16/01/2025
भाभी नई नवेली थी हम-उम्र तीन ननदों से खूब दोस्ताना था,, भाभी के कपड़े ,गहने,सब पहनती भाई के आगमन से पहले खूब हंसी-धमाके भाभी के कमरे में मचे रहते,संग संग काम भी करवा देती।
ढेर सारे सगे-चचेरे ननदों- देवरों के बीच भाभी एक खिलौना थी, पर सगे देवर और ननद से हल्का सा अदब बना ही रहता।
वो सबकी एक-एक फरमाईश दौड़-दौड़ पूरी करती,, माता-पिता ने समझा कर जो भेजा था। परेशानी इसमें कोई थी भी नहीं उसे,,
मायके में भी जिम्मेदार बिटिया रही थी।
बस एक मलाल दिल में बना रहा था!
कभी कोई उसके दिल की बात ना पूछता ससुराल में!!
उसके मुस्कुराते-खिलखिलाते चेहरे को ही सब उसकी सहमति माने खुश हुए रहते।
आज ननदें ख़रीदारी को जा रही थी,उसका भी मन था बाहर निकलने का थोड़ी देर रिश्तों वाली बोझिल घुटन से बाहर ताज़ी हवा में जाने का,,
धीरे से ननद से पूछा ! मैं भी चलूँ!!
ननद ने माँ से पूछा भाभी को ले जाऊँ?
माँ ने जल्दी आने की ताक़ीद,और सिर से पल्ला ना गिरने का बहू को सांकेतिक फ़रमान। साथ ही आधे गृहकार्य को जल्दी निबटा के जाने की हिदायत दी,, आने पर हड़बड़ी ना मचे।
उसने सब किया उत्साह ढेरों था,,नदी किनारे बसा महिलाओं का प्रसिद्ध बाजार,, बहुत तारीफ़ सुनती थी रोज़।
चलते वक्त माँ ने कमर में खोंसा हुआ चांदी का वाला गुच्छा निकाला!अलमारी से नोटों की गड्डी निकाल बेटी के हाथ में थमा दिया,,
बहु ने सोचा शायद मुझे अब दें!अब दें!!
अलमारी बन्द हो गयी ,,कमर में चाभी का गुच्छा लटकाए सास पलँग पर लेट गयी।
बहु सारा बाज़ार पल्ला संभालते एक हाथ से पर्स थामे रही,,
घर लौटते वक्त ननदों ने हंसी की! भाभी ने कुछ नहीं खरीदा,, भाभी के पास तो सब भरा ही है नया कहाँ रखती!! भाभी मुस्कुरा दी।
बहु प्रत्येक वर्ष मायके आती,, जितने दिन रहती घर में रौनक बनी रहती।जाते समय माँ उसके और उसके ससुराल वालों के लिये ढेरों उपहार और उसकी रोजमर्रा की जरूरतों का भी बहुत कुछ दिला देती। वह कभी मना भी नहीं करती।
पिता माँ से हमेशा बस इतना ही पूछते….
सब दे दिया है ना !कोई कमी तो नहीं कि!!
जवाब में माँ मुस्कुरा देतीं।
पिता ने शुरू से ही खर्च सम्बंधित सारी जिम्मेदारियां माँ के ऊपर छोड़ रखी थी,, उन्हें माँ पर पूरा भरोसा था और माँ को अपने बच्चों की परवरिश पर।
मायके में हँसती- हँसाती बिटिया ससुराल पहुंचते ही बहू कैसे बन जाती है ये सवाल उसके मन में घूमते रहते।
बरसों बीत गए अब ननद-देवर सब गृहस्थ बन चुके थे,ख़ुद उसके भी दो-चार बालों में सफेदी झांक रही,,
आज मायके में पिता बाज़ार जा रहे थे, सबकी पसन्द की मिठाई पूछ रहे थे,, बिटिया ने कहा जो आप ले आएंगे खा लूँगी।
पिता ने ज़ोर दिया तो बेटी ने पसन्द बता दी,,
पिता हँसने लगे…. इतनी मामूली सी पसन्द बताने में इतना हिचक रही थी मेरी बेटी!
बेटी ने धीरे से कहा! यहां कभी मां को आपके सामने हाथ फैलाते या फरमाईश करते नहीं देखा था!!
हमें भी जो चाहिए होता! माँ से कहते,माँ तकिये के नीचे से निकाल अलमारी की चाभी पकड़ा देती,, हमें जितना चाहिए होता था, हम भी उतना ही निकालते होते!
उससे एक रुपये कभी ज्यादा निकालने की जरूरत नहीं समझी हमनें!!
मांगना आज भी नहीं आया पापा।