22/08/2023
"गिर्दा" एक श्रधांजलि !जनकवि,रंगकर्मी, लोकगायक, समाज सेवक, और भी जाने किन-किन संज्ञाओं से पुकारे जाते थे वो, नाम था गिरीश चंद्र तिवाड़ी ! लेकिन वो सबके ‘गिर्दा’ थे, हाँ इसी नाम से तो जाने जाते है वो. उनके हर एक अंदाज़ की, उनके व्यक्तित्व की और उनके आंदोलनकारी रूप पर तो खूब चर्चा होती रही है,
"गिर्दा" एक साधारण सा दिखने वाला इंसान, लंबा बदन, कंधे में एक झोला, उसमे कुछ किताबें, कुर्ता, और जाखट इसी रूप में अक्सर देखा जा सकता था उनको ! कभी बीडी जलाये तो कभी कभी लिखते ! उनके चलने, बैठने और बोलने में ठेट पहडीपन झलकता था ! गिर्दा वो एक ऐसा कवि था जिनकी कवितायें कल्पना नहीं होती थी, उनकी कविताओं में वही ब्यक्त होता था जो उन्होंने जिया, जो उन्होंने महसूस किया, इसी लिए तो वो जनकवि कहलाये, उनके लिए लिखना जन सरोकारों के लिए लिखना रहा है,
मुझे उनकी कविता की कुछ पंक्तिया याद आती है
"लिख देने भर से खाली किताबें,
उसको व्यवहार में उतारना जरूरी है।
उनकी स्पष्ट मान्यता रही-मुक्ति चाहते हो
तो आओ जन संघर्षों में कूद पड़ो,
याद रखो बंधन सदियों के अपने आप नहीं टूटेंगे,
तेरे-मेरे गर्दन से जालिम के हाथ नहीं छूटेंगे।"
उन्होंने कवि कहलाने के लिए ये पंक्तिया नहीं लिखी न कोई कवितायें, जब-जब आम जनता का दुःख-दर्द ने उन्हें बेचैन किए तो उन्होंने इसको कविता का रूप दिया, जब-जब उन्हें लोगों को खुश देखा उसमे भी उनकी कविता निकली ! उन्होंने अपनी एक कविता में कहा है :-
"जन से लिया, मन से मंथन किया, फिर जनता को ही लौटा दिया।"
उनकी कविताओं में वो पहाड़ी सरल, निष्कपट ब्यक्तित्व की छाप झलकती है ! चाहे उन्होंने जन आंदोलनों में सड़कों पै गाये गीत हो कवितायें हो उन्होंने जन-जन के हृदय को छुवा है, चाहे वो चिपको आंदोलन रहा हो, नशा नहीं रोजगार दो आन्दोलन हो या उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए आन्दोलन, उनको कभी ये महसूस नहीं हुआ की अपनी कविताओं का प्रकाशन किया जाए, उनकी लेखनी की अपनी भाषा थी सरल, सहज, और आम !
गिर्दा बेहद हें सरल ब्यक्तित्व, सही मायने में गर पहाड़ को जिया है तो वो उन्होंने ही, मैंने गिर्दा को जितना पढ़ा सुना जाना उतना कम लगा, उनकी हर कविता में एक दुनिया मिलती है, पहाड़ के लिए उनका सपना दिखता है, उनकी सोच, समझ और उदारता तथा पहाड़ प्रेम बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देता है !
लोक गयाक, कवि और गीतकार श्री नरेंदर सिंह नेगी जी के अनुसार :- "गिर्दा जनसरोकारों से जुड़ा कवि था, वो सड़कों का गायक था, हमारी तरहा भीड़-भाड़. चकाचौध और स्टूडियो की चार दिवारी में बंद होके गाने वाला नहीं था, वो जब सड़कों पै गाता था तो लोग उसके पीछे पीछे चल देते थे"
"गिर्दा" एक विचार है, एक सोच है, विचार कभी मरते नहीं, सोच कभी मरा नहीं करती, वो हमेशा हम लोगों के दिलो-दिमाग में ज़िंदा रहते है, "गिर्दा" की सोच और विचार भी हमेशा हमारे मन-मस्तिक्ष में छाये रहेंगे, ज़िंदा रहेंगे, हमें उनके दिखाए गए मार्ग में चलने का, उनके आदर्शों को उनके विचारों को अपनाने का संकल्प लेना होगा यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी ! सही मायने में कहूँ तो "गिर्दा" के विचारों को पढ़ के ही मुझे नयी ऊर्जा मिली, और जिस दिन में उनके विचारों से प्रभावित हुआ उसी दिन संकल्पित हुआ कि उनके दिखाए आदर्शों पै चलके उत्तराखंड के लिए कुछ करूँ ! उनके उत्तराखंड के लिए देखने गए सपनों को पूरा करना ही हमारा कर्तब्य हो हमारा धेय हो !
लोकरंग टीवी की की और से "गिर्दा" को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।