृषि, उद्यान, खाद्यपूर्ति, वन विभाग सहित सभी विभागों का है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में खेती को नुकसान पहुंचा रहे जंगली जानवर बड़ी समस्या बन गए हैं। लेकिन वन विभाग की ओर से कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं किए गए हैं।

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30/05/2024

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29/05/2024

लोक सभा चुनाव 2024 पर क्या बोले विधायक - श्री विनोद कंडारी जी

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रामलीला में विधायक श्री विनोद कंडारी जी से मुलाकातFollow us on YouTube, Insta and Facebook - Rawat G Vlogs              ...
29/05/2024

रामलीला में विधायक श्री विनोद कंडारी जी से मुलाकात

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27/05/2024

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27/05/2024

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24/05/2024

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23/05/2024

हमारा गांव ऐसे बदलेगा तो देश कैसे बदलेगा ! (By - Rawat G Vlogs)
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ये आधुनिक किस्म का पुल्ल हमारे गाँव के नज़दीक, खतवाड गांव का है, जो ब्लाक कृतिनगर, जिला टिहरी गढ़वाल, क्षेत्र - बढियारगढ़ (उत्तराखंड) के अंतर्गत आता है |

इस गांव के अधिकतम परिवार पलायन कर चुके हैं, जिस वजह से क्षेत्रिय नेताओं का इस गांव के लोगों के आवागमन के साधनों पे कुछ ख़ास ध्यान नहीं है, इस गांव में सिर्फ एक परिवार है जो की यहाँ स्थायी रूप से इस गाँव में रहता है
ये पुल्ल काफी वर्षों से इसी हालत में है . इस पुल की हालत ऐसी है कि कोई बुजुर्ग या बच्चा इस पुल से गिर सकता है |

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23/05/2024

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21/05/2024

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पहाड़ों में बचे हुए बुजुर्ग लोग अब ये कविता गुनगुनाते हैं_______________जब तक चलदि साँस,तब तक आस रै जान्द,दिन ता कटि ही ज...
21/05/2024

पहाड़ों में बचे हुए बुजुर्ग लोग अब ये कविता गुनगुनाते हैं
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जब तक चलदि साँस,
तब तक आस रै जान्द,

दिन ता कटि ही जान्द लाटा,
व्यखुनि बगत यकुलाँस ह्वै जान्द

सुवेर पन्देरा मा मारी लपाक
हाथ मुख पर पाणी छपाक
गिलास भोरी च्या पीण
दगडा़ मा मारी गूडा़ कटाक ।

चटणि मा बासी रवटि चपै की
सरा शरेल मा मिठास ह्वै जान्द ।

दिन ता कटि ही जान्द लाटा,
व्यखुनि बगत यकुलाँस ह्वै जान्द ।

म्वाला मुखर घाण्डी खाँखर
दौंली बान्धी बल्दू फर
सफेद कुर्ता काली फथकी
भ्यूँला कि सिटुकी हाथ फर

बीज कुछ भी बुतन्दू लाटा
पर फुगंडू़ मा घास ह्वै जान्द।

दिन ता कटि ही जान्द लाटा,
व्यखुनि बगत यकुलाँस ह्वै जान्द।

अजि भि मि यखुली गोर चरान्दू
झुल्लू अगेला न साफी जगान्दू
बस छतलूं लांठू दगड़्या म्यारा
अफी पकान्दू अफी ही खान्दू,

यखुली जिकुडा़ रूड़ प्वडी़ रैन्द
आँख्यू मा चौमास ह्वै जान्द।

दिन ता कटि ही जान्द लाटा,
व्यखुनि बगत यकुलाँस ह्वै जान्द।

हुक्का सजद चिलम भि बजद
बरसि मा दिनभर आग भि जगद,
यखुलि यखुलि बैठ्यूँ रैन्दू
चौंतरा मा अब कछडी़ नि लगद,

यखुलि यखुलि तम्बाकु खै-खै की
जिकुडी़ मा अब स्वाँस ह्वै जान्द।

दिन ता कटि ही जान्द लाटा,
व्यखुनि बगत यकुलाँस ह्वै जान्द।

राति खुणि स्वीणा नि आन्दा
भूत पिचास भि अब नि डरान्दा
बाच कखि कैकी कभि नि सुणेन्दी
लोग नि दिख्याँ महीनौ ह्वै जान्दा।

खटुलि मा टुप पोडि़की सोचदू
कुजणि कब स्वर्गवास ह्वै जान्द।

दिन ता कटि ही जान्द लाटा,
व्यखुनि बगत यकुलाँस ह्वै जान्द।

एक नौनू दिल्ली हैंकु बंगलौर
बेटी भि परदेश अपणा अपणा ठौर,
बुढडी़ म्वर्याँ पाँच साल ह्वैगी
तब बटि यखुलि मि घौर,

पुरणा दिनों थै सोचि सोचि कभि
यू मन भारी उदास ह्वै जान्द।

दिन ता कटि ही जान्द लाटा,
व्यखुनि बगत यकुलाँस ह्वै जान्द।

फोन कना रैन्दि नाती- नतेणा
मीथै बुलाणा मीथै भटेणा,
पर मि कनक्वै छोडि़ कि चलि जौं
म्यरा पुरण्यों का फाँगा बंझेणा,

वूँका एसी वला फ्लैटों मा
मैकू ता वनबास ह्वै जान्द।

दिन ता कटि ही जान्द लाटा,
व्यखुनि बगत यकुलाँस ह्वै जान्द।

जीवन की चा या सच्चाई
जैन भि मंथा मा जन्म पाई,
सब्बि धाणि यखि रै जान्द
मनखि खाली आई खाली गाई,

पर मोह-माया तब छुटदी लाटा
जब यु शरैल लांश ह्वै जान्द।

दिन ता कटि ही जान्द लाटा,
व्यखुनि बगत यकुलाँस ह्वै जान्द
रूमुक बगत यकुलाँस ह्वै जान्द

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20/05/2024

Rural Life In India - Uttarakhand

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