श्री #कृष्ण ने #गोवर्धन पर्वत उठा कर तोड़ा देवराज इंद्र का घमंड | #जय #श्री #krishna #shorts #short
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अहिल्या और गोतम ऋषि की कहानी | अहिल्या उद्धार रामायण की कथा | इंद्र देव को श्राप क्यों मिला
अहिल्या की कहानी
अहिल्या उद्धार की कथा
Shri Ram ne kiya अहिल्या ka अहिल्या उद्धार,
indra dev ko shrap kyu mila
इंद्र देव के शरीर पर आंखे kyu है
भक्त प्रहलाद की संपूर्ण कथा | भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार और हिरण्यकशिपु | bhakt prahlad ki kahani
शिव भक्त उपमन्यु की कथा | कैसे महादेव शिव ने नन्हे बालक क्षीरसागर प्रदान किया | Jai Shree Ram
कैसा था प्रभु श्री राम का राज्य और क्या थी उनके राज्य की विशेषताएँ | जय श्री राम |
कैसा था प्रभु श्री राम का राज्य 😳 और क्या थी उनके राज्य की विशेषताएं🔥🔥👇👇
हिन्दू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के रूपक (प्रतीक) के रामराज्य, लोकतन्त्र का परिमार्जित रूप माना जा सकता है।
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भक्त प्रहलाद की संपूर्ण कथा | भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार और हिरण्यकशिपु | bhakt prahlad ki kahani
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भक्त ध्रुव संपूर्ण कथा विष्णु पुराण | ध्रुव तारे की कहानी | ध्रुव कौन था
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Arjun ka rath kaise toota Mahabharat | Arjun ka rath kaise jal gaya | Arjun ka rath do kadam piche धूं-धूं कर जल गया अर्जुन का रथ | जानिए क्या थी वजह | महाभारत युद्ध के पश्चात् अर्जुन का रथ क्यु जल गया था महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन को रथ से उतरने के लिए कहा! इस पर अर्जुन बोले , " हे माधव, हमेशा तो युद्ध के बाद पहले आप उतरते थे रथ से! इस बार मैं क्यों"? तो श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, " इस बार पहले तुम उतरो पार्थ " ! इसके बाद अर्जुन भगवान श्री कृष्ण का आदेश मानकर रथ से उतर गए,! इसके बाद श्री कृष्ण स्वयम रथ से उतरे उनके उतरने के बाद हनुमान जी भी अंतर्ध्यान हो गए ! हनुमान जी के अन्तर्ध्यान होते ही अर्जुन का रथ तेज अग्नि की लपटों से धूं-धूं कर जलने लगा। इस पर अर्जुन ने हैरान होकर श्रीकृष्ण से पूछा, हे माधव, ये क्या हुआ! मेरे रथ की यह हालत कैसे हुई? तब श्री कृष्ण बोले- ‘हे अर्जुन- ये रथ तो भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और मह
उनाकोटी का रहस्य | उनाकोटि की मूर्तियों का राज | कैलाश जाने का रास्ता | Unakoti mandir tripura
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दोस्तो Imagine अगर रावण फिर से जिंदा हो गया ?तो क्या श्री राम हमें फिर से बचाने आएंगे! आइए जानते हैं इस तथ्य के बारे में! दोस्तों जब भगवान श्री राम ने रावण का वध करने के पश्चात रावण के शव को अंतिम संस्कार करने के लिए विभीषण को सौंप दिया था! तब ऐसा माना जाता है कि विभीषण जी अपने राजपाट को संभालने में इतना व्यस्त हो गए कि वह रावण का अंतिम संस्कार करना भूल गए ! इसके बाद राक्षसी कबीले के लोग रावण के शव को उसी गुफा में ले गए जहां पर रावण तपस्या किया करता था! उन्होंने रावण के शव पर विभिन्न प्रकार के प्रयोग किए जड़ी बूटियां लगायी लेकिन रावण फिर भी जिंदा नहीं हुआ तो इसलिए उन्होंने रावण को मम्मी बनाने का फैसला किया और उन्होंने उसके शरीर पर एक विशेष प्रकार का लेप लगाया और उसे एक ताबूत में बंद कर दिया जो कि 18 फीट लम्बा और 5 फीट चौड़ा था! एसा माना जाता है कि रावण का शव इसी ताबूत में है और इसके
तुलसीदास जी का जीवन परिचय | तुलसीदास की कहानी और कथा
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कलियुग में नहीं होगी भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की पूजा इस धरती पर अब तक भगवान विष्णु के नौ अवतारों ने जन्म लिया | पुराणों में भगवान विष्णु के दसवें और आखिरी अवतार यानी कल्कि अवतार का जिक्र किया गया है | कल्कि अवतार के बारे में एक विशेष वर्णन किया गया है कि कलयुग में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की पूजा नहीं होगी | तो आइये दोस्तों जानते हैं कि आखिर क्यूँ नहीं होगी कलयुग में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की पूजा? कलयुग में जब पाप अपने चरम सीमा पर होगा और मनुष्य एक दूसरे के शत्रु बन जाएंगे| चारों तरफ अधर्म ही अधर्म होगा तब दुनिया का सबसे बड़ा राक्षस कली पुरुष अपने पूर्ण रूप में आ जायेगा! तभी भगवान विष्णु अपने कल्कि रूप में सफेद घोड़े पर सवार होकर आएंगे परंतु कली राक्षस के वश में होने के कारण लोग भगवान विष्णु को नहीं पहचान पाएंगे और कलयुग में सभी लोग कली पुरुष को ही अपना भ
नवरात्रों में सभी नौ माता रानियों के दर्शन, उन्हें चढ़ने वाला भोग व रंग की चुनरी एवं माता की कृपा
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
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नवरात्रों में सभी नौ माता रानियों के दर्शन, उन्हें चढ़ने वाला भोग व रंग की चुनरी एवं माता की कृपा
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
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आखिर कैसे एक साधारण बाण से हुई भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु, बर्बरीक और वानर राज बाली से जुड़ा है कारण
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matangeshwar mandir khajuraho ek esa shivling jisme chupa hai dharti ke khtm hone ka rahseya
दोस्तों आइए जानते है उस शिवलिंग के बारे मे जिसमें छुपा है दुनिया के खतम होने का रहस्य!
दोस्तों मध्यप्रदेश के खजुराहो में स्थित मतंगेश्वर मंदिर का शिवलिंग एक ऐसा शिवलिंग है जो लगातार बड़ा होता जा रहा है इसलिए इसे जीवित शिवलिंग भी कहा जाता है, इसकी ऊंचाई लगातार बढ़ रही है और अब तक 9 फीट से अधिक हो चुकी है मंदिर के पुजारी के अनुसार प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकर के बराबर बढ़ जाती है| शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए पर्यटन विभाग के कर्मचारी बाकायदा इंची टेप से नापते है| जहाँ शिवलिंग पहले की तुलना में लंबा मिलता है| इसकी एक खास बात यह भी है कि यह शिवलिंग जितना धरती के ऊपर नजर आता है, यह उतना ही धरती के अंदर भी समाया हुआ है. स्थानीय मान्यता है कि जिस दिन धरती के अंदर का शिवलिंग पाताल लोक तक पहु
वो दो श्राप! जिनकी वज़ह से डूबी द्वारका | श्री कृष्ण की द्वारका नगरी समुद्र में क्यु और कैसे डूब गयी
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✅धुंधुकारी और गोकर्ण जी की कहानी | कैसे मिली धुंधुकारी प्रेत को श्रीमद् भागवत कथा सुनने से मुक्ति
Dhundhukari ki kahani
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Dhundhukari ki katha bhagwat
Dhundhukari aur Gokaran ki Katha Bhagwat
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दोस्तों आइए जानते है उस शिवलिंग के बारे मे जिसमें छुपा है दुनिया के खतम होने का रहस्य!
दोस्तों मध्यप्रदेश के खजुराहो में स्थित मतंगेश्वर मंदिर का शिवलिंग एक ऐसा शिवलिंग है जो लगातार बड़ा होता जा रहा है इसलिए इसे जीवित शिवलिंग भी कहा जाता है, इसकी ऊंचाई लगातार बढ़ रही है और अब तक 9 फीट से अधिक हो चुकी है मंदिर के पुजारी के अनुसार प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकर के बराबर बढ़ जाती है| शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए पर्यटन विभाग के कर्मचारी बाकायदा इंची टेप से नापते है| जहाँ शिवलिंग पहले की तुलना में लंबा मिलता है| इसकी एक खास बात यह भी है कि यह शिवलिंग जितना धरती के ऊपर नजर आता है, यह उतना ही धरती के अंदर भी समाया हुआ है. स्थानीय मान्यता है कि जिस दिन धरती के अंदर का शिवलिंग पाताल लोक तक पहु
पांडवों की स्वर्ग यात्रा के बाद का व्रतांत | आखिर क्यु मिला युधिष्ठिर को कुछ क्षण के लिए नर्क और दुर्योधन को स्वर्ग
✅पांडवों की स्वर्ग यात्रा
https://youtu.be/AXUvR9Le_VM
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#पांडवों_की_अंतिम_यात्रा
#पांडवों_की_मृत्यु_केसे_हुई
✅महाभारत पांडवों की स्वर्ग यात्रा कैसे हुई ! युधिष्ठिर को ही मिला स्वर्ग! Pandavas Journey to Heaven
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✅कलयुग की शुरुआत कब और कैसे हुई थी? द्वापर युग का अंत कैसे हुआ था? How Kalyug started? Kalyug ka ant
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कलयुग की शुरुआत कब हुई थी
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कलयुग की कहानी
कलयुग की शुरुआत कैसे हुई
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दोस्तो जब राम दूत हनुमान जी लंका जलाकर चले गए थे, तो लंका की प्रजा और यहां तक कि रावण की पत्नि मंदोदरी भी इस बात से भयभीत थी कि जिसके केवल एक दूत मे इतनी शक्ति है उस श्री राम मे स्वयं कितनी शक्ति होगी. अब रावण के लिए यह जरूरी हो गया था कि वो राजा होने के नाते अपनी प्रजा को भय मुक्त करे, इसके लिए वह सबसे पहले अपनी पत्नि मंदोदरी के कक्ष मे गया और बोला. लोकपाल भी जिससे डरते है भला उसकी पत्नि को किसी से डरने की क्या जरूरत है और साथ ही मंदोदरी को ममता के जाल मे फंसाकर भय मुक्त कर दिया . इसके बाद रावण ने एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया और अपने बड़े बड़े और शक्तिशाली राक्षसों से यह कहा कि वानर सेना लंका पर आक्रमण करने के लिए आ रही हैं और उनके साथ दो मानव भी है, वैसे तो वे अभी समुद्र के उस पार बेबस है और समुद्र पार नहीं कर पाएंगे, लेकिन अगर आ गए तो आप लोग क्या करोगे, रावण की यह बात सुनकर सभ
दोस्तो द्वारका नगरी कैसे बनी. और श्री कृष्ण के बैकुंठ धाम वापिस लौट जाने के बाद द्वारका नगरी समुद्र में क्यु डूब गयी. आईए जाने इसके पीछे का इतिहास जब जरासंध के बार बार मथुरा पर आक्रमण करने के कारण भगवान श्री कृष्ण को य़ह लगने लग गया था कि बार बार युद्ध उनकी यादव प्रजा के लिए हितकारी नहीं है तो उन्होंने एक नया नगर बसाने का फैसला किया और उन्होंने विश्वकर्मा जी को एक नया नगर बनाने का आदेश दिया. दोस्तों एसा कहा जाता है कि विश्वकर्मा ने रातों रात एक भव्य नगर का निर्माण कर दिया था. और नगर भी ऐसा कि उस समय द्वारका नगरी के समान पूरी पृथ्वी पर दूसरी इतनी भव्य नगर नहीं था, अब बात रहीं कि श्री कृष्ण जब बैकुंठ धाम वापिस लौट गए तो द्वारका नगरी आखिर समुद्र में क्यु डूब गयी?? दरअसल दोस्तों एसा कहा जाता है कि द्वारका नगरी कभी धरती का हिसा थी ही नहीं, श्री कृष्ण ने समुद्र देव से भूमि उ
दोस्तो श्री राम ने रावण को मारने के बाद लंका विभीषण को दे दी थी और स्वयम अयोध्या आ गए थे. यह हम सब जानते हैं, लेकिन आज हम आपको रामायण का एक अनोखा किस्सा बताने जा रहे हैं जो शायद ही आपने पहले सुना होगा. दोस्तों मूलकासुर नाम का एक दैत्य था, जो कि रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण का पुत्र था। मूल नक्षत्रों में जन्म लेने के कारण कुंभकर्ण ने उसे जंगल में फिकवा दिया था. वहां उसका पालन पोषण मधुमक्खियों ने किया था. बड़े होकर मूलकासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या की थी और उनसे वरदान हासिल किया था। जब उसे यह पता चला कि श्री राम ने उसके पिता का वध कर दिया है और विभीषण ने उनका साथ दिया है और लंका का राजा बन गया है तो उसने य़ह प्रण लिया कि पहले वह विभीषण का वध करेगा और उसके बाद अयोध्या पर विजय हासिल करके श्री राम का भी वध कर देगा। जब विभीषण को मुलकासुर के इस प्रण के बारे मे पता तो वह शीघ्र ही पुष्पक व
आखिर ਅੰਗਦ का पैर कोई क्यु नहीं उठा सका दोस्तो हम सब जानते है कि जब वानर सेना समुद्र पार करके लंका आ गयी थी तब प्रभु श्री राम ने युद्ध से पहले रावण को समझाने का एक अंतिम प्रयास किया था जिसमें उन्होंने वानर राज बाली के पुत्र अंगद को दूत के रूप मे रावण की सभा मे भेजा था जहां रावण द्वारा प्रभु श्री राम का प्रस्ताव ठुकराने के बाद जब अंगद क्रोधित हो गए थे तो उन्होंने रावण को चुनौती दी थी कि अगर तुम्हारी सभा मे से किसी भी योद्धा ने मेरा पैर धरती से उठा दिया तो श्री राम हार मानकर वापिस चले जाएंगे. और जैसा कि हम जानते है कि रावण की सभा में बारी बारी से सभी योद्धाओं ने पूरा दम लगा दिया था यहां तक कि रावण का सबसे शक्तिशाली पुत्र मेघनाद भी अंगद का पैर नहीं उठा सका था. और अंत मे जब रावण ने प्रयास करना चाहा तो अंगद ने अपना पैर हटा लिया था और रावण को कहा था कि अगर पैर ही छुने है तो मेरे प्र
ऐसे 3 कार्य जो रावण नहीं कर पाया, अगर य़ह हो जाते तो दुनिया कुछ और ही होती दोस्तों हम सब जानते है कि रावण बहुत बड़ा विद्वान और ज्ञानी था. लेकिन एसे 3 कार्य जो रावण करना तो चाहता था पर कर नहीं पाया, पर अगर वो कर देता तो आज दुनिया कुछ और ही होती Toh चलिए दोस्तो हम आपको बताते हैं कि vo कार्य konse थे 1 रावण का सबसे पहला सपना था स्वर्ग पर सीढ़ी बनाना। रावण चाहता था कि हर व्यक्ति स्वर्ग जाए, 2. रावण का दूसरा सपना था समुद्र के पानी को मीठा करना। क्युकि लंका चारो ओर से समुद्र से घिरी हुई थी, इस लिए अगर समुद्र का पानी मीठा हो जाता तो उसके राज्य में पीने के पानी की समस्या कभी आती ही नहीं 3. रावण का तीसरा सपना था सोने में सुगंध भरना। क्युकि रावण की लंका सोने की थी. और वो चाहता था कि इसकी सुंगध तीनों लोकों मे फैले और उसका यश मे वृद्धि हो दोस्तों सोचिए अगर यह तीनों कार्य लंका पति रावण कर देता तो आज द
त्रिजटा ने की थी लंका दहन और रावण की मृत्यु की भविष्यवाणी 😳😳😳 दोस्तो त्रिजटा नाम की राक्षसी जो कि रावण की अशोक वाटिका मे माता सीता की देख रेख मे थी, उसने एक सपना देखा. जिसे बाद मे उसने माता सीता और बाकी दासियों को वो सपना सुनाया जिसका वर्णन हमे रामायण के सुंदरकांड पर्व में मिलता है, जो इस प्रकार है सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।। खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।। एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई।। नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।। यह सपना में कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी।। अर्थात मेने सपने मे देखा कि एक वानर ने पूरी लंका जला डाली है, और राक्षसी सेना भी हरायी है रावन निर्वस्त्र है और गधे पर सवार है, उसके सिर मुंडे हुए है और बीसों भुजाएं कटी हुई है इस स्थिति मे वह दक्षिण दिशा को जा रहा है, और लंका व
आखिर श्री गणेश पर तुलसी क्यू नहीं चढाई जाती | Aakhir Shri Ganesh ko Tulsi kyu ni chdayi jati दोस्तो भगवान श्री गणेश के पूजन में तुलसी का प्रयोग वर्जित है अर्थात मना है । आइए जानते है इसके पीछे की कहानी, इस कथा के अनुसार- एक बार भगवान श्री गणेश गंगा किनारे तप कर रहे थे। इसी बीच एक दिन देवी तुलसी गंगा के तट पर आयी । गंगा तट पर देवी तुलसी ने श्री गणेश को देखा, जो तपस्या कर रहे थे। देवी तुलसी श्री गणेश के रूप पर मोहित हो गईं और उनके मन में गणेश जी से विवाह करने की इच्छा जाग्रत हुई। देवी तुलसी ने विवाह की इच्छा से गणेश जी की तपस्या भंग हो गयी । तब भगवान श्री गणेश ने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया और तुलसी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उनके विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। श्री गणेश द्वारा अपने विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने से देवी तुलसी बहुत दुखी हुईं और आवेश में आकर उन्होंने श्री
गोवर्धन पर्वत गोकुल वासियों की मजबूत लाठियों पर टिका था या श्री कृष्ण की सबसे छोटी उंगली पर 😳😳😳 दोस्तो हम सब जानते हैं कि श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को देवराज इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाया था और लगातर 7 दिन तक उठाए रखा था. लेकिन जब उन्होने गोवर्धन पर्वत उठाया और सभी गोकुल वासी और उनके पशु पर्वत के नीचे आ गए. तो गोकुल वासियों ने अपनी बड़ी बड़ी और मजबूत लाठियों से पर्वत को सहारा दिया ताकि श्री कृष्ण तो सारा भार ना सहना पड़े. लेकिन कुछ समय बाद ही गोकुल वासी यह सोचने लगे कि पर्वत तो हमने ही सम्भाल रखा है श्री कृष्ण तो अब बस एसे ही खड़े हुए है. और वो श्री कृष्ण से कहने लगे कि कन्हैया तू थक गया होगा चल आजा अब थोड़ी देर विश्राम करले हमने पर्वत सम्भाला हुआ है, जब दो तीन बार उन्होने ने ऐसा बोला तो श्री कृष्ण ने कहा ठीक है और तब श्र