24/12/2024
सदियों में पैदा होता है ज़ाकिर जैसा फ़नकार
टैगोर कला केन्द्र के ‘श्रद्धा संवाद में शहर की संगीत बिरादरी ने किया उस्ताद को याद
शोहरत और कामयाबी के शिखर पर पहुँच कर भी सरलता और सादगी क्या होती है, तबला नवाज़ ज़ाकिर हुसैन इसकी जीती जागती मिसाल थे। अपनी तालीम, तैयारी, रियाज़ और हुनर से निखरा उनका तबला सारे संसार में हिन्दुस्तानी संगीत की आवाज़ बुलंद करता रहा। एक आदर्श संगीतकार के रूप में दुनिया उन्हें याद करती रहेगी। सदियों में पैदा होता है ज़ाकिर जैसा फ़नकार।
भाव भरे ऐसे अनेक उद्गारों के बीच मंगलवार शाम शहर की बिरादरी ने मरहूम तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को याद किया। टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, वनमाली सृजन पीठ और विश्वरंग की साझा पहल पर दुष्यंत संग्रहालय में यह श्रद्धा-संवाद आयोजित था। वरिष्ठ तबला वादक पंडित किरण देशपाण्डे, ध्रुपद गायक पंडित उमाकांत गुंदेचा, शास्त्रीय गायक पं. उल्हास तेलंग, कवि और भारत भवन के प्रशासक प्रेमशंकर शुक्ल, पखावज वादक पं. अखिलेश गुंदेचा और कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने प्रमुख रूप से उस्ताद के व्यक्तित्व और उनके तबले की ख़ासियतों की चर्चा की।
प्रारंभिक भूमिका में टैगोर केन्द्र के निदेशक विनय उपाध्याय ने ज़ाकिर हुसैन की विश्वख्याति तथा भोपाल से उनकी गहरी आत्मीयता पर रौशनी डाली। विनय ने एक उद्घोषक के बतौर उस्ताद की सभाओं के संचालन तथा उनसे हुई दुर्लभ मुलाक़ातों को भी याद किया। संगीत मनीषी किरण देशपाण्डे ने कहा कि ज़ाकिर ने एक प्रयोगधर्मी तबला वादक के रूप में विश्वभर के संगीत से प्रेम किया। नई रचनाएँ तैयार की। नई पीढ़ी के तबला वादकों के लिए वे एक सर्वप्रिय मॉडल थे। ध्रुपद गायक उमाकांत गुंदेचा ने उस्ताद के ध्रुपद गुरूकुल आगमन को याद करते हुए कहा कि वे सहजता के पर्याय थे। उन्होंने तबले के सभी प्रचलित घरानों का सम्मान किया, वादन में उनकी शैलियों का इस्तेमाल किया। अपनी स्वतंत्र ताल शैली बनाई। कवि-प्रशासक प्रेमशंकर शुक्ल ने भारत भवन की सभाओं को याद किया। वो क्षण भी उद्घट किया जब उस्ताद राष्ट्रीय कालिदास सम्मान ग्रहण करने भारत भवन आए थे। शुक्ल ने ज़ाकिर हुसैन की अपार लोकप्रियता के साथ ही उनकी विनम्रता का विशेष उल्लेख भी किया। भरतनाट्यम नृत्यांगना डा. लता मुंशी ने अपने संदेश में ज़ाकिर हुसैन के बौद्धिक स्तर की चर्चा करते हुए भारतीय संस्कृति को लेकर उनके गहरे ज्ञान की चर्चा की।
अभिनव कला परिषद के सचिव सुरेश तांतेड़ ने इस अवसर पर साझा किया कि ज़ाकिर अपने उभरते युवा समय में अस्सी के दशक में अनेक दफा भोपाल आते रहे। 1981 में आयोजित वार्षिक कला संगम में डॉ. अली अकबर के साथ सरोद, बिरजू महाराज के साथ कथक में संगत की, सोलो भी बजाया। उस ज़माने में संस्था ने उस्ताद अल्लाउद्दीन खां, उस्ताद हाफिज अली खान साहेब को समर्पित कर अपने उत्सव किए जिसमें सामता प्रसाद जी, सितारा देवी, उस्ताद विलायत खान, निर्मला देवी, भीमसेन जोशी आदि के साथ जाकिर मंच पर रहे। तांतेड़ ने बताया कि ज़ाकिर भाई मेरे गुरु भाई थे। हमने ताल वाद्य कचहरी का रवीन्द्र भवन में 1981 में प्रदर्शन किया जिसमें तबला, पाखावज, मृदंग, डमरू, खंजरी, चिमटा, ढोलक, नाल, लोह तरंग, लोटा तरंग, काच तरंग, मंजीरे का दस, बारह, सात और सौलह मात्रा में लहरा देकर आयोजन किया जिसकी परिकल्पना मेरी और पं. श्रीधर व्यास उज्जैन की थी। इसमें ज़ाकिर भाई के कुछ सवाल-जवाब भी थे। 16 कलाकार मंच पर प्रस्तुति कर रहे थे।
पखावज वादक अखिलेश गुंदेचा ने उस्ताद से अपनी मैत्री के अनेक किस्से साझा किए। उन्होंने कहा कि ज़ाकिर हुसैन भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत के अनूठे कलाकार थे। तबले जैसे साज को उन्होंने संपूर्णता प्रदान की। जो वाद्य केवल संगत का माना जाता था उसे इतनी प्रतिष्ठा दिला दी, कि तबला विश्व स्तर पर पहचाना जाने लगा। उनके तबला वादन से प्रेरित होकर हज़ारों विद्यार्थी तबला सीखने लगे। तबला हज़ारों विद्यार्थियों एवं कलाकारों के आजीविकी का साधन बना। अखिलेश ने कहा कि मेरा सौभाग्य रहा कि मैं उस्ताद को देख सका, सुन सका और अनेकों अवसरों पर मुझे उनका सानिध्य प्राप्त हुआ। 2020 में उस्ताद के पिता की बरसी में उन्होंने मुझे पखावज वादन के लिए मुंबई आमंत्रित किया, यह मेरे जीवन का सबसे अमूल्य क्षण था।
वरिष्ठ गायक उल्हास तेलंग ने ज़ाकिर हुसैन की कुछ तबला संगत मुद्राओं का स्मरण किया। इस तारतम्य में उन्होंने कहा कि संगतकार की गहरी समझ और गायक-वादक के प्रति आदर से भरकर उस्ताद ने ख़ुद को पेश किया।
आरम्भ में उपस्थित संगीत प्रेमियों ने ज़ाकिर हुसैन के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। अंत में आभार दुष्यंत संग्रहालय की सचिव करूणा राजुरकर ने व्यक्ति किया।