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भारत हमेशा नॉकआउट में जल्दी विकेट खो देता था या कम रन रेट पर रन बनाता था, तो रोहित शर्मा ने भारतीय क्रिकेट का संस्कार बद...
27/09/2024

भारत हमेशा नॉकआउट में जल्दी विकेट खो देता था या कम रन रेट पर रन बनाता था, तो रोहित शर्मा ने भारतीय क्रिकेट का संस्कार बदल दिया, नॉकआउट जाना सिखाया और आगे से आगे बढ़ कर सबको दिखाया। 🙌

रोहित शर्मा का नाम क्रिकेट इतिहास में उनके निस्वार्थ नेतृत्व के लिए याद किया जाएगा। कप्तान हिटमैन रोहित शर्मा ❤👏

जानत बारह लोग.... दादा हमर सागवान कम बोअले आ बॉस ज्यादा बासवारी में लगवले,हम पूछनी दादा अईसे काहे कइले बानी....त दादा कह...
27/09/2024

जानत बारह लोग....
दादा हमर सागवान कम बोअले आ बॉस ज्यादा बासवारी में लगवले,
हम पूछनी दादा अईसे काहे कइले बानी....
त दादा कहलन कि आवे वाला समय मे लोग एतना दादी च्योद हो जाई की सागवान से ज्यादा बॉस के दरकरार पड़ी।

गंभीर भाई हंसते हुए इतने भी बुरे नहीं लगते होकभी कभी खुल कर हंस भी लिया करो♥️😅
26/09/2024

गंभीर भाई हंसते हुए इतने भी बुरे नहीं लगते हो
कभी कभी खुल कर हंस भी लिया करो♥️😅

एक शतक फेंक कर मारुंगा कोच कप्तान सेक्टर्स,ससुर और मेरी बाबू बहुत सारा खुश हो जाएंगे..❤️😅
26/09/2024

एक शतक फेंक कर मारुंगा कोच कप्तान सेक्टर्स,
ससुर और मेरी बाबू बहुत सारा खुश हो जाएंगे..❤️😅

नदी किनारे जिसका घर हैं वहीं ये नजारा देख सकता हैं ❤️
26/09/2024

नदी किनारे जिसका घर हैं वहीं ये नजारा देख सकता हैं ❤️

ऐसा करने का मौका हमको काहे नहीं मिलता हैं
26/09/2024

ऐसा करने का मौका हमको काहे नहीं मिलता हैं

कानपुर में स्वागत तो ऐसे हुआ है जैसे किक्रिकेटर नहीं कोई Rockstar है दोनों♥️🌻
26/09/2024

कानपुर में स्वागत तो ऐसे हुआ है जैसे कि
क्रिकेटर नहीं कोई Rockstar है दोनों♥️🌻

लंबे अरसे के बाद कप्तान रोहित और किंग कोहली भारतीय संस्कृति से जुड़े पारंपरिक अंदाज में नजर आए। भारतीय क्रिकेट टीम बांग्...
26/09/2024

लंबे अरसे के बाद कप्तान रोहित और किंग कोहली भारतीय संस्कृति से जुड़े पारंपरिक अंदाज में नजर आए। भारतीय क्रिकेट टीम बांग्लादेश के खिलाफ सीरीज का दूसरा और आखिरी टेस्ट मैच खेलने कानपुर पहुंची। इस दौरान टीम को लैंडमार्क होटल में ठहराया गया है। होटल में सभी खिलाड़ियों का स्वागत भारतीय संस्कृति से जुड़े तौर-तरीकों के साथ किया गया। 🙏😍❤️✌️

टेस्ट क्रिकेट के क्रिकेटर नहीं,टेस्ट क्रिकेट के गैंगस्टर लोग है..❤️😅🔥
26/09/2024

टेस्ट क्रिकेट के क्रिकेटर नहीं,
टेस्ट क्रिकेट के गैंगस्टर लोग है..❤️😅🔥

रोहित शर्मा इकलौते कप्तान है जिनके नेतृत्व मेंभारत टेस्ट क्रिकेट में एक भी सीरीज नहीं हारा है🔥💪
26/09/2024

रोहित शर्मा इकलौते कप्तान है जिनके नेतृत्व में
भारत टेस्ट क्रिकेट में एक भी सीरीज नहीं हारा है🔥💪

विश्व का सबसे खूबसूरत स्टेडियम हिमाचल प्रदेश
26/09/2024

विश्व का सबसे खूबसूरत स्टेडियम हिमाचल प्रदेश

बेलपत्ता
15/09/2024

बेलपत्ता

तिलकोर
14/09/2024

तिलकोर

14/09/2024
14/09/2024

मेरे बैल....
यह अंतिम दिन था जिस दिन मेरे खेत मे बैलों से मक्का बुवाई हुई थी। ये फोटो 29/03/2020 की है।ये बैल मेरे नही थे मेरे भैया बगल के गांव से किराए पर लाये थे।।

मेरा दरबाजा लगभग 2012 में ही बैल विहीन हो चुका था। तब तक रोटावेटर किसान की जिंदगी में दखल दे चुका था। मेरे पिताजी ने सन 2006 से ही हल की मूठ त्यागकर बड़े भाई के हाथ थमा दी थी जब उन्होंने हल।चलाना शुरू किया तब बड़े भाई की उम्र उस वर्ष कोई 14 साल रही होगी। पिता के ढलते कंधों को वे महसूस करने लगे थे और खुद हल चलाने लगे थे। 2009 में पुराने बैल जो कि साझेदारी में थे पिता ने बेंच दिये थे। उन बैलों से हाथ मे रुपये मिले 6 हजार.....और 5 हजार पुजाकर एक नई जोड़ी बैल 11 हजार में खरीदे थे।।
बड़े ही तीखे फुर्तीले बैल थे। 2 डला भूसा में दोनो अफर जाते थे और मजबूत इतने की मन मैला ही न करते थे। आषाढ़ के माह में भैया सुबह 4 बजे हल #नह लेते और 8 बजे तक आधा एकड़ खेत बैल जोत देते थे इतना ही उनका गात था। कभी कभी भैया में दोनो छाक चलाकर एकड़ भर खेत भी उन बैलों से जोता था।
2012 तक वे बैल रहे थे बैलों भैया चाहे कितनी जुताई करें लेकिन खेत उतने अच्छे न बन पाते जितने रोटावेटर से बनते थे। ऊपर से जो किसान रोटावेटर से खेती करते उनके खेत अच्छे बन जाते और जल्दी रोपाई भी हो जाती थी। रोटावेटर लगभग 2008 में आ चुका था लेकिन 2012 तक उसने पूरे किसानों और कब्जा जमा लिया था। इसी के चलते पिता ने बैल बेंच दिये और फिर बैल नही खरीदे अब खेती ट्रैक्टर से होने लगी थी। केवल भके बोने व आलू की कूड़ी काटने को बैल जरूर किसी न किसी से मांग लिए जाते थे 2015 तक भी गांव में एक दो लोग अच्छे जोट बनाये रखे थे। 2018 आते आते मक्का बोने की मशीन आ गयी थी और अब बैलों का बोलबाला पूर्णता समाप्त हो चुका था।
2020 के मार्च में बोलो से मका बोने के बाद मेरे खेत मे बैलों का कभी आना नही हुआ।

2020 में ही भैया ने ट्रैक्टर खरीद लिया था तब से अब तक बैल खेत मे नही घुसे।

2005 से मैं समझ मे पड़ गया था देखा करता था लंबे लंबे बैलों के जोट 12 हजार 20 हजार तक के सभी किसान खरीदते थे। मुझे अजब लगता है ये देखकर की 2006 में जो बैल 20 हजार के थे आज उनकी कीमत 60 हजार होती लेकिन बदलते वक्त ने उन्हें दो कौड़ी का बना दिया आज कोई जतन कर जाए तो बेहतरीन से बेहतर नए बछेड़े मुफ्त में पकड़ ले या कड़े हुए बैल पकड़ ले कोई दिक्कत नही है एक दूर थे यही हिल सब किसानों के दरवाजे बैल की शोभा हुआ करते थे और जो किसान शरीर से ज्यादा मजबूत होते सिर्फ वे ही भैंसा रखा कारते थे असल मे भैंसा खेत मे बैलों की अपेक्षा धीरे चला करते थे। इस कारण बैलों का बोलबाला था 98% किसान बैल रखा करते थे जिन किसानों के पास गुंजाइश न होती थी वे किसी दूसरे किसान से साझेदारी में बैल खरीदते थे। और कोई साझेदार न मिला तो चाहे पैसा कर्ज पर लेना पड़े आषाढ़ की पहली बरसात के भोर ही किसान दौड़ भाग कर बैल खरीद लाता था। भले खेती में कुछ न बचे लेकिन बिना बैलों के किसान वैसा ही हो जाता था जैसे कौरवों बीच घिरा हुआ निहत्था अभिमन्यु था।

जिनके पास बैल नही थे वे किसान चिंतित रहते थे जैसे नाते रिश्तेदारी दोस्त यार के पैर पकड़ खेत जोतते थे। आषाढ़ में न ले पाए तक कुँवार मे खेतो में नमी सुधरते ही बैल खरीद लेते थे।
ये वो दौर था जब किसान किसी काम के लिए मजदूर नही करता था बाल बच्चे लगाकर निराई गुड़ाई कटाई मड़ाई सब कर लेता था केवल रोपाई को लेबर आती थी वो भी 70% "किसानों के घर...
खेती बैलों से हो जाती और बाकी सब मेहनत हाथ से करके भी किसान धान बेचने के बाद बहु और बच्चों को गर्म कपड़े व एक रजाई बनवाने में असमर्थ रहतां था।

बैलों का युग गया ट्रैक्टर का युग आया यही दो पीढ़ियों के अंतर है जो 2010 के बाद से शुरू हुआ।
तब किसान गरीब था लेकिन कर्जदार नही था आज पैदावार बढ़ी लेकिन आधी कमाई ट्रैक्टर और मजदूर ले जाते हैं और आधी में गुजारा नही है क्योकि खर्चे चरम सीमा पर हैं।

आज 98% किसान बैकों का ऋणी है। जमीनें घट रही है पैदावार के साथ खर्च और महंगाई बढ़ रही है।।
बाकी सब ठीक ही हैं।

जल्द ही Vinod Kumar Vimal भैया की पुस्तक दो बैलों की आत्म कथा की समीक्षा लिखूंगा बहुत सुंदर व रोचक पुस्तक है।

पूरी पढ़ चुका हूँ कल तक का इंतजार करिए।।
Deepak Deepu

14/09/2024

कृषि प्रधान भारत भूमि, है इसकी छटा निराली।
बैल-किसान की जोड़ी मिलकर, फैलाये हरियाली।।

चीर के सीना जब धरती का, बन जाते बनमाली।
बहे पसीना कंचन बरसे, इस डाली उस डाली।।

कर्म योग के तप से अपने, भरते ये खुशहाली।
फिर भी क्यों हो रही, इनकी ऐसी ही बदहाली।।

भरते सबकी क्षुधा,तो उनकी पड़ी क्यों खाली।
सहन नहीं कर पाते फिर,झूले पेड़ की डाली।

करो न कुछ इनका भी जतन, फैले ओठों पर लाली।
दूसरा गबरू झूले नहीं, अब कभी पेड़ की डाली।

रहे चहकता चमन ये प्यारा , बैल के संग बनमाली।।
नीलम-माणिक कभी न भटके, बिन पाए हरियाली।।

' विंनोद कुमार विमल।'

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