Mohan Tv2023

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many many congratulations इंडिया विजेता 2024
30/06/2024

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27/06/2024

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Hiiii
23/06/2024

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अंग्रेजों के जवाने  की दुर्लभ तस्वीर
22/06/2024

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        ka ho   hai
20/06/2024

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मेरी बेटी का जन्मदिन का फोटो
19/06/2024

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19/06/2024

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19/06/2024

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19/06/2024

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19/06/2024

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19/06/2024

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19/06/2024

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Hello
18/06/2024

Hello

इन भारतीय खिलाड़ियों को कौन-कौन पहचानता है कमेंट करके बताएं 😀😀😀इंडिया घर पर 2023-24 मार्च तक वर्ल्डकप को हटाकर कुल 16 मु...
27/10/2023

इन भारतीय खिलाड़ियों को कौन-कौन पहचानता है कमेंट करके बताएं 😀😀😀

इंडिया घर पर 2023-24 मार्च तक वर्ल्डकप को हटाकर कुल 16 मुकाबले खेलने वाली है, जिसमें 5 टेस्ट, 3 वनडे और 8 टी20 मुकाबले होंगे। भारतीय टीम वर्ल्डकप 2023 से ठीक पहले ऑस्ट्रेलिया के साथ सितंबर में तीन मैचों की वनडे सीरीज खेलेगी।

D.R BR.  Ambedkar All family
23/10/2023

D.R BR. Ambedkar All family

चना मसूर बुनाई का समय आगया !👇👇👇👇❤️❤️🙂🙂🙂
21/10/2023

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एक किसान था जिसके दो बेटे थे ।❤️🙏💟👆👆👆👆👆👆वह बहुत ही आलसी और निकम्मे थे, वह अपने पिता को कामकाज में हाथ बठाने के बजाए आलस ...
20/10/2023

एक किसान था जिसके दो बेटे थे ।
❤️🙏💟👆👆👆👆👆👆

वह बहुत ही आलसी और निकम्मे थे, वह अपने पिता को कामकाज में हाथ बठाने के बजाए आलस किया करते थे, इधर-उधर घूमते-फिरते थे।

किसान को अपने बेटों की बहुत फिकर थी, वोह सोचते थे की मेरे मरने के बाद इनका क्या होगा, यह अपना पेट कैसे भरेंगे, अपने परिवार को कैसे संभाल पायेंगे।

एक दिन किसान की हालत बहुत ही गंभीर थी, कहने का मतलब, किसान मरने की हालत में था।

तभी किसान ने अपने दोनों बेटो को बुलाकर उनसे कहां की, हमारे खेत में एक खजाना गढ़ा हुआ है, लेकिन वह किस जगह है उसकी जानकारी मुझे भी नहीं है, लेकिन खोदने बाद तुमे वो खजाना मिल जाएगा।

इतना कहकर किसान भगवान को प्यारे हो गये।

खजाने की खबर सुनकर दोनो बेटों के मन में लालच आ गया और वो दोनों खेत पर चले गये और खेत को खोदने लगे, खजाने के लालच में कुछ ही दिनों में पूरे खेत को खोदने के बाद वह घर जाकर बैठ गए और वह अपने पिता को कोसने लगे, इसी तरह कुछ महीने बित गए और वर्षा ऋतु का आगमन हुआ।

किसान के बेटों के पास पेट भरने के लिए सिर्फ एक ही जरिया था वोह है खेती।

तब बाकी किसानो की तरह किसान के बेटो ने खेत में बिज बोने शुरु कर दिए।

वर्षा का पाणी पाकर वह बिज अंकुशित हुए और देखते ही देखते खेत लहराने लगे।

ऐसा लग रहा था की हवा के झोके से लहरा रहा था।

यह देखकर किसान के बेटे बहुत खुश हो गये, उन को समझ आ गया की परिश्रम ही सच्चा धन होता है और वो उसी तरह से अपने पिता के शब्दो का मोल भी समझ गये और अपने कामकाज में लग गये।

Khajuraho Temples:🙏🙏🙏❤️❤️👌👌🌻मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का बहुत पुराना इतिहास (History) रहा है. भा...
20/10/2023

Khajuraho Temples:
🙏🙏🙏❤️❤️👌👌🌻
मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का बहुत पुराना इतिहास (History) रहा है.

भारत देश मे, मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का बहुत पुराना इतिहास (History) रहा है. यह विश्व धरोहर में शामिल है. यहां भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की बेमिसाल कलाकारी देखने को मिलती है. जिसे देखने के लिए हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं. चंदेल राजाओं ने यहां जो कामुक प्रतिमाएं मंदिरों में बनवाई थीं, उनका रहस्य आज भी बरकरार है. आज भी हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर मंदिरों में रतिक्रीड़ा, आध्यात्म, नृत्य मुद्राओं और प्रेम रस की प्रतिमाओं को क्यों बनाया गया? जिसके बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं. आइए जानते हैं.

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होम जनरल नॉलेज खजुराहो के मंदिर पर बनी तस्वीरों की क्या कहानी है? वहां ऐसी आकृति क्यों बनाई गई हैं?
खजुराहो के मंदिर पर बनी तस्वीरों की क्या कहानी है? वहां ऐसी आकृति क्यों बनाई गई हैं?

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Updated at: 20 May 2023 07:42 AM (IST)
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बताया जाता है, चंदेल वंश के राजाओं के शासनकाल में खजुराहो में तांत्रिक समुदाय की उपासनामार्गी शाखा का अत्याधिक बोलबाला हुआ करता था. इस समुदाय के लोग योग और भोग दोनों को ही मोक्ष का साधन माना करते थे.
खजुराहो के मंदिर पर बनी तस्वीरों की क्या कहानी है? वहां ऐसी आकृति क्यों बनाई गई हैं?

खजुराहो की मूर्तियों की कहानी ( Image Source : Pixabay )

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Khajuraho Temples: भारत देश मे, मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का बहुत पुराना इतिहास (History) रहा है. यह विश्व धरोहर में शामिल है. यहां भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की बेमिसाल कलाकारी देखने को मिलती है. जिसे देखने के लिए हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं. चंदेल राजाओं ने यहां जो कामुक प्रतिमाएं मंदिरों में बनवाई थीं, उनका रहस्य आज भी बरकरार है. आज भी हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर मंदिरों में रतिक्रीड़ा, आध्यात्म, नृत्य मुद्राओं और प्रेम रस की प्रतिमाओं को क्यों बनाया गया? जिसके बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं. आइए जानते हैं.

ये मान्यता है प्रचलित

बताया जाता है, चंदेल वंश के राजाओं के शासनकाल में खजुराहो में तांत्रिक समुदाय की उपासनामार्गी शाखा का अत्याधिक बोलबाला हुआ करता था. इस समुदाय के लोग योग और भोग दोनों को ही मोक्ष का साधन माना करते थे. खजुराहो के मंदिरों में बनीं ये मूर्तियां उनके क्रिया-कलापों की ही देन हैं.

अब भी यह रहस्य बना हुआ है

बुंदेलखंड में, खजुराहो के मंदिर के निर्माण के संबंध में एक जनश्रुति प्रचलित है. कहा जाता हैं कि एक बार राजपुरोहित हेमराज की सुपुत्री हेमवती शाम के समय झील में स्नान करने पहुंची. उस समय चंद्रदेव ने स्नान करती अति सुंदर हेमवती को देखा तो चंद्रदेव पर उनके प्रेम की धुन सवार हो गयी. उसी क्षण चंद्रदेव अति सुन्दर हेमवती के सामने प्रकट हुए और उनसे विवाह का निवेदन किया. कहा जाता हैं कि उनके मधुर संयोग से एक पुत्र का जन्म हुआ और उसी पुत्र ने चंदेल वंश की स्थापना की थी. हेमवती ने समाज के डर के कारण उस पुत्र को वन में करणावती नदी के तट पर पाला था. पुत्र को चंद्रवर्मन नाम दिया.

हेमवती ने चंद्रवर्मन के स्वप्न मे क्यों दिए दर्शन

अपने समय मे चंद्रवर्मन एक प्रभावशाली राजा माना गया. चंद्रवर्मन की माता हेमवती ने उसके स्वप्न में दर्शन दिए और ऐसे मंदिरों के निर्माण के लिए कहा, जो समाज को ऐसा संदेश दें जिससे समाज मे कामेच्छा को भी जीवन के अन्य पहलुओं के समान अनिवार्य समझा जाए और कामेच्छा को पूरा करने वाला व्यक्ति कभी दोषी न हो.

स्वप्न के बाद कुल कितने मंदिर बने

माता हेमवती के स्वप्न मे दर्शन देने के पश्चात्‌ चंद्रवर्मन ने मंदिरों के निर्माण के लिए खजुराहो को चुना. खजुराहो को अपनी राजधानी बनाकर उसने यहां 85 वेदियों का एक विशाल यज्ञ किया. बाद में 85 वेदियों के स्थान पर ही 85 मंदिर बनवाए थे, जिन मंदिरों का निर्माण चंदेल वंश के आगे के राजाओं ने जारी रखा. 85 मंदिरों में से आज यहां केवल 22 मंदिर ही बाकी हैं. 14वीं शताब्दी में चंदेल खजुराहो से प्रस्थान कर दिए थे और उसी के साथ वह दौर खत्म हो गया.

भाई की बस इतनी गलती है की बो गरीब हैऔर ये लोग इसकी मजबूरी का फायदा उठाते है🙏🙏🙏🙏❤️❤️👆👆👆💓💘💟💟open-buttonpatrika-logo-header...
20/10/2023

भाई की बस इतनी गलती है की बो गरीब है
और ये लोग इसकी मजबूरी का फायदा उठाते है
🙏🙏🙏🙏❤️❤️👆👆👆💓💘💟💟

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गोलगप्पा देने में हुई थोड़ी सी देर, दुकानदार को मारा दिया चाकू, पुलिस कर रही है तलाश
Noida Crime Story: दिल्ली से नोएडा में क्राइम हिस्ट्री में एक अजीबो गरीब मामला सामने आया है। पैसे, संपत्ति और किसी के लिए मर्डर और अपराध की कहानियां तो आपनें सुनी होंगी। लेकिन, नोएडा में गोलगप्पा मिलने में हुई देरी के कारण एक आदमी ने गोलगप्पे वाले को चाकू से घोंप दिया। आइए पूरे मामले को जानते हैं…

यूपी के नोएडा में गोलगप्पे के लिए चाकूबाजी की खबर सामने आई है। सेक्टर-49 स्थित बरौला में गोलगप्पे पानी-पूरी बेचने वाले दुकानदार को एक ग्राहक ने चाकू मारकर घायल कर दिया। कारण यह रहा कि ग्राहक गोलगप्पे मांग रहा था।

दुकानदार पहले आए दूसरे ग्राहकों को गोलगप्पे खिला रहा था। इसी पर दोनों में पहले झगड़ा हुआ। फिर ग्राहक चाकू मारकर मौके से भाग निकला। शिकायत पर पुलिस ने सेक्टर-49 थाने में केस दर्ज कर आरोपी की तलाश शुरू कर दी है। थाना प्रभारी ने बताया कि बरौला गांव निवासी रविंद्र गोलगप्पे की की दुकान लगाते हैं।

शनिवार को उनकी दुकान पर गांव का ही निवासी विकास गोलगप्पे खाने के लिए आया। वह जल्दी गोलगप्पे खिलाने के लिए कह रहा था। रविंद्र दूसरे ग्राहकों को गोलगप्पे खिला रहे थे। इस पर विकास ने आपा खो दिया और झगड़ा शुरू हो गया। आरोप है कि इस दौरान विकास ने चाकू से रविंद्र के पेट पर वार कर दिया।

सूचना पर पहुंचे परिवार वाले उन्हें लेकर जिला अस्पताल पहुंचे। घायल का इलाज जिला अस्पताल में चल रहा है। हालत खतरे से बाहर है। पुलिस का कहना है कि आरोपी की गिरफ्तारी के लिए टीम लगी हुई है।

भूत की कहानी : अंधेरे का भूत | Andhere Ka Bhoot Story In Hindiसोनपुर नाम का एक बड़ा सा गांव हुआ करता था जहां अधिकतर खेती...
19/10/2023

भूत की कहानी : अंधेरे का भूत | Andhere Ka Bhoot Story In Hindi

सोनपुर नाम का एक बड़ा सा गांव हुआ करता था जहां अधिकतर खेतीबाड़ी करने वाले किसान रहा करते थे। वहीं, गांव के पास ही घने जंगलों के बीच पीपल के पेड़ में एक भूत रहा करता था। भूत दिनभर तो गायब रहता, लेकिन रात होते ही वह गांव वालों को खूब परेशान किया करता था।

रात होते ही भूत पूरे गांव के चक्कर काटने लगता और कभी किसी के पशुओं को नुकसान पहुंचाता तो किसी किसान को इतना डराता कि वो रातभर सो नहीं पाता। भूत के डर से शाम होते ही गांव में सन्नाटा फैल जाता और रात को कोई भी घर से बाहर नहीं निकला करता था।

एक बार भूत से परेशान गांव के लोगों ने एक बहुत बड़े साधू को गांव में बुलाया और उनसे अपनी समस्या का निदान करने के लिए गुजारिश की। गांव वाले साधू को उस पेड़ के पास ले जाते हैं, जहां भूत का वास होता है। साधू अपने जप और तप से भूत को काबू करने की बहुत कोशिश करता है, लेकिन वह उसके हाथ नहीं आता।

बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का जीवन परिचय🙏🙏🙏🙏❤️❤️Famous Personalities /डॉ भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय Dr Bhimrao Ambedkar...
19/10/2023

बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का जीवन परिचय

🙏🙏🙏🙏❤️❤️
Famous Personalities /
डॉ भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय

Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi
सहृदय नेता डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में स्थित महू में हुआ था जिसका नाम आज बदल कर डॉ.अंबेडकर नगर रख दिया गया था। डॉ भीमराव अंबेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 में हुआ था। डॉ भीमराव अंबेडकर जाति से दलित थे। उनकी जाति को अछूत जाति माना जाता था। इसलिए उनका बचपन बहुत ही मुश्किलों में व्यतीत हुआ था। बाबासाहेब अंबेडकर सहित सभी निम्न जाति के लोगों को सामाजिक बहिष्कार, अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ता था। आइए और इस ब्लॉग में विस्तार से जानते हैं Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi के बारे में विस्तार से।

जन्म 14 अप्रैल 1891
मध्य प्रदेश, भारत में
जन्म का नाम भिवा, भीम, भीमराव, बाबासाहेब अंबेडकर
अन्य नाम बाबासाहेब अंबेडकर
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म बौद्ध धर्म
शैक्षिक सम्बद्धता • मुंबई विश्वविद्यालय (बी॰ए॰)
• कोलंबिया विश्वविद्यालय
(एम॰ए॰, पीएच॰डी॰, एलएल॰डी॰)
लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स
(एमएस०सी०,डीएस॰सी॰)
ग्रेज इन (बैरिस्टर-एट-लॉ)
पेशा विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ,
शिक्षाविद्दार्शनिक, लेखक पत्रकार, समाजशास्त्री, मानवविज्ञानी, शिक्षाविद्, धर्मशास्त्री, इतिहासविद् प्रोफेसर, सम्पादक
व्यवसाय वकील, प्रोफेसर व राजनीतिज्ञ
जीवन साथी रमाबाई अंबेडकर
(विवाह 1906- निधन 1935)
डॉ० सविता अंबेडकर
( विवाह 1948- निधन 2003)
बच्चे यशवंत अंबेडकर
राजनीतिक दल
शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन
स्वतंत्र लेबर पार्टी
भारतीय रिपब्लिकन पार्टी
अन्य राजनीतिक संबद्धताऐं सामाजिक संगठन:
• बहिष्कृत हितकारिणी सभा
• समता सैनिक दल
शैक्षिक संगठन:
• डिप्रेस्ड क्लासेस एज्युकेशन सोसायटी
• द बाँबे शेड्युल्ड कास्ट्स इम्प्रुव्हमेंट ट्रस्ट
• पिपल्स एज्युकेशन सोसायटी
धार्मिक संगठन:
भारतीय बौद्ध महासभा
पुरस्कार/ सम्मान • बोधिसत्व (1956)
• भारत रत्न (1990)
• पहले कोलंबियन अहेड ऑफ देअर टाईम (2004)
• द ग्रेटेस्ट इंडियन (2012)
मृत्यु 6 दिसम्बर 1956 (उम्र 65)
डॉ॰ आम्बेडकर राष्ट्रीय स्मारक, नयी दिल्ली, भारत
समाधि स्थल चैत्य भूमि,मुंबई, महाराष्ट्र
THIS BLOG INCLUDES:
बाबासाहेब अंबेडकर का बचपन
बाबासाहेब अंबेडकर की शिक्षा
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मास्टर्स
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मास्टर्स
रचनावली
डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तकें
बाबासाहेब अंबेडकर के पास कितनी डिग्री थी?
प्रयत्नशील सामाजिक सुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर
भीम राव अंबेडकर जीवनी: छुआछूत विरोधी संघर्ष
डॉ भीमराव अंबेडकर बनाम गांधी जी
डॉ भीमराव अंबेडकर राजनीतिक सफर
पुरस्कार/सम्मान
डॉ भीमराव अंबेडकर का निधन
अगर आज बाबा साहेब अंबेडकर जिंदा होते तो क्या करते?
बाबासाहेब अंबेडकर के बारे में रोचक तथ्य
बाबासाहेब अंबेडकर के कुछ महान विचार
FAQs
बाबासाहेब अंबेडकर का बचपन
Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi और उनके पिता मुंबई शहर के एक ऐसे मकान में रहने गए जहां एक ही कमरे में पहले से बेहद गरीब लोग रहते थे इसलिए दोनों के एक साथ सोने की व्यवस्था नहीं थी तो बाबासाहेब अंबेडकर और उनके पिता बारी-बारी से सोया करते थे जब उनके पिता सोते थे तो डॉ भीमराव अंबेडकर दीपक की हल्की सी रोशनी में पढ़ते थे। भीमराव अंबेडकर संस्कृत पढ़ने के इच्छुक थे, परंतु छुआछूत की प्रथा के अनुसार और निम्न जाति के होने के कारण वे संस्कृत नहीं पढ़ सकते थे। परंतु ऐसी विडंबना थी कि विदेशी लोग संस्कृत पढ़ सकते थे। भीम राव अंबेडकर जीवनी में अपमानजनक स्थितियों का सामना करते हुए डॉ भीमराव अंबेडकर ने धैर्य और वीरता से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की और इसके बाद कॉलेज की पढ़ाई।

डॉ भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय PDFDownload
बाबासाहेब अंबेडकर की शिक्षा
Bhimrao Ambedkar
Hindi.com
डॉ भीमराव अंबेडकर ने 1907 में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद एली फिंस्टम कॉलेज में 1912 में ग्रेजुएट हुए। 1913 और 15 प्राचीन भारत व्यापार पर एक शोध प्रबंध लिखा था। डॉ भीमराव अंबेडकर ने 1915 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए की शिक्षा ली। 1917 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली। नेशनल डेवलपमेंट फॉर इंडिया एंड एनालिटिकल स्टडी विषय पर उन्होंने शोध किया। 1917 में ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन साधन के अभाव के कारण वह अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाए। कुछ समय बाद लंदन जाकर लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अधूरी पढ़ाई उन्होंने पूरी की। इसके साथ-साथ एमएससी और बार एट-लॉ की डिग्री भी प्राप्त की। अपने युग के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे राजनेता और एवं विचारक थे। भीम राव अंबेडकर जीवनी कुल 64 विषयों में मास्टर थे, 9 भाषाओं के जानकार थे,विश्व के सभी धर्मों के रूप में पढ़ाई की थी।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मास्टर्स
कोलंबिया विश्वविद्यालय में छात्र के रूप में अंबेडकर 1915-1917 में 22 वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी एम.ए. परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे। उन्होंने स्नातकोत्तर के लिए प्राचीन भारतीय वाणिज्य विषय पर रिसर्च कार्य प्रस्तुत किया।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मास्टर्स
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अपने प्रोफेसरों और दोस्तों के साथ अंबेडकर 1916 – 17 सन 1922 में एक बैरिस्टर के रूप में डॉ॰ भीमराव अंबेडकर अक्टूबर 1916 में, ये लंदन चले गये और वहाँ उन्होंने ग्रेज़ इन में बैरिस्टर कोर्स (विधि अध्ययन) के लिए प्रवेश लिया, और साथ ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में भी प्रवेश लिया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया।

रचनावली
भीम राव अंबेडकर जीवनी में महत्वपूर्ण दो रचनावलियों के नाम नीचे दिए गए हैं-

डॉ बाबासाहेब अंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज [महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित]
साहेब डॉ अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय [भारत सरकार द्वारा प्रकाशित]
डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तकें
भीम राव अंबेडकर जीवनी में बाबासाहेब समाज सुधारक होने के साथ-साथ लेखक भी थे। लेखन में रूचि होने के कारण उन्होंने कई पुस्तकें लिखी। अंबेडकर जी द्वारा लिखित पुस्तकों की लिस्ट नीचे दी गई है-

भारत का राष्ट्रीय अंश
भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण
भारत में लघु कृषि और उनके उपचार
मूलनायक
ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी वित्त का विकेंद्रीकरण
रुपए की समस्या: उद्भव और समाधान
ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का अभ्युदय
बहिष्कृत भारत
जनता
जाति विच्छेद
संघ बनाम स्वतंत्रता
पाकिस्तान पर विचार
श्री गांधी एवं अछूतों की विमुक्ति
रानाडे गांधी और जिन्ना
शूद्र कौन और कैसे
भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म
महाराष्ट्र भाषाई प्रांत
बाबासाहेब अंबेडकर के पास कितनी डिग्री थी?
भारत रत्न Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi के पास 32 डिग्रियों के साथ 9 भाषाओं के सबसे बेहतर जानकार थे। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मात्र 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी की थी। वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ‘डॉक्टर ऑल साइंस’ नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले भारत के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति हैं। प्रथम विश्व युद्ध की वजह से उनको भारत वापस लौटना पड़ा। कुछ समय बाद उन्होंने बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में नौकरी प्रारंभ की। बाद में उनको सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। कोल्हापुर के शाहू महाराज की मदद से एक बार फिर वह उच्च शिक्षा के लिए लंदन गए।

प्रयत्नशील सामाजिक सुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर
डॉ बी. आर. अंबेडकर ने इतनी असमानताओं का सामना करने के बाद सामाजिक सुधार का मोर्चा उठाया। अंबेडकर जी ने ऑल इंडिया क्लासेज एसोसिएशन का संगठन किया। सामाजिक सुधार को लेकर वह बहुत प्रयत्नशील थे। ब्राह्मणों द्वारा छुआछूत की प्रथा को मानना, मंदिरों में प्रवेश ना करने देना, दलितों से भेदभाव, शिक्षकों द्वारा भेदभाव आदि सामाजिक सुधार करने का प्रयत्न किया। परंतु विदेशी शासन काल होने कारण यह ज्यादा सफल नहीं हो पाया। विदेशी शासकों को यह डर था कि यदि यह लोग एक हो जाएंगे तो परंपरावादी और रूढ़िवादी वर्ग उनका विरोधी हो जाएगा।

भीम राव अंबेडकर जीवनी: छुआछूत विरोधी संघर्ष
डॉ भीमराव अंबेडकर छुआछूत की पीड़ा को जन्म से ही झेलते आए थे। जाति प्रथा और ऊंच-नीच का भेदभाव वह बचपन से ही देखते आए थे और इसके स्वरूप उन्होंने काफी अपमान का सामना किया। डॉ भीमराव अंबेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष किया और इसके जरिए वे निम्न जाति वालों को छुआछूत की प्रथा से मुक्ति दिलाना चाहते थे और समाज में बराबर का दर्जा दिलाना चाहते थे। 1920 के दशक में मुंबई में डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपने भाषण में यह साफ-साफ कहा था कि “जहां मेरे व्यक्तिगत हित और देश हित में टकराव होगा वहां पर मैं देश के हित को प्राथमिकता दूंगा परंतु जहां दलित जातियों के हित और देश के हित में टकराव होगा वहां मैं दलित जातियों को प्राथमिकता दूंगा।” वे दलित वर्ग के लिए मसीहा के रूप में सामने आए जिन्होंने अपने अंतिम क्षण तक दलितों को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष किया। सन 1927 में अछूतों को लेने के लिए एक सत्याग्रह का नेतृत्व किया। और सन 1937 में मुंबई में उच्च न्यायालय में मुकदमा जीत लिया।

डॉ भीमराव अंबेडकर बनाम गांधी जी
सन 1932 में पुणे समझौते में गांधी और अंबेडकर आपसी विचार विमर्श के बाद एक मार्गदर्शन पर सहमत हुए। वर्ष 1945 में अंबेडकर ने हरिजनों का पक्ष लेने के लिए महात्मा गांधी के दावे को चुनौती दी और व्हॉट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स ( सन् 1945) नामक लेख लिखा l सन् 1947 अंबेडकर भारत सरकार के कानून मंत्री बने डॉ. भीमराव अंबेडकर गांधीजी और कांग्रेस के उग्र आलोचक है । 1932 में ग्राम पंचायत बिल पर मुंबई की विधानसभा में बोलते हुए अंबेडकर जी ने कहा : बहुतों ने ग्राम पंचायतों की प्राचीन व्यवस्था की बहुत प्रशंसा की है । कुछ लोगों ने उन्हें ग्रामीण प्रजातंत्र कहां है । इन देहाती प्रजातंत्रों का गुण जो भी हो, मुझे यह कहने में जरा भी दुविधा नहीं है कि वे भारत में सार्वजनिक जीवन के लिए अभिशाप हैं । यदि भारत राष्ट्रवाद उत्पन्न करने में सफल नहीं हुआ यदि भारत राष्ट्रीय भावना के निर्माण में सफल नहीं हुआ, तो इसका मुख्य कारण मेरी समझ में ग्राम व्यवस्था का अस्तित्व है।

डॉ भीमराव अंबेडकर राजनीतिक सफर
1936 में बाबा साहेब जी ने स्वतंत्र मजदूर पार्टी का गठन किया था। 1937 के केन्द्रीय विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 15 सीट की जीत मिली। अम्बेडकर जी अपनी इस पार्टी को आल इंडिया शीडयूल कास्ट पार्टी में बदल दिया, इस पार्टी के साथ वे 1946 में संविधान सभा के चुनाव में खड़े हुए, लेकिन उनकी इस पार्टी का चुनाव में बहुत ही ख़राब प्रदर्शन रहा। कांग्रेस व महात्मा गाँधी ने अछूते लोगों को हरिजन नाम दिया, जिससे सब लोग उन्हें हरिजन ही बोलने लगे, लेकिन अम्बेडकर जी को ये बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने उस बात का विरोध किया था। उनका कहना था अछूते लोग भी हमारे समाज का एक हिस्सा है, वे भी बाकि लोगों की तरह आम व्यक्ति ही हैं। अम्बेडकर जी को रक्षा सलाहकार कमिटी में रखा गया व वाइसराय एग्जीक्यूटिव परिषद उन्हें लेबर का मंत्री बनाया गया था। बाबा साहेब आजाद भारत के पहले लॉ मंत्री भी बने थे।

पुरस्कार/सम्मान
बाबा साहेब अंबेडकर को अपने महान कार्यों के चलते कई पुरस्कार भी मिले थे, जो इस प्रकार हैं:

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की स्मारक दिल्ली स्थित उनके घर 26 अलीपुर रोड में स्थापित की गई है।
अंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है।
1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।
कई सार्वजनिक संस्थान का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है जैसे कि हैदराबाद, आंध्र प्रदेश का डॉ. अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, बी आर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय- मुजफ्फरपुर।
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नागपुर में है, जो पहले सोनेगांव हवाई अड्डे के नाम से जाना जाता था।
अंबेडकर का एक बड़ा आधिकारिक चित्र भारतीय संसद भवन में प्रदर्शित किया गया है।
डॉ भीमराव अंबेडकर का निधन
डॉ भीमराव अंबेडकर सन 1948 से मधुमेह (डायबिटीज) से पीड़ित थे और वह 1954 तक बहुत बीमार रहे थे। 3 दिसंबर 1956 को डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और धम्म उनके को पूरा किया और 6 दिसंबर 1956 को अपने घर दिल्ली में अपनी अंतिम सांस ली थी। बाबा साहेब का अंतिम संस्कार चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में किया गया। इस दिन से अंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है।

अगर आज बाबा साहेब अंबेडकर जिंदा होते तो क्या करते?
भीम राव अंबेडकर जीवनी अगर आज होते तो समाज में क्या-क्या बदलाव ला सकते थे, पॉइंट्स कुछ इस प्रकार हैं:

आरक्षण पर शुरू से ही अपनी नजर रखते। इसके साथ ही आरक्षण नीति में कुछ बुनियादी बदलाव उनकी मांग होती। वे दूसरी पीढ़ी को आरक्षण का फायदा कतई भी नहीं लेने देते। क्योंकि अब यह जरूरत नहीं, बेजा फायदा था।
आरक्षित कोटे से एक अवसर पाने वाले दलित परिवार बेहतर आर्थिक और शैक्षणिक स्तर हासिल कर चुके थे। बाबा साहेब इसे सामान्य वर्ग में आना ही मानते थे।
गरीबी सिर्फ दलितों में नहीं थी। गांवों में लाखों परिवार भी उसी लंबी गुलामी की पैदाइश थे इसके अलावा भूमिहीन, गरीब और मजदूरी पर आश्रित है। अगर बाबा साहेब होते तो इसको नजर अंदाज कर ही नहीं सकते थे।
वे पहले शख्स होते जो बीस साल बाद आर्थिक आधार पर सबका साथ, सबका विकास चाहते। तब ऊंची जाति के उपेक्षित और प्रतिभाशाली लोग भी सिर्फ उन्हीं की शरण में जाते और वे ही सर्वोत्तम न्यायसंगत रास्ता निकालते।वे अनुसूचित जाति, जनजाति के नौकरी प्राप्त अफसर-कर्मचारियों के संगठन बनाए जाने के खुलकर खिलाफ होते। वे कहते-आरक्षितों के संगठन बनाकर आरक्षण को राजनीतिक ढाल मत बनाइए। वर्ना हम दिशा भटक जाएंगे। आप मजबूत हो गए हैं तो दूसरे कमजोरों की सहायता कीजिए।
बाबासाहेब अंबेडकर के बारे में रोचक तथ्य
Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi के बारे में रोचक तथ्य नीचे दिए गए हैं-

भारत के झंडे पर अशोक चक्र लगवाने वाले डाॅ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ही थे।
डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर लगभग 9 भाषाओं को जानते थे।
भीमराव अंबेडकर ने 21 साल की उम्र तक लगभग सभी धर्मों की पढ़ाई कर ली थी।
भीमराव अंबेडकर ऐसे पहले इन्सान थे जिन्होंने अर्थशास्त्र में PhD विदेश जाकर की थी।
भीमराव अंबेडकर के पास लगभग 32 डिग्रियां थी।
बाबासाहेब आजाद भारत के पहले कानून मंत्री थे।
बाबासाहेब ने दो बार लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन दोनों बार हार गए थे।
भीमराव अम्बेडकर हिन्दू महार जाति के थे, जिन्हें समाज अछूत मनाता था।
भीमराव अम्बेडकर कश्मीर में लगी धारा नंबर 370 के खिलाफ थे।

19/10/2023

जानिए, भारत विभाजन के 10 बड़े कारण

विभाजन किसी देश की भूमि का ही नहीं होता, विभाजन लोगों की भावनाओं का भी होता है। विभाजन का दर्द वो ही अच्छी तरह जानते हैं, जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इसको सहा है। बंटवारे के दौरान ‍जिन्हें अपना घर-बार छोड़ना पड़ा, अपनों को खोना पड़ा...यह दर्द आज भी उन्हें सालता रहता है। भारत-पाकिस्तान, उत्तर- 'दक्षिण कोरिया और जर्मनी का विभाजन आम लोगों के लिए काफी त्रासदीपूर्ण रहा।

आजादी के सुनहरे भविष्य के लालच में देश की जनता ने विभाजन का जहरीला घूंट पी लिया, लेकिन इस प्रश्न का जवाब आज तक नहीं मिल पाया कि क्या भारत का बंटवारा इतना ही जरूरी था? आखिर ऐसे क्या कारण थे, जिनकी वजह से देश दो टुकड़ों में बंट गया। यूं तो ऐसे कई कारण गिनाए जा सकते हैं, लेकिन यहां हम खास 10 बड़े कारणों का उल्लेख कर रहे हैं....


अंग्रेजों की कपटपूर्ण चाल.. अगले पेज पर...

हिंदुस्तान की धरती पर ब्रिटिश हूकूमत का यह अंतिम और बहुत ही शर्मनाक कार्य था। अंग्रेजों के लिए यह स्वाभाविक ही था कि भारत छोड़ने के बाद भी भारत से उन्हें अधिक से अधिक लाभ मिल सके इसलिए ऐसी योजनाएं बनाई और उसे लागू किया। इससे उन्हें कोई मतलब नहीं था कि भारत को इससे कितना नुकसान होगा। इसलिए उन्होंने 'फूट डालों' की नीति के अलावा आजादी की शर्तों के तहत उन्होंने शिक्षा, सैन्य और आर्थिक नीति को भी कपटपूर्ण तरीके से लागू कराया गया।

विभाजन की इस योजना ने भारत को जितनी क्षति पहुंचाई उतनी दूसरी कम ही चीजों ने पहुंचाई होगी। अंत में उन्होंने इस समझौते पर भी दस्तखत कराएं कि हमारे जाने के बाद हमारे मनाए स्मारक और मूर्तियों को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाई जाएगी और इनका संवरक्षण किया जाएगा।
क्या गांधी और नेहरू के बीच की दूरियों ने तोड़ दिया देश को...पढ़ें अगले पेज पर....

गांधी की अहिंसा और गांधी-नेहरू के बीच बढ़ती दूरियां-

गांधी और नेहरू के बीच कई बातों को लेकर मतभेद थे। सन् 1945 तक गांधी का युग खत्म होकर नेहरू का युग शुरू हो गया था तब गांधी एक तरह से हाशिए में चले गए थे, लेकिन देश में जनता उन्हें चाहती थी। दोनों के बीच के विचारों में मतभेद की वजह से दुरियां बढ़ने लगी थी।

1890 के दशक से ही कांग्रेस के स्तंभ मोतीलाल नेहरू ही जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस में लेकर आए थे। तब नेहरू तीस की उम्र के करीब थे और वे गांधी से बहुत प्रभावित थे। लेकिन जब उनके विचार विकसित हुए तो उनमें और गांधी में वैचारिक मतभेद शुरू हो गए।

गांधी नेहरू पर भरोसा करते रहे कि वह वयस्क राजनीतिक मुद्दे उनके समक्ष नहीं उठाएंगे। लेकिन गांधी के प्रिय होने की वजह से नेहरू यह मान कर चल रहे थे कि वह कांग्रेस की अगुआई करने और आजादी के बाद देश पर राज करने में अपने प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ देंगे। और, ऐसे उन्होंने किया भी। उन्होंने गांधीजी के एक भी सुझावों को नहीं माना।
क्या है वो तीसरा कारण, जो देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार है...पढ़ें अगले पेज पर...

नेहरू और पटेल का एकाधिकारवादी मनोवृत्ति-

राजनीतिक नेता के तौर पर नेहरू की पहली असली परीक्षा की घड़ी 1937 के चुनावों के समय आई। अब वह गांधी के सहायक नहीं थे, जो 1934 के बाद नेपथ्य में चले गए थे। चुनावों में कांग्रेस की जीत और उसकी प्रथम क्षेत्रीय सरकारों के गठन के साल में वह कांग्रेस के अध्यक्ष थे।

चुनाव परिणामों को लेकर शेखी बघारते हुए नेहरू ने घोषणा की कि भारत में महत्व रखने वाली अब दो ही शक्तियां हैं: कांग्रेस और अंग्रेज सरकार। इसमें जरा भी शक नहीं कि खुद को धोखा देने वाले घातक अंदाज में उन्हें इस बात पर भरोसा भी था। दरअसल यह एक इकबालिया जीत थी।

कांग्रेस का सदस्यत्व 97 फीसदी हिंदू था। भारत भर के लगभग 90 फीसदी मुसलमान संसदीय क्षेत्रों में उसे खड़े होने के लिए मुसलमान उम्मीदवार तक नहीं मिले। कांग्रेस ने सभी हिंदू सीटें जीत ली थीं। मगर एक भी मुस्लिम सीट वह हासिल नहीं पर पाई थी। कांग्रेस और मुस्लिम लीग में ताल्लुकात खराब नहीं थे लेकिन जब मुस्लिम लीग का कांग्रेस के गठजोड़ की बात उठी तो नेहरू ने बड़ी रुखाई से विलय की बात रखी।

इस जीत से नेहरू के भीतर एकाधिकारवादी मनोवृत्ति का जन्म हो चुका था। और वे दूसरों के सपने को छोड़ अपने सपनों का भारत बनाने की सोचते लगे थे। इसी के चलते नेहरू का महात्मा गांधी से ही नहीं मोहम्मद अली जिन्नाह, सरदार पटेल और बाबा आम्बेडकर से भी कई मामलों में मतभेद था।

एक समय ऐसा आया जबकि आम्बेडकर ने नेहरू को एकाधिकारवादी बताया था।
कांग्रेस के नेताओं की बढ़ती उम्र और राजनीतिक खालीपन...

जिन्नाह का नेता बनना : दूसरा विश्व युद्ध छिड़ जाने पर कांग्रेस आलाकमान ने भारत की जनता से पूछे बिना वायसराय द्वारा जर्मनी के खिलाफ जंग छेड़ देने के विरोध में सभी प्रांतीय सरकारों को इस्तीफा देने का निर्देश दिया। इसका तुरंत असर यह हुआ कि एक राजनीतिक खालीपन तैयार हो गया जिसमें जिन्ना ने बड़ी दृढ़ता से अपने पैर जमा दिए।

वह इस बात से बाखबर थे कि अपने सबसे महत्त्वपूर्ण साम्राज्य में लंदन को रियाया की वफादारी दिखाने की बेहद जरूरत थी। कांग्रेस मंत्रिमंडलों के अंत को ‘हश्र का दिन’ घोषित कर उन्होंने बिना समय खोए ब्रिटेन की मुश्किल घड़ी में उसके प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया और उसके बदले में युद्धकालीन अनुग्रह हासिल कर लिया।

लेकिन उनके सामने काम मुश्किल था। अब तक वह मुस्लिम लीग के निर्विवाद नेता बन चुके थे। मगर उपमहाद्वीप की दूर-दूर तक बिखरी हुई मुस्लिम अवाम बिलकुल एकजुट न थी। बल्कि वह पहेली के उन टुकड़ों की तरह थी जिन्हें साथ मिलाकर कभी एक नहीं किया जा सकता।
मुस्लिम लीग की सफलता को नहीं रोक पाना...

ऐतिहासिक तौर पर मुस्लिमलीग का सांस्कृतिक और राजनीतिक हृदय स्थल उत्तरप्रदेश में था, जहां लीग सबसे ज्यादा मजबूत स्थिति में थी बावजूद इसके कि एक तिहाई से भी कम आबादी मुसलमान थी।

सुदूर पश्चिम में सिंध, बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिम सीमावर्ती प्रांत में मुस्लिम जबर्दस्त रूप से बहुलता में थे। मगर अंग्रेजों के कब्जे में वे काफी बाद में आए और इस वजह से वे इलाके देहाती पिछड़े हुए क्षेत्र थे, जहां उन स्थानीय नामी-गिरामियों का वर्चस्व था जो न उर्दू जबान बोलते थे और न लीग के प्रति कोई वफादारी रखते थे और न ही लीग की उन इलाकों में कोई सांगठनिक मौजूदगी थी।

पंजाब और बंगाल में, जो भारत के संपन्नतम प्रांत थे और एक दूसरे से काफी दूर स्थित थे, मुसलमान बहुसंख्यक थे। पंजाब में उनका संख्याबल जरा ही अधिक था मगर बंगाल में अधिक मजबूत था। इन दोनों ही प्रांतों में लीग की बहुत प्रभावशाली शक्ति नहीं थी। पंजाब में वह नगण्य थी। यूनियनिस्ट पार्टी जिसका पंजाब प्रांत पर नियंत्रण था, बड़े मुस्लिम जमींदारों और संपन्न हिंदू जाट किसानों का गठबंधन था और इन दोनों ही धड़ों के सेना से संबंध मजबूत थे और वे अंग्रेजी राज के प्रति वफादार भी थे।

बंगाल में,जहां लीग के नेता प्रांत के पूर्वी हिस्से में बड़ी रियासतों के मालिक कुलीन जमींदार थे। राजनीतिक प्रभाव केपीपी (कृषक प्रजा पार्टी)का था जिसका आधार आम किसान वर्ग था। इस तरह प्रांतीय स्तर पर पर्यवेक्षक जहां भी नजर डालते, मुस्लिम लीग कमजोर नजर आती थी।

हिंदू बहुल इलाकों में उसे कांग्रेस ने सत्ता से परे रखा हुआ था और मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में उसे उसके विरोधी संगठनों ने उपेक्षित कर रखा था। अखिल भारतीय स्तर पर मुस्ल्मि लीग की कोई साख न होने के बावजूद जीवट के साथ काम कर सकने वाले एकमात्र मुस्लिम नेता के तौर पर जिन्ना की प्रतिष्ठा ने लीग को बचा लिया। फिर धीरे-धीरे जिन्ना ने वक्त के तकाजे को देखते हुए कांग्रेस में हुए खालीपन का फायदा उठाया और अपना जनाधार बढ़ा लिया।
मोहम्मद अली जिन्ना ही जिद और कांग्रेस की कमजोरी...

जिन्ना की जिद : जिन्ना ने कांग्रेस की कमजोरी और घटनाक्रम से हौसला पाकर उन्होंने नए कार्यक्रम का खुलासा किया। 1940 में लाहौर में उन्होंने घोषणा की कि उपमहाद्वीप में एक नहीं बल्कि दो राष्ट्र हैं और यह कि आजादी को उन दोनों के सह-अस्तित्व को इस स्वरूप में समायोजित करना होगा जो उन क्षेत्रों को स्वायत्तता और सार्वभौमिकता दे जिनमें मुसलमान बहुसंख्यक हैं।

जिन्ना के निर्देशानुसार लीग ने जो प्रस्ताव पारित किया उसका शब्दांकन जानबूझ कर अस्पष्ट रखा गया; उसमें संघटक राज्यों के बारे में बहुवचन में बात की गई थी और ‘पाकिस्तान’ लफ्ज का इस्तेमाल नहीं किया गया था। जिसके बारे में जिन्ना ने बाद में शिकायत की थी कि कांग्रेस ने उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य किया था।

जिन्नाह को लगभग समान रूप से मुसलमान बाहुल्य वाले इलाकों को स्वतंत्र राष्ट्र के गठन के लिए संभव उम्मीदवार समझा जा सकता था। मगर क्या कम बाहुल्य वाले इलाकों में भी वही संभाव्यता थी? और सर्वोपरि यह कि बाहुल्य वाले इलाके कल्पित भारत से अगर अलग हो गए, तो पीछे रह जाने वाले उन अल्पसंख्यकों का क्या होगा जो जिन्ना का अपना राजनीतिक आधार थे?

इन सारी दिक्कतों के मद्देनजर जिन्ना स्वयं कांग्रेस को झांसा दे रहे थे। वास्तविक महत्व हासिल करने के लिए अवास्तविक मांगों को सौदेबाजी के तौर पर सामने रख रहे थे? उस दौरान बहुत सारे लोगों को ऐसा ही लगा था और उसके बाद भी इस बात को मानने वाले कुछ कम नहीं हैं।

कांग्रेस का घटना और मुस्लिम लीग का बढ़ना...

महायुद्ध के दौरान भारत छोड़ो आंदोलन छेडऩे के जुर्म में जेल में बंद नेहरू और उनके सहकारियों को जून में रिहा कर दिया गया और सर्दियों में प्रांतों और केंद्र के चुनाव हुए जो 1935 के मताधिकार पर ही आधारित थे। नतीजे कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी की तरह थे और होने भी चाहिए थे।

मुस्लिम लीग न सिमटी थी और न ओझल हुई थी। अपने संगठन को खड़ा करने के, उसकी सदस्यता बढ़ाने के, अपना दैनिक पत्र निकालने के और जिन प्रांतीय सरकारों से अब तक उन्हें दूर रखा गया था उनमें अपने कदम जमाने के कामों में जिन्ना ने महायुद्ध के दौर का इस्तेमाल किया था। 1936 में एक ठंडा पड़ चुका उबाल कहकर नकारदी गई मुस्लिम लीग ने 1945-46 में भारी जीत हासिल की। उसने केंद्र के चुनावों में हर एक मुस्लिम सीट और प्रांतीय चुनावों में 89 प्रतिशत मुस्लिम सीटें जीत लीं। मुसलमानों के बीच अब उनकी प्रतिष्ठा वैसी हो चली थी जैसी हिंदुओं में कांग्रेस की थी।
हिंदू कट्टरवाद का असंगठित आंदोलन...

मुसलमानों के हक के लिए एक ओर जहां मुस्लिम लीग थी वहीं हिंदुओं में लोकप्रिय कांग्रेस ने सेकुलरिज्म का रास्ता अपना रखा था जिसके चलते हिंदू अधिकारों और हक की कोई बात नहीं करता था। कांग्रेस में आंबेडकर को जहां दलितों की चिंता थी वहीं सरदार पटेल जिन्नाह की चाल को समझ रहे थे और उन्हें अखंड भारत के धर्म के नाम पर खंड-खंड हो जाने का डर था।

इसके चलते सच्चे राष्ट्रवाद के दो फाड़ हो गए थे। एक वो जो कांग्रेस में रहकर हिंदुत्व की बात नहीं कर सकते थे और दूसरे वो जो खुलकर बात करते थे। उसके एक धड़े ने तो विभाजन के विचार को अपना समर्थन दिया, जबकि दूसरे ने उसका विरोध किया। जिन्होंने विभाजन का विरोध किया उन्हें कट्टर हिंदूवादी सोच का घोषित कर दिया गया।

जिन्होंने सक्रिय रूप से हिंदू अधिकारों की बात रखी और जिन्होंने विभाजन का खारिज किया वे कट्टर हिंदू कहलाए लेकिन उन्हें देश की जनता का समर्थन नहीं मिला। लेकिन इस तरह के लोगों की गतिविधियों के चलते मुस्लिमों और कट्टरता फैल गई।

ये हिंदू अखंड भारत का सपना देख रखे थे। इन पर यह आरोप है कि वर्तमान जनसंघ और हिन्दूवाद की विचित्र अहिन्दू भावना वाले उसके पुरखों ने देश का विभाजन करने में ब्रिटेन और मुस्लिम लीग की मदद की है। उन्होंने एक ही देश के अन्दर मुसलमान को हिन्दू के करीब लाने का कोई जरा-सा भी काम नहीं किया। इस तरह का अलगाव ही विभाजन की जड़ बना।
हिन्दू-मुस्लिम अलगाव को दूर न करना...

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