21/12/2022
बेदख़ली के नोटिस को लेकर हकूकधारियो का फूटा गुस्सा
वन पंचायत के अंतर्गत सैंक्चुरी और आरक्षित जमीन पर स्थानीय लोग करते हैं रोजगार
हकूकधारियो का शोषण किसी भी सूरत में नहीं होगा बर्दाश्त-यूकेडी
ऊखीमठ। वन विभाग द्वारा चोपता-दुगलबिट्ठा क्षेत्र में व्यवसाय कर रहे हक-हकूकधारियों को बेदख़ली का नोटिस भेजे जाने का स्थानीय लोगों ने विरोध दर्ज करते हुए जमकर नारेबाजी की। स्थानीय लोगों का कहना है कि वन कानूनों का हवाला देकर उनका पुस्तैनी हक और रोजगार छीना जा रहा है। शासन-प्रशासन और वन विभाग ने अनावश्यक दबाव बनाया तो वह जनांदोलन शुरू कर देंगे। वहीं क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल ने स्थानीय हक-हकूकधारियो की मांगों का समर्थन किया है।
तुंगनाथ के आधार शिविर चोपता, बनियाकुण्ड, दुगलबिट्ठा सहित आसपास के क्षेत्रों के हक-हकूकधारियो की एक आवश्यक बैठक चोपता में सम्पन्न हुई। बैठक की अध्यक्षता करते हुए वन पंचायत संघर्ष समिति और व्यापार नगर इकाई चोपता के अध्यक्ष भूपेंद्र मैठाणी ने कहा कि सरकार की मंशा स्थानीय लोगों को उनकी वन पंचायत की जमीन से बेदखल कर बड़े-बड़े उद्योगपतियों को जमीन बेचना है। उन्होंने कहा कि जब चोपता को सैंक्चुरी जोन में रखा गया, उस समय इस तरह के नोटिस नहीं दिए गए। अब हकूकधारियो को नोटिस देकर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। इसी तरह वन पंचायत की जमीन पर व्यवसाय कर रहे स्थानीय लोगों को हटाने के नोटिस जारी किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि हमारी पीढियां आदिगुरु शंकराचार्य के समय से यहां रह रही है। यहां मैठाणी, भंडारी, राणा, नेगी सहित अन्य जाति के लोगों को यहां अधिकार मिले हैं। वन अधिनियम में भी परंपरागत हक-हकूक को लेकर स्पष्ट लिखा गया है। इसके बावजूद हमारे खिलाफ़ षड्यंत्र के तहत कार्रवाई हो रही है।
उन्होंने कहा कि वन पंचायत मक्कू सबसे पुरानी वन पंचायत है। इसका गठन 24 अप्रैल 1957 को हुआ था। इस पर पूरा नियंत्रण वन पंचायत का ही था। इसी तरह उषाडा, उडडू, सारी, दैडा, करोखी, पल्द्वाड़ी, परकंडी की वन पंचायतें भी बहुत पुरानी हैं।
मक्कू वन पंचायत की बात की जाय तो यहां आज तज एक भी अग्नि दुर्घटना नहीं हुई। किसी तरह का अवैध पातन, आखेट नहीं हुआ। यहां तक कि वन विभाग ने यहां एक भी पेड़-पौधे नहीं लगाए। यहां के जंगल हमारे पूर्वजों की वजह से संरक्षित हैं। जंगल बचाने में स्थानीय लोगों का योगदान है। सरकार की ओर से यहां शौचालय, पानी, संचार, रास्ते, स्वास्थ्य सेवाओं तक की बेहतर व्यवस्था नहीं है। स्थानीय लोग अपने संसाधनों पर ही रोजगार कर रहे हैं। सरकार से उन्हें किसी तरह का सहयोग नहीं मिलता है।
स्थानीय निवासी विनोद रावत, सतीश मैठाणी, जगदीश का कहना है कि पांच वर्ष पूर्व एक गजट नोटिफिकेशन जारी हुआ था कि वन आरक्षित क्षेत्रों में बड़े मकान नहीं बनाए जाएंगे और जो मकान पूर्व के बने हैं, उन्हें यथावत रखा जाएगा। लेकिन अब वन विभाग इन सभी मकानों को हटा रही है। हम लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि बस्तियों को सैंक्चुरी से दूर रखा जाय। लेकिन इस पर सरकार ध्यान नहीं दे रही। हमने इस सम्बंध में हाईकोर्ट में भी पीआईएल दाखिल की गई है। इसके बावजूद हमें नोटिस भेजे जा रहे हैं।
जबकि 1996 में नगर पंचायत घोषित हुई। इसके बावजूद सैंक्चुरी और वन आरक्षित क्षेत्र में नगर पंचायत का वन विभाग ने विरोध नहीं किया। यही नहीं तत्कालीन यूपी सरकार में उप सचिव के एक आदेश के बाद सिर्फ दस साल की परिवीक्षा के लिए इस क्षेत्र को सैंक्चुरी जोन घोषित किया गया। लेकिन इसका गजट नोटिफिकेशन आज तक जारी नहीं हुआ। यह तमाम सवाल हैं जिसके जवाब वन विभाग नहीं दे पा रहा है।
इसके बावजूद उप वन संरक्षक रुद्रप्रयाग की ओर से आरक्षित वन क्षेत्र में व्यवसाय कर रहे 51 लोगों को नोटिस दिया है, जबकि उप वन संरक्षक केदारनाथ की ओर से सैंक्चुरी एरिया में व्यवसाय कर रहे 37 लोगों को नोटिस जारी किया है। यह सभी लोग पर्यटन आधारित रोजगार पर आश्रित हैं। अब इनके सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।
वहीं समर्थन देने पहुँचे यूकेडी के जिलाध्यक्ष बुद्धिबल्लभ ममगाई और केंद्रीय मीडिया प्रभारी मोहित डिमरी ने कहा कि सरकार की मंशा स्थानीय लोगों को हटाकर बड़े उद्योगपतियों को जंगल बेचने की है। सरकार द्वारा किसी तरह की सुविधा न दिए जाने के बावजूद चोपता-तुंगनाथ में लाखों यात्रियों और सैलानियों को स्थानीय हकूकधारियो द्वारा कड़ाके की ठंड में अपने संसाधनों पर सुविधाएं दी जा रही है। स्थानीय लोगों के हक पर डाका किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। स्थानीय हक हकूकधारियो का उत्पीड़न बंद न हुआ तो क्षेत्रीय दल यूकेडी प्रदेशव्यापी आंदोलन शुरू कर देगी। यूकेडी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भगत चौहान, जिला महामंत्री कमल रावत और युवा जिलाध्यक्ष शुभांग मैठाणी ने कहा कि पर्यटन प्रदेश का सपना तभी साकार होगा, जब स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा होगी। सरकार को चाहिए कि स्थानीय लोगों के रोजगार को प्रभावित किये बिना ऐसी नीति बनाई जाय, जिससे पर्यटन भी बढ़े और रोजगार भी। जल, जंगल और जमीन पर स्थानीय लोगों के अधिकार की लड़ाई यूकेडी शिद्दत के साथ लड़ता रहेगा।