13/12/2024
जब सब खराब लगें तो ये कहानी एक बार जरुर सुने|
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव के पास एक घना जंगल था। इस जंगल में हर प्रकार के जीव-जंतु रहते थे, लेकिन गांव के लोग वहां जाने से डरते थे। कहते थे कि जंगल में एक अजीब-सा दीपक है, जो किसी को भी दिखता नहीं, पर जिसने भी उसे पा लिया, उसकी सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं।
गांव में एक गरीब लड़का रहता था, जिसका नाम अर्जुन था। उसकी मां बीमार थी और घर में खाने तक के पैसे नहीं थे। अर्जुन ने कई जगह काम किया, लेकिन कहीं भी उसका मन नहीं लगा। एक दिन वह थक-हार कर अपनी मां के पास बैठा और बोला, "मां, हमारे जीवन में कोई रोशनी नहीं बची। अब और क्या करें?"
उसकी मां ने उसे समझाते हुए कहा, "बेटा, जब सब खराब लगता है, तो उम्मीद की रोशनी खुद तलाशनी पड़ती है। उस जंगल के दीपक की कहानी सच है या नहीं, मुझे नहीं पता। पर कभी-कभी हमें खुद को साबित करने के लिए जोखिम लेना पड़ता है।"
अर्जुन को मां की बात ने प्रेरित किया। अगले दिन वह जंगल में जाने का फैसला कर चुका था।
सफर की शुरुआत
जंगल में कदम रखते ही अर्जुन को अजीब-सा डर लगा। पेड़ों के झुरमुट और जानवरों की आवाजें उसे डरा रही थीं। लेकिन उसने हार नहीं मानी। रास्ते में उसे एक बूढ़ा साधु मिला। साधु ने पूछा, "बेटा, कहां जा रहे हो?"
अर्जुन ने दीपक की कहानी सुनाई और अपनी मां की हालत बताई। साधु मुस्कुराया और कहा, "तुम्हें तीन परीक्षाओं से गुजरना होगा। अगर तुम सच्चे हो और डटे रहे, तो तुम्हें दीपक जरूर मिलेगा।"
अर्जुन ने साधु का आशीर्वाद लिया और आगे बढ़ा।
पहली परीक्षा: भय का सामना
कुछ दूर चलते ही अर्जुन के सामने एक बड़ा शेर आ गया। वह कांपने लगा, लेकिन उसने खुद को शांत किया। उसने शेर से कहा, "मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। मैं अपनी मां के लिए इस जंगल के दीपक की तलाश में हूं।"
शेर उसे गौर से देखने लगा और फिर बोला, "तुम सच में बहादुर हो। जाओ, आगे बढ़ो। लेकिन याद रखना, डर को हराने का तरीका है उससे सामना करना।"
अर्जुन की हिम्मत बढ़ी और उसने यात्रा जारी रखी।
दूसरी परीक्षा: स्वार्थ और परोपकार
आगे रास्ते में अर्जुन को एक नन्हा हिरण मिला, जो कांटों में फंसा हुआ था। अर्जुन को जल्दी थी, लेकिन वह उसे यूं ही छोड़ नहीं सका। उसने हिरण को बचाया।
हिरण ने कहा, "तुमने समय की परवाह किए बिना मेरी मदद की। बदले में मैं तुम्हें एक रहस्य बताता हूं। दीपक तक पहुंचने का रास्ता हमेशा सीधे नहीं जाता। तुम बाईं ओर मुड़ो, जहां रास्ता खत्म होता दिखता है। वहीं से असली मार्ग शुरू होगा।"
अर्जुन ने उसका शुक्रिया अदा किया और हिरण के बताए रास्ते पर चल पड़ा।
तीसरी परीक्षा: धैर्य और विश्वास
अर्जुन ने कई घंटे चलने के बाद खुद को एक गहरी खाई के पास पाया। खाई पार करने का कोई पुल या रास्ता नहीं था। वह निराश हो गया और बैठकर सोचने लगा। तभी उसे साधु की बात याद आई, "धैर्य रखो और अपने लक्ष्य पर विश्वास करो।"
अर्जुन ने खाई के पार जाने की तरकीब सोचनी शुरू की। उसने कुछ मजबूत लताएं और लकड़ियां इकट्ठी कीं और एक अस्थायी पुल बनाया। पूरी रात मेहनत करने के बाद वह खाई पार कर सका।
दीपक की प्राप्ति
खाई पार करते ही अर्जुन ने देखा कि एक रोशनी उसके सामने चमक रही थी। वह रोशनी किसी साधारण दीपक की नहीं, बल्कि एक जादुई दीपक की थी। दीपक के पास पहुंचते ही उसे एक आवाज सुनाई दी, "तुमने अपने साहस, परोपकार और धैर्य से खुद को साबित किया है। अब अपनी इच्छा मांगो।"
अर्जुन ने विनम्रता से कहा, "मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि मेरी मां स्वस्थ हो जाए और हमारा जीवन सामान्य हो जाए।"
दीपक ने उसकी इच्छा पूरी कर दी। जब अर्जुन गांव लौटा, तो उसने पाया कि उसकी मां पूरी तरह स्वस्थ थी। उसके घर में खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी। दीपक ने उसे सिखाया कि सबसे बड़ा चमत्कार हमारे भीतर का साहस, धैर्य और परोपकार है।
सीख
अर्जुन की कहानी हमें यह सिखाती है कि जब सब खराब लगता है, तब हार मानने के बजाय हमें अपने भीतर की शक्ति और अच्छाई को पहचानना चाहिए। जीवन की परीक्षाएं हमें मजबूत बनाने के लिए आती हैं। अगर हम उनका सामना साहस और विश्वास से करें, तो रोशनी का दीपक हमें जरूर मिल जाता है।