04/02/2024
पल प्रतिपल 92 पर यह पहली वैचारिक एवम् सुचिंतित टिप्पणी कथाकार दोस्त राजकुमार राकेश ने जोख़िम उठाते हुए अपनी वाल पर लिखी है क्योंकि वे स्वयं इस अंक का हिस्सा हैं। उनकी एक महत्वपूर्ण कहानी ' जहरमार ' इस अंक में प्रकाशित हुई है। शायद इसलिए वे इस अंक में प्रकाशित कहानियों पर टिप्पणी करने से बच निकले हैं। बहरहाल शुक्रिया दोस्त अंक पर इस आत्मीय टिप्पणी के लिए।
तीन दिन से मेंह बरस रहा है, और साथ निभाने के लिए दो पत्रिकाओं के ताज़ा अंक हैं।
अनेक गुज़िश्ता विशेषांकों के बीच पल प्रतिपल 92 कहने केलिए सामान्य अंक हैं, किंतु इसकी पूरी सामग्री का पाठ साहित्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को छू रहा है। यॉन फॉस्से की छः, गेब्रियला मिस्त्राल की तीन और मरीना त्वेतायेवा की छः कविताएँ और इन तीनों कवियों पर क्रमशः भुवेन्द्र त्यागी, देवेंद्र मोहन और (पुनःश्च) देवेंद्र मोहन की परिचयात्मक टिप्पणियाँ कविता पाठकों के लिए तोहफ़ा हैं। ओरहान पामुक पर विजय शर्मा ने और फ़िलिस्तीनी उपन्यासकार गस्सान कनफ़ानी पर रियाज़ुल हक ने मन से लिखा है। कनफ़ानी के उपन्यास गर्दिश का एक मार्मिक अंश भी प्रकाशित है।
“साहित्य में प्रतिरोधी चेतना का सम्मान” शीर्षक से लिखा गया संपादकीय देश निर्मोही को एक अलग शीर्ष पर ले जाता है।
विनोद शाही का आत्मकथ्य उनकी आलोचना और चिंतन का प्रखर दस्तावेज है, तथा उनके प्रकाशित दोनों उपन्यासों की आधारभूमि पर व्यापक प्रकाश डालता है।
जीवन की आलोचना के क्रम में जयशंकर और जया जादवानी के डायरी अंश क़ाबिले पठनीय हैं।
कविता के खित्ते में सुरजीत पातर,विजय कुमार, अनूप सेठी, अच्युतानंद मिश्र और अमरेन्द्र कुमार शर्मा ने महत्वपूर्ण शिरकत की है। देवेंद्र पाल ने सुरजीत पातर पर एक बेहद सुन्दर आलेख लिखा है: जाकी कोसों कूक सुने।
समीक्षकों में लीलाधार मंडलोई, अंकित नरवाल और शुभम् मोंगा जाने पहचाने नाम हैं।
और आख़िर में कहानियाँ: फ़्रांज काफ़्का की चीन की महान दीवार, प्रियंवद की मृतसैनिकों के अंत्येष्टि अनुष्ठान पर दी गई वक्तृता, राजकुमार राकेश की जहरमार, लक्ष्मेन्द्र चोपड़ा की उत्तरायण में उजास,शैलेय की रात बारिश हुई और राजेंद्र श्रीवास्तव की न्याय शामिल हैं।
एक पत्रिका में इतनी सामग्री अनवरत बरसते मेंह की हर यातना का प्रचुर उपचार प्रस्तुत करती है।
दूसरी पत्रिका कहानी विशेषांक है। तीस कहानियों का बृहद अंक। उसपर आने वाले किसी अन्य लमहे में।