Meenakshi singh

Meenakshi singh Life is too short, enjoy it ��

14/11/2024
31/10/2024

अच्छी औरतें कौन होती है?
जो चुप्पी साधे रहें
या फिर जो हँसते हुए तमाशबीन हो

क्योंकि औरतों के इतिहास मे दर्ज है :
अग्नि-परीक्षा के बाद भी
सीता अच्छी नहीं हो पाई

चीरहरण झेलने के बाद भी
द्रोपदी का गुणगान नहीं हो पाया

लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला का त्याग
लोगों को याद तक नहीं

तो फिर ये अच्छी औरतें कौन हैं?

क्या हर रोज़ मार खाती औरतें?
या सरेआम पिटती औरतें?
या चौके बर्तन में घिसती औरतें?
या फिर बच्चों के पीछे भागती औरतें?

कौन होती हैं आख़िर अच्छी औरतें?

28/10/2024

सब कुछ महंगा हो गया है मगर माचिस आज भी एक रुपए पर रुकी हुई है,
पता है क्यों...
क्योंकि आग लगाने वालों की कीमत कभी नहीं बढ़ती है..!!

27/10/2024

प्रेमिकाओं का कोई नाम नहीं होता
उनका कोई चेहरा भी नहीं होता
प्रेमिकाओं का नाम ज़ोर से नहीं पुकारा जाता
सार्वजनिक स्थानों पर उन्हें अक्सर अनदेखा किया जाता है
प्रेमिकाएं एकांत की साथी होती हैं
जहां फुसफुसाया जाता है उनका नाम
चेहरे को कहा जाता है चाँद

पिता के द्वारा थोपे ज़िम्मेदारियों से टूटा
नौकरी न होने से परेशान
जीवन से उबा हुआ पुरुष
प्रेमिका की बाँहो में पनाह पाता है
दुखों का अस्थि कलश
प्रेम की गंगा में बहा आने को आतुर
प्रेमी यकायक शिशु बन जाता है
प्रेमिका इस शिशु को मन में धारण करती है
छिपा लेती है अपने आँचल में
प्रेम का ये सबसे पवित्र क्षण होता है
लेकिन ये पवित्र क्षण केवल एकांत में संभव है

मौज में प्रेमी
प्रेमिका को फूल और खुशबू पुकारता है
कहता है तुम तो तीस में भी तेईस की लगती हो
तेईस में मिलती तो हम साथ फिल्म देखने चलते...
अब तो कोई न कोई टकरा जाएगा थिएटर में
यूँ सबके सामने तमाशा बनाना ठीक नहीं
प्रेमिका अनसुना करती है
प्रेम को तमाशा पुकारना
पूछती है- चाय तो पियोगे न
खूब अदरक डाल के बनाती है चाय
देर तक खौलाती है
चाय नहीं मन
फिर कसैलापन दूर करने
एक चम्मच चीनी ज़्यादा डाल देती है
प्रेमी को उसके हाथ की बनी चाय खूब पसंद है

प्रेमिका सुख की सबसे आखिरी हिस्सेदार होती है
और दुख की पहली
प्रमोशन मिलने पर पुरुष
सबसे पहले पत्नी को फोन करता है
चैक बाउंस हो जाने पर प्रेमिका को
प्रेमिका पूछती है
कितने पैसों की ज़रूरत है
कहो तो कुछ इंतज़ाम करूँ
प्रेमी दिल बड़ा कर इनकार करता
नहीं, मैं तो बस बता रहा
तुमसे पैसे कैसे ले सकता हूँ
प्रेमिका को जाने क्यूं ख़याल आता
पैसे प्रेम से अधिक क़ीमती है
वो कहना चाहती है
सुनो, प्रेम दे दिया फिर पैसे क्या चीज़ है
लेकिन कहते-कहते रुक जाती
ये फिल्मी डायलॉग सा सुनाई देता

कभी अचानक मॉल में प्रेमी के टकरा जाने पर
वो देखती है उसकी अनदेखा करने की कोशिश
लेकिन पहचान लेती है प्रेमी की पत्नी
वो जानती है उसे सहकर्मी या पुरानी दोस्त के रूप में
पूछती है- कितने दिन बाद मिली आप
कैसी हैं, क्या कर रही हैं आजकल
प्रेमिका बिल्कुल नज़रअंदाज़ करती है प्रेमी को
उसकी पत्नी का हाथ पकड़ करती है कुछ बातें
फिर जल्दी का बहाना बना निकल जाती है बाहर
अगले दिन प्रेमी बताता है
पत्नी पूछ रही थी
आजकल उसके रंग ढंग बड़े बदले से है
छेड़ में कहता है
मेरे प्रेम ने तुम्हें रंगीन बना दिया
प्रेमिका नहीं बताती
कल लौटते में उसने फिर रुलाई पर काबू किया
बस निकाल लाती है
प्रेमी के फेवरेट कलर की टीशर्ट
जो कल खरीदी थी मॉल से

निकलते-निकलते प्रेमी कहता है
सुनो घर जा रहा हूँ
अब मैसेज मत करना
फोन बच्चों के हाथ में होता है अक्सर
जाते हुए प्रेमी का माथा चूमने को उद्दत प्रेमिका
पीछे खींच लेती है कदम
कार में बैठते ही प्रेमी भेजता है कोई कोमल संदेश
फिर कोई जवाब न पाकर सोचता है
अजीब होती हैं ये प्रेमिकाएं भी

सच..कितनी अजीब होती हैं प्रेमिकाएं...💕

08/10/2024

पहले कई कमरे थे..
सभी को जोड़ता हुआ..
एक आंगन .

बंद कमरों में घुटती कई बातें,
मन के सारे जज़्बात निखर जाते थे,
जब बंद कमरों के किवाड़ खुल जाते
आंगन में बस साथ बैठकर ,
काटने..
पीसने..
और बतियाने भर से,

लोग बड़े हो गए,
दिल से नहीं
कोई ओहदे ..तो कोई बातो से,
और खवाइशें गगनचुंबी,
खोखले रिश्तों ने जड़े जमा ली
दीवारें ऊंची हो गई.

आंगन का अस्तित्व खत्म हो गया..
अब गांठे खोली नहीं..
काट दी जाती है.

Big shout out to my newest top fans! 💎 Big shout out to my newest top fans! 💎 Sajag Choudhary, Ashish Ashok Pahansu
04/10/2024

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04/10/2024

हिंदी में घुसती इंग्लिश
किसी ने सही कहा है ....
हीट को ताप कहने में।
यू को आप कहने में।
स्टीम को भाप कहने में।
फादर को बाप कहने में।
क्या दिक्कत है ?
बैड को ख़राब कहने में।
वाईन को शराब कहने में।
बुक को किताब कहने में।
साक्स को ज़ुराब कहने में।
क्या दिक्कत है ?
डिच को खाई कहने में।
आंटी को ताई कहने में।
बार्बर को नाई कहने में।
कुक को हलवाई कहने में।
क्या दिक्कत है ?
इनकम को आय कहने में।
जस्टिस को न्याय कहने में।
एडवाइज़ को राय कहने में।
टी को चाय कहने में।
क्या दिक्कत है ?
फ़्लैग को झंडा कहने में।
स्टिक को डंडा कहने में।
कोल्ड को ठंडा कहने में।
ऐग को अंडा कहने में।
क्या दिक्कत है ?
बीटिंग को कुटाई कहने में।
वॉशिंग को धुलाई कहने में।
पेंटिंग को पुताई कहने में।
वाइफ को लुगाई कहने में।
क्या दिक्कत है ?
स्मॉल को छोटी कहने में।
फ़ैट को मोटी कहने में।
टॉप को चोटी कहने में।
ब्रेड को रोटी कहने में।
क्या दिक्कत है ?
ब्लैक को काला कहने में।
लॉक को ताला कहने में।
बाउल को प्याला कहने में।
जेवलीन को भाला कहने में।
क्या दिक्कत है ?
गेट को द्वार कहने में।
ब्लो को वार कहने में।
लव को प्यार कहने में।
होर को छिनार कहने में।
क्या दिक्कत है ?
लॉस को घाटा कहने में।
मील को आटा कहने में।
फार्क को काँटा कहने में।
स्लैप को चाँटा कहने में।
क्या दिक्कत है ?
टीम को टोली कहने में।
रूम को खोली कहने में।
पैलेट को गोली कहने में।
ब्लाउज़ को चोली कहने में।
क्या दिक्कत है ?
ब्रूम को झाडू कहने में।
हिल को पहाड़ कहने में।
रोर को दहाड़ कहने में।
जुगाड़ को जुगाड़ कहने में।
क्या दिक्कत है ?
नाईट को रात कहने में।
कास्ट को जात कहने में।
टॉक को बात कहने में।
किक को लात कहने में।
क्या दिक्कत है ?
सन को संतान कहने में।
ग्रेट को महान कहने में।
मैन को इंसान कहने में।
गॉड को भगवान कहने में।
क्या दिक्कत है ?
आजकल हिंदी साहित्य में इंग्लिश की घुसपैठ हो गई है और लेखक भी इसे स्वीकारने लगे हैं। लेकिन क्या किसी अन्य भाषा में कभी हिंदी के शब्दों को आपने पढ़ा है? फिर हिन्दी साहित्य के साथ ऐसा क्यों? हां लेकिन एक बात कहना चाहूंगी‌ कि हिंदी साहित्य को विधि शैली इत्यादि की बेड़ियों में जकड़ना छोड़ना होगा। अच्छे विचारों से ओत-प्रोत रचनाओं का होना ही काफ़ी है।भाषा को सरल और जनमानस का बनाना होगा ताकि युवा पीढ़ी भी आसानी से समझ सके लेकिन हिंदी साहित्यकारों के अहम की वजह से हिंदी भाषा कईं बेड़ियों में जकड़ी गई है। याद रखिए हमें पाठकों के लिए लिखना है न कि अपने आसपास के साहित्यकारों के लिए इसलिए हिंदी को सरल बनाएं। तभी हिंदी की लोकप्रियता बढ़ेगी परंतु इंग्लिश की घुसपैठ को स्वीकारने का मैं विरोध करती हूं। जय श्री कृष्णा

25/09/2024

अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी….?????
वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी…
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते……
कि……
तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...
किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी…..
तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी……..
क्या सोचा है कभी…..??????
अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा…….
तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर……..
कैसे दाँतों पर दाँत रख…….
अस्पताल की चौखट पर गई होगी………
क्या सोच सकते हो कभी……????????
अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि………
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी……
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम……….
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो…….
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते……..✍🏼💔❤️

गोबर पट्टी के ढाबो पर तंदूरी परांठो के साथ सफेद मक्खन में पेट्रोलियम वैक्स भर भर कर परोसा जाता है। ऐसा नकली सफेद मक्खन 1...
25/09/2024

गोबर पट्टी के ढाबो पर तंदूरी परांठो के साथ सफेद मक्खन में पेट्रोलियम वैक्स भर भर कर परोसा जाता है। ऐसा नकली सफेद मक्खन 120 Rs किलो मिल जाता है।

दाल मखनी में 45-59% क्रीम + बटर है जो अधिकतम फर्जी फैट से बनती है। मगर यहां की जनता 40 सब्जियां एक तरफ व दाल मखनी अकेली एक तरफ, नाश्ते, लंच, डिनर सबमे खाएंगे।

टॉप 5 सेफ पर एक सर्वे किया गया जिसमें 4 अपनी ही दाल मखनी नही पहचान पाये। कारण: 45-50% क्रीम+ बटर के बाद सब एक जैसी बनती है। यहां ये भी बताता चलूं की ये क्रीम बटर से लदी दाल सेहत के लिए सिर्फ नुकसानदायक नही बल्कि " फ़ूड है।

सुंदर चॉकोलेट की कोटिंग पेट्रोलियम इंडस्ट्री से निकले पैराफिन वैक्स से की जाती है ताकि वो देर तक पिंघले नही व चिकनी चमकदार दिखे।

एक जैसा टेस्ट बनाये रखने के लिए वनीला आइस क्रीम फ्लेवर, बादाम फ्लेवर, लेमन फ्लेवर पेट्रोलियम पदार्थों से बनाये जा रहे है।

सेब, किन्नू आदि को ताजा रखने के लिए पेट्रोलियम रिफाइनरी से निकले ओलेस्त्रा/वैक्स यूज़ होता है।

फ्रोजन चिकन, पिज़्ज़ा, बिस्कुट, कॉर्न चिप्स, पॉपकॉर्न में बेहद सस्ता पड़ने के कारण चिकना पेट्रोलियम पदार्थ TBHQ मिलाया जाता है।

2013 में भारत मे कुकिंग आयल व घी में मिनरल आयल ( पेट्रोलियम चिकनाई) पकड़ी गई थी। मिनरल आयल मिलाने से आपका वनस्पति तेल से बना घी कई साल भी खराब नही होगा।

आटा, अंडे, दूध, चीनी से बने पदार्थ तेजी से खराब होते है। अब अगर कोई इनसे बनी मिठाई, बन, ब्रेड, कूकीज, केक आदि को हफ़्तों फ्रेश रखना चाहते हो तो उसमें रिफाइनरी से निकला मिनरल आयल मिला दो। ऐसी चीजे शोरूम के शीशे के पीछे एक दम झक्कास फ्रेश व चमकदार दिखेगी।
🌼🍀🌺🌼🌼🍀🍀🌺

खाना घर का बना, मसाले घर लाकर पिसे गये, खाने का समान उत्पादक से खरीदा गया तो कुछ बच जाओगे। खाना, एजुकेशन, इलाज कभी भी व्यापारिक उत्पाद नही होने चाहिए ना ये प्राइवेट हाथों में होने चाहिये।

इस देश में मिलावट के खिलाफ एक कानून Food adulteration Act 1954 में बना था जिसमें जो खाने का समान है उसके अलावा कुछ भी मिलने पर जेल होती थी। उसे खाने की इंडस्ट्री के व्यापारियों ने बदल कर 2006 में फ़ूड सेफ्टी एक्ट करवा कर मिलावट के गेट खुलवा लिये। अब आपकी हल्दी में बेसन मिल गया तो ये adulterated तो है मगर सेफ्टी खतरे में नही। पहले काली मिर्च में पपीते के बीज मिलावट थे अब सेफ्टी को खतरा नही तो सब चलेगा।

खाने में मिलावट मर्डर के बराबर मानी जानी चाहिये मगर अब मिलावटखोर कुछ भी मिलाए बस येन केन प्रकारेण उसे सेफ साबित करके कुछ भी मिलाये, यहां सब चलता है।

याद रखना अगर आपका खाना किसी के व्यापार का प्रोडक्ट है तो कोई व्यापारी कम नही कमाना चाहता चाहे आपके बच्चे मर जाये।🌼🍀


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