27/12/2024
पोथी समीक्षा
मिथिलाक पावनि तिहार एवम् सोलह संस्कार
बिमला दत्त
समीक्षा: डॉ कैलाश कुमार मिश्र
#डॉकैलाशकुमारमिश्र
वरिष्ठ मधुबनी चित्रकला कलाकार श्रीमती बिमला दत्त जीक एक इलस्ट्रेटेड पोथी "मिथिलाक पावनि तिहार एवम् सोलह संस्कार" हस्तगत भेल अछि । पोथी बोधगम्य भाषा मे लिखल छैक । पोथी केर एक-एक इंच कागत लेखनी आ लिखिया केर संगम स्थापिय करैत छैक । पोथी केर एक-एक आखर अमृत कण सन छैक । संतुलित शब्द, अर्थ स्पष्ट करैत छैक, ऊपर सँ दक्ष कलाकार केर ब्रश अपन कलाकृति सँ सब बातक कलात्मक अर्थ स्पष्ट करैत रहैत छैक । एक-एक कला केर प्लेट संदर्भ प्रसारित करैत छैक - सार्थक संदर्भ । कला एहेन जे सहज, स्पष्ट, आ बिना कोनो बितिंडा केँ । पोथी केर आकर पैघ छैक । शब्द केर फॉण्ट जेना आंखि मे काजर जकाँ काज करैत छैक पाठक लेल । पूरा पोथी उत्कंठा जगेने एक बैसार मे पढ़ल जा सकैत छैक ।
पोथी केर भाषा मैथिली आ मैथिलियो मे सर्वहाराक मैथिली छैक जे पोथी केँ बहुत उपयोगी बनबैत छैक।
पोथी केँ बिमला दत्त जी अपन अनुभव केर आंच पर पकबैत छथि । जीवनक अनुभव आ संस्कार सँ जोड़ैत छथि। एक-एक अंशक लघु किंतु सार्थक सुचना दैत छथि। पोथी राम दरबार संग यात्रा प्रारंभ करैत छैक । विष्णु अर्थात राम आ कृष्ण संग महादेव अपन पुत्र गणेश संग पूजित छथि मिथिला भूमि मे । ताहिं श्री गणेश होइत छैक गणेश केर चित्र आ हुनक सम्बन्ध मे लघु जानकारी संग । गणेशक लोक चित्र कचनी शैली मे बनल छैक जे आंखि केँ सुकोमल अनुभूति देत छैक । गणेश के बाद अबैत छथि विद्याक देवी शारदा (सरस्वती) जिनक विशेष अर्चना माघ मासक पंचमी तिथि अर्थात वसंत पंचमी दिन होइत छनि।
आब प्रारम्भ होइत छैक मधुबनी चित्रशैली मे मातृशक्ति केर महत्त्व । जकर उपस्थापन गर्भाधान केर संस्कार सँ होइत छैक । गर्भाधान मे जे महिला गर्भ सं छथि तिनक वस्त्र, भोजन, उठबा, बैसबाक विचार आदि के चित्रित कएल गेल छैक । तहिना पुंसवन एवम् सीमान्तोंनयन संस्कार केर सम्बन्ध मे सुगम्य लेखन आ चित्रण स्थापित कएल गेल छैक । पोथी संस्कार संग रसे-रसे आगा बढैत रहैत छैक , सब बात, संस्कार केर बतबैत, चित्र उकेरैत पुंसवन सँ जात कर्म अर्थात नेना केर जन्म सं छठम दिनक संस्कार, अर्थात छठिहार। छठिहार मे मैथिल ललना उत्साहित भेल काज करैत छथि, सोहर गबैत छथि, बच्चा आ जच्चा केँ काजर लगबैत छथि आ अहि तरहें जनमौटी नेना केर स्वागत परिवार मे होइत छैक । संस्कार केर यात्रा बढैत रहैत छैक - नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन; बालिका खेल, आदि ।
बालिका खेल केर बाद एक विशाल आ जटिल संस्कार होइत छैक ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ समाज मे। अतय पोथी जेना इलीट समाज केर प्रतिनिधि बन लागैत छैक! खैर! तकरा रोकल नहि जा सकैत छैक । कायस्थ आ ब्राह्मण सेहो मिथिला समाज आ संस्कृति केर अंगे छैक ने! शुरू होइत छैक उपनयन केर एक-एक विधि केर लिखित विवरण आ चित्र प्रदर्शन । बाँसकट्टी, मड़वाबंधन, चरखकट्टी, कुमरम, भीख, आ अंत बालक केर विद्यारम्भ । करीब 25-30 अनुपम चित्रकारी सँ उपनयन संस्कार केर बेखछी छोड़ेबा केर बहुत सुन्दर प्रयोग भेल छैक । एक-एक विधि के लेखनी संग चित्रक तालमेल बेजोड़ छैक ।विवाह केर सब विधि केर वर्णन दुनु पक्ष - कनिया आ वर - दिस के भेटैत छैक । शब्द चित्र संग मेल-मिलाप करैत पाठक केर मस्तिष्क मे अमिट भेल जैत छैक । लाबा भुजाई, अलहकरण, जयमाल, सिंदूरदान, शुभविवाह, कोहबर, द्विरागमन, वट-सावित्री पूजा, मधुश्रावणी, सब विधि, अनुष्ठान, जेना शब्द आ कलाकृति केर युग्म सं टन-तन बजैत छैक ! मुदा विवाह केर वर्णन कमो वेश कर्ण कायस्थ आ ब्राह्मण समाज तक सिमित रहित छैक । ताहू मे की हर्ज! कम सं कम दू जाति केर विवाह केर विधान त समग्रता मे उपलब्ध छैक ने। इ अपना आप मे पैघ बात भेलैक । कियो दोसर कलाकार अपन पोथी मे चित्रकला संग दोसर जाति आ वर्ग हेतु लिखथि । आ फेर कियोक तेसर अहि तरहें एक एक आंजुर फुल सं परम्परा, व्यवहार, सोलह संस्कार पर लिखथि , रसे-रसे परम्पराक माला तैयार भ जाएत।
ई पोथी सोलह संस्कार, पावनि-तिहार आ ताहि केर अनुष्ठान, अनुष्ठान केर विधि-विधान, ओहि मे व्यवहरित अरिपन, रेखा चित्र, ओकर बिम्ब, पैटर्न, रंग समायोजन, लोक गीत संग अनुष्ठान केर संतुलन प्रदर्शित करैत अनुपम कृति छैक । एक उदाहरण फगुआ केर पेंटिंग पर ध्यान आकर्षित करैत छैक । पेटिंग मे कृष्ण राधा संग होरी खेला रहल छथि। ओतय आनंद केर सम्प्रेषण पेंटिंग संग लोकगीत केर आखर संग होइत छैक:
'सदा आनंद रहे एहि द्वारे
मोहन खेले होरी हो'
बिमला देवी केर प्रत्युत्पन्नमति केर जतेक प्रशंसा करी से थोड़! पाबनि तिहारक संग-संग कखनोकाल मिथिला केर गाम घरक लोक केर जीवन केर अनेक पक्ष जेना कृषि कार्य सं सम्बंधित विषय पर सेहो लेखनी आ ब्रश समान अधिकार संग चलैत छनि बिमला जी के । लेकिन पाबनि-तिहार केर समायोजन आ ओकर लेखनी संग चित्रकला द्वारे वर्णन केर प्रक्रिया चलैत रहैत छैक पोथी मे - जुड़शीतल, सोमवारी पूजा, राखी, अनन्त चतुर्दशी सभक चित्रण-वर्णन होइत रहैत छैक । जेना लिख चुकल छी, दैनिक जीवन केर दोसर महत्वपूर्ण पक्ष बीच-बीच मे सुखद आश्चर्य संग प्रवेश करैत रहैत छैक। एहने प्रसंग छैक "मछहरि" केर । एहि प्रसंग मे शब्द संयोजन, कवित्तक सन्दर्भ संग चित्रकारी मनोहारी छैक । ई वर्णन मिथिला केर जल, जीव, लोक संस्कृति, लोक जीवन आ कलाकृति सभक एक संग व्यापक व्याख्या करैत छैक । मिथिला केर वर्णन करैत लोक कवित्त केर सन्दर्भ दैत बिमला दत्त लिखैत छथि:
"पग-पग पोखरि माछ मखान
मधुर बोलि मुस्की मुख पान ।
विद्या वैभव शांति प्रतीक
सरस नगर ई मिथिला थीक।"
कथ्य अपूर्व कलकारी सं दर्शक केर ललाट पर नृत्य कर' लगैत छैक ।
फेर अबैत छैक सूर्यपूजा (रविव्रत ) केर विधान, परम्परा आ ओकर चित्र सूत्र । जीवन केर क्रिया सब बीच-बीच मे अबैत छैक, जेना की "धनरोपनी" । अहि पोथी सं हरितालिका व्रत, चौड़चन, जितिया सब किछु केर जानकारी भेटैत छैक । लेखिका के लगैत छनि जे परम्परा एक अथवा दू वर्ग अथवा जाति मात्र सं नहि चलैत छैक । परम्परा केर सतत प्रवाहित नदी केर जल जकां गतिशील होबाक चाही। से तखन संभव छैक जखन दोसर जाति, वर्ग आ समाज ओहि मे अपन योगदान देक । ताहिं कखनो "मछहरि" त कखनो कुम्हारक काज, त कखनो डोमक काज केर वर्णन आ ओकर उपादेयता पर चित्र चर्च करैत छथि। पावनि-तिहार केर चित्र वर्णन चलैत रहैत छैक : "दशमी", "कालीपूजा", "गाभा संक्रांति -ककबा अरिपन", "लक्ष्मी पूजा" (कार्तिक मासक अमावस्या क लक्ष्मी पूजन आ दियाबाती क प्रातः कार्तिक शुक्ल पडिब क गोबर्धन पूजा ), "चित्रगुप्त पूजा", "भ्रातृ द्वितीया", "छठि पूजा", अक्षय नवमीक भोज", "कार्तिक कंता", "सामा चकेबा" देवोत्थान एकादशी", "तिला संक्रांति" सब पावनि केर भव्य विस्तार आ भव्य वर्णन । सोलह संस्कार अहि प्रक्रिया मे अपन डोर धेने रहैत अछि । बिच मे पावनि-तिहार सं ब्रेक लैत "वानप्रस्थ आश्रम" केर बात होइत छैक । ई प्रयोग पाठक के पोथी दिस खिचैत छैक । "अंतिम संस्कार" अर्थात मृत्यु सँ जीवनक पूर्णता होइत छैक ताहिं ओकर व्यख्या सेहो छैक । एकरा संग पोथी सेहो अपन पूर्ण होबाक घोषणा करैत अछि ।
जखन कला केर प्रसंग दिस चलब त लागत कुनो कला असगर नहि चलैत अछि। सभ कला मे एक दोसरक छाप रहैत छैक । सभ मे किछु लेब आ किछु देब केर प्रवृत्ति रहैत छैक । तकर प्रमाण अतए सेहो भेटत । परसा (झंझारपुर) जमीन सं एक प्राचीन सूर्य केर प्रतिमा के बिमला जी मधुबनी चित्रकला शैली मे बनेने छथि। तहिना "शिवा-अन्नपूर्णा", "जीवन वृक्ष", "सुदर्शन चक्र" केर छवि के नीक सं उकेड़ने छथि। अंत करैत छथि मिथिलाक सर्वोत्तम, सर्वकालिक पाहून सियावर रामक छवि संग । अहि तरहें इ पोथी विष्णुमय रहैत अछि - पोथिक कवर पेज कृष्ण केर छवि निरूपण सं प्रारम्भ होइत अछि आ अंत मे दुल्लह रामक छवि संग पोथी सम्पूर्ण होइत अछि ।
जाहि तरहक चित्रकला आ ओकर व्यख्या छैक ताहि तरहक पोथी लेल बहुत महाग कागत, गेट अप, ओकर प्रबंधन आदि केर दरकार होइत छैक । बड़का -बड़का प्रोफेशनल केर सहायता सं पोथी केर डिजाईन करबाक दरकार छैक, पोथी केर विमोचन संग सब कलाकृति केर भव्य आ विशाल प्रदर्शनी केर आवश्यकता छैक । अगर से भेल त पूरा दुनिया अचंभित रहत । मुदा प्रश्न उठैत छैक जे अतेक अर्थ एक लोक कलाकार कोना व्योंत करत! ताहिं सिमित (चाही त संकुचित से कहि सकैत छी) साधन मे मधुबनी सन छोट शहर मे रहैत एक कलाकार जे क सकैत अछि तकर ई अनुपम उदाहरण छैक ।
पोथी पढैत काल हमरा ई बेगरता बेर-बेर बुझना गेल जे एहेन पोथी केर अनुवाद मैथिली सं हिंदी आ अंग्रेजी भाषा मे भेला सं मधुबनी चित्रकला केर बहुत पक्ष सं मिथिला के भीतर आ मिथिला आ भारत सँ बाहर के पाठक, कला समीक्षक, कला बाजार के व्यापारी, सभक अनेक शंका केर समाधान क सकैत छैक ।
्जू_मैथिल #गलबज्जू_मैथिल #कैलाशकुमारमिश्र
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