26/01/2024
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एक प्रकार की ऐसी कहानियां हैं जिसे हम हिंदी में नैतिक कहानियां कहते हैं
(1)
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Hi
“कपड़ों की “मैचिंग” बिठाने से,
सिर्फ शरीर “सुंदर” दिखेगा।
रिश्तों व हालातों से,
“मैचिंग” बिठा लीजिये…..
पूरा जीवन सुंदर हो जाएगा।”
Moral stories
*♨️आज की प्रेरणा प्रसंग ♨️*
*🌷पापा की इज्जत🌷*
"पापा के पास कोई और शर्ट पैंट नहीं है क्या ? जब से देख रहा हूं यही तीन चार जोड़ी कपड़े लटकाए रहते हैं ।" कोचिंग से आकर पानी भी नहीं पिया सीधा मां को शिकायत सुनाने लगा ।
"क्या हुआ आज फिर किसी ने पापा पर कमेंट कर दिया क्या ?" छत से लाए कपड़ों को तह लगाते हुए मां ने कहा ।
"और नहीं तो क्या । पापा का नाम ही चेक शर्ट वाले अंकल रख दिया है सबने । और ना जाने क्या क्या कहते रहते हैं ।" वो एकदम से रुआंसा हो गया । मानों अभी रो देगा ।
"किसी के बोलने से क्या होता है । बच्चे तो ऐसे ही लड़ते हैं । तू खुद हरीश के पापा को किस नाम से बुलाता है याद है तुझे ।" वो समझ गया कि मां पापा की ही साइड लेंगी इसीलिए चुपचाप अपने कमरे में चला गया ।
पापा तक हर बात पहुंच जाती थी । उनका जानना ज़रूरी भी था कि उनका बेटा उनके बारे में क्या सोचता है । वो हर बात सुनते और बस मुस्कुरा कर रह जाते । इंसान अगर समझदार है तो वो कभी भी छोटी छोटी बातों पर प्रतिक्रिया नहीं देता ।
सारे दिन का थका हुआ होता है, चाहता है कि अब घर में कुछ ऐसा ना हो जो थकान इतनी बढ़ जाए कि फिर उतरे ही ना । ऐसा भी नहीं कि उन्हें फर्क नहीं पड़ता । पड़ता भी है मगर वो बताते नहीं ।
इसी फर्क के कारण उन्हें ऐसा कुछ सुनने पर घंटे भर बाद नींद आती है । एक करवट लेटे वो सोचते रहते हैं कि आखिर बच्चों के लिए क्या ऐसा करें कि वे उनसे खुश रह सकें, उन पर गर्व कर सकें ।
हर तीसरे दिन मां के पास पापा की कोई ना कोई शिकायत पहुंच जाया करती थी । पापा ऐसा क्यों करते हैं, पापा के पास पुराना स्कूटर क्यों है, नई गाड़ी या बाइक क्यों नहीं ? पापा ने ये नहीं दिलाया, पापा कहीं अच्छी जगह घुमाने क्यों नहीं ले गए कभी, पापा बाक़ी दोस्तों के पापा लोग की तरह अमीर क्यों नहीं ?
ऐसी ही शिकायतों के साथ हर साल की तरह ये साल भी बीत गया । बेटे का इस साल इंटर था । रिजल्ट आया तो मर मर कर किसी तरह पास हुआ था । मैट्रिक में जिस लड़के के 82% थे, इंटर में वो 53% पर ही पहुंच पाया । शाम को पापा आए तो घर में मैय्यत का सन्नाटा पसरा था । बेटे साहब अपने कमरे में दुबके पड़े थे ।
"कहां है ?" बैग टेबल पर रखते ही पापा ने पहला सवाल यही किया । शायद ऑफिस में ही रिजल्ट देख लिया था ।
"जाने दीजिए ना, पहले ही बहुत डरा हुआ है ।" मां पापा के मूड को भांप गई थी इसलिए चाह रही थी कि फिलहाल बेटा इनके सामने ना ही आए तो अच्छा है ।
"उसे बुलाओ जल्दी और ये अपनी ममता ना साल भर के लिए बचा कर रखो । साल भर हम हर गलती माफ करते हैं । कभी बोलने नहीं जाते मगर आज तुम्हारी ये ममता एक पिता के गुस्से को रोंक नहीं सकती । यहां बुलाओ उसे, अगर हम कमरे में चले गए तो आज लात बांह छिटका देंगे ।"
मां समझ गई कि पिता का गुस्सा तूफान बन चुका है और उस तूफान को ये ममता का छाता रोक ना पाएगा । किसी भी घर में ऐसा समय माओं को दुविधा में डाल देता है ।
मां उसे कमरे से समझा बुझा कर लाई । जो अक्सर पिता के बारे में नुक्स निकालता रहता था आज एकदम सहमा हुआ सा खड़ा था । पापा ने उसे एक बार ऊपर से नीचे तक देखा ।
"तो फिर बताओ कि इतने कम नंबर किस वजह से आए तुम्हारे ? क्या इसका कारण ये है कि हमारे पास सिर्फ़ चार जोड़ी कपड़े ही हैं जो हमने सालों पहले सिलवाए थे ? या फिर हमारी पुरानी स्कूटर के कारण तुम नंबर ना ला पाए ? या फिर हम अमीर नहीं हैं तुम्हारे दोस्त के पापा लोग की तरह इस वजह से तुम्हारे नंबर काट लिए गए ?"
पापा के इन तानों को सुन कर बेटे ने एक बार मां की तरफ देखा और फिर से सिर झुका लिया । उसे महसूस हो गया कि ए बातें तो मैं मम्मी से अकेले में कही थी तो पापाजी तक मम्मी के अलावा कोई नहीं पहुंचा सकता ?
"मन में कोई वहम हो तो चलो तुमको कल ही गांव ले चलते हैं अपने और वहां मिलवाते हैं अपने पुराने साथियों से । वे सब तुम्हें बताएंगे कि हम क्या चीज़ थे । महीने का कलेंडर बाद में बदलता था मगर हम अपने जूते और कपड़े पहले बदल लेते थे । पूरे जिले भर में इकलौती राजदूत बाइक थी हमारे पास ।
उसकी आवाज़ से ही कोई कह देता था कि भूरे भईया होंगे । और एक हमारे पिता जी थे वही दो जोड़ी धोती और दो चलानी गंजी लटकाए रहते थे । तुम लोगों जितना दिमाग नहीं चढ़ा था हमारा लेकिन फिर भी सोच लेते थे कभी कभी कि आखिर पैसा रख कर करेंगे क्या, जब तन पर एक ठो अच्छा कपड़ा नहीं है ।"
बेटे का सिर अभी भी झुका था । शायद वो समझ ही नहीं पा रहा था कि पापा ये सब मुझे क्यों बता रहे हैं ।
"वक़्त बदला, हालात भी बदल गए । पिता जी असमय चले गए । उनके जाने के बाद बुद्धि खुली । समझ आ गया कि पिता के होते तक ही मौज है। उसके बाद तो जरूरतें पूरी हो जाएं वही बहुत है । खुद को जानते थे हम । पता था कि खुद को खेत में जोत कर कुछ खास कर नही पाएंगे इसलिए पढ़ाई में मन लगाने लगे । किस्मत अच्छी रही कि नौकरी मिल गई । आधी बुद्धि तो पिता जी के जाते ही खुल गई और आधी खुली जब तुम हुए ।" पापा आज अपनी पूरी भड़ास निकल देने के मूड में थे ।
"तुम्हारे पैदा होने के बाद हमें समझ आया कि पिता जी वो दो जोड़ी धोती और गंजी में कैसे सालों बिता देते थे । ये जो तुम अमीर घरों के बच्चों के बीच पढ़ते हुए हमारे पैंट शर्ट पर शर्मिंदगी महसूस करते हो, महंगा फोन चलाते हो, वो लैपटॉप जो लिए हो पढ़ने के लिए और चलाते गेम और फिल्में हो, ये कपड़े जूते, ये सब इसीलिए हैं क्योंकि हमारे पास सालों से सिर्फ़ चार जोड़ी कपड़े हैं । हम ऐश कर पाए क्योंकि हमारे पिता के पास केवल दो जोड़ी कपड़े थे । ऐसा थोड़े ना है कि हमारा मन नहीं करता बन ठन के रहने का, अच्छा पहनने अच्छा खाने का लेकिन हम मन मारते हैं सिर्फ़ इसलिए कि तुम्हारे मन का हो सके और बदले में क्या चाहते हैं तो बस यही कि तुम पढ़ाई में अच्छा करो ।"
"पापा मैं....वो...।" इससे ज़्यादा वो कुछ बोल नहीं पाया ।
"हां हां, बताओ क्या वो ? अरे अब तो वो ज़माना भी नहीं रहा कि तुमको सिर्फ़ पढ़ने के लिए कहें । बताओ हमको कि पढ़ाई से ध्यान हटा कर तुम कौन से खेल या कला में आगे बढ़े हो ? बताओ कि हमारी मेहनत की कमाई, हमारे त्याग और हम जो अपने ही बच्चे से बेज्जती सहते हैं, उसके बदले क्या मिला है हमको ?" बेटे के पास इसका कोई जवाब नहीं था । वो कैसे कहता कि उसका सारा ध्यान तो खुद और अपने साथ के बच्चों के बीच का फर्क नापने में गया है ।
"तुम पढ़ाई में अच्छे हो, ये हम जानते हैं । ना होते तो हम कुछ कहते ही नहीं । तुम अच्छा कर सकते हो लेकिन दिक्कत पता क्या है ? तुम ना अभी से हैसीयत नापने लगे हो । इतना क्रिकेट देखते और खेलते हो कभी ये नहीं सीखे कि पहले ही ओवर में 25 30 रन बना देने वाला बड़ा खिलाड़ी नहीं होता । बड़ा खिलाड़ी वो है जो अंत तक मैदान में खड़ा रहता है और जिसका कुल स्कोर उसकी टीम को जिताता है । बेटा शुरुआत कोई नहीं देखता यहां सबको अंजाम से मतलब है । अभी से हैसीयत देखोगे तो कुछ हाथ नहीं आएगा । अभी तो वक़्त है खुद की हैसीयत बनाने का । ध्यान दो वर्ना कुछ भी हासिल नहीं कर पाओगे ।" बेटा अभी भी सिर झुकाए वहां खड़ा था ।
"अब जाओ, इतना ही कहने को बुलाए थे । अभी समझ आ जाए तो अच्छा है वर्ना बाद में सिवाए पछताने के कुछ कर नहीं पाओगे ।" मां कुछ नहीं बोली बस पापा को देखती रही ।
अगले दिन पापा ऑफिस से आए तो बेटा सिर झुकाए सामने खड़ा था । पापा ने बैग टेबल पर रखा और अपने थके शरीर को सोफे पर पटक दिया ।
"पापा ।"
"हम्म्म्म ।"
"एडमिशन करा ली मैंने ।"
"अच्छी बात है । कौन से सबजेक्ट लिए हो ।"
"वही साइंस ही ।"
"इंटर में देख ही लिए हो कि साइंस नहीं हो पाएगा तो कुछ और देख लेते ।"
"फिर से इंटर में ही एडमिशन लिया है । एक साल तो बर्बाद जाएगा मगर इस बार अच्छे नंबर आएंगे । पूरी मेहनत करूंगा ।" बेटे ने डरते हुए कहा । पापा मुस्कुराए ।
"पढ़ना तुमको है बेटा । हम बस ये चाहते हैं कि अच्छा बुरा के बीच का फर्क जान जाओ । और ध्यान रखना कि अगर मेहनत होती रहे तो साल कभी बर्बाद नहीं जाता ।" बेटा पिता की बातों को समझ गया था ये देख कर पिता को अच्छा लगा ।
कुछ देर बाद बेटा अंदर से एक पैकेट ले कर आया और पापा को थमा दिया । पापा ने पैकेट देखते पूछा "ये क्या है ?" इतना कहते हुए उन्होंने पैकेट भी खोल लिया ।
"शर्ट है पापा । अपनी पॉकेट मनी से लाया हूं । समझ आ गया है कि आप मेरे लिए खुद की जरूरतों पर खर्च करने से भी डरते हैं लेकिन मैं तो अपने खर्च में कटौती कर के आपके लिए कुछ ला सकता हूं ना ।" पापा बेटे को देखते रहे । उनका मन हुआ कि उठ कर गले लगा ले उसे मगर इतना खुले नहीं थे ना उससे ।
"और मां के लिए ?" पीछे खड़ी मां ने खुद के आँसुओं को रोंकते हुए कहा ।
"वो पापा ले आएंगे ना ।" इस बात पर सबके चेहरे पर हंसी आ गई ।
बेटा आगे क्या करेगा ये तो पता नहीं लेकिन अब से पापा की इज़्ज़त ज़रूर करेगा ये पक्का है ।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।।*
कोई दुनिया को नहीं *बदल* सकता,
सिर्प इतना हो सकता है कि *इंसान* ,
अपने *आप को* बदले तो
*दुनिया* अपने आप बदल जायेगी।
*गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।*
*नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥*
*तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन।*
*बरनउँ राम चरित भव मोचन॥*
*भावार्थ:-* श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूँ॥
🌸 *|| जय जय श्री राम ||* 🌸
*प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! बगुला और केकडा !!*
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एक वन प्रदेश में एक बहुत बडा तालाब था। हर प्रकार के जीवों के लिए उसमें भोजन सामग्री होने के कारण वहां नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकडे आदि वास करते थे। पास में ही बगुला रहता था, जिसे परिश्रम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसकी आंखें भी कुछ कमज़ोर थीं। मछलियां पकडने के लिए तो मेहनत करनी पडती हैं, जो उसे खलती थी। इसलिए आलस्य के मारे वह प्रायः भूखा ही रहता। एक टांग पर खडा यही सोचता रहता कि क्या उपाय किया जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए रोज भोजन मिले। एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आजमाने बैठ गया।
बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और लगा आंखों से आंसू बहाने। एक केकडे ने उसे आंसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा 'मामा, क्या बात है भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खडे आंसू बहा रहे हो?'
बगुले ने ज़ोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला 'बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप कार्य और नहीं करुंगा। मेरी आत्मा जाग उठी है। इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड रहा हूं। तुम तो देख ही रहे हो।'
केकडा बोला 'मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे?'
बगुले ने एक और हिचकी ली 'ऐसे जीवन का नष्ट होना ही अच्छा है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है। मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पडेगा।'
बगुले ने केकडे को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई हैं, जिसकी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होती। केकडे ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया हैं और सूखा पडने वाला हैं।
उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकडे, बत्तखें व सारस आदि दौडे-दौडे बगुले के पास आए और बोले 'भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ। अपनी अक्ल लडाओ तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो।'
बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि वहां से कुछ कोस दूर एक जलाशय हैं जिसमें पहाडी झरना बहकर गिरता हैं। वह कभी नहीं सूखता। यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता हैं। अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी 'मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा।'
सभी जीवों ने गद्-गद् होकर ‘बगुला भगतजी की जै’ के नारे लगाए।
अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता। कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी। चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढने लगा और भगत जी की सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए। मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज से चमकने लगे। उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते 'देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है।'
बगुला भगत मन ही मन खूब हंसता। वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पडे हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैं। ऐसे मूर्खों की दुनिया में थोडी चालाकी से काम लिया जाए तो मजे ही मजे हैं। बिना हाथ-पैर हिलाए खूब दावत उडाई जा सकती है संसार से मूर्ख प्राणी कम करने का मौक़ा मिलता है बैठे-बिठाए पेट भरने का जुगाड हो जाए तो सोचने का बहुत समय मिल जाता हैं।
बहुत दिन यही क्रम चला। एक दिन केकडे ने बगुले से कहा 'मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई।'
भगत जी बोले 'बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा।'
केकडा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया। जब वह चट्टान के निकट पहुंचा तो वहां हड्डियों का पहाड देखकर केकडे का माथा ठनका। वह हकलाया 'यह हड्डियों का ढेर कैसा है? वह जलाशय कितनी दूर है, मामा?'
बगुला भगत ठां-ठां करके खूब हंसा और बोला 'मूर्ख, वहां कोई जलाशय नहीं है। मैं एक- एक को पीठ पर बिठाकर यहां लाकर खाता रहता हूं। आज तू मरेगा।'
केकडा सारी बात समझ गया। वह सिहर उठा परन्तु उसने हिम्मत न हारी और तुरंत अपने जंबूर जैसे पंजों को आगे बढाकर उनसे दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरु न उड गए। फिर केकडा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा।
*शिक्षा:-*
1. दूसरों की बातों पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए, वास्तविक परिस्थिति के बारे में पहले पता लगा लेना चाहिए, हो सकता है सामने वाला मनगढंत कहानियाँ बना रहा हो और आपको लुभाने की कोशिश कर रहा हो।
2. कठिन से कठिन परिस्थिति और मुसीबत के समय में भी अपना आपा नहीं खोना चाहिए और धीरज व बुद्धिमानी से कार्य करना चाहिए।
*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*♨️आज की प्रेरक प्रसंग ♨️*
*🌷परिवार🌷*
सुबह सूर्योदय हुआ ही था कि एक वयोवृद्ध डॉक्टर के दरवाजे पर आकर घंटी बजाने लगा। सुबह-सुबह कौन आ गया? कहते हुए डॉक्टर की पत्नी ने दरवाजा खोला। वृद्ध को देखते ही डॉक्टर की पत्नी ने कहा:- रघुवीर दादा आज इतनी सुबह? क्या परेशानी हो गयी आपको?
वयोवृद्ध ने कहा:- मेरे अंगूठे के टांके कटवाने आया हूं ,डॉक्टर साहब के पास, मुझे 8:30 बजे किसी और जगह पहुंचना होता है, इसलिए जल्दी आया। सॉरी डॉक्टर!
डाक्टर के पड़ोस वाले मोहल्ले में ही वयोवृद्ध का निवास था। जब भी जरूरत पड़ती वह डॉक्टर के पास आते थे। इसलिए डाक्टर उनसे परिचित था। उसने कमरे से बाहर आकर कहा कोई बात नहीं दादा बैठो।
बताओ आप का अंगूठा, डॉक्टर ने पूरे ध्यान से अंगूठे के टांके खोले और कहा कि दादा बहुत बढ़िया है। आपका घाव भर गया है। फिर भी मैं पट्टी लगा देता हूं कि कहीं पर चोंट न पहुंचे।
डाक्टर तो बहुत होते हैं, परंतु यह डॉक्टर बहुत हमदर्दी रखने वाले, हर आदमी का ख्याल रखने वाले और दयालु थे।डॉक्टर ने पट्टी लगाकर के पूछा:-दादा आपको कहां पहुंचना पड़ता है 8:30 बजे। आपको देर हो गई हो तो मैं चलकर आपको छोड़ आता हूं।
वृद्ध ने कहा:- नहीं नहीं डॉक्टर साहब ,अभी तो मैं घर जाऊंगा और नाश्ता तैयार करूंगा,फिर निकलूंगा और बराबर 9 बजे पहुंचजाऊंगा।
उन्होंने डॉक्टर का आभार माना और जाने के लिए खड़े हुए। बिल लेकर के उपचार करने वाले तो बहुत डॉक्टर होते हैं ,परंतु दिल से उपचार करने वाले कम होते हैं। दादा खड़े हुए तभी डॉक्टर की पत्नी ने आकर कहा कि दादा नाश्ता यहीं कर लो।
वृद्ध ने कहा:- ना बेन। मैं तो यहां नाश्ता कर लेता, परंतु उसको नाश्ता कौन कराएगा?
डॉक्टर ने पूछा:- किस को नाश्ता कराना है?
तब वृद्ध ने कहा:- मेरी पत्नी को।
तो वह कहां रहती है और 9:00 बजे आपको उसके यहां कहां पहुंचना है?
वृद्ध ने कहा:- डॉक्टर साहब वह तो मेरे बिना रहती ही नहीं थी ,परंतु अब वह अस्वस्थ है, तो नर्सिंग होम में है।
डॉक्टर ने पूछा:- क्यों, उनको क्या तकलीफ है?
वृद्ध व्यक्ति ने कहा:- मेरी पत्नी को अल्जाइमर हो गया है और उसकी याददाश्त चली गई है। पिछले 5 साल से वह मेरे को पहचानती नहीं है। मैं नर्सिंग होम में जाता हूं। उसको नाश्ता खिलाता हूं, तो वह फटी आंख से शून्य नेत्रों से मुझे देखती है। मैं उसके लिए अनजाना हो गया हूं। ऐसा कहते कहते वृद्ध की आंखों में आंसू आ गए। डॉक्टर और उसकी पत्नी की आंखें भी गीली हो गई।
बाजार में नहीं मिलता है यह।
डॉक्टर और उसकी पत्नी ने कहा:- दादा 5 साल से आप रोज नर्सिंग होम में उनको नाश्ता कराने जाते हो? आप इतने वृद्ध, आप थकते नहीं हो, ऊबते नहीं हो?
उस वृद्ध ने कहा :- मैं तीन बार जाता हूं। डॉक्टर साहब, उसने जिंदगी में मेरी बहुत सेवा की और आज मैं उसके सहारे जिंदगी जी रहा हूं। उसको देखता हूं तो मेरा मन भर आता है। मैं उसके पास बैठता हूं तो मुझ में शक्ति आ जाती है। अगर वह न होती तो अभी तक मैं भी बिस्तर पकड़ लेता, लेकिन उसको ठीक करना है, इसलिए मुझ में रोज ताकत आ जाती है। उसके कारण ही मुझ में इतनी फुर्ती है। सुबह उठता हूं तो तैयार होकर के काम में लग जाता हूं। यह भाव रहता है कि उसको मिलने जाना है। उसके साथ नाश्ता करना है, उसको नाश्ता कराना है। उसके साथ नाश्ता करने का आनंद ही अलग है। मैं अपने हाथ से उसको नाश्ता खिलाता हूं।
डॉक्टर ने कहा:- दादा एक बात पूछूं? वह तो आपको पहचानती नहीं, न तो आपके सामने बोलती है, न हंसती है, तो भी तुम मिलने जाते हो।
तब उस समय वृद्ध ने जो शब्द कहे वह शब्द दुनिया में सबसे अधिक हृदयस्पर्शी और मार्मिक हैं।
वृद्ध बोले:- डॉक्टर साहब, वह नहीं जानती कि मैं कौन हूं ,पर मैं तो जानता हूं ना कि वह कौन है! और इतना कहते कहते हैं वृद्ध की आंखों से पानी की धारा बहने लगी। डॉक्टर और उनकी पत्नी की आंखें भी भर आई। कहानी तो पूरी होगी परंतु पारिवारिक जीवन में स्वार्थ अभिशाप है और प्रेम आशीर्वाद है। प्रेम कम होता है तभी परिवार टूटता है । अपने घर में अपने माता पिता को प्रेम करो।
*यह शब्द 'वह नहीं जानती कि मैं कौन हूं परंतु मैं तो जानता हूं'।*
यह शब्द शायद परिवार में प्रेम का प्रवाह प्रवाहित कर दें।
*अपने वो नहीं, जो तस्वीर में साथ दिखे,अपने तो वो है, जो तकलीफ में साथ दिखे!*
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।।*
*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! बाज की सीख !!*
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एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए गया। बहुत प्रयास करने के बाद उसने जाल में एक बाज पकड़ लिया। शिकारी जब बाज को लेकर जाने लगा तब रास्ते में बाज ने शिकारी से कहा, “तुम मुझे लेकर क्यों जा रहे हो?”
शिकारी बोला, “मैं तुम्हें मारकर खाने के लिए ले जा रहा हूँ।” बाज ने सोचा कि अब तो मेरी मृत्यु निश्चित है। वह कुछ देर यूँ ही शांत रहा और फिर कुछ सोचकर बोला, “देखो, मुझे जितना जीवन जीना था मैंने जी लिया और अब मेरा मरना निश्चित है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है।” “बताओ अपनी इच्छा?”, शिकारी ने उत्सुकता से पूछा।
बाज ने बताना शुरू किया- मरने से पहले मैं तुम्हें दो सीख देना चाहता हूँ, इसे तुम ध्यान से सुनना और सदा याद रखना। पहली सीख तो यह कि किसी कि बातों का बिना प्रमाण, बिना सोचे-समझे विश्वास मत करना। और दूसरी ये कि यदि तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो या तुम्हारे हाथ से कुछ छूट जाए तो उसके लिए कभी दुःखी मत होना।
शिकारी ने बाज की बात सुनी और अपने रस्ते आगे बढ़ने लगा। कुछ समय बाद बाज ने शिकारी से कहा- “शिकारी, एक बात बताओ…अगर मैं तुम्हें कुछ ऐसा दे दूँ जिससे तुम रातों-रात अमीर बन जाओ तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?”
शिकारी फ़ौरन रुका और बोला, “क्या है वो चीज, जल्दी बताओ?” बाज बोला, “दरअसल, बहुत पहले मुझे राजमहल के करीब एक हीरा मिला था, जिसे उठा कर मैंने एक गुप्त स्थान पर रख दिया था। अगर आज मैं मर जाऊँगा तो वो हीरा ऐसे ही बेकार चला जाएगा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम उसके बदले मुझे छोड़ दो तो मेरी जान भी बच जायेगी और तुम्हारी गरीबी भी हमेशा के लिए मिट जायेगी।” यह सुनते ही शिकारी ने बिना कुछ सोचे समझे बाज को आजाद कर दिया और वो हीरा लाने को कहा।
बाज तुरंत उड़ कर पेड़ की एक ऊँची शाखा पर जा बैठा और बोला, “कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हें एक सीख दी थी कि किसी के भी बातों का तुरंत विश्वास मत करना लेकिन तुमने उस सीख का पालन नहीं किया। दरअसल, मेरे पास कोई हीरा नहीं है और अब मैं आज़ाद हूँ।
यह सुनते ही शिकारी मायूस हो पछताने लगा… तभी बाज फिर बोला, तुम मेरी दूसरी सीख भूल गए कि अगर कुछ तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो तो उसके लिए तुम कभी पछतावा मत करना।
*शिक्षा:-*
हमें किसी अनजान व्यक्ति पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और किसी प्रकार का नुकसान होने या असफलता मिलने पर दुःखी नहीं होना चाहिए, बल्कि उस बात से सीख लेकर भविष्य में सतर्क रहना चाहिए।
*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*♨️आज की प्रेरणा प्रसंग♨️*
*🌷बुढ़ापे का बचपन🌷*
मोहन बेटा ! मैं तुम्हारे काका के घर जा रहा हूँ।
क्यों पिताजी ? और आप आजकल काका के घर बहुत जा रहे हो ...? तुम्हारा मन मान रहा हो तो चले जाओ ... पिताजी ! लो ये पैसे रख लो, काम आएंगे।
पिताजी का मन भर आया . उन्हें आज अपने बेटे को दिए गए संस्कार लौटते नजर आ रहे थे।
जब मोहन स्कूल जाता था वह पिताजी से जेब खर्च लेने में हमेशा हिचकता था, क्यों कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। पिताजी मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से घर चला पाते थे, पर माँ फिर भी उसकी जेब में कुछ सिक्के डाल देती थी ,जबकि वह बार-बार मना करता था।
मोहन की पत्नी का स्वभाव उसके पिताजी की तरफ कुछ खास अच्छा नहीं था। वह रोज पिताजी की आदतों के बारे में कहासुनी करती थी, उसे ये बडों की टोका टाकी पसन्द नही थी, बच्चे भी दादा के कमरे में नहीं जाते, मोहन को भी देर से आने के कारण बात करने का समय नहीं मिलता।
एक दिन पिताजी का पीछा किया आखिर पिताजी को काका के घर जाने की इतनी जल्दी क्यों रहती है ? वह यह देख कर हैरान रह गया कि पिताजी तो काका के घर जाते ही नहीं हैं !
वह तो स्टेशन पर एकान्त में शून्य एक पेड़ के सहारे घंटों बैठे रहते थे। तभी पास खड़े एक बजुर्ग, जो यह सब देख रहे थे, उन्होंने कहा बेटा...! क्या देख रहे हो ?
जी....! वो ।
अच्छा, तुम उस बूढ़े आदमी को देख रहे हो....? वो यहाँ अक्सर आते हैं और घंटों पेड़ तले बैठ कर सांझ ढले अपने घर लौट जाते हैं . किसी अच्छे सभ्रांत घर के लगते हैं।
बेटा ...! ऐसे एक नहीं अनेकों बुजुर्ग माएँ बुजुर्ग पिता तुम्हें यहाँ आसपास मिल जाएंगे !
जी, मगर क्यों ?
बेटा ...! जब घर में बड़े बुजुर्गों को प्यार नहीं मिलता, उन्हें बहुत अकेलापन महसूस होता है, तो वे यहाँ वहाँ बैठ कर अपना समय काटा करते हैं !
वैसे क्या तुम्हें पता है बुढ़ापे में इन्सान का मन बिल्कुल बच्चे जैसा हो जाता है । उस समय उन्हें अधिक प्यार और सम्मान की जरूरत पड़ती है , पर परिवार के सदस्य इस बात को समझ नहीं पाते।
वो यही समझते हैं कि इन्होंने अपनी जिंदगी जी ली है फिर उन्हें अकेला छोड देते हैं . कहीं साथ ले जाने से कतराते हैं . बात करना तो दूर अक्सर उनकी राय भी उन्हें कड़वी लगती है। जब कि वही बुजुर्ग अपने बच्चों को अपने अनुभवों से आने वाले संकटों और परेशानियों से बचाने के लिए सटीक सलाह देते है।
घर लौट कर मोहन ने किसी से कुछ नहीं कहा। जब पिताजी लौटे, मोहन घर के सभी सदस्यों को देखता रहा l
किसी को भी पिताजी की चिन्ता नहीं थी। पिताजी से कोई बात नहीं करता, कोई हंसता खेलता नहीं था . जैसे पिताजी का घर में कोई अस्तित्व ही न हो ! ऐसे परिवार में पत्नी बच्चे सभी पिताजी को इग्नोर करते हुए दिखे !
सबको राह दिखाने के लिऐ आखिर मोहन ने भी अपनी पत्नी और बच्चों से बोलना बन्द कर दिया, वो काम पर जाता और वापस आता किसी से कोई बातचीत नही ...! बच्चे पत्नी बोलने की कोशिश भी करते , तो वह भी इग्नोर कर काम मे डूबे रहने का नाटक करता ! !! तीन दिन मे सभी परेशान हो उठे... पत्नी, बच्चे इस उदासी का कारण जानना चाहते थे।
मोहन ने अपने परिवार को अपने पास बिठाया। उन्हें प्यार से समझाया कि मैंने तुम से चार दिन बात नहीं की तो तुम कितने परेशान हो गए ? अब सोचो तुम पिताजी के साथ ऐसा व्यवहार करके उन्हें कितना दुख दे रहे हो ?
मेरे पिताजी मुझे जान से प्यारे हैं। जैसे तुम्हें तुम्हारी माँ ! और फिर पिताजी के अकेले स्टेशन जाकर घंटों बैठकर रोने की बात बताई। सभी को अपने बुरे व्यवहार का खेद था l
उस दिन जैसे ही पिताजी शाम को घर लौटे, तीनों बच्चे उनसे चिपट गए ...! दादा जी ! आज हम आपके पास बैठेंगे...! कोई किस्सा कहानी सुनाओ ना।
पिताजी की आँखें भीग आई। वो बच्चों को लिपटकर उन्हें प्यार करने लगे। और फिर जो किस्से कहानियों का दौर शुरू हुआ वो घंटों चला . इस बीच मोहन की पत्नी उनके लिए फल तो कभी चाय नमकीन लेकर आती, पिताजी बच्चों और मोहन के साथ स्वयं भी खाते और बच्चों को भी खिलाते। अब घर का माहौल पूरी तरह बदल गया था ।
एक दिन मोहन बोला , पिताजी...! क्या बात है ! आजकल काका के घर नहीं जा रहे हो ...? नहीं बेटा ! अब तो अपना घर ही स्वर्ग लगता है ... !आज सभी में तो नहीं, लेकिन अधिकांश परिवारों के बुजुर्गों की यही कहानी है . बहुधा आस पास के बगीचों में , बस अड्डे पर , नजदीकी रेल्वे स्टेशन पर परिवार से तिरस्कृत भरे पूरे परिवार में एकाकी जीवन बिताते हुए ऐसे कई बुजुर्ग देखने को मिल जाएंगे I
आप भी कभी न कभी अवश्य बूढ़े होंगे l आज नहीं तो कुछ वर्षों बाद होंगे . जीवन का सबसे बड़ा संकट है बुढ़ापा ! घर के बुजुर्ग ऐसे बूढ़े वृक्ष हैं , जो बेशक फल न देते हों पर छाँव तो देते ही हैं !अपना बुढापा खुशहाल बनाने के लिए बुजुर्गों को अकेलापन महसूस न होने दीजिये , उनका सम्मान भले ही न कर पाएँ , पर उन्हें तिरस्कृत मत कीजिये . उनका खयाल रखिये।
*👉शिक्षा :-*
ध्यान रखियेगा की आपके बच्चे भी आपसे ही सीखेंगे अब ये आपके ऊपर निर्भर है कि आप उन्हें क्या सिखाना पसन्द करेंगे...I
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।।*
*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! मोर की शिकायत !!*
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एक बार एक मोर था जो बहुत सुन्दर था, उसके पंख बेहद खूबसूरत थे। एक दिन खूब झम–झम बारिश हुई और मोर नाचने लगा। नाचते हुए वह अपनी खूबसूरती को निहार रहा था, पर अचानक उसका ध्यान उसकी आवाज पर गया, जो कि बेहद बेसुरा और कठोर था। इस बात का एहसास होते ही वह बेहद उदास हो गया और उसके आंखों में आंसू आ गएं। तभी अचानक, उसे एक कोयल गाती हुए सुनाई दी।
कोयल की मधुर आवाज को सुनकर, मोर को उसकी कमी एक बार फिर एहसास हुआ। वह सोचने लगा कि भगवान ने उसे सुंदरता तो दी पर बेसुरा क्यों बनाया। तभी एक देवी प्रकट हुई और उन्होंने मोर से पूछा “मोर, तुम क्यों उदास हो?”
मोर ने देवी से अपनी कठोर आवाज के बारे में शिकायत की और उनसे पूछा, “कोयल की आवाज इतनी मीठी है पर मेरी क्यों नहीं? इसलिए मैं दुखी हूँ।
अब मोर की बात सुनकर, देवी ने समझाया, “भगवान के द्वारा सभी का हिस्सा निर्धारित है, हर जीव अपने तरीके से खास होता है। भगवान ने उन्हें अलग–अलग बनाया है और वे एक निश्चित काम के लिए हैं। उन्होंने मोर को सुंदरता दी, शेर को ताकत और कोयल को मीठी आवाज! हमें भगवान के दिए इन उपहारों का सम्मान करना चाहिए और जितना है उतने में ही खुश रहना चाहिए।”
देवी की बातों को सुनकर मोर समझ गया कि दूसरों से तुलना नहीं करनी चाहिए बल्कि खुद के हुनर की सराहना करनी चाहिए और उसे और निखारना चाहिए। मोर उस दिन समझा कि हर व्यक्ति किसी न किसी तरह से यूनिक होता है।
*शिक्षा:-*
खुद को स्वीकार करना ही खुशी का पहला कदम है। जो कुछ भी आपके पास नहीं है उसके लिए दुखी होने के बजाय, आपके पास जो है उसे स्वीकार करें।
*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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WHAT A BEAUTY
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भूख से बचने के लिए बिल्ली योजना बनाने लगी। तभी उसके दिमाग में कुछ आया और वो एक टेबल पर उल्टी लेट गई। उसने सभी चूहों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वो मर चुकी है।
सारे चूहे बिल्ली को ऐसे लेटा हुआ अपने बिल से ही देख रहे थे। उन्हें पता था कि बिल्ली बहुत चालाक है, इसलिए उनमें से कोई भी चूहा अपने बिल से बाहर नहीं आया।
बिल्ली और चूहों की कहानी|
Chuha Billi Ki Kahani
एक बार एक बिल्ली थी, वो बहुत ही चालाक और चौकस थी और उसकी इसी चालाकी और चौकसी को देखकर चूहे भी सावधान हो गये थे और अब चूहे बिल्ली के हाथ नहीं आ रहे थे।
एक समय ऐसा आया कि बिल्ली भूख के मारे तड़पने लगी। एक भी चूहा उसके हाथ नहीं आता था, क्योंकि वो उसकी आहट सुनते ही तेज़ी से अपने बिल में छुप जाते थे।
एक प्रकार की ऐसी कहानियां हैं जिसे हम हिंदी में नैतिक कहानियां कहते हैं जिसमें सभी कहानियों के मुकाबले हमें बहुत ज्यादा सीख मिलती है। बहुत सारे नैतिक प्रेरणादायक कहानियां या तो जिसे हम मोरल स्टोरी इन हिंदी के नाम से जानते हैं वह सभी बच्चों के लिए बेहद से ज्यादा फायदेमंद साबित होते हैं क्योंकि आजकल के मोबाइल का हाल है बहुत ज्यादा सीख सिखाती है और हमारे बच्चे बहुत ज्यादा मोरल कहानियां पढ़ने के शौकीन होते हैं।
Raipur
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