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ashokshastri01 Ashok Shastri

02/06/2022

Shastri creation channel
Ashok shastri authority

https://youtu.be/Q9du0MUSt-Q श्री मद्भागवत कथा प्रथम दिन सिरसा से लाइव पं श्री योगेश जी कौशिक
24/04/2022

https://youtu.be/Q9du0MUSt-Q
श्री मद्भागवत कथा प्रथम दिन सिरसा से लाइव
पं श्री योगेश जी कौशिक

हमने यह यूट्यूब चैनल धार्मिक कार्यक्रम प्रसारित करने व उनको आपके सामने प्रस्तुत करने के लिए बनाया गया है आपको अगर ...

https://youtu.be/VlFrOD9sg5s #श्री_मद्भागवत_गीता #गीता #द्वितीय_अध्याय
12/04/2022

https://youtu.be/VlFrOD9sg5s
#श्री_मद्भागवत_गीता #गीता #द्वितीय_अध्याय

श्री मद्भागवत गीता (मूल पाठ अक्षर सहित) #श्री_मद्भागवत_गीता #गीता #द्वितीय_अध्याय #आध्यात्मिक@Shastri Creation ...

https://youtu.be/_RT3d2mK54s*श्री मद्भागवत गीता प्रथम अध्याय*
08/04/2022

https://youtu.be/_RT3d2mK54s
*श्री मद्भागवत गीता प्रथम अध्याय*

#श्री_मद्भागवत_गीता #गीता #प्रथम_अध्याय #आध्यात्मिक@Shastri Creation Sharma ...

06/04/2022
https://youtu.be/DrlHxjGL9Ccश्री मद्भागवत गीता करन्यासः व हृदयादिन्यास , माहात्म्य पाठ
06/04/2022

https://youtu.be/DrlHxjGL9Cc
श्री मद्भागवत गीता करन्यासः व हृदयादिन्यास , माहात्म्य पाठ

श्री मद्भागवत गीता (मूल पाठ अक्षर सहित) करन्यासः, हृदयादिन्यास व माहात्म्य ध्यान श्लोक सहित #गीता #श्रीरा.....

https://youtu.be/ql-y32z0tCAश्री रामचरितमानस का एक सन्दर्भभगवान श्री राम और सुग्रीव के मध्य वार्ता शरणार्थियों के विषय म...
03/04/2022

https://youtu.be/ql-y32z0tCA
श्री रामचरितमानस का एक सन्दर्भ
भगवान श्री राम और सुग्रीव के मध्य वार्ता शरणार्थियों के विषय में
गोस्वामी तुलसीदास जी ने कितना सुंदर प्रसङ्ग प्रस्तुत किया है
इस पूरे प्रसङ्ग को आप एक बार जरूर सुने अच्छा लगे तो शेयर करें और लाइक करे
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अशोक शास्त्री
9116001608

हमने यह यूट्यूब चैनल धार्मिक कार्यक्रम प्रसारित करने व उनको आपके सामने प्रस्तुत करने के लिए बनाया गया है आपको अगर ...

https://youtu.be/Pe2zsIKrTssकोनसे समय भोजन नही करना चाहिए सुनिये त्रयम्बकेश्वर चैतन्य ब्रह्मचारी जी के श्री मुख से
13/01/2022

https://youtu.be/Pe2zsIKrTss
कोनसे समय भोजन नही करना चाहिए सुनिये त्रयम्बकेश्वर चैतन्य ब्रह्मचारी जी के श्री मुख से

इस समय भोजन कभी ना करें ।। त्रयम्बकेश्वर चैतन्य जी महाराज ।। ‎ Creation ‎@धर्म शक्ति TV @अशोकशास्त्री

18/10/2021
17/10/2021
15/10/2021
20/09/2021

श्राद्ध क्यों करना चाहिए

06/09/2021

नल-दमयन्ती की कथा !!!!!!!!

नल और दमयन्ती की कथा भारत के महाकाव्य, महाभारत में आती है।

युधिष्ठिर को जुए में अपना सब-कुछ गँवा कर अपने भाइयों के साथ वनवास करना पड़ा। वहीं एक ऋषि ने उन्हें नल और दमयन्ती की कथा सुनायी।

नल निषाद देश के राजा थे। वे वीरसेन के पुत्र थे। नल बड़े वीर थे और सुन्दर भी। शस्त्र-विद्या तथा अश्व-संचालन में वे निपुण थे। दमयन्ती विदर्भ (पूर्वी महाराष्ट्र) नरेश की एकमात्र पुत्री थी। वह भी बहुत सुन्दर और गुणवान थी। नल उसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर उससे प्रेम करने लगा। उनके प्रेम का सन्देश दमयन्ती के पास बड़ी कुशलता से पहुंचाया एक हंस ने। और दमयन्ती भी अपने उस अनजान प्रेमी की विरह में जलने लगी।

इस कथा में प्रेम और पीड़ा का ऐसा प्रभावशाली पुट है कि भारत के ही नहीं देश-विदेश के लेखक व कवि भी इससे आकर्षित हुए बिना न रह सके। बोप लैटिन में तथा डीन मिलमैन ने अंग्रेजी कविता में अनुवाद करके पश्चिम को भी इस कथा से भली भांति परिचित कराया है।

विदर्भ देश में भीष्मक नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी पुत्री का नाम दमयन्ती थी। दमयन्ती लक्ष्मी के समान रूपवती थी। उन्हीं दिनों निषाद देश में वीरसेन के पुत्र नल राज्य करते थे। वे बड़े ही गुणवान्, सत्यवादी तथा ब्राह्मण भक्त थे। निषाद देश से जो लोग विदर्भ देश में आते थे, वे महाराज नल के गुणों की प्रशंसा करते थे।

यह प्रशंसा दमयन्ती के कानों तक भी पहुँची थी। इसी तरह विदर्भ देश से आने वाले लोग राजकुमारी के रूप और गुणों की चर्चा महाराज नल के समक्षकरते। इसका परिणाम यह हुआ कि नल और दमयन्ती एक-दूसरे के प्रति आकृष्ट होते गये।

महाभारत में धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह करने पर महर्षि बृहदश्व ने नल-दमयन्ती की कथा सुनाई-

धर्मराज ! निषाद देश में वीरसेन के पुत्र नल नाम के एक राजा हो चुके हैं। वे बड़े गुणवान्, परम सुन्दर, सत्यवादी, जितेन्द्रिय, सबके प्रिय, वेदज्ञ एवं ब्राह्मणभक्त थे। उनकी सेना बहुत बड़ी थी।। वे स्वयं अस्त्रविद्या में बहुत निपुण थे। वे वीर, योद्धा, उदार और प्रबल पराक्रमी भी थे। उन्हें जूआ खेलने का भी कुछ-कुछ शौक था।

उन्हीं दिनों विदर्भ देश में भीम नाम के एक राजा राज्य करते थे। वे भी नल के समान ही सर्वगुण सम्पन्न और पराक्रमी थे। उन्होंने दमन ऋषि को प्रसन्न करके उनके वरदान से चार संतानें प्राप्त की थीं—तीन पुत्र और एक कन्या। पुत्रों के नाम थे—दम, दान्त, और दमन। पुत्री का नाम था—दमयन्ती। दमयन्ती लक्ष्मी के समान रूपवती थी। उसके नेत्र विशाल थे। देवताओं और यक्षों में भी वैसी सुन्दरी कन्या कहीं देखने में नहीं आती थी।

उन दिनों कितने ही लोग विदर्भ देश से निषध देश में आते और राजा नल के सामने दमयन्ती के रूप और गुण का बखान करते। निषाद देश से विदर्भ में जाने वाले भी दमयन्ती के सामने राजा नल के रूप, गुण और पवित्र चरित्र का वर्णन करते। इस प्रकार दोनों के हृदय में पारस्परिक अनुराग अंकुरित हो गया।

एक दिन राजा नल ने अपने महल के उद्यान में कुछ हंसों को देखा। उन्होंने एक हंस को पकड़ लिया। हंस ने कहा—‘आप मुझे छोड़ दीजिये तो हम लोग दमयन्ती के पास जाकर आपके गुणों का ऐसा वर्णन करेंगे कि वह आपको अवश्य वर लेगी।’ नल ने हंसको छोड़ दिया। वे सब उड़कर विदर्भ देश में गये।

दमयन्ती अपने हंसों को देखकर बहुत प्रसन्न हुई और हंसों को पकड़ने के लिये उनकी ओर दौड़ने लगी। दमयन्ती जिस हंस को पकड़ने के लिये दौड़ती, वही बोल उठता कि ‘अरी दमयन्ती ! निषाद देश में एक नल नाम का राजा है। वह अश्विनीकुमार के समान सुन्दर है। मनुष्यों में उसके समान सुन्दर और कोई नहीं है। वह मानो मूर्तिमान् कामदेव है।

यदि तुम उसकी पत्नी हो जाओ तो तुम्हारा जन्म और रूप दोनों सफल हो जायँ। हम लोगों ने देवता, गंधर्व, मनुष्य, सर्प और राक्षसों को घूम-घूमकर देखा है नल के समान कहीं सुन्दर पुरुष देखने में नहीं आया। जैसे तुम स्त्रियों में रत्न हो, वैसे ही नल पुरुषों में भूषण है। तुम दोनों की जोड़ी बहुत ही सुन्दर होगी।’ दमयन्ती ने कहा—‘हंस ! तुम नल से भी ऐसी बात कहना।’ हंस ने निषाद देश में लौटकर नल से दमयन्ती का संदेश कह दिया।

दमयन्ती हंस के मुँह से राजा नल की कीर्ति सुनकर उनसे प्रेम करने लगी। उसकी आसक्ति इतनी बढ़ गयी कि वह रात-दिन उनका ही ध्यान करती रहती। शरीर धूमिल और दुबला हो गया। वह दीन-सी दीखने लगी। सखियों ने दमयन्ती के हृदय का भाव ताड़कर विदर्भराज से निवेदन किया कि ‘आपकी पुत्री अस्वस्थ हो गयी है।’ राजा भीम ने अपनी पुत्री के सम्बन्ध में बड़ा विचार किया। अन्त में वह इस निर्णय पर पहुँचे कि मेरी पुत्री विवाहयोग्य हो गयी है, इसलिये इसका स्वयंवर कर देना चाहिये।

उन्होंने सब राजाओं को स्वयंवर का निमन्त्रण-पत्र भेज दिया और सूचित कर दिया कि राजाओं को दमयन्ती के स्वयंवर में पधारकर लाभ उठाना चाहिये और मेरा मनोरथ पूर्ण करना चाहिये। देश-देश के नरपति हाथी, घोड़े और रथों की ध्वनि से पृथ्वी को मुखरित करते हुए सज-धजकर विदर्भ देश में पहुँचने लगे। भीम ने सबके स्वागत सत्कार की समुचित व्यवस्था की।

देवर्षि नारद और पर्वत के द्वारा देवताओं को भी दमयन्ती के स्वयंवर का समाचार मिल गया। इन्द्र आदि सभी लोकपाल भी अपनी मण्डली और वाहनों सहित विदर्भ देश के लिये रवाना हुए। राजा नल का चित्त पहले से ही दमयन्ती पर आसक्त हो चुका था।

उन्होंने भी दमयन्ती के स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिये विदर्भ देश की यात्रा की। देवताओं ने स्वर्ग से उतरते समय देख लिया कि कामदेव के समान सुन्दर नल दमयन्ती के स्वयंवर के लिये जा रहे हैं। नल की सूर्य के समान कान्ति और लोकोत्तर रूप-सम्पत्ति से देवता भी चकित हो गये।

उन्होंने पहिचान लिया कि ये नल हैं। उन्होंने अपने विमानों को आकाश में खड़ा कर दिया और नीचे उतरकर नल से कहा—‘राजेन्द्र नल ! आप बड़े सत्यव्रती हैं। आप हम लोगों की सहायता करने के लिए दूत बन जाइये।’ नल ने प्रतिज्ञा कर ली और कहा कि ‘करूँगा’। फिर पूछा कि ‘आप लोग कौन हैं और मुझे दूत बनाकर कौन-सा काम लेना चाहते हैं ?’ इन्द्र ने कहा—‘हमलोग देवता हैं। मैं इन्द्र हूँ और ये अग्नि, वरुण और यम हैं। हम लोग दमयन्ती के लिये यहाँ आये हैं।

देवताओं ने नल से कहा कि आप हमारे दूत बनकर दमयन्ती के पास जाइये और कहिए कि इन्द्र, वरुण, अग्नि और यमदेवता तुम्हारे पास आकर तुमसे विवाह करना चाहते हैं। इनमें से तुम चाहे जिस देवता को पति के रूप में स्वीकार कर लो।’ नल ने दोनों हाथ जोड़कर कहा कि ‘देवराज’ ! वहाँ आप लोगों के और मेरे जाने का एक ही प्रयोजन है।

इसलिये आप मुझे दूत बनाकर वहाँ भेजें, यह उचित नहीं है। जिसकी किसी स्त्री को पत्नी के रूप में पाने की इच्छा हो चुकी हो, वह भला, उसको कैसे छोड़ सकता है और उसके पास जाकर ऐसी बात कह ही कैसे सकता है ? आप लोग कृपया इस विषय में मुझे क्षमा कीजिये

दमयन्ती का स्वयंवर और विवाह !!!!!!!!!!

दमयन्ती का स्वयंवर हुआ जिसमें न केवल धरती के राजा, बल्कि देवता भी नल का रूप धरकर आ गए। स्वयंवर में एक साथ कई नल खड़े थे। सभी परेशान थे कि असली नल कौन होगा। लेकिन दमयन्ती जरा भी विचलित नहीं हुई। उसने आंखों से ही असली नल को पहचान लिया। सारे देवताओं ने भी उनका अभिवादन किया। इस तरह आंखों में झलकते भावों से ही दमयंती ने असली नल को पहचानकर अपना जीवनसाथी चुन लिया। नव-दम्पत्ति को देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हु्आ। दमयन्ती निषाद-नरेश राजा नल की महारानी बनी। दोनों बड़े सुख से समय बिताने लगे।

दमयन्ती पतिव्रताओं में शिरोमणि थी। अभिमान तो उसे कभी छू भी न सकता था। समयानुसार दमयन्ती के गर्भ से एक पुत्र और एक कन्या का जन्म हुआ। दोनों बच्चे माता-पिता के अनुरूप ही सुन्दर रूप और गुणसे सम्पन्न थे। समय सदा एक-सा नहीं रहता, दुःख-सुख का चक्र निरन्तर चलता ही रहता है।

वैसे तो महाराज नल गुणवान्, धर्मात्मा तथा पुण्यश्लोक थे, किन्तु उनमें एक दोष था —जुए का व्यसन। नल के एक भाई का नाम पुष्कर था। वह नल से अलग रहता था। उसने उन्हें जुए के लिए आमन्त्रित किया। खेल आरम्भ हुआ। भाग्य प्रतिकूल था। नल हारने लगे, सोना, चाँदी, रथ, राजपाट सब हाथ से निकल गया। महारानी दमयन्ती ने प्रतिकूल समय जानकर अपने दोनों बच्चों को विदर्भ देश की राजधानी कुण्डिनपुर भेज दिया।

इधर नल जुए में अपना सर्वस्व हार गये। उन्होंने अपने शरीर के सारे वस्त्राभूषण उतार दिये। केवल एक वस्त्र पहनकर नगर से बाहर निकले। दमयन्ती ने भी मात्र एक साड़ी में पति का अनुसरण किया।

एक दिन राजा नल ने सोने के पंख वाले कुछ पक्षी देखे। राजा नल ने सोचा, यदि इन्हें पकड़ लिया जाय तो इनको बेचकर निर्वाह करने के लिए कुछ धन कमाया जा सकता है। ऐसा विचारकर उन्होंने अपने पहनने का वस्त्र खोलकर पक्षियों पर फेंका। पक्षी वह वस्त्र लेकर उड़ गये। अब राजा नल के पास तन ढकने के लिए भी कोई वस्त्र न रह गया।

नल अपनी अपेक्षा दमयन्ती के दुःख से अधिक व्याकुल थे। एक दिन दोनों जंगल में एक वृक्ष के नीचे एक ही वस्त्र से तन छिपाये पड़े थे। दमयन्ती को थकावट के कारण नींद आ गयी। राजा नल ने सोचा, दमयन्ती को मेरे कारण बड़ा दुःख सहन करना पड़ रहा है। यदि मैं इसे इसी अवस्था में यहीं छोड़कर चल दूँ तो यह किसी तरह अपने पिताके पास पहुँच जायगी।

यह विचारकर उन्होंने तलवार से उसकी आधी साड़ी को काट लिया और उसी से अपना तन ढककर तथा दमयन्ती को उसी अवस्था में छोड़ कर वे चल दिये। जब दमयन्ती की नींद टूटी तो बेचारी अपने को अकेला पाकर करुण विलाप करने लगी। भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह अचानक अजगर के पास चली गयी और अजगर उसे निगलने लगा।

दमयन्ती की चीख सुनकर एक व्याध ने उसे अजगर का ग्रास होने से बचाया। किंतु व्याध स्वभाव से दुष्ट था। उसने दमयन्ती के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसे अपनी काम-पिपासा का शिकार बनाना चाहा। दमयन्ती उसे शाप देते हुए बोली—‘यदि मैंने अपने पति राजा नल को छोड़कर किसी अन्य पुरुष का कभी चिन्तन न किया हो तो इस पापी व्याध के जीवन का अभी अन्त हो जाय। दमयन्ती की बात पूरी होते ही व्याध मृत्यु को प्राप्त हुआ।

दैवयोग से भटकते हुए दमयन्ती एक दिन चेदिनरेश सुबाहु के पास और उसके बाद अपने पिता के पास पहुँच गयी। अंततः दमयन्ती के सतीत्व के प्रभाव से एक दिन महाराज नल के दुःखो का भी अन्त हुआ। दोनों का पुनर्मिलन हुआ और राजा नल को उनका राज्य भी वापस मिल गया।

https://youtu.be/X_js6AbQKRYश्री मद्भागवत कथा पांचवा दिन ।। श्री योगेश कौशिक ।। कथा करवाने के लिए सम्पर्क करें9306416108...
06/08/2021

https://youtu.be/X_js6AbQKRY
श्री मद्भागवत कथा पांचवा दिन ।। श्री योगेश कौशिक ।।
कथा करवाने के लिए सम्पर्क करें
9306416108 , 9996797279

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अशोक शास्त्री
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श्री मद्भागवत कथा पांचवा दिन ।। श्री योगेश कौशिक ।। कथा करवाने के लिए सम्पर्क करें9306416108 , 9996797279लाइव माध्यम Shastri Creation owner अश...

https://youtu.be/kTx4qFL8TPEदेवशयनी एकादशी व्रत कथानमस्कार हम आपके लिए सब कथाएं एक जगह ही उपलब्ध करवा रहें हैं । अतः आप ...
19/07/2021

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#देवशयनी-एकादशी-व्रत कथा।।योगेंद्र जी शास्त्री।। #देवशयनी-एकादशी #व्रत-कथा #एकादसी-व्रत-कथा #कथाएं #व्रत-कथाएं #एकादश....

15/07/2021

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