रंग संवाद

रंग संवाद पत्रिका... जहाँ हर पृष्ठ सांस्कृतिक दस्तावेज़ है।

होरी हो ब्रजराज 2024
29/03/2024

होरी हो ब्रजराज 2024

28 मार्च, शाम 7 बजेरवीन्द्र भवन, मुक्ताकाश
28/03/2024

28 मार्च, शाम 7 बजे
रवीन्द्र भवन, मुक्ताकाश

विश्व रंगमंच दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...जल्द ही दस्तावेज़ी शक्ल में आप पाएँगे टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति, आरएनटीयू भो...
27/03/2024

विश्व रंगमंच दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जल्द ही दस्तावेज़ी शक्ल में आप पाएँगे टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति, आरएनटीयू भोपाल की किताब 'रंगमंच के राही'

रंगकर्म में अविचल सक्रिय, सिद्ध-प्रसिद्ध मनीषी हस्ताक्षरों से किये गये साक्षात्कारों का यह चयन सिर्फ़ कुछ तयशुदा सवालों के औपचारिक जवाब नहीं है। विमर्शों की नई दिशाएँ यहाँ खुलती हैं। हमारे पूर्वाग्रह टूटते हैं। संघर्षों में तपी-उजली शख़्सियतों की ज़िदों पर, उनके जुनून और अपराजेय मंसूबों पर गर्व होता है। संवाद के इन शिखरों को छूकर हमारा सामाजिक-सांस्कृतिक मानस समृद्ध होता है। नाटक या रंगमंच जैसे अत्यंत आदिम या पारंपरिक माध्यम की उपयोगिता को या उसकी भूमिका को अथवा उसकी बनती-बिगड़ती या बदलती तस्वीर पर भी विमर्श की जगह तो बनती ही है।

#विश्वरंगमंचदिवस

26/03/2024
26/03/2024

होरी हो ब्रजराज’ की रंगारंग प्रस्तुति 28 मार्च को

होली के पारम्परिक गीत-संगीत और नृत्य के वासंती रंग 28 मार्च की शाम 7 बजे रवीन्द्र भवन के मुक्ताकाश में बिखरेंगे। टैगोर विश्‍व कला एवं संस्कृति केन्द्र, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्‍वविद्यालय द्वारा ‘होरी हो ब्रजराज’ का रंगारंग आयोजन मानविकी भाषा एवं उदार कला विभाग, विश्वरंग सचिवालय तथा पुरू कथक अकादमी के सहयोग से किया जा रहा है। लोक रंगों में छलकती फागुनी छवियों की यह दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति ‘होरी हो ब्रजराज’ प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना क्षमा मालवीय के निर्देशन में मंचित होगी। इस प्रदर्शन में शहर के 50 से भी ज़्यादा कलाकार हिस्सा ले रहे हैं। इस रूपक की मूल संकल्पना कवि-कथाकार संतोष चौबे ने की है। सूत्रधार कला समीक्षक विनय उपाध्याय होंगे। होली की दृश्य छवियों पर केन्द्रित चित्र प्रदर्शनी ‘बिम्ब-प्रतिबिम्ब’ भी आकर्षण का केन्द्र होगी, इसका आकल्पन छायाकार नीरज रिछारिया ने किया है। संगीत संयोजन संतोष कौशिक का है। प्रस्तुति में दर्शकों का प्रवेश निःशुल्क है।

टैगोर विश्व कला और संस्कृति केन्द्र, आरएनटीयू की ओर से खजुराहो नृत्य समारोह में प्रख्यात पद्मश्री नृत्यांगना नलिनी-कमलिन...
27/02/2024

टैगोर विश्व कला और संस्कृति केन्द्र, आरएनटीयू की ओर से खजुराहो नृत्य समारोह में प्रख्यात पद्मश्री नृत्यांगना नलिनी-कमलिनी के हाथों 'परंपरा और परिवेश' का उपहार और आर्ट मार्ट में आए चित्रकारों को सुधीर पटवर्धन के साक्षात्कार की पुस्तिका भेंट की गयी। इस अवसर पर विनय उपाध्याय ने सांस्कृतिक संवाद के सत्रों और नृत्य सभाओं को उदबोधित किया।

किताबों के कुम्भ में आपका स्वागत...
08/02/2024

किताबों के कुम्भ में आपका स्वागत...

सिने स्वरलोक की ‘दीदी’ को सादर नमन...
06/02/2024

सिने स्वरलोक की ‘दीदी’ को सादर नमन...

लता मंगेशकर को हम आखिर कैसे पारिभाषित करें ? अजय बोकिल देह रूप में सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के परलोकगमन के बाद एक ...

13/01/2024

मूर्धन्य शास्त्रीय गायिका, संगीत विदुषी डॉ. प्रभा अत्रे को विश्वरंग और टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, आरएनटीयू की ओर से श्रद्धा सुमन...
कला समीक्षक विनय उपाध्याय की यह संवाद स्मृति साझा करते हुए उनके महान सांगीतिक अवदान के प्रति हार्दिक कृतज्ञता...

यह बातचीत लगभग 15 साल पहले की है। भारत भवन के आमन्त्रण पर प्रभा जी भोपाल आयीं थी...

लिंक - https://rangsamvaad.blogspot.com/2024/01/blog-post.html

(किताब 'सफह पर आवाज़' में प्रकाशित)

टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र द्वारा प्रकाशित दो किताबें...
02/01/2024

टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र द्वारा प्रकाशित दो किताबें...

तानसेन संगीत समारोह 2023यूनेस्को द्वारा घोषित संगीत नगरी ग्वालियर में आयोजित तानसेन संगीत समारोह 2023 के अंतर्गत टैगोर व...
29/12/2023

तानसेन संगीत समारोह 2023

यूनेस्को द्वारा घोषित संगीत नगरी ग्वालियर में आयोजित तानसेन संगीत समारोह 2023 के अंतर्गत टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, आरएनटीयू के निदेशक श्री विनय उपाध्याय ने अतिथि वक्ता के रूप में उपस्थित दर्ज की। इस अवसर पर उपस्थित संगीत चिंतकों और शोधार्थियों को विश्व रंग के निदेशक एवं टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे के उपन्यास 'जलतरंग' के साथ ही टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र की पुरस्कृत सांस्कृतिक पत्रिका 'रंग संवाद', परंपरा और परिवेश तथा अनुनाद कृतियाँ भेंट की गयीं । राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में हुए वादी-संवादी सत्र में 'विश्वरंग' और संगीत का भी विशेष संदर्भ रेखांकित किया गया।

शैलेन्द्र का पुण्य स्मरण...
14/12/2023

शैलेन्द्र का पुण्य स्मरण...

बहार बेचैन है उसकी धुन पर अश्विनी कुमार दुबे जब छोटे थे शंकरदास और दिन खिलौने से खेलने के थे तब परिवार भीषण ग़रीबी स...

सुर्ख़ियों में....
18/11/2023

सुर्ख़ियों में....

दीपावाली की शुभकामनाएँ...
12/11/2023

दीपावाली की शुभकामनाएँ...

आशुतोष राणा को जन्मदिन की शुभकामनाएँ... इस मौक़े पर पढ़िए उनकी विनय उपाध्याय के साथ एक ख़ास बातचीत..
10/11/2023

आशुतोष राणा को जन्मदिन की शुभकामनाएँ...

इस मौक़े पर पढ़िए उनकी विनय उपाध्याय के साथ एक ख़ास बातचीत..

प्रतिबिम्ब देखकर अपना बिम्ब सुधारें किताब 'सफ़ह पर आवाज़' में प्रकाशित आशुतोष राणा से विनय उपाध्याय की बातचीत सिनेम....

'रंग संवाद' का उत्सवधर्मी कला विशेषांक लोकार्पितगोंड जनजातीय चित्रकार पद्मश्री दुर्गाबाई व्याम के चित्रांकन से सजा है आव...
07/11/2023

'रंग संवाद' का उत्सवधर्मी कला विशेषांक लोकार्पित
गोंड जनजातीय चित्रकार पद्मश्री दुर्गाबाई व्याम के चित्रांकन से सजा है आवरण

भोपाल। राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सांस्कृतिक पत्रिका 'रंग संवाद' के उत्सवधर्मी कला परंपरा पर केन्द्रित विशेषांक का विमोचन प्रख्यात निबंधकार नर्मदाप्रसाद उपाध्याय तथा साहित्यकार-शिक्षाविद संतोष चौबे ने किया। इस अवसर पर पत्रिका के संपादक-कला समीक्षक विनय उपाध्याय भी उपस्थित थे।
टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, आरएनटीयू द्वारा प्रकाशित 'रंग संवाद' के इस बहुरंगी अंक के मुख्य आवरण पर जनजातीय चित्रांकन है जिसे प्रसिद्ध गोंड कलाकार पद्मश्री दुर्गाबाई व्याम ने उकेरा है। आवरण आकल्पन मुदित श्रीवास्तव ने किया है। शब्द संयोजन अमीन उद्दीन शेख का है। मंगल की कामना से महकते भारतीय संस्कृति की मटियारे रंगो महक से समृद्ध रचना-आलेखों के साथ इस संस्करण में नर्मदाप्रसाद उपाध्याय, अशोक भौमिक, सूर्यकांत नागर, मुरलीधर चांदनीवाला, वासुदेव मूर्ति, गिरिजाशंकर, शम्पा शाह, बिंदु जुनेजा, अनुलता राज नायर, आशुतोष दुबे, उत्पल बैनर्जी, स्वरांगी साने, राजेश गनोदवाले, श्वेतांबरा, संदीप नाईक, दिनेश पाठक, दीपक पगारे, गौतम काले, अपूर्वा बैनर्जी, सुनील अवसरकर सहित दो दर्जन से भी अधिक चिंतक, लेखक और कला समालोचक शामिल हैं।
'रंग संवाद' में दीयों की रौशनी का झरना है जिन्हें हस्तमुद्राआएँ अपने आँचल में समा लेना चाहती हैं। ऐसे चेहरे हैं जिनमें देव चरित बोल उठते हैं और असीम की तलाश में निकल जाते हैं। कामोद के सुर हैं जिन्हें कोई कोरस गायिका अपनी भीनी आवाज में गा रही है। इन पन्नों पर ताल सा जीवन है। लता सी जिजीविषा है। संवेदनाओं की सुनहरी धूप है। सप्तपर्णी की सतरंगी छाँव है। कुछ यादें हैं। कुछ सपने हैं। कुछ बातें हैं। रुपहली दुनिया के रोचक किस्से हैं। कुछ मुलाकातें हैं। इच्छाओं के पेड़ हैं। आनंद है। आनंद का उत्सव है। उत्सवों के मौसम हैं। भीतर के पन्नों पर सुखनन्दी, अनुपम पाल और अंतिम अंतिम पृष्ठ पर रामीबेन नागेश के चित्र रौशन हैं। इन सबके बीच देश भर की सांस्कृतिक गतिविधियों का कोलाज है।
- टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र द्वारा जारी

रंग संवाद (नवम्बर 2023) के इस अंक में...दीयों की रौशनी का झरना है जिन्हें हस्तमुद्राएँ अपने आँचल में समा लेना चाहती हैं।...
02/11/2023

रंग संवाद (नवम्बर 2023) के इस अंक में...

दीयों की रौशनी का झरना है जिन्हें हस्तमुद्राएँ अपने आँचल में समा लेना चाहती हैं। ऐसे चेहरे हैं जिनमें देव चरित बोल उठते हैं और असीम की तलाश में निकल जाते हैं। कामोद के सुर हैं जिन्हें कोई कोरस गायिका अपनी भीनी आवाज़ में गा रही है। इन पन्नों पर ताल सा जीवन है। लता सी जिजीविषा है। संवेदनाओं की सुनहरी धूप है। सप्तपर्णी की सतरंगी छाँव है। कुछ यादें हैं। कुछ सपने हैं। कुछ बातें हैं। रुपहली दुनिया के रोचक क़िस्से हैं। कुछ मुलाक़ातें हैं। इच्छाओं के पेड़ हैं। आनंद है। आनंद का उत्सव है। उत्सवों के मौसम हैं। कुल मिलाकर इन पन्नों में मंगल की कामना करते हुए मटियारे रंग है...

इस अंक का आवरण चित्र पद्मश्री दुर्गाबाई व्याम ने रचा है और सजाया है मुदित श्रीवास्तव ने। भीतर के पन्नों पर सुखनन्दी, अनुपम पाल और अंतिम अंतिम पृष्ठ पर रामीबेन नागेश के चित्र रौशन हैं। इन सबके बीच देश भर की सांस्कृतिक गतिविधियों का कोलाज।

किशोर कुमार का पुण्य स्मरण... जावेद अख़्तर की ज़ुबानी'जैसे नग़्में किशोर की आवाज़ के लिए ही लिखे गये थे।'पूरी बातचीत यहाँ...
13/10/2023

किशोर कुमार का पुण्य स्मरण... जावेद अख़्तर की ज़ुबानी

'जैसे नग़्में किशोर की आवाज़ के लिए ही लिखे गये थे।'

पूरी बातचीत यहाँ पढ़ें:
https://rangsamvaad.blogspot.com/2022/10/blog-post_65.html

... मौसम की चौखट से भादों विदा ले रहा है। ...क्वार के आसमान से कजरारे-कपसीले बादल छँटने लगे हैं। शामें रंगीन होकर घर-आँग...
04/10/2023

... मौसम की चौखट से भादों विदा ले रहा है। ...क्वार के आसमान से कजरारे-कपसीले बादल छँटने लगे हैं। शामें रंगीन होकर घर-आँगन में उतरने लगी हैं। ...खेत की बागुड़ों पर फूलों की झालर झिलमिला उठी है। यह पितरों के धरती पर आने का भी यह मुहूर्त है। यानी पितृपक्ष शुरु हो गया है और मध्यप्रदेश के निमाड़ जनपद की सुकुमार कन्याओं के लिए यह समय मिल-बैठकर संजा पर्व मनाने और अपने पुरखों से आशीर्वाद बटोरने का भी है।
कहते हैं संजा एक लोक देवी है जो हर साल अपनी सखी-कन्याओं के बीच श्राद्ध पक्ष के सोलह दिनों तक हँसी-ठिठोली करने अपने अँचल में आ पहुँचती हैं। इस दौरान किशोरियाँ गाय का ताज़ा हरा गोबर लेकर दीवारों पर चाँद, सितारे, पेड़-पहाड़, पशु-पक्षी और गणेश तथा स्वास्तिक की आकृतियाँ बनाती हैं और उन्हें ताज़े फूल-पत्तियों से सजाती हैं। शाम ढलते ही इन सुन्दर सजीली आकृतियों के सामने कन्याओं की बैठक होती है और शुरू होता है सुर में सुर मिलाता संजा गीतों का कारवाँ।
संजा की कहानी दरअसल भारतीय स्त्री के जीवन की धड़कन है। गीत की कडि़याँ खुलती है तो जैसे नारी जीवन का एक-एक अध्याय खुलने लगता है। यह दास्तान कल्पना के धागों से नहीं, संस्कृति के सूत्रों से बंधी है जिसमें इंसानी दुनिया की हकीकतों का फलसफा खुलता है।
गीत तो मन के मीत होते हैं। धूप-छाँही जीवन का हर लम्हा इनके दामन में धड़कता है। ये धड़कने जब सुर-ताल और लय का सुन्दर ताना-बाना लिए फिज़ाओं में गूंजती हैं तो जैसे मिट्टी की सौंधे अहसास भीतर तक बजने लगते हैं। संजा गीतों की गमक भी कुछ ऐसी ही लहक-महक से सरबोर है। धरती के ये छंद, दरअसल क्वारी कन्याओं की कामनाओं के कलश हैं, जिनमें प्यार है, मनुहार है, यादों-बातों की अठखेलियाँ है, खुशियाँ हैं, मासूम जिदें हैं, शिकवे-शिकायत हैं। यानी स्त्री की ज़िन्दगी का आईना है संजा का संगीत। गीत की कडियों और लय की लड़ियों का सिलसिला छिड़ता है तो मन सुर के पंखों पर सवार होकर निमाड़ की वादियों में चला जाता है।.. तो संजा ब्याही जा चुकी है। पर्व-त्योहार का मौसम आया तो आंखों में मायके की मधुर यादों के चित्र तैरने लगे और माँ-पिता की हिचकियों ने बेटी को घर लाने का इशारा कर दिया। मशविरा होने लगा कि कौन भाई संजा को लिवाने जाएगा। गीत देखिए-‘‘बाई संजा तू एक दूर बसे। तुख लेण रख जायेगा कुण/जाये-जाये रे सूरज वीरो...
संजा के गीतों की गुंजार फैलती है तो उम्र की चढ़ती बेल के साथ सयानी होती निमाड़ की कन्या की सुन्दर छवि आँखों में तैरने लगती है। ज़रा गौर कीजिए संजा की बनठन पर। बैलगाड़ी में बैठकर वह अपने बचपन के गाँव पधार रही है। उसकी छोटी-सी गाड़ी उबड़-खाबड़ सड़क पर हिचखोले खाती आगे बढ़ रही हैं और संजा का तन-मन भी पूरी खुशी के रोमांच से भर उठा है। उसका छींटदार घाघरा धमक रहा है, कलई की चूडि़याँ चमक रही हैं बिछुडि़याँ खनक रही हैं और नाक की नथनी झोले खा रही है। देखिए संजा की शान- छोटी सी गाड़ी-लुड़कती जाये लुड़कती जाय/ओमऽऽ बठी संजा बईण, संजा बईण/घाघरों घमकावती जाय/चूडि़लो चमकावती जाय/बिछुड़ी बजावती जाय/बाईजी की नथणी झोला खाय/झोला खाय।
संजा के गीतों की कडि़यों में एक भोली, अल्हड़ और मासूम कन्या की तस्वीर झिलमिलाती है। कहीं मुस्कुराती चाहतें हैं, तो कहीं माँ-पिता और बुजुर्गों से बचकाने सवाल हैं। कहीं सैर-सपाटे को मचलती इच्छाएँ हैं, तो कहीं सपनों की रंगीन झालरों से झांकते आने वाले कल के सपने हैं। लेकिन शादी से पहले तो उसका आज़ाद और बेफिक्र लड़कपन हर कहीं कुलांचे भर रहा है। अपने गाँव के हाट-बाजार में जब वह पूरा श्रृंगार कर अपनी सहेलियों के संग घूमने निकलती है तो उसका पहनावा ओढ़ावा, बलखाती चाल और बोली पर सब मुग्ध हो जाते हैं। क्या खूब पिरोया है इस सुन्दरता को हमारे अनाम गीतकारों ने- संजा सहेलड़ी बाजार खेलऽऽ/बाजार मऽऽ डोलऽऽ/तू पेरऽऽ माणक मोती/गुजराती चाल चालऽऽ/निमाड़ी बोली बोलऽऽ।
संजा अपने पीहर यानी बचपन के घर-आँगन में आयी तो शुरू होती है अपनों के संग ठिठोली। लेकिन उसके पहले संजा के घर वाले और उसकी सखियाँ उसे पहले की तरह सजा-धजा देखना चाहते हैं। कोई उसकी आँख में काजल आँजना चाहती है, तो कोई उसे चिर सुहागन की प्रतीक माथे की बिंदिया से सजाना चाहती है। यह उछाह कितना आत्मीय है-काजल टी की ल्यौ भाई-काज़ल टीकी ल्यौ/काजल टीकी लई न म्हारी संजा बईण रव द्यौ।
उम्र की डगर पर पांव धरती संजा अचानक कब बड़ी हो गई, पता ही नहीं चला। घर वालों को अब उसके हाथ पीले करने की चिंता सताने लगी। अब रिश्ता जोड़ने वाले मेहमानों की आहट होने लगी। घर पर बैठी चिडि़या और मुंडेर पर कौए को देखकर संजा अपने दादाजी से सहज सवाल करती हैं- दादाजी इन पंछियों को उड़ाते क्यों नहीं क्या कोई मेहमान आने वाले हैं। मन की गहराइयों में उतर जाने वाले इस गीत को पढि़ये- घर पर बठी चिडिया उड़ावता क्यों नी दादाजी/मगरी बठ्यौ/कागरो उड़ावता क्यों नी दादाजी।
लेकिन जीवन की रीत निराली है। कन्याओं की नियति तो उन चिड़ियों की तरह हैं जिन्हें बाबुल के आंगन से आखिर एक दिन उड़ जाना है। यह सब संजा से भला कैसे अछूता रहता! तो संजा का ब्याह तय हो गया। शादी का मुहूर्त निकल आया। बारातियों के लिए वंदनवार सज गए हैं। बारात भी कितनी निराली। संजा के ससुराल से हाथी आया है, घोड़ा भी आया है। और सब मन मारकर संजा की विदाई के लिए खड़े हैं- संजा का सासरऽऽ सी/हत्थी भी आयो/घोड़ों भी आयो/जा बाई संजा सासरऽऽ।
लोक गीतों का दामन दर्पण की तरह साफ-उजला और ईमानदार होता हैं ज़रा गौर से ताँक-झाँक करें तो इनमें हमारी ही जि़ंदगी के अक्स झिलमिलाते नज़र आते हैं। संजा गीतों की तासीर भी ऐसी ही है। निमाड़ की संस्कृति, संस्कार, परंपराएं और लोक जीवन की सहज घटनाएं संजा के गीतों में समाई हैं। जब गीतों की यह गागर छलकती है तो जैसे निमाड़ के संजा गीतों का भाव संसार दुनिया की हर स्त्री की हकीकत का फलसफा तैयार करता है। धरती निमाड़ की है तो क्या हुआ, गीत-संगीत के षब्द-स्वरों में हर स्त्री की उम्मीदें चहचहाती हैं। संजा के इस गीत की करूणा को ही लें, यकीनन हर मां-बाप और ब्याहता बेटी की रूह इसकी धुन के साथ काँप उठती है- गुणऽऽ चुणऽऽ गुणऽऽ गाड़ी वाजऽऽ न ओका ढीला-ढीला चाकजी/संजा बईण जासे सासरऽऽ। ओख कुण वीरो लेणऽऽ जायजी।
संजा अपने भाई के संग गाड़ी में बैठकर मायके आ गई है। अब सुबह-शामें उसकी अपनी हैं। सांझ घिरती है तो संजा का पर्व मनाने से भला कैसे रोक सकती है अपने आपको। सहेलियों ने अपनी प्यारी संजा के लिए सारी तैयारियाँ कर रखी हैं। संजा का रूप दिपदिपा रहा है वैसे ही जैसे ढलती सांझ का सिंदूरी आँचल पश्चिम के आसमान पर लहराता है- म्हारी संजा फूली वो/तू तो सांझ पड़े घर जाय।
शाम हुई और धीरे-धीरे उसका तांबई उजाला निमाड़ के गाँवों में फैलने लगा। घर की दीवारों पर गोबर और रंग-बिरंगे फूल-पत्तियों से सजी संजा की आकृतियाँ भी इस शुभ-मुहूर्त में जैसे और भी निखर आई है। यह आरती का समय है। मन के भीतर पूजा के श्रद्धा स्वरों का दीप जलाने का समय भी यही है। लेकिन संजा की आरती तो संजा के बगैर अधूरी है। सभी सखियाँ मिलकर संजा के घर जाती हैं और माँ से मनुहार करती हैं कि संजा को भेजो, हमें आरती उतारनी है। पूजा की थाली सज चुकी है। फूल-पांखुरी, दीपक नैवेद्य सब तैयार हैं। संजा निमाड़ की लोक देवी के रूप में दीवार ही नहीं, अपनी सभी सहेलियों के बीच एक शक्ति बनकर, एक आश्रय बनकर, एक आशीश बनकर आसन पर बैठी है। तभी सामूहिक स्वरों में बज उठता है संजा का जयघोष- करो संजा की आरती!
संजा के गीतों में उभरा स्त्री विमर्ष हमें भारतीय नारी के जीवन से जुड़े कुछ शाश्वत सवालों के समाधान खोजने का उद्ववेलन जगाता है। आज सरकारें बेटी बचाओ नारे के साथ सामाजिक जागरण की जिस मुहिम को मुखरित कर रही है वह संजा के लोक गीतों में पूरी ताकत से प्रस्फुटित हुआ है। आलोचना जी इस प्रवाह में जोड़ती हैं- हमें लोक गीतों की शक्ति को पहचानने की जरूरत है। वाचिक परंपरा के पास जो अनमोल निधियाँ है वे एक बार फिर हमारी मौजूदा पारिवारिक सामाजिक समस्याओं से निजात पाने में मददगार हो सकती है।
एक शोध के अनुसार ब्रज मंडल में संजा का रूप प्रेयसी का है। वहाँ यह राधा के रूप में प्रतिष्ठित है। एक किंवदन्ती है कि कृष्ण ने एक श्याम मानिनी राधा को प्रसन्न करने के लिये आंगन की दीवार पर गोबर और विभिन्न फूलों की पंखुडि़यों से रंग-बिरंगी कलात्मक सजावट की थी, तब से गोबर और फूलों से घर की दीवारें विभिन्न आकृतियों से चित्रित करने की परिपाटी पड़ गई। और तब ही से अनब्याही लड़कियां इसे पर्व के रूप में मनाने लगीं। राजस्थान में यह सांझी कहलाती है और वहाँ भी कई मिथकथाएं मिलती है। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में पहुंचकर सांझी की उत्पत्ति-कथा भिन्न हो जाती हैं। पंजाब में कुछ कथा मिल सकती हैं मध्यप्रदेश में मालवा की साँझी या संजा, निमाड़ की संजाफूली, बुन्देलखण्ड की मामुलिया, महाराष्ट्र की गुलाबाई और ब्रजमंडल की सांझी के विभिन्न रूपों की मिथकीय अवधारणाएं प्रचलित हैं। सांझी के इतने विस्तृत संसार से यह सिद्ध होता है कि यह कोई असाधारण स्त्री व्यक्तित्व रहा होगा, जिसका आनुष्ठानिक और चित्रमयी पूजा का प्रचलन लोक में प्रतिष्ठित होता गया जो आज तक अबाध प्रवाहित है।

-विनय उपाध्याय

यही है वो अल्फ़ाज़, यही है वो आवाज़ जो 'रंग संवाद' के पन्नों पर शाया हुए हैं..इस तस्वीर के लिए Anulata Raj Nairका शुक्रिया....
23/09/2023

यही है वो अल्फ़ाज़, यही है वो आवाज़ जो 'रंग संवाद' के पन्नों पर शाया हुए हैं..

इस तस्वीर के लिए Anulata Raj Nairका शुक्रिया..

Neelesh Misra का यह पूरा इंटरव्यू आप 'रंग संवाद' के अगस्त 2023 अंक में पढ़ सकते हैं...

संगीत विदुषी पद्म विभूषण डॉ. प्रभा अत्रे को जन्मदिवस पर सादर प्रणाम...
13/09/2023

संगीत विदुषी पद्म विभूषण डॉ. प्रभा अत्रे को जन्मदिवस पर सादर प्रणाम...

रंग संवाद (अगस्त 2023) की डाक पहुँचते ही पाठकों की  प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो चुकी हैं इसी तारतम्य में हमें एक आत्मीय उद...
06/09/2023

रंग संवाद (अगस्त 2023) की डाक पहुँचते ही पाठकों की प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो चुकी हैं

इसी तारतम्य में हमें एक आत्मीय उद्गार सोमदत्त शर्मा जी का मिला है...

हार्दिक बधाई...
05/09/2023

हार्दिक बधाई...

रंग संवाद (अगस्त 2023) की डाक पहुँचते ही पाठकों की  प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो चुकी हैं इसी तारतम्य में हमें एक आत्मीय उद...
02/09/2023

रंग संवाद (अगस्त 2023) की डाक पहुँचते ही पाठकों की प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो चुकी हैं

इसी तारतम्य में हमें एक आत्मीय उद्गार संतोष तिवारी का मिला है...

कृपया आपके शुभैषियों और कला अनुरागी मित्रों को रंग संवाद की सदस्यता के लिए आग्रह करें। यह सदस्यता वर्ष है।संलग्न परिपत्र...
29/08/2023

कृपया आपके शुभैषियों और कला अनुरागी मित्रों को रंग संवाद की सदस्यता के लिए आग्रह करें। यह सदस्यता वर्ष है।
संलग्न परिपत्र के विवरण का अवलोकन कर कार्यवाही को गति प्रदान करें।

-संपादक
रंग संवाद

संपर्क - 090747 67948

25/08/2023

मेघों का मौसम और ये सुरभीनी आहट

टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र की पत्रिका ‘रंग संवाद’ का यह नया अंक... शास्त्रीय संगीत की अग्रणी गायिका विदुषी आरती अंकलीकर टिकेकर, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे और भोपाल की भव्य अंतरंग शाला में ये उत्सवी क्षण...

Address

टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केंद्र, ऋतुरंग प्रकोष्ठ, रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्व विद्यालय
Raisen
464993

Opening Hours

Monday 10am - 5pm
Tuesday 10am - 5pm
Wednesday 10am - 5pm
Thursday 10am - 5pm
Friday 10am - 5pm
Saturday 10am - 5pm
Sunday 10am - 5pm

Telephone

+919244793310

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when रंग संवाद posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to रंग संवाद:

Videos

Share

Category


Other Raisen media companies

Show All