रंग संवाद

रंग संवाद पत्रिका... जहाँ हर पृष्ठ सांस्कृतिक दस्तावेज़ है।

साल 2025 की आमद और 'रंग संवाद'। अपने सांस्कृतिक विन्यास में यह अंक तीसरी धारा के विलक्षण रंगकर्मी बादल सरकार, ताल के उस्...
08/01/2025

साल 2025 की आमद और 'रंग संवाद'। अपने सांस्कृतिक विन्यास में यह अंक तीसरी धारा के विलक्षण रंगकर्मी बादल सरकार, ताल के उस्ताद ज़ाकिर हुसैन और नाटककार मोहन राकेश की स्मृतियों को साझा करता हुआ कला-संसार के रुपहले अक्स संजोए है।

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अलविदा आलोक... आशंकाएँ अन्तत: काफ़ूर हुईं। मृत्यु फिर सुर्खी बनी। जीवन की रंगभूमि से आलोक चटर्जी विदा हुए...। शेष रही उनक...
07/01/2025

अलविदा आलोक...

आशंकाएँ अन्तत: काफ़ूर हुईं। मृत्यु फिर सुर्खी बनी। जीवन की रंगभूमि से आलोक चटर्जी विदा हुए...। शेष रही उनकी यादें...बातें...मुलाक़ातें। आलोक के जिए और कहे को मापने के पैमाने अब यही दस्तावेज़ हैं। दुर्लभ संयोग कि महीनों की मनुहार के बाद आख़िर आलोक ने एक सुबह 'रंग संवाद' के दफ़्तर में दस्तक दी और वादे के मुताबिक़ एक लंबा इंटरव्यू रेकॉर्ड किया। क़रीब दो घंटे तक चले सवाल-जवाब के सिलसिले में आलोक ने मन की गाँठें खोली। इस लम्बी बैठक में उस दिन एक नया आलोक नुमाया था।
अभिनय की दीप्ति से आलोकित इस फ़नकार की फ़क़ीराना फ़ितरत कुछ ऐसी कि कबीर याद हो आते हैं- ‘‘हमन है इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या’’! नाटक और केवल नाटक के लिए आलोक को मरण का त्योहार भी स्वीकार रहा। मुम्बई ने कई बार पुकारा, पर आलोक अपनी सौगंध पर टिके रहे। वक़्त ने करवट ली। रंग गुरु कारन्त काल कवलित हुए और भारत भवन के रंगमण्डल का हसीन सपना भी एक दिन ज़मींदोज़ हो गया। दीगर साथी कलाकारों के साथ आलोक के लिए भी यह गहरा आघात ही था। उन्होंने ‘दोस्त’ के नाम से ख़ुद का रंग समूह बनाया। नए कलाकार जुटाए। नाट्य प्रस्तुतियों का सिलसिला शुरू किया। पर यह सब ‘जीवन के रंगमंच’ की साँसों को थामने के लिए नाकाफ़ी रहा। यही इम्तिहान का वक़्त भी था। फाक़ा-कशी का दौर आया। आलोक के पाँव डगमगाए भी पर नियति ने हाथ थाम लिया।
डेथ ऑफ ए सेल्समेन, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, शकुंतला की अंगूठी और मृत्युंजय के इस किरदार का यक़ीन उस सुबह को लौटाने के लिए काफ़ी था जहाँ एक छोर पर ‘नटसम्राट’ का चरित्र रंगमंच पर उनके अभिनय जीवन की स्वर्ण रेखा खींचने को आतुर था। रंगमण्डल के दिनों के साथी और सिने दुनिया के चर्चित कला निर्देशक जयंत देशमुख थिएटर की ओर लौटने की ख़्वाहिश लिए एक दिन भोपाल आए और रात की ‘बैठक’ में उन्होंने आलोक से ‘नटसम्राट’ की हामी भरवा ली। बस, यही प्रस्थान बिन्दु था आलोक के नए उत्कर्ष का। आलोक ‘गणपत बेलवलकर’ के चरित्र में जैसे स्वयं को जी रहे थे। ऐतिहासिक मंचन और बेतहाशा तारीफ़ें। सम्मान और पुरस्कारों का नया सिलसिला। कुछ देर ही सही लेकिन संगीत नाटक अकादेमी, दिल्ली के पुरस्कार ने आलोक के रंग लोक को नई आभा प्रदान की। आलोक से बतियाना नए रंग बोध के उजाले में ख़ुद को पाना था। वे स्मृति, ज्ञान और अनुभव की विपुल सम्पदा के वे धनी थे।

टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र आरएनटीयू, विश्वरंग परिवार, टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, वनमाली सृजनपीठ तथा 'रंग संवाद' की ओर से उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि।

प्रसंगवश सांस्कृतिक पत्रिका 'रंग संवाद' के पिछले अंक में प्रकाशित आलोक चटर्जी से विनय उपाध्याय की लम्बी वार्ता...

अभिनय मेरी मुक्ति का स्वप्न रंगकर्मी आलोक चटर्जी से विनय उपाध्याय की रंगवार्ता विनय उपाध्यायः आपको कब लगा कि आपक.....

राष्ट्रीय सहारा29 दिसंबर 2024दिल्ली, लखनऊ, पटना, देहरादून, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर संस्करणों में प्रकाशितराजीव मंडल जी ...
03/01/2025

राष्ट्रीय सहारा
29 दिसंबर 2024
दिल्ली, लखनऊ, पटना, देहरादून, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर संस्करणों में प्रकाशित

राजीव मंडल जी और आलोक पराड़कर जी का शुक्रिया।

सदियों में पैदा होता है ज़ाकिर जैसा फ़नकारटैगोर कला केन्द्र के ‘श्रद्धा संवाद में शहर की संगीत बिरादरी ने किया उस्ताद को...
24/12/2024

सदियों में पैदा होता है ज़ाकिर जैसा फ़नकार
टैगोर कला केन्द्र के ‘श्रद्धा संवाद में शहर की संगीत बिरादरी ने किया उस्ताद को याद

शोहरत और कामयाबी के शिखर पर पहुँच कर भी सरलता और सादगी क्या होती है, तबला नवाज़ ज़ाकिर हुसैन इसकी जीती जागती मिसाल थे। अपनी तालीम, तैयारी, रियाज़ और हुनर से निखरा उनका तबला सारे संसार में हिन्दुस्तानी संगीत की आवाज़ बुलंद करता रहा। एक आदर्श संगीतकार के रूप में दुनिया उन्हें याद करती रहेगी। सदियों में पैदा होता है ज़ाकिर जैसा फ़नकार।
भाव भरे ऐसे अनेक उद्गारों के बीच मंगलवार शाम शहर की बिरादरी ने मरहूम तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को याद किया। टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, वनमाली सृजन पीठ और विश्वरंग की साझा पहल पर दुष्यंत संग्रहालय में यह श्रद्धा-संवाद आयोजित था। वरिष्ठ तबला वादक पंडित किरण देशपाण्डे, ध्रुपद गायक पंडित उमाकांत गुंदेचा, शास्त्रीय गायक पं. उल्हास तेलंग, कवि और भारत भवन के प्रशासक प्रेमशंकर शुक्ल, पखावज वादक पं. अखिलेश गुंदेचा और कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने प्रमुख रूप से उस्ताद के व्यक्तित्व और उनके तबले की ख़ासियतों की चर्चा की।

प्रारंभिक भूमिका में टैगोर केन्द्र के निदेशक विनय उपाध्याय ने ज़ाकिर हुसैन की विश्वख्याति तथा भोपाल से उनकी गहरी आत्मीयता पर रौशनी डाली। विनय ने एक उद्‌घोषक के बतौर उस्ताद की सभाओं के संचालन तथा उनसे हुई दुर्लभ मुलाक़ातों को भी याद किया। संगीत मनीषी किरण देशपाण्डे ने कहा कि ज़ाकिर ने एक प्रयोगधर्मी तबला वादक के रूप में विश्वभर के संगीत से प्रेम किया। नई रचनाएँ तैयार की। नई पीढ़ी के तबला वादकों के लिए वे एक सर्वप्रिय मॉडल थे। ध्रुपद गायक उमाकांत गुंदेचा ने उस्ताद के ध्रुपद गुरूकुल आगमन को याद करते हुए कहा कि वे सहजता के पर्याय थे। उन्होंने तबले के सभी प्रचलित घरानों का सम्मान किया, वादन में उनकी शैलियों का इस्तेमाल किया। अपनी स्वतंत्र ताल शैली बनाई। कवि-प्रशासक प्रेमशंकर शुक्ल ने भारत भवन की सभाओं को याद किया। वो क्षण भी उद्‌घट किया जब उस्ताद राष्ट्रीय कालिदास सम्मान ग्रहण करने भारत भवन आए थे। शुक्ल ने ज़ाकिर हुसैन की अपार लोकप्रियता के साथ ही उनकी विनम्रता का विशेष उल्लेख भी किया। भरतनाट्यम नृत्यांगना डा. लता मुंशी ने अपने संदेश में ज़ाकिर हुसैन के बौद्धिक स्तर की चर्चा करते हुए भारतीय संस्कृति को लेकर उनके गहरे ज्ञान की चर्चा की।

अभिनव कला परिषद के सचिव सुरेश तांतेड़ ने इस अवसर पर साझा किया कि ज़ाकिर अपने उभरते युवा समय में अस्सी के दशक में अनेक दफा भोपाल आते रहे। 1981 में आयोजित वार्षिक कला संगम में डॉ. अली अकबर के साथ सरोद, बिरजू महाराज के साथ कथक में संगत की, सोलो भी बजाया। उस ज़माने में संस्था ने उस्ताद अल्लाउद्दीन खां, उस्ताद हाफिज अली खान साहेब को समर्पित कर अपने उत्सव किए जिसमें सामता प्रसाद जी, सितारा देवी, उस्ताद विलायत खान, निर्मला देवी, भीमसेन जोशी आदि के साथ जाकिर मंच पर रहे। तांतेड़ ने बताया कि ज़ाकिर भाई मेरे गुरु भाई थे। हमने ताल वाद्य कचहरी का रवीन्द्र भवन में 1981 में प्रदर्शन किया जिसमें तबला, पाखावज, मृदंग, डमरू, खंजरी, चिमटा, ढोलक, नाल, लोह तरंग, लोटा तरंग, काच तरंग, मंजीरे का दस, बारह, सात और सौलह मात्रा में लहरा देकर आयोजन किया जिसकी परिकल्पना मेरी और पं. श्रीधर व्यास उज्जैन की थी। इसमें ज़ाकिर भाई के कुछ सवाल-जवाब भी थे। 16 कलाकार मंच पर प्रस्तुति कर रहे थे।

पखावज वादक अखिलेश गुंदेचा ने उस्ताद से अपनी मैत्री के अनेक किस्से साझा किए। उन्होंने कहा कि ज़ाकिर हुसैन भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत के अनूठे कलाकार थे। तबले जैसे साज को उन्होंने संपूर्णता प्रदान की। जो वाद्य केवल संगत का माना जाता था उसे इतनी प्रतिष्ठा दिला दी, कि तबला विश्व स्तर पर पहचाना जाने लगा। उनके तबला वादन से प्रेरित होकर हज़ारों विद्यार्थी तबला सीखने लगे। तबला हज़ारों विद्यार्थियों एवं कलाकारों के आजीविकी का साधन बना। अखिलेश ने कहा कि मेरा सौभाग्य रहा कि मैं उस्ताद को देख सका, सुन सका और अनेकों अवसरों पर मुझे उनका सानिध्य प्राप्त हुआ। 2020 में उस्ताद के पिता की बरसी में उन्होंने मुझे पखावज वादन के लिए मुंबई आमंत्रित किया, यह मेरे जीवन का सबसे अमूल्य क्षण था।

वरिष्ठ गायक उल्हास तेलंग ने ज़ाकिर हुसैन की कुछ तबला संगत मुद्राओं का स्मरण किया। इस तारतम्य में उन्होंने कहा कि संगतकार की गहरी समझ और गायक-वादक के प्रति आदर से भरकर उस्ताद ने ख़ुद को पेश किया।
आरम्भ में उपस्थित संगीत प्रेमियों ने ज़ाकिर हुसैन के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। अंत में आभार दुष्यंत संग्रहालय की सचिव करूणा राजुरकर ने व्यक्ति किया।

आप सादर आमंत्रित हैं...
24/12/2024

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संगीत जगत अत्यंत स्नेह, श्रद्धा और गहरे व्यक्तिगत दुःख के साथ उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के निधन का शोक मना रहा है, जो हमारे सम...
16/12/2024

संगीत जगत अत्यंत स्नेह, श्रद्धा और गहरे व्यक्तिगत दुःख के साथ उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के निधन का शोक मना रहा है, जो हमारे समय के सबसे चमकदार और अपूर्व संगीत साधकों में से एक थे। एक महान तबला घराने के सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने अपनी विरासत को अपार कृतज्ञता के साथ संजोया और अपनी अथाह सृजनात्मकता और आत्मीय कला के बल पर इसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

उस्ताद ज़ाकिर हुसैन केवल एक संगीतकार नहीं थे—वह एक संपूर्ण कलाकार थे। संगतकार के रूप में उन्होंने अनेकों महान संगीतकारों की प्रस्तुति को अपनी अनोखी संवेदनशीलता और सहजता से समृद्ध किया। वहीं, एकल वादन में उन्होंने सीमाओं को लांघते हुए लय की अद्भुत जटिलताओं को उजागर किया और अपनी असाधारण प्रतिभा, सूक्ष्मता और स्वाभाविकता से ताल में जीवन भर दिया। उनका संगीत केवल एक प्रस्तुति नहीं था; यह एक गहरा अर्पण था—ऊर्जा, अपार आनंद और उस जुनून से परिपूर्ण जो दिव्यता को छू लेता है।

एक दूरदर्शी कलाकार, जिन्होंने कभी भी सीमाओं को स्वीकार नहीं किया, उन्होंने पूरी दुनिया को अपनाया। उन्होंने शास्त्रीय संगीत को समकालीन संगीत से, पूर्व को पश्चिम से बड़े साहस और सहजता से जोड़ा। उनके हाथों में तबला एक कहानीकार बन गया, जिसकी लय एक वैश्विक भाषा में सौंदर्य, संबंध और सामंजस्य की बात करती थी। उनकी सहयोगी प्रस्तुतियाँ संगीत की परिभाषा को नए आयामों तक ले गईं।

उनके निधन के साथ हमने केवल एक महान कलाकार को नहीं खोया है—हमने एक शाश्वत आत्मा को खोया है, एक ऐसे संगीतज्ञ को जिसकी युवा उत्साह और आनंदमय कला ने तबले को नृत्य, गान और उड़ान दी। उनके जाने से जो सन्नाटा छा गया है, वह असीम और अवर्णनीय है। फिर भी, उनके स्वर और लय उन सभी के हृदयों में सदा गूँजते रहेंगे, जिन्होंने उन्हें सुनने का सौभाग्य पाया, उनके अद्भुत प्रतिभा और आत्मा की चिरस्थायी याद के रूप में।

यह एक ऐसा क्षति है जिसे शब्दों में बाँध पाना असंभव है।

-पंडित किरण देशपाण्डे

‘चारूकेशी’ की सोहबत में गा उठा उस्ताद का सितारआरएनटीयू में सजी शाहिद परवेज़ की महफिलफ़न और फ़नकार का करिश्माई हुनर हो तो...
19/11/2024

‘चारूकेशी’ की सोहबत में गा उठा उस्ताद का सितार

आरएनटीयू में सजी शाहिद परवेज़ की महफिल

फ़न और फ़नकार का करिश्माई हुनर हो तो साज़ के बेजु़बान तारों में भी अहसासों की सतरंगी आवाज़ों को सुना जा सकता है। उस्ताद शाहिद परवेज़ सितार की ऐसी ही बेमिसाल शिरकत लिए रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय की बारादरी में पेश आए। सुरों की ये महफिल सजाई स्पिक मैके के मध्यप्रदेश चेप्टर ने टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के साथ मिलकर। तंत्रकारी और गायकी अंग को साधते उस्ताद परवेज़ की रागदारी का खुमार सुनने वालों की रूह में उतरता गया। कभी दम साधकर तो कभी तालियों की गड़गड़ाहट के बीच श्रोताओं ने उस्ताद को नवाज़ा।

शारदा सभागार के गरिमामय मंच पर शाहिद परवेज़ का टैगोर प्रतिमा तथा विश्वरंग के कलात्मक दस्तावेज़ भेंट कर सम्मानित किया गया। इस मौके पर एजीयू निदेशक तथा आरएनटीयू की प्रति कुलाधिपति डा. अदिति चतुर्वेदी वत्स, संगीत मनीषी पंडित किरण देशपाण्डे, अटल इंक्यूबेशन सेंटर के निदेशक नितिन वत्स, प्रति कुलपति डा. संगीता जौहरी तथा टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक विनय उपाध्याय विशेष रूप से उपस्थित थे।

उस्ताद शाहिद परवेज़ के सितार को सुनना इटावा घराने की सुरीली विरासत के रूबरू होना है। सुरों की नई अनुगूँजों के बीच संगीत के नए जादुई असर को महसूसना है। ‘झंकार’ की इस महफिल में सितार वादन के लिए उस्ताद परवेज़ ने दक्षिण भारत में विशेष प्रचलित राग ‘चारूकेशी’ का चयन किया। विलंबित आलाप जोड़ और झाला में उन्होंने राग का मिज़ाज़ तैयार किया। मीड़ की मिठास और गमक भरी तानों की खू़बसूरत रवानगी लिए तिहाई और सम का दिलकश ताना-बाना नौजवान श्रोताओं पर गहरा असर कर गया। बेसाख्ता तालियों से छात्र-छात्राओं ने उस्ताद को नवाज़ा। दस मात्रा की झयताल का बहुत संयमित प्रवाह लिए तबले पर संगत कर रहे उन्मेष बैनर्जी ने लय-ताल का समां बांधा। कद्रदानों से मिली इस मोहब्बत और मान का भरे दिल से शुक्रिया अदा करते हुए शाहिद परवेज़ ने संवाद का सिलसिला भी बनाया। उन्होंने कहा कि मेरी संगीत की यायावरी में आरएनटीयू की ये महफिल हमेशा मेरी यादों में बसी रहेगी।

महफिल का समापन शाहिद परवेज़ ने राग खमाज और पहाड़ी की धुन बजाकर किया। तबले पर कहरवा का ठेका लगाते हुए उन्मेष ने मौसिकी के इस मंज़र को और भी ख़ूबसूरत बना दिया।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए विनय उपाध्याय ने उस्ताद और भोपाल की कई अनछुई यादें साझा की। बताया कि 18 बरस के नौजवान शाहिद परवेज़ ने रबीन्द्र भवन के मंच पर ‘युवा खोज समारोह’ में सितार वादन किया था। कार्यक्रम अभिनव कला परिषद का था। तब का यह उभरता कलाकार आज संगीत का रौशन सितारा है।

विदा होने से पहले उस्ताद ने श्रोताओं के सवालों के बेहद संजीदगी से भरे जवाब दिए। उन्होंने कहा कि यह धारणा ग़लत है कि अनूठा प्रयोग करने के लिए परंपरा को त्यागना ज़रूरी है। हमारा संगीत इतना गहरा, विस्तृत और बहुरंगी है कि परंपरा की सरहद में रहकर भी अद्वितीय रचा जा सकता है। परवेज़ ने फ्यूज़न पर अपनी टिप्पणी में कहा कि मेलोडी और फीलिंग के बिना ग्लेमर के नाम पर जो कुछ भी बाज़ार में परोसा जा रहा है, वह ज़्यादा दिन वजूद में नहीं रहता है। किसी दिन अचानक सुनने वाले उसे चलन से बाहर कर देते हैं।

मशहूर सितार वादक उस्ताद शाहीद परवेज़ 19 नवंबर मंगलवार दोपहर 2.30 बजे शारदा सभागार आरएनटीयू में शिरकत करेंगे। स्पिक मैके ...
18/11/2024

मशहूर सितार वादक उस्ताद शाहीद परवेज़ 19 नवंबर मंगलवार दोपहर 2.30 बजे शारदा सभागार आरएनटीयू में शिरकत करेंगे। स्पिक मैके के सहयोग से टैगोर विश्वकला एवं संस्कृति केन्द्र द्वारा संयोजित ‘झंकार’ शीर्षक संगीत की इस सभा में उस्ताद परवेज़ सितार वादन के साथ ही अपने साज़ हुनर और संगीत के सफ़र पर विद्यार्थियों से संवाद भी करेंगे। तबले पर संगत करेंगे उन्मेष बैनर्जी।

इस अवसर पर आप अभी सादर आमंत्रित हैं...

रंग संवाद का ताज़ा अंक अब किंडल पर भी उपलब्ध है....
07/11/2024

रंग संवाद का ताज़ा अंक अब किंडल पर भी उपलब्ध है....

Rang Samvaad Oct, Dec 2024 (Hindi Edition) eBook : Choubey, Santosh, Upadhyay, Vinay : Amazon.in: Kindle Store

कथा एक रंग-युग की,रंग हबीब की
07/11/2024

कथा एक रंग-युग की,रंग हबीब की

पत्रिका-  'रंग संवाद' हबीब तनवीर पर एकाग्र अंक संपादक- संतोष चौबे,विनय उपाध्याय प्रकाशक- टैगोर विश्व...

भारत के जनपदीय लोक कंठ की मधुरिमा का दुनिया भर में सुरीला विस्तार करने वाली, बिहार की जनप्रिय गायिका शारदा सिन्हा के निध...
06/11/2024

भारत के जनपदीय लोक कंठ की मधुरिमा का दुनिया भर में सुरीला विस्तार करने वाली, बिहार की जनप्रिय गायिका शारदा सिन्हा के निधन पर टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र आरएनटीयू भोपाल की हार्दिक संवेदना...श्रद्धांजलि ।

शारदाजी की स्मृतियों को साझा करती, रंग संवाद में प्रकाशित अनुलता राज नायर के साथ उनकी यह ख़ास बातचीत।

https://rangsamvaad.blogspot.com/2024/11/blog-post.html

Anulata Raj Nair Vinay Upadhyay

नदी से माँगी माँ की बेटी हूँ शारदा सिन्हा सरस्वती उनके पूरे व्यक्तित्व में बोलती थी। वे लोक की चिंताओं में गहरी डू.....

21/10/2024
दिल्ली में ‘रंग संवाद’...टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, आरएनटीयू भोपाल की सांस्कृतिक पत्रिका ‘रंग संवाद’ के नवीन ...
17/10/2024

दिल्ली में ‘रंग संवाद’...

टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, आरएनटीयू भोपाल की सांस्कृतिक पत्रिका ‘रंग संवाद’ के नवीन अंक (अक्टूबर-दिसम्बर 2024) का औपचारिक लोकार्पण साहित्य अकादेमी, सभागार दिल्ली में हुआ।

‘विश्वरंग विमर्श’ के निमित्त हुए गरिमामय समारोह में ‘रंग संवाद’ के साथ सुप्रसिद्ध चित्रकार-कला चिन्तक अशोक भौमिक, कला आलोचक विनोद भारद्वाज तथा रवीन्द्र त्रिपाठी, कथाकार कुणाल सिंह और सम्पादक विनय उपाध्याय।

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