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29/07/2018

एक रिपोर्ट से सामने आई पुलिस मुख्यालय की "गुटबंदी"
एडीजी के अधूरे रिपोर्ट को वायरल कर "सरकार" पर निशाना
बिहार पुलिस मुख्यालय में नही है "आल इज वेल"

बिहार के पुलिस मुख्यालय में नही है "आल इज वेल" । बिहार पुलिस के एक एडीजी के कारण महकमे की ही नही सरकार की भी किरकिरी हो गई।दरअसल सोशल मीडिया पर एडीजी सीआईडी की एक रिपोर्ट के आधार पर यह खबर वायरल की गई कि एडीजी के रिपोर्ट को दरकिनार कर कजरा इनकाउंटर में शामिल पुलिस कर्मियों का नाम गैलेंट्री के लिए भेज दिया गया।इस टीम में पटना एसएसपी मनु महाराज भी थे। टार्गेटेड मनु महाराज थे जबकि गैलेंट्री के लिए अनुसंशा में मनु महाराज की कोई भूमिका तकनीकी तौर पर नही थी और न हो सकती है। एडीजी सीआईडी की रिपोर्ट का हवाला देकर एक साथ पुलिस महकमे में अन्य विंग मसलन स्पेशल ब्रांच ,जिला पुलिस सभी की रिपोर्ट को झुठला दिया गया। आखिर क्या है पूरा माजरा यह हम आपको समझाते है।..खबर एडीजी सीआईडी के रिपोर्ट के आधार पर लिखी गई है।रिपोर्ट सितंबर 2017 की है जबकि मुझे जो जानकारी है गृह विभाग को यह रिपोर्ट दिसंबर 2017 में भेजी गई है पुलिस मुख्यालय की तरफ से। ..गृह विभाग से गैलेंट्री की कोई भी सिफारिश भेजने के पहले डीजीपी की अध्यछता वाली बोर्ड द्वारा समीक्षा की जाती है।जैसा कि इस मामले में भी हुआ होगा।इस बोर्ड में आईजी मुख्यालय, एडीजी मुख्यालय, एडीजी सीआईडी,एडीजी स्पेशल ब्रांच ,आईजी ऑपरेशन होते है।.इस मामले में आईजी मुख्यालय के पास एक गुमनाम पत्र आया था जिसमे इस मुठभेड़ को लेकर कई सवाल किए गए थे।यह एक बेनामी पत्र था। चूंकि इस पत्र के पहले सीआईडी,स्पेशल ब्रांच और आईजी भागलपुर की रिपोर्ट आ गई थी इसलिए उपरोक्त पत्र के आलोक में फिर से जवाब मांगा गया।..एडीजी ने जो शंका जताई उसके मद्देनजर डीआईजी मुंगेर से फिर रिपोर्ट मांगी गई थी।डीआईजी मुंगेर ने फिर अपनी रिपोर्ट दी और इन घटना का समर्थन किया।जिसके बाद मुख्यालय में बोर्ड ने गृह विभाग को अनुसंशा की...गैलेंट्री एसोसिएशन से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार बिना बोर्ड में सभी सदस्यों के साइन के बिना फाइल गृह विभाग को नही जाती।यानी कि फाइल पर एडीजी सीआईडी की भी सहमति होगी।..एक और तकनीकी बात है इस घटना को गैलेंट्री के लिए भेजने की तो इस मामले में पटना के एसएसपी की कोई भूमिका है यह तकनीकी तौर पर संभव नही है।चूंकि यह मामला कजरा थाना ,जिला लखीसराय की है।एफआईआर वहां हुई थी।लखीसराय एसपी को लगा कि यह मामला गैलेंट्री के लायक है तब उन्होंने इसकी अनुसंशा की होगी।डीआईजी मुंगेर ने जांच की होगी।हाँ चूंकि पटना की टीम इसमे शामिल थी इसलिए पटना एसएसपी से टीम में शामिल पुलिस कर्मियों के नाम मांगे गए होंगे। सभी का बयान हुआ होगा।....डीआईजी के यहाँ से मामला आईजी भागलपुर के पास गया होगा आईजी ने भी जांच कर अपनी अनुसंशा पुलिस मुख्यालय को भेजी ।...मुख्यालय में आने के बाद मामले की जांच के लिए सीआईडी और स्पेशल ब्रांच की रिपोर्ट कराई जाती है।चूंकि जहां घटना हुई थी वहां सीआरपीएफ की तैनाती थी इसलिए सीआरपीएफ की रिपोर्ट भी मांगी गई होगी।साथ ही टीम में शामिल सभी पाकिस कर्मियों की इंटीग्रिटी जांच भी होती है।सभी रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद ही फाइल स्क्रीनिंग कमिटी के पास जाती है।...कॉन्स्टेबल दिलीप चौधरी के बारे जहां तक सवाल है मुझे जो जानकारी है बाढ़ के लदमा में अनंत सिंह के घर पर हुए मुठभेड़ की घटना पर गैलेंट्री की अनुशंसा की फाइल 2015 में तत्कालीन जोनल आईजी पटना कुंदन कृष्णन के पास गई थी।तब आईजी ने दिलीप चौधरी के बारे काफी निगेटिव टिप्पणी की थी जिस कारण इस बार भी दिलीप का नाम नही भेजा गया था। ...लखीसराय के कजरा में जहां से दिल्ली से अपहृत दोनो भाइयो को बरामद किया गया था वह अत्यंत नक्सल प्रभावित इलाका है।2010 में कजरा में पुलिस दल पर नक्सलियों ने हमला किया था एक सब इंस्पेक्टर सहित कई पुलिस कर्मी मारे गए थे और पुलिस के दर्जनों हथियार लूट लिए गए गए। वहां यह ऑपरेशन रात के अंधेरे में हुआ था। और हां जब पटना में दोनो भाइयो को लाया गया था तो सारी आपबीती दोनो ने खुद सुनाई थी रोते हुए।

क्या थी वायरल खबर
(एक वेबसाइट से साभार)
दरअसल मामला दिल्ली के दो मार्बल व्यवसायियों के अपहरण से जुड़ा है.21अक्टूबर2016को दिल्ली के दो मार्बल व्यवसायी सुरेश चंद्र शर्मा और कपिलदेव शर्मा को कुछ लोगों ने झांसा देकर पटना बुलाया. पटना एयरपोर्ट पर उतरते ही दोनों व्यवसायियों का अपहरण कर लिया गया. अपहर्ताओं ने फोन पर उनके परिजनों से संपर्क साधा और करोडो रूपये की फिरौती मांगी. दोनों के परिजनों ने पटना के एयरपोर्ट थाने में22अक्टूबर2016को पटना के एयरपोर्ट थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी. पटना पुलिस ने कहा कि मार्बल कारोबारियों का अपहरण माओवादियों ने किया है. पुलिस की कहानी के मुताबिक अपहर्ताओं की खोज मेंSSPमनु महाराज के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों का बड़ा जत्था लखीसराय गया. 25 अक्टूबर, 2016 की देर रात लखीसराय के कजरा थाना क्षेत्र के महुआ कोल पहाड़ी पर पुलिसकर्मियों का अपहर्ताओं से भारी मुठभेड़ हुआ. मनु महाराज ने खुदAK-47से गोलियां चलायीं और तब जाकर दोनों अपहृत कारोबारियों को मुक्त करा लिया गया. पटना केSSPकी इसी बहादुरी से प्रसन्न होकर राज्य सरकार ने मनु महाराज समेत कुल सात पुलिसकर्मियों को गैलेंट्री अवार्ड देने की अनुशंसा केंद्र सरकार से कर दी है. इसी महीने राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को अपनी अनुशंसा भेजी है.
CIDकेADGने खोल दी थी मुठभेड़ की पोल
अब वीरता का असली किस्सा सुनिये. एनकाउंटर की जिस पुलिसिया कहानी पर राज्य सरकार के गृह विभाग ने मनु महाराज समेत सात पुलिस अधिकारियों को गैलेंट्री अवार्ड यानि वीरता पदक की अनुशंसा की है, उसकी हकीकत बिहार पुलिस के हीCIDकी रिपोर्ट से ही जान लीजिये. दरअसल, इस मुठभेड़ के बाद बिहार पुलिस के आई जी (हेडक्वार्टर) नेCIDको पत्र लिखकर पूछा कि क्या इस एनकाउंटर के आधार पर मनु महाराज समेत दूसरे पुलिसकर्मियों को वीरता पदक दिया जा सकता है. जवाब मेंCIDकेADGने जो रिपोर्ट भेजी उससे पूरे एनकाउंटर की पोल ही खुल गयी.

ADGकी रिपोर्ट में चौकाने वाले तथ्य

बिहार पुलिस कीCIDकेADGने अपनी चार पन्नों की रिपोर्ट में पूरे मुठभेड़ को संदिग्ध करार दिया है. इस रिपोर्ट में एनकाउंटर की पूरी कहानी को अविश्वसनीय करार दिया है. देखिये क्या कहाADGविनय कुमार ने अपनी रिपोर्ट में

1.SSPमनु महाराज और उनके सहयोगिय़ों ने अपराधियों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलायीं लेकिन एक भी खोखा बरामद नहीं हुआ.

2.SSPने जिसAK-47से गोलियां चलायीं उनकी जांच फोरेंसिक लैब में करायी ही नहीं गई. सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि मुठभेड़ के बाद हथियार की जांच फोरेंसिक लैब में कराना है. पुलिस ने अपने ही सार्जेंट मेजर से आर्म्स की जांच करा कर सब ठीक होने का रिपोर्ट ले लिया.

3.ADGकी रिपोर्ट के मुताबिक अपहर्ता अपहरण के ठीक बाद से ही व्यवसायियों के परिजनों से संपर्क में थे. अपहृत व्यवसायियों के परिजनों से मोबाइल फोन पर लगातार फिरौती मांगी जा रही थी. पटनाSSPने मुठभेड़ कर अपहर्ताओं को छुड़ाने और अपराधियों को पकड़ने का दावा किया. लेकिन, अपहर्ताओं के पास से कोई मोबाइल बरामद नहीं हुआ.ADGके मुताबिक मोबाइल बरामद नहीं होने अविश्वसनीय है

07/06/2018
जनसंघी हुआ मुगलसराय स्टेशन,नया नाम पडा पंडीत दीनदयाल जंक्शन फिर रेल मंत्री और मंत्रालय बदल दें बख्तियारपुर जंक्शन का भी ...
05/06/2018

जनसंघी हुआ मुगलसराय स्टेशन,नया नाम पडा पंडीत दीनदयाल जंक्शन
फिर रेल मंत्री और मंत्रालय बदल दें बख्तियारपुर जंक्शन का भी नाम
नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने वाला था शासक बख्तियार खिलजी
उसी मुग़ल शासक के नाम पर मेन लाइन में है बख्तियारपुर जंक्शन

विनायक विजेता-
मंगलवार से ऐतिहासिक और कई मायनों में महत्वपूर्ण मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलकर पं. दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया। रेल मंत्रालय ने इससे संबंधित अधिसुचना भी जारी कर दी है। इसके साथ ही देश में प्रथम इस जंक्शन को जनसंघी जंक्शन होने का सौभागय भी प्राप्त हो गया। 1951 में अखिल भारतीय जनसंघ से जुडे बडे नेता पंडीत दीनदयाल उपाध्याय की 11 फरवरी 1968 को रेल यात्राा के दौरान मंगलसराय स्टेशन के पास ही चलती ट्रेन में हत्या कर दी गई थी। मुगलसराय जंक्शन का नामकरण और इसका शुभारंभ उस वक्त भारत में पैर पसार रही ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1862 में तब किया था जब यह विलायती कंपनी हावडा और दिल्ली को रेल मार्ग से जोड रही थी। उस वक्त भारत में अंतिम मुगल शासक का दौर चल रहा था। अंग्रेजों ने मुगलों और उसके शासकों को खुश करने के लिए ही देश के कई स्टेशनों का नाम मुगलों और मुसलमान विदेशी शासकों के नाम पर रखा। गौरतलब है कि भारत को पराधीन बनाने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी ने ही सर्वप्रथम 16 अप्रैल 1853 को मुंबई और ठाणे के बीच 34 किलोमीटर की दूरी की पहली रेल सेवा शुरु की थी इसके पूर्व भारत में रेल सेवा नहीं थी तो जाहिर है कि उस वक्त जितने स्टेशनों का नामकरण हुआ उसका नाम अंग्रेजा ने ही रखा। इसी तरह का एक स्टेशन मुगलसराय-मोकामा वाया पटना के बीच का बख्तियारपुर जंक्शन है। इस जंक्शन से होकर ही ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व वाले स्थान नालंदा और राजगृह जाने का रेल मार्ग है। तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने 1199 में भारत पर आक्रमण कर कई प्रदेशो पर कब्जा कर लिया। इसी क्रम में तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। कहा जाता है कि विश्व विद्यालय में इतनी पुस्तकें थी की पूरे तीन महीने तक यहां के पुस्तकालय में आग धधकती रही। उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले। खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था।
इतिहासकार विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्व विद्यालय को जलाने के पीछे जो वजह बताते हैं उसके अनुसार एक समय बख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया। उसके हकीमों ने इसका काफी उपचार किया पर कोई फायदा नहीं हुआ। तब उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से उपचार कराने की सलाह दी गई। उसने आचार्य राहुल को बुलवा लिया तथा इलाज से पहले शर्त लगा दी की वह किसी हिंदुस्तानी दवाई का सेवन नहीं करेगा। उसके बाद भी उसने कहा कि अगर वह ठीक नहीं हुआ तो आचार्य की हत्या करवा देगा। बख्तियार खिलजी ने 1199 में आग नालंदा विश्व विद्यालय में आग लगवा दी थी। उसका पूरा नाम इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी था। बिहार का वह मुगल शासक था। अगले दिन आचार्य उसके पास कुरान लेकर गए और कहा कि कुरान की पृष्ठ संख्या इतने से इतने तक पढिए ठीक हो जाएंगे। उसने पढ़ा और ठीक हो गया। उसको खुशी नहीं हुई उसको बहुत गुस्सा आया कि उसके हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है। बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले उसने 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दी। वहां इतनी पुस्तकेंं थीं कि आग लगी भी तो तीन माह तक पुस्तकेंं जलती रहीं। उसने हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले। खिलजी के ठीक होने के जो वजह बताई जाती है वह यह है कि वैद्यराज राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था। वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज चाट गया और ठीक हो गया। उसने इस एहसान का बदला नालंदा को जलाकर दिया। अब सवाल यह उठता है कि जब मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर कर पंडीत दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन किया जा सकता है तो विश्व के सबसे प्राचीन और बडे विश्वविद्यालय को जलाकर राख कर देने वाले एक मुगलशासक के नाम पर बने बख्तियारपुर जंक्शन का नाम गौतम बुद्ध या भगवान महावीर जंक्शन कयों नहीं किया जा सकता।

दस लाख का इनाम भी नहीं आया सीबीआई के कामबरमेश्वर मुखिया की हत्या के हुए आज छह वर्ष पूरेअबतक नहीं लग पाया उनके कातिलों का...
01/06/2018

दस लाख का इनाम भी नहीं आया सीबीआई के काम
बरमेश्वर मुखिया की हत्या के हुए आज छह वर्ष पूरे
अबतक नहीं लग पाया उनके कातिलों का सुराग
जुलाई 2013 से ही सीबीआई कर रही है मामले की जांच

पटना/आरा। प्रतिबंधित रणवीर सेना के कथित संस्थापक व राष्ट्रवादी किसान महासंध के अध्यक्ष बरमेश्वर मुखिया की हत्या के आज छह वर्ष पूरे हो गए पर अबतक उनके कातिलों का सुराग नहीं लग सका। यहा तक की लगभग पांच वर्षों से इस मामले की जांच कर रही देश की शीर्ष जांच एजेंसी सीबीआई भी इस मामले में लाचार दिख रही। बरमेश्वर मुखिया की हत्या 1 जून 2012 को उस वक्त कर दी गइ्र थी जब अहले सुबह वह आरा के कतिरा मुहल्ला स्थित अपने आवास से मार्निंग वॉक के लिए निकले थे। हत्या के बाद तत्कालीन डीजीपी के आदेश पर कांड के भंडाफोड़ के लिए शाहाबाद रेंज के तत्कालीन डीआईजी अजिताभ कुमार के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया गया था। तब कांड का अनुसंधानकर्ता गया के तत्कालीन डीएसपी सुनील कुमार को बनाया गया था। डीएसपी सुनील कुमार को 30 दिनों के अंदर रिपोर्ट देना था, इसी बीच डीएसपी का तबादला हो गया था। कांड का नया अनुसंधानकर्ता एसआईटी के इंस्पेक्टर सोने लाल सिंह को बनाया गया था। फिर नवादा थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। जांच के दौरान पुलिस ने आठ आरोपियों के विरुद्ध कोर्ट में आरोप पत्र समर्पित किया था। सीबीआई द्वारा केस का चार्ज लिए जाने के बाद जेल में बंद आरोपियों को एक-एक कर कोर्ट से जमानत मिल गई थी। लेकिन, रंगदारी मांगे जाने का विरोध, संगठन में हथियार को लेकर अंदरूनी विवाद से लेकर भाकपा-माले से वर्चस्व की लड़ाई सहित कई अन्य बिन्दुओं पर तफ्तीश के बाद भी सीबीआई को इस केस में कोई भी महत्वपूर्ण सुराग अबतक हाथ नहीं लग सका है। 70 वर्षीय बरमेश्वर नाथ सिंह उर्फ बरमेश्वर मुखिया मूलरूप से भोजपुर जिले के पवना थाना के खोपिरा गांव के निवासी थे। वे आरा के नवादा थाना के कतिरा-स्टेशन रोड मोहल्ला में रहते थे। एक जून 2012 की सुबह चार बजे वे आवास की गली में टहल रहे थे। इसी दौरान सेना सुप्रीमो मुखिया की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस केस की जांच पहले तत्कालीन डीजीपी अभयानंद के निर्देश पर गठित एसआईटी की टीम कर रही थी। लेकिन, मुखिया समर्थक केस में सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे। इसके बाद राज्य सरकार ने जांच के लिए अनुशंसा भेजी थी। राज्य सरकार की अनुशंसा पर18 जुलाई 2013 से सीबीआई ने इस केस की जांच शुरू की थी। लेकिन, जांच प्रक्रिया के लगभग पांच वर्ष गुजरने के बाद भी सीबीआई इस केस में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है। तीन वर्ष पूर्व सीबीआई ने इश्तेहार के माध्यम से हत्यारों का सुराग देने वाले को दस लाख रुपए इनाम देने की भी घोषणा की पर उसका भी कोई फायदा सीबीआई को नहीं मिल पाया। सीबीआई के आरक्षी अधीक्षक की ओर से इस हत्याकांड का इश्तेहार जारी किया गया। सीबीआई की ओर से कहा गया है कि हत्याकांड की जानकारी देने वाले को दस लाख का इनाम दिया जाएगा और जानकारी देने वाले की पूरी जानकारी गुप्त रखी जाएगी। बरमेश्वर मुखिया हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए सीबीआई अनुसंधान कर रही है, वह भले ही अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पायी हो, लेकिन समय के साथ-साथ केस के अनुसंधानकर्ता लगातार बदलते रहे हैं। करीब तीस से अधिक नरसंहारों के आरोपी रहे चुके स्व बरमेश्वर मुखिया पहली बार पटना में वर्ष 2002 में पकड़े गए थे। तब उन पर पांच लाख रुपए का इनाम भी था। गिरफ्तारी के 7 वर्ष बाद वर्ष 2011 में मुखिया आरा जेल से जमानत पर रिहा हुए थे। इसके बाद वे बिहार के अलग-अलग जिलों में घूम कर किसानों को संगठित करने का भी काम कर रहे थे। इसी दौरान उनकी अचानक गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। जिनमें चंद राजनीतिक रसूखदारों के भी नाम चर्चा में आये थे। तब एसआईटी की टीम ने भी उनसे पूछताछ भी की थी।

संगीनों के साये में चूर हो रहा बालकों का सपना बच्चों के कंधे पर माओवादी रख रहे बन्दुक खबर मंथन डेस्क-नयी दिल्ली/ दुनिया ...
29/05/2018

संगीनों के साये में चूर हो रहा बालकों का सपना
बच्चों के कंधे पर माओवादी रख रहे बन्दुक

खबर मंथन डेस्क-
नयी दिल्ली/ दुनिया भर के माओवादियों का मानना है कि सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। लेकिन शायद माओवादी नेताओं को बंदूक थमाने के लिए पर्याप्त बालिग शूरमा नहीं मिल रहे हैं इसलिए वे अब बच्चों को बंदूक थमाकर सत्ता पाना चाहते हैं। दुर्भाग्य से माओवादी प्रभावित इलाकों में जिन बच्चों को इस उम्र में स्कूल में होना चाहिए था वे माओवादी क्रांतियुद्ध के सैनिक बनकर क्रांतियुद्ध लड़ रहे हैं। खेलने कूदने और पढ़ने लिखने की उम्र में उनमें से कई खूंख्वार और दुस्साहसी बन चुके हैं।
पांच वर्ष पूर्व भी संयुक्त राष्ट्र महासचिव की बच्चे और सशस्त्र संघर्ष पर सुरक्षा परिषद में पेश की गई रपट में कहा गया है कि नक्सली अपने संगठन में बच्चों को भर्ती कर उन्हें माओवाद का पाठ पढ़ा रहे हैं। जनता के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के लिए वे बाल दस्ता और बालसंघम तैयार कर रहे हैं। इसमें कहा गया है कि विशेष रूप से छत्तीसगढ़ और उससे जुड़े राज्यों के कुछ जिलों में नक्सलियों द्वारा बच्चों की भर्ती और उनका इस्तेमाल किए जाने की सूचना प्राप्त हुई है।
इससे पहले भी संयुक्त राष्ट्र संघ की तत्कालीन महासचिव बन की मून ने भारत में लंबे समय से चल रहे माओवादी संघर्ष में बच्चों के इस्तेमाल पर खरी-खरी बात की थी। उन्होंने यहं के माओवादी संघर्घ में बच्चों के इस्तेमाल की ओर दुनिया का ध्यान खींचने की कोशिश की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि माओवादी लड़कों और लकड़कियों को अपनी सेना मे भर्ती कर अपने संघर्ष में उनका उपयोग कर रहे हैं। माओवादी संघर्ष में बाल सैनिकों के इस्तेमाल का मामला जब संयुक्त राष्ट्र संघ में उठा तो भारत की बहुत किरकिरी हुई। यह मामला भले ही सर्वोच्च अंतर्राष्ठ्रीय संस्था में उठता रहा हो लेकिन माओवादी लंबे समय से भारतीय राज्य के खिलाफ अपने युद्ध में बच्चों का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आ रहे हैं। माओवादी पार्टी ने अपने पिछले अवतार पीपुल्स वार ग्रुप के समय भी बच्चों की अलग टुकड़ियां बनाई थीं।उसका नाम बाल संघम रखा गया था। दरअसल 2002 में कई जगह नक्सलियों की ओर से बच्चों की सेना में भर्ती की खबरें छपीं थीं।उस समय छत्तीसगढ़ के तांडा और बाध नदियों के आसपास रहनेवालों ने अपने बच्चों को बाहर भेजना शुरू कर दिया था। उस समय नक्सलियों ने कहा था कि हर परिवार का एक बच्चा उनकी टुकड़ी में शामिल होना चाहिए। उन्हीं दिनों एक खबर भी आई थी कि नक्सली झारखंड के पालामू के जंगलों में लड़कों और लड़कियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। लेकिन आजकल माओवादी प्रभावित हर राज्य में माओवादी बच्चों की भर्तियां कर रहे हैं।उन्होंने बाल सैनिकों की अलग टुकड़ियां बना रखीं हैं।किसी राज्य में उसका नाम बालसंघम है तो किसी राज्य में बाल मंडल।कहीं बालक संघम तो कहीं शिशु संघ। उनमें केवल लड़नेवाले सैनिक ही हों ऐसा नहीं । इन टुकड़ियों में भर्ती किए गए बच्चों का पहले सैद्धांतिक शिक्षा के जरिये ब्रेनवाश किया जाता है जिससे उनमें वर्गशत्रुओं और बुर्जुआ व्यवस्था के प्रति नफरत पैदा हो। इसके बाद उन्हें पुलिस और सशस्त्र बलों की ही नहीं तो अपने मां –बाप और रिश्तेदारों की जासूसी करने की ट्रेनिंग दी जाती है।12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है । अच्छा प्रदर्शन करनेवालों को बाद में बारूदी सुरंगें बिछाने और उन्नत हथियार चलाने का का प्रशिक्षण दिया जाता है। जो लड़के माओवादियों की गुरिल्ला टुकड़ियों में होते हैं जिन्हें दलम कहा जाता है वे सुरक्षा बलों के खिलाफ लड़ते हैं। मानव अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवाली ह्यूमन राइटस् वाच नामक संस्था ने 2008 में –बिइंग न्यूट्रल इज बिगेस्ट क्राइम –नाम से एक रपट तैयार की थी।इसमें विस्तार से बताया गया था कि किस तरह छत्तीसगढ़ में चल रहे माओवादी संघर्ष में बच्चों का इस्तेमाल किया जा रहा है। पशिचम बंगाल में सलवा जुडुम के तर्ज पर बनी –माओवादी दमन सेना ने कुछ वर्ष पूर्व नक्सल प्रभावित इलाकों में पर्चा बांटा था कि वे माओवादी नेता किशन जी की पूजा करते हैं लेकिन किशनजी उनके बच्चों को हत्यारी मशीन बना रहे हैं। कालांतर में किशन जी को आन्ध्रप्रदेश के जंगल में सुरक्षाबलों ने मर गिराया ।
माओवादियों की हमदर्द मानी जानेवाली अरुंधति राय ने माओवादियों के निमंत्रण पर कुछ दिन उनके बीच रहने के बाद जो लंबी रपट लिखी थी उसमें भी माओवादियों द्वारा बच्चों के इस्तेमाल के कई उदाहरण थे।उसमें मंगतू नामक लड़के का जिक्र है जो गुरिल्ला सेनाओं और पास के शहरों के बीच संदेशवाहक का काम करता है। इसके बाद आता है चंदू जो उससे थोड़ा बड़ा होता है।वह माओवादियों की गुरिल्ला सेना का हिस्सा है।चंदू एलएमजी छोड़कर सारे हथियार चलाना जानता है। रपट में कमला नामक लड़की का जिक्र है। वह कंधे पर राइफल और कमर में रिवाल्वर बांधे हुए थी। माओवादियों की पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की हार्ड कोर सदस्य है।वह कई मुठभेड़ों में भाग ले चुकी है। कमला की उम्र केवल सतरह साल है। इसका मतलब है जब वह नक्सलियों की सेना में शामिल हुई होगी तब 12-13 साल रही होगी। अरुधंति राय एक जगह कामरेड माधव से मुलाकात का जिक्र करती हैं जो नौ साल की उम्र में नक्सलियों के साथ शामिल हुआ और आज पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी का कमांडर बन चुका है। ये सभी उदाहरण बताते हैं कि नक्सलियों के लिए बच्चों का युद्ध में इस्तेमाल ,उन्हें हथियारों की ट्रैनिंग देकर गुरिल्ला दलों में शामिल करना बहुत आम बात है। इस पर वे लंबे समय से अमल करते रहे हैं। माओवाद के कुछ विशेषज्ञ कहते हैं माओवादियों की मौजूदा 60 हजार संख्यावाली पीएलजीए नामक गुरिल्ला सेना ऐसे बच्चों,किशोरों और कम उम्र के युवाओं से बनी है। यह बात अलग है कि जो कभी बाल या किशोर थे वे अब युवा बन चुके हैं और बड़े पदों पर हैं। लेकिन ये कम उम्र में ही भर्ती हुए थे। इस बात के प्रमाण नहीं है कि बालिग आदिवासी बड़े पैमाने पर स्वयं माओवादियों की सेना में शामिल हुए हों। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि ये बच्चे माओवादियों की सेना में शामिल कैसे हो जाते हैं। । इसके कई कारण बताए जाते हैं। पहले इस तरह की खबरें आतीं रही हैं कि नक्सलवादी बच्चों को जबरन उठा ले जाते हैं।लेकिन नक्सल मामलों के जानकार भी बताते हैं कि गरीबी भी एक बहुत बड़ा कारण है। माओवादी जिन इलाकों में सक्रिय हैं वे अत्यंत गरीब और पिछडे इलाके हैं।वहां भुखमरी का बोलबाला है।इस पर आदिवासी बच्चे अनपढ़ होते हैं।उनके लिए रोजगार के अवसर कम ही होते हैं। ऐसे में माओवादियों की गुरिल्ला सेना में शामिल होने पर उन्हें कम से कम खाने पीने के लिए पर्याप्त भोजन मिलने लगता है। माओवादी उनकी जरूरतों का पूरा-पूरा लाभ उठाने से नहीं चूकते।
माओवादियों एक और हमदर्द बुद्धिजीवी गौतम नौलखा ने माओवादियों के प्रभुत्ववाले इलाकों का उनके निमंत्रण पर दौरा किया था। अपनी रपट में उन्होंने लिखा है –माओवादी समय –समय पर पर्चे बांटकर लोगों को अपनी सेना में भर्ती करते हैं।ऐसे ही एक पर्चे में बेरोजगार युवक युवतियों को संबोधित करते हुए कहा गया है – आपको वेतन तो नहीं मिलेगा लेकिन जनता सरकार आपके खाने कपड़ों और व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करेगी और आपके परिवार की मदद करेगी। माओवाद के मुद्दे पर अपनी बेबाक राय के कारण जाने जाने वाले प्रोफेसर निर्मलाषु मुखर्जी ने माओवादियों द्वारा की जा रही बच्चों की भर्ती के बारे में बहुत तीखी टिप्पणी की है। वे कहते हैं –ऐसा लगता है कि भारतीय राज्य और माओवादी नेताओं ने मिलकर यह साजिश रची है कि आदिवासियों के बच्चों के एक समूह को सामान्य बचपन न मिल पाए। ये बच्चे कभी स्कूल नहीं गए।उन्होंने कभी जंगल के बाहर की जिंदगी को नहीं जाना।उन्हें कभी भारतीय समाज के बहुलतावादी चरित्र की झलक भी देखने को नहीं मिली,कभी ऐसा हुनर भी सीखने को नहीं मिलाकि वे भागीदार नागरिक बन सकें।उन्हें कभी खुद अपना दिमाग नहीं बनाने दिया गया।वे कुल मिलाकर इतना जानते हैं कि बारूदी सुरंगे कैसे बिछाई जाएं।कैसे राइफल को साफ किया जाए और दागा जाए।कैसे मुठभेड़ की जाए, मारा जाए। वे ही सबसे आगे के मोर्चे पर होते हैं इसलिए पुलिस,ग्रेहाउँड ,सीआरपीएफ और विशेष अभियान सेनाएं उन्हीं की घेराबंदी करती हैं।वही तो घायल होते हैं ,वे ही मारे जाते हैं।

पूर्व मंत्री कामेश्वर पासवान का निधनराजकीय सम्मान के साथ आज होगा अंतिम संस्कारखबर मंथन डेस्कपटना । लंबे समय से बीमार चल ...
28/05/2018

पूर्व मंत्री कामेश्वर पासवान का निधन
राजकीय सम्मान के साथ आज होगा अंतिम संस्कार

खबर मंथन डेस्क
पटना । लंबे समय से बीमार चल रहे जनसंघ से जुड़े रहे पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री कामेश्वर पासवान का निधन सोमवार की सुबह हो गया। कुछ दिनों पूर्व ही वह दिल्ली से इलाज करा कर पटना लौटे थे। वे अपने पीछे वह भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं। विधानसभा और भाजपा कार्यालय में उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद देर शाम खाजेकलां घाट पर उनका आज अंतिम संस्कार किया जायेगा।
उनका निधन पटना सिटी के भीतरी बेगमपुर स्थित आवास पर हुआ। 77 वर्षीय कामेश्वर पासवान लंबे समय से बीमार चल रहे थे। बीते 25 मई को वह गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल से इलाज करा कर लौटे थे। उनके घर में 65 वर्षीया पत्नी सिंहासनी देवी, बेटा राजू पासवान और दो बेटियां गायत्री देवी व पुष्पा कुमारी हैं। उनकी दोनों बेटियों की शादी अभी करनी है। अंतिम दर्शन के लिए उनके पार्थिव शरीर को दिन में 12 बजे विधानसभा लाया गया इसके बाद पार्थिव शरीर को भाजपा कार्यालय ले जाया गया। वहां से खाजेकलां घाट ले जाया जायेगा, जहां अंतिम संस्कार किया जायेगा।
भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे कामेश्वर पासवान का जन्म वर्ष 1941 में हुआ था। वह बिहार में मंत्री रहने के अलावा राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य भी चुने गये थे। वर्ष 1972 में मात्र 31 वर्ष की आयु में वह पहली बार भारतीय जनसंघ के टिकट पर जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। उसके बाद वह वर्ष 1977 में दूसरी बार फिर विधानसभा पहुंचे और वर्ष 1979 तक बिहार सरकार में श्रम मंत्री रह। उसके बाद कामेश्वर पासवान वर्ष 1990-96 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने पर वह नवादा से लोकसभा लड़े और जीत दर्ज की। कामेश्वर पासवान एससी-एसटी आयोग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। पेशे से शिक्षक रहे कामेश्वर पासवान ने मुजफ्फरपुर स्थित लंगट सिंह कॉलेज से स्नातकोत्तर किया था। वह जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में भी सक्रिय थे। कांग्रेस सरकार द्वारा देश में आपातकाल लगाये जाने के बाद वह गिरफ्तार भी किये गये। इस दौरान वह करीब 19 माह तक जेल में भी रहे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्व सांसद कामेश्वर पासवान के निधन पर अपनी गहरी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा है कि वह एक प्रख्यात राजनेता एवं प्रसिद्ध समाजसेवी थ। उनके निधन से राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। मुख्यमंत्री ने स्व. कामेश्वर पासवान के पुत्र से दूरभाष पर बात कर उन्हें सांत्वना दी। कामेश्वर पासवान का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जायेगा। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की चिर शांति तथा उनके परिजनों, अनुयायियों एवं प्रशंसकों को दु:ख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है। वहीं, उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी पूर्व मंत्री, सांसद तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता कामेश्वर पासवान के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति तथा शोक संतप्त परिजनों, शुभचिंतकों को धैर्य प्रदान करने की प्रार्थना की है।

मेड उपलब्ध कराने के नाम पर ठगी मास्टरमाइंड सहित 02 अभियुक्त गिरफ्तारयूपी एसटीएफ को फिर मिली सफलता दोनों आरोपित हैं बिहार...
27/05/2018

मेड उपलब्ध कराने के नाम पर ठगी
मास्टरमाइंड सहित 02 अभियुक्त गिरफ्तार
यूपी एसटीएफ को फिर मिली सफलता
दोनों आरोपित हैं बिहार के रहने वाले

खबर मंथन ब्यूरो-
लखनऊ/ एसटीएफ उ0प्र0 को साइबर अपराधियों द्वारा मेड उपलब्ध कराने के नाम पर फर्जी अकाउंट में फर्जी तरीके से धन जमा कराकर ठगी करने वाले गैंग के मास्टरमाइंड सहित दो अभियुक्तों कोगिरफ्तार करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई।

गिरफ्तार अभियुक्त का विवरणः-
1- जलाल शेख पुत्र अअब्दुल कयूम निवासी ए-3/17 बी मोहन गार्डन दिल्ली-59 स्थायी पता-गाँव बाका पोस्ट केवटी रनवे, थाना विस्फी ब्लाक जिला मधुवनी बिहार। उम्र-28 वर्ष
2- हीरा सााहनी पुत्र स्व0 घूरन साहनी निवासी 9वीं गली बायरौला गाँव, निकट मछली मार्केट
दिल्ली-59 स्थायी पता- गाँव वीर सहाय पोस्ट पंडौल, थाना सकड़ी जिला मधुबनी, बिहार। उम्र-27 वर्ष

बरामदगी का विवरण-
1- मोबाइल फोन- 04 अदद
2- मेड एग्रीमेंट दस्तावेज- 15 वर्क
3- विभिन्न मेड (घरेलू सहायिकाओं) की फोटो-06
4- चौक -03 अदद ्
5- आधार कार्ड- 03 अदद

सुभाषनी सिहं निवासी न्यू हैदराबाद, थाना महानगर लखनऊ द्वारा दिनाँक 18-05-2018 को थानामहानगर लखनऊ में मु0अ0स ं0 198/18 धारा 420/406/467/471 भादवि पंजीकृत कराया था। उनके द्वारा उल्लेख किया गया कि अजीत प्लेसमेंट सर्विस सेन्टर नामक संस्था द्वारा मेड उपलब्ध करान े के नाम पर लगभग 50000/- रुपये की ठगी की गयी है। इस अभियोग में संलिप्त अपराधियों की गिरफ्तारी हेतु वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एस0टी0एफ0 लखनऊ उ0प्र0 श्री अभिष ेक सिहं द्वारा अपर पुलिस अधीक्षक श्री त्रिवेणी सिहं को निर्द ेशित किया गया।
अपर पुलिस अधीक्षक क े निर्देशन में साइबर टीम द्वारा मुकदमा उपरोक्त के सम्बन्ध में सूचना संकलन किया जा रहा था। संकलित सूचना क े आधार पर विश्वसनीय स्रोतो के माध्यम से ज्ञात हुआ कि थाना महानगर जनपद लखनऊ पर पंजीकृत उपरोक्त अभियोग से सम्बन्धित अभियुक्तगण मेड उपलब्ध करान े बादशाह नगर रेलवे स्ट ेशन महानगर लखनऊ आये हुए हैं। इस सूचना को विकसित करत े हुए
साइबर क्राइम की टीम द्वारा मुखबिर द्वारा बताये गये स्थान पर पहुँचकर घेराबन्दी करके अभियुक्तगण को बादशाह नगर रेलवे स्ट ेशन महानगर लखनऊ से समय लगभग 1700 बज े गिरफ्तार कर लिया गया।जिनसे उपरोक्त बरामदगी हुई। पूछताछ पर अभियुक्तगण द्वारा बताया गया कि हम लोग सुलेखा आदि वेबसाइटों पर अजीत प्लेसमेंट एजेन्सी, उर्मिला प्लेसमेंट एज ेन्सी आदि फर्जी नाम से अपनी प्लेसमेंट एज ेंसी का रजिस्ट्रेशन कराते हैं जिसके लिए फनपबामत, श्रनेजक्पंस, सुलेखा आदि कम्पनियों को लगभग 12000/- रुपया प्रति तीन माह बतौर रजिस्ट्रेशन फीस भुगतान करते हैं। तथा 100 रुपये से लेकर 500 रुपये में
फर्जी आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड बनवात े हैं और इसी फर्जी आधार कार्ड का प्रयोग उपरोक्त वेबसाईट्स पर रजिस्ट्रेशन क े लिए करत े हैं जिसमें फोटो हमारी खुद की होती है और नाम व पता किसी अन्य व्यक्ति का होता है। इसके बाद ऐसे व्यक्तियों को प्लेसमेंट एज ेंसी की ओर से कॉल करते हैं जिन्होंने उक्त वेबसाइट्स पर मेड (घर ेलू सहायिका) के लिए अप्लाई किया हुआ है। फनपबामत, श्रनेज क्पंस व सूलेखा
आदि वेबसाइटों पर रजिस्ट्रेशन का कार्य करने वाले कर्मचारी भी इसमें संलिप्त होते हैं। हम अपनी एजेंसी की ओर से कॉल करक े मेड (घरेलू सहायिकाओं) की आवश्यकता वाले ग्राहकों को बताते हैं कि हमारे पास
तीन तरह की मेड (घरेलू सहायिकायें) हैं। 1-अनट्रेंड मेड-3500 रुपये प्रतिमाह, 2-सेमी ट्रेडं- 5000 रुपये प्रतिमाह, 3-फुली ट्रेंड-7000 रुपये प्रतिमाह है तथा हमारी कम्पनी, एजेंसी की फीस 15000/- प्रति मेड
है। कस्टमर के त ैयार हो जान े पर हम कस्टमर से 15000/- रुपये बतौर एजेंसी फीस फर्जी बैंक अकाउंट में व मेड की 6 महीने की पेमेंट एडवांस क ैश में लेते हैं। कस्टमर से धन लेने क े बाद 1-2 दिन कार्य
करके मेड को वापस बुला लेते हैं तथा अपन े मोबाइल नम्बर भी बन्द कर लेते हैं। मेड (घरेलू सहायिका) क े कार्य के लिए महिलायें पश्चिम बंगाल, झारखण्ड व असम से खरीद कर लाते है ं तथा इन्हें रहने क े लिए
कमरा, खाना व अन्य खर्चे प्रदान करत े हैं। महिलाओं को (पश्चिम बंगाल, झारखण्ड व असम) राज्यों से बाहर किसी अन्य राज्य में भेजना प्रतिबंधित है। इस गैंग द्वारा उत्तर प्रद ेश, दिल्ली, श्रीनगर, पंजाब, राजस्थान आदि प्रदेशों मे ं लगभग हजारों लोगांेक े साथ फर्जीवाड़ा किया है। इस गैंग क े सदस्य अपनी पत्नी के नाम पर घर किराये पर लेते हैं तथा रेन्ट एग्रीमेन्ट बना कर उस पर नया सिम, मोबाइल नम्बर प्राप्त कर नया बैंक खाता खुलवा लेते हैं और दो-तीन महीने बाद घर बदल द ेते हैं। इस प्रकार यह गैंग जनता क े साथ धोखाधड़ी करक े फर्जी अकाउंट में धन प्राप्त करता है। गिरफ्तार अभियुक्तगण को थाना महानगर, लखनऊ में दाखिल कर अग्रिम विधिक कार्यवाही
स्थानीय पुलिस द्वारा की जा रही है।

शराबबंदी वाले बिहार में शराब की इतनी सारी बोतलेशराबबंदी वाले बिहार में शराब की इतनी सारी बोतले....जहां देखो शराब की बोतल...
27/05/2018

शराबबंदी वाले बिहार में शराब की इतनी सारी बोतले

शराबबंदी वाले बिहार में शराब की इतनी सारी बोतले....जहां देखो शराब की बोतल.नशे के इंजेक्शन..ये तस्वीर बिहार बार काउंसिल बिल्डिंग के छत की है।हैरान कर देने वाली तस्वीरे....हाईकोर्ट के एक बड़े वकील साहब से जब इन खाली बोतलों के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि ये शराबबंदी के पहले की बोतले होंगी लेकिन अगर वकील साहब की बात को मान भी ले तो क्या दो साल से छत की सफाई नही हुई है? क्या दो साल से बार काउंसिल की छत पर कोई गया ही नही है? सवाल तो उठता है..

-अमिताभ ओझा के वाल से

‘नकली को मिल रहा फूल, असली फांक रहा दर-दर धूल’माल महाराज का और मिर्जा खेल रहें हैं होलीपटना जिले के संपतचक के अंचलाधिकार...
27/05/2018

‘नकली को मिल रहा फूल, असली फांक रहा दर-दर धूल’
माल महाराज का और मिर्जा खेल रहें हैं होली
पटना जिले के संपतचक के अंचलाधिकारी की कारस्तानी
कोलकाता से बना जमीन का फर्जी डीड को दिया सही करार
जमीन का वास्तविक मालिक लगा रहा हर जगह गुहार

खबर मंथन डेस्क-
पटना। भले ही राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार अधिकारियों को संवेदनशील मामले में पारदर्शिता के साथ काम करने की सलाह देते आए हो पर एक ताजा मामले ने यह साफ जाहिर कर दिया है की ‘चांदी की जूती की चमक’ आगे पारदर्शिता, इमानदारी और न्याय बौना बन रहा है। यह ताजा पर काफी संवेदनशील और रोचक मामला है संपतचक अंचल के अंतर्गत आने वाले रामकृष्णा नगर थाना के शेखपुरा गांव की। इस गांव के निवासी अभय कुमार सिंह, पिता-अखिलेश प्रसाद की इस गावं में 36 डी. (12 कठ्ठा) पुस्तैनी जमीन है। बीते वर्ष 28 जनवरी को अभय सिंह के पास बेला, पुनपुन ग्राम निवासी जयनारायण सिंह नामक व्यक्ति पहुंचे और उन्होंने अभय सिंह को बताया कि उन्होंने आशीष कुमार, पिता सुनील सिंह ग्राम-सिकन्दरपुर, थाना मनेर से मकान बनाने लायक एक कठ्ठा जमीन खरीदने के लिए बात किया है तथा बाकी जमीन जिसका थाना नंबर-111, खाता नंबर-8 ण्वं प्लॉट नंबर 505 है की बिक्री के लिए कोलकाता से बना पावर ऑफ एटार्नी भी आशीष कुमार के पास है। इतना सुनते ही जमीन के वास्तविक मालिक अभय सिंह के पैरो तले जमीन खिसक गई क्योंकि उन्हों न तो अपनी जमीन बेचने के लिए किसी को पावर ऑफ एटार्नी दी थी न ही किसी से बेचन की बात की थी। इसके बाद अभय सिंह ने तत्काल इसकी लिखित शिकायत पटना के एसएसपी से की। एसएसपी ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए रामकृष्ण नगर थानाध्यक्ष को पूरे मामले की तहकीकात का आदेश दिया। एसएसपी के आदेश के आलोक में थानाध्यक्ष ने अपने पत्रांक 429/17 दिनांक 10 मार्च 2017 के द्वारा एडिशनल रजिस्ट्रार आफ आसु, कोलकाता को डीड की कॉपी भेजते हुए लिखा गया कि ‘आवेदक अभय कुमार द्वारा यह सुुचित किया गया है इनकी जमीन को डीड नंबर-7659/16, 7654/16 एवं 1858/16 के द्वारा फर्जी तरीके से आशीष कुमार पिता सुनील कुमार सिंह के द्वारा जेनरल पॉवर ऑफ एटार्नी करा लिया है। जिसका सत्यापन आपके कार्यालय से आवश्यक है।’ थाना प्रभारी के पत्र के आलोक में कोलकाता के रजिस्ट्रार आसु ने जो पत्र भेजा उसमें यह लिखा गया था कि डीड और वास्तविक कागजात आपस में मेल नहीं खाते। इसके बाद थानाध्यक्ष ने संपतचक के अंचलाधिकारी को पत्र लिखकर उन्हें सारे कागजात भेजते हुए मामले का त्वरित निष्पादन करने का आग्रह किया। पर पूर्व से ही फर्जी अभय सिंह बनकर आशीष कुमार सिंह के नाम से कोलकाता में फर्जी डीड बनाने वाले दोनों जालसाजों के लगातार संपर्क में रहने वाले अंचलाधिकारी ने अपने पत्रांक-443 दिनांक 26 मार्च 2018 को जो पत्र भेजा वह काफी चौकाने वाला है। बिना कोई पडताल किए अंचलाधिकारी ने लिखा कि ‘आशीष कुमार के पक्ष में निष्पादित पॉवर ऑफ अर्टानी सही प्रतीत होता है। एतएव आशीष कुमार को उस जमीन पर कार्य करने की अनुमति दी जाती है।’ इधर जब पीडित अभय सिंह ने छानबीन की तो उन्हें यह जानकारी मिली कि मूलरुप से पीपरा थाना अंतर्गत पारथू गांव निवासी संतोष भारती ने फर्जी रुप से अभय कुमार सिंह के नाम से कोलकाता जाकर यह डीड करा दी। डीड पर भी संतोष भारती की तस्वीर व उसकी अंगुलियों के निशान हैं। डीड पर दिए गए अंगुलियों के निशान और वास्तविक अभय सिंह की अंगुलियों के निशान का मिलान और उसकी जांच फोरेंसिक लैब में कराई जाए तो सरकारी अधिकारी और जालसाजों की मिली भगत का सच सामने आ जाएगा। इस मामले में सबसे रोचक और दिलचस्प एक बात यह भी है है कोलकाता में यह कथित फर्जी डीड (पावर ऑफ एर्टार्नी) 27 दिसम्बर 2016 को बना जिसपर अभय सिंह सिंह के नाम से जो मतदाता पहचान पत्र की कॉपी दी गई है उस पहचान पत्र निर्गत होने की तिथि 5 जनवरी 2017 है। इस सारे मामले से यह साफ जाहिर है कि करोडो रुपये मुल्य की जमीन को हथियाने के लिए जालसाज और दबंग आज भी अधिकारियों से सांठ-गांठ कर उनके संरक्षण में काम कर रहे हैं।

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