23/09/2020
#23सितंबर : बाबासाहेब का संकल्प #
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भारत के इतिहास में या यूं कहे कि बहुजन आंदोलन के इतिहास में 23सितंबर1917 का दिन बेहद खास है। यह वही दिन है, जिस दिन 26 साल का एक युवक अपनी भीगी आंखों से एक संकल्प ले रहा था। युवक के उस एक संकल्प ने अनगिनत शोषितों की जिंदगी बदल दी, या यूं कहें कि भारत का इतिहास बदल दिया। वह युवक थे बाबासाहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर और वह जगह थी वडोदरा का कामठी बाग।
आधुनिक भारत के निर्माता डॉ0 भीमराव अम्बेडकर यहाँ वड़ोदरा नगरी के महाराजा श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड़ (तृतीय) द्वारा उच्च शिक्षा के लिये छात्रवृति ऋण स्वरूप अनुबंधनानुसार दी गई थी कि उच्च शिक्षा उपरांत कम से कम 10 वर्ष की अवधि तक उन्हें अपनी सेवा वड़ोदरा रियासत को देनी होगी, शिक्षा उपरांत सितम्बर1917 में अपना कर्तव्य निभाने हेतु वडोदरा नगरी में पधारे, उन्हें यहाँ सैनिक सचिव के उच्च पद पर आसीन किया गया था लेकिन यहाँ के अधिकतर अधिकारी क्षुब्ध हो गये क्योंकि हिन्दू परंपरा के अनुसार वे एक अछूत व्यक्ति थे और अछूत को इतना बड़ा ओहदा....? महाराजा के कृपापात्र व भारत के प्रथम दर्जे के विद्वान होने के बावजूद भी उन्हें यहाँ प्रतिदिन भीषण मनुवादी मानसिक रोगग्रस्त सहयोगियों द्वारा जातिसूचक व घृणित कटाक्षों की अति से अपमान की दुर्दशा का जहर पीना पड़ रहा था, उन्हें यहाँ रहने के लिए मकान तक नहीं मिला, एक पारसी की धर्मशाला में नाम बदल कर (एदल सोराबजी) रहना पड़ रहा था, लेकिन यह बात छुप नहीं सकी, मात्र 11वें दिन ही अर्थात 23सितम्बर 1917 रविवार के दिन तो अति ही हो गई कि उन पर पारसी की धर्मशाला निवास पर लाठी डंडों से लैस लगभग दर्जन भर पार्सिओं ने क्षुब्ध अधिकारियों की सह से अतिअभद्रता के साथ आक्रामक हमला बोल दिया ... आरोप लगाते हुए कि तूने धर्मशाला को अपवित्र कर दिया . . . घोर अपमानित करते हुए उनका सामान भी बाहर फेंक दिया और धर्मशाला को तुरंत ही खाली करने का फरमान भी सुना दिया। अब बाबासाहेब इतने व्यथित हो चुके थे कि इस भयावह वातावरण से निकलकर वापस मुंबई जाने के लिये निकले तो उस दिन मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी, जो शाम नौ बजे रवाना होती थी, वह भी लगभग 4 घंटे लेट थी, अतः इस भयावह वातावरण को ध्यान में रखते हुए बाबासाहेब को इसी शहर की सीमा पर स्थित पावन भूमि "कामठी बाग" जो अब वर्तमान में “संकल्प भूमि सयाजी बाग” पर एक वट वृक्ष (संकल्प वृक्ष) के नीचे शरण लेनी पड़ी, इन्ही पलों को व्यतीत करते हुए बाबासाहेब असहनीय पीड़ा भरी सोच में डूब चुके थे कि मेरे ही देश में जब मेरे जैसे भारत के प्रथम नंबर के महाशिक्षित विद्वान की यह ऐसी दुर्दशा है तो शेष करोड़ों गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानवों की दुर्दशा कितनी भयावह होगी . . . इस वक्त बाबासाहेब की आँखों से अश्रुओं का झरना रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था . . . क्या ये अश्रु साधारण हो सकते थे ? इन्हीं अश्रुओं से भारत भाग्य विधाता बाबासाहेब के ज्ञान भंडार में, मष्तिष्क में उन करोड़ों- करोड़ों शोषितों, वंचितों... के रोते बिलखते चित्र उभरकर उनके मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित हुए, आज तो उनकी मानवीय संवेदनाएँ कराह उठी थी – इसी वक्त एक दृढ संकल्प की चिंगारी उनके मष्तिस्क से निकली कि -“आज से मेरा परिवार वो समस्त करोड़ों करोड़ों शोषित-गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानव हैं, मैं आज से जीवन पर्यंत सिर्फ समता के महान आदर्श के स्थापत्य व मानवीय शोषण की भयंकर बीमारी के निर्मूलन के लिये अंतिम सांस तक संघर्ष करूँगा। केवल अपने दृढ संकल्प के लिये ही जीवनपर्यन्त संघर्ष व कार्य करूँगा, मेरा दृढ संकल्प ही देश की एकता - अखंडता की मुख्य कड़ी होगा। यदि जिस वर्ग में मैं पैदा हुआ हूं उसकी गुलामी की बेड़ियां न काट सका तो मैं पिस्तौल से गोली मारकर अपना जीवन समाप्त कर लूंगा।" ज्ञातव्य है कि उन दिनों देश के मानवों में असमानता की व्यापक भयंकर बीमारी के कारण ही देश में एकता व अखंडता की मुख्य कमी बनी हुई थी, परिणामतः देश गुलामी का जीवन जी रहा था। इस तरह असंख्य आदर्श मानवतावादी संघर्षों की क्रांति इसी पावन भूमि पर लिये गए बाबासाहेब के दृढ संकल्प से उद्गमित हुई, अनेको कष्ट भरी विषम परिस्थतियों को वे अपने दृढ संकल्प से कुचलते कुचलते, संविधान अंकुरण की इस प्रथमतः भूमि “संकल्प भूमि सयाजी बाग” से संविधान सभा के मुखिया बनकर पहुँचे और देश को दिया विश्व विख्यत राष्ट्रीय ग्रन्थ - “भारत का संविधान”, परिणामतः हमारा देश हुआ आधुनिक भारत। सच तो यह है कि न तो यह साधारण अश्रु थे न ही साधारण था संकल्प, जहाँ अश्रु संविधान की स्याही थी वहीँ संकल्प एक सामाजिक न्याय की मानवीय संवेदनाओं की कलम। इस दिन से वे अपने निजी परिवार तक सीमित नहीं रहे बल्कि भारत के समस्त शोषितों को अपना परिवार स्वीकारा।
भारत भाग्य विधाता डॉ0अम्बेडकर के 103 वर्ष पहले जिस स्थान पर अश्रू गिरे, वहीं पर बाबासाहेब ने उसी दिन एक ऐतिहासिक संकल्प लिया, वही संकल्प जो कि आज भारत के संविधान के रूप में राष्ट्रीय ग्रंथ है, इस पवित्र भूमि का विधिवत नामकरण 14अप्रैल 2006 को हुआ तदुपरांत अब विश्व भर में इस पवित्र स्थल को संकल्प भूमि सयाजी बाग, वड़ोदरा, गुजरात, भारत, के नाम से जाना जाता है। हर साल वहां देश भर से अम्बेडकरवादी इकट्ठा होते हैं। आज 23 सितंबर 2020 को इस घटना के 103 वर्ष पूरे हो गये हैं। बाबा साहब की तरह अब हमें भी संकल्प लेना है कि जबतक आधुनिक मनुस्मृति अर्थात ईवीएम नहीं हटती, तबतक हम भी चैन से नहीं बैठेंगे, इसे हटाने के लिए हम तन, मन, धन से भरपूर सहयोग करेंगे।