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जब सब खराब लगें तो ये कहानी एक बार जरुर सुने| बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव के पास एक घना जंगल था। इस जंगल मे...
13/12/2024

जब सब खराब लगें तो ये कहानी एक बार जरुर सुने|

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव के पास एक घना जंगल था। इस जंगल में हर प्रकार के जीव-जंतु रहते थे, लेकिन गांव के लोग वहां जाने से डरते थे। कहते थे कि जंगल में एक अजीब-सा दीपक है, जो किसी को भी दिखता नहीं, पर जिसने भी उसे पा लिया, उसकी सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं।

गांव में एक गरीब लड़का रहता था, जिसका नाम अर्जुन था। उसकी मां बीमार थी और घर में खाने तक के पैसे नहीं थे। अर्जुन ने कई जगह काम किया, लेकिन कहीं भी उसका मन नहीं लगा। एक दिन वह थक-हार कर अपनी मां के पास बैठा और बोला, "मां, हमारे जीवन में कोई रोशनी नहीं बची। अब और क्या करें?"

उसकी मां ने उसे समझाते हुए कहा, "बेटा, जब सब खराब लगता है, तो उम्मीद की रोशनी खुद तलाशनी पड़ती है। उस जंगल के दीपक की कहानी सच है या नहीं, मुझे नहीं पता। पर कभी-कभी हमें खुद को साबित करने के लिए जोखिम लेना पड़ता है।"

अर्जुन को मां की बात ने प्रेरित किया। अगले दिन वह जंगल में जाने का फैसला कर चुका था।

सफर की शुरुआत

जंगल में कदम रखते ही अर्जुन को अजीब-सा डर लगा। पेड़ों के झुरमुट और जानवरों की आवाजें उसे डरा रही थीं। लेकिन उसने हार नहीं मानी। रास्ते में उसे एक बूढ़ा साधु मिला। साधु ने पूछा, "बेटा, कहां जा रहे हो?"

अर्जुन ने दीपक की कहानी सुनाई और अपनी मां की हालत बताई। साधु मुस्कुराया और कहा, "तुम्हें तीन परीक्षाओं से गुजरना होगा। अगर तुम सच्चे हो और डटे रहे, तो तुम्हें दीपक जरूर मिलेगा।"

अर्जुन ने साधु का आशीर्वाद लिया और आगे बढ़ा।

पहली परीक्षा: भय का सामना

कुछ दूर चलते ही अर्जुन के सामने एक बड़ा शेर आ गया। वह कांपने लगा, लेकिन उसने खुद को शांत किया। उसने शेर से कहा, "मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। मैं अपनी मां के लिए इस जंगल के दीपक की तलाश में हूं।"

शेर उसे गौर से देखने लगा और फिर बोला, "तुम सच में बहादुर हो। जाओ, आगे बढ़ो। लेकिन याद रखना, डर को हराने का तरीका है उससे सामना करना।"

अर्जुन की हिम्मत बढ़ी और उसने यात्रा जारी रखी।

दूसरी परीक्षा: स्वार्थ और परोपकार

आगे रास्ते में अर्जुन को एक नन्हा हिरण मिला, जो कांटों में फंसा हुआ था। अर्जुन को जल्दी थी, लेकिन वह उसे यूं ही छोड़ नहीं सका। उसने हिरण को बचाया।

हिरण ने कहा, "तुमने समय की परवाह किए बिना मेरी मदद की। बदले में मैं तुम्हें एक रहस्य बताता हूं। दीपक तक पहुंचने का रास्ता हमेशा सीधे नहीं जाता। तुम बाईं ओर मुड़ो, जहां रास्ता खत्म होता दिखता है। वहीं से असली मार्ग शुरू होगा।"

अर्जुन ने उसका शुक्रिया अदा किया और हिरण के बताए रास्ते पर चल पड़ा।

तीसरी परीक्षा: धैर्य और विश्वास

अर्जुन ने कई घंटे चलने के बाद खुद को एक गहरी खाई के पास पाया। खाई पार करने का कोई पुल या रास्ता नहीं था। वह निराश हो गया और बैठकर सोचने लगा। तभी उसे साधु की बात याद आई, "धैर्य रखो और अपने लक्ष्य पर विश्वास करो।"

अर्जुन ने खाई के पार जाने की तरकीब सोचनी शुरू की। उसने कुछ मजबूत लताएं और लकड़ियां इकट्ठी कीं और एक अस्थायी पुल बनाया। पूरी रात मेहनत करने के बाद वह खाई पार कर सका।

दीपक की प्राप्ति

खाई पार करते ही अर्जुन ने देखा कि एक रोशनी उसके सामने चमक रही थी। वह रोशनी किसी साधारण दीपक की नहीं, बल्कि एक जादुई दीपक की थी। दीपक के पास पहुंचते ही उसे एक आवाज सुनाई दी, "तुमने अपने साहस, परोपकार और धैर्य से खुद को साबित किया है। अब अपनी इच्छा मांगो।"

अर्जुन ने विनम्रता से कहा, "मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि मेरी मां स्वस्थ हो जाए और हमारा जीवन सामान्य हो जाए।"

दीपक ने उसकी इच्छा पूरी कर दी। जब अर्जुन गांव लौटा, तो उसने पाया कि उसकी मां पूरी तरह स्वस्थ थी। उसके घर में खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी। दीपक ने उसे सिखाया कि सबसे बड़ा चमत्कार हमारे भीतर का साहस, धैर्य और परोपकार है।

सीख

अर्जुन की कहानी हमें यह सिखाती है कि जब सब खराब लगता है, तब हार मानने के बजाय हमें अपने भीतर की शक्ति और अच्छाई को पहचानना चाहिए। जीवन की परीक्षाएं हमें मजबूत बनाने के लिए आती हैं। अगर हम उनका सामना साहस और विश्वास से करें, तो रोशनी का दीपक हमें जरूर मिल जाता है।

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12/12/2024

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आरव और नेहा की लव स्टोरी|यह कहानी है आरव और नेहा की, जो एक छोटे से शहर में रहते थे। आरव एक साधारण लड़का था, जो अपनी पढ़ा...
11/12/2024

आरव और नेहा की लव स्टोरी|

यह कहानी है आरव और नेहा की, जो एक छोटे से शहर में रहते थे। आरव एक साधारण लड़का था, जो अपनी पढ़ाई और परिवार की जिम्मेदारियों में उलझा रहता था। वहीं, नेहा एक आत्मविश्वासी और खुशमिजाज लड़की थी, जो अपनी अलग दुनिया में मस्त रहती थी। उनकी पहली मुलाकात कॉलेज के कैंपस में हुई थी। नेहा की मुस्कान ने आरव के दिल में एक अनजानी हलचल पैदा कर दी।

धीरे-धीरे, दोनों के बीच दोस्ती बढ़ने लगी। नेहा की बातों में एक मासूमियत थी, और आरव के व्यवहार में एक सच्चाई, जिसने उन्हें एक-दूसरे के करीब ला दिया। आरव को यह महसूस होने लगा कि वह नेहा से प्यार करने लगा है, लेकिन उसने कभी अपने दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं की। नेहा भी आरव के साथ समय बिताकर खुश रहती थी, लेकिन शायद वह इस रिश्ते को दोस्ती से ज्यादा कुछ नहीं समझती थी।

एक दिन, नेहा ने आरव से कहा कि उसे एक बड़े शहर में जॉब का ऑफर मिला है, और वह जल्द ही वहां जाने वाली है। यह सुनकर आरव का दिल टूट गया। उसने अपनी भावनाओं को नेहा के सामने जाहिर करने का सोचा, लेकिन डर था कि वह दोस्ती भी न खो बैठे।

नेहा के जाने से पहले, आरव ने उसे एक चिट्ठी दी। चिट्ठी में उसने लिखा था:
"नेहा, मैं तुम्हें सिर्फ एक दोस्त नहीं मानता। मैं तुम्हारे साथ हर खुशी, हर गम बांटना चाहता हूं। मैं जानता हूं, शायद मेरी बातें तुम्हें अजीब लगेंगी, लेकिन यह मेरे दिल की सच्चाई है। तुम मेरे लिए हमेशा खास रहोगी, चाहे हम साथ रहें या नहीं।"

नेहा ने चिट्ठी पढ़ी, लेकिन कुछ नहीं कहा। वह बस मुस्कुराई और चली गई। आरव को यकीन था कि उसने नेहा को हमेशा के लिए खो दिया है।

वक्त बीतता गया। आरव ने अपने जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन नेहा की यादें हर पल उसे सताती रहीं। एक दिन, उसे नेहा का फोन आया। नेहा ने कहा, "आरव, क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर कुछ महसूस नहीं कर पाई? मैंने खुद को यह समझाने की बहुत कोशिश की कि यह सही नहीं होगा, लेकिन सच यह है कि मैं भी तुम्हारे बिना अधूरी हूं। मैं वापस आ रही हूं।"

उस दिन आरव की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। नेहा ने उसे यह सिखाया कि प्यार में डर के बजाय सच्चाई और साहस होना चाहिए। दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और जिंदगी के सफर पर साथ चलने का वादा किया।

यह कहानी सिर्फ आरव और नेहा की नहीं, बल्कि हर उस दिल की है जो किसी से सच्चा प्यार करता है। प्यार में चुनौतियां हो सकती हैं, लेकिन अगर भावनाएं सच्ची हैं, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।

नन्हा चोरएक छोटे से गाँव में रमेश नाम का एक दुकानदार अपनी किराने की दुकान चलाता था। रमेश दिल का बहुत अच्छा था, लेकिन अनु...
10/12/2024

नन्हा चोर

एक छोटे से गाँव में रमेश नाम का एक दुकानदार अपनी किराने की दुकान चलाता था। रमेश दिल का बहुत अच्छा था, लेकिन अनुशासन और ईमानदारी का बेहद कड़ा पालन करता था।

एक दिन, उसने देखा कि उसकी दुकान से एक नन्हा बच्चा, जिसका नाम राहुल था, चुपके से चॉकलेट चुराने की कोशिश कर रहा था। रमेश ने उसे पकड़ लिया और उसे डांटने के बजाय शांत स्वर में पूछा, "तुम्हें चॉकलेट चाहिए थी, तो मुझसे मांग लेते। चोरी क्यों की?"

राहुल की आँखों में आँसू आ गए। उसने कहा, "मुझे भूख लगी थी। मेरी माँ बीमार हैं, और घर में खाने को कुछ नहीं है। पिताजी अब इस दुनिया में नहीं हैं। मैं नहीं चाहता था कि कोई मुझे देखे।"

रमेश को उसकी बात सुनकर गहरा दुख हुआ। उसने राहुल को अपनी दुकान के अंदर बुलाया और उसे खाना खिलाया। फिर उसने पूछा, "तुम स्कूल क्यों नहीं जाते?"

राहुल ने सिर झुका लिया और कहा, "हमारे पास पैसे नहीं हैं। माँ को दवाई दिलाने के लिए मैं इधर-उधर छोटे-मोटे काम करता हूँ।"

रमेश ने उसी दिन तय कर लिया कि वह राहुल की मदद करेगा। उसने राहुल की माँ के इलाज का इंतजाम किया और राहुल को स्कूल में दाखिला दिलवाया। इसके बदले, उसने राहुल से वादा लिया कि वह मेहनत करेगा और कभी गलत रास्ते पर नहीं जाएगा।

राहुल ने रमेश की दी हुई शिक्षा और मदद का मान रखा। वह पढ़ाई में बहुत अच्छा निकला और आगे चलकर एक बड़ा अफसर बन गया। जब वह बड़ा हुआ, तो उसने रमेश को धन्यवाद देते हुए कहा, "आपने मेरी जिंदगी बदल दी। अगर उस दिन आपने मुझे डांटा होता, तो शायद मैं गलत रास्ते पर ही चलता रहता।"

रमेश मुस्कुराते हुए बोला, "हर बच्चा नन्हा चोर नहीं होता, बेटा। कभी-कभी हालात उसे ऐसा बना देते हैं। लेकिन सही मार्गदर्शन और मदद से हर जीवन बदल सकता है।"

इस तरह, नन्हे चोर की कहानी एक ईमानदार और सफल इंसान की प्रेरणा बन गई।

10/12/2024

ज्यादा गुस्सा आता है तो ये कहानी सुनो|

09/12/2024

ज्यादा सोचते हो तो ये कहानी सुनो अभी|

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लालची सास और बुद्धिमान बहू की कहानीकिसी गांव में एक लालची सास, विमला और उसकी बहू, सुमन, रहती थीं। सास बहुत धन और दिखावे ...
09/12/2024

लालची सास और बुद्धिमान बहू की कहानी

किसी गांव में एक लालची सास, विमला और उसकी बहू, सुमन, रहती थीं। सास बहुत धन और दिखावे की भूखी थी। वह चाहती थी कि उसके घर में सबकुछ उसकी मर्जी से हो। लेकिन उसकी बहू सुमन सीधी-सादी और बुद्धिमान थी।

सुमन हर दिन सास के ताने और लालच भरी बातों को सुनती, फिर भी कभी पलटकर जवाब नहीं देती। एक दिन सास ने सुमन से कहा,
"तू मेरी बहू बनकर आई है, लेकिन मेरा घर तेरे लायक नहीं। जब तक तू मुझे ढेर सारे पैसे और गहने नहीं लाकर देती, मैं तुझे अपनी बहू नहीं मानूंगी।"

सुमन ने यह बात चुपचाप सुन ली और सोचा कि अपनी सास को कैसे सही राह पर लाया जाए। उसने सास से कहा,
"माँजी, आपकी इच्छा जरूर पूरी होगी। लेकिन पहले मुझे कुछ समय दें। मैं ऐसा काम करूंगी कि हमारी गरीबी दूर हो जाएगी।"

सास को लगा कि अब सुमन बहुत धन लेकर आएगी। उसने उसे समय दे दिया।

सुमन का समझदारी भरा कदम

सुमन ने गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई, और उसने पढ़ाई से अच्छी कमाई शुरू कर दी। उसने गांववालों को भी छोटे-छोटे व्यापार करने की सलाह दी। गांव में खुशहाली फैल गई।

जब सुमन ने पहली बार अपनी कमाई से सास के लिए एक सोने की अंगूठी खरीदी, तो सास बहुत खुश हुई। लेकिन सुमन ने प्यार से कहा,
"माँजी, ये तो शुरुआत है। असली सुख दूसरों की मदद करने से मिलता है। मैंने पैसे से पहले सबका विश्वास जीता है। क्या आप मुझे ऐसा करने से रोकेंगी?"

सास का हृदय परिवर्तन

सास ने महसूस किया कि उसकी बहू केवल धन की नहीं, बल्कि दिल की भी अमीर है। उसने अपने लालच पर पछतावा किया और सुमन से माफी मांगी।

अब सास और बहू मिलकर गांव के लोगों की भलाई के काम करने लगीं। सास को समझ में आ गया था कि असली सुख दिखावे में नहीं, बल्कि रिश्तों और सेवा में है।

सीख: लालच का अंत हमेशा पछतावा होता है, लेकिन सच्चाई और बुद्धिमानी से किसी का भी हृदय परिवर्तन किया जा सकता है।

पाँच बहुओं की  दिल को छू लेने वाली कहानी| कीएक गाँव में हरियाली से घिरा एक सुंदर सा घर था, जिसमें एक वृद्ध दंपत्ति, रामद...
08/12/2024

पाँच बहुओं की दिल को छू लेने वाली कहानी|
की

एक गाँव में हरियाली से घिरा एक सुंदर सा घर था, जिसमें एक वृद्ध दंपत्ति, रामदयाल और उनकी पत्नी सुमित्रा रहते थे। उनके पाँच बेटे थे और पाँचों की शादी हो चुकी थी। रामदयाल और सुमित्रा ने बड़ी मेहनत और स्नेह अपने बेटों को पाला था। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता, उनके बेटे और बहुएँ अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए।

रामदयाल और सुमित्रा को लगता था कि उनके घर में अब पहले जैसी रौनक नहीं रही। पाँचों बहुएँ एक-दूसरे से ठीक से बात नहीं करती थीं और घर में कोई सामंजस्य नहीं था। वृद्ध दंपत्ति ने कई बार स्थिति सुधारने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी।

पहला मोड़

एक दिन रामदयाल बीमार पड़ गए। डॉक्टर ने कहा कि उन्हें आराम की सख्त ज़रूरत है। पाँचों बहुएँ एक कमरे में इकट्ठी हुईं।
"पिताजी की देखभाल कौन करेगा?" सबसे बड़ी बहू, सीमा ने पूछा।
"हम सब अपने-अपने काम में व्यस्त हैं। यह जिम्मेदारी अकेले क्यों लें?" मंझली बहू, नीता बोली।

सबने एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने की कोशिश की। अंत में, यह तय हुआ कि हर बहू एक-एक हफ्ते रामदयाल की देखभाल करेगी।

दिल को छू लेने वाला अनुभव

पहला हफ्ता सीमा के हिस्से आया। जब उसने अपने ससुर की सेवा करनी शुरू की, तो उसे महसूस हुआ कि रामदयाल की ज़िंदगी कितनी कठिन हो चुकी थी। उनका हर कदम तकलीफ से भरा था। एक रात जब वह उनके कमरे में पानी देने गई, तो उसने देखा कि रामदयाल चुपचाप अपनी पत्नी की तस्वीर देख रहे थे और आंसू बहा रहे थे।
"पिताजी, आप क्यों रो रहे हैं?"
"कुछ नहीं बेटा, बस पुरानी यादें ताज़ा हो रही हैं। तुम्हारी सासू माँ होती, तो शायद ये दिन देखना न पड़ता।"

सीमा का दिल पसीज गया। उसने पहली बार महसूस किया कि वृद्धावस्था कितनी अकेली और मुश्किल होती है। उसने अगले दिन उनके लिए उनकी पसंद का खाना बनाया और उनके साथ समय बिताया।

दूसरे और तीसरे हफ्ते

दूसरे हफ्ते नीता ने उनकी देखभाल शुरू की। उसने देखा कि रामदयाल को अखबार पढ़ने का बहुत शौक था, लेकिन उनकी आँखें कमजोर हो गई थीं। उसने उनके लिए बड़े अक्षरों वाली किताबें मंगवाईं और हर शाम उनके साथ बैठकर कहानियाँ पढ़ीं। रामदयाल की आँखों में जो खुशी चमक उठी, उसने नीता का दिल जीत लिया।

तीसरे हफ्ते आई बहू राधा। उसने देखा कि रामदयाल का मन बागवानी में बहुत लगता था। उसने उनके साथ मिलकर बगीचे को संवारना शुरू किया। रामदयाल के चेहरे पर जो संतोष झलक रहा था, वह राधा के लिए अनमोल था।

घर में बदलाव

जैसे-जैसे हफ्ते बीतते गए, पाँचों बहुएँ अपने ससुर के करीब आती गईं। हर एक ने उनकी ज़िंदगी के अनदेखे पहलुओं को देखा और समझा। उन्होंने महसूस किया कि उन्होंने अपने सास-ससुर की भावनाओं को कभी सही तरीके से नहीं समझा।

एक दिन, रामदयाल ने पूरे परिवार को बुलाया।
"बेटियों, मैंने सोचा भी नहीं था कि तुम सब मेरी इतनी देखभाल करोगी। मुझे लगता है कि तुम मेरी असली ताकत हो।" उनकी आँखें नम थीं।

परिवार का पुनर्मिलन

इस घटना के बाद, घर का माहौल पूरी तरह बदल गया। पाँचों बहुएँ न केवल अपने ससुर के करीब आ गईं, बल्कि एक-दूसरे के साथ भी उनका रिश्ता गहरा हो गया। वे सब मिलकर हर त्योहार मनाने लगीं, हर काम में एक-दूसरे की मदद करने लगीं।

रामदयाल और सुमित्रा को लगा कि उनका परिवार फिर से एक हो गया है। उन्होंने अपनी जिंदगी में पहली बार महसूस किया कि प्यार और समझदारी से हर मुश्किल हल की जा सकती है।

यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों को निभाने के लिए समझ और समय देना बेहद जरूरी है। एक छोटा सा प्रयास भी बड़े बदलाव ला सकता है।

आखिरी मुलाकात की कहानी|शाम का वक्त था। सूरज धीरे-धीरे अपने रंग बदलते हुए ढलान पर था। गुलाबी आसमान के नीचे, रेलवे स्टेशन ...
07/12/2024

आखिरी मुलाकात की कहानी|

शाम का वक्त था। सूरज धीरे-धीरे अपने रंग बदलते हुए ढलान पर था। गुलाबी आसमान के नीचे, रेलवे स्टेशन की भीड़ के बीच दो बूढ़े दोस्त आमने-सामने खड़े थे। राजेश और मोहन—दोनों बचपन के साथी।

पैंसठ साल पहले की कहानी थी। दोनों ने अपनी पहली मुलाकात में ही फैसला कर लिया था कि ये दोस्ती कभी खत्म नहीं होगी। जिंदगी के हर मोड़ पर साथ रहेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए। लेकिन वक्त और हालातों ने अपनी चाल चल दी।

राजेश शहर की भागदौड़ में खो गया, और मोहन ने गांव की मिट्टी में अपनी जड़ें जमा लीं। एक-दूसरे को खत लिखने का वादा किया था, पर धीरे-धीरे वो भी गुम हो गया। और अब, पचास साल बाद, मोहन ने राजेश को एक चिट्ठी भेजी—"चलो, आखिरी बार मिलते हैं।"

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स्टेशन के कोने में एक बेंच पर दोनों बैठे थे।
"याद है, राजू?" मोहन ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा। "हमने वादा किया था कि एक दिन दुनिया घूमने चलेंगे।"

राजेश ने आंखों में झांकते हुए जवाब दिया, "हां, मोहन। लेकिन तुम्हें पता है, मैं शहर की जिदंगी में ऐसा उलझा कि खुद को ही भूल गया।"

"और मैं?" मोहन ने ठंडी सांस ली। "गांव में रहकर सोचा कि तू आएगा, पर तुझे आने का वक्त ही कहां मिला।"

दोनों कुछ पल खामोश रहे। पास खड़ी ट्रेन की सीटी ने खामोशी तोड़ी।

"पर आज हम अपना वो अधूरा वादा पूरा करेंगे," राजेश ने मोहन की तरफ देखा। उसकी आंखों में एक अलग ही चमक थी।

"कैसे?" मोहन ने हैरानी से पूछा।

राजेश ने अपने बैग से दो पुराने, लेकिन संभाले हुए टिकट निकाले। "याद है, ये टिकट हमने बचपन में खरीदे थे, पहाड़ों पर जाने के लिए। वो सफर अधूरा रह गया था। आज चलेंगे?"

मोहन की आंखों में आंसू आ गए। उसने राजेश का हाथ थाम लिया। "तू सच में वो टिकट इतने सालों तक संभाल कर रखा?"

"हमारे वादे कभी मिटे नहीं, मोहन। बस, वक्त ने धुंधला कर दिया था।"

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दोनों दोस्त ट्रेन में बैठ गए। खिड़की से बहार का नजारा देखते हुए वो बचपन की यादों में खो गए। पहाड़ों के बीच से गुजरती ट्रेन और ठंडी हवा ने उन्हें उसी मासूमियत और खुशी से भर दिया।

वो सफर उनके लिए जिंदगी का आखिरी पड़ाव था। लेकिन इस बार, उनके अधूरे वादे पूरे हो रहे थे। जीवन की असली पूंजी, शायद, इसी तरह की मुलाकातों में छुपी होती है।

आखिरी मुलाकात, लेकिन सबसे खूबसूरत।

छोटा सा दीपक की कहानी|दीवाली की जगमगाती रात थी। हर घर में दिए जल रहे थे और आसमान में पटाखों की रोशनी थी। परंतु 12 साल का...
07/12/2024

छोटा सा दीपक की कहानी|

दीवाली की जगमगाती रात थी। हर घर में दिए जल रहे थे और आसमान में पटाखों की रोशनी थी। परंतु 12 साल का रवि, जिसे ये त्यौहार हमेशा से खुशियों से भर देता था, इस बार अपनी छोटी-सी दुकान में बैठा था। उसकी मां दीये बनाने में व्यस्त थीं, और पिता ग्राहकों को सामान बेच रहे थे।

रवि ने अपने छोटे-छोटे हाथों से दीयों को सजाया था। हर दीया मानो एक कहानी कहता था—किसी में उनकी मेहनत, किसी में उनकी आशा। जब ग्राहक आते, रवि बड़ी मुस्कान के साथ उनका स्वागत करता। उसने महसूस किया कि ये दीये केवल मिट्टी के नहीं थे; वे किसी के जीवन में उजाला लाने का जरिया थे।

दुकान के पास से गुजरते हुए एक गरीब बच्चा, जिसका नाम अंशु था, जलते हुए दीयों को आश्चर्य से देख रहा था। उसके पास नए कपड़े नहीं थे, न ही घर में कोई दीया जल रहा था। रवि ने उसकी आँखों में छिपी चाहत देखी।

"भैया, क्या आप एक दीया खरीदोगे?" रवि ने मुस्कराते हुए पूछा।
अंशु ने सिर झुका लिया, "मेरे पास पैसे नहीं हैं।"

रवि ने बिना कुछ कहे एक खूबसूरत दीया उठाया, उसे जलाया, और अंशु को दे दिया। "ये लो, इसे जलाओ और अपने घर में उजाला करो। दीवाली का मतलब है खुशियाँ बाँटना।"

अंशु की आँखों में चमक आ गई। उसने रवि को धन्यवाद कहा और खुशी-खुशी चला गया।

उस रात, जब रवि ने आसमान की ओर देखा, उसे ऐसा लगा कि कोई सितारा खास तौर पर उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा रहा है। वह जानता था कि उसने एक छोटे से दीपक के जरिए किसी के जीवन में बड़ी रोशनी ला दी है।

छोटे-से दीपक का यही तो असली काम है—अंधकार मिटाना।

गाँव के स्कूल की सच्ची कहानी|एक छोटे से गाँव में, जहाँ शिक्षा की रोशनी अब तक पूरी तरह नहीं पहुँची थी, वहाँ एक लड़की रहती...
06/12/2024

गाँव के स्कूल की सच्ची कहानी|

एक छोटे से गाँव में, जहाँ शिक्षा की रोशनी अब तक पूरी तरह नहीं पहुँची थी, वहाँ एक लड़की रहती थी—राधा। बचपन से ही राधा पढ़ने-लिखने में बहुत होशियार थी। उसके माता-पिता ने जैसे-तैसे उसे पास के कस्बे के स्कूल में पढ़ने भेजा। लेकिन राधा के सपनों की उड़ान यहीं नहीं रुकनी थी।

गाँव की स्थिति

गाँव के बच्चों के पास स्कूल जाने का कोई साधन नहीं था। लड़कियों की शिक्षा तो मानो वहाँ एक सपना भर थी। राधा ने जब ये देखा कि उसके गाँव की लड़कियाँ और बच्चे पढ़ाई से वंचित हैं, तो उसके दिल में कुछ करने की चाह जागी।

कुर्बानी का फैसला

राधा को एक बड़ी छात्रवृत्ति मिली थी, जिससे वह शहर जाकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती थी। लेकिन उसने इस मौके को ठुकरा दिया। उसने फैसला किया कि वह अपने गाँव में एक स्कूल खोलेगी। इस फैसले ने उसके माता-पिता और दोस्तों को हैरान कर दिया।

संघर्ष और प्रयास

राधा ने गाँव के लोगों को समझाने की कोशिश की कि शिक्षा क्यों जरूरी है। शुरुआत में लोगों ने उसका मजाक उड़ाया। लेकिन राधा ने हार नहीं मानी। उसने एक पुराने खंडहर को साफ करके वहाँ बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे गाँव के लोग उसकी मेहनत और ईमानदारी को समझने लगे।

सपनों का साकार होना

राधा की कोशिशें रंग लाई। गाँव के बुजुर्गों और युवाओं ने मिलकर स्कूल के लिए जमीन दी। सरकारी मदद से वहाँ एक स्कूल बन सका। राधा ने न सिर्फ गाँव के बच्चों को पढ़ाया, बल्कि गाँव में शिक्षा का महत्व भी फैलाया।

राधा का सपना

राधा ने अपनी पढ़ाई और सपनों की कुर्बानी देकर गाँव के बच्चों को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का मौका दिया। उसका मानना था कि उसकी असली पढ़ाई तो गाँव के हर बच्चे को शिक्षित करना था।

"गाँव का स्कूल" अब केवल एक इमारत नहीं, बल्कि राधा की दृढ़ता और समर्पण की कहानी बन गया।

सच्चे दोस्त की कहानी सुनो| गांव के एक छोटे से मोहल्ले में रहने वाले दो दोस्त, रोहन और विजय, बचपन से एक-दूसरे के बहुत करी...
04/12/2024

सच्चे दोस्त की कहानी सुनो|

गांव के एक छोटे से मोहल्ले में रहने वाले दो दोस्त, रोहन और विजय, बचपन से एक-दूसरे के बहुत करीब थे। दोनों ने साथ-साथ स्कूल की हर परीक्षा पास की, हर खेल में साथ हिस्सा लिया और एक-दूसरे के हर सुख-दुख में भागीदार बने।

समय बीता, और हालात ने दोनों को अलग-अलग दिशाओं में भेज दिया। रोहन एक बड़े शहर में नौकरी करने चला गया, जबकि विजय अपने पिता के छोटे से व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा। जिंदगी अपनी रफ्तार से चल रही थी, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे से बात करना कभी बंद नहीं किया।

कुछ साल बाद, विजय के परिवार पर आर्थिक संकट आ गया। दुकान घाटे में चलने लगी और कर्ज बढ़ने लगा। विजय को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसने रोहन से अपनी परेशानी नहीं बताई, क्योंकि उसे डर था कि रोहन को परेशान न कर दे।

लेकिन सच्ची दोस्ती की खूबी यही होती है कि बिना कहे भी दोस्त एक-दूसरे की तकलीफ समझ लेते हैं। रोहन ने विजय की आवाज में छिपी उदासी को महसूस किया। उसने सीधे गांव जाकर विजय से मुलाकात की।

विजय को देखकर रोहन ने कहा, "तुम अकेले यह सब क्यों सह रहे हो? क्या हमारी दोस्ती इतनी कमजोर है?"

रोहन ने अपनी सारी बचत विजय को देकर कहा, "यह कोई एहसान नहीं है। यह तुम्हारा हक है। तुम हमेशा मेरे साथ खड़े रहे, अब मेरी बारी है।"

विजय की आंखों में आंसू आ गए। उसने रोहन को गले लगाते हुए कहा, "तुम सच में मेरे सबसे बड़े सहारे हो।"

कुछ समय बाद विजय की दुकान फिर से चल पड़ी और उसका जीवन पटरी पर आ गया। लेकिन इस घटना ने दोनों को और भी करीब ला दिया।

सच्चे दोस्त वही होते हैं जो हर मुश्किल में बिना कुछ कहे साथ खड़े हो जाएं।

मुस्कान की कीमतशहर की व्यस्त सड़कों पर एक छोटा सा बच्चा, रघु, अपनी सूनी आंखों और फटे कपड़ों के साथ भीख मांगता था। उसकी म...
03/12/2024

मुस्कान की कीमत

शहर की व्यस्त सड़कों पर एक छोटा सा बच्चा, रघु, अपनी सूनी आंखों और फटे कपड़ों के साथ भीख मांगता था। उसकी मासूमियत को गरीबी और समय की सख्ती ने दबा दिया था। हर दिन वो अपने छोटे से कटोरे में कुछ सिक्कों की आस लिए लोगों के पीछे दौड़ता था, लेकिन बदले में उसे अक्सर तिरस्कार भरी निगाहें ही मिलती थीं।

एक दिन, भीड़ से भरे बाजार में, एक अजनबी, आरव, उस पर नजर पड़ी। आरव एक मध्यम वर्ग का व्यक्ति था, जो जीवन की भागदौड़ में खुद भी परेशान था। लेकिन रघु की आंखों में उसे कुछ ऐसा दिखा, जिसने उसे रोक दिया। उसने बच्चे से पूछा, "क्या तुम्हें कुछ खाने का मन है?" रघु ने सिर हिलाया, लेकिन उसकी आंखों में अविश्वास झलक रहा था।

आरव उसे पास की दुकान पर ले गया और उसे भरपेट खाना खिलाया। खाने के बाद, आरव ने रघु से पूछा, "तुम्हें सबसे ज्यादा क्या चाहिए?" रघु ने जवाब दिया, "बस थोड़ी खुशी, ताकि मैं मुस्कुरा सकूं।"

आरव ने उसकी ये बात दिल से सुनी। अगले दिन वह रघु के लिए एक छोटा सा बैग लेकर आया, जिसमें कुछ खिलौने, किताबें और साफ कपड़े थे। उसने रघु को बताया कि वह उसे एक स्कूल में दाखिला दिलाने में मदद करेगा।

धीरे-धीरे, रघु की जिंदगी बदलने लगी। अब वह सड़कों पर भीख मांगने के बजाय स्कूल जाता था, खेलता था और सबसे जरूरी, मुस्कुराता था। उसकी मुस्कान ने आरव को भी सुकून दिया।

इस छोटी सी कोशिश से आरव ने समझा कि मुस्कान की कीमत सिर्फ कुछ ध्यान और दया है। यह कहानी न केवल रघु की, बल्कि हर उस इंसान की है, जो हमारी छोटी-छोटी मदद से खुशियों की ओर बढ़ सकता है।

सीख: एक छोटी सी दया से किसी की मुस्कान लौटाई जा सकती है, और यही सबसे बड़ी खुशी है

"चिट्ठियों का पुलिंदा"एक छोटे से गांव के शांत कोने में, 75 वर्षीया सुजाता अपने पुराने घर में अकेली रहती थीं। उनका जीवन स...
03/12/2024

"चिट्ठियों का पुलिंदा"

एक छोटे से गांव के शांत कोने में, 75 वर्षीया सुजाता अपने पुराने घर में अकेली रहती थीं। उनका जीवन साधारण था, लेकिन उनके दिल में एक गहरी कमी थी जिसे उन्होंने कभी किसी से साझा नहीं किया। एक दिन सफाई करते हुए, उन्हें एक पुराना लकड़ी का संदूक मिला। संदूक के अंदर, सुंदरता से बंधा हुआ चिट्ठियों का एक पुलिंदा था।

चिट्ठियां उनके युवावस्था के दिनों की थीं, जब वे अपने कॉलेज के समय के साथी, आर्यन, के साथ लिखने का सिलसिला करती थीं। आर्यन उनके जीवन का पहला और एकमात्र प्यार था। समय और परिस्थितियों के फेर में, वे दोनों अलग हो गए थे। पर इन चिट्ठियों में उनकी हंसी, सपने, और बिछड़ने का दर्द, सब कुछ कैद था।

जैसे-जैसे सुजाता चिट्ठियां पढ़ती गईं, उनकी यादें ताजा होती गईं। हर शब्द मानो उन्हें आर्यन के करीब ले जा रहा था। उन चिट्ठियों के जरिए, सुजाता ने अपने उस प्रेम को फिर से महसूस किया, जो समय की धूल तले दब गया था।

चिट्ठियों के आखिरी हिस्से में, आर्यन ने लिखा था,
"अगर कभी हमारी राहें मिलें, तो मैं तुम्हें वही कहानी सुनाऊंगा जो कभी अधूरी रह गई।"

यह पढ़कर सुजाता के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आ गई।

इस पुलिंदे ने उन्हें एहसास कराया कि सच्चा प्रेम कभी खत्म नहीं होता। भले ही वह व्यक्ति पास न हो, उसकी यादें और एहसास हमेशा हमारे दिल में जीवित रहते हैं।

पेड़ की छांवगाँव के बीचोबीच खड़ा वह पुराना पीपल का पेड़, वर्षों से अनेक कहानियों का गवाह बना हुआ था। उसकी घनी छांव के नी...
03/12/2024

पेड़ की छांव

गाँव के बीचोबीच खड़ा वह पुराना पीपल का पेड़, वर्षों से अनेक कहानियों का गवाह बना हुआ था। उसकी घनी छांव के नीचे बैठा बूढ़ा रामदास, अपने बीते दिनों की स्मृतियों में खोया हुआ था।

सफेद दाढ़ी, झुकी कमर और कांपते हाथों के साथ रामदास आज भी अपने बचपन की ऊर्जा को महसूस कर रहा था। वह मुस्कुराते हुए उस दिन को याद कर रहा था जब उसने पहली बार अपने दोस्तों के साथ इसी पेड़ के नीचे लुका-छुपी खेली थी। पेड़ की ऊंची डालियों पर चढ़कर तोते के घोंसले देखने और उसकी छाल पर चाकू से अपने नाम लिखने की शरारतें जैसे कल की ही बात लग रही थीं।

उसने अपनी आँखें बंद कीं और हवा में बहती पेड़ की पत्तियों की सरसराहट को सुना। यह वही आवाज़ थी, जिसने बरसों पहले उसके दिल में सुकून भरा था। उस समय यह पेड़ गाँव के बच्चों के लिए खेल का मैदान और बड़ों के लिए चर्चा का स्थान हुआ करता था। शादी-ब्याह से लेकर खेतों की समस्याओं तक, हर बातचीत इसी पेड़ की छांव में होती थी।

आज, बूढ़ा रामदास अकेला था। उसके बचपन के साथी बिछड़ चुके थे, और नई पीढ़ी अब इस पेड़ की छांव में बैठने के बजाय शहरों की ओर चली गई थी। लेकिन यह पेड़ अब भी वहीं था, अपनी विशाल छांव और पुरानी यादों के साथ।

रामदास ने मुस्कुराते हुए पेड़ की मोटी जड़ों को छुआ। "तुम भी बूढ़े हो गए हो, लेकिन तुम्हारी छांव अब भी वैसी ही है," उसने कहा। पेड़ जैसे उसकी बात का जवाब देते हुए हवा में झूमने लगा।

यह पेड़ सिर्फ एक पेड़ नहीं था। यह गाँव की आत्मा था, रामदास की यादों का ठिकाना था। शायद इसीलिए, रामदास हर दिन यहाँ आता था, अपनी ज़िंदगी के सुनहरे पलों को जीने के लिए।

"खिलौना कारखाना की कहानी|यह कहानी एक गरीब व्यक्ति की है जो अपने बेटे को खुश करने के लिए हर मुश्किल का सामना करता है।रामू...
02/12/2024

"खिलौना कारखाना की कहानी|

यह कहानी एक गरीब व्यक्ति की है जो अपने बेटे को खुश करने के लिए हर मुश्किल का सामना करता है।

रामू, एक छोटे से गाँव का कारीगर, जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए लकड़ी के छोटे-मोटे सामान बनाता था। उसका बेटा चिंटू खिलौनों से खेलना बहुत पसंद करता था, लेकिन गरीबी के कारण रामू उसे बाजार से खिलौने खरीदकर नहीं दे पाता था। चिंटू अक्सर दूसरे बच्चों को खिलौनों से खेलते हुए देखकर उदास हो जाता।

एक दिन रामू ने तय किया कि वह अपने बेटे के लिए खुद खिलौने बनाएगा। उसने अपनी पुरानी कारीगरी की कला को निखारते हुए लकड़ी के टुकड़ों और घर में उपलब्ध अन्य सामानों से खिलौने बनाना शुरू किया। रामू देर रात तक मेहनत करता, चिंटू को खुश देखने की कल्पना करते हुए।

पहला खिलौना, एक छोटी सी गाड़ी, चिंटू के चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान ले आई। यह देखकर रामू को एहसास हुआ कि उसकी कला में न सिर्फ खुशी देने की ताकत है, बल्कि यह उसका और चिंटू का जीवन भी बदल सकती है।

जल्द ही रामू ने एक छोटे से "खिलौना कारखाने" की शुरुआत की। गाँव के अन्य बच्चों के लिए भी वह खिलौने बनाने लगा। उसकी मेहनत और लगन ने उसे एक नया उद्देश्य दिया। यह कहानी बताती है कि कैसे एक पिता का प्यार और मेहनत किसी भी मुश्किल को पार कर सकती है और दूसरों के जीवन में भी रंग भर सकती है।

"शादी का गहना"एक छोटे से गाँव में कमला नाम की एक माँ अपनी बेटी राधा के साथ रहती थी। कमला एक विधवा थी और अपनी सिलाई-कढ़ाई...
01/12/2024

"शादी का गहना"

एक छोटे से गाँव में कमला नाम की एक माँ अपनी बेटी राधा के साथ रहती थी। कमला एक विधवा थी और अपनी सिलाई-कढ़ाई के काम से बड़ी मुश्किल से घर चलाती थी। उसकी दुनिया उसकी बेटी राधा थी, जिसे उसने बड़े प्यार से पाला था।

जब राधा की शादी की बात चली, तो कमला को समझ नहीं आ रहा था कि वह शादी का खर्च कैसे उठाएगी। बारात की तैयारी, दहेज और अन्य खर्चे उसकी क्षमता से परे थे।

कमला के पास अपनी माँ से मिली एकमात्र धरोहर थी—सोने की एक सुंदर चूड़ी। यह चूड़ी उसके जीवन की सबसे कीमती चीज़ थी, लेकिन राधा की खुशियों के आगे उसकी कीमत कुछ भी नहीं थी।

कमला ने बिना किसी झिझक के फैसला किया कि वह चूड़ी बेच देगी। वह अपने आँसुओं को छुपाते हुए शहर गई और चूड़ी बेचकर शादी का सारा सामान जुटाया। राधा को पता भी नहीं चला कि उसकी माँ ने उसके लिए अपनी सबसे अनमोल चीज़ त्याग दी।

शादी के दिन, जब राधा दुल्हन के रूप में सजी, तो वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। बारातियों की खुशी देखकर कमला के मन में संतोष था। उसने महसूस किया कि उसकी बेटी की मुस्कान ही उसके जीवन का सबसे बड़ा गहना है।

राधा को बाद में जब इस त्याग का पता चला, तो उसने अपनी माँ से वादा किया कि वह कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी। यह कहानी सच्चे प्रेम और बलिदान की मिसाल बन गई।

शिक्षा

एक माँ के लिए उसकी संतान ही उसकी सबसे बड़ी दौलत और खुशी होती है। माँ का प्यार हर त्याग से ऊपर होता है।

"ईश्क ने मारी बाजी" |कहानी का आरंभअंशु और रिया एक दूसरे से बेइंतेहा प्यार करते थे। उनका रिश्ता मजबूत था और उनके दोस्त इस...
30/11/2024

"ईश्क ने मारी बाजी" |

कहानी का आरंभ

अंशु और रिया एक दूसरे से बेइंतेहा प्यार करते थे। उनका रिश्ता मजबूत था और उनके दोस्त इसे "परफेक्ट कपल" कहते थे। लेकिन किस्मत उनके लिए कुछ और ही योजना बना चुकी थी।

अंशु एक महत्वाकांक्षी युवक था, जो अपने करियर को लेकर बहुत गंभीर था। रिया, एक सरल और संवेदनशील लड़की, जिसे प्रेम में पूरी दुनिया नजर आती थी।

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सस्पेंस की शुरुआत

एक दिन रिया को एक अंजान नंबर से कॉल आता है। कॉल करने वाला कहता है कि अंशु उससे धोखा कर रहा है। रिया यह सुनकर हिल जाती है। उसे विश्वास नहीं होता, लेकिन उस अंजान आदमी ने अंशु की कुछ तस्वीरें और सबूत भेजे।

रिया के मन में शक पैदा होता है। वह अंशु से इस बारे में बात करती है, लेकिन अंशु हर बात को झूठा और बकवास कहकर टाल देता है।

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सच्चाई की खोज

रिया इस रहस्य को सुलझाने के लिए खुद जांच करना शुरू करती है। उसे पता चलता है कि अंशु हर रात किसी अज्ञात जगह जाता है। वह एक रात उसका पीछा करती है और देखती है कि अंशु एक महिला से मिल रहा है।

रिया का दिल टूट जाता है। लेकिन तभी वह कुछ ऐसा देखती है, जो कहानी को नया मोड़ दे देता है। अंशु और वह महिला किसी के साथ बहस कर रहे थे। कुछ देर बाद वह आदमी वहां से गायब हो जाता है, और अगली सुबह उसकी मौत की खबर आती है।

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असली रहस्य का खुलासा

रिया पुलिस के पास जाती है। जांच में पता चलता है कि अंशु और वह महिला मिलकर एक बड़े माफिया गैंग का हिस्सा थे। अंशु का यह प्यार और करीबी रिश्ता सिर्फ एक मुखौटा था।

लेकिन सच्चाई तब सामने आती है जब रिया को पता चलता है कि अंशु ने यह सब सिर्फ रिया को सुरक्षित रखने के लिए किया था। अंशु माफिया गैंग को खत्म करना चाहता था और पुलिस के लिए गुप्त एजेंट के रूप में काम कर रहा था।

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अंत

रिया को एहसास होता है कि अंशु का प्यार सच्चा था। लेकिन उनकी कहानी अधूरी रह जाती है, क्योंकि माफिया गैंग अंशु की असलियत जान लेता है और वह एक मिशन के दौरान मारा जाता है।

रिया अपनी जिंदगी में आगे बढ़ती है, लेकिन अंशु की यादों और उसके बलिदान के साथ।

यह कहानी दर्शाती है कि ईश्क में विश्वास, त्याग और सच्चाई कितनी अहमियत रखती है, और कभी-कभी सच्चाई को समझने में वक्त लग सकता है।

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