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10/01/2025

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SECRET AMEERZADA EPISODE - 1Beizzatiअहान रायजादा! ऐसा वजनदार नाम मानो इंडिया के टॉप बिजनेसमैन families में से किसी एक का...
23/12/2024

SECRET AMEERZADA
EPISODE - 1
Beizzati
अहान रायजादा! ऐसा वजनदार नाम मानो इंडिया के टॉप बिजनेसमैन families में से किसी एक का वारिस हो। मगर हम जिस अहान रायजादा की बात कर रहे हैं उसके कतरे कतरे से बेबसी झांक रही है। अहान एक करोड़पति बिजेनस फैमिली का दामाद तो ज़रूर है, मगर उसकी हालत पर घर के नौकर भी कहते थे, “कुछ पैसे चाहिए तो बता देना, तुम्हारी गरीबी देखी नहीं जाती!”

कहने को तो अहान जैसी rich family के दामाद सडको पर महंगी कार दौड़ाते थे, मंहगे clubs में जाते थे, मगर अहान की life में तीन चीजे आम थी - पहली चीज बेइज्जती, दूसरी चीज बहुत बेइज्जती और तीसरी चीज बहुत से भी उपर वाली बेइज्जती! और हाँ कभी कभी वो किसी रईस को जब अपनी बीवी को एक महंगे होटल में खाना खिलाते देखता तो वो खुद से कहता, “एक दिन अपना टाइम भी आयेगा जब मैं मंहगे सूट में ऐसे किसी महंगे होटल में अपनी बीवी शनाया को टशन के साथ खाना खिलाऊंगा! देखना जब वो मेरे सीने से लग के एक romantic duet में मेरे साथ romantic candle light dance करेगी तो होटल में बैठे सारे रईसजादों के सीने पर सांप लोटेंगे।" अहान ने ऐसा सोचते हुए अपने हाथ में रखे तकिये को सीने से लगा के कसकर दबा लिया और नींद की खुमारी में जैसे ही उसने pillow को अपनी बाँहों में दबाया कि तुरंत ही उसका मोबाइल बज उठा जिससे अहान चौंककर उठ बैठा।

आंख मलते हुए मोबाइल स्क्रीन पर देखा तो शगुन का फोन था। उसे देखते ही अहान के सारे सपने छू मन्तर हो गये। शगुन अहान की बीवी शनाया की cousin थी जो हमेशा ही अहान को नीचा दिखाने की कोशिश करती थी। मोबाइल की तरफ देखकर अहान ने बुरा सा मुंह बनाया और फिर कुछ सोचकर फोन उठा लिया। तभी दूसरी तरफ से आवाज़ आई, “क्या बात है जीजाजी फोन नहीं उठा रहे आप?”

जवाब में अहान ने कहा - “नही शगुन मैं..।”

तभी शगुन उसकी बात काटते हुए बोली - “खैर वो सब छोड़ो मेरा एक काम है, साहू ज्वैलर्स पर मेरा एक नेकलेस पड़ा हुआ है। मैंने उसके मालिक को फोन कर दिया है वो नेकलेस लेकर आप मेरे घर पर आ जाइये और हाँ...”

तभी अहान बीच में ही बोल पड़ा - “शगुन मुझे बैंक जाना है और मैं..”

तभी शगुन ने कहा - “मेरे प्यारे जीजाजी, ये बैंक जाने का तेवर आप किसको दिखा रहे हैं पलना तो आपको हमारे टुकड़ों पर ही है। इसलिए ये बहाना बनाना छोड़िये और एक घंटे के अंदर मेरा नेकलेस लाकर मुझे दीजिये। और हाँ वो ज्वैलर्स आपको 30 हज़ार रुपये भी देगा उसमें से एक पैसा भी गायब नही होना चाहिए।”

तभी अहान थोडा चिढ़ते हुए बोला - “देखो शगुन। एक तो मैंने आज तक कभी चोरी की नही है और दूसरी बात ये कि अगर इतना ही मुझ पर doubt है तो ये काम किसी नौकर को भेजकर क्यों नही करवा लेती?”

इस पर शगुन की तंज भरी आवाज़ आई - “प्यारे जीजाजी आप ये बात कब समझेंगे कि इस घर में आपको बहस करने की इजाजत नही है, इसलिए जितना आपसे कहा जा रहा है उतना कीजिये और मैं फिर से आपसे कह रही हूँ कि उस पैसे में से एक भी रुपया कम नही होना चाहिए। ये चींजे आप एक घंटे के अंदर लेकर मेरे घर पहुँच जाइये, बाय।”

इतना कहकर शगुन ने फोन काट दिया। अहान अपने मोबाइल को इस तरह घूरकर देखने लगा जैसे वो दुनिया की सबसे मनहूस चीज हो।

जल्द ही अहान फ्रेश होकर बाथरूम से बाहर आया और जल्दबाजी में अपनी अलमारी की तरफ बढ़ा जिसमे सिर्फ दो जोड़ी पुराने कपड़े रखे हुए थे।

उनमे से जो सबसे साफ़ कपड़ा था अहान ने उसे पहनने के लिए चुना, तैयार होकर वो बाहर निकला और जैसे ही सामने देखा तो उसकी सास यामिनी गिल अपनी कुछ सहेलियों के साथ rummy party में व्यस्त थी। तभी यामिनी जी की एक सहेली ने अपनी सैंडल की तरफ देखकर कहा - “देखो न यामिनी, आज तुम्हारे यहाँ आते वक्त मेरी सैडल का स्ट्रिप टूट गया। अब मैं वापस घर कैसे जाउंगी?”

इस पर यामिनी जी ने मुस्कुराते हुए कहा - “तो इसमें टेंशन लेने की क्या बात है? तू party enjoy कर मैं किसी सर्वेंट से बोलकर सही करवा देती हूँ।”

जवाब में वो औरत बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली - “अरे नहीं मेरी बहुत महंगी सैडल है। मैं किसी नौकर पर भरोसा नहीं कर सकती। वैसे भी मैं टूटी सैडल दोबारा नही पहनती। पर क्या करूँ घर तो जाना ही है!”

जवाब में यामिनी जी मुस्कुराते हुए बोली - “अरे नौकर नहीं बस नौकर से थोडा उपर है, वो तेरा काम अच्छे से करवा देगा।”

अहान उस तरफ से निकला ही था जब यामिनी जी की नजर उस पर पड़ गयी। उन्होंने अहान को पुकारा - “अरे सुनो अहान, इनकी सैंडल सही करवा के लाना ज़रा।"

तभी यामिनी जी की सहेली ने कहा - “यामिनी, ये काम दामाद से...।”

यामिनी उनकी बात बीच में काटकर बोल पड़ी - “अरे तुम लोग टेंशन मत लो ऐसे कामो में इनको बहुत मज़ा आता है, किसी के पास और कोई काम हो तो बता देना।"

यामिनी जी की ये बातें सीधा अहान के दिल पर आकर लगी मगर अब उसे ये सब हमेशा ही सुनने की आदत सी हो गयी थी।

उसे याद था कि आज उसका बर्थडे है मगर ये सिर्फ उसे ही याद था बाकी किसी को भी इससे कोई मतलब नही था।

तभी अहान ने यामिनी जी से कहना चाहा - “मगर अभी मैं शगुन के काम से..”

उसके इतना कहते ही यामिनी जी ने आंखे दिखाते हुए कहा - “बहस नही, जल्दी से काम खत्म करके आओ।"

और अब यामिनी जी की सहेली ने अहान को उसकी टूटी हुई सैंडल की स्ट्रिप दिखाकर कहा - “बस ये वाली सही करवा के लाना।”

कहते हुए उसने अहान का हाथ उठाकर सैंडल उसके हाथो में पकड़ा दी। अहान सर झुकाए उस सैंडल की तरफ देखने लगा, न चाहते हुए भी अहान को ये काम करना पड़ रहा था। उसे जाते देख यामिनी की बाकी दो सहेलियों ने भी अपने अपने काम पकड़ा दिए।

अहान सबकी बातें सुनता रहा और फिर सामने लगी शनाया की तस्वीर देखकर मन में ही बोला - “इतनी बेइज्जती के बाद भी अगर मैं इस घर में टिका हुआ हूँ तो सिर्फ इसीलिए शनाया क्योंकि मैं आपको खोना नही चाहता। I love you.”

इतना कहकर अहान बाहर आ गया। वो अपनी बाइक लेकर निकला ही था कि तभी रास्ते में उसके मोबाइल पर उसकी बीवी शनाया का मैसेज आया - "अच्छा सुनो, क्या आप आज मेरे ऑफिस आ सकते हैं?"

ये मैसेज पढ़ते ही अहान के होठों पर एक स्माइल आ गयी और उसकी पूरे दिन की टेंशन जैसे गायब ही हो गयी। आज पहली बार शनाया ने उसे ऑफिस बुलाया था। एक वही तो थी उसकी जिंदगी में जिसकी मुस्कुराहट देखकर वो खुद को जिंदा रखता था। शनाया का चेहरा देखे बिना अहान को चैन नही आता था और उसके बस में होता तो शनाया की हर एक ख़ुशी के लिए खुद को लाखो बार कुर्बान कर देता।

मैसेज पढ़ते हुए अहान मुस्कुरा कर बोला - "आज पहली बार आपने मुझे ऑफिस बुलाया है शनाया, मुझे पता था मेरा बर्थडे किसी और को याद हो न हो मगर आपको ज़रूर याद होगा इसीलिए आपने मुझे बुलाया है। मैं भी बड़ी बेसब्री से आपके surprise gift का wait कर रहा हूं।"

इतना सोचकर अहान ने बाइक स्टार्ट की और अब गिल कंस्ट्रक्शन के ऑफिस की तरफ निकल पड़ा। रास्ते में अहान को एक फूलों की दुकान दिखी, कुछ सोचकर उसने बाइक रोकी और अपना पर्स निकालकर देखने लगा उसमे सिर्फ 500 का एक नोट पड़ा हुआ था।

उस नोट की तरफ देखते हुए अहान ने कहा - “ओह। दो ही जोड़ी कपड़े हैं मेरे पास, बैंक जाने के लिए इन्ही पैसो से मुझे नये कपड़े लेने थे पर कोई बात नही शनाया से बढकर कुछ भी नही।"

और फिर उस पैसे से अहान ने शनाया के लिए फूलों का वो बुके ले लिया।

जैसे ही अहान वापस मुड़ा तो उसे शगुन का काम और अपनी सास के दिए हुए काम याद आ गये। उसने एक नजर घूरकर उस सैडल की तरफ देखा और कहा - “माफ़ करना dear aunties and सासूमाँ आपके चरणों को प्रणाम मगर शनाया से बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं थोडा सा सुन ही लेंगे आपसे।”

इतना कहकर अहान ने वो सैंडल उठाया और पास के झाड़ियों में फेंक दिया।

आज वो पहली बार गिल कंस्ट्रक्शन के ऑफिस जा रहा था जो कम्पनी गिल खानदान की थी। ये सोचकर आज वो फूला नहीं समा रहा था कि आज वहां उसका अच्छे से स्वागत होगा। वहां पहुँचते ही अहान तेज़ी से ऑफिस के अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि तभी सामने से आ रहा एक आदमी से अहान टकरा गया जिससे अहान के हाथों में मौजूद बुके नीचे गिर गया।

वो व्यक्ति देखने में काफी अमीर लग रहा था जिसके जिस्म पर नीला सूट और आँखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ था। उसका नाम देव मल्होत्रा था और वो शनाया का क्लाइंट था जो अभी अभी शनाया के केबिन से बाहर निकला था।

वो अहान पर चिल्लाते हुए बोला - “you idiot दिखाई नही देता क्या तुम्हे? पता नहीं कहाँ कहाँ से मुंह उठाकर चले आते हैं इस ऑफिस के अंदर तुम्हारे खड़े होने की औकात भी नही है और टहल ऐसे रहे हो जैसे तुम्हारी खाला का घर हो, कौन हो तुम?" शायद मल्होत्रा ने भी उसके बदरंग कपड़ों से उसे नौकर या ओफ़िस बॉय ही समझ लिया था।

मल्होत्रा ने एक नजर नीचे पड़े बुके की तरफ देखा और फिर उसे अपने पैरों तले कुचल के बाहर निकल गया।

आहान ने अपना सर झुकाए उस बुके की तरफ देखा जो पैरों से कुचला जा चुका था।

उधर शनाया अपने केबिन के शीशे के अंदर से ये नज़ारा देख रही थी। आँखों में आंसू लिए शनाया बस अहान को देखे जा रही थी। देव मल्होत्रा वहां से जा चुका था और तभी अहान की नज़र शनाया पर पड़ी तो एक पल के लिए वो अपनी बेइज्जती भूल गया और शनाया की तरफ देखकर खुद से ही बोला - "कितना प्यार करती हो ना आप मुझसे, मेरे साथ हुए इस बर्ताव ने आपकी आँखों में आंसू ला दिए।"

और वो शनाया के केबिन में दाख़िल हो गया। शनाया ने आगे बढ़कर शीशे के पास लगे पर्दों को गिरा दिया।

वो शनाया की तरफ बढ़ा और उसके आंसू पोंछते हुए बोला - "अब जाने भी दो न शनाया, जो भी हुआ मेरे साथ हुआ और इसमें आपको इतना टेंशन लेने की ज़रूरत नही है।"

तभी शनाया चीखते हुए बोली - "दूर हटिये मुझसे, आप चले क्यों नही जाते मेरी ज़िन्दगी से?"

अहान को एकदम से झटका सा लगा वो खुले मुंह से शनाया की तरफ देखता रह गया। तभी शनाया आगे बोली - "पति नहीं मेरे पापों की सज़ा हैं आप मेरे लिए। आखिर चाहते क्या हो आप? पापा ने मेरी शादी आपसे ज़बरदस्ती करवाई है और उस गलती की सजा मुझे अब तक मिल रही है। आप मेरे काबिल कभी नही थे और आज भी मुझे आपको अपना पति मानते हुए शर्म आती है। आज ड्राइवर नहीं था इसलिए मैंने आपको बुलाया था मगर मुझे नही पता था कि मेरा पति इस काम के लायक भी नही है। यहां आकर आपने मेरे इतने पुराने क्लाइंट मिस्टर मल्होत्रा को नाराज कर दिया।"
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अध्याय 2 – संत से भेंट|अगली सुबह आर्यन ने बिना किसी संदेह के अपनी यात्रा शुरू की। उसका उद्देश्य स्पष्ट था—माया के रहस्य ...
23/12/2024

अध्याय 2 – संत से भेंट|

अगली सुबह आर्यन ने बिना किसी संदेह के अपनी यात्रा शुरू की। उसका उद्देश्य स्पष्ट था—माया के रहस्य को समझना। उसने सुना था कि संत सिधेश्वर, जो अपनी आध्यात्मिक ज्ञान और अद्भुत शिक्षाओं के लिए प्रसिद्ध थे, पहाड़ियों के बीच एक कुटिया में निवास करते हैं।

यात्रा की चुनौतियाँ
यात्रा आसान नहीं थी। घने जंगलों के बीच से गुजरते हुए, हर मोड़ पर उसे नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कभी तेज धूप, तो कभी डरावने जानवरों की आवाजें उसे भयभीत करने लगीं। लेकिन आर्यन का दृढ़ निश्चय उसे आगे बढ़ाता रहा।

तीसरे दिन, जब वह संत सिधेश्वर की कुटिया के पास पहुँचा, तो उसका शरीर थका हुआ था, लेकिन मन में एक नई ऊर्जा थी। उसने देखा कि एक वृद्ध व्यक्ति ध्यान में मग्न बैठे थे। उनके चेहरे पर एक दिव्य तेज था, और उनकी उपस्थिति से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे पूरी प्रकृति उनके साथ एकरूप हो गई हो।

पहला संवाद
आर्यन ने अपने आपको धन्य मानते हुए उनके चरणों में गिरकर कहा,
"गुरुदेव, मैं माया का रहस्य जानने और अपने जीवन के उद्देश्य को समझने के लिए यहाँ आया हूँ। कृपया मुझे इस मार्ग पर चलने का ज्ञान दें।"

संत सिधेश्वर ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। उनकी आँखों में गहरी शांति और करुणा झलक रही थी। मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा,
"पुत्र, माया केवल शब्दों में समझाई नहीं जा सकती। यह ऐसा जाल है, जिसे केवल अनुभव के माध्यम से समझा जा सकता है। यदि तुम सच में तैयार हो, तो मैं तुम्हें इसके रहस्य का अनुभव करा सकता हूँ। लेकिन याद रखना, यह मार्ग कठिन है और इसमें अपने स्वयं के भ्रमों का सामना करना होगा। क्या तुम इसके लिए तैयार हो?"

आर्यन ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया,
"गुरुदेव, मैं हर कठिनाई सहने के लिए तैयार हूँ। कृपया मुझे इस यात्रा पर मार्गदर्शन दें।"

पहले चरण की शुरुआत
संत सिधेश्वर ने उसे बैठने का संकेत दिया और कहा,
"पहला कदम यह है कि तुम अपने मन को शांत करना सीखो। ध्यान का अभ्यास तुम्हें माया के प्रभाव को पहचानने में मदद करेगा। जो तुम देख रहे हो, सुन रहे हो, और महसूस कर रहे हो, वह वास्तविकता नहीं है। वास्तविकता तुम्हारे भीतर है।"

उन्होंने आर्यन को कुछ ध्यान विधियाँ सिखाईं और कहा कि वह उन्हें प्रतिदिन अभ्यास करे। उन्होंने उसे यह भी बताया कि माया का पहला प्रभाव भ्रम है, और इसे तोड़ने के लिए आत्मा की गहराई में जाना होगा।

आर्यन का संकल्प
आर्यन ने संत की बातों को गहराई से सुना और अपने भीतर एक नई ऊर्जा महसूस की। उसने समझा कि माया को समझने और उससे मुक्त होने का मार्ग केवल गुरुदेव के निर्देशों का पालन करके ही संभव है। उसने संत सिधेश्वर के चरणों में प्रणाम किया और अपने भीतर इस नई यात्रा की शुरुआत का संकल्प लिया। आगे की कहानी के लिए commet करे|

अध्याय 1 – आरंभ: माया का मायाजाल|आनंदपुर एक ऐसा गाँव था, जो अपनी हरियाली, शांत वातावरण, और सीधे-साधे लोगों के लिए प्रसिद...
22/12/2024

अध्याय 1 – आरंभ: माया का मायाजाल|

आनंदपुर एक ऐसा गाँव था, जो अपनी हरियाली, शांत वातावरण, और सीधे-साधे लोगों के लिए प्रसिद्ध था। इस गाँव में एक किसान परिवार रहता था, जिसमें सबसे छोटा बेटा था आर्यन। आर्यन अपनी उम्र के अन्य लड़कों से अलग था। वह दिन-रात किताबों और गूढ़ विचारों में खोया रहता।

उसके पिता हमेशा कहते,
"आर्यन, खेतों में काम करो। जीवन जीने के लिए खाना कमाना सबसे बड़ा धर्म है। ये किताबें और विचार तुम्हें कहीं नहीं ले जाएंगे।"

लेकिन आर्यन को हमेशा लगता था कि इस संसार में कुछ ऐसा है जिसे समझना उसके जीवन का उद्देश्य है।

एक रात, वह गाँव के तालाब के किनारे बैठा था। आसमान में चमकते तारों को देखते हुए उसने सोचा,
"यह संसार कितना विशाल है। लेकिन फिर भी यह इतना सीमित क्यों लगता है? क्यों मैं इसे पूरी तरह से नहीं समझ पाता?"

उसी समय, एक बूढ़े साधु ने गाँव में डेरा डाला। उनके सत्संग में लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए। साधु ने कहा,
"यह संसार माया है। जैसे मकड़ी का जाला देखने में सुंदर और मजबूत लगता है, लेकिन असल में वह जाल मकड़ी को ही जकड़ता है। माया का जाल भी ऐसा ही है। इससे मुक्ति पाना ही जीवन का उद्देश्य है।"

आर्यन ने यह सुना और उसके मन में सवालों का तूफान खड़ा हो गया। उसने तय किया कि वह इस माया के रहस्य को समझे बिना चैन से नहीं बैठेगा। आगे की कहानी के लिए commet करे

सुबह के 5 बजे वाली चाय की दिल छू लेने वाली कहानी |सुबह का समय, वह भी ठीक 5 बजे। इस वक्त कुछ लोग गहरी नींद में खोए होते ह...
17/12/2024

सुबह के 5 बजे वाली चाय की दिल छू लेने वाली कहानी |

सुबह का समय, वह भी ठीक 5 बजे। इस वक्त कुछ लोग गहरी नींद में खोए होते हैं तो कुछ अपने दिन की शुरुआत की तैयारी कर रहे होते हैं। लेकिन सुबह के इस समय का असली जादू सिर्फ वहीं लोग समझते हैं जिनके लिए चाय का पहला कप दुनिया की सबसे प्यारी चीज होता है। इसी चाय के कप में सारा सुकून, सारी ताजगी और उम्मीदें छुपी होती हैं। यह कहानी भी ऐसे ही एक कप चाय की है—सुबह की 5 बजे वाली चाय, जो कुछ रिश्तों को गहराई से जोड़ती है, कुछ ख्वाबों को फिर से जगाती है और जिंदगी में एक नई ऊर्जा भरती है।

शुरुआत का एहसास

सुबह के अंधेरे को चीरते हुए एक हल्की हलचल शुरू होती है। गांव की गलियों में कहीं मुर्गे की बांग सुनाई देती है, तो कहीं बड़े शहरों में अखबारवाला अपनी साइकिल की घंटी बजाता है। लेकिन यह कहानी एक छोटे-से कस्बे की है, जहां सुबह-सुबह वातावरण शुद्ध, शांत और अपने आप में किसी कविता की तरह सुंदर लगता है। इसी कस्बे में रहने वाले शर्मा जी की सुबह का असली नायक एक चाय का कप था।

शर्मा जी उम्रदराज थे, लेकिन उनके लिए यह चाय केवल चाय नहीं थी—यह उनकी आदत, उनका प्रेम और उनका एक खास रिवाज था। उम्र के इस पड़ाव पर उन्होंने अपने दिन की शुरुआत हमेशा एक बात से की थी—चाय और प्रभात की ताज़ी हवा।

चाय का इंतज़ार

शर्मा जी की पोती आराधना, जो दसवीं कक्षा की छात्रा थी, अक्सर सोचती कि आखिर दादाजी सुबह के 5 बजे चाय क्यों पीते हैं। क्या यह सच में जरूरी है? उसे लगता, चाय तो कभी भी पी जा सकती है। लेकिन वह यह भी जानती थी कि उसके दादाजी के लिए चाय का यह समय किसी त्यौहार से कम नहीं था।

एक दिन आराधना ने हिम्मत जुटाकर दादाजी से यह सवाल कर ही लिया—
"दादाजी, आप हर दिन सुबह इतनी जल्दी उठकर चाय क्यों पीते हैं?"

दादाजी ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, सुबह की इस चाय में एक जादू है। यह वक्त बहुत खास होता है। जब पूरी दुनिया सो रही होती है, तब यह चाय मुझे अपनी जिंदगी के करीब ले जाती है। इस वक्त जो शांति होती है, वह पूरे दिन नहीं मिलती।"

जाने-अनजाने रिश्तों की डोर

उस सुबह से आराधना को भी दादाजी के साथ चाय पीने की आदत-सी हो गई। वह अपने अलार्म को सुबह 4:50 पर सेट कर लेती और चुपचाप रसोई में जाकर उनके लिए चाय बनाती। यह बात दादाजी के दिल को छू जाती थी। पहले यह चाय का समय केवल उनका था, लेकिन अब यह उनके और उनकी पोती के रिश्ते की एक नई शुरुआत बन चुका था।

दादाजी चाय का पहला घूंट लेते ही हल्की-सी मुस्कान बिखेरते और कहते, "अरे वाह! चाय तो लाजवाब बनी है।" आराधना की आंखें चमक उठतीं। उसे लगता कि यह छोटी-सी तारीफ उसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी जीत है।

सुबह के 5 बजे का यह चाय का समय अब उनके लिए कुछ पल की बातचीत और बहुत सारी यादों का जरिया बन चुका था। चाय की भाप के साथ-साथ उनका रिश्ता भी और गहरा हो रहा था।

सुख-दुख की चाय

समय बीतता गया। आराधना बोर्ड परीक्षा की तैयारी में लग गई और शर्मा जी भी उम्र की चुनौतियों का सामना करने लगे। लेकिन सुबह की 5 बजे वाली चाय का सिलसिला कभी नहीं रुका। यह उनके लिए एक उम्मीद थी, जिसे वे हर हाल में पूरा करना चाहते थे।

एक बार जब आराधना का गणित का पेपर खराब हो गया, वह बेहद उदास थी। उसकी आंखों में आंसू थे, और वह दादाजी से कुछ कहना चाहती थी लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। अगली सुबह भी उसने चाय बनाई, लेकिन उसके चेहरे पर वह पहले वाली चमक नहीं थी।

दादाजी ने चाय का घूंट लिया और बोले, "आज चाय में कुछ कमी है।"

आराधना ने हैरान होकर पूछा, "क्या हुआ दादाजी? आज भी मैंने वैसी ही चाय बनाई है।"

शर्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, कमी चाय में नहीं है। कमी तेरे मुस्कान की है। चाय का असली स्वाद तो दिल के हालात पर निर्भर करता है।"

आराधना की आंखों में आंसू आ गए। उसने अपने गणित के खराब पेपर के बारे में बताया। शर्मा जी ने प्यार से उसका सिर सहलाया और बोले, "हर दिन अच्छा नहीं होता, लेकिन हर सुबह नई होती है। यह चाय हमें यही सिखाती है। जब तक सूरज उगता है, तब तक उम्मीद बाकी है।"

आराधना को उस दिन समझ आया कि सुबह की चाय केवल थकान मिटाने का जरिया नहीं होती, यह जीवन में नई शुरुआत का प्रतीक भी है।

बीते दिनों की यादें

वक्त का पहिया आगे बढ़ता गया। आराधना बड़ी हो गई, पढ़ाई के सिलसिले में शहर से बाहर चली गई। शर्मा जी की सुबह की 5 बजे वाली चाय अब अकेली हो गई थी। चाय का कप तो वही था, लेकिन उसमें अब वह बात नहीं थी।

आराधना को शहर में रहते हुए भी सुबह की चाय की आदत बनी रही। जब कभी उसे अपने दादाजी की याद आती, वह सुबह 5 बजे उठकर चाय बनाती और खिड़की के पास बैठकर उनकी कही बातें याद करती। चाय की भाप में उसे अपने दादाजी का चेहरा दिखाई देता और उनकी कही बातें कानों में गूंजने लगतीं।

चाय का आखिरी कप

एक दिन अचानक खबर आई कि शर्मा जी बीमार हैं। आराधना तुरंत घर वापस लौट आई। दादाजी कमजोर हो चुके थे, लेकिन उनकी मुस्कान वैसी ही थी। आराधना ने उनके लिए सुबह की 5 बजे वाली चाय बनाई।

शर्मा जी ने चाय का पहला घूंट लिया और मुस्कुराते हुए बोले, "आज चाय में वही पुराना स्वाद है।"

उस दिन के बाद शर्मा जी चाय नहीं पी सके। लेकिन उनकी वह आखिरी चाय, वह आखिरी मुस्कान आराधना के लिए हमेशा के लिए अमर हो गई।

सुबह की चाय का महत्व

समय के साथ हम बहुत कुछ भूल जाते हैं, लेकिन कुछ चीजें हमेशा दिल में जिंदा रहती हैं। शर्मा जी के लिए सुबह की 5 बजे वाली चाय उनकी जिंदगी का सबसे प्यारा हिस्सा थी। और आराधना के लिए वह चाय एक याद थी, जो उसे हर मुश्किल में हिम्मत देती थी।

अब जब भी आराधना सुबह की चाय पीती है, उसे लगता है कि कहीं न कहीं दादाजी उसके साथ बैठे हैं। चाय की भाप में छुपे उनके शब्द आज भी उसे प्रेरणा देते हैं—"हर सुबह नई होती है, और जब तक सूरज उगता है, तब तक उम्मीद बाकी है।"

निष्कर्ष

सुबह की 5 बजे वाली चाय केवल एक आदत नहीं है, यह जीवन को फिर से देखने का तरीका है। यह कहानी हमें सिखाती है कि जिंदगी के छोटे-छोटे पलों में ही सबसे बड़ी खुशियां छुपी होती हैं। चाहे वह एक चाय का कप हो, किसी अपने की मुस्कान हो या फिर वह शांत समय, जब पूरी दुनिया सो रही हो।

सुबह की यह चाय हमें हर दिन नई ऊर्जा देती है, नए सपने दिखाती है और यह अहसास कराती है कि जिंदगी की असली खूबसूरती इन छोटे-छोटे पलों में छुपी है।

ननदों से भरा ससुराल  की कहानी सच्ची कहानी अभी पढ़ो|ससुराल, हर लड़की की ज़िंदगी का एक ऐसा हिस्सा होता है, जिसमें वह अपने ...
16/12/2024

ननदों से भरा ससुराल की कहानी सच्ची कहानी अभी पढ़ो|

ससुराल, हर लड़की की ज़िंदगी का एक ऐसा हिस्सा होता है, जिसमें वह अपने मायके को छोड़कर एक नए परिवार में कदम रखती है। नए रिश्तों के साथ-साथ, यह सफर जिम्मेदारियों और नई उम्मीदों का होता है। हमारी कहानी की नायिका "आरती" की ज़िंदगी में भी ससुराल एक नई दुनिया लेकर आया, जहाँ उसे ननदों के प्यार और तानों के बीच अपनी जगह बनानी थी।

नई शुरुआत

आरती का विवाह एक बड़े परिवार में हुआ था। उसके पति, रवि, परिवार के सबसे छोटे बेटे थे। ससुराल में चार ननदें थीं, जो अपने-अपने स्वभाव और आदतों में अलग थीं। शादी के बाद जब आरती ने पहली बार घर में कदम रखा, तो ननदों ने उसे प्यार से घेर लिया। हर कोई उसे अपना बनाने की कोशिश कर रहा था।

शुरुआती दिनों में सबकुछ सपने जैसा लगा। ननदें आरती का ख्याल रखतीं, उसे सजी-संवरी देख उत्साहित हो जातीं और उसकी हर छोटी-बड़ी बात पर हंसी-खुशी का माहौल बना देतीं। लेकिन जल्द ही आरती को समझ में आ गया कि बड़े परिवार में सबको खुश रखना आसान नहीं है।

प्यार और ताने का संगम

आरती की सबसे बड़ी ननद, कविता, थोड़ी सी सख्त स्वभाव की थीं। उनकी बातों में अक्सर व्यंग्य होता, लेकिन आरती समझती थी कि उनका दिल साफ है। वहीं दूसरी ननद, शालिनी, हमेशा मस्ती के मूड में रहतीं। तीसरी ननद, पूनम, शांत और सहायक स्वभाव की थीं, लेकिन चौथी ननद, रश्मि, थोड़ी चुलबुली और जिद्दी थीं।

हर दिन आरती के लिए एक नया अनुभव लेकर आता। कभी रश्मि उसे उसकी रसोई की शैली पर ताने देतीं, तो कभी शालिनी उसके साथ रसोई में चाय बनाते-बनाते दिल खोलकर हंसी-मजाक करतीं। कभी-कभी कविता की कड़क आवाज़ आरती को परेशान कर देती, लेकिन उनके स्नेहभरे इशारे उसे हिम्मत भी देते।

संघर्ष और समझदारी

एक दिन, घर में एक शादी का माहौल था। ननदें आपस में इस बात पर उलझ गईं कि कौन क्या काम करेगा। आरती ने स्थिति संभालने की कोशिश की, लेकिन उसे लगा कि कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं है। उसे लगा कि इस परिवार में जगह बनाना इतना आसान नहीं है।

रात को जब वह इस बारे में सोच रही थी, तो रवि ने उसका हौसला बढ़ाया। उन्होंने कहा, "यह सब तो इस घर का हिस्सा है। बस सबको समझने की कोशिश करो, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।" इस सलाह ने आरती को ताकत दी। उसने ठान लिया कि वह सबको समझने और प्यार से अपने रिश्ते मजबूत करने की कोशिश करेगी।

छोटे-छोटे पलों की मिठास

आरती ने देखा कि छोटी-छोटी बातों से रिश्तों को मजबूत किया जा सकता है। उसने ननदों के साथ समय बिताना शुरू किया। वह कविता की पसंदीदा मिठाई बनाती, शालिनी के साथ फिल्में देखती, पूनम से परिवार के इतिहास की बातें जानती और रश्मि के साथ खरीदारी पर जाती। धीरे-धीरे, ननदों के साथ उसकी दोस्ती गहरी हो गई।

एक दिन, कविता ने आरती से कहा, "तुम्हारे आने से इस घर में जो खुशी आई है, वह पहले कभी नहीं थी।" यह सुनकर आरती की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने महसूस किया कि उसका ससुराल अब उसका घर बन चुका है।

एकता का उदाहरण

एक बार परिवार में एक बड़ा संकट आ गया। रवि के व्यवसाय में नुकसान हुआ और घर में तनाव का माहौल बन गया। ऐसे समय में, आरती ने ननदों के साथ मिलकर पूरे परिवार को संभालने का काम किया। उन्होंने मिलकर हर समस्या का हल ढूंढा। इस मुश्किल घड़ी ने सबको और करीब ला दिया।

आरती को एहसास हुआ कि ससुराल में सिर्फ ताने और जिम्मेदारियां नहीं होतीं, बल्कि आपसी सहयोग और प्यार भी होता है। ननदें उसकी ताकत बन गईं, और आरती उनके लिए प्रेरणा।

ननदों के साथ नई पहचान

कुछ सालों बाद, जब आरती खुद एक बेटी की मां बनी, तो ननदें उसकी खुशी में शामिल हुईं। वे उसके बच्चे के लिए हर चीज में मदद करतीं। कविता उसे सलाह देती, शालिनी बच्चे को हंसाने की कोशिश करती, पूनम उसे सुलाने में मदद करती और रश्मि उसे खिलौने दिलाती।

आरती को अब महसूस हुआ कि ननदें केवल परिवार का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे सहेलियां, मार्गदर्शक और ताकत भी हैं।

निष्कर्ष

आरती की यह कहानी सिखाती है कि रिश्तों में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन समझदारी और प्यार से उन्हें संभाला जा सकता है। ननदों से भरा ससुराल केवल एक चुनौती नहीं है, बल्कि वह उत्साह, खुशियां और भावनाओं का अटूट संगम भी है।

आज आरती का ससुराल उसका अपना घर है, और ननदें उसकी सबसे बड़ी ताकत। उसने यह सीख लिया कि रिश्ते निभाने के लिए सिर्फ एक-दूसरे को समझने और सम्मान देने की जरूरत होती है। ननदों के प्यार और सहयोग ने उसे सिखाया कि परिवार का असली अर्थ क्या होता है।

सुबह सुबह खाना बनाने वाली बहू दिल को छू लेने वाली कहानी|गांव में हर रोज़ किसी न किसी के घर से पकवानों की महक उठती थी। ऐस...
16/12/2024

सुबह सुबह खाना बनाने वाली बहू दिल को छू लेने वाली कहानी|

गांव में हर रोज़ किसी न किसी के घर से पकवानों की महक उठती थी। ऐसे ही एक परिवार में, जहां परंपराओं और संस्कारों का पालन किया जाता था, एक नई बहू आई। उसका नाम था सुमन। सुमन साधारण परिवार से आई थी, लेकिन उसके संस्कार और उसकी पाककला की हर कोई प्रशंसा करता था।

सुमन की शादी रमेश के साथ हुई थी। रमेश के परिवार में हर चीज़ अनुशासन से होती थी। सुबह जल्दी उठकर घर के काम, पूजा-पाठ, और फिर भोजन बनाना—सब कुछ एक तय नियम के अनुसार चलता था। सुमन को पहले दिन से ही इस परिवार के ढर्रे को समझना पड़ा।

शादी के पहले ही दिन जब सुमन ने रसोई में कदम रखा, तो उसकी सास, श्रीमती सावित्री देवी, ने कहा, "देखो बहू, हमारे घर में खाना बनाने में साफ-सफाई और सादगी का बहुत ध्यान रखा जाता है। खाना केवल पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर को भोग लगाने के लिए भी बनता है। इसलिए इसमें मन और आत्मा दोनों लगनी चाहिए।"

सुमन ने सिर झुकाकर उनकी बात मानी और रसोई का काम संभाल लिया। पहले दिन उसने साधारण खिचड़ी बनाई, लेकिन उसमें ऐसा स्वाद था कि सारा परिवार उसकी तारीफ करता रह गया। सावित्री देवी को भी यह महसूस हुआ कि सुमन के हाथों में कुछ जादू है।

कुछ ही दिनों में सुमन ने परिवार की पसंद-नापसंद समझ ली। वह न केवल स्वादिष्ट खाना बनाती, बल्कि खाना बनाने के दौरान शुभता का ध्यान भी रखती। हर भोजन से पहले वह रसोई को साफ करती, भगवान का स्मरण करती, और फिर पूरे मन से खाना बनाती।

एक दिन गांव में एक बड़ा त्योहार आया। घर में बहुत सारे मेहमान आने वाले थे। सावित्री देवी थोड़ा चिंतित थीं कि इतनी तैयारी कैसे होगी। सुमन ने उन्हें आश्वासन दिया, "माँजी, आप चिंता न करें। मैं सब संभाल लूंगी।"

त्योहार के दिन सुबह से ही सुमन ने रसोई में काम शुरू कर दिया। उसने पुए, खीर, पूरी, सब्जी, दाल, चावल और कई तरह के मिठाइयां तैयार कीं। हर व्यंजन में एक अलग ही स्वाद और सुगंध थी। जब सारे मेहमान खाने पर बैठे, तो हर किसी ने कहा, "सावित्री बहन, आपकी बहू तो बहुत गुणी है। ऐसा स्वादिष्ट खाना हमने पहले कभी नहीं खाया।"

सुमन की सास का गर्व और बढ़ गया। उन्होंने सुमन को गले लगाते हुए कहा, "तुमने न केवल हमारा नाम ऊंचा किया है, बल्कि घर की मर्यादा भी बनाए रखी है। भगवान तुम्हारे हाथों में और ज्यादा हुनर दें।"

सुमन का खाना सिर्फ खाने तक सीमित नहीं था। वह उसमें अपने भाव और प्रेम डालती थी। हर व्यंजन के साथ उसकी शुभता और सकारात्मक ऊर्जा भी परोसी जाती थी। यह बात धीरे-धीरे गांव में मशहूर हो गई। लोग सुमन के बनाए खाने की तारीफ करते नहीं थकते थे।

कुछ महीनों बाद गांव के मंदिर में एक बड़ा आयोजन हुआ। सुमन को खाना बनाने की जिम्मेदारी दी गई। उसने पूरे मन और मेहनत से प्रसाद तैयार किया। जब प्रसाद बंटा, तो हर किसी ने कहा, "ऐसा लगता है कि यह प्रसाद खुद भगवान ने बनाया हो।"

इस तरह, सुमन न केवल अपने घर की शान बनी, बल्कि पूरे गांव में उसकी पाककला और शुभता के लिए उसकी प्रशंसा होने लगी। सुमन ने यह साबित कर दिया कि खाना बनाना सिर्फ एक काम नहीं, बल्कि एक कला है, जिसमें प्रेम, भाव, और शुभता होनी चाहिए।

निष्कर्ष

सुमन की कहानी यह सिखाती है कि अगर हम किसी भी काम में अपने मन, आत्मा और सकारात्मकता को शामिल करें, तो वह काम सफल होता है। चाहे वह खाना बनाना हो या जीवन के अन्य क्षेत्र। शुभ भावना से किया गया हर कार्य न केवल हमें खुशी देता है, बल्कि दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।

समय चाहे जैसा भी हो, बस ये जान लो आपकी जिंदगी बदल जाएगी|किसी गांव में एक लड़का था जिसका नाम अर्जुन था। अर्जुन बहुत ही मे...
16/12/2024

समय चाहे जैसा भी हो, बस ये जान लो आपकी जिंदगी बदल जाएगी|

किसी गांव में एक लड़का था जिसका नाम अर्जुन था। अर्जुन बहुत ही मेहनती और ईमानदार था। लेकिन उसकी सबसे बड़ी समस्या थी—समय की कमी। अर्जुन के पास हमेशा समय की कमी महसूस होती थी। उसके पास पढ़ाई, खेल, परिवार, और दोस्तों के साथ समय बिताने का बहुत कम मौका मिलता था।

अर्जुन एक छोटे से गांव में अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसके पिता एक किसान थे और माँ घर का काम करती थीं। अर्जुन का सपना था कि वह बड़ा आदमी बने, लेकिन वह सोचता था कि उसे अपने सपनों को पूरा करने के लिए बहुत अधिक समय की आवश्यकता होगी।

समय की कद्र

एक दिन अर्जुन के दिमाग में एक सवाल आया, "क्या समय किसी के लिए रुकता है?" वह इस सवाल का उत्तर ढूंढने के लिए हर किसी से पूछने लगा। गांव में एक वृद्ध बाबा रहते थे, जिन्हें लोग बड़े सम्मान से सुनते थे। अर्जुन उनके पास गया और पूछा, "बाबा, क्या समय कभी किसी के लिए रुकता है?"

बाबा हंसते हुए बोले, "समय कभी नहीं रुकता। यह हमेशा चलता रहता है, चाहे कोई उसे महसूस करे या नहीं।" अर्जुन को यह उत्तर अजीब सा लगा, लेकिन बाबा ने उसे समझाया, "समय को समझने के लिए, उसे सही तरीके से इस्तेमाल करना जरूरी है। अगर तुम समय की कद्र नहीं करोगे, तो यह तुमसे हमेशा भागता रहेगा।"

समय का सही उपयोग

अर्जुन ने बाबा की बातों को गंभीरता से लिया और समय का सही उपयोग करने का प्रण लिया। उसने अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित किया और अपने समय को अच्छे से प्रबंधित करने लगा। पहले, वह स्कूल में पढ़ाई के बाद दोस्तों के साथ खेलता था, लेकिन अब उसने खेल के समय को घटाकर पढ़ाई में और ज्यादा समय लगाना शुरू किया।

इसके अलावा, अर्जुन ने अपने माता-पिता की मदद भी करनी शुरू कर दी। वह अपने पिता के साथ खेतों में काम करता और अपनी माँ के साथ घर के कामों में हाथ बंटाता। इससे उसकी मां और पिता भी खुश रहते थे, और अर्जुन को ये अहसास हुआ कि समय का सही उपयोग करने से ना सिर्फ उसकी पढ़ाई बेहतर होगी, बल्कि परिवार का भी सुख-शांति से समय बितेगा।

कठिनाइयाँ और समाधान

कुछ दिनों बाद, अर्जुन ने महसूस किया कि वह बहुत मेहनत कर रहा है, लेकिन फिर भी समय कम पड़ रहा है। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। एक दिन उसने अपनी परेशानी बाबा से शेयर की। बाबा ने कहा, "समय का सही उपयोग करने के लिए सबसे जरूरी बात यह है कि तुम अपनी प्राथमिकताएं तय करो। जो चीजें तुम्हारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं, उन्हें पहले करो।"

अर्जुन ने बाबा की सलाह मानी और अपनी प्राथमिकताएं तय की। उसने सोचा कि पढ़ाई ही उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है, फिर परिवार और फिर दोस्त। उसने खेल के समय को कम किया और अपनी पढ़ाई को प्राथमिकता दी।

समय की सच्चाई

कुछ महीनों बाद, अर्जुन के जीवन में बदलाव आ गया। उसकी पढ़ाई में सुधार हुआ, और उसने अपनी कड़ी मेहनत के साथ गांव में नाम कमाया। उसने गांव के बच्चों के लिए शिक्षा का महत्व समझाया और उन्हें भी समय का सही उपयोग करने की सलाह दी। अब वह समय का सही उपयोग करते हुए अपनी पढ़ाई, खेल, और परिवार के साथ समय बिता सकता था।

अर्जुन ने समझ लिया कि समय चाहे जैसा भी हो, अगर हम उसे सही तरीके से इस्तेमाल करें, तो वह हमारे लिए बहुत बहुमूल्य हो सकता है। समय कभी भी रुकता नहीं है, और यदि हम समय की कद्र करते हैं, तो वह हमें हमारी मंजिल तक पहुंचने में मदद करता है।

निष्कर्ष

समय कभी नहीं रुकता और हम उसे जितना बेहतर तरीके से इस्तेमाल करेंगे, उतना ही हमारा जीवन समृद्ध और सफल होगा। समय का सही उपयोग हमारी मेहनत और प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। अर्जुन की तरह अगर हम समय की कद्र करें और उसे सही दिशा में लगाएं, तो हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। समय चाहे जैसा भी हो, यह हमारे हाथ में है कि हम उसे किस तरह से आकार दें।

लोगों के मन की बातइंसानियत का एक अहम पहलू है दूसरों के जज़्बात और उनके सोचने के तरीके को समझना। हर शख्स के अंदर एक कहानी...
15/12/2024

लोगों के मन की बात

इंसानियत का एक अहम पहलू है दूसरों के जज़्बात और उनके सोचने के तरीके को समझना। हर शख्स के अंदर एक कहानी होती है, जो उसकी शख्सियत, उसकी सोच और उसकी ज़िंदगी के तजुर्बों का नतीजा होती है। अक्सर हम लोगों के चेहरे, बातों या हरकतों से उनके बारे में राय बना लेते हैं, मगर उनके मन की बात जाने बिना हम उन्हें सही मायनों में नहीं समझ सकते। यह कहानी उन भावनाओं और अहसासों की है जो हर दिल में छुपे होते हैं।

एक छोटे से गांव में राकेश नाम का एक आदमी रहता था। वह बहुत अकेला रहता था और गांव के लोग उसे अजीब समझते थे। वह अक्सर बाजार में चुपचाप चलता, लोगों से दूर रहता और ज्यादा बातचीत नहीं करता। गांव के लोग उसे घमंडी और कठोर मानते थे। उसकी अकेले रहने की आदत को उसकी कमजोरी समझा जाता था।

गांव में अर्जुन नाम का एक नौजवान था, जो हमेशा लोगों के दुख-दर्द सुनता और उनकी मदद करने की कोशिश करता। एक दिन अर्जुन ने सोचा कि वह राकेश की खामोशी के पीछे छिपी कहानी को समझने की कोशिश करेगा। जब उसने राकेश से बात करने की कोशिश की, तो पहले राकेश ने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन अर्जुन की इंसानियत और उसकी सच्चाई ने धीरे-धीरे राकेश का दिल जीत लिया।

कुछ मुलाकातों के बाद राकेश ने अपनी कहानी अर्जुन के साथ साझा की। वह समय था जब राकेश का परिवार बेहद खुशहाल था। लेकिन एक दिन एक हादसे ने उसकी पूरी दुनिया उजाड़ दी। एक सड़क दुर्घटना में उसकी पत्नी और बेटी की मौत हो गई थी। इस हादसे ने उसे अंदर से तोड़ दिया। लोगों से दूर रहना और अकेलेपन को अपनाना उसकी मजबूरी बन गया।

अर्जुन ने राकेश की बातों को ध्यान से सुना। उसने महसूस किया कि राकेश का गुस्सा और खामोशी उसकी पीड़ा का नतीजा थे। अर्जुन ने न सिर्फ राकेश को समझने की कोशिश की, बल्कि धीरे-धीरे उसे दोबारा समाज से जुड़ने में मदद की। अर्जुन ने गांव के लोगों को भी राकेश की कहानी बताई, ताकि वे उसकी हालत को समझ सकें।

धीरे-धीरे गांव वालों का नजरिया बदल गया। अब वे राकेश से बात करने की कोशिश करने लगे। कुछ समय बाद, राकेश ने अपने दिल का बोझ हल्का महसूस किया और गांव के लोगों के साथ घुलने-मिलने लगा।

इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि हर इंसान के मन में एक अनसुनी कहानी होती है। जब तक हम उनके मन की बात जानने की कोशिश नहीं करते, तब तक हम उन्हें सही मायनों में नहीं समझ सकते। इंसान को सिर्फ उसके बाहरी रवैये से नहीं, बल्कि उसकी भावनाओं और परिस्थितियों से समझना चाहिए।

जब सब खराब लगें तो ये कहानी एक बार जरुर सुने| बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव के पास एक घना जंगल था। इस जंगल मे...
13/12/2024

जब सब खराब लगें तो ये कहानी एक बार जरुर सुने|

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव के पास एक घना जंगल था। इस जंगल में हर प्रकार के जीव-जंतु रहते थे, लेकिन गांव के लोग वहां जाने से डरते थे। कहते थे कि जंगल में एक अजीब-सा दीपक है, जो किसी को भी दिखता नहीं, पर जिसने भी उसे पा लिया, उसकी सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं।

गांव में एक गरीब लड़का रहता था, जिसका नाम अर्जुन था। उसकी मां बीमार थी और घर में खाने तक के पैसे नहीं थे। अर्जुन ने कई जगह काम किया, लेकिन कहीं भी उसका मन नहीं लगा। एक दिन वह थक-हार कर अपनी मां के पास बैठा और बोला, "मां, हमारे जीवन में कोई रोशनी नहीं बची। अब और क्या करें?"

उसकी मां ने उसे समझाते हुए कहा, "बेटा, जब सब खराब लगता है, तो उम्मीद की रोशनी खुद तलाशनी पड़ती है। उस जंगल के दीपक की कहानी सच है या नहीं, मुझे नहीं पता। पर कभी-कभी हमें खुद को साबित करने के लिए जोखिम लेना पड़ता है।"

अर्जुन को मां की बात ने प्रेरित किया। अगले दिन वह जंगल में जाने का फैसला कर चुका था।

सफर की शुरुआत

जंगल में कदम रखते ही अर्जुन को अजीब-सा डर लगा। पेड़ों के झुरमुट और जानवरों की आवाजें उसे डरा रही थीं। लेकिन उसने हार नहीं मानी। रास्ते में उसे एक बूढ़ा साधु मिला। साधु ने पूछा, "बेटा, कहां जा रहे हो?"

अर्जुन ने दीपक की कहानी सुनाई और अपनी मां की हालत बताई। साधु मुस्कुराया और कहा, "तुम्हें तीन परीक्षाओं से गुजरना होगा। अगर तुम सच्चे हो और डटे रहे, तो तुम्हें दीपक जरूर मिलेगा।"

अर्जुन ने साधु का आशीर्वाद लिया और आगे बढ़ा।

पहली परीक्षा: भय का सामना

कुछ दूर चलते ही अर्जुन के सामने एक बड़ा शेर आ गया। वह कांपने लगा, लेकिन उसने खुद को शांत किया। उसने शेर से कहा, "मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। मैं अपनी मां के लिए इस जंगल के दीपक की तलाश में हूं।"

शेर उसे गौर से देखने लगा और फिर बोला, "तुम सच में बहादुर हो। जाओ, आगे बढ़ो। लेकिन याद रखना, डर को हराने का तरीका है उससे सामना करना।"

अर्जुन की हिम्मत बढ़ी और उसने यात्रा जारी रखी।

दूसरी परीक्षा: स्वार्थ और परोपकार

आगे रास्ते में अर्जुन को एक नन्हा हिरण मिला, जो कांटों में फंसा हुआ था। अर्जुन को जल्दी थी, लेकिन वह उसे यूं ही छोड़ नहीं सका। उसने हिरण को बचाया।

हिरण ने कहा, "तुमने समय की परवाह किए बिना मेरी मदद की। बदले में मैं तुम्हें एक रहस्य बताता हूं। दीपक तक पहुंचने का रास्ता हमेशा सीधे नहीं जाता। तुम बाईं ओर मुड़ो, जहां रास्ता खत्म होता दिखता है। वहीं से असली मार्ग शुरू होगा।"

अर्जुन ने उसका शुक्रिया अदा किया और हिरण के बताए रास्ते पर चल पड़ा।

तीसरी परीक्षा: धैर्य और विश्वास

अर्जुन ने कई घंटे चलने के बाद खुद को एक गहरी खाई के पास पाया। खाई पार करने का कोई पुल या रास्ता नहीं था। वह निराश हो गया और बैठकर सोचने लगा। तभी उसे साधु की बात याद आई, "धैर्य रखो और अपने लक्ष्य पर विश्वास करो।"

अर्जुन ने खाई के पार जाने की तरकीब सोचनी शुरू की। उसने कुछ मजबूत लताएं और लकड़ियां इकट्ठी कीं और एक अस्थायी पुल बनाया। पूरी रात मेहनत करने के बाद वह खाई पार कर सका।

दीपक की प्राप्ति

खाई पार करते ही अर्जुन ने देखा कि एक रोशनी उसके सामने चमक रही थी। वह रोशनी किसी साधारण दीपक की नहीं, बल्कि एक जादुई दीपक की थी। दीपक के पास पहुंचते ही उसे एक आवाज सुनाई दी, "तुमने अपने साहस, परोपकार और धैर्य से खुद को साबित किया है। अब अपनी इच्छा मांगो।"

अर्जुन ने विनम्रता से कहा, "मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि मेरी मां स्वस्थ हो जाए और हमारा जीवन सामान्य हो जाए।"

दीपक ने उसकी इच्छा पूरी कर दी। जब अर्जुन गांव लौटा, तो उसने पाया कि उसकी मां पूरी तरह स्वस्थ थी। उसके घर में खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी। दीपक ने उसे सिखाया कि सबसे बड़ा चमत्कार हमारे भीतर का साहस, धैर्य और परोपकार है।

सीख

अर्जुन की कहानी हमें यह सिखाती है कि जब सब खराब लगता है, तब हार मानने के बजाय हमें अपने भीतर की शक्ति और अच्छाई को पहचानना चाहिए। जीवन की परीक्षाएं हमें मजबूत बनाने के लिए आती हैं। अगर हम उनका सामना साहस और विश्वास से करें, तो रोशनी का दीपक हमें जरूर मिल जाता है।

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